शुक्रवार, 5 दिसंबर 2014

दोहे :

 बसंत
 1

पर्व वसंती आ गया, रँग ही रँग चहुँ ओर

 केसरिया सपने हुए, तन-मन उठी हिलोर !


मचल रहे हर डाल पर, भौंरों के मधु-गान

झूम-झूम लहरा रहे, सरसों के खलिहान !


केसर फूले, बाग़ में, बिखर गए हैं रंग

 फागुन को प्रियकर लगें, बजते चंग मृदंग !


बगिया में फुलवा खिले, रंगों की भरमार

धरती पर छाने लगा, फिर फागुनी ख़ुमार !


रसभीने होने लगे, सरसों के ये फूल

 पाहुन अब तो आ मिलो, मौसम है अनुकूल !

डॉ सरस्वती माथुर
होली के रंग....

  

(१)

गोरी खेले आँगना, चंग-संग बाजें ढोल
रंग-रंगीली सजनिया, सजना है अनमोल !

(२)

रंग गुलाल उड़ते हुए, कहीं चंग की थाप
सतरंगी ऋतु फागुनी, छेड़े मधुरालाप !

(३)

 

फागुन-फागुन मन हुआ, जमकर रंग लगाएं
अबकी होली देह सँग, रंग मन भी छू जाएं

(४)

रिश्तों में कुछ दूरियां, होली कम कर जाय
मिलते हैं नजदीक से, प्रेम पनपता जाय !

(५)

जग-आँगन में गूंजती, फागुन की पगचाप
कहीं फाग के गीत हैं, कहीं चंग पर थाप !
 

(६)

फागुन गाये कान में, होली वाले राग
साजन की पिचकारियाँ, बुझे न मन की आग !

 

(७)
राधा-कान्हा साथ में, मन में आस अनंत
नाच रहीं हैं गोपियाँ, झूमें फाग दिगंत !

(८)

साजन की बरजोरियां, प्रीत-प्रेम के रंग
भीग रही हैं गोरियां, नैना बान-अनंग !

(९)

भीगी अंगिया रंग में, मन में अंतर्द्वंद
सखियों संग राधा जिये, अद्भुत-सा आनंद !


डॉ सरस्वती माथुर
दोहे ...".कृष्ण सलोने साँवरे!"
१)
कृष्ण सलोने साँवरे, मधुर मुरलिया तान
राधा मुग्ध निहारती, सरस मृदुल मुसकान
२)
कृष्ण सलोने साँवरे, सुधियों-की बौछार
मनबसिया मनमोहिनी, लीला अपरम्पार l
डॉ सरस्वती माथुर

.........................................










                               




शब्दों को माँ शारदे, तुम करना साकार,
देना मुझको प्रेरणा , होगा ये उपकार ।

रचनाएँ रचकर करूँ, माँ तेरा गुणगान,
अपने लेखन पर करूँ ,कभी न मैं अभिमान ।

चुनना हो तो मैं चुनूँ, लेखन का संसार,
मातु शारदे आप ही, करना नैया पार ।

लेखन की हो साधना, है मेरा अरमान,
शब्द नये हर पल बुनूँ,, मिले यही वरदान l

लडकी घर की शान है, मत मानो मेहमान ।
दो परिवारोँ बीच मेँ, होती सेतु समान॥
डॉ सरस्वती माथुर


मोती बूंदों की तरह, सावन में जलपात
फैली है चादर हरी झूलों की सौगात

2
बूँदें गिरती देख मन, छेड़े तार-सितार/
शीतल बही समीर जब, बुझे धरा -अंगार

3
सावन में मन भीगता, छेड़ रहा है राग
नयन बुने सपने मधुर, नींदें जाती भाग l
4
बरखा की बौछार संग, है सावनी बयार
यादों में प्रियतम बसे,दिल में नहीं करार l
5
झूम मनभावन सावन, बदरा संग आया
मयूर मयूरी ने फिर ,सबका मन हर्षाया l
16
माँ शारदे शब्दों को ,तुम करना साकार l
बस देना तुम प्रेरणा, करके यह उपकार ll
7
रच कर रचनाएँ करूँ, माँ का बस गुणगान l
लिखे पर करूँ मैं माँ . कभी भी न अभिमान l
8
चुनना हो तो चुनू मैं ,लेखन का यह द्वार l
माँ शारदे आप ही,करना नैया पारll
9



