* हाइकु विधा में जीव जंतु---- डॉ सरस्वती माथुर *
हमारी भारतीय संस्कृति
सम्पूर्ण जीव जंतुओं -पशु पक्षियों और वृक्षों को मानव अस्तित्व की रक्षा के लिए
महत्वपूर्ण घटक मानती है l उनमें से भी कुछ पशु और पक्षी ऐसे हैं जिनके नहीं होने
से मानव अस्तित्व भी संकट में आ सकता है !शेर, हाथी, मोर, कुत्ता, चूहा, सर्प,
मगरमच्छ, मछली, कछुआ, कौवे से लगाकर अन्य बड़े व छोटे- छोटे जीव जन्तुओं के प्रति
हमेशा हमारा हमेशा से सम्मान भाव रहा है . जैव-विविधता के संसार के प्रति यह भाव ही
भारत का अनूठा और वैज्ञानिक दर्शन रहा है. इसका मुख्य मकसद भी यह है कि पर्यावरण और
जैव-विविधता का संरक्षण कर हमें प्रकृति के पारिस्थितिक संतुलन को बचाना है !हम शेर
सर्प ,व गाय पूजक समाज रहे हैं. इसका संदेश साफ है- यदि किसी क्षेत्र में शेर विचरण
करते हैं ,गाये घूमती है और सर्प सुरक्षित हैं तो समझिए कि समग्र पर्यावरण की
दृष्टि से वहां हालात अनुकूल हैं!
भारत के सांस्कृतिक जीवन में पशु पक्षी
प्राचीन काल से ही प्रासंगिक रहे हैंl रामायण व महाभारत काल में तो इन पशु पक्षियों
ने हमारे अवतारों और देवताओं के साथ सामाजिक सरोकारों में भी अपनी भूमिका समय समय
पर निभाई है lयही कारण है कि हमारे धार्मिक ,सामाजिक व सांस्कृतिक साहित्य में जीव
-जन्तु स्वेच्छा से टहलते नज़र आते हैं ! वैदिक साहित्य तक में जंतुओं ,पौधों ,तथा
तथा प्राकृतिक घटनाओं का वर्णन है !वेद ,रामायण ,महाभारत ,उपनिषद तथा अर्थशास्त्र
(350 बी॰ सी )आदि भारतीय ग्रन्थों से पता चलता है कि हमारे पूर्वजों को भी जीव
विज्ञान का पर्याप्त ज्ञान था lहमारे साहित्यकारोंके साथ साथ हाइकुकारों ने भी
विशेष रूप से अपनी रचनाओं में जीव जंतुओं कीट पतंगों व पक्षियों का परिवेश और ऋतु
के अनुसार विशेष रूप से उल्लेख किया है और उनके महत्व को दर्शाया है !
हाइकु
विधा का सौंद्रर्य ही यह है कि वह अत्यंत संक्षिप्त ,सीधी ,सादी ,सुकुमार और शुद्ध
होती है 17 पंक्तियों में 5+7+5 के शैली क्रम में पशु पक्षियों ,जीव जंतुओं का
बिम्ब विधान ,भावों और अनुभूतियों के चित्र व कथ्य के रूप में दिखाने में हाइकुकार
पूर्ण सफल रहें हैं lइसलिये साहित्य में अन्य विधाओं के साथ हाइकु का विशेष स्थान
है lजीव जंतुओं और पशु पक्षियों को लेकर कई हाइकुकारों ने सुंदर हाइकु लिख कर
प्रकृति और परिवेश के यथार्थ परक प्रतिकात्मक चित्र उकेरे हैं
*हाथी आधुनिक मानव
के समय का पृथ्वी पर विचरण करने वाला, सबसे विशालकाय स्तनपायी जीव है।
.मेघों के
हाथी /चिंघाड़ टकराए /अंबर कांपे ---रामेश्वर कंबोज 'हिमांशु '
इन्द्र के हाथी
/चिंघाड़े ,हारे ,थके /बहा पसीना ---राधेश्याम
घोड़ा (अश्व) मनुष्य से जुड़ा हुआ
संसार का सबसे प्राचीन स्तनपोषी प्राणी है, जिसने अज्ञात काल से मनुष्य की किसी ने
किसी रूप में सेवा की है।
उदाहरण स्वरूप कतिपय हाइकुओं को देखा जा सकता है
-
॰काठ के घोड़े /चलता तन कर /माटी सवार ---सुधा गुप्ता
अपने घोड़े /बेलगाम हो
गए /कैसी लाचारी ---डॉ सावित्री डागा
.बांध के बोरे /लाता है धो कर /हवा का घोडा
---जगदीश व्योम
सौंप तिमिर /सूर्य घोडा बेच के/ सपट सोया ---डॉ सरस्वती
माथुर
घोड़ा लापता/ लू पे चला सवार/केवल कोड़ा ---आदित्य
प्रसाद
शीत-प्रकोप /डरे छिपे रवि /सातों ही घोड़े ---डॉ क्रांति
कुमार
जैसा युग है /गधे निकल भागे /घोड़ों से आगे ---डॉ सुधेश
सूर्य के घोड़े
/धाम के विरोध में /ंअड के खड़े ---- उमेश महादोषी
दाैडता आया/धूल की गठती
ले/हवा का घोड़ा --- डाँ ।प्रियंका गुप्ता
*हाइकुकारों ने जलचर ,थलचर ,व नभचर पशु पक्षियों -जीव जंतुओं का
विषाद एवं प्रासंगिक वर्णन अपने हाइकुओं में किया है l
कुछ उदाहरण यहाँ प्रासंगिक होंगें----
गंदला पानी /रो रही
मछलियाँ /जाएँ कहाँ ---हरदीप संधू
किसी की याद /फिर फड़फड़ाई /छाती में फाख्ता
---सुधा गुप्ता
सांझ की बेला /पंछी ऋचा सुनाते /मैं हू अकेला ---रामेश्वर कंबोज
"हिमांशु"
॰मन दहाड़ा /जंगल के शेर सा /गूंज के लौटा ---डॉ सरस्वती
माथुर
फाख्ता सा उड़ा/ गुनगुनाता मन/प्रेम में डूबा ---डॉ सरस्वती
माथुर
डर के कांपे / जंगल की आग में /घिरा शावक ---भावना कुँवर
उछल रहे /
बादल खरगोश/आसमान में---डॉ सतीश दुबे
वोट जाल में / मछली सी जनता /सदा फंसी
---सुभाष नीरव
मगरमच्छ /क़ठोर और सख्त/ दिल नरम...मीरा ठाकुर
ये तमाम हाइकु
परिपक्वता और अग्रगामी दृष्टि की कसौटी पर खरे उतरते हैं l
कुछ और उदाहरण देखें
--
कुतर रहे हैं /संविधान /संसदी चूहे ---डॉ भगवतशरण अग्रवाल
नीला कालीन /चर
गए शशक /दूब के धोके---डॉ सुधा गुप्ता
कामुक बाघ /लार ही टपकाए /बाज़ न आए
---रामेश्वर कंबोज 'हिमांशु
'श्वान सूँघते/डर का कोना-कोना/पूँछ हिलाएँ ।---रामेश्वर कंबोज"
हिमांशु
गेंडे न देखे ? संसद में देख लो /मन भर के ---डॉ सावित्री
डागा
अपने घोड़े /बेलगाम हो गए /कैसी लाचारी - डॉ सावित्री डागा
दौड़ लगाए /धूप
के खरगोश /हाथ न आयें ---भावना कुँवर
वर्षा जो आई/ धूप के खरगोश/ फुदक छिपे---डॉ
भावना कुँवर
उन का गोला/ जागा ,भगा सहसा /अरे शशक---आदित्य प्रसाद सिंह
उछल
रहे/बादल खरगोश/आसमान में---डॉ सतीश दुबे
सूर्यके घोड़े /घाम के विरोध में /अड के
खड़े /---उमेश महादोषी
दौड़ता आया /धूल की गठरी ले हवा का घोडा--डॉ -प्रियंका
गुप्ता
ठिठुरी रात /कुत्ता बैठा है पास /आदमी साथ ---डॉ रमा द्धिवेदी
जूठी
पतल /कुतों को भगाता रे /बाल- कंकाल ---आदित्य प्रसाद
गर्म राख़ में /बच्चे ले
कुनमुनाई /सोयी कुतिया --- हरकीरत हीर
अब घरों में/शेर जैसे गुर्राएँ/मृग छौने
भी---डॉ गोपाल बाबू शर्मा
खटका द्धार /थरथराता पिल्ला /मांगता ताप---पुष्पा मेहरा
काँपता
पिल्ला /ढेरी में ढूंढ रहा /सूखा पुआल ---एस ॰डी॰र्तिवारी
छोटी सी बात /मरते
चूहे कभी /हाथी को लात ---सुभाष लखेडा
*चराचर रचना चतुरचतुर्भुज नें ससार में एक से एक अनोखे अनगिनत जीव रचे
हैं तभी तो पशु - पक्षी ,कीड़े मकौड़े ,भुंगे पतंगे ,जलचर ,थलचर ,नभचर आदि भांति
भांति के विचित्र जीवों से संसार भरा पड़ा है ! यदि हम प्राचीन काल में झाँकें तो एक
तस्वीर की तरह हमारीआँखों में निर्भीक विचरण करते वन प्राणी उतर आते हैं lजंगल में
किलोलें करती चिड़ियायेँ ,गिलहरियाँ ,दौड़ लगाते शावक -खरगोश ,शशक ,बादलों को निहारते
नाचते मयूर व ,चौकड़ियाँ भरते मृग ,हिरण ,कस्तूरी मृग ,रात में उडते चमकीले जुगनू
,पतंगे व उल्लू ,विभिन्न प्रकार के पंछी ,परिंदे ,रंग बिरंगी चिडियाएँ,तोते व मैना
चहकती बुलबुल ,फाख्ता ,पीक व पपीहे व मीठे स्वर में कूकती कोयल कोकिला , बाग बगीचों
में मँडराते भोंरे -तितलियाँ व मधमाखियाँ,आस पास उड़ती मच्छर -मख्खी आदि जीव जन्तु
प्रकृति के आँचल में स्वछन्द घूमते नज़र आते हैं lइन सभी जीव जंतुओं को हाइकुकारों
ने बहुत सुंदर भावों से चित्रित किया है l
*अरुणोदय के साथ ही नित उठ पखेरूओं के झुंड के झुंड सघन ऊंचे पेड़ों की फली
फूली ,हरी भरी चारों ओर फैली डालियों पर निडर इधर उधर फुदकते फाँदते कलरव कलकलित
सुललित राग भैरवी अलापते ,स्वरों के उतार चढ़ाव से सुमधुर सुर चारों सप्तक से साधते
कोलहाल से हमें जगा देते हैंl उन पक्षियों को नए रूपों और बिंबों में पिरो कर
हाइकुकारों ने नवीन दृष्टि दी है---कुछ उदाहरण देखें ---
कौन पानी पी /बोलती री
चिड़िया /इतना मीठा ...डॉ सुधा गुप्ता
चंद तिनके /चिड़िया का घोंसला बना है घर
---डॉ सुधा गुप्ता
चुप चिड़िया/लील गई है गर्मी /दाना व पानी /--रामेश्वर कंबोज "हिमांशु"
नीड़ मुखर /किलक रहे चूज़े /बहा निर्झर
---रामेश्वर कंबोज "हिमांशु"
मधुर गीत /चिड़िया ने गाकर/ धरा गुंजाई---डॉ सरस्वती
माथुर
चिरैया उडी /तेज आँधी से लड़ी /बिखरे पंख ---डॉ सरस्वती माथुर
शाम की बेला /चिड़ियों के झुंड का /रेलमपेल ---कुँवर दिनेश
सिंह
हो गया मन /एक पूरा गगन /चिड़िया मन ...डॉ शैल रस्तोगी
रवि रथ
ले /भोर आई तो पाखी /चहचहाये...डॉ सरस्वती माथुर
भोर चिड़िया/ फुदकती फिरती घर
आँगन ---डॉ सरस्वती माथुर
बड़े सवेरे /उठ जाती चिड़िया /कौन जगाता ?---रमाकांत
श्रीवास्तव
धूप चिड़िया /सिमट कर बैठी /ठंड जो आई ---रचना श्रीवास्तव
पेटू
चिड़िया /कुतर के ले गयी/ नन्ही कलियाँ ---भावना कुँअर
खोलो विहग /अब पंखों की
डोर /हो गयी भोर ---कमल कपूर
हंसों की पांत/उड़ रही आकाश/मौसम साफ---डॉ सतीश
दुबे
उजाला हुआ /चहकती चिड़िया /बजे संगीत ---ज्योत्सना शर्मा
यह जिंदगी
/पंखनुची चिड़िया /फडफड़ाती ...डॉ सावित्री डागा
हौंसला जिंदा /समंदर को लांघे
/नन्हा परिंदा ---कृष्ण वर्मा
गगन पाठ/ चले पंछी डाकिये/ भेजे संदेश / ---कमला
निर्खुपी
फुदके पक्षी /हरी हुई शाखाएँ /वर्षा जो आई ---सुदर्शन रत्नाकर
मन का
पंछी /थक गया उदेते /उतार नीचे ---सुदर्शन रत्नाकर
बकुल -पाँत/तैरे गगन -सर
/ढूँढे रहस्य-डॉ क्रान्तिकुमार
धूप चिड़िया /सिमट कर बैठी /ठंड जो आई ---रचना
श्रीवास्तव
पेटू चिड़िया /कुतर के ले गयी/ नन्ही कलियाँ ---भावना कुँवर
बकुल
-पाँत/तैरे गगन -सर /ढूँढे रहस्य---डॉ क्रान्तिकुमार
भोर की बेला /पंछी ले
अंगड़ाई /कमल खिले...रचना श्रीवास्तव
वन पाखी सी / उड उड आयें हैं /याद तुम्हारी
--डॉ जेन्नी शबनम
यादों का पंछी/डाल डाल फुदके /मन बौराये ...डॉ जेन्नी
शबनम
आस का पंछी /उड़े निर्बाध जब /क्जिले सृजन ---अनुपमा त्रिपाठी
मन एकाकी
/उड़ा है बनपाखी /तेरी नगरी ... सुशीला शिवराण
सुहानी भोर /खुले गगन तले /पाखी
चहके /---पुष्पा मेहरा
नीलपट से /श्वेत बगुले साथी /घूमने चले ---डॉ अर्पिता
अग्रवाल
साथ जो छूटा /विकट सूनापन क्रोञ्च -सा मन ---डॉ अर्पिता
अग्रवाल
हंसों का जोड़ा /करे अठखेलियाँ /जले लहरें ---योगेश्वर दयाल
चिड़िया
बोली /चूँ-चूँ-चूँ जंगल है /जलता धू -धू...जया नर्गिस
सोनचिरैया /भूखी प्यासी
लुटी- सी/सोना विदेश l ज्योतिर्मयी पंत
याद पेड़ की /चुनमुन चिरैया/फुर्र हो गयी
---मंजु मिश्रा
नन्ही चिड़िया/ अठखेलियाँ करती/ सिल्वर -ओक ...अमित
अग्रवाल
झुंड कीरों के/ लजीली शैफाली को /रीझाते डोले ...डॉ सरस्वती
माथुर
हंसवाहिनी /प्रीतधार भरती /नवलय से ---डॉ सरस्वती माथुर
सर्द रात में/मन में, मैदान में/श्वान भूँकते ---डॉ सुरेन्द्र
वर्मा
क्रोंच कराह / सुनता है हृदय/ कवि कहाँ हो?---शिव चरण सिंह चौहान
अंशुमाली
हंसों का जोड़ा /करे अठखेलियाँ /जालें लहरें
--- योगेश्वर दयाल
मन के हंस /चले लहरों संग /गाते रागिनी ---डॉ
सरस्वती माथुर
* विशेष रूप से चिड़िया ,पंछी
-परिंदे,बुलबुल,फाख्ता ,तोता मैना व गौरैया आदि को विभिन्न रूपों में बड़े ही रसमय
तरीके से उकेर कर हाइकुकारों ने अपनी कल्पना का तथ्यात्मक सा परिचय दिया है जो
जीवों के प्रति उनकी संवेदनशीलता को दर्शाता है l ...जैसे तोते को लें -
*तोता या शुक एक पक्षी है l यह कई प्रकार के रंग
में मिलता है। यह बहुत सुंदर पक्षी है और मनुष्यों की बोली की नकल बखूबी कर लेता
है।तोते झुंड में रहनेवाले पक्षी हैं, जिनके नर मादा एक जैसे होते हैं। इनकी उड़ान
नीची और लहरदार, लेकिन तेज होती है। इनका मुख्य भोजन फल और तरकारी है, जिसे ये अपने
पंजों से पकड़कर खाते रहते हैं। यह पक्षियों के लिये अनोखी बात है।तोते की बोली
कड़ी और कर्कश होती है, लेकिन इनमें से कुछ सिखाए जाने पर मनुष्यों की बोली की
हूबहू नकल कर लेते हैं।
याद तुम्हारी /मन का तोता बातें /दोहराता हो --डॉ
सावित्री डागा
उल्टा लटका /हरियल तोता भी /प्यार से देखे ---रामेश्वर कंबोज
"हिमांशु
फूले बादाम /हरे तोतों के दल /भूले आराम ---डॉ कुँवर दिनेश
सिंह
जादुई फूल /नवसुए सी शाखाएँ /कचनार की ---डॉ सरस्वती माथुर
चिड़िया तोते /ओटे छिपी मूरत /चहकी यादें ---चन्द्रबली
शर्मा
तोते ,ततैये /लड़कियाँ चटोरी /लाल इमली ---अमित अग्रवाल
* मैना चिड़िया देश के गिने-चुने परिचित
पक्षियों में से एक है और देश के सभी भागों में पाई जाती है। मैना, कौए और गौरेया
की तरह मनुष्यों से हिल-मिल कर रहती है। यह एशिया के कुछ देशों के अलावा कहीं नहीं
दिखाई देती। मैना का अंग्रेजी नाम भी मैना है। मैना ज्यादातर गांव के मैदानों,
खेतों, ताल-तलैयों के आसपास नजर आती है।देखें उदाहरण द्वारा कुछ बिम्ब ---
पहाड़ी मैना /टेरती रुक -रुक /जगाती हूक...डॉ सुधा
गुप्ता
टूटा घोंसला /बेघर हुई मैना /सहमी बैठ-डॉ सुधा
गुप्ता
शेफाली हंसी /बगिया जो महकी /मैना चहकी ---डॉ सुधा
गुप्ता
बंदिनी मैना /सोने की सलाखों में रूहे हैं गीत
---रामेश्वर कंबोज "हिमांशु
"यादें बंद थीं /पिंजड़े की मैना सी
/व्याकुल -मन ---डॉ सरस्वती माथुर
* बुलबुल,
शाखाशायी गण के पिकनोनॉटिडी कुल पक्षी का है । ये कीड़े-मकोड़े और फल फूल और
फलखानेवाले पक्षी होते हैं। ये पक्षी अपनी मीठी बोली के लिए नहीं, बल्कि लड़ने की
आदत के कारण शौकीनों द्वारा पाले जाते रहे हैं। यह उल्लेखनीय है कि केवल नर बुलबुल
ही गाता है, मादा बुलबुल नहीं गा पाती है।...
गुलाब खिला /चहकी बुलबुल/नशे ने
छुआ ---डॉ सुधा गुप्ता
शोख बोलियाँ /हवा में ठुनकती /बुलबुल की ---डॉ सतीशश्चन्द्र
पुष्करवणा
शब्द बुनती /पहाड़ी बुलबुल/गीतकार सी ---डॉ सरस्वती
माथुर
सुनाती -गान /गा रही बुलबुल /कहे श्री प्रभु ---पुष्पा मेहरा
*पपीहा
कीड़े खानेवाला एक पक्षी है जो बसंत और में वर्षा में प्रायःआम्र के पेड़ों पर
बैठकर बड़ी सुरीली ध्वनि में बोलता है।
पपीहा दिन /और चकवी रातें /काटे न काटें
---डॉ सुधा गुप्ता बोल उठता /अचानक मस्ती में /वो पपीहारा ---डॉ सुधा
गुप्ता
पिया की रट/पपीहे ने लगाई /याद जो आई /---दिलबाग विर्क
तुम हो
कहाँ / दे रहा आवाज़ है/मन पपीहा ... रमाकान्त श्रीवास्तव
जा रे पपीहा /किसकी बुझे प्यास /देश बैरागी---डॉ नूतन
डिमरी गैरोला
पपीहारा गा /और और बना रे /एकाकी मुझे ---आदित्य प्रसाद
* चिड़िया (गौरैया ) जो यूरोप और एशिया में
सामान्य रूप से हर जगह पाई जाती है। यह विश्व में सबसे अधिक पाए जाने वाले पक्षियों
में से है। लोग जहाँ भी घर बनाते हैं देर सबेर चिड़िया के जोड़े वहाँ रहने पहुँच ही
जाते हैं। र्चिड़िया,पुराने विश्व (यूरोप, एशिया और अफ्रीका) और मुख्य रूप से एशिया
के उष्णकटिबंधीय भागों में पाई जाती हैं। यह फुदकियां अपनी पूंछ को आमतौर पर ऊपर की
ओर सतर रखती हैं। यह आमतौर पर खुले जंगलों, मैदानों और उद्यानों में पाई जाती हैं।
शहरी इलाकों में गौरैया की छह तरह की प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें हाउस स्पैरो
को गौरैया कहा जाता है। यह शहरों में ज्यादा पाई जाती हैं। आज यह विश्व में सबसे
अधिक पाए जाने वाले पक्षियों में से है। हाइकुकारों ने इसकी उपस्तिथी के विभिन्न
रंगों को दर्शाया है--
गीत बुनती /गहरे सन्नाटे में /कोई गौरैया ---डॉ सुधा गुप्ता
खिड़की पर /काँप रही गौरैया /पानी में तर ---डॉ सुधा
गुप्ता
आकुल आए/ आँगन में गौरैया/ आस
लगाए/--- डॉ दिनेश सिंह
नभ में ताके /प्यासी एक गौरैया /सूखी तलैया ...डॉ
सतीशराज पुष्करणा
अकेला कहाँ/जब बीसों गौरैयाँ/आ बैठी यहाँ...रामेश्वर कंबोज
"हिमांशु "
भाई अंगना /बहन चुगे दाना /बन गौरैया ...रचना
श्रीवास्तव
रूठ ही गई/फुदकती गौरैया /बगिया सूनी ---डॉ जेन्नी
शबनम
बिखरा नीड़ /फिर चुने तिनका /नन्ही गौरैया ---सुनीता अग्रवाल
आँगन सूना /तरसे दाना पानी /आजा गौरैया--- मीरा
भारद्वाज
खिड़की पर गौरैया गुमसुम टूटा घोंसला ---महेश
कुशवंश
*बसंत ऋतु के समय आम की अमराईयों में तथा अन्यत्र वृक्षों पर बैठी
कोयल अपनी मीठी कूकसे सबका ध्यान आकर्षित कर लेती है ! वह पौ फटते ही गाने लगती है
तब प्रभात बहुत सुहावना लगता है !कोयल अपनी मीठी बोली से सबको आकर्षित कर लेती है
!इसमें कोयल की मीठी बोली के माध्यम से सदा मीठे वचन बोलने पर भी बल दिया गया है
lवहीं कौओं को भी वैज्ञानिक एक विस्मयकारक पक्षी मानते हैं । इनमें इतनी विविधता
पाई जाती है कि इस पर एक 'कागशास्त्र' की भी रचना की गई है। योग वशिष्ठ में काक
भुसुंडी की चर्चा है, रामायण में भी सीता के पांव पर कौवे के चोंच मारने का प्रसंग
आया है।कौवे अपनी चतुराई दिखाने में लाजवाब होते हैं।कोयल की मीठी तो काक की कर्कश
ध्वनि होती है वह 'काँव-काँव' करता!
*कोयल के प्रति सहज लगाव को हाइकुकारों ने
अपने शब्दों से निखारा है और मनोरम छवि शब्द उकेरे हैं उनकी कल्पना के बिम्ब यहाँ
देखें
कूकी कोयल/ चीरा -सा लगा गई /टपका लहू ---डॉ सुधा गुप्ता
मौन मुकुल /आम
पे बौर कहाँ /रोये कोयल ---हरदीप कौर संधु
कोकिल -पीर /चुभें यादों के तीर /बरसे
नीर ---रामेश्वर कंबोज "हिमांशु
कोयल बोले /कुहुक कुहुक के /टोना वन में ---
पूर्णिमा वर्मन
कोयल गाये /महके कचनार/झूमें बयार -डॉ -भावना कुँवर
जा रे
कोकिल/ दूर जा के गा ,मेरा दर्द न बढ़ा ---डॉ भावना कुँअर
खिलें हैं फूल /कोयल है चहकी /कौन है आया ---सुदर्शन
नागर
कोयल कूक /विरहन के उर /लगे ज्यूँ शूल
---डॉसरस्वतीमाथुर
कोयल कूके /अमराई हुलसे /आया है कंत---पुष्पा मेहरा
आम्र पींग पे /कोयल को झुलाए /झोंका समीर ---कृष्णा
वर्मा
तितली उडी /चुराए जो पराग /बिखेरे कहाँ
?---श्याम खरे
सिमटे वन /बांझ अमराईयाँ/कोकिल मौन ---सुनीता
अग्रवाल
अहो बसंत /अमराई में गूँजे /कोकिला स्वर ---सुनीता
अग्रवाल
फागुनी नभ/ बिचरती कोयल /बुनती गीत ---डॉ कमल किशोर
गोयल
कोयल गाये/ घायल मन मेरा/ सुन न पाये ---चंद्रबली
शर्मा
कौयल बोली /यादों के देवदार/ हिले न डुले ---चंद्रबली
शर्मा
बोले कागा /बोले कोयलिया /पाहून आए --ऋता शेखर मधु
मोर नाचते /कोयल है बाँचती /रची मेहंदी--- शशांक मिश्र
भारती
गाये मल्हार /कोयल की जो कूक/ बरसे मेघा ---अमिता कोंडल
यौवन
आया /आम्र मंजरी पर कोयल कूकी ...डॉ आरती स्मित
पीली सरसों /हरे भरे खेतों में
/मूक कोयलिया ---सीमा स्मृति
कोयल कूकी /फिर से पुरवाई /जागा मदन...अमित
अग्रवाल
घन घनेरा /कोयल ,खुशबू,छाया /जग बौराया ---अमित अग्रवाल
दुनिया मुग्ध /
गाके ठगे ममता/छली कोयल---मंजुल शर्मा
गाती कोयल/लिखे किसने बोल /दें,मिश्री घोल ---सीमा
स्मृति
आम का बौर/दीवानी कोयलिया /ऋतु का जादू ---डॉ अर्पिता
अग्रवाल
*पूर्वी एशिया में कौवों
को किस्मत से जोड़ा जाता है तो अपने यहाँ मुंडेर पर बैठकर काँव-काँव करने वाले कौवे
को संदेश-वाहक भी माना जाता है। भारत में हिन्दू धर्म में श्राद्ध पक्ष के समय कौओं
का विशेष महत्त्व है और प्रत्येक श्राद्ध के दौरान पितरों को खाना खिलाने के तौर पर
सबसे पहले कौओं को खाना खिलाया जाता है। कौए के प्रति सहज लगाव को हाइकुकारों ने
अपने शब्दों से निखारा है और मनोरम छवि शब्द उकेरे हैं उनकी कल्पना के बिम्ब यहाँ
देखें...
टिहुक लाल / फूले पलाश पर /कौओं के झुंड.... डॉ सुधा गुप्ता
पूर्वज
रूप /मुंडेर आता कव्वा /रोटी ले जाता ---डॉ सरस्वती माथुर
मुंडेर बैठ /काक घर
आँगन /संदेशा लाये ---डॉ सरस्वती माथुर
कागा बोला तो इंतज़ार की यात्रा शुरू हो गयी ---डॉ सरस्वती माथुर jl
भीगते कागा /गर्विले बादलों से /ठानते रार ---कृष्णा वर्मा
बोला है कागा /आएगी राखी आज /सोचे सैनिक ---पुष्पा मेहरा
बैठ मुंडेर /करे जो कांव- कांव /शुभ संकेत ---डॉ रमा द्वेदी
श्राद्ध का भोग /कौआ जीमने आए /शुभ कहाये ---डॉ रमा दवेदी
कागा आजा रे /ले आ संदेशवा /पी आवन का ---अनुपमा त्रिपाठी डॉ रमा
दवेदी
कोयल साथी /धर्म कर्म के नाम /कागा खैराती ---शशि पुरवार
बंजारे कागा /नीड़ बुनूँ प्यार के/ छोड़ो बैराग ---डॉ नूतन डिमरी गैरोला
बोले कागा /कुहकी कोयलिया /पाहुन आए ---ऋता शेखर मधु
लगती प्यारी/ कौवे की कांव -कांव/बोले अटारी--- रेखा रोहतगी
काग की काँ -काँ/ सुनके मन सुबह/ पसीज गया---रीता महाजन
संसद नें बैठी /कौओं की संसद /चर्चा तो होगी --- प्रियम्बरा
नित उड़ावाँ/बनेरे बैठ कागा /बुलीं तेरा नाँ---सुप्रीत कौर संधु
सूनी मुंडेर/ देहरी भी उदास /रूठा जो कागा ....आभा खरे
बोला है कागा /आएगा कोई घर /सूखा है मुंह ---महेश कुशवंश
आम्र पींग पे /कोयल को झुलाए /झोंका समीर ---कृष्णा वर्मा
कोयल कूके /अमराई हुलसे /आया है कंत---पुष्पा
मेहरा
तितली उडी /चुराए जो पराग /बिखेरे कहाँ ?---श्याम खरे
सिमटे वन /बांझ अमराईयाँ/कोकिल मौन ---सुनीता अग्रवाल
अहो बसंत
/अमराई में गूँजे /कोकिला स्वर ---सुनीता अग्रवाल
फागुनी नभ /बिचरती कोयल /बुनती गीत ---डॉ कमाल किशोर गोयनका
कोयल गाये/ घायल मन मेरा/
सुन न पाये ---चंद्रबली शर्मा
कौयल बोली /यादों के देवदार/ हिले न डुले
---चंद्रबलीशर्मा
बोले है कागा /कुहकी कोयलिया /पाहून आए ---ऋता शेखर मधु
मोर नाचते /कोयल है बाँचती /रची मेहंदी--- शशांक मिश्र
भारती
गाये मल्हार /कोयल की जो कूक/ बरसे मेघा ---अमिता कोंडल
यौवन
आया /आम्र मंजरी पर कोयल कूकी ...डॉ आरती स्मित
पीली सरसों /हरे भरे खेतों में
/मूक कोयलिया ---सीमा स्मृति
कोयल कूकी /फिर से पुरवाई /जागा मदन...अमित
अग्रवाल
घन घनेरा /कोयल ,खुशबू ,छाया /जग बौराया---अमित अग्रवाल
दुनिया मुग्ध /
गाके ठगे ममता/छली कोयल---मंजुल शर्मा
आम का बौर/दीवानी कोयलिया /ऋतु का जादू ---डॉ अर्पिता
अग्रवाल
* प्रकृति का सफाई कर्मी कहलाने वाले तथा दूर
तक दृष्टि रखने वाले गिद्ध व चील आज दूर-दूर तक भी दिखाई नहीं देते। शहरीकरण, घटते
वनस्पति, कृषि क्षेत्र में जहरीले रासायनिक दवाओं के बढ़ते प्रभाव ने प्रकृति के इस
सफाई दूत को विलुप्त होने के कगार पर ला दिया है। समय रहते यदि विलुप्त प्राय इस
पक्षी को संरक्षित नहीं किया गया तो पर्यावरण को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।इन
पर भी कुछ हाइकुकारों ने कलम चलाई है - देखें कुछ हाइकु ---
*चील उड़ने में बड़ी दक्ष होती है !यह एक सर्वभक्षी
तथा मुर्दाखोर चिड़िया है, जिससे कोई भी खाने की वस्तु नहीं बचने पाती। ढीठ तो यह
इतनी होती है कि कभी कभी बस्ती के बीच के किसी पेड़ पर ही अपना भद्दा सा घोंसला बना
लेती है।
ऊंचा आकाश /तैरती है चील सी /कल्पना मेरी ...सुषमा सिंह
*हाइकुकारों ने उल्लू और गीदड़ तक पर भी हाइकु रच दिये -
उल्लू बोल
दे /रात दे चौकीदार /जागते रहो ---कश्मीरी लाल चावला
पूरनमासी /कुकड़े ने गिंदड़
/देख शिकार --- सुप्रीत कौर संधु
*गिद्ध को पर्यावरण का अपघटक कहा जाता है। गिद्धों में दूर तक देखने की
क्षमता बहुत अधिक होती है। इसके अतिरिक्त गिद्ध प्रकृति एवं धरती के बीच संतुलन
कायम करने वाले प्राणी भी माने जाते हैं।
गिद्ध के समान चील भी तेजी से विलुप्त
हो रहें हैं , संकट के दौर से गुजर रहे हैं।
छिड़ा जो युद्ध/रोयेगी
मानवता/हँसेंगे गिद्ध---डा० जगदीश व्योम
*बाज़ एक शिकारी पक्षी है जो कि गरुड़ से छोटा होता है। इस प्रजाति में
दुनिया भर में कई जातियाँ मौजूद हैं और अलग-अलग नामों से जानी जाती हैं।वयस्क बाज़
के पंख पतले तथा मुड़े हुए होते हैं जो उसे तेज़ गति से उड़ने और उसी गति से अपनी
दिशा बदलने में सहायता करते हैं-
आँख बाज़ की /झपट चील की तो /कौन बचेगा -डॉ
सुधेश
धर दबोचा/ मासूम चिड़िया को/ क्रूर बाज़ ने...डॉ भावना कुँअर
*कबूतर पूरे विश्व में पाये जाने वाला पक्षी है। यह एक नियततापी,
उड़ने वाला पक्षी है जिसका शरीर परों से ढका रहता है। यह जन्तु मनुष्य के सम्पर्क
में रहना अधिक पसन्द करता है। अनाज, मेवे और दालें इलका मुख्य भोजन हैं। भारत में
यह सफेद और सलेटी रंग के होते हैं पुराने जमाने में इसका प्रयोग पत्र और चिट्ठीयां
भेजने के लिये किया जाता था।कुछ उदारण देखें ----
श्वेत -कपोत /शांति से ओतप्रोत /हिंसा विहीन ---ज्योत्सना
प्रदीप
उड़ा कपोत /पंख फड़फड़ाता /डाकिया हंसा ---डॉ सरस्वती माथुर
कबूतर भी
/गिरती बर्फ देख /ऊष्मा खोजते...डॉ सरस्वती माथुर
मन टहनी /यादों का कपोत था /
थक के -उड़ा---डॉ सरस्वती माथुर
आतंकी बाज़ /कर गए शिकार /कबूतर का ---नमिता राकेश
सीख आया है
कबूतर की चाल चतुर चाँद ---अश्विनी कुमार विष्णु
*मोर भारतीय संस्कृति में विशेष
स्थान रखते हैं।यह एक बहुत ही सुन्दर, आकर्षक तथा शान वाला पक्षी है। बरसात के मौसम
में काली घटा छाने पर जब यह पक्षी पंख फैला कर नाचता है तो ऐसा लगता मानो इसने
हीरों-जड़ी शाही पोशाक पहनी हुई हो। इसीलिए इसे पक्षियों का राजा कहा जाता है।
पक्षियों का राजा होने के कारण ही प्रकृति ने इसके सिर पर ताज जैसी कलंगी लगाई है।
मोर के अद्भुत सौंदर्य के कारण ही-इसे राष्ट्रीय पक्षी का दर्जा दिया गया है
!संस्कृत भाषा में यह मयूर के नाम से जाना जाता है। मोर भारत तथा श्रीलंका में
बहुतायत में पाया जाता है। मोर मूलतः वन्य पक्षी है, लेकिन भोजन की तलाश इसे कई बार
मानव-आबादी तक ले आती है।मोर प्रारंभ से ही मनुष्य के आकर्षण का केंद्र रहा है।
अनेक धार्मिक कथाओं में मोर को बहुत ऊँचा दर्जा दिया गया है। हिन्दू धर्म में मोर
को मार कर खाना महापाप समझा जाता है। भगवान कृष्ण के मुकुट में लगा मोर का पंख इस
पक्षी के महत्व को दर्शाता है। महाकवि कालिदास ने महाकाव्य ‘मेघदूत’ में मोर को
राष्ट्रीय पक्षी से भी अधिक ऊँचा स्थान दिया है। राजा-महाराजाओं को भी मोर बहुत
पसंद रहा है। मेघों को देख कर मयूर के पैरों में स्वाभाविक थिरकन आ जाती है और इनके
कोलाहल से दिशाएँ मुखरित हो जाती हैं ! मोर मोरनी का नृत्य आनंदित कर देता है वर्षा
के पूर्व विधुतकी चमक से मयूर का हृदय आशापूर्ण कहा गया है lइसकी घुति अनेकावर्णी
हैl नीलाभ से चमकता हुआ कंठ है ,स्वर तीव्र एवं मधुर तथा नर्तन शोभन है lमेघो को
देख मयूर के पैरों में स्वाभाविक थिरकन आ जाती है और इनके कोलाहल से दिशाएँ मुखरित
हो जाती हैं, हाइकु मोतियों में हाइकुकारों ने गूँथी है माला---आषाढ़ माह /उगी मन
-मोर में/ नृत्य की चाह ---कुँवर बैचन
देखें टहुके मोर /याद आ गया कौन /इतनी
भोर...डॉ भगवत शरण अग्रवाल
चारों तरफ /फैले गुलमोहर/ मोर पंख से भावना
कुँअर
जुगनुओं से/ गुलमोहर वृक्ष है /झिलमिल ---डॉ भावना
कुँअर
छाई घटा तो /मोर बांध घुंघुरू /बागों में आया ---डॉ सरस्वती
माथुर
मन विभोर /मोरनी संग झूमा/ वीवी बावरा मोर ---डॉ सरस्वती
माथुर
बादल छाए / बाँध घुंघरू /बागों में आया ---रचना
श्रीवास्तव
अलस- भोर /माँ चुगती थी फूल /नाचता मोर ---कुमुद बंसल
आँवल -छाँह /नाचता था मयूर /माँ डाले दाना ---कुमुद बंसल
नाचेगा मोर ? / बचा ही न जंगल / ये कैसी भोर ?---ज्योत्सना
शर्मा
नाचे मयूर बादलों के संतूर /सुन- सुन के ---ज्योत्सना प्रदीप
बरसे मेघ
/गूँजे दादुर -राग /नाचे मयूर---डॉ क्रान्ति कुमार
नाचे मयूर /रिमझिम के संग
/नाचे मगन ---डॉ नूतन डिमरी गैरोला
देखे झलके/झूमे मन मयूर /हुआ बावरा ---सीमा
स्मृति
झूमें बदरा /गरजते मृदंग /मन मयूर /ज्योतिर्मयी पंत
*नीलकंठ एक भारतीय पक्षी
है। इसका आकार मैना के बराबर होता है।त्रावणकोर के दक्षिण भाग को छोड़कर शेष भारत
में यह पक्षी पाया जाता है। मान्यता है कि नीलकंठ को देखने मात्र से भाग्य का
दरवाज़ा खुल जाता है। यह पवित्र पक्षी माना जाता है।दशहरा पर लोग इसका दर्शन करने
के लिए बहुत लालायित रहते हिन्दू धर्म
ग्रंथों में भगवान शिवको 'नीलकंठ' के नाम
से पुकारा जाता है।
पीकर विष/हीबनाता है कोई /नीलकंठ सा ---रूपचंद
उपाध्याय
जीना जरूरी /हो जाओ नीलकंठ /जहर पियो ---डॉ गोपाल बाबू
शर्मा*चातक एक पक्षी
है इसके सिर पर चोटीनुमा रचना होती है। भारतीय साहित्य में इसके बारे में ऐसा माना
जाता है कि यह वर्षा की पहली बूंदों को ही पीता है। अगर यह पक्षी बहुत प्यासा है और
इसे एक साफ़ पानी की झील में डाल दिया जाए तब भी यह पानी नहीं पिएगा और अपनी चोंच
बंद कर लेगा ताकि झील का पानी इसके मुहं में न जा सके।
कुछ चित्र देखें
---बदरा भर /भर -भर उड़ेल/चातक पिए... डा. रमा
द्विवेदी
चातक-व्यथा /सीप के दिल बसी /अमोल हुई ---अनिता ललित
प्रेमी चातक /टकटकी लगाए /घन-घातक---नरेंद्र प्रसाद नवीन
चातक मन /तृप्ति चाहे सजन/तुम बरसो ---नूतन डिमरी
गैरोला
शशि किरण/ बनी ओस की बूंद /चातक मन --- उपासना सिहाग *गिलहरी एक छोटी आकृति की जानवर हैl गिलहरी सामान्यतः पूरे भारतवर्ष में पाई
जाती है। ये तीन और पाँच धारियों वाली होती है। पाँच धारियों वाली गिलहरी प्रायः
सभी जगह मिल जाती है। इनकी पूँछ पर छोटे-छोटे घने बाल होते हैं। यह बहुत पारिवारिक
होती है। यह बस्तियों या खेतों के आसपास रहती है। गिलहरी के कान लंबे और नुकीले
होते हैं और दुम घने और मुलायम रोयों से ढकी होती है। गिलहरी बहुत चंचल होती है और
बड़ी सरलता से पाली जा सकती है। गिलहरी अपने पिछले पैरों के सहारे बैठकर अगले पैरों
से हाथों की तरह काम ले सकती है। पेड़ों और झाड़ियों से दूर गिलहरियाँ शायद ही कभी
देखी जाती हों।आमतौर पर गिलहरी बगीचों, घरों के छज्जों तले या पेड़ों पर बिल बनाकर
रहती है। यह जमीन पर भी चल सकती है और उतनी ही आसानी से पेड़ों पर भी दौड़ सकती है।
गिलहरी लंबे-सीधे पेड़ व खड़ी दीवारों पर भी आसानी से चढ़ जाती है। इसके पैरों में
छोटे, बारीक नाखून होते हैं, जिनके सहारे यह सतह को आसानी को पकड़ लेती
है।
गिलहरी पर कुछ हाइकु यहाँ प्रस्तुत है
उमंग- भरी /शाखों पे गिलहरी
/उडनपरी ---डॉ सुधा गुप्ता
छत पे आती /चपल गिलहरी /पूंछ नचाती --- डॉ सुधा
गुप्ता
रही कुतर /वक्त की गिलहरी /दाईने शाम के ---डॉ शैल रस्तोगी
मेघ गिरते
/गिलहरी - सी धूप /भागी -दुबकी ---डॉ शैलजा सक्सेना
गिलहरी सी /फुदकती है धूप/
पेड़ पौधों पे ---डॉ सरस्वती माथुर
नीम अंधेरा /गिलहरी सा चढ़ा /रात खा गया ---डॉ
सरस्वती माथुर
तरु गगन /उड़ान है भरती/गिलहरियाँ ---डॉ सरस्वती माथुर
वन विरान
/गिलहरियाँ खोजे /शाखों के झूले ---सुनीता अग्रवाल
करती श्रम /पाँव पर पड़ी खड़ी
मैं /नन्ही हूँ तो क्या ---प्रियम्बरा
*मृग कस्तूरी ,मृग ,हिरण प्रकृति के
सुन्दरतम जीवों में से एक हैं --- जंगलों में कुलांचते भरते हैं --- झुंड में विचरण
करते हैं ,नीलगाय भी मृग की प्रजाति है lकुछ उदाहरण देखें ...
