बहुत कुछ था
कहने को
मन के बाहर
रहने को
पर इजाजत
मिलती तो कहती
देर तक रही
बिना बात सहती
फिर सोचा नियति को
बहुत रो ली
अब खोलनी होगी
रुंधी हुई बोली
कहना शुरू किया
तो मचा बवाल
कैसे कर सकती हो
तुम हमसे सवाल
मुस्करायी नारी
छोड़ नदी सी मिठास
सागर सी हुई खारी
कहा सुनों बहुत हुआ
सदियाँ बीती
सुलगी जली तो
उठा धुआं
जो तुमने भी देखा
लेकिन अब और नहीं
केवल तुम्हारा दौर नहीं
वक्त बदलना होगा
अब मत करना
कोई सवाल
ना ही मचाना
कोई बवाल
क्यूंकी अब
काट दिया है मैंने
तुम्हारा बुना मायाजाल
देखना तुम भी
मेरे अस्तित्व का कमाल
अब नहीं गल सकेगी
नारी के अस्तित्व की
हांडी में पकी तुम्हारे
स्वार्थ की दाल
नहीं चाहिए नारी को
अब तुम्हारी ढाल
बदलो तुम भी
अब तुम्हारी चाल
अब नये सुर गूँजेंगे
गूँजेगी नयी ताल
नारी मनायेगी अब
बदलाव का नया साल !
डॉ सरस्वती माथुर
कहने को
मन के बाहर
रहने को
पर इजाजत
मिलती तो कहती
देर तक रही
बिना बात सहती
फिर सोचा नियति को
बहुत रो ली
अब खोलनी होगी
रुंधी हुई बोली
कहना शुरू किया
तो मचा बवाल
कैसे कर सकती हो
तुम हमसे सवाल
मुस्करायी नारी
छोड़ नदी सी मिठास
सागर सी हुई खारी
कहा सुनों बहुत हुआ
सदियाँ बीती
सुलगी जली तो
उठा धुआं
जो तुमने भी देखा
लेकिन अब और नहीं
केवल तुम्हारा दौर नहीं
वक्त बदलना होगा
अब मत करना
कोई सवाल
ना ही मचाना
कोई बवाल
क्यूंकी अब
काट दिया है मैंने
तुम्हारा बुना मायाजाल
देखना तुम भी
मेरे अस्तित्व का कमाल
अब नहीं गल सकेगी
नारी के अस्तित्व की
हांडी में पकी तुम्हारे
स्वार्थ की दाल
नहीं चाहिए नारी को
अब तुम्हारी ढाल
बदलो तुम भी
अब तुम्हारी चाल
अब नये सुर गूँजेंगे
गूँजेगी नयी ताल
नारी मनायेगी अब
बदलाव का नया साल !
डॉ सरस्वती माथुर
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