शनिवार, 4 जुलाई 2015

हाइबन :"नियति का खेल !"

 हाइबन :"नियति का खेल !"


कभी कभी जीवन में ऐसी घटनाएँ हो जाती हैं जो भुलाए नहीं भूलती !कल की सी बात लगती है मेरा दूरदर्शन में कार्यक्रम था वहाँ मुझे संचालन  करना था ! सुबह 11.30 बजे रिकॉर्डिंग होनी थी ! जल्दी जल्दी सुबह के काम निपटा कर  मैं  अच्छे से तैयार होकर घर से आधा घंटा पहले ही निकलना चाह  रही थी क्यूंकी मेरे  मेरे पिता जी हमेशा कहा करते थे कि समय की पाबंदी का हमेशा ध्यान  रखो, वह  आप को हमेशा आगे बढ़ाएगी ! पिता के इस संस्कार को मैंने हमेशा महत्व दिया 1
 बहरहाल , अभी घर के मेंन गेट तक पहुंची ही थी कि घर के बाहर  एक कार रुकी मेरे बहुत निकट के रिश्तेदार थे जो अजमेर से दिल्ली तक जा रहे थे तो उन्हे लगा कि मुझे सरप्राइज़ दे दे ! अब क्या करती माँ ने हमेशा से सिखाया था कि घर में कभी भी कोई   परिचित अपरिचित मेहमान कभी आ जाएँ  तो हमेशा अपनी प्राथमिकता से परे उन्हे मान दो ,उनका सत्कार करो ! घड़ी देखी 10 बज़ कर 45 मिनट हुए थे ! फटाफट इलेक्ट्रिक कैटल में चाय का पानी रखा , मिठाई, बिस्कुट ,नमकीन प्लेट में निकाले और बातों बातों में उन्हे बता भी दिया यह वाक्य जोड़ते हुए कि अच्छा हुआ आप से मिलना हो गया आप 10 मिनट बाद आते तो मैं नही मिलती मेरी दूरदर्शन पर रिकॉर्डिंग है  ! लेकिन आपका सरपराइज़ र्भी अच्छा लगा !  समझदार रिश्तेदार थे उन्होने कहा हमने तो चान्स लिया कि देखते हैं किस्मत में मिलना हुआ तो मिल लेंगे क्यूंकी आप भी वर्किंग हैं,चलिये अब हम निकलते हैं वरना आपको देर हो जाएगी  l उन्हे विदा किया और घड़ी देखी ,समय के तो पंख होते हैं वह उड रहा था ,जल्दी से कार निकाल कर मैं भी निकल पड़ी ,लेकिन ऑफिस टाइम था सो  सड़क पर भारी ट्रेफिक था ,वाहन रेंग रेंग कर चल रहे थे ! जैसे तैसे घर के पास के ओवरब्रिज तक पहुंचीl उसके बाद दाहिने मुड़ते ही 10 मिनट में दूरदर्शन केंद्र  पर पहुंच जाऊँगी सोच कर एक लंबी राहत की सांस ली lतभी मेरे पास से एक मोटर साइकिल वाला रफ्तार से जगह  बनाता निकल गया मैं दाहिनी ओर थी लेकिन बाईं ओर स्कूटर  पर एक महिला थी ,उसका संतुलन एकाएक डगमगा गया l उसका स्कूटर  एक तरफ गिर गया और वह ब्रिज की ढलान पर गेंद की तरह गुलांची खाती हुई लुढ़कने लगी  ! कार के काँच से मैंने यह दृश्य देखा तो काँप गयी इतने वाहन पीछे से आ रहे थे कुछ भी हो सकता है ! पर मेरे पास समय की पाबंदी रखने की संदेश भरी सीख थी जो  मुझे कह रही थी आगे बढो ! दूसरी ओर माँ की सिखाई विनम्रता कह रही थी कि कभी कभी तुम्हें अपनी प्राथमिकताओं को भूल कर विनम्रता से जरूरतमन्द की मदद करनी चाहिए ! अभी पेशोपेश  में ही थी कि ढूँ ढूँ करता हुआ मेरी गाड़ी का सेल्फ अटक गया और  कार ब्रिज के उठान पर रुक गयी ! मैं बार बार चाभी से स्टार्ट करती और वह बेसुरी आवाज छोड़ फिर रुक जाती ! तभी मन ने कहा कोई संदेश है ऊपर से औरयह सोच  मैंने कार लॉक की और कार में से निकल उस महिला की तरफ तेजी से बढ़ी ! उसके आसपास  सहानुभूति  भरी आवाज़ों के  साथ हल्की सी भीड़ आ जुड़ी थी! वह भद्र महिला सड़क की फूटपाथ पर बैठी थी ! मुझे देख जरा मुस्कराई क्यूंकी आस पास सब पुरुष थे मैं ही एकमात्र महिला  नज़र आई तो शायद उसका  हौंसला बढा!
मैंने कंधे पर हाथ रख पूछा _"बहनजी बहुत लगी क्या " तो वह  कंपकंपाहट भरे स्वर में बोली)-