कस्तूरी मृग
/निर्भय विचरण /मनाते मोद ---डॉ सुधा गुप्ता
मृग बौराया /रास्ता भूली नदिया/ तुम
घर में ...डॉ शैल रस्तोगी
नैन मृगी -से /छलके हैं जबसे /अमृत पिये ---रामेश्वर
कंबोज "हिमांशु"
मृग बावरा /है नाभिमें कस्तूरी /कभी न जाने ---रामेश्वर कंबोज
"हिमांशु"
भरे कुलांचे /न थके तनिक भी /मेघा हिरण ---रामेश्वर कंबोज"हिमांशु
"
भटका मन /गुलमोहर वन बन /हिरण ---भावना कुँवर
ठहरी धूप /कुलांचे भरती सी /
हिरण हुई ---डॉ सरस्वती माथुर
बहुरूपिया /स्वर्ण हिरणबन /करता छल...डॉ सरस्वती
माथुर
गए शिकारी /खोज रही हिरनी /निज हिरना ---डॉ रमाकांत
श्रीवास्तव
कस्तूरी मृग /कितना अनजान /नाभि में गंध
-- शशि पाधा
यादें जंगल /मैं भटकी हिरणी/निकलें कैसे?---रेखा रोहतगी
घना जंगल
/भोली भाली हिरणी/सौ सौ खतरे---डॉ गोपाल शर्मा
घास हरी सी है पलंग बिछौना मनवा
छौना---अशोक कुंगवानी
मचल रहा /व्योम में मृगछौना /इंद्रधनुष --नलिंनकांत
दुख
का छौना छाती की गलियों में रार मचाए ---कृष्णा वर्मा
कस्तुरी तन /दौड़े मन हिरण /जग कानन ---कमला
निर्खूपी
सोने का मृग /सुंदर -सा छलावा /दुनिया जैसा --मंजुल दिनेश
नींद
के खेत/चार गए फसल /दुख चीतल ...सुभाष लखेड़ा
पूस की रात/शर्मीली-सी -हिरणी /चूमें बदन ---राजेंद्र मोहन त्रिवेदी बंधु
*जुगनू जो रात में सितारों की तरह टिमटिमाते हैं। रात के समय जुगनू
लगातार नहीं चमकते, बल्कि एकनिश्चित अंतराल पर कुछ समय के लिए चमकते और बुझते रहते
हैं। इसी रोशनी का इस्तेमाल ये अपनभोजन तलाशने में भी करते हैं। इनमें खास बात ये
है कि मादा जुगनू के पंख नहीं होते, इसलिए वह एक जगह बैठी ही चमकती है, जबकि नर
जुगनू उड़ते हुए भी चमकते हैं। यही एक कारण है, जिससे इन्हें आसानी से पहचाना जा
सकता है।
हाइकु कारो ने जुगनुओं के मनोरम दृश्य चित्रित किए हैं-----
किसी को
याद /बांस -वन जुगनू /टिमक गया... डॉ सुधा गुप्ता
पावस रात /पिकनिक मनाते /नाचे
जुगनू ---डॉ भगवत शरण अग्रवाल
दीप जलाएँ /जुगनू से चमके /हर आंगन ---डॉ हरदीप कौर
सिंधु
नन्हा जुगनू/ पड़ा टिमटिमाए/ टूटे पंख ले---डॉ भावना
कुँअर
मनी दिवाली /बाग -बगीचों में भी /जुगनू संग ---डॉ
भावना कुँअर
रिश्तों की संध्या /जुगनू -सी चमकी /रही दमक ---कुमुद
बंसल
मिलके जले /जलके
मिटा देंगे /सारा अंधेरा ---शोभा रस्तोगी 'शोभा '
स्मृतियाँ मेरी /विरह- रजनी
में /जुगनू बनी ---शोभा रस्तोगी 'शोभा '
प्रेम -जुगुनू /भावों की बाती जला /रोशन
हुआ ---डॉ सरस्वती माथुर
रात में दिया /बन जुगनू जले /तम से लड़े ---डॉ सरस्वती
माथुर
टिमटिमाते /काले अँधेरों में भी /प्यार जुगनू ---डॉ जेन्नी शबनम
हर्ष विश्वास/ले उतरे जुगनू /घर -आँगन ---रचना श्रीवास्तव
जुगनू जले /अंधेरी अमावस /सपने पाले ---डॉ शशि पाधा
घुप्प
अंधेरा /जुगनू ने उठाया /भोर का बीडा ---सुनीता अग्रवाल
राह दिखाओ /अरे ओ
जुगनुओं /रात है काली ---डॉ सुषमा सिंह
जुगनू दीप /टिमटिम करते /स्वप्न सज़े हैं
---भावना सक्सेना
रिश्तों की संध्या /जुगनू सी चमकी /रही दमकी ---कुमुद
बंसल
झाँकती यादें /मन आँगन मेरे /जैसे जुगनू ...डॉ अनीता कपूर
मिलके जले
/जुगुनू मिटा देंगे /सारा अंधेरा ...डॉ मिथिलेश कुमारी मिश्र
प्रेरणा बड़ी /संघर्ष ही जीवन /छोटा जीवन ---सरिता
भाटिया
सूरज भागा /दूर क्षितिज पर /जुगनू जागा ---सरिता भाटिया
*रंग बिरंगे
फूलों के साथ रहने वाली तितलियाँ भी बहुत सुंदर होती है तितलियाँ कई तरह की और कई
आकार की होती हैं रंगीन तितलियाँ सूर्य के आगमन से पलायन तक निरंतर फूलों पर
मंडराती है ,इन्हे और रंगीन बनाती है lप्रकृति के सारे रंगों की तितलियाँ जाने कहाँ
से सँजो कर लाती हैं किइंद्रधनुष भी फीका पड़ता है lअलग अलग रंग लिए कहीं पलाश के
जैसे रंग की लाली ,कहीं अंबर सी नीली ,कहीं सरसों सी पीली ,फूलों को चूमती ,डाल डाल
पर उड़ती,इठला कर झूमती हाइकुकारों को मोह लेती हैं lकुछ सुंदर हाइकु द्रष्टव्य
हैं –
अनूठे रंग /तितलियाँ उड़ती /हवा के संग ---डॉ सुधा गुप्ता
रोती तितली /कंक्रीट जंगल /में /फूल कहाँ हैं ---डॉ सुधा
गुप्ता
फूल- पंखुरी /तितली के पंख सी /नाज़ुक दोस्ती ---डॉहरदीप कौर
सिंधु
शोख तितली /खूब खेलती खो खो /फूलों के संग ---रामेश्वर कंबोज
"हिमांशु"
तितली बिंधी /लम्पट गुलाब ने /खींचा आँचल ---रामेश्वर कंबोज 'हिमांशु
"
आहट आते /उड़ती तितलियाँ /मेरे मन में ---डॉ भगवत शरण अग्रवाल
बसंती मन /तितली सा डोलता /रंग घोलता ---डॉ सरस्वती माथुर
तितली
लिए /रंग बिरंगा /झण्डा /फूलों पे चली ---डॉ सरस्वती माथुर
कैटरपिलर /मन भीतर
रंगा /तितली हुआ --- डॉ सरस्वती माथुर
पुष्प जो खिले /रंगीन तितलियाँ झूला -सा झूले ---सुदर्शन नागर
थिरक रही /पुखराजी पुष्पों पे /ये तितलियाँ ---सुदेर्शन नागर
सूनी है डाली /चिड़िया न तितली /आँधी ले उडी...डॉ जेन्नी
शबनम
तितली-दल/कपोल चूम /दग्ध पलाश ---पुष्पा मेहरा
तितली उडी /चुराये जो
पराग/बिखेरे कहाँ ---श्याम खरे
तितली दल/ खोल डाले किसने /रंगों के नल ---डॉ
भावना कुँअर
नन्ही तितली /खेले आँख मिचौली/कमल संग ---डॉ भावना कुँअर
नन्ही
तितली /बुरी फंसीजाल में /नोंच ली गयी ---डॉ भावना कुँअर
तितली बन /चला फूलों के
गाँव /वो मनचला ---भावना कुँवर
खिले पलाश /तितली ओ भँवरे /मन उल्लास ---हरकीरत
हीर
रंग -बिरंगी /तितली के पंखों -सी /चुनरी सोहे ---निर्मल कपिला
सुंदर स्वप्न /तितली बन उड़े /मधुबन में---शशि पुरवार
अब
न आतीं /धूप की तितलियाँ /ब्याहीं विदेश ---शशि पाधा
तितलियों -सी /मन की
कामनाएँ /खूब छकाएँ---सुभाष नीरव
लड़ते नहीं /तितली मधुमक्खी /फूल के लिए
---एस॰डी॰तिवारी
अपने संग /सहेजती मैं रंग /तितली बन ---सीमा स्मृति
छू ही आई है /हिम्मत की तितली /ऊंचेन ख्वाब को ---अरुण कुमार
रूहेला
* हमारे साहित्य में
भँवरे को एक विशेष स्थान हासिल है।भँवरे काले रंग का उड़नेवाला एक पतंगा जो फूलों
पर मँडराता और उसका रस चूसता है। इसके छः पैर, दो पर और दो मूँछें होती हैं। वह
कलिओं का रसपान करता है और फिर उड़ जाता है। किसी एक पुष्प पर टिकना उसका स्वाभाव
नहीं है। वह रंग का काला है अतः मन का भी काला मान लिया जाता है। उसकी प्रकृति चंचल
है। बेचारा भँवरा। वो क्या करे बगिया में वह अकेला है और पुष्प ढेर सारे। सभी को
विकसित करवाना उसका कर्तव्य है सो वह एक कली , एक पुष्प का होकर नहीं रह सकता । पर
क्या करें ये कवि उस की इस मज़बूरी को नहीं समझते और उसे बेवजह खलनायक बना देते
हैं।कुछ कुछ रसिया स्वभाव में प्रीत ढूंढ लेते हैं ! मधुप फूलों के पराग से आकर्षित
हो कर मँडराता और गुंजन करता है ,अपने नाम के अनुरूप मधुपायी है उदाहरण स्वरूप कुछ
हाइकु देखे जा सकते हैं -
चुप चिड़िया/ लील गई गर्मी /दाना व पानी ---रामेश्वर कंबोज
"हिमांशु"
भौंरा मुसकाए /तितली बेखबर /जान न पाये ---रामेश्वर कंबोज
"हिमांशु"
पागल भोंरा/ दर दर भटके/बना मलंग
---पूर्णिमा वर्मन
आया है मीत/काली का मन मोहे /भ्रमर गीत ---डॉ कुँवर दिनेश
सिंह
झूमे बसंत /श्यामल भ्रमर की /चली पढ़ंत ---डॉ कुँवर दिनेश सिंह
वृक्ष लता
पे /झूमे मधुकर तो /सुमन खिले ---डॉ सरस्वती माथुर
भँवरे झूमे /कलियों के पाटल /खिलते गए ---डॉ सरस्वती माथुर
गंध के डोरे
/अंजान है मालती/भौंरे हैंछेड़े --- डॉ सरस्वती माथुर
नव प्रभात /धूप भँवरों पर /हुआ मोहित ---डॉ सरस्वती
माथुर
आत्मिक नहीं /फूल -भौंरे का प्रेम /वो रस लोभी ---रचना श्रीवास्तव
रंग देख के / भँवरे रहे दूर /कागजी फूल ---डॉ श्याम सुंदर' दीप्ति
'खिले
पलाश /तितली ओ भँवरे /मन उल्लास ---हरकीरत हीर
पा रश्मि स्पर्श /गुनगुनाया भौंरा /खुली पांखुरी ---शशि पाधा
गूँजे भ्रमर /रंग हुए प्रखर /है मधुमास ---अनुपमा त्रिपाठी
रस जगाए /रंग में डूब जाई /भँवरा गूँजे ---अनुपमा त्रिपाठी
यादों की गंध /बैचेंन हो उठा है/मधुप मन...डॉ उर्मिला
अग्रवाल
थिरक उठी /फूलों की सहलियां /भौंरों के संग--- कमला निर्खुपी
खिली
चाँदनी /भौंरे गीत सुनाएँ /झूमें पलाश ---शशि पुरवार
भँवरे गाते /महकता उपवन
/पुष्प लुभाते ---शशि पुरवार
खिले पुहुप/ गुनगुनाया भौंरा /राग बसंत ---अनुपमा
त्रिपाठी
फूलों का रंग /भँवरों की गुंजन /सब अधूरी ---शैफाली गुप्ता
भौंरे की
धुन /सुन काली महकी /फगुआ गाती ---गुंजन अग्रवाल
नवल पात /डाल डाल भँवरे/ आया
बसंत ---कल्पना रमानी
कमल खिले /भँवरे झुक झूमें/मुखड़ा चूमें ---नवीन
चतुर्वेदी
मधधुमालती /आली भरें गागर /मधु -सागर ---गुंजन अग्रवाल
*सच कहते हैं कि हाइकु
सृष्टि सौंदर्य का अनुभव कराती है lहाइकु का क्षेत्र असीम हैlहाइकुकार किसी भी
दृश्य या सरोकार पर हाइकु रच सकता है l धरती का विशाल आँगन हो ,प्रकृति का विस्तृत
रूप हो ,चाँद को एकटक निहारता चकोर हो ,वर्षा मे पातों पे रेंगती मखमली वीरबहूटी
हो,झींगुर की आवाज़ हो या टर्र टर्र करता दादुर - मेंढ़क - मछलियाँ या जलपाखी हों या
सागर किनारे की रेत पर बिखरे सीपी शंख हों ,देखें हाइकु ---
बदरा तले /मेंढक की
मंडली /जन्मों की बातें ---मनोशी चटर्जी
बरखा- रानी / ले आई नव आस /दादुर राग
---डॉ क्रांति कुमार
दादुर तेरा /बरसी जो बदली /मन मयूरा ---डॉ ज्योत्सना
शर्मा
मौसम आया / मेंढक की चुप्पी ने /अर्थ बताया ---डॉ सरस्वती माथुर
मेंढकी
सी थीं /बारिश की बूंदें /गेंद सी उछली---डॉ सरस्वती माथुर
*सीपी में मोती
वस्तुत: मोलस्क जाति के एक प्राणी द्वारा क्रिस्टलीकरण की प्रक्रिया द्वारा बनता
है।
हाइकुकारों ने उन्हे भी शब्दों में बांधा है ...कतिपय उदाहरण प्रासंगिक
होंगे --
उषा की माला /बिखरे हुए मोती /दूर्वा सहजे ---डॉ सुधा गुप्ता
जो
भीगा पल /शब्द -सीपी में ढले /हाइकु बने ---डॉ सावित्री डागा
घृणा है घोंघा
/प्रेम है मोती पा लेना /खेल मौत से --- डॉ सावित्री
डागा
बिटियां होती /फूल
पंखुरियों पे /ओस के मोती डॉ हरदीप कौर सिंध
यादों के मोती /चली पिरोती सुई /हार किसे दूँ ?---उर्मिला
कौल
मन की माला /भावों के मोती -गूँथी /छोड़े न साथ...रामेश्वर कंबोज
"हिमांशु "
मोती उलझे /बरौनियों की नोंक /बह न सके---रामेश्वर कंबोज
"हिमांशु'
धरती पर /हीरे -मोती से बड़ा /क्या है गहना
?---रामेश्वर कंबोज "हिमांशु"
यादों के मोती /मैं पिराऊँ माला में / महक जाऊँ ---रचना
श्रीवास्तव
मोती से टंके/धरा के आँचल पे / हरसिंगाार ---रचना श्रीवास्तव
सावन लाए /आँचल भर मोती ।आँगन भीगे
---रचना श्रीवास्तव
ओसकण के/ मुक्ताहार से
करें/ धरा शृंगार ...डॉ सरस्वती माथुर
कुंवारी रेत /सीपी प्रसव से /जन्मता मोती
---डॉ सरस्वती माथुर
मोती ही मोती /सागर से चुन लो /लगा डुबकी ---सुदर्शन
रत्नाकर
शंख हैं मौन /चुप हुए मृदंग /बजाए कौन ---कुमुद बंसल
ओस की बूंद /पत्तों पे मोती दिखे /हाथ में पानी ---श्याम खरे
किसने टांके /मखमली घास पे /ओस के मोती ...पुष्पा मेहरा
यादों
के मोती /समेट न सका /सीप दिल में --- सावित्री चंद्र
चाँद उतरा/सीपियों के
अंगना /सिंधु मचला ---अनिता ललित
बूंद है प्यासी /सीप में उतार के /मोती होने को
---डॉ ॰नूतन डिमरी गैरोला
ख्वाब काँच -से /आँखों पे रुके जब /हुए मोती से ---डॉ
नूतन डिमरी गैरोला
कनी रेत की /सहे सीप में पीड़ा /बनेगी मोती ---ज्योत्सना
शर्मा
रहे समीप /ज्यों मोती और सीप /खुशनसीब ---कृष्ण वर्मा
मन का सीप/पुकारे
बादल को/मोती बरसे--- कमला निर्खुपी
नैनों की सीपी/चम -चम चमके/नेह के
मोती--कमला निर्खुपी
कीमती मोती/हृदय की सीप में /तुम्हारी याद ---सारिका
मुकेश
साँस है धागा /उम्र पिरोये मोती /जीवन -माला ---अनीता
ललित
ममता रोती-/कोई पिरो दे मेरे/बिखरे मोती ---मुमताज व टी एच
खान
बूंद है प्यासी /सीप में उतार के मोती होने को ---नूतन डिमरी
गैरोला
ओस की बूंद /पत्तों पे मोती दिखे /हाथ में पानी ---श्याम खरे
न
प्रांगण /यादों के बादल से /झरते मोती ---शशि पूरवार
प्रेम वर्ण-से/ गूँथे मोती
की माला के /आज बिखरे --शैफालीगुप्ता
आखर- मोती /पिरोती चली जाऊँ/हार न
मानूँ---डॉ निशा जैन
बंद सीपीयाँ/उपजे मुक्तकण/बिखरे दर्द ---डॉ निशा जैन
नभ
की ओस /झरी मधुबन में /मोती बन के ---मंजु गुप्ता
शुभ संदेश /दमदम दमके/नयन मोती
---ऋता शेखर ‘मधु’
बिखरे मोती /टूटी मन की माला /साथ मिलाना ---सीमा
स्मृति
दोस्ती
दरिया /धोका शंख/-सीपीयाँ/रिश्ता मलिन ---विभा श्रीवास्तव
सीप मुख से /फैले रंग
-बिरेंगे/ मोती धरा पे ---डॉ अर्पिता अग्रवाल
जलपाखी से /पतझड़ के पत्ते /हवा नदी
में ---डॉ सरस्वती माथुर
शशि किरण/ बनी ओस की बूंद /चातक मन --- उपासना
सिहाग
ग़म के मोती /पिरोये आँसुओं में /बनी है माला ---सपना
माँगलिक
*भारतीय इतिहास में दर्शन और भोजन दोनों दृष्टि से शुभ और श्रेष्ठ
मानी जाने वाली मछली जलीय पर्यावरण पर आश्रित है तथा जलीय पर्यावरण को संतुलित रखने
में मछली की काफी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। यह कथन अपने में पर्याप्त बल रखता है
जिस पानी में मछली नहीं हो तो निश्चित ही उस पानी की जल जैविक स्थिति सामान्य नहीं
है। वैज्ञानिकों द्वारा मछली को बायोइंडीकेटर माना गया है। विभिन्न जलस्रोतों में
चाहे तीव्र अथवा मन्द गति से प्रवाहित होने वाली नदियां हो, चाहे प्राकृतिक झीलें,
तालाब अथवा मानव-निर्मित बड़े या मध्यम आकार के जलाशय, सभी के
पर्यावरण का यदि सूक्ष्म अध्ययन किया जाय तो निष्कर्ष निकलता है कि पानी और मछली
दोनों एक दूसरे से काफी जुड़े हुए हैं। पर्यावरण को संतुलित रखने में मछली की विशेष
उपयोगिता है।कुछ हाइकु देखें -
ठंडी कविता /मारी हुई मछली/की फटी आँख
---सावित्री डागा
तड़प रही /जल बिन मछ्ली/बिन तेरे मैं ---डॉ हरदीप कौर संधु
गंदला पानी /रो रही मछलियाँ /वे जाएँ कहाँ ---हरदीप संधु
जाल फेंकता/सूरज का
मछेरा/धूप तितली ---डॉ सरस्वती माथुर
उम्र की डोर /सौन मछरिया सी /हाथ से गिरी
---डॉ सरस्वती माथुर
धूप मछ्ली /सूर्य नें फ़ेंकाजाल/ मछुआरे सा ...डॉ सरस्वती
माथु
नभ सागर /तारों का मीन पुंज /तिरता जाए ---डॉ सरस्वती माथुर
सूखे -से ताल /जल बिन मछली /हाल-बेहाल ---शशि पाधा
न है मीन -सा /आकुल रहता
है /लिए पिपासा ---अनुपमा त्रिपाठी
हृदय-झील /तैरती आकांक्षाएँ/मीन मानिंद
---महिमा मंजु
तडपी मीन /विचलित होकर /सूखा पोखर ...अशोक दर्द
नभ में पंछी /सागर -तन मीन /कहाँ बसूँ मैं ?---डॉ ऋतु
पल्लवी
जग भीतर /व्याकुल व आतुर /मछ्ली मन ---घनश्याम
नाथ कच्छावा
*चकोर चंद्र किरणों को पीने वाला मदमस्त पक्षी है ,इसके नेत्रों को मद से
मतवाला कहा गया है समशीतोष्णकटिबांधों में वर्षा काल के बाद नए हरे हरे वनो में इस
पक्षी के जोड़े मिलते हैं सूडोल शिर ,बड़ी बड़ी रतनार आँखों वाले चकोर की एक एक गति से
स्फूर्ति टपकती है कुछ उदाहरण यहाँ प्रस्तुत हैं--
ख्वाब उगा है /आँखों के नभ पर
/नींद चकोर ---डॉ सरस्वती माथुर
चाँद को देख /अकुलाया चकोर /प्यार गहन ---डॉ
सरस्वती माथुर
चकोर मन/ चाँदनी नदिया से/ प्यास बुझाये---डॉ सरस्वती माथुर
*बीरबहूटी एक खूबसूरत मखमली सा कीट है जो बारिश के बाद
धोरों पर नजर आता है ! इसे सावन की डोकरी , इंद्रवधू और बूढ़ी माई भी कहते हैं
..
कुशल पूछे/ वीर बहूटी भेज/ मेघ धरा की ---डॉ दयाकृष्ण विजयवेर्गीय
'विजय'
हरी घास पे/वीरबहूटी चली/ दुल्हन लगे ---डा० सरस्वती माथुर...
*झींगुर (क्रिकेट) एक कीट है । यह रात में झीं
की आवाज निकालने के लिये जाना जाता है।जबकि पतंगा शमा पर न्योछावर हो जाता है
...उदारणों में हाइकुकारों ने सुंदर बिम्ब उतारे हैं ...
मन पतंगा /भावों की
रोशनी पे /पंख फैलाये ---डॉ सरस्वती माथुर
फूल तिरंगे /जुगनू तितलियाँ /उड़े पतंगे - सरिता भाटिया
झींगुर छेड़े /अशोक टहनी पे/ रात के राग... डॉ
सरस्वती माथुर
वर्षा की साँझ /बजाते शहनाई /छिपे झींगुर ---रमाकान्त
श्रीवास्तव
अंधेरी रात /झींगुर चौकीदार सीटी बजाते ---सुभाष नीरव
आग बरसे/
जंगल में सन्नाटा/झींगुर गाए ---ललित मावर
*मच्छर मक्खी केंचुआ,दीमक ,चींटी बिच्छू,मकड़ी सभी जीवों पर हाइकुकारों ने अपनी
लेखनी चलाई है ।कुछ उदाहरण प्रस्तुत हैं---
जाले बुनती /यादों की मकड़ियाँ /नहीं
थकती ---डॉ सुधा गुप्ता
यादों की लोई /खूंटी पे टंगे टंगे /कीड़े -कुतरी --डॉ
सुधा गुप्ता
विचार घूमें /भिन्नाती मक्खियों से /मन मिठाई ---डॉ सरस्वती
माथुर
मकडजाल /पेंटर सी मकड़ी /रेशम के तार ---डॉ सरस्वती माथुर
फूले जो फूल
/आई मधु मक्खियाँ/संझा को भूल ---पुष्पा मेहरा
चींटो से घिरा /छटपटाता केंचुआ
/कहाँ हो प्रभु ?---आदित्य प्रताप सिंह
ये स्वर्ग पुष्प /सुने राग बहार मधुमक्खी
का ---ज्योत्सना प्रदीप
लड़ते नहीं /तितली मधुमक्खी /फूल के लिए --- एस
॰डी॰तिवारी
मधु डंक हैं / मधुमक्खी रखती/ चाह मधु की ---डॉ विधा सिंहबिन्दु
खूब टॉवर लगे/मधुमक्खी बेचारी /रस्ता भूली ।---उमा घिलिडियाल
दीमक मन /यादों
की किताब को /चाटता गया ---डॉ सरस्वती माथुर
किताब खाने /दीमकों का घर हो /छत से
हुए --- डॉ सरस्वती माथुर
शक ,दीमक /रिश्तों में दूरियाँ /मकडजाल---शशि
पुरवार
नशे की लत/चाटे कुल दीपक/ बन दीमक---राजीव नामदेव राणा लिधौरी
मकडजाल /उलझाए सबको /है विकराल ---मीना अग्रवाल
गर्मी में साथी
-मच्छर से बचना /ध्यान रखना ---नूतन डीमरी गैरोला
पतों ने बुनें /अपने ही
बंधन/रेशम -कीट---डाँ अश्विनी शर्मा विष्णु
मधु मक्खियाँ/ चूस रही मिठास /खिले फूलों से --सुप्रीत कौरसिंधु
*हम सभी ने देखा है कि अनेक पर्व त्योहारों पर
पशु पक्षियों कि पूजा करना हमारी परम्पराओं का हिस्सा है बैल (नंदी )का शिव के साथ
,लक्ष्मी का हाथी के साथ चूहे का गणेश जी के, दुर्गा का सिंह सरस्वती का मोर ,हिरण
का ब्रह्म के साथव कृष्ण जी का गाय के साथ पौराणिक संबंध देखा जा सकता है
l
हमारे ऋषियों ने गौ को माता माना हैl निश्चय ही गाय मानव जातिको ईश्वर की देन
है / देखें कुछ हाइकु --
पगुरा रही /कारी धवारी गैया /नीम की छैया ...डॉ सुधा
गुप्ता
अश्रु -गौमुख /ये सीने में छुपाये /उम्र बिताए...रामेश्वर
कंबोज"हिमांशु'
गाय को मिली /रोटी अनुदान में/ कुत्ता खा गया ...डॉ सुरेन्द्र
वर्मा
बाछी रंभाये / अम्माँ गई जो खेत/चारा चुगने ---डाँ जेन्नी शबनम
इसी
तरह बैल और सांड आज भी प्राचीन काल की तरह ही हमारी ग्रामीण अर्थव्यवस्था का
महत्वपूर्ण हिस्सा हैं --
निभाए नहीं /जूते हुए बैलन्स /रिश्ते हैं सहे
---रामेश्वर कंबोज "हिमांशु "
चिड़ियाँ चीं चीं/बैल गल तालियाँ /अमृत बेला ---
प्रो॰ हरिन्द्र कौर सोही
चौराहों पर /घूमता सांड जैसा/ बेखौफ डर---रामेश्वर
कंबोज "हिमांशु
बैल गाड़ी के/ पीछे पीछे है / बैल का चलन--- राम किशोर
उपाध्याय
चौकड़ी भरे /मरखाने सांड -सा /अंधड़ चला ---रामेश्वर कंबोज "हिमांशु
"
व्याकुल गाँव /व्याकुल होरी का हैं /घायल पाँव ---रामेश्वर कंबोज 'हिमांशु
"
संगीत -भरे /बैलगाड़ी का स्वर /किसान हर्षा ---सविता अग्रवाल "सवि"
संगीत
भरे /बैलगाड़ी का स्वर /किसान हर्षा ---ऋतु शेखर ‘मधु’
पक्की सड़क/काँपता तन मन
/भूखा बछड़ा ...अरुण सिंह रूहेला
*ज्योतिष शास्त्र कि बारह राशियाँ आज भी
पशुओं के नाम पर हैं तो सूअर की पृथ्वी की रक्षा के लिए वराह अवतार के रूप में
मान्यता है l कुछ जीव नुकसान पहुंचाते है जैसे चूहा ,भेड़िया टिड्डी आदि सभी
हमारे ईकोसिस्टम की कड़ी हैं और फूड चैन द्वारा संतुलन कायम करती है प्रकृति में
! इसके अलावा श्राद्ध पक्ष में कौवे और चीलों को भोजन करवाना ,कुत्ते -बिल्ली को
रोटी डालना ,कबूतर को दाना डालना ,बंदरों को गुड चना खिलाना ,चिड़िया के लिए परिंड़ा
बनाना ,तोते पालना और चींटी को चुगगा आटा डालना ,वन सोमवार मनाना आदि परम्पराएँ
हमारे पशु प्रेम को दर्शाती हैं l
मानव कम /धन पशु अधिक /बांटे जहर ---रामेश्वर
कंबोज"हिमांशु "
"हिमांशु "जनता भेड /जन नेता भेड़िये /खड़े बाट में ---रामेश्वर
कंबोज"हिमांशु"
पावन प्यार /भूलें हैं बहनों का /पशु पुरुष ---रामेश्वर
कंबोज"हिमांशु"
कैसा वक्त है /कुत्ता खा रहा रोटी /आदमी बोटी ---डॉ सतीश पुष्करणा
निरीह राजा /वानर राज फैला /कष्ट में प्रजा --- भावना कुँवर
जिस
ज्ञान का/ न जीवन में उतार /गधे का भार ...डॉ सावित्री डागा
अंध पूजक /बलि बकरे
पोषे/बच्चे हैं भूखे ---ज्योतिर्मयी पंत
भेड है प्रजा /मनमानी करे तो/ मिलेगी
सज़ा...मीना अग्रवाल
भूखे भेड़िये /ढूंढ रहे शिकार /गरीब -मार...अशोक
दर्द
मुर्ग बंदर /मदारी बराबर /प्रजातन्त्र के ---रूपचन्द्र उपाध्याय
बंदर-
बाँट /बांटता रहा देश /मंत्री की ऐश ---धर्मेंद्र कुँवर सिंह
मन दहाड़ा /जंगल के
शेर सा / गूँज के लौटा।---डॉ सरस्वती माथुर
डरी सी आँखें /दहशत से काँपे/
बिल्लियाँ रोये...डॉ सरस्वती माथुर
दिवाली भोज /झूठे पत्तल खाते /वो और कुत्ते ---रचना
श्रीवास्तव
खेत में हवा/चौकड़ियाँ भरते/ हरे बछड़े ---आदित्य प्रसाद
सिंह
दूध है खत्म /बिल्ली हताश अब /खींसे निपोरे---नमिता
राकेश
बेचारा चूहा /शेर -बिल्ली की दोस्ती /जाल में फंसा ---नमिता राकेश
बांधो घंटियाँ /समय आ गया है /चूहा चिल्लाया ---नमिता
राकेश
बिल्लियाँ कई /बंधेगा कौन घंटी /चूहों में फूट ---नमिता
राकेश
*भारतीय पुराणो में सर्प को एक लाभप्रद
जीव माना गया है जो अपना फन फैला कर जैविकसुरक्षा प्रदान करता और नागपंचमी पर पूजा
जाता है l
कुछ हाइकु देखें--
शीत के दिनो/सर्प -सी फुफकारे /चले
हवाएँ---डॉ हरदीप कौर सिंधु
दायें न बाएँ /खड़े हैं अजगर /किधर जाएँ ---रामेश्वर
कंबोज "हिमांशु "
शंका का सर्प /फुफकारे जितना /बढ़ता दर्प ---रामेश्वर कंबोज
"हिमांशु"
चन्दन -वन /सा शापित जीवन/भुजंग -तन ---रामेश्वर कंबोज 'हिमांशु"
नाग देवता/बैठे आसन मारे/ये फुफकारें ---रामेश्वर कंबोज
हिमांशु
नाग है खुश/कि ये श्वान हमारे/खौफ़ ही बाँटें ---रामेश्वर कंबोज
"हिमांशु"
सूरज छोड़े /धूप की केंचुलियाँ /दिन साँप सा --- डॉ सरस्वती
माथुर
केंचुली छोड़ /यादों का साँप भी दूर निकला --- डॉ सरस्वती माथुर
साँप बन
के/ लिपटी रही यादें /कैसे छुड़ाऊँ ...डॉ सरस्वती माथुर
अजगर से /खुलते हैं जंगल
/लीलते जाते--- डॉ सरस्वती माथुर
यादों का सर्प /मन के जंगल में /फुफकारता ...डॉ
सरस्वती माथुर
चन्दन -तरु /सर्प अंग लिपटे /विष न चखे ---शशि पाधा
युद्ध है
सर्प/प्रदूषण है डंक /कुचलों फन ---अनिता ललित
सर्द जंगल /फुफकारती हवा /माघ
नागिन ---नीलमेंदू सागर
भीड़ से लड़ी /बलखती चलती /काली नागिन --- मनोशी
चटर्जी
चन्दन वन /लिपट रहे हैं सर्प /गंध स्वछन्द...रामस्वरूप मूंदडा
सांप
बिलों में /उससे कहीं ज्यादा /हैं आस्तीनों में ---डॉ गोपाल शर्मा
प्रेम-चन्दन/
लूट जाए न लाज /लिपटे सर्प ---सुनीता अग्रवाल
धुंधलके में /सर्प -सी इच्छाओं का
/आवागमन ---तुहिना रंजन
दर्प का सर्प /चला मन से पर/ केंचूली छोड़ ---ज्योत्सना
प्रदीप
बांबी में कम / आस्तीन में अधिक /साँप आज भी --डॉ राजकुमारी शर्मा
थकते नहीं /केंचुली बदलते /मन के साँप ---डॉ अनीता कपूर
पालें न नाग /पालोगे
तो लगेगी /देश में आग ---सुभाष लखेडा
साँपों से दोस्ती /करना न कभी /जन लो अभी
---सुभाष लखेड़ा
साँप का दूध/ गरीब को ठोकर/ देखो दुनिया---दिलबाग विर्क
धरा के सर /रेतीला अजगर/ढाता कहर ---राधेश्याम
फन फैलाये /एक काली रात लगती /विषधर सी --- नरेंद्र प्रसाद नवीन
सर्पीली पत्ती/ नरम मुलायम/ अदा दिखाये---ऋता शेखर मधु
हमारे यहाँ तो बाकायदा मेलों में पशु मेला लगाए जाने की परंपरा भी
है !ऊंट घोडा ,गधे ,बकरी आदि सभी लोकजीवन में महत्व रखते हैं l
*वैज्ञानिक रूप से भी देखें तो इन जीव जंतुओं की प्राकृतिक संतुलन
बनाए रखने में विशेष भूमिका है यही कारण है कि इनके संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़
गयी है,देखें ये हाइकु ---
कभी न छीनो /वन्य जीवों का घर/भू रही चेता---डॉ सुधा
गुप्ता
असंख्य जीव /पाते हैं संरक्षण /इनको गोद---डॉ सुधा गुप्ता यह जीव जन्तु रहेंगे तो हमारी
लोकसंस्कृति रहेगी और यदि संस्कृति को जीवित रखना है तो वन्य जीवों के संरक्षण को
हमनें अपनी दिनचर्या का अभिन्न अंग बनाना होगा lयदि हमने जीव जंतुओं की सुरक्षा
नहीं की तो हम प्रकृति की अमूल्य धरोवर से सदेव के लिए वंचित रह जाएँगे !
डॉ सरस्वती माथुर
ए -2 ,सिविल लाइंस
जयपुर -6
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हमारी भारतीय संस्कृति
सम्पूर्ण जीव जंतुओं -पशु पक्षियों और वृक्षों को मानव अस्तित्व की रक्षा के लिए
महत्वपूर्ण घटक मानती है l उनमें से भी कुछ पशु और पक्षी ऐसे हैं जिनके नहीं होने
से मानव अस्तित्व भी संकट में आ सकता है !शेर, हाथी, मोर, कुत्ता, चूहा, सर्प,
मगरमच्छ, मछली, कछुआ, कौवे से लगाकर अन्य बड़े व छोटे- छोटे जीव जन्तुओं के प्रति
हमेशा हमारा हमेशा से सम्मान भाव रहा है . जैव-विविधता के संसार के प्रति यह भाव ही
भारत का अनूठा और वैज्ञानिक दर्शन रहा है. इसका मुख्य मकसद भी यह है कि पर्यावरण और
जैव-विविधता का संरक्षण कर हमें प्रकृति के पारिस्थितिक संतुलन को बचाना है !हम शेर
सर्प ,व गाय पूजक समाज रहे हैं. इसका संदेश साफ है- यदि किसी क्षेत्र में शेर विचरण
करते हैं ,गाये घूमती है और सर्प सुरक्षित हैं तो समझिए कि समग्र पर्यावरण की
दृष्टि से वहां हालात अनुकूल हैं!
भारत के सांस्कृतिक जीवन में पशु पक्षी
प्राचीन काल से ही प्रासंगिक रहे हैंl रामायण व महाभारत काल में तो इन पशु पक्षियों
ने हमारे अवतारों और देवताओं के साथ सामाजिक सरोकारों में भी अपनी भूमिका समय समय
पर निभाई है lयही कारण है कि हमारे धार्मिक ,सामाजिक व सांस्कृतिक साहित्य में जीव
-जन्तु स्वेच्छा से टहलते नज़र आते हैं ! वैदिक साहित्य तक में जंतुओं ,पौधों ,तथा
तथा प्राकृतिक घटनाओं का वर्णन है !वेद ,रामायण ,महाभारत ,उपनिषद तथा अर्थशास्त्र
(350 बी॰ सी )आदि भारतीय ग्रन्थों से पता चलता है कि हमारे पूर्वजों को भी जीव
विज्ञान का पर्याप्त ज्ञान था lहमारे साहित्यकारोंके साथ साथ हाइकुकारों ने भी
विशेष रूप से अपनी रचनाओं में जीव जंतुओं कीट पतंगों व पक्षियों का परिवेश और ऋतु
के अनुसार विशेष रूप से उल्लेख किया है और उनके महत्व को दर्शाया है !
