"कनेर की डाल पर !"ओ रे पीले कनेर
तुम्हारा अपना ही जादू है
मन के भीतर
उगा देता है
प्रेम का फूल और
दीप्त चाँदनी में
लहरों से लगते हैं
तुम्हारे श्वेत ,लाल
पीले गुलाबी रंग
जाने कैसे इन रंगों का
तिलस्म पी
सीली हवाएँ भी
कनेर की डाल पर
लंगर डाल देती है
और मन उड कर
एक पीली
कनेरी चिड़िया सा
सधी लय से
सांझ सकारे
गाने लगता है
मौसम की
पाहून बेला को
पीते हुए और
मन को गहराई से छूते हुए
ओ रे पीले कनेर
हर आँगन में
महकती खुशबू तब
मौसम के कानो में भी
कह जाती है कुछ बातें रसभरी
महक उठती है तब
आम्र मंजरी से लदी दुपहरी
हरियाले पतों को अंजोरती
साँझ सिंदूरी और फुनगी पर
चाँद का इंतज़ार करती
रात की परी
ओ रे पीले कनेर सच
तुम्हारा अपना ही जादू है !
डॉ सरस्वती माथुर
तुम्हारा अपना ही जादू है
मन के भीतर
उगा देता है
प्रेम का फूल और
दीप्त चाँदनी में
लहरों से लगते हैं
तुम्हारे श्वेत ,लाल
पीले गुलाबी रंग
जाने कैसे इन रंगों का
तिलस्म पी
सीली हवाएँ भी
कनेर की डाल पर
लंगर डाल देती है
और मन उड कर
एक पीली
कनेरी चिड़िया सा
सधी लय से
सांझ सकारे
गाने लगता है
मौसम की
पाहून बेला को
पीते हुए और
मन को गहराई से छूते हुए
ओ रे पीले कनेर
हर आँगन में
महकती खुशबू तब
मौसम के कानो में भी
कह जाती है कुछ बातें रसभरी
महक उठती है तब
आम्र मंजरी से लदी दुपहरी
हरियाले पतों को अंजोरती
साँझ सिंदूरी और फुनगी पर
चाँद का इंतज़ार करती
रात की परी
ओ रे पीले कनेर सच
तुम्हारा अपना ही जादू है !
डॉ सरस्वती माथुर
"कनेर
का फूल !"
सिर्फ सुंदर नहीं होता
कनेर का फूल
उसमें छिपी होती है
मंदिर की खुशबू
बारिश में उसकी
हरी फैली पतियाँ
सावन ले आती हैं
नन्ही सी चिड़िया सी
फुदकती है
गर्मियों में
नवसुए सी शाखाएँ
लगती हैं मानो
रसभीगे फूल कनेर के
खुद एक मौसम हो
सच बासन्ती धूप में
धरती के आँचल पर
कनेरी हवाएँ
गति लय छ्ंद
बांध देती है और
सूरज की सतरंगी किरणों संग
नयी नयी कोंपलों से
बतियाती हैं
पातों पर भी नयी ऊष्मा
भर देती है
जब कनेर की डाल पर
फूलों संग हवाएँ
मंडराती हैं
तब मन के द्वार पर
पीले किसलय फूलों की
बंदनवार सज जाती है !
सिर्फ सुंदर नहीं होता
कनेर का फूल
उसमें छिपी होती है
मंदिर की खुशबू
बारिश में उसकी
हरी फैली पतियाँ
सावन ले आती हैं
नन्ही सी चिड़िया सी
फुदकती है
गर्मियों में
नवसुए सी शाखाएँ
लगती हैं मानो
रसभीगे फूल कनेर के
खुद एक मौसम हो
सच बासन्ती धूप में
धरती के आँचल पर
कनेरी हवाएँ
गति लय छ्ंद
बांध देती है और
सूरज की सतरंगी किरणों संग
नयी नयी कोंपलों से
बतियाती हैं
पातों पर भी नयी ऊष्मा
भर देती है
जब कनेर की डाल पर
फूलों संग हवाएँ
मंडराती हैं
तब मन के द्वार पर
पीले किसलय फूलों की
बंदनवार सज जाती है !
