"सवेरे की चौखट पर!"
आज भी
शाम को रोक
छिपा लिया
सूरज मैंने
मन के सागर में और
घुले सूरज से
लाल हुए पानी में
देर तक पैर डुबो
बैठी- देखती रही
घर लौटते
पाखियों को
यह देखना भी
अपने आप मेंएक
अहसास था
अपने आप से
संवाद करते हुए
मैंने देखा कि
उदास सा चाँद
चांदनी संग
नभ कंगूरे पर
जुगनू सा
चमक रहा था
सितारों वाली
चुन्नी ओढ़
चांदनी भी
ठोड़ी पे हाथ रखे
टिमटिमाती ढिबरी सी
नभ चौरे पर खड़ी
कुछ सोच रही थी
तभी सागर के ठहाके से
चौंक उठी थी मैं
भौंचक औचक सी
जागी, अरे ...
पांखियों के कलरव को
एक दिशा दिखाता
श्वेत परिधान पहने
किरणों से
घिरा सूर्य
सवेरे की चौखट पर
मुस्कराता खड़ा था
मानो मुझ से
पूछ रहा हो
क्या कोई
सुंदर सपना
देख रही थीं ?
डॉ सरस्वती माथुर
आज भी
शाम को रोक
छिपा लिया
सूरज मैंने
मन के सागर में और
घुले सूरज से
लाल हुए पानी में
देर तक पैर डुबो
बैठी- देखती रही
घर लौटते
पाखियों को
यह देखना भी
अपने आप मेंएक
अहसास था
अपने आप से
संवाद करते हुए
मैंने देखा कि
उदास सा चाँद
चांदनी संग
नभ कंगूरे पर
जुगनू सा
चमक रहा था
सितारों वाली
चुन्नी ओढ़
चांदनी भी
ठोड़ी पे हाथ रखे
टिमटिमाती ढिबरी सी
नभ चौरे पर खड़ी
कुछ सोच रही थी
तभी सागर के ठहाके से
चौंक उठी थी मैं
भौंचक औचक सी
जागी, अरे ...
पांखियों के कलरव को
एक दिशा दिखाता
श्वेत परिधान पहने
किरणों से
घिरा सूर्य
सवेरे की चौखट पर
मुस्कराता खड़ा था
मानो मुझ से
पूछ रहा हो
क्या कोई
सुंदर सपना
देख रही थीं ?
डॉ सरस्वती माथुर
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