" नहीं बहन ,ईश्वर ने  बाल बाल बचा दिया !" अब तक वह महिला नॉर्मल तो नहीं हुई थी पर  काफी संभल चुकी थी !
" तुम चाहो तो  मोबाइल कर के  घर से किसी को बुला लो !" मैंने सलाह दी
"नहीं बहन उसकी आवश्यकता नहीं पर मेरा स्कूटर गडबड हो गया है बस उसका टेंशन है  !"
 तब तक एक युवा युवक ने स्कूटर किनारे पर  खड़ा कर दिया था ,उसका हैंडल मूड गया था !अब तक भीड़ तमाशबीनों को छोड़ लगभग छंट चुकी थीl  मैंने महिला को सुझाव दिया कि  आप चाहें तो मेरे घर  पर  स्कूटर  रख दें  मेरा घर ,पास ही है पाँच मिनट का रास्ता है और शाम को किसी की मदद से ले जाना !
 वो बोली_-"हाँ  यह ही ठीक रहेगl!" उस युवा लड़के ने कहा चलिये मैं इसे खींच लाता हूँ ! चूंकि मेरी कार भी अटकी थी मैंने सोचा कि  इसे घर छोड़ना पड़ेगा  तो किसी को घर से मैं भी  बुला लेती हूँ और फिर मैं भी टॅक्सी से निकल जाऊँगी, अब तो कर भी क्या सकती हूँ !
 मैंने उस महिला से कहा_- बहन जी  मैं कार से अपना पर्स और आपके लिए पानी लाती हूँ फईर आपण चलते
 हैं l" (हमेशा मेरे पास ठंडे पानी की  थरमुस कार में  रहती है !)
कार तक पहुँच कर  मैंने  कार के   दरवाजे का लॉक खोल  कर सोचा कि एक बार क्यूँ न कार  को स्टार्ट करने की कोशिश  करूँ ! ड्राइविंग सीट पर बैठ कर मैंने जैसे ही कार चालू की तो हैरान रह गयी वो स्टार्ट हो गयी ! शायद भीड़ में रेंगते रेंगते गरम हो गयी थी इसलिए अटक गयी थी या कौन जाने किसी शक्ति ने रोक लिया था कि उस महिला की मदद कर सकूँ l
कारण जो भी हो पर कहानी यही खत्म नहीं हुई ! मैंने उस महिला को कार में बिठाया और धीरे धीरे चींटी की चाल से घर की और बढ़ने लगी  ताकि  वो युवा युवक हमें स्कूटर खींचते हुए  पैदल फॉलो कर सके ! घर पहुंचे युवा युवक को  धन्यवाद देकर विदा किया !तब तक 12 बजने वाले थे ! सोचा दूरदर्शन फोन कर लूँ ! उस महिला से मैंने पूछा आपको कहाँ तक छोड़ दूँ ? वह बोली औटो जहां मिले ड्रॉप कर दीजिएगा दरअसल मुझे दूरदर्शन जाना है मेरी आज रिकॉर्डिंग थी !अब हैरान होने कि बारी मेरी थी !
"अरे किस कार्यक्रम में ?"उसने कार्यक्रम का नाम बताया  और इत्तफाक देखिये हमें एक ही कार्यक्रम में पहुंचना था ! हूमें क्या मालूम दूरदर्शन में कौन कौनसे भागीदार कहाँ कहाँ से आ के जुड़ जाते हैं !
तभी दूरदर्शन से भी कार्यक्रम अधिकारी का फोन आ गया -"अजी मैडम आप कहाँ अटक गयीं ? आपका इंतज़ार हो रहा है यहाँ  !" संक्षिप्त में उन्हे पूरी घटना बता कर कहा कि बस 10 मिनट में पहुँचती हूँ ! उधर से आवाज़ आई आराम से आ जाइए अब तो चंक लंच के बाद ही शुरू होगा ,यहाँ  भी लाइट चली गयी थी तो कोई तकनीकी समस्या आ गयी है अभी लाइटिंग कर रहें हैं,तकनीकी समस्याएँ   इंजिनियर्स ठीक कर रहे है !कहानियों में या फिल्मों में देखने वाली ऐसी घटनाएँ यदि जीवन में हो जाएँ तो क्या  भला भूल सकते हैं ? आप ही बताइये !
तभी तो शुरू में मैंने लिखा है  कि कभी कभी जीवन में ऐसी घटनाएँ हो जाती हैं जो भुलाए नहीं भूलती !जीवन के मेले में कब कौन किस घड़ी मिल जाये और नियति  क्या खेल खिला दें  किसे मालूम होता है हाँ धूप छाँह से अनुभव  हमेशा साथ रहते हैं व याद रहते हैं lऔर अब  आप को यह जान कर अत्यंत खुशी होगी कि वह महिला अब मेरी करीब दोस्त है !  