हाइकु
1
1
मन
भीतर
उगा देता कनेर
दीप्त चाँदनी l
2
पीला कनेर
वन को अंखुयाए
पाखी हर्षाए
3
कनेर गुच्छ
झूमर सा डोलता
हवा के संग l
4
तरु ताल में
कनेर फूल खिला
दीपक जला i
5
कनेर फूल
मन को रंग जाता
रंगरेज सा
डॉ सरस्वती माथुर
क्षणिका
"कनेर फूल l"
कनेर के रंग
मौसम की हवा में
जुगनू से उडते हैं
मन के इर्द- गिर्द
रंग खुशबू बुनते हैं
मन का हरापन
तब कुछ और
हरा हो जाता है
जीवन में यादों का
एक तरु उग आता है और
चिड़िया की चहक भरी
अठखेलियों संग
सपनों का इंद्रधनुष
बुनने लगता है
मौसम भी फूलों में
रंग भर कर नया
एक गीत गुनने लगता है l
क्षणिका
१
कनेर का फूल
चमन खिला गया
हवाओं से मिल के
खुशबू फैला
हरी धरती पर
रंग बरसा गया l
२
पुरवा संग
रंगरेज सा मन
चकित निहारता
कनेर फूल
रसधार बरसा
मधुर गीत गाता l
डॉ सरस्वती माथुर
उगा देता कनेर
दीप्त चाँदनी l
2
पीला कनेर
वन को अंखुयाए
पाखी हर्षाए
3
कनेर गुच्छ
झूमर सा डोलता
हवा के संग l
4
तरु ताल में
कनेर फूल खिला
दीपक जला i
5
कनेर फूल
मन को रंग जाता
रंगरेज सा
डॉ सरस्वती माथुर
क्षणिका
"कनेर फूल l"
कनेर के रंग
मौसम की हवा में
जुगनू से उडते हैं
मन के इर्द- गिर्द
रंग खुशबू बुनते हैं
मन का हरापन
तब कुछ और
हरा हो जाता है
जीवन में यादों का
एक तरु उग आता है और
चिड़िया की चहक भरी
अठखेलियों संग
सपनों का इंद्रधनुष
बुनने लगता है
मौसम भी फूलों में
रंग भर कर नया
एक गीत गुनने लगता है l
क्षणिका
१
कनेर का फूल
चमन खिला गया
हवाओं से मिल के
खुशबू फैला
हरी धरती पर
रंग बरसा गया l
२
पुरवा संग
रंगरेज सा मन
चकित निहारता
कनेर फूल
रसधार बरसा
मधुर गीत गाता l
डॉ सरस्वती माथुर
"कनेर तरु !"बताओ तो कनेर तरु
क्या राज है कि
तुम हर ऋतु में
अपनी एक अलग
कहानी कहते हो
गांवों के पनघटों ,मंदिरों
घर आँगन और अहातों पर
चुपचाप खड़े होकर तुम
हवाओं को रंग देते हो
तुम्हारे फूलों की
सजी सँवरी पातें
तने की पतली डालियाँ और
एक गुच्छ में
अपने अस्तित्व की
छोटी छोटी घण्टियों का
क्या कहना
जब हवा में हिलाते हो
अपने फूल तो
एक नयी पहचान बनाते हो
तुम्हारे लाल, पीले ,गुलाबी और
सफ़ेद फूल चटक धूप में भी
कुम्हलाते नहीं
बस बसंत उन्हें
सतरंगी कर देता है तो
फागुन रंग देता है
गर्मी की दुपहर में
तुम्हारी मुस्कान
सभी को भाती है
पर सर्दियाँ न जाने क्यों
तुम्हारा सौंदर्य
निगल जाती हैं
तुम्हें देख करके
कनेरी चिड़िया भी
बहुत याद आती है
हवाओं को अंजोरते हुए
कनेर तरु तुम यूंही
अपनी सौंदर्यमयी
शोभाश्री बढ़ाते रहना
रंग- बिरंगे फूलों से
प्रकृति को भी सतरंगे
परिधान पहनाते रहना !
