गुरुवार, 4 दिसंबर 2014

नारी पर तांका/सेदोका /हाइकु /माहिया व नारी पर कवितायें मेरा वजूद /

सरस्वती माथुर
तांका :
 "नारी दीप ज्योति सी !"
1
आज की नारी
जलती है- अखंड-
 दीप ज्योति सी
स्नेह सदभाव की
रोशनी उड़ेंलती I
2
सृज़क नारी
लुटाती है मुस्काने
दर्द पीकर
 खुशियाँ बरसाती
भर कर उमंगें

3
नारी का मन
जीवन बगिया में
भौंरे सा उड़
गुलाब के फूलों सा
रसपगा हो जाता I
4
बंदनवार
हमारे घर द्धार
सजी है नारी
जीवन उत्सव में
प्रेम गीत बुनती I
5
एक झरना
है नारी की मुस्कान
इन्द्रधनुषी
उसकी पहचान
चाहे- मान- सम्मान
6
चुप रह के
बोलती है नारी तो
पिंज़रे में भी
उन्मुक्त डोलती है
मिठास घोलती है
7
है अमराई
शीतल सुरभित
खिले फूल सी
प्रकृति की गोद में
नारी है महकती
8
नारी पुरुष
प्यार  सा नाता -जैसे
दिया व बाती
सुख दुःख में होते
जैसे जीवन साथी
................................
..डॉ सरस्वती माथुर
सेदोका
"आँचल में आकाश !"
छू कर नारी
दायरे आकाश के
खूब उड़ रही है
खूंटी तोड़ के
परम्परा की नारी
पंख खोल रही है I
2
माँ बेटी सी
पत्नी, बहिन- जैसी
अंकुराती आकाश
घर- आँगन
देहरी द्धार पर
नारी एक विश्वास
3
तर्क करती
दागती है वो प्रश्न
रूकती कभी नहीं
वो है बुलंद
हिस्सा है जीवन का
वो बहती बयार
4
वही कल्पना
वो झांसी की रानी है
वही सीता- द्रोपदी
वही जननी
जीवन संग्राम में
वो सृष्टि भी दृष्टि भी !
5
नारी माँ भी
बेटी - भार्या भी नारी
स्नेह प्यार से नारी
महक बाँट
जीवनदायिनी सी
सम्मोहित करती l

.................................................
डॉ सरस्वती माथुर
"नारी श्रद्धा है!"
--हाइकु
1
देहरी लांघ
बाहर आई नारी
उड़ान भरी l
2 नदी सी नारी
प्रवाह के साथ है
आगे बढती l
3
सबला तुम
सितारों की तरह
 चमको नारी
4
देश में नारी
कोहिनूर हीरे सी
है चमकती l
5
नारी पुरुष
हैं एक डाल के- दो
महके फूल l
6
खिलने देना
नारी को सुमन सी
महकेगी वो
7
  दीप है नारी
हवा झकोरों में भी
ज्योत सी जले
8
नारी तितली
आकाशी फूलों पर
हवा सी उड़े
9
ऊँची उड़ान
भरती अब नारी
सभी पे भारी l
10
नारी महान
आस्था से भरी हुई
हाथ बढाओ l
11
ना रुकूं अब
ना ही झुकूं कहीं भी
मन गगन
12
वजूद के पंख
फैला करके उडी
मन आकाश l
 13
आँधियों में भी
कदम न रुकते
हवा है नारी l
14
रुके न नारी
जल- थल- नभ में
सहज चले l
15
उड़ने भी दो
नारी को गगन में
पंख पसारे
16
अपनत्व से
घर बार बनाती
साक्षर नारी

डॉ सरस्वती माथुर
--डॉ सरस्वती माथुर


हाइकु
"नारी !"

1
नारी तितली
आकाशी फूलों पर
हवा सी उड़े
2
पंख पसारे
एक पाखी है नारी
उड़े गगन
3
देहरी लांघ
बाहर आई नारी
उड़ान भरी
4
धरा से परे
नारी पहुंची अब
झंडे गाड़ने
5
ना रुकूंगी अब
ना ही झुकूं कहीं भी
मन गगन
6
ऊँची उड़ान
भरती अब नारी
सभी पे भारी
7
वजूद के पंख
फैला करके उडी
मन आकाश
8
चमको नारी
सितारों की तरह
सबला तुम
9
नीले सपने
मन आँखों में भर
नारी है देखे
10
नारी महान
आस्था से भरी हुई
हाथ बढाओ 1.
नदी सी नारी
प्रवाह के साथ है
आगे बढती l
2
खिलने देना
नारी सुमन को भी
महकेगी वो l
3
देश में नारी
कोहिनूर हीरे सी
है चमकती l
4
नारी पुरुष
हैं एक डाल के दो
महके फूल l
5
धरा गगन
जहाँ भी देखो नारी
लगती भारी l
6
आँधियों में भी
कदम न रुकते
हवा है नारी l
7
नारी है दीप
हवा झकोरों में भी
उजाला देती l
8
रुके न नारी
जल थल नभ में
सहज चले l
9
उड़ने भी दो
नारी को गगन में
पंख पसारे
10
अपनत्व से
घर बार बनाती
साक्षर नारी

डॉ सरस्वती माथुर


माहिया

घर आँगन लहराती
पंख लगा के वो
नभ  में भी उड़ जाती
2
है नारी चिड़िया सी
घर आँगन बोले
वो तो एक बिटिया सी
3
नारी है पुरवाई
बहती रहती है
महकाती अमराई
4
नारी एक तितली सी 
 उडती फिरती है
वो तो खिली खिली सी
डॉ सरस्वती माथुर
"मेरा वजूद !"
अब नहीं
चीत्कार करुँगी
सबल हूँ मैं
प्रतिकार करुँगी
मन के मुक्त
प्रवाह को अब
उर्जा से अपनी
साकार करुँगी
अपनी छाया से भी
मैं अब नहीं
होती हूँ शोषित
शैवाल हूँ
जीवाणुओं को
करती हूँ पोषित
कल चाहे रही होगी
बंद कमरों में
दुनिया मेरी
पर आज
अनंत तक मेरा
विस्तार है
अपने पर
बहुत ऐतबार है
अब नहीं है नियति
मेरी जलना
स्त्री हूँ मैं
स्त्री रहकर
अपने हर
सपनो की नदी
मैं पार करुँगी
बाँहों में मेरे अब
है संसार सारा
मेरा वजूद अब
मुझको है प्यारा
अब हूँ में तेजी से
बहती धारा
अब न करना
बांधने की
कोशिश दुबारा
इस धारा में सिरजा
एक जलता दीप हूँ मैं
न करना कोशिश इसे
अब बुझाने की
सभी से मैं यह
दरख्यास्त करुँगी !
डॉ सरस्वती माथुर

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