हाइकु
विधा का सौंद्रर्य ही यह है कि वह अत्यंत संक्षिप्त ,सीधी ,सादी ,सुकुमार और शुद्ध
होती है 17 पंक्तियों में 5+7+5 के शैली क्रम में पशु पक्षियों ,जीव जंतुओं का
बिम्ब विधान ,भावों और अनुभूतियों के चित्र व कथ्य के रूप में दिखाने में हाइकुकार
पूर्ण सफल रहें हैं lइसलिये साहित्य में अन्य विधाओं के साथ हाइकु का विशेष स्थान
है lजीव जंतुओं और पशु पक्षियों को लेकर कई हाइकुकारों ने सुंदर हाइकु लिख कर
प्रकृति और परिवेश के यथार्थ परक प्रतिकात्मक चित्र उकेरे हैं
*हाथी आधुनिक मानव
के समय का पृथ्वी पर विचरण करने वाला, सबसे विशालकाय स्तनपायी जीव है।
.मेघों के
हाथी /चिंघाड़ टकराए /अंबर कांपे ---रामेश्वर कंबोज 'हिमांशु '
इन्द्र के हाथी
/चिंघाड़े ,हारे ,थके /बहा पसीना ---राधेश्याम
घोड़ा (अश्व) मनुष्य से जुड़ा हुआ
संसार का सबसे प्राचीन स्तनपोषी प्राणी है, जिसने अज्ञात काल से मनुष्य की किसी ने
किसी रूप में सेवा की है।
उदाहरण स्वरूप कतिपय हाइकुओं को देखा जा सकता है
-
॰काठ के घोड़े /चलता तन कर /माटी सवार ---सुधा गुप्ता
अपने घोड़े /बेलगाम हो
गए /कैसी लाचारी ---डॉ सावित्री डागा
.बांध के बोरे /लाता है धो कर /हवा का घोडा
---जगदीश व्योम
सौंप तिमिर /सूर्य घोडा बेच के/ सपट सोया ---डॉ सरस्वती
माथुर
घोड़ा लापता/ लू पे चला सवार/केवल कोड़ा ---आदित्य
प्रसाद
शीत-प्रकोप /डरे छिपे रवि /सातों ही घोड़े ---डॉ क्रांति
कुमार
जैसा युग है /गधे निकल भागे /घोड़ों से आगे ---डॉ सुधेश
सूर्य के घोड़े
/धाम के विरोध में /ंअड के खड़े ---- उमेश महादोषी
दाैडता आया/धूल की गठती
ले/हवा का घोड़ा --- डाँ ।प्रियंका गुप्ता
*हाइकुकारों ने जलचर ,थलचर ,व नभचर पशु पक्षियों -जीव जंतुओं का
विषाद एवं प्रासंगिक वर्णन अपने हाइकुओं में किया है l
कुछ उदाहरण यहाँ प्रासंगिक होंगें----
गंदला पानी /रो रही
मछलियाँ /जाएँ कहाँ ---हरदीप संधू
किसी की याद /फिर फड़फड़ाई /छाती में फाख्ता
---सुधा गुप्ता
सांझ की बेला /पंछी ऋचा सुनाते /मैं हू अकेला ---रामेश्वर कंबोज
"हिमांशु"
॰मन दहाड़ा /जंगल के शेर सा /गूंज के लौटा ---डॉ सरस्वती
माथुर
फाख्ता सा उड़ा/ गुनगुनाता मन/प्रेम में डूबा ---डॉ सरस्वती
माथुर
डर के कांपे / जंगल की आग में /घिरा शावक ---भावना कुँवर
उछल रहे /
बादल खरगोश/आसमान में---डॉ सतीश दुबे
वोट जाल में / मछली सी जनता /सदा फंसी
---सुभाष नीरव
मगरमच्छ /क़ठोर और सख्त/ दिल नरम...मीरा ठाकुर
ये तमाम हाइकु
परिपक्वता और अग्रगामी दृष्टि की कसौटी पर खरे उतरते हैं l
कुछ और उदाहरण देखें
--
कुतर रहे हैं /संविधान /संसदी चूहे ---डॉ भगवतशरण अग्रवाल
नीला कालीन /चर
गए शशक /दूब के धोके---डॉ सुधा गुप्ता
कामुक बाघ /लार ही टपकाए /बाज़ न आए
---रामेश्वर कंबोज 'हिमांशु
'श्वान सूँघते/डर का कोना-कोना/पूँछ हिलाएँ ।---रामेश्वर कंबोज"
हिमांशु
गेंडे न देखे ? संसद में देख लो /मन भर के ---डॉ सावित्री
डागा
अपने घोड़े /बेलगाम हो गए /कैसी लाचारी - डॉ सावित्री डागा
दौड़ लगाए /धूप
के खरगोश /हाथ न आयें ---भावना कुँवर
वर्षा जो आई/ धूप के खरगोश/ फुदक छिपे---डॉ
भावना कुँवर
उन का गोला/ जागा ,भगा सहसा /अरे शशक---आदित्य प्रसाद सिंह
उछल
रहे/बादल खरगोश/आसमान में---डॉ सतीश दुबे
सूर्यके घोड़े /घाम के विरोध में /अड के
खड़े /---उमेश महादोषी
दौड़ता आया /धूल की गठरी ले हवा का घोडा--डॉ -प्रियंका
गुप्ता
ठिठुरी रात /कुत्ता बैठा है पास /आदमी साथ ---डॉ रमा द्धिवेदी
जूठी
पतल /कुतों को भगाता रे /बाल- कंकाल ---आदित्य प्रसाद
गर्म राख़ में /बच्चे ले
कुनमुनाई /सोयी कुतिया --- हरकीरत हीर
अब घरों में/शेर जैसे गुर्राएँ/मृग छौने
भी---डॉ गोपाल बाबू शर्मा
खटका द्धार /थरथराता पिल्ला /मांगता ताप---पुष्पा मेहरा
काँपता
पिल्ला /ढेरी में ढूंढ रहा /सूखा पुआल ---एस ॰डी॰र्तिवारी
छोटी सी बात /मरते
चूहे कभी /हाथी को लात ---सुभाष लखेडा
*चराचर रचना चतुरचतुर्भुज नें ससार में एक से एक अनोखे अनगिनत जीव रचे
हैं तभी तो पशु - पक्षी ,कीड़े मकौड़े ,भुंगे पतंगे ,जलचर ,थलचर ,नभचर आदि भांति
भांति के विचित्र जीवों से संसार भरा पड़ा है ! यदि हम प्राचीन काल में झाँकें तो एक
तस्वीर की तरह हमारीआँखों में निर्भीक विचरण करते वन प्राणी उतर आते हैं lजंगल में
किलोलें करती चिड़ियायेँ ,गिलहरियाँ ,दौड़ लगाते शावक -खरगोश ,शशक ,बादलों को निहारते
नाचते मयूर व ,चौकड़ियाँ भरते मृग ,हिरण ,कस्तूरी मृग ,रात में उडते चमकीले जुगनू
,पतंगे व उल्लू ,विभिन्न प्रकार के पंछी ,परिंदे ,रंग बिरंगी चिडियाएँ,तोते व मैना
चहकती बुलबुल ,फाख्ता ,पीक व पपीहे व मीठे स्वर में कूकती कोयल कोकिला , बाग बगीचों
में मँडराते भोंरे -तितलियाँ व मधमाखियाँ,आस पास उड़ती मच्छर -मख्खी आदि जीव जन्तु
प्रकृति के आँचल में स्वछन्द घूमते नज़र आते हैं lइन सभी जीव जंतुओं को हाइकुकारों
ने बहुत सुंदर भावों से चित्रित किया है l
*अरुणोदय के साथ ही नित उठ पखेरूओं के झुंड के झुंड सघन ऊंचे पेड़ों की फली
फूली ,हरी भरी चारों ओर फैली डालियों पर निडर इधर उधर फुदकते फाँदते कलरव कलकलित
सुललित राग भैरवी अलापते ,स्वरों के उतार चढ़ाव से सुमधुर सुर चारों सप्तक से साधते
कोलहाल से हमें जगा देते हैंl उन पक्षियों को नए रूपों और बिंबों में पिरो कर
हाइकुकारों ने नवीन दृष्टि दी है---कुछ उदाहरण देखें ---
कौन पानी पी /बोलती री
चिड़िया /इतना मीठा ...डॉ सुधा गुप्ता
चंद तिनके /चिड़िया का घोंसला बना है घर
---डॉ सुधा गुप्ता
चुप चिड़िया/लील गई है गर्मी /दाना व पानी /--रामेश्वर कंबोज "हिमांशु"
नीड़ मुखर /किलक रहे चूज़े /बहा निर्झर
---रामेश्वर कंबोज "हिमांशु"
मधुर गीत /चिड़िया ने गाकर/ धरा गुंजाई---डॉ सरस्वती
माथुर
चिरैया उडी /तेज आँधी से लड़ी /बिखरे पंख ---डॉ सरस्वती माथुर
शाम की बेला /चिड़ियों के झुंड का /रेलमपेल ---कुँवर दिनेश
सिंह
हो गया मन /एक पूरा गगन /चिड़िया मन ...डॉ शैल रस्तोगी
रवि रथ
ले /भोर आई तो पाखी /चहचहाये...डॉ सरस्वती माथुर
भोर चिड़िया/ फुदकती फिरती घर
आँगन ---डॉ सरस्वती माथुर
बड़े सवेरे /उठ जाती चिड़िया /कौन जगाता ?---रमाकांत
श्रीवास्तव
धूप चिड़िया /सिमट कर बैठी /ठंड जो आई ---रचना श्रीवास्तव
पेटू
चिड़िया /कुतर के ले गयी/ नन्ही कलियाँ ---भावना कुँअर
खोलो विहग /अब पंखों की
डोर /हो गयी भोर ---कमल कपूर
हंसों की पांत/उड़ रही आकाश/मौसम साफ---डॉ सतीश
दुबे
उजाला हुआ /चहकती चिड़िया /बजे संगीत ---ज्योत्सना शर्मा
यह जिंदगी
/पंखनुची चिड़िया /फडफड़ाती ...डॉ सावित्री डागा
हौंसला जिंदा /समंदर को लांघे
/नन्हा परिंदा ---कृष्ण वर्मा
गगन पाठ/ चले पंछी डाकिये/ भेजे संदेश / ---कमला
निर्खुपी
फुदके पक्षी /हरी हुई शाखाएँ /वर्षा जो आई ---सुदर्शन रत्नाकर
मन का
पंछी /थक गया उदेते /उतार नीचे ---सुदर्शन रत्नाकर
बकुल -पाँत/तैरे गगन -सर
/ढूँढे रहस्य-डॉ क्रान्तिकुमार
धूप चिड़िया /सिमट कर बैठी /ठंड जो आई ---रचना
श्रीवास्तव
पेटू चिड़िया /कुतर के ले गयी/ नन्ही कलियाँ ---भावना कुँवर
बकुल
-पाँत/तैरे गगन -सर /ढूँढे रहस्य---डॉ क्रान्तिकुमार
भोर की बेला /पंछी ले
अंगड़ाई /कमल खिले...रचना श्रीवास्तव
वन पाखी सी / उड उड आयें हैं /याद तुम्हारी
--डॉ जेन्नी शबनम
यादों का पंछी/डाल डाल फुदके /मन बौराये ...डॉ जेन्नी
शबनम
आस का पंछी /उड़े निर्बाध जब /क्जिले सृजन ---अनुपमा त्रिपाठी
मन एकाकी
/उड़ा है बनपाखी /तेरी नगरी ... सुशीला शिवराण
सुहानी भोर /खुले गगन तले /पाखी
चहके /---पुष्पा मेहरा
नीलपट से /श्वेत बगुले साथी /घूमने चले ---डॉ अर्पिता
अग्रवाल
साथ जो छूटा /विकट सूनापन क्रोञ्च -सा मन ---डॉ अर्पिता
अग्रवाल
हंसों का जोड़ा /करे अठखेलियाँ /जले लहरें ---योगेश्वर दयाल
चिड़िया
बोली /चूँ-चूँ-चूँ जंगल है /जलता धू -धू...जया नर्गिस
सोनचिरैया /भूखी प्यासी
लुटी- सी/सोना विदेश l ज्योतिर्मयी पंत
याद पेड़ की /चुनमुन चिरैया/फुर्र हो गयी
---मंजु मिश्रा
नन्ही चिड़िया/ अठखेलियाँ करती/ सिल्वर -ओक ...अमित
अग्रवाल
झुंड कीरों के/ लजीली शैफाली को /रीझाते डोले ...डॉ सरस्वती
माथुर
हंसवाहिनी /प्रीतधार भरती /नवलय से ---डॉ सरस्वती माथुर
सर्द रात में/मन में, मैदान में/श्वान भूँकते ---डॉ सुरेन्द्र
वर्मा
क्रोंच कराह / सुनता है हृदय/ कवि कहाँ हो?---शिव चरण सिंह चौहान
अंशुमाली
हंसों का जोड़ा /करे अठखेलियाँ /जालें लहरें
--- योगेश्वर दयाल
मन के हंस /चले लहरों संग /गाते रागिनी ---डॉ
सरस्वती माथुर
* विशेष रूप से चिड़िया ,पंछी
-परिंदे,बुलबुल,फाख्ता ,तोता मैना व गौरैया आदि को विभिन्न रूपों में बड़े ही रसमय
तरीके से उकेर कर हाइकुकारों ने अपनी कल्पना का तथ्यात्मक सा परिचय दिया है जो
जीवों के प्रति उनकी संवेदनशीलता को दर्शाता है l ...जैसे तोते को लें -
*तोता या शुक एक पक्षी है l यह कई प्रकार के रंग
में मिलता है। यह बहुत सुंदर पक्षी है और मनुष्यों की बोली की नकल बखूबी कर लेता
है।तोते झुंड में रहनेवाले पक्षी हैं, जिनके नर मादा एक जैसे होते हैं। इनकी उड़ान
नीची और लहरदार, लेकिन तेज होती है। इनका मुख्य भोजन फल और तरकारी है, जिसे ये अपने
पंजों से पकड़कर खाते रहते हैं। यह पक्षियों के लिये अनोखी बात है।तोते की बोली
कड़ी और कर्कश होती है, लेकिन इनमें से कुछ सिखाए जाने पर मनुष्यों की बोली की
हूबहू नकल कर लेते हैं।
याद तुम्हारी /मन का तोता बातें /दोहराता हो --डॉ
सावित्री डागा
उल्टा लटका /हरियल तोता भी /प्यार से देखे ---रामेश्वर कंबोज
"हिमांशु
फूले बादाम /हरे तोतों के दल /भूले आराम ---डॉ कुँवर दिनेश
सिंह
जादुई फूल /नवसुए सी शाखाएँ /कचनार की ---डॉ सरस्वती माथुर
चिड़िया तोते /ओटे छिपी मूरत /चहकी यादें ---चन्द्रबली
शर्मा
तोते ,ततैये /लड़कियाँ चटोरी /लाल इमली ---अमित अग्रवाल
* मैना चिड़िया देश के गिने-चुने परिचित
पक्षियों में से एक है और देश के सभी भागों में पाई जाती है। मैना, कौए और गौरेया
की तरह मनुष्यों से हिल-मिल कर रहती है। यह एशिया के कुछ देशों के अलावा कहीं नहीं
दिखाई देती। मैना का अंग्रेजी नाम भी मैना है। मैना ज्यादातर गांव के मैदानों,
खेतों, ताल-तलैयों के आसपास नजर आती है।देखें उदाहरण द्वारा कुछ बिम्ब ---
पहाड़ी मैना /टेरती रुक -रुक /जगाती हूक...डॉ सुधा
गुप्ता
टूटा घोंसला /बेघर हुई मैना /सहमी बैठ-डॉ सुधा
गुप्ता
शेफाली हंसी /बगिया जो महकी /मैना चहकी ---डॉ सुधा
गुप्ता
बंदिनी मैना /सोने की सलाखों में रूहे हैं गीत
---रामेश्वर कंबोज "हिमांशु
"यादें बंद थीं /पिंजड़े की मैना सी
/व्याकुल -मन ---डॉ सरस्वती माथुर
* बुलबुल,
शाखाशायी गण के पिकनोनॉटिडी कुल पक्षी का है । ये कीड़े-मकोड़े और फल फूल और
फलखानेवाले पक्षी होते हैं। ये पक्षी अपनी मीठी बोली के लिए नहीं, बल्कि लड़ने की
आदत के कारण शौकीनों द्वारा पाले जाते रहे हैं। यह उल्लेखनीय है कि केवल नर बुलबुल
ही गाता है, मादा बुलबुल नहीं गा पाती है।...
गुलाब खिला /चहकी बुलबुल/नशे ने
छुआ ---डॉ सुधा गुप्ता
शोख बोलियाँ /हवा में ठुनकती /बुलबुल की ---डॉ सतीशश्चन्द्र
पुष्करवणा
शब्द बुनती /पहाड़ी बुलबुल/गीतकार सी ---डॉ सरस्वती
माथुर
सुनाती -गान /गा रही बुलबुल /कहे श्री प्रभु ---पुष्पा मेहरा
*पपीहा
कीड़े खानेवाला एक पक्षी है जो बसंत और में वर्षा में प्रायःआम्र के पेड़ों पर
बैठकर बड़ी सुरीली ध्वनि में बोलता है।
पपीहा दिन /और चकवी रातें /काटे न काटें
---डॉ सुधा गुप्ता बोल उठता /अचानक मस्ती में /वो पपीहारा ---डॉ सुधा
गुप्ता
पिया की रट/पपीहे ने लगाई /याद जो आई /---दिलबाग विर्क
तुम हो
कहाँ / दे रहा आवाज़ है/मन पपीहा ... रमाकान्त श्रीवास्तव
जा रे पपीहा /किसकी बुझे प्यास /देश बैरागी---डॉ नूतन
डिमरी गैरोला
पपीहारा गा /और और बना रे /एकाकी मुझे ---आदित्य प्रसाद
* चिड़िया (गौरैया ) जो यूरोप और एशिया में
सामान्य रूप से हर जगह पाई जाती है। यह विश्व में सबसे अधिक पाए जाने वाले पक्षियों
में से है। लोग जहाँ भी घर बनाते हैं देर सबेर चिड़िया के जोड़े वहाँ रहने पहुँच ही
जाते हैं। र्चिड़िया,पुराने विश्व (यूरोप, एशिया और अफ्रीका) और मुख्य रूप से एशिया
के उष्णकटिबंधीय भागों में पाई जाती हैं। यह फुदकियां अपनी पूंछ को आमतौर पर ऊपर की
ओर सतर रखती हैं। यह आमतौर पर खुले जंगलों, मैदानों और उद्यानों में पाई जाती हैं।
शहरी इलाकों में गौरैया की छह तरह की प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें हाउस स्पैरो
को गौरैया कहा जाता है। यह शहरों में ज्यादा पाई जाती हैं। आज यह विश्व में सबसे
अधिक पाए जाने वाले पक्षियों में से है। हाइकुकारों ने इसकी उपस्तिथी के विभिन्न
रंगों को दर्शाया है--
गीत बुनती /गहरे सन्नाटे में /कोई गौरैया ---डॉ सुधा गुप्ता
खिड़की पर /काँप रही गौरैया /पानी में तर ---डॉ सुधा
गुप्ता
आकुल आए/ आँगन में गौरैया/ आस
लगाए/--- डॉ दिनेश सिंह
नभ में ताके /प्यासी एक गौरैया /सूखी तलैया ...डॉ
सतीशराज पुष्करणा
अकेला कहाँ/जब बीसों गौरैयाँ/आ बैठी यहाँ...रामेश्वर कंबोज
"हिमांशु "
भाई अंगना /बहन चुगे दाना /बन गौरैया ...रचना
श्रीवास्तव
रूठ ही गई/फुदकती गौरैया /बगिया सूनी ---डॉ जेन्नी
शबनम
बिखरा नीड़ /फिर चुने तिनका /नन्ही गौरैया ---सुनीता अग्रवाल
आँगन सूना /तरसे दाना पानी /आजा गौरैया--- मीरा
भारद्वाज
खिड़की पर गौरैया गुमसुम टूटा घोंसला ---महेश
कुशवंश
*बसंत ऋतु के समय आम की अमराईयों में तथा अन्यत्र वृक्षों पर बैठी
कोयल अपनी मीठी कूकसे सबका ध्यान आकर्षित कर लेती है ! वह पौ फटते ही गाने लगती है
तब प्रभात बहुत सुहावना लगता है !कोयल अपनी मीठी बोली से सबको आकर्षित कर लेती है
!इसमें कोयल की मीठी बोली के माध्यम से सदा मीठे वचन बोलने पर भी बल दिया गया है
lवहीं कौओं को भी वैज्ञानिक एक विस्मयकारक पक्षी मानते हैं । इनमें इतनी विविधता
पाई जाती है कि इस पर एक 'कागशास्त्र' की भी रचना की गई है। योग वशिष्ठ में काक
भुसुंडी की चर्चा है, रामायण में भी सीता के पांव पर कौवे के चोंच मारने का प्रसंग
आया है।कौवे अपनी चतुराई दिखाने में लाजवाब होते हैं।कोयल की मीठी तो काक की कर्कश
ध्वनि होती है वह 'काँव-काँव' करता!
*कोयल के प्रति सहज लगाव को हाइकुकारों ने
अपने शब्दों से निखारा है और मनोरम छवि शब्द उकेरे हैं उनकी कल्पना के बिम्ब यहाँ
देखें
कूकी कोयल/ चीरा -सा लगा गई /टपका लहू ---डॉ सुधा गुप्ता
मौन मुकुल /आम
पे बौर कहाँ /रोये कोयल ---हरदीप कौर संधु
कोकिल -पीर /चुभें यादों के तीर /बरसे
नीर ---रामेश्वर कंबोज "हिमांशु
कोयल बोले /कुहुक कुहुक के /टोना वन में ---
पूर्णिमा वर्मन
कोयल गाये /महके कचनार/झूमें बयार -डॉ -भावना कुँवर
जा रे
कोकिल/ दूर जा के गा ,मेरा दर्द न बढ़ा ---डॉ भावना कुँअर
खिलें हैं फूल /कोयल है चहकी /कौन है आया ---सुदर्शन
नागर
कोयल कूक /विरहन के उर /लगे ज्यूँ शूल
---डॉसरस्वतीमाथुर
कोयल कूके /अमराई हुलसे /आया है कंत---पुष्पा मेहरा
आम्र पींग पे /कोयल को झुलाए /झोंका समीर ---कृष्णा
वर्मा
तितली उडी /चुराए जो पराग /बिखेरे कहाँ
?---श्याम खरे
सिमटे वन /बांझ अमराईयाँ/कोकिल मौन ---सुनीता
अग्रवाल
अहो बसंत /अमराई में गूँजे /कोकिला स्वर ---सुनीता
अग्रवाल
फागुनी नभ/ बिचरती कोयल /बुनती गीत ---डॉ कमल किशोर
गोयल
कोयल गाये/ घायल मन मेरा/ सुन न पाये ---चंद्रबली
शर्मा
कौयल बोली /यादों के देवदार/ हिले न डुले ---चंद्रबली
शर्मा
बोले कागा /बोले कोयलिया /पाहून आए --ऋता शेखर मधु
मोर नाचते /कोयल है बाँचती /रची मेहंदी--- शशांक मिश्र
भारती
गाये मल्हार /कोयल की जो कूक/ बरसे मेघा ---अमिता कोंडल
यौवन
आया /आम्र मंजरी पर कोयल कूकी ...डॉ आरती स्मित
पीली सरसों /हरे भरे खेतों में
/मूक कोयलिया ---सीमा स्मृति
कोयल कूकी /फिर से पुरवाई /जागा मदन...अमित
अग्रवाल
घन घनेरा /कोयल ,खुशबू,छाया /जग बौराया ---अमित अग्रवाल
दुनिया मुग्ध /
गाके ठगे ममता/छली कोयल---मंजुल शर्मा
गाती कोयल/लिखे किसने बोल /दें,मिश्री घोल ---सीमा
स्मृति
आम का बौर/दीवानी कोयलिया /ऋतु का जादू ---डॉ अर्पिता
अग्रवाल
*पूर्वी एशिया में कौवों
को किस्मत से जोड़ा जाता है तो अपने यहाँ मुंडेर पर बैठकर काँव-काँव करने वाले कौवे
को संदेश-वाहक भी माना जाता है। भारत में हिन्दू धर्म में श्राद्ध पक्ष के समय कौओं
का विशेष महत्त्व है और प्रत्येक श्राद्ध के दौरान पितरों को खाना खिलाने के तौर पर
सबसे पहले कौओं को खाना खिलाया जाता है। कौए के प्रति सहज लगाव को हाइकुकारों ने
अपने शब्दों से निखारा है और मनोरम छवि शब्द उकेरे हैं उनकी कल्पना के बिम्ब यहाँ
देखें...
टिहुक लाल / फूले पलाश पर /कौओं के झुंड.... डॉ सुधा गुप्ता
पूर्वज
रूप /मुंडेर आता कव्वा /रोटी ले जाता ---डॉ सरस्वती माथुर
मुंडेर बैठ /काक घर
आँगन /संदेशा लाये ---डॉ सरस्वती माथुर
कागा बोला तो इंतज़ार की यात्रा शुरू हो गयी ---डॉ सरस्वती माथुर jl
भीगते कागा /गर्विले बादलों से /ठानते रार ---कृष्णा वर्मा
बोला है कागा /आएगी राखी आज /सोचे सैनिक ---पुष्पा मेहरा
बैठ मुंडेर /करे जो कांव- कांव /शुभ संकेत ---डॉ रमा द्वेदी
श्राद्ध का भोग /कौआ जीमने आए /शुभ कहाये ---डॉ रमा दवेदी
कागा आजा रे /ले आ संदेशवा /पी आवन का ---अनुपमा त्रिपाठी डॉ रमा
दवेदी
कोयल साथी /धर्म कर्म के नाम /कागा खैराती ---शशि पुरवार
बंजारे कागा /नीड़ बुनूँ प्यार के/ छोड़ो बैराग ---डॉ नूतन डिमरी गैरोला
बोले कागा /कुहकी कोयलिया /पाहुन आए ---ऋता शेखर मधु
लगती प्यारी/ कौवे की कांव -कांव/बोले अटारी--- रेखा रोहतगी
काग की काँ -काँ/ सुनके मन सुबह/ पसीज गया---रीता महाजन
संसद नें बैठी /कौओं की संसद /चर्चा तो होगी --- प्रियम्बरा
नित उड़ावाँ/बनेरे बैठ कागा /बुलीं तेरा नाँ---सुप्रीत कौर संधु
सूनी मुंडेर/ देहरी भी उदास /रूठा जो कागा ....आभा खरे
बोला है कागा /आएगा कोई घर /सूखा है मुंह ---महेश कुशवंश
आम्र पींग पे /कोयल को झुलाए /झोंका समीर ---कृष्णा वर्मा
कोयल कूके /अमराई हुलसे /आया है कंत---पुष्पा
मेहरा
तितली उडी /चुराए जो पराग /बिखेरे कहाँ ?---श्याम खरे
सिमटे वन /बांझ अमराईयाँ/कोकिल मौन ---सुनीता अग्रवाल
अहो बसंत
/अमराई में गूँजे /कोकिला स्वर ---सुनीता अग्रवाल
फागुनी नभ /बिचरती कोयल /बुनती गीत ---डॉ कमाल किशोर गोयनका
कोयल गाये/ घायल मन मेरा/
सुन न पाये ---चंद्रबली शर्मा
कौयल बोली /यादों के देवदार/ हिले न डुले
---चंद्रबलीशर्मा
बोले है कागा /कुहकी कोयलिया /पाहून आए ---ऋता शेखर मधु
मोर नाचते /कोयल है बाँचती /रची मेहंदी--- शशांक मिश्र
भारती
गाये मल्हार /कोयल की जो कूक/ बरसे मेघा ---अमिता कोंडल
यौवन
आया /आम्र मंजरी पर कोयल कूकी ...डॉ आरती स्मित
पीली सरसों /हरे भरे खेतों में
/मूक कोयलिया ---सीमा स्मृति
कोयल कूकी /फिर से पुरवाई /जागा मदन...अमित
अग्रवाल
घन घनेरा /कोयल ,खुशबू ,छाया /जग बौराया---अमित अग्रवाल
दुनिया मुग्ध /
गाके ठगे ममता/छली कोयल---मंजुल शर्मा
आम का बौर/दीवानी कोयलिया /ऋतु का जादू ---डॉ अर्पिता
अग्रवाल
* प्रकृति का सफाई कर्मी कहलाने वाले तथा दूर
तक दृष्टि रखने वाले गिद्ध व चील आज दूर-दूर तक भी दिखाई नहीं देते। शहरीकरण, घटते
वनस्पति, कृषि क्षेत्र में जहरीले रासायनिक दवाओं के बढ़ते प्रभाव ने प्रकृति के इस
सफाई दूत को विलुप्त होने के कगार पर ला दिया है। समय रहते यदि विलुप्त प्राय इस
पक्षी को संरक्षित नहीं किया गया तो पर्यावरण को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।इन
पर भी कुछ हाइकुकारों ने कलम चलाई है - देखें कुछ हाइकु ---
*चील उड़ने में बड़ी दक्ष होती है !यह एक सर्वभक्षी
तथा मुर्दाखोर चिड़िया है, जिससे कोई भी खाने की वस्तु नहीं बचने पाती। ढीठ तो यह
इतनी होती है कि कभी कभी बस्ती के बीच के किसी पेड़ पर ही अपना भद्दा सा घोंसला बना
लेती है।
ऊंचा आकाश /तैरती है चील सी /कल्पना मेरी ...सुषमा सिंह
*हाइकुकारों ने उल्लू और गीदड़ तक पर भी हाइकु रच दिये -
उल्लू बोल
दे /रात दे चौकीदार /जागते रहो ---कश्मीरी लाल चावला
पूरनमासी /कुकड़े ने गिंदड़
/देख शिकार --- सुप्रीत कौर संधु
*गिद्ध को पर्यावरण का अपघटक कहा जाता है। गिद्धों में दूर तक देखने की
क्षमता बहुत अधिक होती है। इसके अतिरिक्त गिद्ध प्रकृति एवं धरती के बीच संतुलन
कायम करने वाले प्राणी भी माने जाते हैं।
गिद्ध के समान चील भी तेजी से विलुप्त
हो रहें हैं , संकट के दौर से गुजर रहे हैं।
छिड़ा जो युद्ध/रोयेगी
मानवता/हँसेंगे गिद्ध---डा० जगदीश व्योम
*बाज़ एक शिकारी पक्षी है जो कि गरुड़ से छोटा होता है। इस प्रजाति में
दुनिया भर में कई जातियाँ मौजूद हैं और अलग-अलग नामों से जानी जाती हैं।वयस्क बाज़
के पंख पतले तथा मुड़े हुए होते हैं जो उसे तेज़ गति से उड़ने और उसी गति से अपनी
दिशा बदलने में सहायता करते हैं-
आँख बाज़ की /झपट चील की तो /कौन बचेगा -डॉ
सुधेश
धर दबोचा/ मासूम चिड़िया को/ क्रूर बाज़ ने...डॉ भावना कुँअर
*कबूतर पूरे विश्व में पाये जाने वाला पक्षी है। यह एक नियततापी,
उड़ने वाला पक्षी है जिसका शरीर परों से ढका रहता है। यह जन्तु मनुष्य के सम्पर्क
में रहना अधिक पसन्द करता है। अनाज, मेवे और दालें इलका मुख्य भोजन हैं। भारत में
यह सफेद और सलेटी रंग के होते हैं पुराने जमाने में इसका प्रयोग पत्र और चिट्ठीयां
भेजने के लिये किया जाता था।कुछ उदारण देखें ----
श्वेत -कपोत /शांति से ओतप्रोत /हिंसा विहीन ---ज्योत्सना
प्रदीप
उड़ा कपोत /पंख फड़फड़ाता /डाकिया हंसा ---डॉ सरस्वती माथुर
कबूतर भी
/गिरती बर्फ देख /ऊष्मा खोजते...डॉ सरस्वती माथुर
मन टहनी /यादों का कपोत था /
थक के -उड़ा---डॉ सरस्वती माथुर
आतंकी बाज़ /कर गए शिकार /कबूतर का ---नमिता राकेश
सीख आया है
कबूतर की चाल चतुर चाँद ---अश्विनी कुमार विष्णु
*मोर भारतीय संस्कृति में विशेष
स्थान रखते हैं।यह एक बहुत ही सुन्दर, आकर्षक तथा शान वाला पक्षी है। बरसात के मौसम
में काली घटा छाने पर जब यह पक्षी पंख फैला कर नाचता है तो ऐसा लगता मानो इसने
हीरों-जड़ी शाही पोशाक पहनी हुई हो। इसीलिए इसे पक्षियों का राजा कहा जाता है।
पक्षियों का राजा होने के कारण ही प्रकृति ने इसके सिर पर ताज जैसी कलंगी लगाई है।
मोर के अद्भुत सौंदर्य के कारण ही-इसे राष्ट्रीय पक्षी का दर्जा दिया गया है
!संस्कृत भाषा में यह मयूर के नाम से जाना जाता है। मोर भारत तथा श्रीलंका में
बहुतायत में पाया जाता है। मोर मूलतः वन्य पक्षी है, लेकिन भोजन की तलाश इसे कई बार
मानव-आबादी तक ले आती है।मोर प्रारंभ से ही मनुष्य के आकर्षण का केंद्र रहा है।
अनेक धार्मिक कथाओं में मोर को बहुत ऊँचा दर्जा दिया गया है। हिन्दू धर्म में मोर
को मार कर खाना महापाप समझा जाता है। भगवान कृष्ण के मुकुट में लगा मोर का पंख इस
पक्षी के महत्व को दर्शाता है। महाकवि कालिदास ने महाकाव्य ‘मेघदूत’ में मोर को
राष्ट्रीय पक्षी से भी अधिक ऊँचा स्थान दिया है। राजा-महाराजाओं को भी मोर बहुत
पसंद रहा है। मेघों को देख कर मयूर के पैरों में स्वाभाविक थिरकन आ जाती है और इनके
कोलाहल से दिशाएँ मुखरित हो जाती हैं ! मोर मोरनी का नृत्य आनंदित कर देता है वर्षा
के पूर्व विधुतकी चमक से मयूर का हृदय आशापूर्ण कहा गया है lइसकी घुति अनेकावर्णी
हैl नीलाभ से चमकता हुआ कंठ है ,स्वर तीव्र एवं मधुर तथा नर्तन शोभन है lमेघो को
देख मयूर के पैरों में स्वाभाविक थिरकन आ जाती है और इनके कोलाहल से दिशाएँ मुखरित
हो जाती हैं, हाइकु मोतियों में हाइकुकारों ने गूँथी है माला---आषाढ़ माह /उगी मन
-मोर में/ नृत्य की चाह ---कुँवर बैचन
देखें टहुके मोर /याद आ गया कौन /इतनी
भोर...डॉ भगवत शरण अग्रवाल
चारों तरफ /फैले गुलमोहर/ मोर पंख से भावना
कुँअर
जुगनुओं से/ गुलमोहर वृक्ष है /झिलमिल ---डॉ भावना
कुँअर
छाई घटा तो /मोर बांध घुंघुरू /बागों में आया ---डॉ सरस्वती
माथुर
मन विभोर /मोरनी संग झूमा/ वीवी बावरा मोर ---डॉ सरस्वती
माथुर
बादल छाए / बाँध घुंघरू /बागों में आया ---रचना
श्रीवास्तव
अलस- भोर /माँ चुगती थी फूल /नाचता मोर ---कुमुद बंसल
आँवल -छाँह /नाचता था मयूर /माँ डाले दाना ---कुमुद बंसल
नाचेगा मोर ? / बचा ही न जंगल / ये कैसी भोर ?---ज्योत्सना
शर्मा
नाचे मयूर बादलों के संतूर /सुन- सुन के ---ज्योत्सना प्रदीप
बरसे मेघ
/गूँजे दादुर -राग /नाचे मयूर---डॉ क्रान्ति कुमार
नाचे मयूर /रिमझिम के संग
/नाचे मगन ---डॉ नूतन डिमरी गैरोला
देखे झलके/झूमे मन मयूर /हुआ बावरा ---सीमा
स्मृति
झूमें बदरा /गरजते मृदंग /मन मयूर /ज्योतिर्मयी पंत
*नीलकंठ एक भारतीय पक्षी
है। इसका आकार मैना के बराबर होता है।त्रावणकोर के दक्षिण भाग को छोड़कर शेष भारत
में यह पक्षी पाया जाता है। मान्यता है कि नीलकंठ को देखने मात्र से भाग्य का
दरवाज़ा खुल जाता है। यह पवित्र पक्षी माना जाता है।दशहरा पर लोग इसका दर्शन करने
के लिए बहुत लालायित रहते हिन्दू धर्म
ग्रंथों में भगवान शिवको 'नीलकंठ' के नाम
से पुकारा जाता है।
पीकर विष/हीबनाता है कोई /नीलकंठ सा ---रूपचंद
उपाध्याय
जीना जरूरी /हो जाओ नीलकंठ /जहर पियो ---डॉ गोपाल बाबू
शर्मा*चातक एक पक्षी
है इसके सिर पर चोटीनुमा रचना होती है। भारतीय साहित्य में इसके बारे में ऐसा माना
जाता है कि यह वर्षा की पहली बूंदों को ही पीता है। अगर यह पक्षी बहुत प्यासा है और
इसे एक साफ़ पानी की झील में डाल दिया जाए तब भी यह पानी नहीं पिएगा और अपनी चोंच
बंद कर लेगा ताकि झील का पानी इसके मुहं में न जा सके।
कुछ चित्र देखें
---बदरा भर /भर -भर उड़ेल/चातक पिए... डा. रमा
द्विवेदी
चातक-व्यथा /सीप के दिल बसी /अमोल हुई ---अनिता ललित
प्रेमी चातक /टकटकी लगाए /घन-घातक---नरेंद्र प्रसाद नवीन
चातक मन /तृप्ति चाहे सजन/तुम बरसो ---नूतन डिमरी
गैरोला
शशि किरण/ बनी ओस की बूंद /चातक मन --- उपासना सिहाग *गिलहरी एक छोटी आकृति की जानवर हैl गिलहरी सामान्यतः पूरे भारतवर्ष में पाई
जाती है। ये तीन और पाँच धारियों वाली होती है। पाँच धारियों वाली गिलहरी प्रायः
सभी जगह मिल जाती है। इनकी पूँछ पर छोटे-छोटे घने बाल होते हैं। यह बहुत पारिवारिक
होती है। यह बस्तियों या खेतों के आसपास रहती है। गिलहरी के कान लंबे और नुकीले
होते हैं और दुम घने और मुलायम रोयों से ढकी होती है। गिलहरी बहुत चंचल होती है और
बड़ी सरलता से पाली जा सकती है। गिलहरी अपने पिछले पैरों के सहारे बैठकर अगले पैरों
से हाथों की तरह काम ले सकती है। पेड़ों और झाड़ियों से दूर गिलहरियाँ शायद ही कभी
देखी जाती हों।आमतौर पर गिलहरी बगीचों, घरों के छज्जों तले या पेड़ों पर बिल बनाकर
रहती है। यह जमीन पर भी चल सकती है और उतनी ही आसानी से पेड़ों पर भी दौड़ सकती है।
गिलहरी लंबे-सीधे पेड़ व खड़ी दीवारों पर भी आसानी से चढ़ जाती है। इसके पैरों में
छोटे, बारीक नाखून होते हैं, जिनके सहारे यह सतह को आसानी को पकड़ लेती
है।
गिलहरी पर कुछ हाइकु यहाँ प्रस्तुत है
उमंग- भरी /शाखों पे गिलहरी
/उडनपरी ---डॉ सुधा गुप्ता
छत पे आती /चपल गिलहरी /पूंछ नचाती --- डॉ सुधा
गुप्ता
रही कुतर /वक्त की गिलहरी /दाईने शाम के ---डॉ शैल रस्तोगी
मेघ गिरते
/गिलहरी - सी धूप /भागी -दुबकी ---डॉ शैलजा सक्सेना
गिलहरी सी /फुदकती है धूप/
पेड़ पौधों पे ---डॉ सरस्वती माथुर
नीम अंधेरा /गिलहरी सा चढ़ा /रात खा गया ---डॉ
सरस्वती माथुर
तरु गगन /उड़ान है भरती/गिलहरियाँ ---डॉ सरस्वती माथुर
वन विरान
/गिलहरियाँ खोजे /शाखों के झूले ---सुनीता अग्रवाल
करती श्रम /पाँव पर पड़ी खड़ी
मैं /नन्ही हूँ तो क्या ---प्रियम्बरा
*मृग कस्तूरी ,मृग ,हिरण प्रकृति के
सुन्दरतम जीवों में से एक हैं --- जंगलों में कुलांचते भरते हैं --- झुंड में विचरण
करते हैं ,नीलगाय भी मृग की प्रजाति है lकुछ उदाहरण देखें ...