डॉ सरस्वती माथुर
क्या राज है कि
तुम हर ऋतु में
अपनी एक अलग
कहानी कहते हो
गांवों के पनघटों ,मंदिरों
घर आँगन और अहातों पर
चुपचाप खड़े होकर तुम
हवाओं को रंग देते हो
तुम्हारे फूलों की
सजी सँवरी पातें
तने की पतली डालियाँ और
एक गुच्छ में
अपने अस्तित्व की
छोटी छोटी घण्टियों का
क्या कहना
जब हवा में हिलाते हो
अपने फूल तो
एक नयी पहचान बनाते हो
तुम्हारे लाल, पीले ,गुलाबी और
सफ़ेद फूल चटक धूप में भी
कुम्हलाते नहीं
बस बसंत उन्हें
सतरंगी कर देता है तो
फागुन रंग देता है
गर्मी की दुपहर में
तुम्हारी मुस्कान
सभी को भाती है
पर सर्दियाँ न जाने क्यों
तुम्हारा सौंदर्य
निगल जाती हैं
तुम्हें देख करके
कनेरी चिड़िया भी
बहुत याद आती है
हवाओं को अंजोरते हुए
कनेर तरु तुम यूंही
अपनी सौंदर्यमयी
शोभाश्री बढ़ाते रहना
रंग- बिरंगे फूलों से
प्रकृति को भी सतरंगे
परिधान पहनाते रहना !
डॉ सरस्वती माथुर
"मैं कनेर !"
मैं कनेर
रूप रस में
रंग समेट
कुंज में पली हवाओं से
करता अठखेली
मौसम के साथ चला
सर्दी की बाँहें
जब मुझे न दे पाईं
स्पंदन तो
निर्लिप्तता में भी मैंने
फिर खिलने का
दर्शन पाया
गर्मियों का ताप पी कर
भरी दुपहरी में मैंने
अपना रंग बरसाया
ताल तलैया ,वन उपवन
घर- आँगन संग
शिव मंदिर सजाया
विष की नाभि पाकर भी
प्रकृति में ईश ज्ञान का
अमृत दीप जलाया
मैं कनेर
साथ रह कर प्रकृति के
वसुधा के आँचल को
हरियाया
देकर रंगों का
सुरमय सायाl
डॉ सरस्वती माथुर
"मखमली फूल कनेर के !"
झूमर से लटके
कुंजों की डार
मखमली फूल
कनेर के
प्रमत्त झूमते
हवाओं के गालों को
दुलार से चूमते
प्रतीक शृंगार के
मंदिर की देहरी में
समर्पण का सेतु बांधते
साधना में सर्वस्व
अपना वार कर
अपने अस्तित्व को झारते
रंगमय फूल
कनेर के l
डॉ सरस्वती माथुर
मैं कनेर
रूप रस में
रंग समेट
कुंज में पली हवाओं से
करता अठखेली
मौसम के साथ चला
सर्दी की बाँहें
जब मुझे न दे पाईं
स्पंदन तो
निर्लिप्तता में भी मैंने
फिर खिलने का
दर्शन पाया
गर्मियों का ताप पी कर
भरी दुपहरी में मैंने
अपना रंग बरसाया
ताल तलैया ,वन उपवन
घर- आँगन संग
शिव मंदिर सजाया
विष की नाभि पाकर भी
प्रकृति में ईश ज्ञान का
अमृत दीप जलाया
मैं कनेर
साथ रह कर प्रकृति के
वसुधा के आँचल को
हरियाया
देकर रंगों का
सुरमय सायाl
डॉ सरस्वती माथुर
"मखमली फूल कनेर के !"
