मंगलवार, 2 दिसंबर 2014

गांधी पर कवितायें

"मैं गांधी हूँ !"
मेरे देशवासियों
भारत को देखने
कई बार लौटा था मैं
हर दो अक्टूबर को अपनी
प्रार्थना सभा में भी
जाकर बैठा था मैं
जगह जगह रुक कर
मुझ पर लिखे
नारे भी देखे मैंने
देखा मैंने
मुझे राष्ट्रपिता का
मान दिया तुमने
मेरे नाम के दीप भी
सिराये सबने
मेरे लिए
स्वागत द्वार सजाए तुमने
लेकिन ना पढ़ा पाए
भावी पीढ़ी को
अहिंसा का पाठ
न काट पाए
बंटवारे के नाखून जो
भारत छोड़ आया था
वो भारत आज भी
टुकड़ों में मिला मुझे
जो काम छोड़ आना पड़ा वो भी
बंद बस्ते में बाँध दिया तुमने
असत्य भी ना उखाड़ पाए तुम तो
बल्कि एकता के वटवृक्ष को
जड़ समेत छांट दिया तुमने
दांव पेच की पछाड़ में
आम आदमी को ही
काट दिया तुमने
गांधी जो एक नाम था 
उसे भी एक पोस्टर समझ
जगह जगह से टांग
फाड़ दिया तुमने
देशवासियों आशीर्वाद तुम्हे
पर सोचता हूँ
बहुत जी लिया अब जीवन
कई प्रपंचित
जयमाल उतार कर
मुझे जाना होगा
पहचान खोये आदमी सा
अब मुझे मरना होगा
तुम देशवासियों मेरी इस
अंतिम मौन विदाई के
साक्षी रहना!
      डॉ सरस्वती माथुर

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