कस्तूरी मृग
/निर्भय विचरण /मनाते मोद ---डॉ सुधा गुप्ता
मृग बौराया /रास्ता भूली नदिया/ तुम
घर में ...डॉ शैल रस्तोगी
नैन मृगी -से /छलके हैं जबसे /अमृत पिये ---रामेश्वर
कंबोज "हिमांशु"
मृग बावरा /है नाभिमें कस्तूरी /कभी न जाने ---रामेश्वर कंबोज
"हिमांशु"
भरे कुलांचे /न थके तनिक भी /मेघा हिरण ---रामेश्वर कंबोज"हिमांशु
"
भटका मन /गुलमोहर वन बन /हिरण ---भावना कुँवर
ठहरी धूप /कुलांचे भरती सी /
हिरण हुई ---डॉ सरस्वती माथुर
बहुरूपिया /स्वर्ण हिरणबन /करता छल...डॉ सरस्वती
माथुर
गए शिकारी /खोज रही हिरनी /निज हिरना ---डॉ रमाकांत
श्रीवास्तव
कस्तूरी मृग /कितना अनजान /नाभि में गंध
-- शशि पाधा
यादें जंगल /मैं भटकी हिरणी/निकलें कैसे?---रेखा रोहतगी
घना जंगल
/भोली भाली हिरणी/सौ सौ खतरे---डॉ गोपाल शर्मा
घास हरी सी है पलंग बिछौना मनवा
छौना---अशोक कुंगवानी
मचल रहा /व्योम में मृगछौना /इंद्रधनुष --नलिंनकांत
दुख
का छौना छाती की गलियों में रार मचाए ---कृष्णा वर्मा
कस्तुरी तन /दौड़े मन हिरण /जग कानन ---कमला
निर्खूपी
सोने का मृग /सुंदर -सा छलावा /दुनिया जैसा --मंजुल दिनेश
नींद
के खेत/चार गए फसल /दुख चीतल ...सुभाष लखेड़ा
पूस की रात/शर्मीली-सी -हिरणी /चूमें बदन ---राजेंद्र मोहन त्रिवेदी बंधु
*जुगनू जो रात में सितारों की तरह टिमटिमाते हैं। रात के समय जुगनू
लगातार नहीं चमकते, बल्कि एकनिश्चित अंतराल पर कुछ समय के लिए चमकते और बुझते रहते
हैं। इसी रोशनी का इस्तेमाल ये अपनभोजन तलाशने में भी करते हैं। इनमें खास बात ये
है कि मादा जुगनू के पंख नहीं होते, इसलिए वह एक जगह बैठी ही चमकती है, जबकि नर
जुगनू उड़ते हुए भी चमकते हैं। यही एक कारण है, जिससे इन्हें आसानी से पहचाना जा
सकता है।
हाइकु कारो ने जुगनुओं के मनोरम दृश्य चित्रित किए हैं-----
किसी को
याद /बांस -वन जुगनू /टिमक गया... डॉ सुधा गुप्ता
पावस रात /पिकनिक मनाते /नाचे
जुगनू ---डॉ भगवत शरण अग्रवाल
दीप जलाएँ /जुगनू से चमके /हर आंगन ---डॉ हरदीप कौर
सिंधु
नन्हा जुगनू/ पड़ा टिमटिमाए/ टूटे पंख ले---डॉ भावना
कुँअर
मनी दिवाली /बाग -बगीचों में भी /जुगनू संग ---डॉ
भावना कुँअर
रिश्तों की संध्या /जुगनू -सी चमकी /रही दमक ---कुमुद
बंसल
मिलके जले /जलके
मिटा देंगे /सारा अंधेरा ---शोभा रस्तोगी 'शोभा '
स्मृतियाँ मेरी /विरह- रजनी
में /जुगनू बनी ---शोभा रस्तोगी 'शोभा '
प्रेम -जुगुनू /भावों की बाती जला /रोशन
हुआ ---डॉ सरस्वती माथुर
रात में दिया /बन जुगनू जले /तम से लड़े ---डॉ सरस्वती
माथुर
टिमटिमाते /काले अँधेरों में भी /प्यार जुगनू ---डॉ जेन्नी शबनम
हर्ष विश्वास/ले उतरे जुगनू /घर -आँगन ---रचना श्रीवास्तव
जुगनू जले /अंधेरी अमावस /सपने पाले ---डॉ शशि पाधा
घुप्प
अंधेरा /जुगनू ने उठाया /भोर का बीडा ---सुनीता अग्रवाल
राह दिखाओ /अरे ओ
जुगनुओं /रात है काली ---डॉ सुषमा सिंह
जुगनू दीप /टिमटिम करते /स्वप्न सज़े हैं
---भावना सक्सेना
रिश्तों की संध्या /जुगनू सी चमकी /रही दमकी ---कुमुद
बंसल
झाँकती यादें /मन आँगन मेरे /जैसे जुगनू ...डॉ अनीता कपूर
मिलके जले
/जुगुनू मिटा देंगे /सारा अंधेरा ...डॉ मिथिलेश कुमारी मिश्र
प्रेरणा बड़ी /संघर्ष ही जीवन /छोटा जीवन ---सरिता
भाटिया
सूरज भागा /दूर क्षितिज पर /जुगनू जागा ---सरिता भाटिया
*रंग बिरंगे
फूलों के साथ रहने वाली तितलियाँ भी बहुत सुंदर होती है तितलियाँ कई तरह की और कई
आकार की होती हैं रंगीन तितलियाँ सूर्य के आगमन से पलायन तक निरंतर फूलों पर
मंडराती है ,इन्हे और रंगीन बनाती है lप्रकृति के सारे रंगों की तितलियाँ जाने कहाँ
से सँजो कर लाती हैं किइंद्रधनुष भी फीका पड़ता है lअलग अलग रंग लिए कहीं पलाश के
जैसे रंग की लाली ,कहीं अंबर सी नीली ,कहीं सरसों सी पीली ,फूलों को चूमती ,डाल डाल
पर उड़ती,इठला कर झूमती हाइकुकारों को मोह लेती हैं lकुछ सुंदर हाइकु द्रष्टव्य
हैं –
अनूठे रंग /तितलियाँ उड़ती /हवा के संग ---डॉ सुधा गुप्ता
रोती तितली /कंक्रीट जंगल /में /फूल कहाँ हैं ---डॉ सुधा
गुप्ता
फूल- पंखुरी /तितली के पंख सी /नाज़ुक दोस्ती ---डॉहरदीप कौर
सिंधु
शोख तितली /खूब खेलती खो खो /फूलों के संग ---रामेश्वर कंबोज
"हिमांशु"
तितली बिंधी /लम्पट गुलाब ने /खींचा आँचल ---रामेश्वर कंबोज 'हिमांशु
"
आहट आते /उड़ती तितलियाँ /मेरे मन में ---डॉ भगवत शरण अग्रवाल
बसंती मन /तितली सा डोलता /रंग घोलता ---डॉ सरस्वती माथुर
तितली
लिए /रंग बिरंगा /झण्डा /फूलों पे चली ---डॉ सरस्वती माथुर
कैटरपिलर /मन भीतर
रंगा /तितली हुआ --- डॉ सरस्वती माथुर
पुष्प जो खिले /रंगीन तितलियाँ झूला -सा झूले ---सुदर्शन नागर
थिरक रही /पुखराजी पुष्पों पे /ये तितलियाँ ---सुदेर्शन नागर
सूनी है डाली /चिड़िया न तितली /आँधी ले उडी...डॉ जेन्नी
शबनम
तितली-दल/कपोल चूम /दग्ध पलाश ---पुष्पा मेहरा
तितली उडी /चुराये जो
पराग/बिखेरे कहाँ ---श्याम खरे
तितली दल/ खोल डाले किसने /रंगों के नल ---डॉ
भावना कुँअर
नन्ही तितली /खेले आँख मिचौली/कमल संग ---डॉ भावना कुँअर
नन्ही
तितली /बुरी फंसीजाल में /नोंच ली गयी ---डॉ भावना कुँअर
तितली बन /चला फूलों के
गाँव /वो मनचला ---भावना कुँवर
खिले पलाश /तितली ओ भँवरे /मन उल्लास ---हरकीरत
हीर
रंग -बिरंगी /तितली के पंखों -सी /चुनरी सोहे ---निर्मल कपिला
सुंदर स्वप्न /तितली बन उड़े /मधुबन में---शशि पुरवार
अब
न आतीं /धूप की तितलियाँ /ब्याहीं विदेश ---शशि पाधा
तितलियों -सी /मन की
कामनाएँ /खूब छकाएँ---सुभाष नीरव
लड़ते नहीं /तितली मधुमक्खी /फूल के लिए
---एस॰डी॰तिवारी
अपने संग /सहेजती मैं रंग /तितली बन ---सीमा स्मृति
छू ही आई है /हिम्मत की तितली /ऊंचेन ख्वाब को ---अरुण कुमार
रूहेला
* हमारे साहित्य में
भँवरे को एक विशेष स्थान हासिल है।भँवरे काले रंग का उड़नेवाला एक पतंगा जो फूलों
पर मँडराता और उसका रस चूसता है। इसके छः पैर, दो पर और दो मूँछें होती हैं। वह
कलिओं का रसपान करता है और फिर उड़ जाता है। किसी एक पुष्प पर टिकना उसका स्वाभाव
नहीं है। वह रंग का काला है अतः मन का भी काला मान लिया जाता है। उसकी प्रकृति चंचल
है। बेचारा भँवरा। वो क्या करे बगिया में वह अकेला है और पुष्प ढेर सारे। सभी को
विकसित करवाना उसका कर्तव्य है सो वह एक कली , एक पुष्प का होकर नहीं रह सकता । पर
क्या करें ये कवि उस की इस मज़बूरी को नहीं समझते और उसे बेवजह खलनायक बना देते
हैं।कुछ कुछ रसिया स्वभाव में प्रीत ढूंढ लेते हैं ! मधुप फूलों के पराग से आकर्षित
हो कर मँडराता और गुंजन करता है ,अपने नाम के अनुरूप मधुपायी है उदाहरण स्वरूप कुछ
हाइकु देखे जा सकते हैं -
चुप चिड़िया/ लील गई गर्मी /दाना व पानी ---रामेश्वर कंबोज
"हिमांशु"
भौंरा मुसकाए /तितली बेखबर /जान न पाये ---रामेश्वर कंबोज
"हिमांशु"
पागल भोंरा/ दर दर भटके/बना मलंग
---पूर्णिमा वर्मन
आया है मीत/काली का मन मोहे /भ्रमर गीत ---डॉ कुँवर दिनेश
सिंह
झूमे बसंत /श्यामल भ्रमर की /चली पढ़ंत ---डॉ कुँवर दिनेश सिंह
वृक्ष लता
पे /झूमे मधुकर तो /सुमन खिले ---डॉ सरस्वती माथुर
भँवरे झूमे /कलियों के पाटल /खिलते गए ---डॉ सरस्वती माथुर
गंध के डोरे
/अंजान है मालती/भौंरे हैंछेड़े --- डॉ सरस्वती माथुर
नव प्रभात /धूप भँवरों पर /हुआ मोहित ---डॉ सरस्वती
माथुर
आत्मिक नहीं /फूल -भौंरे का प्रेम /वो रस लोभी ---रचना श्रीवास्तव
रंग देख के / भँवरे रहे दूर /कागजी फूल ---डॉ श्याम सुंदर' दीप्ति
'खिले
पलाश /तितली ओ भँवरे /मन उल्लास ---हरकीरत हीर
पा रश्मि स्पर्श /गुनगुनाया भौंरा /खुली पांखुरी ---शशि पाधा
गूँजे भ्रमर /रंग हुए प्रखर /है मधुमास ---अनुपमा त्रिपाठी
रस जगाए /रंग में डूब जाई /भँवरा गूँजे ---अनुपमा त्रिपाठी
यादों की गंध /बैचेंन हो उठा है/मधुप मन...डॉ उर्मिला
अग्रवाल
थिरक उठी /फूलों की सहलियां /भौंरों के संग--- कमला निर्खुपी
खिली
चाँदनी /भौंरे गीत सुनाएँ /झूमें पलाश ---शशि पुरवार
भँवरे गाते /महकता उपवन
/पुष्प लुभाते ---शशि पुरवार
खिले पुहुप/ गुनगुनाया भौंरा /राग बसंत ---अनुपमा
त्रिपाठी
फूलों का रंग /भँवरों की गुंजन /सब अधूरी ---शैफाली गुप्ता
भौंरे की
धुन /सुन काली महकी /फगुआ गाती ---गुंजन अग्रवाल
नवल पात /डाल डाल भँवरे/ आया
बसंत ---कल्पना रमानी
कमल खिले /भँवरे झुक झूमें/मुखड़ा चूमें ---नवीन
चतुर्वेदी
मधधुमालती /आली भरें गागर /मधु -सागर ---गुंजन अग्रवाल
*सच कहते हैं कि हाइकु
सृष्टि सौंदर्य का अनुभव कराती है lहाइकु का क्षेत्र असीम हैlहाइकुकार किसी भी
दृश्य या सरोकार पर हाइकु रच सकता है l धरती का विशाल आँगन हो ,प्रकृति का विस्तृत
रूप हो ,चाँद को एकटक निहारता चकोर हो ,वर्षा मे पातों पे रेंगती मखमली वीरबहूटी
हो,झींगुर की आवाज़ हो या टर्र टर्र करता दादुर - मेंढ़क - मछलियाँ या जलपाखी हों या
सागर किनारे की रेत पर बिखरे सीपी शंख हों ,देखें हाइकु ---
बदरा तले /मेंढक की
मंडली /जन्मों की बातें ---मनोशी चटर्जी
बरखा- रानी / ले आई नव आस /दादुर राग
---डॉ क्रांति कुमार
दादुर तेरा /बरसी जो बदली /मन मयूरा ---डॉ ज्योत्सना
शर्मा
मौसम आया / मेंढक की चुप्पी ने /अर्थ बताया ---डॉ सरस्वती माथुर
मेंढकी
सी थीं /बारिश की बूंदें /गेंद सी उछली---डॉ सरस्वती माथुर
*सीपी में मोती
वस्तुत: मोलस्क जाति के एक प्राणी द्वारा क्रिस्टलीकरण की प्रक्रिया द्वारा बनता
है।
हाइकुकारों ने उन्हे भी शब्दों में बांधा है ...कतिपय उदाहरण प्रासंगिक
होंगे --
उषा की माला /बिखरे हुए मोती /दूर्वा सहजे ---डॉ सुधा गुप्ता
जो
भीगा पल /शब्द -सीपी में ढले /हाइकु बने ---डॉ सावित्री डागा
घृणा है घोंघा
/प्रेम है मोती पा लेना /खेल मौत से --- डॉ सावित्री
डागा
बिटियां होती /फूल
पंखुरियों पे /ओस के मोती डॉ हरदीप कौर सिंध
यादों के मोती /चली पिरोती सुई /हार किसे दूँ ?---उर्मिला
कौल
मन की माला /भावों के मोती -गूँथी /छोड़े न साथ...रामेश्वर कंबोज
"हिमांशु "
मोती उलझे /बरौनियों की नोंक /बह न सके---रामेश्वर कंबोज
"हिमांशु'
धरती पर /हीरे -मोती से बड़ा /क्या है गहना
?---रामेश्वर कंबोज "हिमांशु"
यादों के मोती /मैं पिराऊँ माला में / महक जाऊँ ---रचना
श्रीवास्तव
मोती से टंके/धरा के आँचल पे / हरसिंगाार ---रचना श्रीवास्तव
सावन लाए /आँचल भर मोती ।आँगन भीगे
---रचना श्रीवास्तव
ओसकण के/ मुक्ताहार से
करें/ धरा शृंगार ...डॉ सरस्वती माथुर
कुंवारी रेत /सीपी प्रसव से /जन्मता मोती
---डॉ सरस्वती माथुर
मोती ही मोती /सागर से चुन लो /लगा डुबकी ---सुदर्शन
रत्नाकर
शंख हैं मौन /चुप हुए मृदंग /बजाए कौन ---कुमुद बंसल
ओस की बूंद /पत्तों पे मोती दिखे /हाथ में पानी ---श्याम खरे
किसने टांके /मखमली घास पे /ओस के मोती ...पुष्पा मेहरा
यादों
के मोती /समेट न सका /सीप दिल में --- सावित्री चंद्र
चाँद उतरा/सीपियों के
अंगना /सिंधु मचला ---अनिता ललित
बूंद है प्यासी /सीप में उतार के /मोती होने को
---डॉ ॰नूतन डिमरी गैरोला
ख्वाब काँच -से /आँखों पे रुके जब /हुए मोती से ---डॉ
नूतन डिमरी गैरोला
कनी रेत की /सहे सीप में पीड़ा /बनेगी मोती ---ज्योत्सना
शर्मा
रहे समीप /ज्यों मोती और सीप /खुशनसीब ---कृष्ण वर्मा
मन का सीप/पुकारे
बादल को/मोती बरसे--- कमला निर्खुपी
नैनों की सीपी/चम -चम चमके/नेह के
मोती--कमला निर्खुपी
कीमती मोती/हृदय की सीप में /तुम्हारी याद ---सारिका
मुकेश
साँस है धागा /उम्र पिरोये मोती /जीवन -माला ---अनीता
ललित
ममता रोती-/कोई पिरो दे मेरे/बिखरे मोती ---मुमताज व टी एच
खान
बूंद है प्यासी /सीप में उतार के मोती होने को ---नूतन डिमरी
गैरोला
ओस की बूंद /पत्तों पे मोती दिखे /हाथ में पानी ---श्याम खरे
न
प्रांगण /यादों के बादल से /झरते मोती ---शशि पूरवार
प्रेम वर्ण-से/ गूँथे मोती
की माला के /आज बिखरे --शैफालीगुप्ता
आखर- मोती /पिरोती चली जाऊँ/हार न
मानूँ---डॉ निशा जैन
बंद सीपीयाँ/उपजे मुक्तकण/बिखरे दर्द ---डॉ निशा जैन
नभ
की ओस /झरी मधुबन में /मोती बन के ---मंजु गुप्ता
शुभ संदेश /दमदम दमके/नयन मोती
---ऋता शेखर ‘मधु’
बिखरे मोती /टूटी मन की माला /साथ मिलाना ---सीमा
स्मृति
दोस्ती
दरिया /धोका शंख/-सीपीयाँ/रिश्ता मलिन ---विभा श्रीवास्तव
सीप मुख से /फैले रंग
-बिरेंगे/ मोती धरा पे ---डॉ अर्पिता अग्रवाल
जलपाखी से /पतझड़ के पत्ते /हवा नदी
में ---डॉ सरस्वती माथुर
शशि किरण/ बनी ओस की बूंद /चातक मन --- उपासना
सिहाग
ग़म के मोती /पिरोये आँसुओं में /बनी है माला ---सपना
माँगलिक
*भारतीय इतिहास में दर्शन और भोजन दोनों दृष्टि से शुभ और श्रेष्ठ
मानी जाने वाली मछली जलीय पर्यावरण पर आश्रित है तथा जलीय पर्यावरण को संतुलित रखने
में मछली की काफी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। यह कथन अपने में पर्याप्त बल रखता है
जिस पानी में मछली नहीं हो तो निश्चित ही उस पानी की जल जैविक स्थिति सामान्य नहीं
है। वैज्ञानिकों द्वारा मछली को बायोइंडीकेटर माना गया है। विभिन्न जलस्रोतों में
चाहे तीव्र अथवा मन्द गति से प्रवाहित होने वाली नदियां हो, चाहे प्राकृतिक झीलें,
तालाब अथवा मानव-निर्मित बड़े या मध्यम आकार के जलाशय, सभी के
पर्यावरण का यदि सूक्ष्म अध्ययन किया जाय तो निष्कर्ष निकलता है कि पानी और मछली
दोनों एक दूसरे से काफी जुड़े हुए हैं। पर्यावरण को संतुलित रखने में मछली की विशेष
उपयोगिता है।कुछ हाइकु देखें -
ठंडी कविता /मारी हुई मछली/की फटी आँख
---सावित्री डागा
तड़प रही /जल बिन मछ्ली/बिन तेरे मैं ---डॉ हरदीप कौर संधु
गंदला पानी /रो रही मछलियाँ /वे जाएँ कहाँ ---हरदीप संधु
जाल फेंकता/सूरज का
मछेरा/धूप तितली ---डॉ सरस्वती माथुर
उम्र की डोर /सौन मछरिया सी /हाथ से गिरी
---डॉ सरस्वती माथुर
धूप मछ्ली /सूर्य नें फ़ेंकाजाल/ मछुआरे सा ...डॉ सरस्वती
माथु
नभ सागर /तारों का मीन पुंज /तिरता जाए ---डॉ सरस्वती माथुर
सूखे -से ताल /जल बिन मछली /हाल-बेहाल ---शशि पाधा
न है मीन -सा /आकुल रहता
है /लिए पिपासा ---अनुपमा त्रिपाठी
हृदय-झील /तैरती आकांक्षाएँ/मीन मानिंद
---महिमा मंजु
तडपी मीन /विचलित होकर /सूखा पोखर ...अशोक दर्द
नभ में पंछी /सागर -तन मीन /कहाँ बसूँ मैं ?---डॉ ऋतु
पल्लवी
जग भीतर /व्याकुल व आतुर /मछ्ली मन ---घनश्याम
नाथ कच्छावा
*चकोर चंद्र किरणों को पीने वाला मदमस्त पक्षी है ,इसके नेत्रों को मद से
मतवाला कहा गया है समशीतोष्णकटिबांधों में वर्षा काल के बाद नए हरे हरे वनो में इस
पक्षी के जोड़े मिलते हैं सूडोल शिर ,बड़ी बड़ी रतनार आँखों वाले चकोर की एक एक गति से
स्फूर्ति टपकती है कुछ उदाहरण यहाँ प्रस्तुत हैं--
ख्वाब उगा है /आँखों के नभ पर
/नींद चकोर ---डॉ सरस्वती माथुर
चाँद को देख /अकुलाया चकोर /प्यार गहन ---डॉ
सरस्वती माथुर
चकोर मन/ चाँदनी नदिया से/ प्यास बुझाये---डॉ सरस्वती माथुर
*बीरबहूटी एक खूबसूरत मखमली सा कीट है जो बारिश के बाद
धोरों पर नजर आता है ! इसे सावन की डोकरी , इंद्रवधू और बूढ़ी माई भी कहते हैं
..
कुशल पूछे/ वीर बहूटी भेज/ मेघ धरा की ---डॉ दयाकृष्ण विजयवेर्गीय
'विजय'
हरी घास पे/वीरबहूटी चली/ दुल्हन लगे ---डा० सरस्वती माथुर...
*झींगुर (क्रिकेट) एक कीट है । यह रात में झीं
की आवाज निकालने के लिये जाना जाता है।जबकि पतंगा शमा पर न्योछावर हो जाता है
...उदारणों में हाइकुकारों ने सुंदर बिम्ब उतारे हैं ...
मन पतंगा /भावों की
रोशनी पे /पंख फैलाये ---डॉ सरस्वती माथुर
फूल तिरंगे /जुगनू तितलियाँ /उड़े पतंगे - सरिता भाटिया
झींगुर छेड़े /अशोक टहनी पे/ रात के राग... डॉ
सरस्वती माथुर
वर्षा की साँझ /बजाते शहनाई /छिपे झींगुर ---रमाकान्त
श्रीवास्तव
अंधेरी रात /झींगुर चौकीदार सीटी बजाते ---सुभाष नीरव
आग बरसे/
जंगल में सन्नाटा/झींगुर गाए ---ललित मावर
*मच्छर मक्खी केंचुआ,दीमक ,चींटी बिच्छू,मकड़ी सभी जीवों पर हाइकुकारों ने अपनी
लेखनी चलाई है ।कुछ उदाहरण प्रस्तुत हैं---
जाले बुनती /यादों की मकड़ियाँ /नहीं
थकती ---डॉ सुधा गुप्ता
यादों की लोई /खूंटी पे टंगे टंगे /कीड़े -कुतरी --डॉ
सुधा गुप्ता
विचार घूमें /भिन्नाती मक्खियों से /मन मिठाई ---डॉ सरस्वती
माथुर
मकडजाल /पेंटर सी मकड़ी /रेशम के तार ---डॉ सरस्वती माथुर
फूले जो फूल
/आई मधु मक्खियाँ/संझा को भूल ---पुष्पा मेहरा
चींटो से घिरा /छटपटाता केंचुआ
/कहाँ हो प्रभु ?---आदित्य प्रताप सिंह
ये स्वर्ग पुष्प /सुने राग बहार मधुमक्खी
का ---ज्योत्सना प्रदीप
लड़ते नहीं /तितली मधुमक्खी /फूल के लिए --- एस
॰डी॰तिवारी
मधु डंक हैं / मधुमक्खी रखती/ चाह मधु की ---डॉ विधा सिंहबिन्दु
खूब टॉवर लगे/मधुमक्खी बेचारी /रस्ता भूली ।---उमा घिलिडियाल
दीमक मन /यादों
की किताब को /चाटता गया ---डॉ सरस्वती माथुर
किताब खाने /दीमकों का घर हो /छत से
हुए --- डॉ सरस्वती माथुर
शक ,दीमक /रिश्तों में दूरियाँ /मकडजाल---शशि
पुरवार
नशे की लत/चाटे कुल दीपक/ बन दीमक---राजीव नामदेव राणा लिधौरी
मकडजाल /उलझाए सबको /है विकराल ---मीना अग्रवाल
गर्मी में साथी
-मच्छर से बचना /ध्यान रखना ---नूतन डीमरी गैरोला
पतों ने बुनें /अपने ही
बंधन/रेशम -कीट---डाँ अश्विनी शर्मा विष्णु
मधु मक्खियाँ/ चूस रही मिठास /खिले फूलों से --सुप्रीत कौरसिंधु
*हम सभी ने देखा है कि अनेक पर्व त्योहारों पर
पशु पक्षियों कि पूजा करना हमारी परम्पराओं का हिस्सा है बैल (नंदी )का शिव के साथ
,लक्ष्मी का हाथी के साथ चूहे का गणेश जी के, दुर्गा का सिंह सरस्वती का मोर ,हिरण
का ब्रह्म के साथव कृष्ण जी का गाय के साथ पौराणिक संबंध देखा जा सकता है
l
हमारे ऋषियों ने गौ को माता माना हैl निश्चय ही गाय मानव जातिको ईश्वर की देन
है / देखें कुछ हाइकु --
पगुरा रही /कारी धवारी गैया /नीम की छैया ...डॉ सुधा
गुप्ता
अश्रु -गौमुख /ये सीने में छुपाये /उम्र बिताए...रामेश्वर
कंबोज"हिमांशु'
गाय को मिली /रोटी अनुदान में/ कुत्ता खा गया ...डॉ सुरेन्द्र
वर्मा
बाछी रंभाये / अम्माँ गई जो खेत/चारा चुगने ---डाँ जेन्नी शबनम
इसी
तरह बैल और सांड आज भी प्राचीन काल की तरह ही हमारी ग्रामीण अर्थव्यवस्था का
महत्वपूर्ण हिस्सा हैं --
निभाए नहीं /जूते हुए बैलन्स /रिश्ते हैं सहे
---रामेश्वर कंबोज "हिमांशु "
चिड़ियाँ चीं चीं/बैल गल तालियाँ /अमृत बेला ---
प्रो॰ हरिन्द्र कौर सोही
चौराहों पर /घूमता सांड जैसा/ बेखौफ डर---रामेश्वर
कंबोज "हिमांशु
बैल गाड़ी के/ पीछे पीछे है / बैल का चलन--- राम किशोर
उपाध्याय
चौकड़ी भरे /मरखाने सांड -सा /अंधड़ चला ---रामेश्वर कंबोज "हिमांशु
"
व्याकुल गाँव /व्याकुल होरी का हैं /घायल पाँव ---रामेश्वर कंबोज 'हिमांशु
"
संगीत -भरे /बैलगाड़ी का स्वर /किसान हर्षा ---सविता अग्रवाल "सवि"
संगीत
भरे /बैलगाड़ी का स्वर /किसान हर्षा ---ऋतु शेखर ‘मधु’
पक्की सड़क/काँपता तन मन
/भूखा बछड़ा ...अरुण सिंह रूहेला
*ज्योतिष शास्त्र कि बारह राशियाँ आज भी
पशुओं के नाम पर हैं तो सूअर की पृथ्वी की रक्षा के लिए वराह अवतार के रूप में
मान्यता है l कुछ जीव नुकसान पहुंचाते है जैसे चूहा ,भेड़िया टिड्डी आदि सभी
हमारे ईकोसिस्टम की कड़ी हैं और फूड चैन द्वारा संतुलन कायम करती है प्रकृति में
! इसके अलावा श्राद्ध पक्ष में कौवे और चीलों को भोजन करवाना ,कुत्ते -बिल्ली को
रोटी डालना ,कबूतर को दाना डालना ,बंदरों को गुड चना खिलाना ,चिड़िया के लिए परिंड़ा
बनाना ,तोते पालना और चींटी को चुगगा आटा डालना ,वन सोमवार मनाना आदि परम्पराएँ
हमारे पशु प्रेम को दर्शाती हैं l
मानव कम /धन पशु अधिक /बांटे जहर ---रामेश्वर
कंबोज"हिमांशु "
"हिमांशु "जनता भेड /जन नेता भेड़िये /खड़े बाट में ---रामेश्वर
कंबोज"हिमांशु"
पावन प्यार /भूलें हैं बहनों का /पशु पुरुष ---रामेश्वर
कंबोज"हिमांशु"
कैसा वक्त है /कुत्ता खा रहा रोटी /आदमी बोटी ---डॉ सतीश पुष्करणा
निरीह राजा /वानर राज फैला /कष्ट में प्रजा --- भावना कुँवर
जिस
ज्ञान का/ न जीवन में उतार /गधे का भार ...डॉ सावित्री डागा
अंध पूजक /बलि बकरे
पोषे/बच्चे हैं भूखे ---ज्योतिर्मयी पंत
भेड है प्रजा /मनमानी करे तो/ मिलेगी
सज़ा...मीना अग्रवाल
भूखे भेड़िये /ढूंढ रहे शिकार /गरीब -मार...अशोक
दर्द
मुर्ग बंदर /मदारी बराबर /प्रजातन्त्र के ---रूपचन्द्र उपाध्याय
बंदर-
बाँट /बांटता रहा देश /मंत्री की ऐश ---धर्मेंद्र कुँवर सिंह
मन दहाड़ा /जंगल के
शेर सा / गूँज के लौटा।---डॉ सरस्वती माथुर
डरी सी आँखें /दहशत से काँपे/
बिल्लियाँ रोये...डॉ सरस्वती माथुर
दिवाली भोज /झूठे पत्तल खाते /वो और कुत्ते ---रचना
श्रीवास्तव
खेत में हवा/चौकड़ियाँ भरते/ हरे बछड़े ---आदित्य प्रसाद
सिंह
दूध है खत्म /बिल्ली हताश अब /खींसे निपोरे---नमिता
राकेश
बेचारा चूहा /शेर -बिल्ली की दोस्ती /जाल में फंसा ---नमिता राकेश
बांधो घंटियाँ /समय आ गया है /चूहा चिल्लाया ---नमिता
राकेश
बिल्लियाँ कई /बंधेगा कौन घंटी /चूहों में फूट ---नमिता
राकेश
*भारतीय पुराणो में सर्प को एक लाभप्रद
जीव माना गया है जो अपना फन फैला कर जैविकसुरक्षा प्रदान करता और नागपंचमी पर पूजा
जाता है l
कुछ हाइकु देखें--
शीत के दिनो/सर्प -सी फुफकारे /चले
हवाएँ---डॉ हरदीप कौर सिंधु
दायें न बाएँ /खड़े हैं अजगर /किधर जाएँ ---रामेश्वर
कंबोज "हिमांशु "
शंका का सर्प /फुफकारे जितना /बढ़ता दर्प ---रामेश्वर कंबोज
"हिमांशु"
चन्दन -वन /सा शापित जीवन/भुजंग -तन ---रामेश्वर कंबोज 'हिमांशु"
नाग देवता/बैठे आसन मारे/ये फुफकारें ---रामेश्वर कंबोज
हिमांशु
नाग है खुश/कि ये श्वान हमारे/खौफ़ ही बाँटें ---रामेश्वर कंबोज
"हिमांशु"
सूरज छोड़े /धूप की केंचुलियाँ /दिन साँप सा --- डॉ सरस्वती
माथुर
केंचुली छोड़ /यादों का साँप भी दूर निकला --- डॉ सरस्वती माथुर
साँप बन
के/ लिपटी रही यादें /कैसे छुड़ाऊँ ...डॉ सरस्वती माथुर
अजगर से /खुलते हैं जंगल
/लीलते जाते--- डॉ सरस्वती माथुर
यादों का सर्प /मन के जंगल में /फुफकारता ...डॉ
सरस्वती माथुर
चन्दन -तरु /सर्प अंग लिपटे /विष न चखे ---शशि पाधा
युद्ध है
सर्प/प्रदूषण है डंक /कुचलों फन ---अनिता ललित
सर्द जंगल /फुफकारती हवा /माघ
नागिन ---नीलमेंदू सागर
भीड़ से लड़ी /बलखती चलती /काली नागिन --- मनोशी
चटर्जी
चन्दन वन /लिपट रहे हैं सर्प /गंध स्वछन्द...रामस्वरूप मूंदडा
सांप
बिलों में /उससे कहीं ज्यादा /हैं आस्तीनों में ---डॉ गोपाल शर्मा
प्रेम-चन्दन/
लूट जाए न लाज /लिपटे सर्प ---सुनीता अग्रवाल
धुंधलके में /सर्प -सी इच्छाओं का
/आवागमन ---तुहिना रंजन
दर्प का सर्प /चला मन से पर/ केंचूली छोड़ ---ज्योत्सना
प्रदीप
बांबी में कम / आस्तीन में अधिक /साँप आज भी --डॉ राजकुमारी शर्मा
थकते नहीं /केंचुली बदलते /मन के साँप ---डॉ अनीता कपूर
पालें न नाग /पालोगे
तो लगेगी /देश में आग ---सुभाष लखेडा
साँपों से दोस्ती /करना न कभी /जन लो अभी
---सुभाष लखेड़ा
साँप का दूध/ गरीब को ठोकर/ देखो दुनिया---दिलबाग विर्क
धरा के सर /रेतीला अजगर/ढाता कहर ---राधेश्याम
फन फैलाये /एक काली रात लगती /विषधर सी --- नरेंद्र प्रसाद नवीन
सर्पीली पत्ती/ नरम मुलायम/ अदा दिखाये---ऋता शेखर मधु
हमारे यहाँ तो बाकायदा मेलों में पशु मेला लगाए जाने की परंपरा भी
है !ऊंट घोडा ,गधे ,बकरी आदि सभी लोकजीवन में महत्व रखते हैं l
*वैज्ञानिक रूप से भी देखें तो इन जीव जंतुओं की प्राकृतिक संतुलन
बनाए रखने में विशेष भूमिका है यही कारण है कि इनके संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़
गयी है,देखें ये हाइकु ---
कभी न छीनो /वन्य जीवों का घर/भू रही चेता---डॉ सुधा
गुप्ता
असंख्य जीव /पाते हैं संरक्षण /इनको गोद---डॉ सुधा गुप्ता यह जीव जन्तु रहेंगे तो हमारी
लोकसंस्कृति रहेगी और यदि संस्कृति को जीवित रखना है तो वन्य जीवों के संरक्षण को
हमनें अपनी दिनचर्या का अभिन्न अंग बनाना होगा lयदि हमने जीव जंतुओं की सुरक्षा
नहीं की तो हम प्रकृति की अमूल्य धरोवर से सदेव के लिए वंचित रह जाएँगे !
डॉ सरस्वती माथुर
ए -2 ,सिविल लाइंस
जयपुर -6
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हमारी भारतीय संस्कृति
सम्पूर्ण जीव जंतुओं -पशु पक्षियों और वृक्षों को मानव अस्तित्व की रक्षा के लिए
महत्वपूर्ण घटक मानती है l उनमें से भी कुछ पशु और पक्षी ऐसे हैं जिनके नहीं होने
से मानव अस्तित्व भी संकट में आ सकता है !शेर, हाथी, मोर, कुत्ता, चूहा, सर्प,
मगरमच्छ, मछली, कछुआ, कौवे से लगाकर अन्य बड़े व छोटे- छोटे जीव जन्तुओं के प्रति
हमेशा हमारा हमेशा से सम्मान भाव रहा है . जैव-विविधता के संसार के प्रति यह भाव ही
भारत का अनूठा और वैज्ञानिक दर्शन रहा है. इसका मुख्य मकसद भी यह है कि पर्यावरण और
जैव-विविधता का संरक्षण कर हमें प्रकृति के पारिस्थितिक संतुलन को बचाना है !हम शेर
सर्प ,व गाय पूजक समाज रहे हैं. इसका संदेश साफ है- यदि किसी क्षेत्र में शेर विचरण
करते हैं ,गाये घूमती है और सर्प सुरक्षित हैं तो समझिए कि समग्र पर्यावरण की
दृष्टि से वहां हालात अनुकूल हैं!
भारत के सांस्कृतिक जीवन में पशु पक्षी
प्राचीन काल से ही प्रासंगिक रहे हैंl रामायण व महाभारत काल में तो इन पशु पक्षियों
ने हमारे अवतारों और देवताओं के साथ सामाजिक सरोकारों में भी अपनी भूमिका समय समय
पर निभाई है lयही कारण है कि हमारे धार्मिक ,सामाजिक व सांस्कृतिक साहित्य में जीव
-जन्तु स्वेच्छा से टहलते नज़र आते हैं ! वैदिक साहित्य तक में जंतुओं ,पौधों ,तथा
तथा प्राकृतिक घटनाओं का वर्णन है !वेद ,रामायण ,महाभारत ,उपनिषद तथा अर्थशास्त्र
(350 बी॰ सी )आदि भारतीय ग्रन्थों से पता चलता है कि हमारे पूर्वजों को भी जीव
विज्ञान का पर्याप्त ज्ञान था lहमारे साहित्यकारोंके साथ साथ हाइकुकारों ने भी
विशेष रूप से अपनी रचनाओं में जीव जंतुओं कीट पतंगों व पक्षियों का परिवेश और ऋतु
के अनुसार विशेष रूप से उल्लेख किया है और उनके महत्व को दर्शाया है !