झूमर से लटके
कुंजों की डार
मखमली फूल
कनेर के
प्रमत्त झूमते
हवाओं के गालों को
दुलार से चूमते
प्रतीक शृंगार के
मंदिर की देहरी में
समर्पण का सेतु बांधते
साधना में सर्वस्व
अपना वार कर
अपने अस्तित्व को झारते
रंगमय फूल
कनेर के l
डॉ सरस्वती माथुर
"कनेर के झूमर!"
डालें झूमीं पाखी उड गया
कनेर के झूमर
हवाओं के संग
जब करने लगे घूमर
रंगों को बिखेर
देहरी बैठा जादूगर
पतियों को रहा झुलाता
बना कर मोहक चँवर
पथिकों को खुब लुभाता
चिड़ियों का वहाँ बसेरा
नया मौसम ले आता
खिला कर रंगों का सवेरा
सांझ सवेरे मंदिर में
है शिव गौरी पर चढ़ता
अपनी आकृति से सब को
है आकर्षित करता
रसरंग से अमृत बरसाता
मोहक सी कलियाँ खिलाता
मौन रह कर संवाद करता
हवाओं को सिखा अदावत !
डॉ सरस्वती माथुर
डालें झूमीं पाखी उड गया
कनेर के झूमर
हवाओं के संग
जब करने लगे घूमर
रंगों को बिखेर
देहरी बैठा जादूगर
पतियों को रहा झुलाता
बना कर मोहक चँवर
पथिकों को खुब लुभाता
चिड़ियों का वहाँ बसेरा
नया मौसम ले आता
खिला कर रंगों का सवेरा
सांझ सवेरे मंदिर में
है शिव गौरी पर चढ़ता
अपनी आकृति से सब को
है आकर्षित करता
रसरंग से अमृत बरसाता
मोहक सी कलियाँ खिलाता
मौन रह कर संवाद करता
हवाओं को सिखा अदावत !
डॉ सरस्वती माथुर
"कनेर तरु !"बताओ तो कनेर तरु
क्या राज है कि
तुम हर ऋतु में
अपनी एक अलग
कहानी कहते हो
गांवों के पनघटों ,मंदिरों
घर आँगन और अहातों पर
चुपचाप खड़े होकर तुम
हवाओं को रंग देते हो
तुम्हारे फूलों की
सजी सँवरी पातें
तने की पतली डालियाँ और
एक गुच्छ में
अपने अस्तित्व की
छोटी छोटी घण्टियों का
क्या कहना
जब हवा में हिलाते हो
अपने फूल तो
एक नयी पहचान बनाते हो
तुम्हारे लाल, पीले ,गुलाबी और
सफ़ेद फूल चटक धूप में भी
कुम्हलाते नहीं
बस बसंत उन्हें
सतरंगी कर देता है तो
फागुन रंग देता है
गर्मी की दुपहर में
तुम्हारी मुस्कान
सभी को भाती है
पर सर्दियाँ न जाने क्यों
तुम्हारा सौंदर्य
निगल जाती हैं
तुम्हें देख करके
कनेरी चिड़िया भी
बहुत याद आती है
हवाओं को अंजोरते हुए
कनेर तरु तुम यूंही
अपनी शोभाश्री बढ़ाते रहना
रंग- बिरंगे फूलों से अपना
सौंदर्य बढाते रहना
प्रकृति को सतरंगे
परिधान पहनाते रहना !
डॉ सरस्वती माथुर
"कनेर खिल आया !"
भोर में चहकी
कनेरी चिड़िया तो
मन कुंज में
कनेर खिल आया
हवाओं को गीतों से
सींच कर
मौसम का पंछी
लाल- गुलाबी ,श्वेत और
पीले फूलों पर
खुशबू बुन आया
अरे कनेर के फूलों
बताओ तो जरा
तुमने इतना सौंदर्य
कहाँ से पाया ?
डॉ सरस्वती माथुर
"कनेर !"