धूप छाँह सा
 जीवन  का मेला
कैसा यह खेला ?


अकेला पथ
हाथ थाम  साथिया
दूर तलक l


मंजिल एक
रास्ते हैं अलग
मन है साथ !
डॉ सरस्वती माथुर
 

शुक्रवार, 3 जुलाई 2015

त्रिवेणी में आज डॉ सरस्वती माथुर के सेदोका



Tuesday, June 30, 2015

तांत्रिक- सी हवाएँ




डॉ सरस्वती माथुर

 1   

गर्मी के दिन

धूप की रसधार

सूरज की तीली से

जलती हवा

धरती पर भागे

खींचे- ताप के धागे

2

कभी कभार

अतीत आ जाता है

जब बहुत पास

मन पाखी- सा

उड़ जाता है दूर

बेगाना लगता  है

3

भीड़ भरी हैं

जिंदगी की राहें भी

असंख्य चेहरे हैं

जो दिशाहीन

गंतव्य के बिना ही

दौड़ते जा रहें हैं

4

जुगनू -मन

दीप- सा जलकर

झिलमिल करता ,

पूनम बन   

अमावस पीकर

रोशनी को भरता

5 

छल ही छल

तांत्रिक- सी हवाएँ

भूलभुलैया राहें,

कैद है मन

सुधियों के आँगन

जीवन भी छलिया

6

पहाड़ों पर

जब उनींदी धूप

सुरमई हो जाती,

पहाड़ी घाटी

मौन रह कर भी

खूब बातें  करती

-0-

5 comments:

ज्योति-कलश said...
बहुत सुन्दर भावपूर्ण सेदोका !
कभी कभार ....,भीड़ भरी हैं ...छल ही छल ..मन को छू गए |
डॉ. सरस्वती माथुर जी को बहुत बधाई !
सादर
ज्योत्स्ना शर्मा
Krishna said...
भावपूर्ण सेदोका...कभी कभार, छल ही छल बहुत बढ़िया लगे .....हार्दिक बधाई!
Kamla Ghataaura said...

वाह बहुत सुंदर सेदोका सरस्वती जी। गर्मी के दिन वाला की पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगीं। … धरती पर भागे /खींचे ताप के धागे। … जुगनू मन भी भा गया … अमावस पी कर रौशनी को भरता। बधाई।
Dr.Bhawna said...
कभी कभार

अतीत आ जाता है

जब बहुत पास

मन पाखी- सा

उड़ जाता है दूर

बेगाना लगता है ।

Bahut bhavpurn meri hardik badhai...
Asha Pandey said...
अच्छी रचना…बधाई आपको.

साहित्य कुंज में पढ़ें डॉ सरस्वती माथुर के हाइकु अक्स तुम्हारा व अनुभूति में पढ़ें हाइकु मोगरा

अन्तरजाल पर साहित्य प्रेमियों की विश्राम स्थली
ISSN 2292-9754

अक्स तुम्हारा (हाइकु)

1
मोर है बोले
मेघ के पट जब
गगन खोले l
2
वक्त तकली
देर तक कातती
मन की सुई l
3
यादों के हार
कौन टाँक के गया
मन के द्वार l
4
अक्स तुम्हारा
याद आ गया जब
मन क्यों रोया ?
5
यादों से अब
मेरा बंधक मन
रिहाई माँगे l
6
यादों की बाती
मन की चौखट को
रोशनी देती l
7
साँझ होते ही
आकाश से उतरी
धूप चिरैया l
8
धरा अँगना
चंचल बालक सी
चलती धूप l
9
भोर की धूप
जल दर्पण देख
सजाती रूप l
10
मेघ की बूँदें
धरा से मिल कर
मयूरी हुईl
डॉ सरस्वती माथुर

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मोगरा
 


हवा तितली
मोगरे का रस पी
गंध ले उडीl


तुम्हारी यादें
मोगरे के फूलों सी
गुच्छ में बंधी l


मन अकेला
खुशबू के जंगल
बेला का मेला l


खुशबू भरे
मोगरा फूल झरे
रसपगे से l


मोगरा महका
हवाएँ सुरभित
मन बहका l


मन मोगरा
खुशबू भरी हवा
पिया ना संगl


खुशबू धार
अति मनभावन
मोगरा हार l


हवा का जूड़ा
बेला की वेणी बांध
खुशबू देता l


दूधिया रात
मोगरे से करती
मन की बात l

१०
तारों के फूल
नभ बगिया सज़े
मोगरे लगे l

- डॉ सरस्वती माथुर
२२ जून २०१५
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