हाइकु
विधा का सौंद्रर्य ही यह है कि वह अत्यंत संक्षिप्त ,सीधी ,सादी ,सुकुमार और शुद्ध
होती है 17 पंक्तियों में 5+7+5 के शैली क्रम में पशु पक्षियों ,जीव जंतुओं का
बिम्ब विधान ,भावों और अनुभूतियों के चित्र व कथ्य के रूप में दिखाने में हाइकुकार
पूर्ण सफल रहें हैं lइसलिये साहित्य में अन्य विधाओं के साथ हाइकु का विशेष स्थान
है lजीव जंतुओं और पशु पक्षियों को लेकर कई हाइकुकारों ने सुंदर हाइकु लिख कर
प्रकृति और परिवेश के यथार्थ परक प्रतिकात्मक चित्र उकेरे हैं
*हाथी आधुनिक मानव
के समय का पृथ्वी पर विचरण करने वाला, सबसे विशालकाय स्तनपायी जीव है।
.मेघों के
हाथी /चिंघाड़ टकराए /अंबर कांपे ---रामेश्वर कंबोज 'हिमांशु '
इन्द्र के हाथी
/चिंघाड़े ,हारे ,थके /बहा पसीना ---राधेश्याम
घोड़ा (अश्व) मनुष्य से जुड़ा हुआ
संसार का सबसे प्राचीन स्तनपोषी प्राणी है, जिसने अज्ञात काल से मनुष्य की किसी ने
किसी रूप में सेवा की है।
उदाहरण स्वरूप कतिपय हाइकुओं को देखा जा सकता है
-
॰काठ के घोड़े /चलता तन कर /माटी सवार ---सुधा गुप्ता
अपने घोड़े /बेलगाम हो
गए /कैसी लाचारी ---डॉ सावित्री डागा
.बांध के बोरे /लाता है धो कर /हवा का घोडा
---जगदीश व्योम
सौंप तिमिर /सूर्य घोडा बेच के/ सपट सोया ---डॉ सरस्वती
माथुर
घोड़ा लापता/ लू पे चला सवार/केवल कोड़ा ---आदित्य
प्रसाद
शीत-प्रकोप /डरे छिपे रवि /सातों ही घोड़े ---डॉ क्रांति
कुमार
जैसा युग है /गधे निकल भागे /घोड़ों से आगे ---डॉ सुधेश
सूर्य के घोड़े
/धाम के विरोध में /ंअड के खड़े ---- उमेश महादोषी
दाैडता आया/धूल की गठती
ले/हवा का घोड़ा --- डाँ ।प्रियंका गुप्ता
*हाइकुकारों ने जलचर ,थलचर ,व नभचर पशु पक्षियों -जीव जंतुओं का
विषाद एवं प्रासंगिक वर्णन अपने हाइकुओं में किया है l
कुछ उदाहरण यहाँ प्रासंगिक होंगें----
गंदला पानी /रो रही
मछलियाँ /जाएँ कहाँ ---हरदीप संधू
किसी की याद /फिर फड़फड़ाई /छाती में फाख्ता
---सुधा गुप्ता
सांझ की बेला /पंछी ऋचा सुनाते /मैं हू अकेला ---रामेश्वर कंबोज
"हिमांशु"
॰मन दहाड़ा /जंगल के शेर सा /गूंज के लौटा ---डॉ सरस्वती
माथुर
फाख्ता सा उड़ा/ गुनगुनाता मन/प्रेम में डूबा ---डॉ सरस्वती
माथुर
डर के कांपे / जंगल की आग में /घिरा शावक ---भावना कुँवर
उछल रहे /
बादल खरगोश/आसमान में---डॉ सतीश दुबे
वोट जाल में / मछली सी जनता /सदा फंसी
---सुभाष नीरव
मगरमच्छ /क़ठोर और सख्त/ दिल नरम...मीरा ठाकुर
ये तमाम हाइकु
परिपक्वता और अग्रगामी दृष्टि की कसौटी पर खरे उतरते हैं l
कुछ और उदाहरण देखें
--
कुतर रहे हैं /संविधान /संसदी चूहे ---डॉ भगवतशरण अग्रवाल
नीला कालीन /चर
गए शशक /दूब के धोके---डॉ सुधा गुप्ता
कामुक बाघ /लार ही टपकाए /बाज़ न आए
---रामेश्वर कंबोज 'हिमांशु
'श्वान सूँघते/डर का कोना-कोना/पूँछ हिलाएँ ।---रामेश्वर कंबोज"
हिमांशु
गेंडे न देखे ? संसद में देख लो /मन भर के ---डॉ सावित्री
डागा
अपने घोड़े /बेलगाम हो गए /कैसी लाचारी - डॉ सावित्री डागा
दौड़ लगाए /धूप
के खरगोश /हाथ न आयें ---भावना कुँवर
वर्षा जो आई/ धूप के खरगोश/ फुदक छिपे---डॉ
भावना कुँवर
उन का गोला/ जागा ,भगा सहसा /अरे शशक---आदित्य प्रसाद सिंह
उछल
रहे/बादल खरगोश/आसमान में---डॉ सतीश दुबे
सूर्यके घोड़े /घाम के विरोध में /अड के
खड़े /---उमेश महादोषी
दौड़ता आया /धूल की गठरी ले हवा का घोडा--डॉ -प्रियंका
गुप्ता
ठिठुरी रात /कुत्ता बैठा है पास /आदमी साथ ---डॉ रमा द्धिवेदी
जूठी
पतल /कुतों को भगाता रे /बाल- कंकाल ---आदित्य प्रसाद
गर्म राख़ में /बच्चे ले
कुनमुनाई /सोयी कुतिया --- हरकीरत हीर
अब घरों में/शेर जैसे गुर्राएँ/मृग छौने
भी---डॉ गोपाल बाबू शर्मा
खटका द्धार /थरथराता पिल्ला /मांगता ताप---पुष्पा मेहरा
काँपता
पिल्ला /ढेरी में ढूंढ रहा /सूखा पुआल ---एस ॰डी॰र्तिवारी
छोटी सी बात /मरते
चूहे कभी /हाथी को लात ---सुभाष लखेडा
*चराचर रचना चतुरचतुर्भुज नें ससार में एक से एक अनोखे अनगिनत जीव रचे
हैं तभी तो पशु - पक्षी ,कीड़े मकौड़े ,भुंगे पतंगे ,जलचर ,थलचर ,नभचर आदि भांति
भांति के विचित्र जीवों से संसार भरा पड़ा है ! यदि हम प्राचीन काल में झाँकें तो एक
तस्वीर की तरह हमारीआँखों में निर्भीक विचरण करते वन प्राणी उतर आते हैं lजंगल में
किलोलें करती चिड़ियायेँ ,गिलहरियाँ ,दौड़ लगाते शावक -खरगोश ,शशक ,बादलों को निहारते
नाचते मयूर व ,चौकड़ियाँ भरते मृग ,हिरण ,कस्तूरी मृग ,रात में उडते चमकीले जुगनू
,पतंगे व उल्लू ,विभिन्न प्रकार के पंछी ,परिंदे ,रंग बिरंगी चिडियाएँ,तोते व मैना
चहकती बुलबुल ,फाख्ता ,पीक व पपीहे व मीठे स्वर में कूकती कोयल कोकिला , बाग बगीचों
में मँडराते भोंरे -तितलियाँ व मधमाखियाँ,आस पास उड़ती मच्छर -मख्खी आदि जीव जन्तु
प्रकृति के आँचल में स्वछन्द घूमते नज़र आते हैं lइन सभी जीव जंतुओं को हाइकुकारों
ने बहुत सुंदर भावों से चित्रित किया है l
*अरुणोदय के साथ ही नित उठ पखेरूओं के झुंड के झुंड सघन ऊंचे पेड़ों की फली
फूली ,हरी भरी चारों ओर फैली डालियों पर निडर इधर उधर फुदकते फाँदते कलरव कलकलित
सुललित राग भैरवी अलापते ,स्वरों के उतार चढ़ाव से सुमधुर सुर चारों सप्तक से साधते
कोलहाल से हमें जगा देते हैंl उन पक्षियों को नए रूपों और बिंबों में पिरो कर
हाइकुकारों ने नवीन दृष्टि दी है---कुछ उदाहरण देखें ---
कौन पानी पी /बोलती री
चिड़िया /इतना मीठा ...डॉ सुधा गुप्ता
चंद तिनके /चिड़िया का घोंसला बना है घर
---डॉ सुधा गुप्ता
चुप चिड़िया/लील गई है गर्मी /दाना व पानी /--रामेश्वर कंबोज "हिमांशु"
नीड़ मुखर /किलक रहे चूज़े /बहा निर्झर
---रामेश्वर कंबोज "हिमांशु"
मधुर गीत /चिड़िया ने गाकर/ धरा गुंजाई---डॉ सरस्वती
माथुर
चिरैया उडी /तेज आँधी से लड़ी /बिखरे पंख ---डॉ सरस्वती माथुर
शाम की बेला /चिड़ियों के झुंड का /रेलमपेल ---कुँवर दिनेश
सिंह
हो गया मन /एक पूरा गगन /चिड़िया मन ...डॉ शैल रस्तोगी
रवि रथ
ले /भोर आई तो पाखी /चहचहाये...डॉ सरस्वती माथुर
भोर चिड़िया/ फुदकती फिरती घर
आँगन ---डॉ सरस्वती माथुर
बड़े सवेरे /उठ जाती चिड़िया /कौन जगाता ?---रमाकांत
श्रीवास्तव
धूप चिड़िया /सिमट कर बैठी /ठंड जो आई ---रचना श्रीवास्तव
पेटू
चिड़िया /कुतर के ले गयी/ नन्ही कलियाँ ---भावना कुँअर
खोलो विहग /अब पंखों की
डोर /हो गयी भोर ---कमल कपूर
हंसों की पांत/उड़ रही आकाश/मौसम साफ---डॉ सतीश
दुबे
उजाला हुआ /चहकती चिड़िया /बजे संगीत ---ज्योत्सना शर्मा
यह जिंदगी
/पंखनुची चिड़िया /फडफड़ाती ...डॉ सावित्री डागा
हौंसला जिंदा /समंदर को लांघे
/नन्हा परिंदा ---कृष्ण वर्मा
गगन पाठ/ चले पंछी डाकिये/ भेजे संदेश / ---कमला
निर्खुपी
फुदके पक्षी /हरी हुई शाखाएँ /वर्षा जो आई ---सुदर्शन रत्नाकर
मन का
पंछी /थक गया उदेते /उतार नीचे ---सुदर्शन रत्नाकर
बकुल -पाँत/तैरे गगन -सर
/ढूँढे रहस्य-डॉ क्रान्तिकुमार
धूप चिड़िया /सिमट कर बैठी /ठंड जो आई ---रचना
श्रीवास्तव
पेटू चिड़िया /कुतर के ले गयी/ नन्ही कलियाँ ---भावना कुँवर
बकुल
-पाँत/तैरे गगन -सर /ढूँढे रहस्य---डॉ क्रान्तिकुमार
भोर की बेला /पंछी ले
अंगड़ाई /कमल खिले...रचना श्रीवास्तव
वन पाखी सी / उड उड आयें हैं /याद तुम्हारी
--डॉ जेन्नी शबनम
यादों का पंछी/डाल डाल फुदके /मन बौराये ...डॉ जेन्नी
शबनम
आस का पंछी /उड़े निर्बाध जब /क्जिले सृजन ---अनुपमा त्रिपाठी
मन एकाकी
/उड़ा है बनपाखी /तेरी नगरी ... सुशीला शिवराण
सुहानी भोर /खुले गगन तले /पाखी
चहके /---पुष्पा मेहरा
नीलपट से /श्वेत बगुले साथी /घूमने चले ---डॉ अर्पिता
अग्रवाल
साथ जो छूटा /विकट सूनापन क्रोञ्च -सा मन ---डॉ अर्पिता
अग्रवाल
हंसों का जोड़ा /करे अठखेलियाँ /जले लहरें ---योगेश्वर दयाल
चिड़िया
बोली /चूँ-चूँ-चूँ जंगल है /जलता धू -धू...जया नर्गिस
सोनचिरैया /भूखी प्यासी
लुटी- सी/सोना विदेश l ज्योतिर्मयी पंत
याद पेड़ की /चुनमुन चिरैया/फुर्र हो गयी
---मंजु मिश्रा
नन्ही चिड़िया/ अठखेलियाँ करती/ सिल्वर -ओक ...अमित
अग्रवाल
झुंड कीरों के/ लजीली शैफाली को /रीझाते डोले ...डॉ सरस्वती
माथुर
हंसवाहिनी /प्रीतधार भरती /नवलय से ---डॉ सरस्वती माथुर
सर्द रात में/मन में, मैदान में/श्वान भूँकते ---डॉ सुरेन्द्र
वर्मा
क्रोंच कराह / सुनता है हृदय/ कवि कहाँ हो?---शिव चरण सिंह चौहान
अंशुमाली
हंसों का जोड़ा /करे अठखेलियाँ /जालें लहरें
--- योगेश्वर दयाल
मन के हंस /चले लहरों संग /गाते रागिनी ---डॉ
सरस्वती माथुर
* विशेष रूप से चिड़िया ,पंछी
-परिंदे,बुलबुल,फाख्ता ,तोता मैना व गौरैया आदि को विभिन्न रूपों में बड़े ही रसमय
तरीके से उकेर कर हाइकुकारों ने अपनी कल्पना का तथ्यात्मक सा परिचय दिया है जो
जीवों के प्रति उनकी संवेदनशीलता को दर्शाता है l ...जैसे तोते को लें -
*तोता या शुक एक पक्षी है l यह कई प्रकार के रंग
में मिलता है। यह बहुत सुंदर पक्षी है और मनुष्यों की बोली की नकल बखूबी कर लेता
है।तोते झुंड में रहनेवाले पक्षी हैं, जिनके नर मादा एक जैसे होते हैं। इनकी उड़ान
नीची और लहरदार, लेकिन तेज होती है। इनका मुख्य भोजन फल और तरकारी है, जिसे ये अपने
पंजों से पकड़कर खाते रहते हैं। यह पक्षियों के लिये अनोखी बात है।तोते की बोली
कड़ी और कर्कश होती है, लेकिन इनमें से कुछ सिखाए जाने पर मनुष्यों की बोली की
हूबहू नकल कर लेते हैं।
याद तुम्हारी /मन का तोता बातें /दोहराता हो --डॉ
सावित्री डागा
उल्टा लटका /हरियल तोता भी /प्यार से देखे ---रामेश्वर कंबोज
"हिमांशु
फूले बादाम /हरे तोतों के दल /भूले आराम ---डॉ कुँवर दिनेश
सिंह
जादुई फूल /नवसुए सी शाखाएँ /कचनार की ---डॉ सरस्वती माथुर
चिड़िया तोते /ओटे छिपी मूरत /चहकी यादें ---चन्द्रबली
शर्मा
तोते ,ततैये /लड़कियाँ चटोरी /लाल इमली ---अमित अग्रवाल
* मैना चिड़िया देश के गिने-चुने परिचित
पक्षियों में से एक है और देश के सभी भागों में पाई जाती है। मैना, कौए और गौरेया
की तरह मनुष्यों से हिल-मिल कर रहती है। यह एशिया के कुछ देशों के अलावा कहीं नहीं
दिखाई देती। मैना का अंग्रेजी नाम भी मैना है। मैना ज्यादातर गांव के मैदानों,
खेतों, ताल-तलैयों के आसपास नजर आती है।देखें उदाहरण द्वारा कुछ बिम्ब ---
पहाड़ी मैना /टेरती रुक -रुक /जगाती हूक...डॉ सुधा
गुप्ता
टूटा घोंसला /बेघर हुई मैना /सहमी बैठ-डॉ सुधा
गुप्ता
शेफाली हंसी /बगिया जो महकी /मैना चहकी ---डॉ सुधा
गुप्ता
बंदिनी मैना /सोने की सलाखों में रूहे हैं गीत
---रामेश्वर कंबोज "हिमांशु
"यादें बंद थीं /पिंजड़े की मैना सी
/व्याकुल -मन ---डॉ सरस्वती माथुर
* बुलबुल,
शाखाशायी गण के पिकनोनॉटिडी कुल पक्षी का है । ये कीड़े-मकोड़े और फल फूल और
फलखानेवाले पक्षी होते हैं। ये पक्षी अपनी मीठी बोली के लिए नहीं, बल्कि लड़ने की
आदत के कारण शौकीनों द्वारा पाले जाते रहे हैं। यह उल्लेखनीय है कि केवल नर बुलबुल
ही गाता है, मादा बुलबुल नहीं गा पाती है।...
गुलाब खिला /चहकी बुलबुल/नशे ने
छुआ ---डॉ सुधा गुप्ता
शोख बोलियाँ /हवा में ठुनकती /बुलबुल की ---डॉ सतीशश्चन्द्र
पुष्करवणा
शब्द बुनती /पहाड़ी बुलबुल/गीतकार सी ---डॉ सरस्वती
माथुर
सुनाती -गान /गा रही बुलबुल /कहे श्री प्रभु ---पुष्पा मेहरा
*पपीहा
कीड़े खानेवाला एक पक्षी है जो बसंत और में वर्षा में प्रायःआम्र के पेड़ों पर
बैठकर बड़ी सुरीली ध्वनि में बोलता है।
पपीहा दिन /और चकवी रातें /काटे न काटें
---डॉ सुधा गुप्ता बोल उठता /अचानक मस्ती में /वो पपीहारा ---डॉ सुधा
गुप्ता
पिया की रट/पपीहे ने लगाई /याद जो आई /---दिलबाग विर्क
तुम हो
कहाँ / दे रहा आवाज़ है/मन पपीहा ... रमाकान्त श्रीवास्तव
जा रे पपीहा /किसकी बुझे प्यास /देश बैरागी---डॉ नूतन
डिमरी गैरोला
पपीहारा गा /और और बना रे /एकाकी मुझे ---आदित्य प्रसाद
* चिड़िया (गौरैया ) जो यूरोप और एशिया में
सामान्य रूप से हर जगह पाई जाती है। यह विश्व में सबसे अधिक पाए जाने वाले पक्षियों
में से है। लोग जहाँ भी घर बनाते हैं देर सबेर चिड़िया के जोड़े वहाँ रहने पहुँच ही
जाते हैं। र्चिड़िया,पुराने विश्व (यूरोप, एशिया और अफ्रीका) और मुख्य रूप से एशिया
के उष्णकटिबंधीय भागों में पाई जाती हैं। यह फुदकियां अपनी पूंछ को आमतौर पर ऊपर की
ओर सतर रखती हैं। यह आमतौर पर खुले जंगलों, मैदानों और उद्यानों में पाई जाती हैं।
शहरी इलाकों में गौरैया की छह तरह की प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें हाउस स्पैरो
को गौरैया कहा जाता है। यह शहरों में ज्यादा पाई जाती हैं। आज यह विश्व में सबसे
अधिक पाए जाने वाले पक्षियों में से है। हाइकुकारों ने इसकी उपस्तिथी के विभिन्न
रंगों को दर्शाया है--
गीत बुनती /गहरे सन्नाटे में /कोई गौरैया ---डॉ सुधा गुप्ता
खिड़की पर /काँप रही गौरैया /पानी में तर ---डॉ सुधा
गुप्ता
आकुल आए/ आँगन में गौरैया/ आस
लगाए/--- डॉ दिनेश सिंह
नभ में ताके /प्यासी एक गौरैया /सूखी तलैया ...डॉ
सतीशराज पुष्करणा
अकेला कहाँ/जब बीसों गौरैयाँ/आ बैठी यहाँ...रामेश्वर कंबोज
"हिमांशु "
भाई अंगना /बहन चुगे दाना /बन गौरैया ...रचना
श्रीवास्तव
रूठ ही गई/फुदकती गौरैया /बगिया सूनी ---डॉ जेन्नी
शबनम
बिखरा नीड़ /फिर चुने तिनका /नन्ही गौरैया ---सुनीता अग्रवाल
आँगन सूना /तरसे दाना पानी /आजा गौरैया--- मीरा
भारद्वाज
खिड़की पर गौरैया गुमसुम टूटा घोंसला ---महेश
कुशवंश
*बसंत ऋतु के समय आम की अमराईयों में तथा अन्यत्र वृक्षों पर बैठी
कोयल अपनी मीठी कूकसे सबका ध्यान आकर्षित कर लेती है ! वह पौ फटते ही गाने लगती है
तब प्रभात बहुत सुहावना लगता है !कोयल अपनी मीठी बोली से सबको आकर्षित कर लेती है
!इसमें कोयल की मीठी बोली के माध्यम से सदा मीठे वचन बोलने पर भी बल दिया गया है
lवहीं कौओं को भी वैज्ञानिक एक विस्मयकारक पक्षी मानते हैं । इनमें इतनी विविधता
पाई जाती है कि इस पर एक 'कागशास्त्र' की भी रचना की गई है। योग वशिष्ठ में काक
भुसुंडी की चर्चा है, रामायण में भी सीता के पांव पर कौवे के चोंच मारने का प्रसंग
आया है।कौवे अपनी चतुराई दिखाने में लाजवाब होते हैं।कोयल की मीठी तो काक की कर्कश
ध्वनि होती है वह 'काँव-काँव' करता!
*कोयल के प्रति सहज लगाव को हाइकुकारों ने
अपने शब्दों से निखारा है और मनोरम छवि शब्द उकेरे हैं उनकी कल्पना के बिम्ब यहाँ
देखें
कूकी कोयल/ चीरा -सा लगा गई /टपका लहू ---डॉ सुधा गुप्ता
मौन मुकुल /आम
पे बौर कहाँ /रोये कोयल ---हरदीप कौर संधु
कोकिल -पीर /चुभें यादों के तीर /बरसे
नीर ---रामेश्वर कंबोज "हिमांशु
कोयल बोले /कुहुक कुहुक के /टोना वन में ---
पूर्णिमा वर्मन
कोयल गाये /महके कचनार/झूमें बयार -डॉ -भावना कुँवर
जा रे
कोकिल/ दूर जा के गा ,मेरा दर्द न बढ़ा ---डॉ भावना कुँअर
खिलें हैं फूल /कोयल है चहकी /कौन है आया ---सुदर्शन
नागर
कोयल कूक /विरहन के उर /लगे ज्यूँ शूल
---डॉसरस्वतीमाथुर
कोयल कूके /अमराई हुलसे /आया है कंत---पुष्पा मेहरा
आम्र पींग पे /कोयल को झुलाए /झोंका समीर ---कृष्णा
वर्मा
तितली उडी /चुराए जो पराग /बिखेरे कहाँ
?---श्याम खरे
सिमटे वन /बांझ अमराईयाँ/कोकिल मौन ---सुनीता
अग्रवाल
अहो बसंत /अमराई में गूँजे /कोकिला स्वर ---सुनीता
अग्रवाल
फागुनी नभ/ बिचरती कोयल /बुनती गीत ---डॉ कमल किशोर
गोयल
कोयल गाये/ घायल मन मेरा/ सुन न पाये ---चंद्रबली
शर्मा
कौयल बोली /यादों के देवदार/ हिले न डुले ---चंद्रबली
शर्मा
बोले कागा /बोले कोयलिया /पाहून आए --ऋता शेखर मधु
मोर नाचते /कोयल है बाँचती /रची मेहंदी--- शशांक मिश्र
भारती
गाये मल्हार /कोयल की जो कूक/ बरसे मेघा ---अमिता कोंडल
यौवन
आया /आम्र मंजरी पर कोयल कूकी ...डॉ आरती स्मित
पीली सरसों /हरे भरे खेतों में
/मूक कोयलिया ---सीमा स्मृति
कोयल कूकी /फिर से पुरवाई /जागा मदन...अमित
अग्रवाल
घन घनेरा /कोयल ,खुशबू,छाया /जग बौराया ---अमित अग्रवाल
दुनिया मुग्ध /
गाके ठगे ममता/छली कोयल---मंजुल शर्मा
गाती कोयल/लिखे किसने बोल /दें,मिश्री घोल ---सीमा
स्मृति
आम का बौर/दीवानी कोयलिया /ऋतु का जादू ---डॉ अर्पिता
अग्रवाल
*पूर्वी एशिया में कौवों
को किस्मत से जोड़ा जाता है तो अपने यहाँ मुंडेर पर बैठकर काँव-काँव करने वाले कौवे
को संदेश-वाहक भी माना जाता है। भारत में हिन्दू धर्म में श्राद्ध पक्ष के समय कौओं
का विशेष महत्त्व है और प्रत्येक श्राद्ध के दौरान पितरों को खाना खिलाने के तौर पर
सबसे पहले कौओं को खाना खिलाया जाता है। कौए के प्रति सहज लगाव को हाइकुकारों ने
अपने शब्दों से निखारा है और मनोरम छवि शब्द उकेरे हैं उनकी कल्पना के बिम्ब यहाँ
देखें...
टिहुक लाल / फूले पलाश पर /कौओं के झुंड.... डॉ सुधा गुप्ता
पूर्वज
रूप /मुंडेर आता कव्वा /रोटी ले जाता ---डॉ सरस्वती माथुर
मुंडेर बैठ /काक घर
आँगन /संदेशा लाये ---डॉ सरस्वती माथुर
कागा बोला तो इंतज़ार की यात्रा शुरू हो गयी ---डॉ सरस्वती माथुर jl
भीगते कागा /गर्विले बादलों से /ठानते रार ---कृष्णा वर्मा
बोला है कागा /आएगी राखी आज /सोचे सैनिक ---पुष्पा मेहरा
बैठ मुंडेर /करे जो कांव- कांव /शुभ संकेत ---डॉ रमा द्वेदी
श्राद्ध का भोग /कौआ जीमने आए /शुभ कहाये ---डॉ रमा दवेदी
कागा आजा रे /ले आ संदेशवा /पी आवन का ---अनुपमा त्रिपाठी डॉ रमा
दवेदी
कोयल साथी /धर्म कर्म के नाम /कागा खैराती ---शशि पुरवार
बंजारे कागा /नीड़ बुनूँ प्यार के/ छोड़ो बैराग ---डॉ नूतन डिमरी गैरोला
बोले कागा /कुहकी कोयलिया /पाहुन आए ---ऋता शेखर मधु
लगती प्यारी/ कौवे की कांव -कांव/बोले अटारी--- रेखा रोहतगी
काग की काँ -काँ/ सुनके मन सुबह/ पसीज गया---रीता महाजन
संसद नें बैठी /कौओं की संसद /चर्चा तो होगी --- प्रियम्बरा
नित उड़ावाँ/बनेरे बैठ कागा /बुलीं तेरा नाँ---सुप्रीत कौर संधु
सूनी मुंडेर/ देहरी भी उदास /रूठा जो कागा ....आभा खरे
बोला है कागा /आएगा कोई घर /सूखा है मुंह ---महेश कुशवंश
आम्र पींग पे /कोयल को झुलाए /झोंका समीर ---कृष्णा वर्मा
कोयल कूके /अमराई हुलसे /आया है कंत---पुष्पा
मेहरा
तितली उडी /चुराए जो पराग /बिखेरे कहाँ ?---श्याम खरे
सिमटे वन /बांझ अमराईयाँ/कोकिल मौन ---सुनीता अग्रवाल
अहो बसंत
/अमराई में गूँजे /कोकिला स्वर ---सुनीता अग्रवाल
फागुनी नभ /बिचरती कोयल /बुनती गीत ---डॉ कमाल किशोर गोयनका
कोयल गाये/ घायल मन मेरा/
सुन न पाये ---चंद्रबली शर्मा
कौयल बोली /यादों के देवदार/ हिले न डुले
---चंद्रबलीशर्मा
बोले है कागा /कुहकी कोयलिया /पाहून आए ---ऋता शेखर मधु
मोर नाचते /कोयल है बाँचती /रची मेहंदी--- शशांक मिश्र
भारती
गाये मल्हार /कोयल की जो कूक/ बरसे मेघा ---अमिता कोंडल
यौवन
आया /आम्र मंजरी पर कोयल कूकी ...डॉ आरती स्मित
पीली सरसों /हरे भरे खेतों में
/मूक कोयलिया ---सीमा स्मृति
कोयल कूकी /फिर से पुरवाई /जागा मदन...अमित
अग्रवाल
घन घनेरा /कोयल ,खुशबू ,छाया /जग बौराया---अमित अग्रवाल
दुनिया मुग्ध /
गाके ठगे ममता/छली कोयल---मंजुल शर्मा
आम का बौर/दीवानी कोयलिया /ऋतु का जादू ---डॉ अर्पिता
अग्रवाल
* प्रकृति का सफाई कर्मी कहलाने वाले तथा दूर
तक दृष्टि रखने वाले गिद्ध व चील आज दूर-दूर तक भी दिखाई नहीं देते। शहरीकरण, घटते
वनस्पति, कृषि क्षेत्र में जहरीले रासायनिक दवाओं के बढ़ते प्रभाव ने प्रकृति के इस
सफाई दूत को विलुप्त होने के कगार पर ला दिया है। समय रहते यदि विलुप्त प्राय इस
पक्षी को संरक्षित नहीं किया गया तो पर्यावरण को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।इन
पर भी कुछ हाइकुकारों ने कलम चलाई है - देखें कुछ हाइकु ---
*चील उड़ने में बड़ी दक्ष होती है !यह एक सर्वभक्षी
तथा मुर्दाखोर चिड़िया है, जिससे कोई भी खाने की वस्तु नहीं बचने पाती। ढीठ तो यह
इतनी होती है कि कभी कभी बस्ती के बीच के किसी पेड़ पर ही अपना भद्दा सा घोंसला बना
लेती है।
ऊंचा आकाश /तैरती है चील सी /कल्पना मेरी ...सुषमा सिंह
*हाइकुकारों ने उल्लू और गीदड़ तक पर भी हाइकु रच दिये -
उल्लू बोल
दे /रात दे चौकीदार /जागते रहो ---कश्मीरी लाल चावला
पूरनमासी /कुकड़े ने गिंदड़
/देख शिकार --- सुप्रीत कौर संधु
*गिद्ध को पर्यावरण का अपघटक कहा जाता है। गिद्धों में दूर तक देखने की
क्षमता बहुत अधिक होती है। इसके अतिरिक्त गिद्ध प्रकृति एवं धरती के बीच संतुलन
कायम करने वाले प्राणी भी माने जाते हैं।
गिद्ध के समान चील भी तेजी से विलुप्त
हो रहें हैं , संकट के दौर से गुजर रहे हैं।
छिड़ा जो युद्ध/रोयेगी
मानवता/हँसेंगे गिद्ध---डा० जगदीश व्योम
*बाज़ एक शिकारी पक्षी है जो कि गरुड़ से छोटा होता है। इस प्रजाति में
दुनिया भर में कई जातियाँ मौजूद हैं और अलग-अलग नामों से जानी जाती हैं।वयस्क बाज़
के पंख पतले तथा मुड़े हुए होते हैं जो उसे तेज़ गति से उड़ने और उसी गति से अपनी
दिशा बदलने में सहायता करते हैं-
आँख बाज़ की /झपट चील की तो /कौन बचेगा -डॉ
सुधेश
धर दबोचा/ मासूम चिड़िया को/ क्रूर बाज़ ने...डॉ भावना कुँअर
*कबूतर पूरे विश्व में पाये जाने वाला पक्षी है। यह एक नियततापी,
उड़ने वाला पक्षी है जिसका शरीर परों से ढका रहता है। यह जन्तु मनुष्य के सम्पर्क
में रहना अधिक पसन्द करता है। अनाज, मेवे और दालें इलका मुख्य भोजन हैं। भारत में
यह सफेद और सलेटी रंग के होते हैं पुराने जमाने में इसका प्रयोग पत्र और चिट्ठीयां
भेजने के लिये किया जाता था।कुछ उदारण देखें ----
श्वेत -कपोत /शांति से ओतप्रोत /हिंसा विहीन ---ज्योत्सना
प्रदीप
उड़ा कपोत /पंख फड़फड़ाता /डाकिया हंसा ---डॉ सरस्वती माथुर
कबूतर भी
/गिरती बर्फ देख /ऊष्मा खोजते...डॉ सरस्वती माथुर
मन टहनी /यादों का कपोत था /
थक के -उड़ा---डॉ सरस्वती माथुर
आतंकी बाज़ /कर गए शिकार /कबूतर का ---नमिता राकेश
सीख आया है
कबूतर की चाल चतुर चाँद ---अश्विनी कुमार विष्णु
*मोर भारतीय संस्कृति में विशेष
स्थान रखते हैं।यह एक बहुत ही सुन्दर, आकर्षक तथा शान वाला पक्षी है। बरसात के मौसम
में काली घटा छाने पर जब यह पक्षी पंख फैला कर नाचता है तो ऐसा लगता मानो इसने
हीरों-जड़ी शाही पोशाक पहनी हुई हो। इसीलिए इसे पक्षियों का राजा कहा जाता है।
पक्षियों का राजा होने के कारण ही प्रकृति ने इसके सिर पर ताज जैसी कलंगी लगाई है।
मोर के अद्भुत सौंदर्य के कारण ही-इसे राष्ट्रीय पक्षी का दर्जा दिया गया है
!संस्कृत भाषा में यह मयूर के नाम से जाना जाता है। मोर भारत तथा श्रीलंका में
बहुतायत में पाया जाता है। मोर मूलतः वन्य पक्षी है, लेकिन भोजन की तलाश इसे कई बार
मानव-आबादी तक ले आती है।मोर प्रारंभ से ही मनुष्य के आकर्षण का केंद्र रहा है।
अनेक धार्मिक कथाओं में मोर को बहुत ऊँचा दर्जा दिया गया है। हिन्दू धर्म में मोर
को मार कर खाना महापाप समझा जाता है। भगवान कृष्ण के मुकुट में लगा मोर का पंख इस
पक्षी के महत्व को दर्शाता है। महाकवि कालिदास ने महाकाव्य ‘मेघदूत’ में मोर को
राष्ट्रीय पक्षी से भी अधिक ऊँचा स्थान दिया है। राजा-महाराजाओं को भी मोर बहुत
पसंद रहा है। मेघों को देख कर मयूर के पैरों में स्वाभाविक थिरकन आ जाती है और इनके
कोलाहल से दिशाएँ मुखरित हो जाती हैं ! मोर मोरनी का नृत्य आनंदित कर देता है वर्षा
के पूर्व विधुतकी चमक से मयूर का हृदय आशापूर्ण कहा गया है lइसकी घुति अनेकावर्णी
हैl नीलाभ से चमकता हुआ कंठ है ,स्वर तीव्र एवं मधुर तथा नर्तन शोभन है lमेघो को
देख मयूर के पैरों में स्वाभाविक थिरकन आ जाती है और इनके कोलाहल से दिशाएँ मुखरित
हो जाती हैं, हाइकु मोतियों में हाइकुकारों ने गूँथी है माला---आषाढ़ माह /उगी मन
-मोर में/ नृत्य की चाह ---कुँवर बैचन
देखें टहुके मोर /याद आ गया कौन /इतनी
भोर...डॉ भगवत शरण अग्रवाल
चारों तरफ /फैले गुलमोहर/ मोर पंख से भावना
कुँअर
जुगनुओं से/ गुलमोहर वृक्ष है /झिलमिल ---डॉ भावना
कुँअर
छाई घटा तो /मोर बांध घुंघुरू /बागों में आया ---डॉ सरस्वती
माथुर
मन विभोर /मोरनी संग झूमा/ वीवी बावरा मोर ---डॉ सरस्वती
माथुर
बादल छाए / बाँध घुंघरू /बागों में आया ---रचना
श्रीवास्तव
अलस- भोर /माँ चुगती थी फूल /नाचता मोर ---कुमुद बंसल
आँवल -छाँह /नाचता था मयूर /माँ डाले दाना ---कुमुद बंसल
नाचेगा मोर ? / बचा ही न जंगल / ये कैसी भोर ?---ज्योत्सना
शर्मा
नाचे मयूर बादलों के संतूर /सुन- सुन के ---ज्योत्सना प्रदीप
बरसे मेघ
/गूँजे दादुर -राग /नाचे मयूर---डॉ क्रान्ति कुमार
नाचे मयूर /रिमझिम के संग
/नाचे मगन ---डॉ नूतन डिमरी गैरोला
देखे झलके/झूमे मन मयूर /हुआ बावरा ---सीमा
स्मृति
झूमें बदरा /गरजते मृदंग /मन मयूर /ज्योतिर्मयी पंत
*नीलकंठ एक भारतीय पक्षी
है। इसका आकार मैना के बराबर होता है।त्रावणकोर के दक्षिण भाग को छोड़कर शेष भारत
में यह पक्षी पाया जाता है। मान्यता है कि नीलकंठ को देखने मात्र से भाग्य का
दरवाज़ा खुल जाता है। यह पवित्र पक्षी माना जाता है।दशहरा पर लोग इसका दर्शन करने
के लिए बहुत लालायित रहते हिन्दू धर्म
ग्रंथों में भगवान शिवको 'नीलकंठ' के नाम
से पुकारा जाता है।
पीकर विष/हीबनाता है कोई /नीलकंठ सा ---रूपचंद
उपाध्याय
जीना जरूरी /हो जाओ नीलकंठ /जहर पियो ---डॉ गोपाल बाबू
शर्मा*चातक एक पक्षी
है इसके सिर पर चोटीनुमा रचना होती है। भारतीय साहित्य में इसके बारे में ऐसा माना
जाता है कि यह वर्षा की पहली बूंदों को ही पीता है। अगर यह पक्षी बहुत प्यासा है और
इसे एक साफ़ पानी की झील में डाल दिया जाए तब भी यह पानी नहीं पिएगा और अपनी चोंच
बंद कर लेगा ताकि झील का पानी इसके मुहं में न जा सके।
कुछ चित्र देखें
---बदरा भर /भर -भर उड़ेल/चातक पिए... डा. रमा
द्विवेदी
चातक-व्यथा /सीप के दिल बसी /अमोल हुई ---अनिता ललित
प्रेमी चातक /टकटकी लगाए /घन-घातक---नरेंद्र प्रसाद नवीन
चातक मन /तृप्ति चाहे सजन/तुम बरसो ---नूतन डिमरी
गैरोला
शशि किरण/ बनी ओस की बूंद /चातक मन --- उपासना सिहाग *गिलहरी एक छोटी आकृति की जानवर हैl गिलहरी सामान्यतः पूरे भारतवर्ष में पाई
जाती है। ये तीन और पाँच धारियों वाली होती है। पाँच धारियों वाली गिलहरी प्रायः
सभी जगह मिल जाती है। इनकी पूँछ पर छोटे-छोटे घने बाल होते हैं। यह बहुत पारिवारिक
होती है। यह बस्तियों या खेतों के आसपास रहती है। गिलहरी के कान लंबे और नुकीले
होते हैं और दुम घने और मुलायम रोयों से ढकी होती है। गिलहरी बहुत चंचल होती है और
बड़ी सरलता से पाली जा सकती है। गिलहरी अपने पिछले पैरों के सहारे बैठकर अगले पैरों
से हाथों की तरह काम ले सकती है। पेड़ों और झाड़ियों से दूर गिलहरियाँ शायद ही कभी
देखी जाती हों।आमतौर पर गिलहरी बगीचों, घरों के छज्जों तले या पेड़ों पर बिल बनाकर
रहती है। यह जमीन पर भी चल सकती है और उतनी ही आसानी से पेड़ों पर भी दौड़ सकती है।
गिलहरी लंबे-सीधे पेड़ व खड़ी दीवारों पर भी आसानी से चढ़ जाती है। इसके पैरों में
छोटे, बारीक नाखून होते हैं, जिनके सहारे यह सतह को आसानी को पकड़ लेती
है।
गिलहरी पर कुछ हाइकु यहाँ प्रस्तुत है
उमंग- भरी /शाखों पे गिलहरी
/उडनपरी ---डॉ सुधा गुप्ता
छत पे आती /चपल गिलहरी /पूंछ नचाती --- डॉ सुधा
गुप्ता
रही कुतर /वक्त की गिलहरी /दाईने शाम के ---डॉ शैल रस्तोगी
मेघ गिरते
/गिलहरी - सी धूप /भागी -दुबकी ---डॉ शैलजा सक्सेना
गिलहरी सी /फुदकती है धूप/
पेड़ पौधों पे ---डॉ सरस्वती माथुर
नीम अंधेरा /गिलहरी सा चढ़ा /रात खा गया ---डॉ
सरस्वती माथुर
तरु गगन /उड़ान है भरती/गिलहरियाँ ---डॉ सरस्वती माथुर
वन विरान
/गिलहरियाँ खोजे /शाखों के झूले ---सुनीता अग्रवाल
करती श्रम /पाँव पर पड़ी खड़ी
मैं /नन्ही हूँ तो क्या ---प्रियम्बरा
*मृग कस्तूरी ,मृग ,हिरण प्रकृति के
सुन्दरतम जीवों में से एक हैं --- जंगलों में कुलांचते भरते हैं --- झुंड में विचरण
करते हैं ,नीलगाय भी मृग की प्रजाति है lकुछ उदाहरण देखें ...