एक फूल कनेर
छज्जों पर चढ़ता
गुनगुनी हवाओं संग
झूला झूलता
हरियायी बगिया में
चिड़िया संग खेलता
मन जाने तब
याद कर कर के
एक पाखी सा
जाने किसे टेरता l
डॉ सरस्वती माथुर
"पीला कनेर !"
शाम में झरता
एक पीला कनेर
शांत सा
सरसराता पड़ा रहा
जाने कहाँ से
एक पथिक आया
उसे उठा कर
चँवर सा झूलाता रहा
फिर हाथ में पकड़ी
किताब में रख कर
भूल गया
नन्हा कनेरी फूल अब
उस किताब की खुशबू में
बस गया है
मन के मौसम
जब खुलेंगे तब यह
फिर यह उगेगा !
डॉ सरस्वती माथुर
कनेर के रंग
मौसम की हवा में
तितलियों से उडते है
मन के इर्द गिर्द
खूशबू बुनते है
मन का हरापन कुछ और
हरा हो जाता है
जीवन में यादों का
एक तरु उग आता है और
चिड़िया की चहक भरी
अठखेलियों संग
सपनों का इंद्रधनुष
बुनने लगता है
र्रंग भर मौसम भी
फूलों संग नया
गीत गुनने लगता है !
डॉ सरस्वती माथुर
1
कनेरी फूल
चमन खिला गये
हवाओं से मिल के
खुशबू फैला
हरी धरती पर
रंग बरसा गये l
2
पुरवा संग
रंगरेज़ सा मन
चकित निहारता
कनेरी फूल
रसधार बरसा
मधुर गीत गाताl
डॉ सरस्वती माथुर
क्या राज है कि
तुम हर ऋतु में
अपनी एक अलग
कहानी कहते हो
गांवों के पनघटों ,मंदिरों
घर आँगन और अहातों पर
चुपचाप खड़े होकर तुम
हवाओं को रंग देते हो
तुम्हारे फूलों की
सजी सँवरी पातें
तने की पतली डालियाँ और
एक गुच्छ में
अपने अस्तित्व की
छोटी छोटी घण्टियों का
क्या कहना
जब हवा में हिलाते हो
अपने फूल तो
एक नयी पहचान बनाते हो
तुम्हारे लाल, पीले ,गुलाबी और
सफ़ेद फूल चटक धूप में भी
कुम्हलाते नहीं
बस बसंत उन्हें
सतरंगी कर देता है तो
फागुन रंग देता है
गर्मी की दुपहर में
तुम्हारी मुस्कान
सभी को भाती है
पर सर्दियाँ न जाने क्यों
तुम्हारा सौंदर्य
निगल जाती हैं
तुम्हें देख करके
कनेरी चिड़िया भी
बहुत याद आती है
हवाओं को अंजोरते हुए
कनेर तरु तुम यूंही
अपनी शोभाश्री बढ़ाते रहना
रंग- बिरंगे फूलों से अपना
सौंदर्य बढाते रहना
प्रकृति को सतरंगे
परिधान पहनाते रहना !
डॉ सरस्वती माथुर
"कनेर खिल आया !"
भोर में चहकी
कनेरी चिड़िया तो
मन कुंज में
कनेर खिल आया
हवाओं को गीतों से
सींच कर
मौसम का पंछी
लाल- गुलाबी ,श्वेत और
पीले फूलों पर
खुशबू बुन आया
अरे कनेर के फूलों
बताओ तो जरा
तुमने इतना सौंदर्य
कहाँ से पाया ?
डॉ सरस्वती माथुर
"कनेर !"
एक फूल कनेर
छज्जों पर चढ़ता
गुनगुनी हवाओं संग
झूला झूलता
हरियायी बगिया में
चिड़िया संग खेलता
मन जाने तब
याद कर कर के
एक पाखी सा
जाने किसे टेरता l
डॉ सरस्वती माथुर
"पीला कनेर !"