करूँ लिखने की साधना ,यह देना वरदान l
हर पल नए शब्द बुनूं , है मेरा अरमान ll

10
माँ समान होती धरा, माँ है श्री भगवान ।
आओ रोपेँ पेड हम, देँ हम जीवनदान ॥
11
 भारत न्यारा देश है, सब को इस से प्यार ।
धरती के इस दीप से, रौशन है संसार ॥
12
लडकी घर की शान है, मत मानो मेहमान ।
दो परिवारोँ बीच मेँ, होती सेतु समान॥

डॉ सरस्वती माथुर
दशहरे के दोहे

दोहे

 1

स्वर्ण जडित लंका बसी रावण का था मान
पवन पुत्र ने फूँक दी जला दिया अभिमान l

चारों तरफ राम राम गूंजे मधुर गान
जाओ रावण छोड़ कर तुम झूठा अभिमान l

3
रावण का पुतला जला ,विजयादशमी-पर्व
परम सत्य विजयी हुआ, हुआ राम पर गर्व l
4

राम नाम की नाव में, होगा बेडा पार
खो जाओ प्रभु धाम में,यह जीवन का सार l

5

राम हृदय ने जान ली, वानर दल की भक्ति
मातु सिया की खोज मेँ ,सभी लगा दी शक्ति l
6
विजयी होके राम ने, किया दशानन अंत
देने को आशीश थे ,सँग मेँ सारे संत ।
7
मने सदा सद्भाव से , मनभावन त्यौहार
पूज राम को फिर करो , उनकी जयजयकार l
8
मिटे पाप संताप अब , आया पावन पर्व
रावण बध से मिट गया ,उसका सारा गर्व ।
9
धनुष चढाया राम ने ,जगी नई ये आश
हुआ विजय उद्घोष तब, और पाप का नाश l
दिवाली के दोहे
" दोहे !"

 लक्ष्मी को हैं पूजते ,हंसवाहिनी संग
दीपों के त्यौहार का, है आलोकित रंग l



 दीपो के उजियार ने, किया तिमिर है दूर ...
दीपमालिका ने भरा, मन- जीवन में नूरl


 दीप वर्तिका जब जले , करे दे दिव्य प्रकाश
रहे सितारों से सदा ज्यूँ रोशन आकाश l


 कमला पूजन हम करें , काम करें सब नेक
जन जन को सहयोग दे,पर रख बुद्धि विवेक l


 कमला का वैभव लिये, पर्व अनूठा ख़ास
आओ हिलमिल बाँट लें, मन में हो उल्लास l


 उत्सव के माहौल में, माँ की जयजयकार
बन्दनवारेँ प्रेम की, जोडेँ मन के तार l


 लक्ष्मी रूप प्रकाश का, सरस्वती है साथ
मानव मन इक साथ हों , सभी बढाओ हाथ l


 माँ कमला की अर्चना ,दीपों क़ा उपकार
इस प्रकाश के पर्व पर, तमस भी गया हार !
डॉ सरस्वती माथुर
" राम नाम सुमिरन करो!"
1

 राम नाम सुमिरन करो, होगा बेड़ा पार,
वो ही मन की आस्था, वो ही खेवनहार ।

 

राम नाम से जोडिये मन के टूटे तार

जपो राम का नाम बस जीवन के दिन चार
3

राम नाम जपते रहो, होगा बेडा पार

लघु जीवन अब शेष है, बांटों मिल कर प्यार

4

मन में दौलत प्रीत की, होती है अनमोल
साधु संत कहते तभी, मन की गठरी खोल ।

डॉ सरस्वती माथुर












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