कस्तूरी मृग
/निर्भय विचरण /मनाते मोद ---डॉ सुधा गुप्ता
मृग बौराया /रास्ता भूली नदिया/ तुम
घर में ...डॉ शैल रस्तोगी
नैन मृगी -से /छलके हैं जबसे /अमृत पिये ---रामेश्वर
कंबोज "हिमांशु"
मृग बावरा /है नाभिमें कस्तूरी /कभी न जाने ---रामेश्वर कंबोज
"हिमांशु"
भरे कुलांचे /न थके तनिक भी /मेघा हिरण ---रामेश्वर कंबोज"हिमांशु
"
भटका मन /गुलमोहर वन बन /हिरण ---भावना कुँवर
ठहरी धूप /कुलांचे भरती सी /
हिरण हुई ---डॉ सरस्वती माथुर
बहुरूपिया /स्वर्ण हिरणबन /करता छल...डॉ सरस्वती
माथुर
गए शिकारी /खोज रही हिरनी /निज हिरना ---डॉ रमाकांत
श्रीवास्तव
कस्तूरी मृग /कितना अनजान /नाभि में गंध
-- शशि पाधा
यादें जंगल /मैं भटकी हिरणी/निकलें कैसे?---रेखा रोहतगी
घना जंगल
/भोली भाली हिरणी/सौ सौ खतरे---डॉ गोपाल शर्मा
घास हरी सी है पलंग बिछौना मनवा
छौना---अशोक कुंगवानी
मचल रहा /व्योम में मृगछौना /इंद्रधनुष --नलिंनकांत
दुख
का छौना छाती की गलियों में रार मचाए ---कृष्णा वर्मा
कस्तुरी तन /दौड़े मन हिरण /जग कानन ---कमला
निर्खूपी
सोने का मृग /सुंदर -सा छलावा /दुनिया जैसा --मंजुल दिनेश
नींद
के खेत/चार गए फसल /दुख चीतल ...सुभाष लखेड़ा
पूस की रात/शर्मीली-सी -हिरणी /चूमें बदन ---राजेंद्र मोहन त्रिवेदी बंधु
*जुगनू जो रात में सितारों की तरह टिमटिमाते हैं। रात के समय जुगनू
लगातार नहीं चमकते, बल्कि एकनिश्चित अंतराल पर कुछ समय के लिए चमकते और बुझते रहते
हैं। इसी रोशनी का इस्तेमाल ये अपनभोजन तलाशने में भी करते हैं। इनमें खास बात ये
है कि मादा जुगनू के पंख नहीं होते, इसलिए वह एक जगह बैठी ही चमकती है, जबकि नर
जुगनू उड़ते हुए भी चमकते हैं। यही एक कारण है, जिससे इन्हें आसानी से पहचाना जा
सकता है।
हाइकु कारो ने जुगनुओं के मनोरम दृश्य चित्रित किए हैं-----
किसी को
याद /बांस -वन जुगनू /टिमक गया... डॉ सुधा गुप्ता
पावस रात /पिकनिक मनाते /नाचे
जुगनू ---डॉ भगवत शरण अग्रवाल
दीप जलाएँ /जुगनू से चमके /हर आंगन ---डॉ हरदीप कौर
सिंधु
नन्हा जुगनू/ पड़ा टिमटिमाए/ टूटे पंख ले---डॉ भावना
कुँअर
मनी दिवाली /बाग -बगीचों में भी /जुगनू संग ---डॉ
भावना कुँअर
रिश्तों की संध्या /जुगनू -सी चमकी /रही दमक ---कुमुद
बंसल
मिलके जले /जलके
मिटा देंगे /सारा अंधेरा ---शोभा रस्तोगी 'शोभा '
स्मृतियाँ मेरी /विरह- रजनी
में /जुगनू बनी ---शोभा रस्तोगी 'शोभा '
प्रेम -जुगुनू /भावों की बाती जला /रोशन
हुआ ---डॉ सरस्वती माथुर
रात में दिया /बन जुगनू जले /तम से लड़े ---डॉ सरस्वती
माथुर
टिमटिमाते /काले अँधेरों में भी /प्यार जुगनू ---डॉ जेन्नी शबनम
हर्ष विश्वास/ले उतरे जुगनू /घर -आँगन ---रचना श्रीवास्तव
जुगनू जले /अंधेरी अमावस /सपने पाले ---डॉ शशि पाधा
घुप्प
अंधेरा /जुगनू ने उठाया /भोर का बीडा ---सुनीता अग्रवाल
राह दिखाओ /अरे ओ
जुगनुओं /रात है काली ---डॉ सुषमा सिंह
जुगनू दीप /टिमटिम करते /स्वप्न सज़े हैं
---भावना सक्सेना
रिश्तों की संध्या /जुगनू सी चमकी /रही दमकी ---कुमुद
बंसल
झाँकती यादें /मन आँगन मेरे /जैसे जुगनू ...डॉ अनीता कपूर
मिलके जले
/जुगुनू मिटा देंगे /सारा अंधेरा ...डॉ मिथिलेश कुमारी मिश्र
प्रेरणा बड़ी /संघर्ष ही जीवन /छोटा जीवन ---सरिता
भाटिया
सूरज भागा /दूर क्षितिज पर /जुगनू जागा ---सरिता भाटिया
*रंग बिरंगे
फूलों के साथ रहने वाली तितलियाँ भी बहुत सुंदर होती है तितलियाँ कई तरह की और कई
आकार की होती हैं रंगीन तितलियाँ सूर्य के आगमन से पलायन तक निरंतर फूलों पर
मंडराती है ,इन्हे और रंगीन बनाती है lप्रकृति के सारे रंगों की तितलियाँ जाने कहाँ
से सँजो कर लाती हैं किइंद्रधनुष भी फीका पड़ता है lअलग अलग रंग लिए कहीं पलाश के
जैसे रंग की लाली ,कहीं अंबर सी नीली ,कहीं सरसों सी पीली ,फूलों को चूमती ,डाल डाल
पर उड़ती,इठला कर झूमती हाइकुकारों को मोह लेती हैं lकुछ सुंदर हाइकु द्रष्टव्य
हैं –
अनूठे रंग /तितलियाँ उड़ती /हवा के संग ---डॉ सुधा गुप्ता
रोती तितली /कंक्रीट जंगल /में /फूल कहाँ हैं ---डॉ सुधा
गुप्ता
फूल- पंखुरी /तितली के पंख सी /नाज़ुक दोस्ती ---डॉहरदीप कौर
सिंधु
शोख तितली /खूब खेलती खो खो /फूलों के संग ---रामेश्वर कंबोज
"हिमांशु"
तितली बिंधी /लम्पट गुलाब ने /खींचा आँचल ---रामेश्वर कंबोज 'हिमांशु
"
आहट आते /उड़ती तितलियाँ /मेरे मन में ---डॉ भगवत शरण अग्रवाल
बसंती मन /तितली सा डोलता /रंग घोलता ---डॉ सरस्वती माथुर
तितली
लिए /रंग बिरंगा /झण्डा /फूलों पे चली ---डॉ सरस्वती माथुर
कैटरपिलर /मन भीतर
रंगा /तितली हुआ --- डॉ सरस्वती माथुर
पुष्प जो खिले /रंगीन तितलियाँ झूला -सा झूले ---सुदर्शन नागर
थिरक रही /पुखराजी पुष्पों पे /ये तितलियाँ ---सुदेर्शन नागर
सूनी है डाली /चिड़िया न तितली /आँधी ले उडी...डॉ जेन्नी
शबनम
तितली-दल/कपोल चूम /दग्ध पलाश ---पुष्पा मेहरा
तितली उडी /चुराये जो
पराग/बिखेरे कहाँ ---श्याम खरे
तितली दल/ खोल डाले किसने /रंगों के नल ---डॉ
भावना कुँअर
नन्ही तितली /खेले आँख मिचौली/कमल संग ---डॉ भावना कुँअर
नन्ही
तितली /बुरी फंसीजाल में /नोंच ली गयी ---डॉ भावना कुँअर
तितली बन /चला फूलों के
गाँव /वो मनचला ---भावना कुँवर
खिले पलाश /तितली ओ भँवरे /मन उल्लास ---हरकीरत
हीर
रंग -बिरंगी /तितली के पंखों -सी /चुनरी सोहे ---निर्मल कपिला
सुंदर स्वप्न /तितली बन उड़े /मधुबन में---शशि पुरवार
अब
न आतीं /धूप की तितलियाँ /ब्याहीं विदेश ---शशि पाधा
तितलियों -सी /मन की
कामनाएँ /खूब छकाएँ---सुभाष नीरव
लड़ते नहीं /तितली मधुमक्खी /फूल के लिए
---एस॰डी॰तिवारी
अपने संग /सहेजती मैं रंग /तितली बन ---सीमा स्मृति
छू ही आई है /हिम्मत की तितली /ऊंचेन ख्वाब को ---अरुण कुमार
रूहेला
* हमारे साहित्य में
भँवरे को एक विशेष स्थान हासिल है।भँवरे काले रंग का उड़नेवाला एक पतंगा जो फूलों
पर मँडराता और उसका रस चूसता है। इसके छः पैर, दो पर और दो मूँछें होती हैं। वह
कलिओं का रसपान करता है और फिर उड़ जाता है। किसी एक पुष्प पर टिकना उसका स्वाभाव
नहीं है। वह रंग का काला है अतः मन का भी काला मान लिया जाता है। उसकी प्रकृति चंचल
है। बेचारा भँवरा। वो क्या करे बगिया में वह अकेला है और पुष्प ढेर सारे। सभी को
विकसित करवाना उसका कर्तव्य है सो वह एक कली , एक पुष्प का होकर नहीं रह सकता । पर
क्या करें ये कवि उस की इस मज़बूरी को नहीं समझते और उसे बेवजह खलनायक बना देते
हैं।कुछ कुछ रसिया स्वभाव में प्रीत ढूंढ लेते हैं ! मधुप फूलों के पराग से आकर्षित
हो कर मँडराता और गुंजन करता है ,अपने नाम के अनुरूप मधुपायी है उदाहरण स्वरूप कुछ
हाइकु देखे जा सकते हैं -
चुप चिड़िया/ लील गई गर्मी /दाना व पानी ---रामेश्वर कंबोज
"हिमांशु"
भौंरा मुसकाए /तितली बेखबर /जान न पाये ---रामेश्वर कंबोज
"हिमांशु"
पागल भोंरा/ दर दर भटके/बना मलंग
---पूर्णिमा वर्मन
आया है मीत/काली का मन मोहे /भ्रमर गीत ---डॉ कुँवर दिनेश
सिंह
झूमे बसंत /श्यामल भ्रमर की /चली पढ़ंत ---डॉ कुँवर दिनेश सिंह
वृक्ष लता
पे /झूमे मधुकर तो /सुमन खिले ---डॉ सरस्वती माथुर
भँवरे झूमे /कलियों के पाटल /खिलते गए ---डॉ सरस्वती माथुर
गंध के डोरे
/अंजान है मालती/भौंरे हैंछेड़े --- डॉ सरस्वती माथुर
नव प्रभात /धूप भँवरों पर /हुआ मोहित ---डॉ सरस्वती
माथुर
आत्मिक नहीं /फूल -भौंरे का प्रेम /वो रस लोभी ---रचना श्रीवास्तव
रंग देख के / भँवरे रहे दूर /कागजी फूल ---डॉ श्याम सुंदर' दीप्ति
'खिले
पलाश /तितली ओ भँवरे /मन उल्लास ---हरकीरत हीर
पा रश्मि स्पर्श /गुनगुनाया भौंरा /खुली पांखुरी ---शशि पाधा
गूँजे भ्रमर /रंग हुए प्रखर /है मधुमास ---अनुपमा त्रिपाठी
रस जगाए /रंग में डूब जाई /भँवरा गूँजे ---अनुपमा त्रिपाठी
यादों की गंध /बैचेंन हो उठा है/मधुप मन...डॉ उर्मिला
अग्रवाल
थिरक उठी /फूलों की सहलियां /भौंरों के संग--- कमला निर्खुपी
खिली
चाँदनी /भौंरे गीत सुनाएँ /झूमें पलाश ---शशि पुरवार
भँवरे गाते /महकता उपवन
/पुष्प लुभाते ---शशि पुरवार
खिले पुहुप/ गुनगुनाया भौंरा /राग बसंत ---अनुपमा
त्रिपाठी
फूलों का रंग /भँवरों की गुंजन /सब अधूरी ---शैफाली गुप्ता
भौंरे की
धुन /सुन काली महकी /फगुआ गाती ---गुंजन अग्रवाल
नवल पात /डाल डाल भँवरे/ आया
बसंत ---कल्पना रमानी
कमल खिले /भँवरे झुक झूमें/मुखड़ा चूमें ---नवीन
चतुर्वेदी
मधधुमालती /आली भरें गागर /मधु -सागर ---गुंजन अग्रवाल
*सच कहते हैं कि हाइकु
सृष्टि सौंदर्य का अनुभव कराती है lहाइकु का क्षेत्र असीम हैlहाइकुकार किसी भी
दृश्य या सरोकार पर हाइकु रच सकता है l धरती का विशाल आँगन हो ,प्रकृति का विस्तृत
रूप हो ,चाँद को एकटक निहारता चकोर हो ,वर्षा मे पातों पे रेंगती मखमली वीरबहूटी
हो,झींगुर की आवाज़ हो या टर्र टर्र करता दादुर - मेंढ़क - मछलियाँ या जलपाखी हों या
सागर किनारे की रेत पर बिखरे सीपी शंख हों ,देखें हाइकु ---
बदरा तले /मेंढक की
मंडली /जन्मों की बातें ---मनोशी चटर्जी
बरखा- रानी / ले आई नव आस /दादुर राग
---डॉ क्रांति कुमार
दादुर तेरा /बरसी जो बदली /मन मयूरा ---डॉ ज्योत्सना
शर्मा
मौसम आया / मेंढक की चुप्पी ने /अर्थ बताया ---डॉ सरस्वती माथुर
मेंढकी
सी थीं /बारिश की बूंदें /गेंद सी उछली---डॉ सरस्वती माथुर
*सीपी में मोती
वस्तुत: मोलस्क जाति के एक प्राणी द्वारा क्रिस्टलीकरण की प्रक्रिया द्वारा बनता
है।
हाइकुकारों ने उन्हे भी शब्दों में बांधा है ...कतिपय उदाहरण प्रासंगिक
होंगे --
उषा की माला /बिखरे हुए मोती /दूर्वा सहजे ---डॉ सुधा गुप्ता
जो
भीगा पल /शब्द -सीपी में ढले /हाइकु बने ---डॉ सावित्री डागा
घृणा है घोंघा
/प्रेम है मोती पा लेना /खेल मौत से --- डॉ सावित्री
डागा
बिटियां होती /फूल
पंखुरियों पे /ओस के मोती डॉ हरदीप कौर सिंध
यादों के मोती /चली पिरोती सुई /हार किसे दूँ ?---उर्मिला
कौल
मन की माला /भावों के मोती -गूँथी /छोड़े न साथ...रामेश्वर कंबोज
"हिमांशु "
मोती उलझे /बरौनियों की नोंक /बह न सके---रामेश्वर कंबोज
"हिमांशु'
धरती पर /हीरे -मोती से बड़ा /क्या है गहना
?---रामेश्वर कंबोज "हिमांशु"
यादों के मोती /मैं पिराऊँ माला में / महक जाऊँ ---रचना
श्रीवास्तव
मोती से टंके/धरा के आँचल पे / हरसिंगाार ---रचना श्रीवास्तव
सावन लाए /आँचल भर मोती ।आँगन भीगे
---रचना श्रीवास्तव
ओसकण के/ मुक्ताहार से
करें/ धरा शृंगार ...डॉ सरस्वती माथुर
कुंवारी रेत /सीपी प्रसव से /जन्मता मोती
---डॉ सरस्वती माथुर
मोती ही मोती /सागर से चुन लो /लगा डुबकी ---सुदर्शन
रत्नाकर
शंख हैं मौन /चुप हुए मृदंग /बजाए कौन ---कुमुद बंसल
ओस की बूंद /पत्तों पे मोती दिखे /हाथ में पानी ---श्याम खरे
किसने टांके /मखमली घास पे /ओस के मोती ...पुष्पा मेहरा
यादों
के मोती /समेट न सका /सीप दिल में --- सावित्री चंद्र
चाँद उतरा/सीपियों के
अंगना /सिंधु मचला ---अनिता ललित
बूंद है प्यासी /सीप में उतार के /मोती होने को
---डॉ ॰नूतन डिमरी गैरोला
ख्वाब काँच -से /आँखों पे रुके जब /हुए मोती से ---डॉ
नूतन डिमरी गैरोला
कनी रेत की /सहे सीप में पीड़ा /बनेगी मोती ---ज्योत्सना
शर्मा
रहे समीप /ज्यों मोती और सीप /खुशनसीब ---कृष्ण वर्मा
मन का सीप/पुकारे
बादल को/मोती बरसे--- कमला निर्खुपी
नैनों की सीपी/चम -चम चमके/नेह के
मोती--कमला निर्खुपी
कीमती मोती/हृदय की सीप में /तुम्हारी याद ---सारिका
मुकेश
साँस है धागा /उम्र पिरोये मोती /जीवन -माला ---अनीता
ललित
ममता रोती-/कोई पिरो दे मेरे/बिखरे मोती ---मुमताज व टी एच
खान
बूंद है प्यासी /सीप में उतार के मोती होने को ---नूतन डिमरी
गैरोला
ओस की बूंद /पत्तों पे मोती दिखे /हाथ में पानी ---श्याम खरे
न
प्रांगण /यादों के बादल से /झरते मोती ---शशि पूरवार
प्रेम वर्ण-से/ गूँथे मोती
की माला के /आज बिखरे --शैफालीगुप्ता
आखर- मोती /पिरोती चली जाऊँ/हार न
मानूँ---डॉ निशा जैन
बंद सीपीयाँ/उपजे मुक्तकण/बिखरे दर्द ---डॉ निशा जैन
नभ
की ओस /झरी मधुबन में /मोती बन के ---मंजु गुप्ता
शुभ संदेश /दमदम दमके/नयन मोती
---ऋता शेखर ‘मधु’
बिखरे मोती /टूटी मन की माला /साथ मिलाना ---सीमा
स्मृति
दोस्ती
दरिया /धोका शंख/-सीपीयाँ/रिश्ता मलिन ---विभा श्रीवास्तव
सीप मुख से /फैले रंग
-बिरेंगे/ मोती धरा पे ---डॉ अर्पिता अग्रवाल
जलपाखी से /पतझड़ के पत्ते /हवा नदी
में ---डॉ सरस्वती माथुर
शशि किरण/ बनी ओस की बूंद /चातक मन --- उपासना
सिहाग
ग़म के मोती /पिरोये आँसुओं में /बनी है माला ---सपना
माँगलिक
*भारतीय इतिहास में दर्शन और भोजन दोनों दृष्टि से शुभ और श्रेष्ठ
मानी जाने वाली मछली जलीय पर्यावरण पर आश्रित है तथा जलीय पर्यावरण को संतुलित रखने
में मछली की काफी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। यह कथन अपने में पर्याप्त बल रखता है
जिस पानी में मछली नहीं हो तो निश्चित ही उस पानी की जल जैविक स्थिति सामान्य नहीं
है। वैज्ञानिकों द्वारा मछली को बायोइंडीकेटर माना गया है। विभिन्न जलस्रोतों में
चाहे तीव्र अथवा मन्द गति से प्रवाहित होने वाली नदियां हो, चाहे प्राकृतिक झीलें,
तालाब अथवा मानव-निर्मित बड़े या मध्यम आकार के जलाशय, सभी के
पर्यावरण का यदि सूक्ष्म अध्ययन किया जाय तो निष्कर्ष निकलता है कि पानी और मछली
दोनों एक दूसरे से काफी जुड़े हुए हैं। पर्यावरण को संतुलित रखने में मछली की विशेष
उपयोगिता है।कुछ हाइकु देखें -
ठंडी कविता /मारी हुई मछली/की फटी आँख
---सावित्री डागा
तड़प रही /जल बिन मछ्ली/बिन तेरे मैं ---डॉ हरदीप कौर संधु
गंदला पानी /रो रही मछलियाँ /वे जाएँ कहाँ ---हरदीप संधु
जाल फेंकता/सूरज का
मछेरा/धूप तितली ---डॉ सरस्वती माथुर
उम्र की डोर /सौन मछरिया सी /हाथ से गिरी
---डॉ सरस्वती माथुर
धूप मछ्ली /सूर्य नें फ़ेंकाजाल/ मछुआरे सा ...डॉ सरस्वती
माथु
नभ सागर /तारों का मीन पुंज /तिरता जाए ---डॉ सरस्वती माथुर
सूखे -से ताल /जल बिन मछली /हाल-बेहाल ---शशि पाधा
न है मीन -सा /आकुल रहता
है /लिए पिपासा ---अनुपमा त्रिपाठी
हृदय-झील /तैरती आकांक्षाएँ/मीन मानिंद
---महिमा मंजु
तडपी मीन /विचलित होकर /सूखा पोखर ...अशोक दर्द
नभ में पंछी /सागर -तन मीन /कहाँ बसूँ मैं ?---डॉ ऋतु
पल्लवी
जग भीतर /व्याकुल व आतुर /मछ्ली मन ---घनश्याम
नाथ कच्छावा
*चकोर चंद्र किरणों को पीने वाला मदमस्त पक्षी है ,इसके नेत्रों को मद से
मतवाला कहा गया है समशीतोष्णकटिबांधों में वर्षा काल के बाद नए हरे हरे वनो में इस
पक्षी के जोड़े मिलते हैं सूडोल शिर ,बड़ी बड़ी रतनार आँखों वाले चकोर की एक एक गति से
स्फूर्ति टपकती है कुछ उदाहरण यहाँ प्रस्तुत हैं--
ख्वाब उगा है /आँखों के नभ पर
/नींद चकोर ---डॉ सरस्वती माथुर
चाँद को देख /अकुलाया चकोर /प्यार गहन ---डॉ
सरस्वती माथुर
चकोर मन/ चाँदनी नदिया से/ प्यास बुझाये---डॉ सरस्वती माथुर
*बीरबहूटी एक खूबसूरत मखमली सा कीट है जो बारिश के बाद
धोरों पर नजर आता है ! इसे सावन की डोकरी , इंद्रवधू और बूढ़ी माई भी कहते हैं
..
कुशल पूछे/ वीर बहूटी भेज/ मेघ धरा की ---डॉ दयाकृष्ण विजयवेर्गीय
'विजय'
हरी घास पे/वीरबहूटी चली/ दुल्हन लगे ---डा० सरस्वती माथुर...
*झींगुर (क्रिकेट) एक कीट है । यह रात में झीं
की आवाज निकालने के लिये जाना जाता है।जबकि पतंगा शमा पर न्योछावर हो जाता है
...उदारणों में हाइकुकारों ने सुंदर बिम्ब उतारे हैं ...
मन पतंगा /भावों की
रोशनी पे /पंख फैलाये ---डॉ सरस्वती माथुर
फूल तिरंगे /जुगनू तितलियाँ /उड़े पतंगे - सरिता भाटिया
झींगुर छेड़े /अशोक टहनी पे/ रात के राग... डॉ
सरस्वती माथुर
वर्षा की साँझ /बजाते शहनाई /छिपे झींगुर ---रमाकान्त
श्रीवास्तव
अंधेरी रात /झींगुर चौकीदार सीटी बजाते ---सुभाष नीरव
आग बरसे/
जंगल में सन्नाटा/झींगुर गाए ---ललित मावर
*मच्छर मक्खी केंचुआ,दीमक ,चींटी बिच्छू,मकड़ी सभी जीवों पर हाइकुकारों ने अपनी
लेखनी चलाई है ।कुछ उदाहरण प्रस्तुत हैं---
जाले बुनती /यादों की मकड़ियाँ /नहीं
थकती ---डॉ सुधा गुप्ता
यादों की लोई /खूंटी पे टंगे टंगे /कीड़े -कुतरी --डॉ
सुधा गुप्ता
विचार घूमें /भिन्नाती मक्खियों से /मन मिठाई ---डॉ सरस्वती
माथुर
मकडजाल /पेंटर सी मकड़ी /रेशम के तार ---डॉ सरस्वती माथुर
फूले जो फूल
/आई मधु मक्खियाँ/संझा को भूल ---पुष्पा मेहरा
चींटो से घिरा /छटपटाता केंचुआ
/कहाँ हो प्रभु ?---आदित्य प्रताप सिंह
ये स्वर्ग पुष्प /सुने राग बहार मधुमक्खी
का ---ज्योत्सना प्रदीप
लड़ते नहीं /तितली मधुमक्खी /फूल के लिए --- एस
॰डी॰तिवारी
मधु डंक हैं / मधुमक्खी रखती/ चाह मधु की ---डॉ विधा सिंहबिन्दु
खूब टॉवर लगे/मधुमक्खी बेचारी /रस्ता भूली ।---उमा घिलिडियाल
दीमक मन /यादों
की किताब को /चाटता गया ---डॉ सरस्वती माथुर
किताब खाने /दीमकों का घर हो /छत से
हुए --- डॉ सरस्वती माथुर
शक ,दीमक /रिश्तों में दूरियाँ /मकडजाल---शशि
पुरवार
नशे की लत/चाटे कुल दीपक/ बन दीमक---राजीव नामदेव राणा लिधौरी
मकडजाल /उलझाए सबको /है विकराल ---मीना अग्रवाल
गर्मी में साथी
-मच्छर से बचना /ध्यान रखना ---नूतन डीमरी गैरोला
पतों ने बुनें /अपने ही
बंधन/रेशम -कीट---डाँ अश्विनी शर्मा विष्णु
मधु मक्खियाँ/ चूस रही मिठास /खिले फूलों से --सुप्रीत कौरसिंधु
*हम सभी ने देखा है कि अनेक पर्व त्योहारों पर
पशु पक्षियों कि पूजा करना हमारी परम्पराओं का हिस्सा है बैल (नंदी )का शिव के साथ
,लक्ष्मी का हाथी के साथ चूहे का गणेश जी के, दुर्गा का सिंह सरस्वती का मोर ,हिरण
का ब्रह्म के साथव कृष्ण जी का गाय के साथ पौराणिक संबंध देखा जा सकता है
l
हमारे ऋषियों ने गौ को माता माना हैl निश्चय ही गाय मानव जातिको ईश्वर की देन
है / देखें कुछ हाइकु --
पगुरा रही /कारी धवारी गैया /नीम की छैया ...डॉ सुधा
गुप्ता
अश्रु -गौमुख /ये सीने में छुपाये /उम्र बिताए...रामेश्वर
कंबोज"हिमांशु'
गाय को मिली /रोटी अनुदान में/ कुत्ता खा गया ...डॉ सुरेन्द्र
वर्मा
बाछी रंभाये / अम्माँ गई जो खेत/चारा चुगने ---डाँ जेन्नी शबनम
इसी
तरह बैल और सांड आज भी प्राचीन काल की तरह ही हमारी ग्रामीण अर्थव्यवस्था का
महत्वपूर्ण हिस्सा हैं --
निभाए नहीं /जूते हुए बैलन्स /रिश्ते हैं सहे
---रामेश्वर कंबोज "हिमांशु "
चिड़ियाँ चीं चीं/बैल गल तालियाँ /अमृत बेला ---
प्रो॰ हरिन्द्र कौर सोही
चौराहों पर /घूमता सांड जैसा/ बेखौफ डर---रामेश्वर
कंबोज "हिमांशु
बैल गाड़ी के/ पीछे पीछे है / बैल का चलन--- राम किशोर
उपाध्याय
चौकड़ी भरे /मरखाने सांड -सा /अंधड़ चला ---रामेश्वर कंबोज "हिमांशु
"
व्याकुल गाँव /व्याकुल होरी का हैं /घायल पाँव ---रामेश्वर कंबोज 'हिमांशु
"
संगीत -भरे /बैलगाड़ी का स्वर /किसान हर्षा ---सविता अग्रवाल "सवि"
संगीत
भरे /बैलगाड़ी का स्वर /किसान हर्षा ---ऋतु शेखर ‘मधु’
पक्की सड़क/काँपता तन मन
/भूखा बछड़ा ...अरुण सिंह रूहेला
*ज्योतिष शास्त्र कि बारह राशियाँ आज भी
पशुओं के नाम पर हैं तो सूअर की पृथ्वी की रक्षा के लिए वराह अवतार के रूप में
मान्यता है l कुछ जीव नुकसान पहुंचाते है जैसे चूहा ,भेड़िया टिड्डी आदि सभी
हमारे ईकोसिस्टम की कड़ी हैं और फूड चैन द्वारा संतुलन कायम करती है प्रकृति में
! इसके अलावा श्राद्ध पक्ष में कौवे और चीलों को भोजन करवाना ,कुत्ते -बिल्ली को
रोटी डालना ,कबूतर को दाना डालना ,बंदरों को गुड चना खिलाना ,चिड़िया के लिए परिंड़ा
बनाना ,तोते पालना और चींटी को चुगगा आटा डालना ,वन सोमवार मनाना आदि परम्पराएँ
हमारे पशु प्रेम को दर्शाती हैं l
मानव कम /धन पशु अधिक /बांटे जहर ---रामेश्वर
कंबोज"हिमांशु "
"हिमांशु "जनता भेड /जन नेता भेड़िये /खड़े बाट में ---रामेश्वर
कंबोज"हिमांशु"
पावन प्यार /भूलें हैं बहनों का /पशु पुरुष ---रामेश्वर
कंबोज"हिमांशु"
कैसा वक्त है /कुत्ता खा रहा रोटी /आदमी बोटी ---डॉ सतीश पुष्करणा
निरीह राजा /वानर राज फैला /कष्ट में प्रजा --- भावना कुँवर
जिस
ज्ञान का/ न जीवन में उतार /गधे का भार ...डॉ सावित्री डागा
अंध पूजक /बलि बकरे
पोषे/बच्चे हैं भूखे ---ज्योतिर्मयी पंत
भेड है प्रजा /मनमानी करे तो/ मिलेगी
सज़ा...मीना अग्रवाल
भूखे भेड़िये /ढूंढ रहे शिकार /गरीब -मार...अशोक
दर्द
मुर्ग बंदर /मदारी बराबर /प्रजातन्त्र के ---रूपचन्द्र उपाध्याय
बंदर-
बाँट /बांटता रहा देश /मंत्री की ऐश ---धर्मेंद्र कुँवर सिंह
मन दहाड़ा /जंगल के
शेर सा / गूँज के लौटा।---डॉ सरस्वती माथुर
डरी सी आँखें /दहशत से काँपे/
बिल्लियाँ रोये...डॉ सरस्वती माथुर
दिवाली भोज /झूठे पत्तल खाते /वो और कुत्ते ---रचना
श्रीवास्तव
खेत में हवा/चौकड़ियाँ भरते/ हरे बछड़े ---आदित्य प्रसाद
सिंह
दूध है खत्म /बिल्ली हताश अब /खींसे निपोरे---नमिता
राकेश
बेचारा चूहा /शेर -बिल्ली की दोस्ती /जाल में फंसा ---नमिता राकेश
बांधो घंटियाँ /समय आ गया है /चूहा चिल्लाया ---नमिता
राकेश
बिल्लियाँ कई /बंधेगा कौन घंटी /चूहों में फूट ---नमिता
राकेश
*भारतीय पुराणो में सर्प को एक लाभप्रद
जीव माना गया है जो अपना फन फैला कर जैविकसुरक्षा प्रदान करता और नागपंचमी पर पूजा
जाता है l
कुछ हाइकु देखें--
शीत के दिनो/सर्प -सी फुफकारे /चले
हवाएँ---डॉ हरदीप कौर सिंधु
दायें न बाएँ /खड़े हैं अजगर /किधर जाएँ ---रामेश्वर
कंबोज "हिमांशु "
शंका का सर्प /फुफकारे जितना /बढ़ता दर्प ---रामेश्वर कंबोज
"हिमांशु"
चन्दन -वन /सा शापित जीवन/भुजंग -तन ---रामेश्वर कंबोज 'हिमांशु"
नाग देवता/बैठे आसन मारे/ये फुफकारें ---रामेश्वर कंबोज
हिमांशु
नाग है खुश/कि ये श्वान हमारे/खौफ़ ही बाँटें ---रामेश्वर कंबोज
"हिमांशु"
सूरज छोड़े /धूप की केंचुलियाँ /दिन साँप सा --- डॉ सरस्वती
माथुर
केंचुली छोड़ /यादों का साँप भी दूर निकला --- डॉ सरस्वती माथुर
साँप बन
के/ लिपटी रही यादें /कैसे छुड़ाऊँ ...डॉ सरस्वती माथुर
अजगर से /खुलते हैं जंगल
/लीलते जाते--- डॉ सरस्वती माथुर
यादों का सर्प /मन के जंगल में /फुफकारता ...डॉ
सरस्वती माथुर
चन्दन -तरु /सर्प अंग लिपटे /विष न चखे ---शशि पाधा
युद्ध है
सर्प/प्रदूषण है डंक /कुचलों फन ---अनिता ललित
सर्द जंगल /फुफकारती हवा /माघ
नागिन ---नीलमेंदू सागर
भीड़ से लड़ी /बलखती चलती /काली नागिन --- मनोशी
चटर्जी
चन्दन वन /लिपट रहे हैं सर्प /गंध स्वछन्द...रामस्वरूप मूंदडा
सांप
बिलों में /उससे कहीं ज्यादा /हैं आस्तीनों में ---डॉ गोपाल शर्मा
प्रेम-चन्दन/
लूट जाए न लाज /लिपटे सर्प ---सुनीता अग्रवाल
धुंधलके में /सर्प -सी इच्छाओं का
/आवागमन ---तुहिना रंजन
दर्प का सर्प /चला मन से पर/ केंचूली छोड़ ---ज्योत्सना
प्रदीप
बांबी में कम / आस्तीन में अधिक /साँप आज भी --डॉ राजकुमारी शर्मा
थकते नहीं /केंचुली बदलते /मन के साँप ---डॉ अनीता कपूर
पालें न नाग /पालोगे
तो लगेगी /देश में आग ---सुभाष लखेडा
साँपों से दोस्ती /करना न कभी /जन लो अभी
---सुभाष लखेड़ा
साँप का दूध/ गरीब को ठोकर/ देखो दुनिया---दिलबाग विर्क
धरा के सर /रेतीला अजगर/ढाता कहर ---राधेश्याम
फन फैलाये /एक काली रात लगती /विषधर सी --- नरेंद्र प्रसाद नवीन
सर्पीली पत्ती/ नरम मुलायम/ अदा दिखाये---ऋता शेखर मधु
हमारे यहाँ तो बाकायदा मेलों में पशु मेला लगाए जाने की परंपरा भी
है !ऊंट घोडा ,गधे ,बकरी आदि सभी लोकजीवन में महत्व रखते हैं l
*वैज्ञानिक रूप से भी देखें तो इन जीव जंतुओं की प्राकृतिक संतुलन
बनाए रखने में विशेष भूमिका है यही कारण है कि इनके संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़
गयी है,देखें ये हाइकु ---
कभी न छीनो /वन्य जीवों का घर/भू रही चेता---डॉ सुधा
गुप्ता
असंख्य जीव /पाते हैं संरक्षण /इनको गोद---डॉ सुधा गुप्ता यह जीव जन्तु रहेंगे तो हमारी
लोकसंस्कृति रहेगी और यदि संस्कृति को जीवित रखना है तो वन्य जीवों के संरक्षण को
हमनें अपनी दिनचर्या का अभिन्न अंग बनाना होगा lयदि हमने जीव जंतुओं की सुरक्षा
नहीं की तो हम प्रकृति की अमूल्य धरोवर से सदेव के लिए वंचित रह जाएँगे !
डॉ सरस्वती माथुर
ए -2 ,सिविल लाइंस
जयपुर -6
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हमारी भारतीय संस्कृति
सम्पूर्ण जीव जंतुओं -पशु पक्षियों और वृक्षों को मानव अस्तित्व की रक्षा के लिए
महत्वपूर्ण घटक मानती है l उनमें से भी कुछ पशु और पक्षी ऐसे हैं जिनके नहीं होने
से मानव अस्तित्व भी संकट में आ सकता है !शेर, हाथी, मोर, कुत्ता, चूहा, सर्प,
मगरमच्छ, मछली, कछुआ, कौवे से लगाकर अन्य बड़े व छोटे- छोटे जीव जन्तुओं के प्रति
हमेशा हमारा हमेशा से सम्मान भाव रहा है . जैव-विविधता के संसार के प्रति यह भाव ही
भारत का अनूठा और वैज्ञानिक दर्शन रहा है. इसका मुख्य मकसद भी यह है कि पर्यावरण और
जैव-विविधता का संरक्षण कर हमें प्रकृति के पारिस्थितिक संतुलन को बचाना है !हम शेर
सर्प ,व गाय पूजक समाज रहे हैं. इसका संदेश साफ है- यदि किसी क्षेत्र में शेर विचरण
करते हैं ,गाये घूमती है और सर्प सुरक्षित हैं तो समझिए कि समग्र पर्यावरण की
दृष्टि से वहां हालात अनुकूल हैं!
भारत के सांस्कृतिक जीवन में पशु पक्षी
प्राचीन काल से ही प्रासंगिक रहे हैंl रामायण व महाभारत काल में तो इन पशु पक्षियों
ने हमारे अवतारों और देवताओं के साथ सामाजिक सरोकारों में भी अपनी भूमिका समय समय
पर निभाई है lयही कारण है कि हमारे धार्मिक ,सामाजिक व सांस्कृतिक साहित्य में जीव
-जन्तु स्वेच्छा से टहलते नज़र आते हैं ! वैदिक साहित्य तक में जंतुओं ,पौधों ,तथा
तथा प्राकृतिक घटनाओं का वर्णन है !वेद ,रामायण ,महाभारत ,उपनिषद तथा अर्थशास्त्र
(350 बी॰ सी )आदि भारतीय ग्रन्थों से पता चलता है कि हमारे पूर्वजों को भी जीव
विज्ञान का पर्याप्त ज्ञान था lहमारे साहित्यकारोंके साथ साथ हाइकुकारों ने भी
विशेष रूप से अपनी रचनाओं में जीव जंतुओं कीट पतंगों व पक्षियों का परिवेश और ऋतु
के अनुसार विशेष रूप से उल्लेख किया है और उनके महत्व को दर्शाया है !