शाम में झरता
एक पीला कनेर
शांत सा
सरसराता पड़ा रहा
जाने कहाँ से
एक पथिक आया
उसे उठा कर
चँवर सा झूलाता रहा
फिर हाथ में पकड़ी
किताब में रख कर
भूल गया
नन्हा कनेरी फूल अब
उस किताब की खुशबू में
बस गया है
मन के मौसम
जब खुलेंगे तब यह
फिर यह उगेगा !
डॉ सरस्वती माथुर
कनेर के रंग
मौसम की हवा में
तितलियों से उडते है
मन के इर्द गिर्द
खूशबू बुनते है
मन का हरापन कुछ और
हरा हो जाता है
जीवन में यादों का
एक तरु उग आता है और
चिड़िया की चहक भरी
अठखेलियों संग
सपनों का इंद्रधनुष
बुनने लगता है
र्रंग भर मौसम भी
फूलों संग नया
गीत गुनने लगता है !
डॉ सरस्वती माथुर
1
कनेरी फूल
चमन खिला गये
हवाओं से मिल के
खुशबू फैला
हरी धरती पर
रंग बरसा गये l
2
पुरवा संग
रंगरेज़ सा मन
चकित निहारता
कनेरी फूल
रसधार बरसा
मधुर गीत गाताl
डॉ सरस्वती माथुर
"मैं कनेर !"
मैं कनेर
रूप रस में
रंग समेट
कुंज में पली हवाओं से
करता अठखेली
मौसम के साथ चला
सर्दी की बाँहें
जब मुझे न दे पाईं
स्पंदन तो
निर्लिप्तता में भी मैंने
फिर खिलने का
दर्शन पाया
गर्मियों का ताप पी कर
भरी दुपहरी में मैंने
अपना रंग बरसाया
ताल तलैया ,वन उपवन
घर- आँगन संग
शिव मंदिर सजाया
विष की नाभि पाकर भी
प्रकृति में ईश ज्ञान का
अमृत दीप जलाया
मैं कनेर
साथ रह कर प्रकृति के
वसुधा के आँचल को
हरियाया
देकर रंगों का
सुरमय सायाl
डॉ सरस्वती माथुर
"मखमली फूल कनेर के !"
झूमर से लटके
कुंजों की डार
मखमली फूल
कनेर के
प्रमत्त झूमते
हवाओं के गालों को
दुलार से चूमते
प्रतीक शृंगार के
मंदिर की देहरी में
समर्पण का सेतु बांधते
साधना में सर्वस्व
अपना वार कर
अपने अस्तित्व को झारते
रंगमय फूल
कनेर के l
डॉ सरस्वती माथुर
मैं कनेर
रूप रस में
रंग समेट
कुंज में पली हवाओं से
करता अठखेली
मौसम के साथ चला
सर्दी की बाँहें
जब मुझे न दे पाईं
स्पंदन तो
निर्लिप्तता में भी मैंने
फिर खिलने का
दर्शन पाया
गर्मियों का ताप पी कर
भरी दुपहरी में मैंने
अपना रंग बरसाया
ताल तलैया ,वन उपवन
घर- आँगन संग
शिव मंदिर सजाया
विष की नाभि पाकर भी
प्रकृति में ईश ज्ञान का
अमृत दीप जलाया
मैं कनेर
साथ रह कर प्रकृति के
वसुधा के आँचल को
हरियाया
देकर रंगों का
सुरमय सायाl
डॉ सरस्वती माथुर
"मखमली फूल कनेर के !"
झूमर से लटके
कुंजों की डार
मखमली फूल
कनेर के
प्रमत्त झूमते
हवाओं के गालों को
दुलार से चूमते
प्रतीक शृंगार के
मंदिर की देहरी में
समर्पण का सेतु बांधते
साधना में सर्वस्व
अपना वार कर
अपने अस्तित्व को झारते
रंगमय फूल
कनेर के l
डॉ सरस्वती माथुर
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