हाइकु
विधा का सौंद्रर्य ही यह है कि वह अत्यंत संक्षिप्त ,सीधी ,सादी ,सुकुमार और शुद्ध
होती है 17 पंक्तियों में 5+7+5 के शैली क्रम में पशु पक्षियों ,जीव जंतुओं का
बिम्ब विधान ,भावों और अनुभूतियों के चित्र व कथ्य के रूप में दिखाने में हाइकुकार
पूर्ण सफल रहें हैं lइसलिये साहित्य में अन्य विधाओं के साथ हाइकु का विशेष स्थान
है lजीव जंतुओं और पशु पक्षियों को लेकर कई हाइकुकारों ने सुंदर हाइकु लिख कर
प्रकृति और परिवेश के यथार्थ परक प्रतिकात्मक चित्र उकेरे हैं
*हाथी आधुनिक मानव
के समय का पृथ्वी पर विचरण करने वाला, सबसे विशालकाय स्तनपायी जीव है।
.मेघों के
हाथी /चिंघाड़ टकराए /अंबर कांपे ---रामेश्वर कंबोज 'हिमांशु '
इन्द्र के हाथी
/चिंघाड़े ,हारे ,थके /बहा पसीना ---राधेश्याम
घोड़ा (अश्व) मनुष्य से जुड़ा हुआ
संसार का सबसे प्राचीन स्तनपोषी प्राणी है, जिसने अज्ञात काल से मनुष्य की किसी ने
किसी रूप में सेवा की है।
उदाहरण स्वरूप कतिपय हाइकुओं को देखा जा सकता है
-
॰काठ के घोड़े /चलता तन कर /माटी सवार ---सुधा गुप्ता
अपने घोड़े /बेलगाम हो
गए /कैसी लाचारी ---डॉ सावित्री डागा
.बांध के बोरे /लाता है धो कर /हवा का घोडा
---जगदीश व्योम
सौंप तिमिर /सूर्य घोडा बेच के/ सपट सोया ---डॉ सरस्वती
माथुर
घोड़ा लापता/ लू पे चला सवार/केवल कोड़ा ---आदित्य
प्रसाद
शीत-प्रकोप /डरे छिपे रवि /सातों ही घोड़े ---डॉ क्रांति
कुमार
जैसा युग है /गधे निकल भागे /घोड़ों से आगे ---डॉ सुधेश
सूर्य के घोड़े
/धाम के विरोध में /ंअड के खड़े ---- उमेश महादोषी
दाैडता आया/धूल की गठती
ले/हवा का घोड़ा --- डाँ ।प्रियंका गुप्ता
*हाइकुकारों ने जलचर ,थलचर ,व नभचर पशु पक्षियों -जीव जंतुओं का
विषाद एवं प्रासंगिक वर्णन अपने हाइकुओं में किया है l
कुछ उदाहरण यहाँ प्रासंगिक होंगें----
गंदला पानी /रो रही
मछलियाँ /जाएँ कहाँ ---हरदीप संधू
किसी की याद /फिर फड़फड़ाई /छाती में फाख्ता
---सुधा गुप्ता
सांझ की बेला /पंछी ऋचा सुनाते /मैं हू अकेला ---रामेश्वर कंबोज
"हिमांशु"
॰मन दहाड़ा /जंगल के शेर सा /गूंज के लौटा ---डॉ सरस्वती
माथुर
फाख्ता सा उड़ा/ गुनगुनाता मन/प्रेम में डूबा ---डॉ सरस्वती
माथुर
डर के कांपे / जंगल की आग में /घिरा शावक ---भावना कुँवर
उछल रहे /
बादल खरगोश/आसमान में---डॉ सतीश दुबे
वोट जाल में / मछली सी जनता /सदा फंसी
---सुभाष नीरव
मगरमच्छ /क़ठोर और सख्त/ दिल नरम...मीरा ठाकुर
ये तमाम हाइकु
परिपक्वता और अग्रगामी दृष्टि की कसौटी पर खरे उतरते हैं l
कुछ और उदाहरण देखें
--
कुतर रहे हैं /संविधान /संसदी चूहे ---डॉ भगवतशरण अग्रवाल
नीला कालीन /चर
गए शशक /दूब के धोके---डॉ सुधा गुप्ता
कामुक बाघ /लार ही टपकाए /बाज़ न आए
---रामेश्वर कंबोज 'हिमांशु
'श्वान सूँघते/डर का कोना-कोना/पूँछ हिलाएँ ।---रामेश्वर कंबोज"
हिमांशु
गेंडे न देखे ? संसद में देख लो /मन भर के ---डॉ सावित्री
डागा
अपने घोड़े /बेलगाम हो गए /कैसी लाचारी - डॉ सावित्री डागा
दौड़ लगाए /धूप
के खरगोश /हाथ न आयें ---भावना कुँवर
वर्षा जो आई/ धूप के खरगोश/ फुदक छिपे---डॉ
भावना कुँवर
उन का गोला/ जागा ,भगा सहसा /अरे शशक---आदित्य प्रसाद सिंह
उछल
रहे/बादल खरगोश/आसमान में---डॉ सतीश दुबे
सूर्यके घोड़े /घाम के विरोध में /अड के
खड़े /---उमेश महादोषी
दौड़ता आया /धूल की गठरी ले हवा का घोडा--डॉ -प्रियंका
गुप्ता
ठिठुरी रात /कुत्ता बैठा है पास /आदमी साथ ---डॉ रमा द्धिवेदी
जूठी
पतल /कुतों को भगाता रे /बाल- कंकाल ---आदित्य प्रसाद
गर्म राख़ में /बच्चे ले
कुनमुनाई /सोयी कुतिया --- हरकीरत हीर
अब घरों में/शेर जैसे गुर्राएँ/मृग छौने
भी---डॉ गोपाल बाबू शर्मा
खटका द्धार /थरथराता पिल्ला /मांगता ताप---पुष्पा मेहरा
काँपता
पिल्ला /ढेरी में ढूंढ रहा /सूखा पुआल ---एस ॰डी॰र्तिवारी
छोटी सी बात /मरते
चूहे कभी /हाथी को लात ---सुभाष लखेडा
*चराचर रचना चतुरचतुर्भुज नें ससार में एक से एक अनोखे अनगिनत जीव रचे
हैं तभी तो पशु - पक्षी ,कीड़े मकौड़े ,भुंगे पतंगे ,जलचर ,थलचर ,नभचर आदि भांति
भांति के विचित्र जीवों से संसार भरा पड़ा है ! यदि हम प्राचीन काल में झाँकें तो एक
तस्वीर की तरह हमारीआँखों में निर्भीक विचरण करते वन प्राणी उतर आते हैं lजंगल में
किलोलें करती चिड़ियायेँ ,गिलहरियाँ ,दौड़ लगाते शावक -खरगोश ,शशक ,बादलों को निहारते
नाचते मयूर व ,चौकड़ियाँ भरते मृग ,हिरण ,कस्तूरी मृग ,रात में उडते चमकीले जुगनू
,पतंगे व उल्लू ,विभिन्न प्रकार के पंछी ,परिंदे ,रंग बिरंगी चिडियाएँ,तोते व मैना
चहकती बुलबुल ,फाख्ता ,पीक व पपीहे व मीठे स्वर में कूकती कोयल कोकिला , बाग बगीचों
में मँडराते भोंरे -तितलियाँ व मधमाखियाँ,आस पास उड़ती मच्छर -मख्खी आदि जीव जन्तु
प्रकृति के आँचल में स्वछन्द घूमते नज़र आते हैं lइन सभी जीव जंतुओं को हाइकुकारों
ने बहुत सुंदर भावों से चित्रित किया है l
*अरुणोदय के साथ ही नित उठ पखेरूओं के झुंड के झुंड सघन ऊंचे पेड़ों की फली
फूली ,हरी भरी चारों ओर फैली डालियों पर निडर इधर उधर फुदकते फाँदते कलरव कलकलित
सुललित राग भैरवी अलापते ,स्वरों के उतार चढ़ाव से सुमधुर सुर चारों सप्तक से साधते
कोलहाल से हमें जगा देते हैंl उन पक्षियों को नए रूपों और बिंबों में पिरो कर
हाइकुकारों ने नवीन दृष्टि दी है---कुछ उदाहरण देखें ---
कौन पानी पी /बोलती री
चिड़िया /इतना मीठा ...डॉ सुधा गुप्ता
चंद तिनके /चिड़िया का घोंसला बना है घर
---डॉ सुधा गुप्ता
चुप चिड़िया/लील गई है गर्मी /दाना व पानी /--रामेश्वर कंबोज "हिमांशु"
नीड़ मुखर /किलक रहे चूज़े /बहा निर्झर
---रामेश्वर कंबोज "हिमांशु"
मधुर गीत /चिड़िया ने गाकर/ धरा गुंजाई---डॉ सरस्वती
माथुर
चिरैया उडी /तेज आँधी से लड़ी /बिखरे पंख ---डॉ सरस्वती माथुर
शाम की बेला /चिड़ियों के झुंड का /रेलमपेल ---कुँवर दिनेश
सिंह
हो गया मन /एक पूरा गगन /चिड़िया मन ...डॉ शैल रस्तोगी
रवि रथ
ले /भोर आई तो पाखी /चहचहाये...डॉ सरस्वती माथुर
भोर चिड़िया/ फुदकती फिरती घर
आँगन ---डॉ सरस्वती माथुर
बड़े सवेरे /उठ जाती चिड़िया /कौन जगाता ?---रमाकांत
श्रीवास्तव
धूप चिड़िया /सिमट कर बैठी /ठंड जो आई ---रचना श्रीवास्तव
पेटू
चिड़िया /कुतर के ले गयी/ नन्ही कलियाँ ---भावना कुँअर
खोलो विहग /अब पंखों की
डोर /हो गयी भोर ---कमल कपूर
हंसों की पांत/उड़ रही आकाश/मौसम साफ---डॉ सतीश
दुबे
उजाला हुआ /चहकती चिड़िया /बजे संगीत ---ज्योत्सना शर्मा
यह जिंदगी
/पंखनुची चिड़िया /फडफड़ाती ...डॉ सावित्री डागा
हौंसला जिंदा /समंदर को लांघे
/नन्हा परिंदा ---कृष्ण वर्मा
गगन पाठ/ चले पंछी डाकिये/ भेजे संदेश / ---कमला
निर्खुपी
फुदके पक्षी /हरी हुई शाखाएँ /वर्षा जो आई ---सुदर्शन रत्नाकर
मन का
पंछी /थक गया उदेते /उतार नीचे ---सुदर्शन रत्नाकर
बकुल -पाँत/तैरे गगन -सर
/ढूँढे रहस्य-डॉ क्रान्तिकुमार
धूप चिड़िया /सिमट कर बैठी /ठंड जो आई ---रचना
श्रीवास्तव
पेटू चिड़िया /कुतर के ले गयी/ नन्ही कलियाँ ---भावना कुँवर
बकुल
-पाँत/तैरे गगन -सर /ढूँढे रहस्य---डॉ क्रान्तिकुमार
भोर की बेला /पंछी ले
अंगड़ाई /कमल खिले...रचना श्रीवास्तव
वन पाखी सी / उड उड आयें हैं /याद तुम्हारी
--डॉ जेन्नी शबनम
यादों का पंछी/डाल डाल फुदके /मन बौराये ...डॉ जेन्नी
शबनम
आस का पंछी /उड़े निर्बाध जब /क्जिले सृजन ---अनुपमा त्रिपाठी
मन एकाकी
/उड़ा है बनपाखी /तेरी नगरी ... सुशीला शिवराण
सुहानी भोर /खुले गगन तले /पाखी
चहके /---पुष्पा मेहरा
नीलपट से /श्वेत बगुले साथी /घूमने चले ---डॉ अर्पिता
अग्रवाल
साथ जो छूटा /विकट सूनापन क्रोञ्च -सा मन ---डॉ अर्पिता
अग्रवाल
हंसों का जोड़ा /करे अठखेलियाँ /जले लहरें ---योगेश्वर दयाल
चिड़िया
बोली /चूँ-चूँ-चूँ जंगल है /जलता धू -धू...जया नर्गिस
सोनचिरैया /भूखी प्यासी
लुटी- सी/सोना विदेश l ज्योतिर्मयी पंत
याद पेड़ की /चुनमुन चिरैया/फुर्र हो गयी
---मंजु मिश्रा
नन्ही चिड़िया/ अठखेलियाँ करती/ सिल्वर -ओक ...अमित
अग्रवाल
झुंड कीरों के/ लजीली शैफाली को /रीझाते डोले ...डॉ सरस्वती
माथुर
हंसवाहिनी /प्रीतधार भरती /नवलय से ---डॉ सरस्वती माथुर
सर्द रात में/मन में, मैदान में/श्वान भूँकते ---डॉ सुरेन्द्र
वर्मा
क्रोंच कराह / सुनता है हृदय/ कवि कहाँ हो?---शिव चरण सिंह चौहान
अंशुमाली
हंसों का जोड़ा /करे अठखेलियाँ /जालें लहरें
--- योगेश्वर दयाल
मन के हंस /चले लहरों संग /गाते रागिनी ---डॉ
सरस्वती माथुर
* विशेष रूप से चिड़िया ,पंछी
-परिंदे,बुलबुल,फाख्ता ,तोता मैना व गौरैया आदि को विभिन्न रूपों में बड़े ही रसमय
तरीके से उकेर कर हाइकुकारों ने अपनी कल्पना का तथ्यात्मक सा परिचय दिया है जो
जीवों के प्रति उनकी संवेदनशीलता को दर्शाता है l ...जैसे तोते को लें -
*तोता या शुक एक पक्षी है l यह कई प्रकार के रंग
में मिलता है। यह बहुत सुंदर पक्षी है और मनुष्यों की बोली की नकल बखूबी कर लेता
है।तोते झुंड में रहनेवाले पक्षी हैं, जिनके नर मादा एक जैसे होते हैं। इनकी उड़ान
नीची और लहरदार, लेकिन तेज होती है। इनका मुख्य भोजन फल और तरकारी है, जिसे ये अपने
पंजों से पकड़कर खाते रहते हैं। यह पक्षियों के लिये अनोखी बात है।तोते की बोली
कड़ी और कर्कश होती है, लेकिन इनमें से कुछ सिखाए जाने पर मनुष्यों की बोली की
हूबहू नकल कर लेते हैं।
याद तुम्हारी /मन का तोता बातें /दोहराता हो --डॉ
सावित्री डागा
उल्टा लटका /हरियल तोता भी /प्यार से देखे ---रामेश्वर कंबोज
"हिमांशु
फूले बादाम /हरे तोतों के दल /भूले आराम ---डॉ कुँवर दिनेश
सिंह
जादुई फूल /नवसुए सी शाखाएँ /कचनार की ---डॉ सरस्वती माथुर
चिड़िया तोते /ओटे छिपी मूरत /चहकी यादें ---चन्द्रबली
शर्मा
तोते ,ततैये /लड़कियाँ चटोरी /लाल इमली ---अमित अग्रवाल
* मैना चिड़िया देश के गिने-चुने परिचित
पक्षियों में से एक है और देश के सभी भागों में पाई जाती है। मैना, कौए और गौरेया
की तरह मनुष्यों से हिल-मिल कर रहती है। यह एशिया के कुछ देशों के अलावा कहीं नहीं
दिखाई देती। मैना का अंग्रेजी नाम भी मैना है। मैना ज्यादातर गांव के मैदानों,
खेतों, ताल-तलैयों के आसपास नजर आती है।देखें उदाहरण द्वारा कुछ बिम्ब ---
पहाड़ी मैना /टेरती रुक -रुक /जगाती हूक...डॉ सुधा
गुप्ता
टूटा घोंसला /बेघर हुई मैना /सहमी बैठ-डॉ सुधा
गुप्ता
शेफाली हंसी /बगिया जो महकी /मैना चहकी ---डॉ सुधा
गुप्ता
बंदिनी मैना /सोने की सलाखों में रूहे हैं गीत
---रामेश्वर कंबोज "हिमांशु
"यादें बंद थीं /पिंजड़े की मैना सी
/व्याकुल -मन ---डॉ सरस्वती माथुर
* बुलबुल,
शाखाशायी गण के पिकनोनॉटिडी कुल पक्षी का है । ये कीड़े-मकोड़े और फल फूल और
फलखानेवाले पक्षी होते हैं। ये पक्षी अपनी मीठी बोली के लिए नहीं, बल्कि लड़ने की
आदत के कारण शौकीनों द्वारा पाले जाते रहे हैं। यह उल्लेखनीय है कि केवल नर बुलबुल
ही गाता है, मादा बुलबुल नहीं गा पाती है।...
गुलाब खिला /चहकी बुलबुल/नशे ने
छुआ ---डॉ सुधा गुप्ता
शोख बोलियाँ /हवा में ठुनकती /बुलबुल की ---डॉ सतीशश्चन्द्र
पुष्करवणा
शब्द बुनती /पहाड़ी बुलबुल/गीतकार सी ---डॉ सरस्वती
माथुर
सुनाती -गान /गा रही बुलबुल /कहे श्री प्रभु ---पुष्पा मेहरा
*पपीहा
कीड़े खानेवाला एक पक्षी है जो बसंत और में वर्षा में प्रायःआम्र के पेड़ों पर
बैठकर बड़ी सुरीली ध्वनि में बोलता है।
पपीहा दिन /और चकवी रातें /काटे न काटें
---डॉ सुधा गुप्ता बोल उठता /अचानक मस्ती में /वो पपीहारा ---डॉ सुधा
गुप्ता
पिया की रट/पपीहे ने लगाई /याद जो आई /---दिलबाग विर्क
तुम हो
कहाँ / दे रहा आवाज़ है/मन पपीहा ... रमाकान्त श्रीवास्तव
जा रे पपीहा /किसकी बुझे प्यास /देश बैरागी---डॉ नूतन
डिमरी गैरोला
पपीहारा गा /और और बना रे /एकाकी मुझे ---आदित्य प्रसाद
* चिड़िया (गौरैया ) जो यूरोप और एशिया में
सामान्य रूप से हर जगह पाई जाती है। यह विश्व में सबसे अधिक पाए जाने वाले पक्षियों
में से है। लोग जहाँ भी घर बनाते हैं देर सबेर चिड़िया के जोड़े वहाँ रहने पहुँच ही
जाते हैं। र्चिड़िया,पुराने विश्व (यूरोप, एशिया और अफ्रीका) और मुख्य रूप से एशिया
के उष्णकटिबंधीय भागों में पाई जाती हैं। यह फुदकियां अपनी पूंछ को आमतौर पर ऊपर की
ओर सतर रखती हैं। यह आमतौर पर खुले जंगलों, मैदानों और उद्यानों में पाई जाती हैं।
शहरी इलाकों में गौरैया की छह तरह की प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें हाउस स्पैरो
को गौरैया कहा जाता है। यह शहरों में ज्यादा पाई जाती हैं। आज यह विश्व में सबसे
अधिक पाए जाने वाले पक्षियों में से है। हाइकुकारों ने इसकी उपस्तिथी के विभिन्न
रंगों को दर्शाया है--
गीत बुनती /गहरे सन्नाटे में /कोई गौरैया ---डॉ सुधा गुप्ता
खिड़की पर /काँप रही गौरैया /पानी में तर ---डॉ सुधा
गुप्ता
आकुल आए/ आँगन में गौरैया/ आस
लगाए/--- डॉ दिनेश सिंह
नभ में ताके /प्यासी एक गौरैया /सूखी तलैया ...डॉ
सतीशराज पुष्करणा
अकेला कहाँ/जब बीसों गौरैयाँ/आ बैठी यहाँ...रामेश्वर कंबोज
"हिमांशु "
भाई अंगना /बहन चुगे दाना /बन गौरैया ...रचना
श्रीवास्तव
रूठ ही गई/फुदकती गौरैया /बगिया सूनी ---डॉ जेन्नी
शबनम
बिखरा नीड़ /फिर चुने तिनका /नन्ही गौरैया ---सुनीता अग्रवाल
आँगन सूना /तरसे दाना पानी /आजा गौरैया--- मीरा
भारद्वाज
खिड़की पर गौरैया गुमसुम टूटा घोंसला ---महेश
कुशवंश
*बसंत ऋतु के समय आम की अमराईयों में तथा अन्यत्र वृक्षों पर बैठी
कोयल अपनी मीठी कूकसे सबका ध्यान आकर्षित कर लेती है ! वह पौ फटते ही गाने लगती है
तब प्रभात बहुत सुहावना लगता है !कोयल अपनी मीठी बोली से सबको आकर्षित कर लेती है
!इसमें कोयल की मीठी बोली के माध्यम से सदा मीठे वचन बोलने पर भी बल दिया गया है
lवहीं कौओं को भी वैज्ञानिक एक विस्मयकारक पक्षी मानते हैं । इनमें इतनी विविधता
पाई जाती है कि इस पर एक 'कागशास्त्र' की भी रचना की गई है। योग वशिष्ठ में काक
भुसुंडी की चर्चा है, रामायण में भी सीता के पांव पर कौवे के चोंच मारने का प्रसंग
आया है।कौवे अपनी चतुराई दिखाने में लाजवाब होते हैं।कोयल की मीठी तो काक की कर्कश
ध्वनि होती है वह 'काँव-काँव' करता!
*कोयल के प्रति सहज लगाव को हाइकुकारों ने
अपने शब्दों से निखारा है और मनोरम छवि शब्द उकेरे हैं उनकी कल्पना के बिम्ब यहाँ
देखें
कूकी कोयल/ चीरा -सा लगा गई /टपका लहू ---डॉ सुधा गुप्ता
मौन मुकुल /आम
पे बौर कहाँ /रोये कोयल ---हरदीप कौर संधु
कोकिल -पीर /चुभें यादों के तीर /बरसे
नीर ---रामेश्वर कंबोज "हिमांशु
कोयल बोले /कुहुक कुहुक के /टोना वन में ---
पूर्णिमा वर्मन
कोयल गाये /महके कचनार/झूमें बयार -डॉ -भावना कुँवर
जा रे
कोकिल/ दूर जा के गा ,मेरा दर्द न बढ़ा ---डॉ भावना कुँअर
खिलें हैं फूल /कोयल है चहकी /कौन है आया ---सुदर्शन
नागर
कोयल कूक /विरहन के उर /लगे ज्यूँ शूल
---डॉसरस्वतीमाथुर
कोयल कूके /अमराई हुलसे /आया है कंत---पुष्पा मेहरा
आम्र पींग पे /कोयल को झुलाए /झोंका समीर ---कृष्णा
वर्मा
तितली उडी /चुराए जो पराग /बिखेरे कहाँ
?---श्याम खरे
सिमटे वन /बांझ अमराईयाँ/कोकिल मौन ---सुनीता
अग्रवाल
अहो बसंत /अमराई में गूँजे /कोकिला स्वर ---सुनीता
अग्रवाल
फागुनी नभ/ बिचरती कोयल /बुनती गीत ---डॉ कमल किशोर
गोयल
कोयल गाये/ घायल मन मेरा/ सुन न पाये ---चंद्रबली
शर्मा
कौयल बोली /यादों के देवदार/ हिले न डुले ---चंद्रबली
शर्मा
बोले कागा /बोले कोयलिया /पाहून आए --ऋता शेखर मधु
मोर नाचते /कोयल है बाँचती /रची मेहंदी--- शशांक मिश्र
भारती
गाये मल्हार /कोयल की जो कूक/ बरसे मेघा ---अमिता कोंडल
यौवन
आया /आम्र मंजरी पर कोयल कूकी ...डॉ आरती स्मित
पीली सरसों /हरे भरे खेतों में
/मूक कोयलिया ---सीमा स्मृति
कोयल कूकी /फिर से पुरवाई /जागा मदन...अमित
अग्रवाल
घन घनेरा /कोयल ,खुशबू,छाया /जग बौराया ---अमित अग्रवाल
दुनिया मुग्ध /
गाके ठगे ममता/छली कोयल---मंजुल शर्मा
गाती कोयल/लिखे किसने बोल /दें,मिश्री घोल ---सीमा
स्मृति
आम का बौर/दीवानी कोयलिया /ऋतु का जादू ---डॉ अर्पिता
अग्रवाल
*पूर्वी एशिया में कौवों
को किस्मत से जोड़ा जाता है तो अपने यहाँ मुंडेर पर बैठकर काँव-काँव करने वाले कौवे
को संदेश-वाहक भी माना जाता है। भारत में हिन्दू धर्म में श्राद्ध पक्ष के समय कौओं
का विशेष महत्त्व है और प्रत्येक श्राद्ध के दौरान पितरों को खाना खिलाने के तौर पर
सबसे पहले कौओं को खाना खिलाया जाता है। कौए के प्रति सहज लगाव को हाइकुकारों ने
अपने शब्दों से निखारा है और मनोरम छवि शब्द उकेरे हैं उनकी कल्पना के बिम्ब यहाँ
देखें...
टिहुक लाल / फूले पलाश पर /कौओं के झुंड.... डॉ सुधा गुप्ता
पूर्वज
रूप /मुंडेर आता कव्वा /रोटी ले जाता ---डॉ सरस्वती माथुर
मुंडेर बैठ /काक घर
आँगन /संदेशा लाये ---डॉ सरस्वती माथुर
कागा बोला तो इंतज़ार की यात्रा शुरू हो गयी ---डॉ सरस्वती माथुर jl
भीगते कागा /गर्विले बादलों से /ठानते रार ---कृष्णा वर्मा
बोला है कागा /आएगी राखी आज /सोचे सैनिक ---पुष्पा मेहरा
बैठ मुंडेर /करे जो कांव- कांव /शुभ संकेत ---डॉ रमा द्वेदी
श्राद्ध का भोग /कौआ जीमने आए /शुभ कहाये ---डॉ रमा दवेदी
कागा आजा रे /ले आ संदेशवा /पी आवन का ---अनुपमा त्रिपाठी डॉ रमा
दवेदी
कोयल साथी /धर्म कर्म के नाम /कागा खैराती ---शशि पुरवार
बंजारे कागा /नीड़ बुनूँ प्यार के/ छोड़ो बैराग ---डॉ नूतन डिमरी गैरोला
बोले कागा /कुहकी कोयलिया /पाहुन आए ---ऋता शेखर मधु
लगती प्यारी/ कौवे की कांव -कांव/बोले अटारी--- रेखा रोहतगी
काग की काँ -काँ/ सुनके मन सुबह/ पसीज गया---रीता महाजन
संसद नें बैठी /कौओं की संसद /चर्चा तो होगी --- प्रियम्बरा
नित उड़ावाँ/बनेरे बैठ कागा /बुलीं तेरा नाँ---सुप्रीत कौर संधु
सूनी मुंडेर/ देहरी भी उदास /रूठा जो कागा ....आभा खरे
बोला है कागा /आएगा कोई घर /सूखा है मुंह ---महेश कुशवंश
आम्र पींग पे /कोयल को झुलाए /झोंका समीर ---कृष्णा वर्मा
कोयल कूके /अमराई हुलसे /आया है कंत---पुष्पा
मेहरा
तितली उडी /चुराए जो पराग /बिखेरे कहाँ ?---श्याम खरे
सिमटे वन /बांझ अमराईयाँ/कोकिल मौन ---सुनीता अग्रवाल
अहो बसंत
/अमराई में गूँजे /कोकिला स्वर ---सुनीता अग्रवाल
फागुनी नभ /बिचरती कोयल /बुनती गीत ---डॉ कमाल किशोर गोयनका
कोयल गाये/ घायल मन मेरा/
सुन न पाये ---चंद्रबली शर्मा
कौयल बोली /यादों के देवदार/ हिले न डुले
---चंद्रबलीशर्मा
बोले है कागा /कुहकी कोयलिया /पाहून आए ---ऋता शेखर मधु
मोर नाचते /कोयल है बाँचती /रची मेहंदी--- शशांक मिश्र
भारती
गाये मल्हार /कोयल की जो कूक/ बरसे मेघा ---अमिता कोंडल
यौवन
आया /आम्र मंजरी पर कोयल कूकी ...डॉ आरती स्मित
पीली सरसों /हरे भरे खेतों में
/मूक कोयलिया ---सीमा स्मृति
कोयल कूकी /फिर से पुरवाई /जागा मदन...अमित
अग्रवाल
घन घनेरा /कोयल ,खुशबू ,छाया /जग बौराया---अमित अग्रवाल
दुनिया मुग्ध /
गाके ठगे ममता/छली कोयल---मंजुल शर्मा
आम का बौर/दीवानी कोयलिया /ऋतु का जादू ---डॉ अर्पिता
अग्रवाल
* प्रकृति का सफाई कर्मी कहलाने वाले तथा दूर
तक दृष्टि रखने वाले गिद्ध व चील आज दूर-दूर तक भी दिखाई नहीं देते। शहरीकरण, घटते
वनस्पति, कृषि क्षेत्र में जहरीले रासायनिक दवाओं के बढ़ते प्रभाव ने प्रकृति के इस
सफाई दूत को विलुप्त होने के कगार पर ला दिया है। समय रहते यदि विलुप्त प्राय इस
पक्षी को संरक्षित नहीं किया गया तो पर्यावरण को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।इन
पर भी कुछ हाइकुकारों ने कलम चलाई है - देखें कुछ हाइकु ---
*चील उड़ने में बड़ी दक्ष होती है !यह एक सर्वभक्षी
तथा मुर्दाखोर चिड़िया है, जिससे कोई भी खाने की वस्तु नहीं बचने पाती। ढीठ तो यह
इतनी होती है कि कभी कभी बस्ती के बीच के किसी पेड़ पर ही अपना भद्दा सा घोंसला बना
लेती है।
ऊंचा आकाश /तैरती है चील सी /कल्पना मेरी ...सुषमा सिंह
*हाइकुकारों ने उल्लू और गीदड़ तक पर भी हाइकु रच दिये -
उल्लू बोल
दे /रात दे चौकीदार /जागते रहो ---कश्मीरी लाल चावला
पूरनमासी /कुकड़े ने गिंदड़
/देख शिकार --- सुप्रीत कौर संधु
*गिद्ध को पर्यावरण का अपघटक कहा जाता है। गिद्धों में दूर तक देखने की
क्षमता बहुत अधिक होती है। इसके अतिरिक्त गिद्ध प्रकृति एवं धरती के बीच संतुलन
कायम करने वाले प्राणी भी माने जाते हैं।
गिद्ध के समान चील भी तेजी से विलुप्त
हो रहें हैं , संकट के दौर से गुजर रहे हैं।
छिड़ा जो युद्ध/रोयेगी
मानवता/हँसेंगे गिद्ध---डा० जगदीश व्योम
*बाज़ एक शिकारी पक्षी है जो कि गरुड़ से छोटा होता है। इस प्रजाति में
दुनिया भर में कई जातियाँ मौजूद हैं और अलग-अलग नामों से जानी जाती हैं।वयस्क बाज़
के पंख पतले तथा मुड़े हुए होते हैं जो उसे तेज़ गति से उड़ने और उसी गति से अपनी
दिशा बदलने में सहायता करते हैं-
आँख बाज़ की /झपट चील की तो /कौन बचेगा -डॉ
सुधेश
धर दबोचा/ मासूम चिड़िया को/ क्रूर बाज़ ने...डॉ भावना कुँअर
*कबूतर पूरे विश्व में पाये जाने वाला पक्षी है। यह एक नियततापी,
उड़ने वाला पक्षी है जिसका शरीर परों से ढका रहता है। यह जन्तु मनुष्य के सम्पर्क
में रहना अधिक पसन्द करता है। अनाज, मेवे और दालें इलका मुख्य भोजन हैं। भारत में
यह सफेद और सलेटी रंग के होते हैं पुराने जमाने में इसका प्रयोग पत्र और चिट्ठीयां
भेजने के लिये किया जाता था।कुछ उदारण देखें ----
श्वेत -कपोत /शांति से ओतप्रोत /हिंसा विहीन ---ज्योत्सना
प्रदीप
उड़ा कपोत /पंख फड़फड़ाता /डाकिया हंसा ---डॉ सरस्वती माथुर
कबूतर भी
/गिरती बर्फ देख /ऊष्मा खोजते...डॉ सरस्वती माथुर
मन टहनी /यादों का कपोत था /
थक के -उड़ा---डॉ सरस्वती माथुर
आतंकी बाज़ /कर गए शिकार /कबूतर का ---नमिता राकेश
सीख आया है
कबूतर की चाल चतुर चाँद ---अश्विनी कुमार विष्णु
*मोर भारतीय संस्कृति में विशेष
स्थान रखते हैं।यह एक बहुत ही सुन्दर, आकर्षक तथा शान वाला पक्षी है। बरसात के मौसम
में काली घटा छाने पर जब यह पक्षी पंख फैला कर नाचता है तो ऐसा लगता मानो इसने
हीरों-जड़ी शाही पोशाक पहनी हुई हो। इसीलिए इसे पक्षियों का राजा कहा जाता है।
पक्षियों का राजा होने के कारण ही प्रकृति ने इसके सिर पर ताज जैसी कलंगी लगाई है।
मोर के अद्भुत सौंदर्य के कारण ही-इसे राष्ट्रीय पक्षी का दर्जा दिया गया है
!संस्कृत भाषा में यह मयूर के नाम से जाना जाता है। मोर भारत तथा श्रीलंका में
बहुतायत में पाया जाता है। मोर मूलतः वन्य पक्षी है, लेकिन भोजन की तलाश इसे कई बार
मानव-आबादी तक ले आती है।मोर प्रारंभ से ही मनुष्य के आकर्षण का केंद्र रहा है।
अनेक धार्मिक कथाओं में मोर को बहुत ऊँचा दर्जा दिया गया है। हिन्दू धर्म में मोर
को मार कर खाना महापाप समझा जाता है। भगवान कृष्ण के मुकुट में लगा मोर का पंख इस
पक्षी के महत्व को दर्शाता है। महाकवि कालिदास ने महाकाव्य ‘मेघदूत’ में मोर को
राष्ट्रीय पक्षी से भी अधिक ऊँचा स्थान दिया है। राजा-महाराजाओं को भी मोर बहुत
पसंद रहा है। मेघों को देख कर मयूर के पैरों में स्वाभाविक थिरकन आ जाती है और इनके
कोलाहल से दिशाएँ मुखरित हो जाती हैं ! मोर मोरनी का नृत्य आनंदित कर देता है वर्षा
के पूर्व विधुतकी चमक से मयूर का हृदय आशापूर्ण कहा गया है lइसकी घुति अनेकावर्णी
हैl नीलाभ से चमकता हुआ कंठ है ,स्वर तीव्र एवं मधुर तथा नर्तन शोभन है lमेघो को
देख मयूर के पैरों में स्वाभाविक थिरकन आ जाती है और इनके कोलाहल से दिशाएँ मुखरित
हो जाती हैं, हाइकु मोतियों में हाइकुकारों ने गूँथी है माला---आषाढ़ माह /उगी मन
-मोर में/ नृत्य की चाह ---कुँवर बैचन
देखें टहुके मोर /याद आ गया कौन /इतनी
भोर...डॉ भगवत शरण अग्रवाल
चारों तरफ /फैले गुलमोहर/ मोर पंख से भावना
कुँअर
जुगनुओं से/ गुलमोहर वृक्ष है /झिलमिल ---डॉ भावना
कुँअर
छाई घटा तो /मोर बांध घुंघुरू /बागों में आया ---डॉ सरस्वती
माथुर
मन विभोर /मोरनी संग झूमा/ वीवी बावरा मोर ---डॉ सरस्वती
माथुर
बादल छाए / बाँध घुंघरू /बागों में आया ---रचना
श्रीवास्तव
अलस- भोर /माँ चुगती थी फूल /नाचता मोर ---कुमुद बंसल
आँवल -छाँह /नाचता था मयूर /माँ डाले दाना ---कुमुद बंसल
नाचेगा मोर ? / बचा ही न जंगल / ये कैसी भोर ?---ज्योत्सना
शर्मा
नाचे मयूर बादलों के संतूर /सुन- सुन के ---ज्योत्सना प्रदीप
बरसे मेघ
/गूँजे दादुर -राग /नाचे मयूर---डॉ क्रान्ति कुमार
नाचे मयूर /रिमझिम के संग
/नाचे मगन ---डॉ नूतन डिमरी गैरोला
देखे झलके/झूमे मन मयूर /हुआ बावरा ---सीमा
स्मृति
झूमें बदरा /गरजते मृदंग /मन मयूर /ज्योतिर्मयी पंत
*नीलकंठ एक भारतीय पक्षी
है। इसका आकार मैना के बराबर होता है।त्रावणकोर के दक्षिण भाग को छोड़कर शेष भारत
में यह पक्षी पाया जाता है। मान्यता है कि नीलकंठ को देखने मात्र से भाग्य का
दरवाज़ा खुल जाता है। यह पवित्र पक्षी माना जाता है।दशहरा पर लोग इसका दर्शन करने
के लिए बहुत लालायित रहते हिन्दू धर्म
ग्रंथों में भगवान शिवको 'नीलकंठ' के नाम
से पुकारा जाता है।
पीकर विष/हीबनाता है कोई /नीलकंठ सा ---रूपचंद
उपाध्याय
जीना जरूरी /हो जाओ नीलकंठ /जहर पियो ---डॉ गोपाल बाबू
शर्मा*चातक एक पक्षी
है इसके सिर पर चोटीनुमा रचना होती है। भारतीय साहित्य में इसके बारे में ऐसा माना
जाता है कि यह वर्षा की पहली बूंदों को ही पीता है। अगर यह पक्षी बहुत प्यासा है और
इसे एक साफ़ पानी की झील में डाल दिया जाए तब भी यह पानी नहीं पिएगा और अपनी चोंच
बंद कर लेगा ताकि झील का पानी इसके मुहं में न जा सके।
कुछ चित्र देखें
---बदरा भर /भर -भर उड़ेल/चातक पिए... डा. रमा
द्विवेदी
चातक-व्यथा /सीप के दिल बसी /अमोल हुई ---अनिता ललित
प्रेमी चातक /टकटकी लगाए /घन-घातक---नरेंद्र प्रसाद नवीन
चातक मन /तृप्ति चाहे सजन/तुम बरसो ---नूतन डिमरी
गैरोला
शशि किरण/ बनी ओस की बूंद /चातक मन --- उपासना सिहाग *गिलहरी एक छोटी आकृति की जानवर हैl गिलहरी सामान्यतः पूरे भारतवर्ष में पाई
जाती है। ये तीन और पाँच धारियों वाली होती है। पाँच धारियों वाली गिलहरी प्रायः
सभी जगह मिल जाती है। इनकी पूँछ पर छोटे-छोटे घने बाल होते हैं। यह बहुत पारिवारिक
होती है। यह बस्तियों या खेतों के आसपास रहती है। गिलहरी के कान लंबे और नुकीले
होते हैं और दुम घने और मुलायम रोयों से ढकी होती है। गिलहरी बहुत चंचल होती है और
बड़ी सरलता से पाली जा सकती है। गिलहरी अपने पिछले पैरों के सहारे बैठकर अगले पैरों
से हाथों की तरह काम ले सकती है। पेड़ों और झाड़ियों से दूर गिलहरियाँ शायद ही कभी
देखी जाती हों।आमतौर पर गिलहरी बगीचों, घरों के छज्जों तले या पेड़ों पर बिल बनाकर
रहती है। यह जमीन पर भी चल सकती है और उतनी ही आसानी से पेड़ों पर भी दौड़ सकती है।
गिलहरी लंबे-सीधे पेड़ व खड़ी दीवारों पर भी आसानी से चढ़ जाती है। इसके पैरों में
छोटे, बारीक नाखून होते हैं, जिनके सहारे यह सतह को आसानी को पकड़ लेती
है।
गिलहरी पर कुछ हाइकु यहाँ प्रस्तुत है
उमंग- भरी /शाखों पे गिलहरी
/उडनपरी ---डॉ सुधा गुप्ता
छत पे आती /चपल गिलहरी /पूंछ नचाती --- डॉ सुधा
गुप्ता
रही कुतर /वक्त की गिलहरी /दाईने शाम के ---डॉ शैल रस्तोगी
मेघ गिरते
/गिलहरी - सी धूप /भागी -दुबकी ---डॉ शैलजा सक्सेना
गिलहरी सी /फुदकती है धूप/
पेड़ पौधों पे ---डॉ सरस्वती माथुर
नीम अंधेरा /गिलहरी सा चढ़ा /रात खा गया ---डॉ
सरस्वती माथुर
तरु गगन /उड़ान है भरती/गिलहरियाँ ---डॉ सरस्वती माथुर
वन विरान
/गिलहरियाँ खोजे /शाखों के झूले ---सुनीता अग्रवाल
करती श्रम /पाँव पर पड़ी खड़ी
मैं /नन्ही हूँ तो क्या ---प्रियम्बरा
*मृग कस्तूरी ,मृग ,हिरण प्रकृति के
सुन्दरतम जीवों में से एक हैं --- जंगलों में कुलांचते भरते हैं --- झुंड में विचरण
करते हैं ,नीलगाय भी मृग की प्रजाति है lकुछ उदाहरण देखें ...
कस्तूरी मृग
/निर्भय विचरण /मनाते मोद ---डॉ सुधा गुप्ता
मृग बौराया /रास्ता भूली नदिया/ तुम
घर में ...डॉ शैल रस्तोगी
नैन मृगी -से /छलके हैं जबसे /अमृत पिये ---रामेश्वर
कंबोज "हिमांशु"
मृग बावरा /है नाभिमें कस्तूरी /कभी न जाने ---रामेश्वर कंबोज
"हिमांशु"
भरे कुलांचे /न थके तनिक भी /मेघा हिरण ---रामेश्वर कंबोज"हिमांशु
"
भटका मन /गुलमोहर वन बन /हिरण ---भावना कुँवर
ठहरी धूप /कुलांचे भरती सी /
हिरण हुई ---डॉ सरस्वती माथुर
बहुरूपिया /स्वर्ण हिरणबन /करता छल...डॉ सरस्वती
माथुर
गए शिकारी /खोज रही हिरनी /निज हिरना ---डॉ रमाकांत
श्रीवास्तव
कस्तूरी मृग /कितना अनजान /नाभि में गंध
-- शशि पाधा
यादें जंगल /मैं भटकी हिरणी/निकलें कैसे?---रेखा रोहतगी
घना जंगल
/भोली भाली हिरणी/सौ सौ खतरे---डॉ गोपाल शर्मा
घास हरी सी है पलंग बिछौना मनवा
छौना---अशोक कुंगवानी
मचल रहा /व्योम में मृगछौना /इंद्रधनुष --नलिंनकांत
दुख
का छौना छाती की गलियों में रार मचाए ---कृष्णा वर्मा
कस्तुरी तन /दौड़े मन हिरण /जग कानन ---कमला
निर्खूपी
सोने का मृग /सुंदर -सा छलावा /दुनिया जैसा --मंजुल दिनेश
नींद
के खेत/चार गए फसल /दुख चीतल ...सुभाष लखेड़ा
पूस की रात/शर्मीली-सी -हिरणी /चूमें बदन ---राजेंद्र मोहन त्रिवेदी बंधु
*जुगनू जो रात में सितारों की तरह टिमटिमाते हैं। रात के समय जुगनू
लगातार नहीं चमकते, बल्कि एकनिश्चित अंतराल पर कुछ समय के लिए चमकते और बुझते रहते
हैं। इसी रोशनी का इस्तेमाल ये अपनभोजन तलाशने में भी करते हैं। इनमें खास बात ये
है कि मादा जुगनू के पंख नहीं होते, इसलिए वह एक जगह बैठी ही चमकती है, जबकि नर
जुगनू उड़ते हुए भी चमकते हैं। यही एक कारण है, जिससे इन्हें आसानी से पहचाना जा
सकता है।
हाइकु कारो ने जुगनुओं के मनोरम दृश्य चित्रित किए हैं-----
किसी को
याद /बांस -वन जुगनू /टिमक गया... डॉ सुधा गुप्ता
पावस रात /पिकनिक मनाते /नाचे
जुगनू ---डॉ भगवत शरण अग्रवाल
दीप जलाएँ /जुगनू से चमके /हर आंगन ---डॉ हरदीप कौर
सिंधु
नन्हा जुगनू/ पड़ा टिमटिमाए/ टूटे पंख ले---डॉ भावना
कुँअर
मनी दिवाली /बाग -बगीचों में भी /जुगनू संग ---डॉ
भावना कुँअर
रिश्तों की संध्या /जुगनू -सी चमकी /रही दमक ---कुमुद
बंसल
मिलके जले /जलके
मिटा देंगे /सारा अंधेरा ---शोभा रस्तोगी 'शोभा '
स्मृतियाँ मेरी /विरह- रजनी
में /जुगनू बनी ---शोभा रस्तोगी 'शोभा '
प्रेम -जुगुनू /भावों की बाती जला /रोशन
हुआ ---डॉ सरस्वती माथुर
रात में दिया /बन जुगनू जले /तम से लड़े ---डॉ सरस्वती
माथुर
टिमटिमाते /काले अँधेरों में भी /प्यार जुगनू ---डॉ जेन्नी शबनम
हर्ष विश्वास/ले उतरे जुगनू /घर -आँगन ---रचना श्रीवास्तव
जुगनू जले /अंधेरी अमावस /सपने पाले ---डॉ शशि पाधा
घुप्प
अंधेरा /जुगनू ने उठाया /भोर का बीडा ---सुनीता अग्रवाल
राह दिखाओ /अरे ओ
जुगनुओं /रात है काली ---डॉ सुषमा सिंह
जुगनू दीप /टिमटिम करते /स्वप्न सज़े हैं
---भावना सक्सेना
रिश्तों की संध्या /जुगनू सी चमकी /रही दमकी ---कुमुद
बंसल
झाँकती यादें /मन आँगन मेरे /जैसे जुगनू ...डॉ अनीता कपूर
मिलके जले
/जुगुनू मिटा देंगे /सारा अंधेरा ...डॉ मिथिलेश कुमारी मिश्र
प्रेरणा बड़ी /संघर्ष ही जीवन /छोटा जीवन ---सरिता
भाटिया
सूरज भागा /दूर क्षितिज पर /जुगनू जागा ---सरिता भाटिया
*रंग बिरंगे
फूलों के साथ रहने वाली तितलियाँ भी बहुत सुंदर होती है तितलियाँ कई तरह की और कई
आकार की होती हैं रंगीन तितलियाँ सूर्य के आगमन से पलायन तक निरंतर फूलों पर
मंडराती है ,इन्हे और रंगीन बनाती है lप्रकृति के सारे रंगों की तितलियाँ जाने कहाँ
से सँजो कर लाती हैं किइंद्रधनुष भी फीका पड़ता है lअलग अलग रंग लिए कहीं पलाश के
जैसे रंग की लाली ,कहीं अंबर सी नीली ,कहीं सरसों सी पीली ,फूलों को चूमती ,डाल डाल
पर उड़ती,इठला कर झूमती हाइकुकारों को मोह लेती हैं lकुछ सुंदर हाइकु द्रष्टव्य
हैं –
अनूठे रंग /तितलियाँ उड़ती /हवा के संग ---डॉ सुधा गुप्ता
रोती तितली /कंक्रीट जंगल /में /फूल कहाँ हैं ---डॉ सुधा
गुप्ता
फूल- पंखुरी /तितली के पंख सी /नाज़ुक दोस्ती ---डॉहरदीप कौर
सिंधु
शोख तितली /खूब खेलती खो खो /फूलों के संग ---रामेश्वर कंबोज
"हिमांशु"
तितली बिंधी /लम्पट गुलाब ने /खींचा आँचल ---रामेश्वर कंबोज 'हिमांशु
"
आहट आते /उड़ती तितलियाँ /मेरे मन में ---डॉ भगवत शरण अग्रवाल
बसंती मन /तितली सा डोलता /रंग घोलता ---डॉ सरस्वती माथुर
तितली
लिए /रंग बिरंगा /झण्डा /फूलों पे चली ---डॉ सरस्वती माथुर
कैटरपिलर /मन भीतर
रंगा /तितली हुआ --- डॉ सरस्वती माथुर
पुष्प जो खिले /रंगीन तितलियाँ झूला -सा झूले ---सुदर्शन नागर
थिरक रही /पुखराजी पुष्पों पे /ये तितलियाँ ---सुदेर्शन नागर
सूनी है डाली /चिड़िया न तितली /आँधी ले उडी...डॉ जेन्नी
शबनम
तितली-दल/कपोल चूम /दग्ध पलाश ---पुष्पा मेहरा
तितली उडी /चुराये जो
पराग/बिखेरे कहाँ ---श्याम खरे
तितली दल/ खोल डाले किसने /रंगों के नल ---डॉ
भावना कुँअर
नन्ही तितली /खेले आँख मिचौली/कमल संग ---डॉ भावना कुँअर
नन्ही
तितली /बुरी फंसीजाल में /नोंच ली गयी ---डॉ भावना कुँअर
तितली बन /चला फूलों के
गाँव /वो मनचला ---भावना कुँवर
खिले पलाश /तितली ओ भँवरे /मन उल्लास ---हरकीरत
हीर
रंग -बिरंगी /तितली के पंखों -सी /चुनरी सोहे ---निर्मल कपिला
सुंदर स्वप्न /तितली बन उड़े /मधुबन में---शशि पुरवार
अब
न आतीं /धूप की तितलियाँ /ब्याहीं विदेश ---शशि पाधा
तितलियों -सी /मन की
कामनाएँ /खूब छकाएँ---सुभाष नीरव
लड़ते नहीं /तितली मधुमक्खी /फूल के लिए
---एस॰डी॰तिवारी
अपने संग /सहेजती मैं रंग /तितली बन ---सीमा स्मृति
छू ही आई है /हिम्मत की तितली /ऊंचेन ख्वाब को ---अरुण कुमार
रूहेला
* हमारे साहित्य में
भँवरे को एक विशेष स्थान हासिल है।भँवरे काले रंग का उड़नेवाला एक पतंगा जो फूलों
पर मँडराता और उसका रस चूसता है। इसके छः पैर, दो पर और दो मूँछें होती हैं। वह
कलिओं का रसपान करता है और फिर उड़ जाता है। किसी एक पुष्प पर टिकना उसका स्वाभाव
नहीं है। वह रंग का काला है अतः मन का भी काला मान लिया जाता है। उसकी प्रकृति चंचल
है। बेचारा भँवरा। वो क्या करे बगिया में वह अकेला है और पुष्प ढेर सारे। सभी को
विकसित करवाना उसका कर्तव्य है सो वह एक कली , एक पुष्प का होकर नहीं रह सकता । पर
क्या करें ये कवि उस की इस मज़बूरी को नहीं समझते और उसे बेवजह खलनायक बना देते
हैं।कुछ कुछ रसिया स्वभाव में प्रीत ढूंढ लेते हैं ! मधुप फूलों के पराग से आकर्षित
हो कर मँडराता और गुंजन करता है ,अपने नाम के अनुरूप मधुपायी है उदाहरण स्वरूप कुछ
हाइकु देखे जा सकते हैं -
चुप चिड़िया/ लील गई गर्मी /दाना व पानी ---रामेश्वर कंबोज
"हिमांशु"
भौंरा मुसकाए /तितली बेखबर /जान न पाये ---रामेश्वर कंबोज
"हिमांशु"
पागल भोंरा/ दर दर भटके/बना मलंग
---पूर्णिमा वर्मन
आया है मीत/काली का मन मोहे /भ्रमर गीत ---डॉ कुँवर दिनेश
सिंह
झूमे बसंत /श्यामल भ्रमर की /चली पढ़ंत ---डॉ कुँवर दिनेश सिंह
वृक्ष लता
पे /झूमे मधुकर तो /सुमन खिले ---डॉ सरस्वती माथुर
भँवरे झूमे /कलियों के पाटल /खिलते गए ---डॉ सरस्वती माथुर
गंध के डोरे
/अंजान है मालती/भौंरे हैंछेड़े --- डॉ सरस्वती माथुर
नव प्रभात /धूप भँवरों पर /हुआ मोहित ---डॉ सरस्वती
माथुर
आत्मिक नहीं /फूल -भौंरे का प्रेम /वो रस लोभी ---रचना श्रीवास्तव
रंग देख के / भँवरे रहे दूर /कागजी फूल ---डॉ श्याम सुंदर' दीप्ति
'खिले
पलाश /तितली ओ भँवरे /मन उल्लास ---हरकीरत हीर
पा रश्मि स्पर्श /गुनगुनाया भौंरा /खुली पांखुरी ---शशि पाधा
गूँजे भ्रमर /रंग हुए प्रखर /है मधुमास ---अनुपमा त्रिपाठी
रस जगाए /रंग में डूब जाई /भँवरा गूँजे ---अनुपमा त्रिपाठी
यादों की गंध /बैचेंन हो उठा है/मधुप मन...डॉ उर्मिला
अग्रवाल
थिरक उठी /फूलों की सहलियां /भौंरों के संग--- कमला निर्खुपी
खिली
चाँदनी /भौंरे गीत सुनाएँ /झूमें पलाश ---शशि पुरवार
भँवरे गाते /महकता उपवन
/पुष्प लुभाते ---शशि पुरवार
खिले पुहुप/ गुनगुनाया भौंरा /राग बसंत ---अनुपमा
त्रिपाठी
फूलों का रंग /भँवरों की गुंजन /सब अधूरी ---शैफाली गुप्ता
भौंरे की
धुन /सुन काली महकी /फगुआ गाती ---गुंजन अग्रवाल
नवल पात /डाल डाल भँवरे/ आया
बसंत ---कल्पना रमानी
कमल खिले /भँवरे झुक झूमें/मुखड़ा चूमें ---नवीन
चतुर्वेदी
मधधुमालती /आली भरें गागर /मधु -सागर ---गुंजन अग्रवाल
*सच कहते हैं कि हाइकु
सृष्टि सौंदर्य का अनुभव कराती है lहाइकु का क्षेत्र असीम हैlहाइकुकार किसी भी
दृश्य या सरोकार पर हाइकु रच सकता है l धरती का विशाल आँगन हो ,प्रकृति का विस्तृत
रूप हो ,चाँद को एकटक निहारता चकोर हो ,वर्षा मे पातों पे रेंगती मखमली वीरबहूटी
हो,झींगुर की आवाज़ हो या टर्र टर्र करता दादुर - मेंढ़क - मछलियाँ या जलपाखी हों या
सागर किनारे की रेत पर बिखरे सीपी शंख हों ,देखें हाइकु ---
बदरा तले /मेंढक की
मंडली /जन्मों की बातें ---मनोशी चटर्जी
बरखा- रानी / ले आई नव आस /दादुर राग
---डॉ क्रांति कुमार
दादुर तेरा /बरसी जो बदली /मन मयूरा ---डॉ ज्योत्सना
शर्मा
मौसम आया / मेंढक की चुप्पी ने /अर्थ बताया ---डॉ सरस्वती माथुर
मेंढकी
सी थीं /बारिश की बूंदें /गेंद सी उछली---डॉ सरस्वती माथुर
*सीपी में मोती
वस्तुत: मोलस्क जाति के एक प्राणी द्वारा क्रिस्टलीकरण की प्रक्रिया द्वारा बनता
है।
हाइकुकारों ने उन्हे भी शब्दों में बांधा है ...कतिपय उदाहरण प्रासंगिक
होंगे --
उषा की माला /बिखरे हुए मोती /दूर्वा सहजे ---डॉ सुधा गुप्ता
जो
भीगा पल /शब्द -सीपी में ढले /हाइकु बने ---डॉ सावित्री डागा
घृणा है घोंघा
/प्रेम है मोती पा लेना /खेल मौत से --- डॉ सावित्री
डागा
बिटियां होती /फूल
पंखुरियों पे /ओस के मोती डॉ हरदीप कौर सिंध
यादों के मोती /चली पिरोती सुई /हार किसे दूँ ?---उर्मिला
कौल
मन की माला /भावों के मोती -गूँथी /छोड़े न साथ...रामेश्वर कंबोज
"हिमांशु "
मोती उलझे /बरौनियों की नोंक /बह न सके---रामेश्वर कंबोज
"हिमांशु'
धरती पर /हीरे -मोती से बड़ा /क्या है गहना
?---रामेश्वर कंबोज "हिमांशु"
यादों के मोती /मैं पिराऊँ माला में / महक जाऊँ ---रचना
श्रीवास्तव
मोती से टंके/धरा के आँचल पे / हरसिंगाार ---रचना श्रीवास्तव
सावन लाए /आँचल भर मोती ।आँगन भीगे
---रचना श्रीवास्तव
ओसकण के/ मुक्ताहार से
करें/ धरा शृंगार ...डॉ सरस्वती माथुर
कुंवारी रेत /सीपी प्रसव से /जन्मता मोती
---डॉ सरस्वती माथुर
मोती ही मोती /सागर से चुन लो /लगा डुबकी ---सुदर्शन
रत्नाकर
शंख हैं मौन /चुप हुए मृदंग /बजाए कौन ---कुमुद बंसल
ओस की बूंद /पत्तों पे मोती दिखे /हाथ में पानी ---श्याम खरे
किसने टांके /मखमली घास पे /ओस के मोती ...पुष्पा मेहरा
यादों
के मोती /समेट न सका /सीप दिल में --- सावित्री चंद्र
चाँद उतरा/सीपियों के
अंगना /सिंधु मचला ---अनिता ललित
बूंद है प्यासी /सीप में उतार के /मोती होने को
---डॉ ॰नूतन डिमरी गैरोला
ख्वाब काँच -से /आँखों पे रुके जब /हुए मोती से ---डॉ
नूतन डिमरी गैरोला
कनी रेत की /सहे सीप में पीड़ा /बनेगी मोती ---ज्योत्सना
शर्मा
रहे समीप /ज्यों मोती और सीप /खुशनसीब ---कृष्ण वर्मा
मन का सीप/पुकारे
बादल को/मोती बरसे--- कमला निर्खुपी
नैनों की सीपी/चम -चम चमके/नेह के
मोती--कमला निर्खुपी
कीमती मोती/हृदय की सीप में /तुम्हारी याद ---सारिका
मुकेश
साँस है धागा /उम्र पिरोये मोती /जीवन -माला ---अनीता
ललित
ममता रोती-/कोई पिरो दे मेरे/बिखरे मोती ---मुमताज व टी एच
खान
बूंद है प्यासी /सीप में उतार के मोती होने को ---नूतन डिमरी
गैरोला
ओस की बूंद /पत्तों पे मोती दिखे /हाथ में पानी ---श्याम खरे
न
प्रांगण /यादों के बादल से /झरते मोती ---शशि पूरवार
प्रेम वर्ण-से/ गूँथे मोती
की माला के /आज बिखरे --शैफालीगुप्ता
आखर- मोती /पिरोती चली जाऊँ/हार न
मानूँ---डॉ निशा जैन
बंद सीपीयाँ/उपजे मुक्तकण/बिखरे दर्द ---डॉ निशा जैन
नभ
की ओस /झरी मधुबन में /मोती बन के ---मंजु गुप्ता
शुभ संदेश /दमदम दमके/नयन मोती
---ऋता शेखर ‘मधु’
बिखरे मोती /टूटी मन की माला /साथ मिलाना ---सीमा
स्मृति
दोस्ती
दरिया /धोका शंख/-सीपीयाँ/रिश्ता मलिन ---विभा श्रीवास्तव
सीप मुख से /फैले रंग
-बिरेंगे/ मोती धरा पे ---डॉ अर्पिता अग्रवाल
जलपाखी से /पतझड़ के पत्ते /हवा नदी
में ---डॉ सरस्वती माथुर
शशि किरण/ बनी ओस की बूंद /चातक मन --- उपासना
सिहाग
ग़म के मोती /पिरोये आँसुओं में /बनी है माला ---सपना
माँगलिक
*भारतीय इतिहास में दर्शन और भोजन दोनों दृष्टि से शुभ और श्रेष्ठ
मानी जाने वाली मछली जलीय पर्यावरण पर आश्रित है तथा जलीय पर्यावरण को संतुलित रखने
में मछली की काफी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। यह कथन अपने में पर्याप्त बल रखता है
जिस पानी में मछली नहीं हो तो निश्चित ही उस पानी की जल जैविक स्थिति सामान्य नहीं
है। वैज्ञानिकों द्वारा मछली को बायोइंडीकेटर माना गया है। विभिन्न जलस्रोतों में
चाहे तीव्र अथवा मन्द गति से प्रवाहित होने वाली नदियां हो, चाहे प्राकृतिक झीलें,
तालाब अथवा मानव-निर्मित बड़े या मध्यम आकार के जलाशय, सभी के
पर्यावरण का यदि सूक्ष्म अध्ययन किया जाय तो निष्कर्ष निकलता है कि पानी और मछली
दोनों एक दूसरे से काफी जुड़े हुए हैं। पर्यावरण को संतुलित रखने में मछली की विशेष
उपयोगिता है।कुछ हाइकु देखें -
ठंडी कविता /मारी हुई मछली/की फटी आँख
---सावित्री डागा
तड़प रही /जल बिन मछ्ली/बिन तेरे मैं ---डॉ हरदीप कौर संधु
गंदला पानी /रो रही मछलियाँ /वे जाएँ कहाँ ---हरदीप संधु
जाल फेंकता/सूरज का
मछेरा/धूप तितली ---डॉ सरस्वती माथुर
उम्र की डोर /सौन मछरिया सी /हाथ से गिरी
---डॉ सरस्वती माथुर
धूप मछ्ली /सूर्य नें फ़ेंकाजाल/ मछुआरे सा ...डॉ सरस्वती
माथु
नभ सागर /तारों का मीन पुंज /तिरता जाए ---डॉ सरस्वती माथुर
सूखे -से ताल /जल बिन मछली /हाल-बेहाल ---शशि पाधा
न है मीन -सा /आकुल रहता
है /लिए पिपासा ---अनुपमा त्रिपाठी
हृदय-झील /तैरती आकांक्षाएँ/मीन मानिंद
---महिमा मंजु
तडपी मीन /विचलित होकर /सूखा पोखर ...अशोक दर्द
नभ में पंछी /सागर -तन मीन /कहाँ बसूँ मैं ?---डॉ ऋतु
पल्लवी
जग भीतर /व्याकुल व आतुर /मछ्ली मन ---घनश्याम
नाथ कच्छावा
*चकोर चंद्र किरणों को पीने वाला मदमस्त पक्षी है ,इसके नेत्रों को मद से
मतवाला कहा गया है समशीतोष्णकटिबांधों में वर्षा काल के बाद नए हरे हरे वनो में इस
पक्षी के जोड़े मिलते हैं सूडोल शिर ,बड़ी बड़ी रतनार आँखों वाले चकोर की एक एक गति से
स्फूर्ति टपकती है कुछ उदाहरण यहाँ प्रस्तुत हैं--
ख्वाब उगा है /आँखों के नभ पर
/नींद चकोर ---डॉ सरस्वती माथुर
चाँद को देख /अकुलाया चकोर /प्यार गहन ---डॉ
सरस्वती माथुर
चकोर मन/ चाँदनी नदिया से/ प्यास बुझाये---डॉ सरस्वती माथुर
*बीरबहूटी एक खूबसूरत मखमली सा कीट है जो बारिश के बाद
धोरों पर नजर आता है ! इसे सावन की डोकरी , इंद्रवधू और बूढ़ी माई भी कहते हैं
..
कुशल पूछे/ वीर बहूटी भेज/ मेघ धरा की ---डॉ दयाकृष्ण विजयवेर्गीय
'विजय'
हरी घास पे/वीरबहूटी चली/ दुल्हन लगे ---डा० सरस्वती माथुर...
*झींगुर (क्रिकेट) एक कीट है । यह रात में झीं
की आवाज निकालने के लिये जाना जाता है।जबकि पतंगा शमा पर न्योछावर हो जाता है
...उदारणों में हाइकुकारों ने सुंदर बिम्ब उतारे हैं ...
मन पतंगा /भावों की
रोशनी पे /पंख फैलाये ---डॉ सरस्वती माथुर
फूल तिरंगे /जुगनू तितलियाँ /उड़े पतंगे - सरिता भाटिया
झींगुर छेड़े /अशोक टहनी पे/ रात के राग... डॉ
सरस्वती माथुर
वर्षा की साँझ /बजाते शहनाई /छिपे झींगुर ---रमाकान्त
श्रीवास्तव
अंधेरी रात /झींगुर चौकीदार सीटी बजाते ---सुभाष नीरव
आग बरसे/
जंगल में सन्नाटा/झींगुर गाए ---ललित मावर
*मच्छर मक्खी केंचुआ,दीमक ,चींटी बिच्छू,मकड़ी सभी जीवों पर हाइकुकारों ने अपनी
लेखनी चलाई है ।कुछ उदाहरण प्रस्तुत हैं---
जाले बुनती /यादों की मकड़ियाँ /नहीं
थकती ---डॉ सुधा गुप्ता
यादों की लोई /खूंटी पे टंगे टंगे /कीड़े -कुतरी --डॉ
सुधा गुप्ता
विचार घूमें /भिन्नाती मक्खियों से /मन मिठाई ---डॉ सरस्वती
माथुर
मकडजाल /पेंटर सी मकड़ी /रेशम के तार ---डॉ सरस्वती माथुर
फूले जो फूल
/आई मधु मक्खियाँ/संझा को भूल ---पुष्पा मेहरा
चींटो से घिरा /छटपटाता केंचुआ
/कहाँ हो प्रभु ?---आदित्य प्रताप सिंह
ये स्वर्ग पुष्प /सुने राग बहार मधुमक्खी
का ---ज्योत्सना प्रदीप
लड़ते नहीं /तितली मधुमक्खी /फूल के लिए --- एस
॰डी॰तिवारी
मधु डंक हैं / मधुमक्खी रखती/ चाह मधु की ---डॉ विधा सिंहबिन्दु
खूब टॉवर लगे/मधुमक्खी बेचारी /रस्ता भूली ।---उमा घिलिडियाल
दीमक मन /यादों
की किताब को /चाटता गया ---डॉ सरस्वती माथुर
किताब खाने /दीमकों का घर हो /छत से
हुए --- डॉ सरस्वती माथुर
शक ,दीमक /रिश्तों में दूरियाँ /मकडजाल---शशि
पुरवार
नशे की लत/चाटे कुल दीपक/ बन दीमक---राजीव नामदेव राणा लिधौरी
मकडजाल /उलझाए सबको /है विकराल ---मीना अग्रवाल
गर्मी में साथी
-मच्छर से बचना /ध्यान रखना ---नूतन डीमरी गैरोला
पतों ने बुनें /अपने ही
बंधन/रेशम -कीट---डाँ अश्विनी शर्मा विष्णु
मधु मक्खियाँ/ चूस रही मिठास /खिले फूलों से --सुप्रीत कौरसिंधु
*हम सभी ने देखा है कि अनेक पर्व त्योहारों पर
पशु पक्षियों कि पूजा करना हमारी परम्पराओं का हिस्सा है बैल (नंदी )का शिव के साथ
,लक्ष्मी का हाथी के साथ चूहे का गणेश जी के, दुर्गा का सिंह सरस्वती का मोर ,हिरण
का ब्रह्म के साथव कृष्ण जी का गाय के साथ पौराणिक संबंध देखा जा सकता है
l
हमारे ऋषियों ने गौ को माता माना हैl निश्चय ही गाय मानव जातिको ईश्वर की देन
है / देखें कुछ हाइकु --
पगुरा रही /कारी धवारी गैया /नीम की छैया ...डॉ सुधा
गुप्ता
अश्रु -गौमुख /ये सीने में छुपाये /उम्र बिताए...रामेश्वर
कंबोज"हिमांशु'
गाय को मिली /रोटी अनुदान में/ कुत्ता खा गया ...डॉ सुरेन्द्र
वर्मा
बाछी रंभाये / अम्माँ गई जो खेत/चारा चुगने ---डाँ जेन्नी शबनम
इसी
तरह बैल और सांड आज भी प्राचीन काल की तरह ही हमारी ग्रामीण अर्थव्यवस्था का
महत्वपूर्ण हिस्सा हैं --
निभाए नहीं /जूते हुए बैलन्स /रिश्ते हैं सहे
---रामेश्वर कंबोज "हिमांशु "
चिड़ियाँ चीं चीं/बैल गल तालियाँ /अमृत बेला ---
प्रो॰ हरिन्द्र कौर सोही
चौराहों पर /घूमता सांड जैसा/ बेखौफ डर---रामेश्वर
कंबोज "हिमांशु
बैल गाड़ी के/ पीछे पीछे है / बैल का चलन--- राम किशोर
उपाध्याय
चौकड़ी भरे /मरखाने सांड -सा /अंधड़ चला ---रामेश्वर कंबोज "हिमांशु
"
व्याकुल गाँव /व्याकुल होरी का हैं /घायल पाँव ---रामेश्वर कंबोज 'हिमांशु
"
संगीत -भरे /बैलगाड़ी का स्वर /किसान हर्षा ---सविता अग्रवाल "सवि"
संगीत
भरे /बैलगाड़ी का स्वर /किसान हर्षा ---ऋतु शेखर ‘मधु’
पक्की सड़क/काँपता तन मन
/भूखा बछड़ा ...अरुण सिंह रूहेला
*ज्योतिष शास्त्र कि बारह राशियाँ आज भी
पशुओं के नाम पर हैं तो सूअर की पृथ्वी की रक्षा के लिए वराह अवतार के रूप में
मान्यता है l कुछ जीव नुकसान पहुंचाते है जैसे चूहा ,भेड़िया टिड्डी आदि सभी
हमारे ईकोसिस्टम की कड़ी हैं और फूड चैन द्वारा संतुलन कायम करती है प्रकृति में
! इसके अलावा श्राद्ध पक्ष में कौवे और चीलों को भोजन करवाना ,कुत्ते -बिल्ली को
रोटी डालना ,कबूतर को दाना डालना ,बंदरों को गुड चना खिलाना ,चिड़िया के लिए परिंड़ा
बनाना ,तोते पालना और चींटी को चुगगा आटा डालना ,वन सोमवार मनाना आदि परम्पराएँ
हमारे पशु प्रेम को दर्शाती हैं l
मानव कम /धन पशु अधिक /बांटे जहर ---रामेश्वर
कंबोज"हिमांशु "
"हिमांशु "जनता भेड /जन नेता भेड़िये /खड़े बाट में ---रामेश्वर
कंबोज"हिमांशु"
पावन प्यार /भूलें हैं बहनों का /पशु पुरुष ---रामेश्वर
कंबोज"हिमांशु"
कैसा वक्त है /कुत्ता खा रहा रोटी /आदमी बोटी ---डॉ सतीश पुष्करणा
निरीह राजा /वानर राज फैला /कष्ट में प्रजा --- भावना कुँवर
जिस
ज्ञान का/ न जीवन में उतार /गधे का भार ...डॉ सावित्री डागा
अंध पूजक /बलि बकरे
पोषे/बच्चे हैं भूखे ---ज्योतिर्मयी पंत
भेड है प्रजा /मनमानी करे तो/ मिलेगी
सज़ा...मीना अग्रवाल
भूखे भेड़िये /ढूंढ रहे शिकार /गरीब -मार...अशोक
दर्द
मुर्ग बंदर /मदारी बराबर /प्रजातन्त्र के ---रूपचन्द्र उपाध्याय
बंदर-
बाँट /बांटता रहा देश /मंत्री की ऐश ---धर्मेंद्र कुँवर सिंह
मन दहाड़ा /जंगल के
शेर सा / गूँज के लौटा।---डॉ सरस्वती माथुर
डरी सी आँखें /दहशत से काँपे/
बिल्लियाँ रोये...डॉ सरस्वती माथुर
दिवाली भोज /झूठे पत्तल खाते /वो और कुत्ते ---रचना
श्रीवास्तव
खेत में हवा/चौकड़ियाँ भरते/ हरे बछड़े ---आदित्य प्रसाद
सिंह
दूध है खत्म /बिल्ली हताश अब /खींसे निपोरे---नमिता
राकेश
बेचारा चूहा /शेर -बिल्ली की दोस्ती /जाल में फंसा ---नमिता राकेश
बांधो घंटियाँ /समय आ गया है /चूहा चिल्लाया ---नमिता
राकेश
बिल्लियाँ कई /बंधेगा कौन घंटी /चूहों में फूट ---नमिता
राकेश
*भारतीय पुराणो में सर्प को एक लाभप्रद
जीव माना गया है जो अपना फन फैला कर जैविकसुरक्षा प्रदान करता और नागपंचमी पर पूजा
जाता है l
कुछ हाइकु देखें--
शीत के दिनो/सर्प -सी फुफकारे /चले
हवाएँ---डॉ हरदीप कौर सिंधु
दायें न बाएँ /खड़े हैं अजगर /किधर जाएँ ---रामेश्वर
कंबोज "हिमांशु "
शंका का सर्प /फुफकारे जितना /बढ़ता दर्प ---रामेश्वर कंबोज
"हिमांशु"
चन्दन -वन /सा शापित जीवन/भुजंग -तन ---रामेश्वर कंबोज 'हिमांशु"
नाग देवता/बैठे आसन मारे/ये फुफकारें ---रामेश्वर कंबोज
हिमांशु
नाग है खुश/कि ये श्वान हमारे/खौफ़ ही बाँटें ---रामेश्वर कंबोज
"हिमांशु"
सूरज छोड़े /धूप की केंचुलियाँ /दिन साँप सा --- डॉ सरस्वती
माथुर
केंचुली छोड़ /यादों का साँप भी दूर निकला --- डॉ सरस्वती माथुर
साँप बन
के/ लिपटी रही यादें /कैसे छुड़ाऊँ ...डॉ सरस्वती माथुर
अजगर से /खुलते हैं जंगल
/लीलते जाते--- डॉ सरस्वती माथुर
यादों का सर्प /मन के जंगल में /फुफकारता ...डॉ
सरस्वती माथुर
चन्दन -तरु /सर्प अंग लिपटे /विष न चखे ---शशि पाधा
युद्ध है
सर्प/प्रदूषण है डंक /कुचलों फन ---अनिता ललित
सर्द जंगल /फुफकारती हवा /माघ
नागिन ---नीलमेंदू सागर
भीड़ से लड़ी /बलखती चलती /काली नागिन --- मनोशी
चटर्जी
चन्दन वन /लिपट रहे हैं सर्प /गंध स्वछन्द...रामस्वरूप मूंदडा
सांप
बिलों में /उससे कहीं ज्यादा /हैं आस्तीनों में ---डॉ गोपाल शर्मा
प्रेम-चन्दन/
लूट जाए न लाज /लिपटे सर्प ---सुनीता अग्रवाल
धुंधलके में /सर्प -सी इच्छाओं का
/आवागमन ---तुहिना रंजन
दर्प का सर्प /चला मन से पर/ केंचूली छोड़ ---ज्योत्सना
प्रदीप
बांबी में कम / आस्तीन में अधिक /साँप आज भी --डॉ राजकुमारी शर्मा
थकते नहीं /केंचुली बदलते /मन के साँप ---डॉ अनीता कपूर
पालें न नाग /पालोगे
तो लगेगी /देश में आग ---सुभाष लखेडा
साँपों से दोस्ती /करना न कभी /जन लो अभी
---सुभाष लखेड़ा
साँप का दूध/ गरीब को ठोकर/ देखो दुनिया---दिलबाग विर्क
धरा के सर /रेतीला अजगर/ढाता कहर ---राधेश्याम
फन फैलाये /एक काली रात लगती /विषधर सी --- नरेंद्र प्रसाद नवीन
सर्पीली पत्ती/ नरम मुलायम/ अदा दिखाये---ऋता शेखर मधु
हमारे यहाँ तो बाकायदा मेलों में पशु मेला लगाए जाने की परंपरा भी
है !ऊंट घोडा ,गधे ,बकरी आदि सभी लोकजीवन में महत्व रखते हैं l
*वैज्ञानिक रूप से भी देखें तो इन जीव जंतुओं की प्राकृतिक संतुलन
बनाए रखने में विशेष भूमिका है यही कारण है कि इनके संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़
गयी है,देखें ये हाइकु ---
कभी न छीनो /वन्य जीवों का घर/भू रही चेता---डॉ सुधा
गुप्ता
असंख्य जीव /पाते हैं संरक्षण /इनको गोद---डॉ सुधा गुप्ता यह जीव जन्तु रहेंगे तो हमारी
लोकसंस्कृति रहेगी और यदि संस्कृति को जीवित रखना है तो वन्य जीवों के संरक्षण को
हमनें अपनी दिनचर्या का अभिन्न अंग बनाना होगा lयदि हमने जीव जंतुओं की सुरक्षा
नहीं की तो हम प्रकृति की अमूल्य धरोवर से सदेव के लिए वंचित रह जाएँगे !
डॉ सरस्वती माथुर
ए -2 ,सिविल लाइंस
जयपुर -6
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हमारी भारतीय संस्कृति सम्पूर्ण जीव जंतुओं -पशु पक्षियों और वृक्षों को मानव अस्तित्व की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण घटक मानती है l उनमें से भी कुछ पशु और पक्षी ऐसे हैं जिनके नहीं होने से मानव अस्तित्व भी संकट में आ सकता है !शेर, हाथी, मोर, कुत्ता, चूहा, सर्प, मगरमच्छ, मछली, कछुआ, कौवे से लगाकर अन्य बड़े व छोटे- छोटे जीव जन्तुओं के प्रति हमेशा हमारा हमेशा से सम्मान भाव रहा है . जैव-विविधता के संसार के प्रति यह भाव ही भारत का अनूठा और वैज्ञानिक दर्शन रहा है. इसका मुख्य मकसद भी यह है कि पर्यावरण और जैव-विविधता का संरक्षण कर हमें प्रकृति के पारिस्थितिक संतुलन को बचाना है !हम शेर सर्प ,व गाय पूजक समाज रहे हैं. इसका संदेश साफ है- यदि किसी क्षेत्र में शेर विचरण करते हैं ,गाये घूमती है और सर्प सुरक्षित हैं तो समझिए कि समग्र पर्यावरण की दृष्टि से वहां हालात अनुकूल हैं!
भारत के सांस्कृतिक जीवन में पशु पक्षी प्राचीन काल से ही प्रासंगिक रहे हैंl रामायण व महाभारत काल में तो इन पशु पक्षियों ने हमारे अवतारों और देवताओं के साथ सामाजिक सरोकारों में भी अपनी भूमिका समय समय पर निभाई है lयही कारण है कि हमारे धार्मिक ,सामाजिक व सांस्कृतिक साहित्य में जीव -जन्तु स्वेच्छा से टहलते नज़र आते हैं ! वैदिक साहित्य तक में जंतुओं ,पौधों ,तथा तथा प्राकृतिक घटनाओं का वर्णन है !वेद ,रामायण ,महाभारत ,उपनिषद तथा अर्थशास्त्र (350 बी॰ सी )आदि भारतीय ग्रन्थों से पता चलता है कि हमारे पूर्वजों को भी जीव विज्ञान का पर्याप्त ज्ञान था lहमारे साहित्यकारोंके साथ साथ हाइकुकारों ने भी विशेष रूप से अपनी रचनाओं में जीव जंतुओं कीट पतंगों व पक्षियों का परिवेश और ऋतु के अनुसार विशेष रूप से उल्लेख किया है और उनके महत्व को दर्शाया है !
हाइकु विधा का सौंद्रर्य ही यह है कि वह अत्यंत संक्षिप्त ,सीधी ,सादी ,सुकुमार और शुद्ध होती है 17 पंक्तियों में 5+7+5 के शैली क्रम में पशु पक्षियों ,जीव जंतुओं का बिम्ब विधान ,भावों और अनुभूतियों के चित्र व कथ्य के रूप में दिखाने में हाइकुकार पूर्ण सफल रहें हैं lइसलिये साहित्य में अन्य विधाओं के साथ हाइकु का विशेष स्थान है lजीव जंतुओं और पशु पक्षियों को लेकर कई हाइकुकारों ने सुंदर हाइकु लिख कर प्रकृति और परिवेश के यथार्थ परक प्रतिकात्मक चित्र उकेरे हैं
*हाथी आधुनिक मानव के समय का पृथ्वी पर विचरण करने वाला, सबसे विशालकाय स्तनपायी जीव है।
.मेघों के हाथी /चिंघाड़ टकराए /अंबर कांपे ---रामेश्वर कंबोज 'हिमांशु '
इन्द्र के हाथी /चिंघाड़े ,हारे ,थके /बहा पसीना ---राधेश्याम
घोड़ा (अश्व) मनुष्य से जुड़ा हुआ संसार का सबसे प्राचीन स्तनपोषी प्राणी है, जिसने अज्ञात काल से मनुष्य की किसी ने किसी रूप में सेवा की है।
उदाहरण स्वरूप कतिपय हाइकुओं को देखा जा सकता है -
॰काठ के घोड़े /चलता तन कर /माटी सवार ---सुधा गुप्ता
अपने घोड़े /बेलगाम हो गए /कैसी लाचारी ---डॉ सावित्री डागा
.बांध के बोरे /लाता है धो कर /हवा का घोडा ---जगदीश व्योम
सौंप तिमिर /सूर्य घोडा बेच के/ सपट सोया ---डॉ सरस्वती माथुरघोड़ा लापता/ लू पे चला सवार/केवल कोड़ा ---आदित्य प्रसादशीत-प्रकोप /डरे छिपे रवि /सातों ही घोड़े ---डॉ क्रांति कुमार
जैसा युग है /गधे निकल भागे /घोड़ों से आगे ---डॉ सुधेश
सूर्य के घोड़े /धाम के विरोध में /ंअड के खड़े ---- उमेश महादोषी
दाैडता आया/धूल की गठती ले/हवा का घोड़ा --- डाँ ।प्रियंका गुप्ता
*हाइकुकारों ने जलचर ,थलचर ,व नभचर पशु पक्षियों -जीव जंतुओं का विषाद एवं प्रासंगिक वर्णन अपने हाइकुओं में किया है lकुछ उदाहरण यहाँ प्रासंगिक होंगें----
गंदला पानी /रो रही मछलियाँ /जाएँ कहाँ ---हरदीप संधू
किसी की याद /फिर फड़फड़ाई /छाती में फाख्ता ---सुधा गुप्ता
सांझ की बेला /पंछी ऋचा सुनाते /मैं हू अकेला ---रामेश्वर कंबोज "हिमांशु"
॰मन दहाड़ा /जंगल के शेर सा /गूंज के लौटा ---डॉ सरस्वती माथुरफाख्ता सा उड़ा/ गुनगुनाता मन/प्रेम में डूबा ---डॉ सरस्वती माथुर
डर के कांपे / जंगल की आग में /घिरा शावक ---भावना कुँवर
उछल रहे / बादल खरगोश/आसमान में---डॉ सतीश दुबे
वोट जाल में / मछली सी जनता /सदा फंसी ---सुभाष नीरव
मगरमच्छ /क़ठोर और सख्त/ दिल नरम...मीरा ठाकुर
ये तमाम हाइकु परिपक्वता और अग्रगामी दृष्टि की कसौटी पर खरे उतरते हैं l
कुछ और उदाहरण देखें --
कुतर रहे हैं /संविधान /संसदी चूहे ---डॉ भगवतशरण अग्रवाल
नीला कालीन /चर गए शशक /दूब के धोके---डॉ सुधा गुप्ता
कामुक बाघ /लार ही टपकाए /बाज़ न आए ---रामेश्वर कंबोज 'हिमांशु'श्वान सूँघते/डर का कोना-कोना/पूँछ हिलाएँ ।---रामेश्वर कंबोज" हिमांशुगेंडे न देखे ? संसद में देख लो /मन भर के ---डॉ सावित्री डागा
अपने घोड़े /बेलगाम हो गए /कैसी लाचारी - डॉ सावित्री डागा
दौड़ लगाए /धूप के खरगोश /हाथ न आयें ---भावना कुँवर
वर्षा जो आई/ धूप के खरगोश/ फुदक छिपे---डॉ भावना कुँवर
उन का गोला/ जागा ,भगा सहसा /अरे शशक---आदित्य प्रसाद सिंह
उछल रहे/बादल खरगोश/आसमान में---डॉ सतीश दुबे
सूर्यके घोड़े /घाम के विरोध में /अड के खड़े /---उमेश महादोषी
दौड़ता आया /धूल की गठरी ले हवा का घोडा--डॉ -प्रियंका गुप्ता
ठिठुरी रात /कुत्ता बैठा है पास /आदमी साथ ---डॉ रमा द्धिवेदी
जूठी पतल /कुतों को भगाता रे /बाल- कंकाल ---आदित्य प्रसाद
गर्म राख़ में /बच्चे ले कुनमुनाई /सोयी कुतिया --- हरकीरत हीरअब घरों में/शेर जैसे गुर्राएँ/मृग छौने भी---डॉ गोपाल बाबू शर्माखटका द्धार /थरथराता पिल्ला /मांगता ताप---पुष्पा मेहरा
काँपता पिल्ला /ढेरी में ढूंढ रहा /सूखा पुआल ---एस ॰डी॰र्तिवारी
छोटी सी बात /मरते चूहे कभी /हाथी को लात ---सुभाष लखेडा
*चराचर रचना चतुरचतुर्भुज नें ससार में एक से एक अनोखे अनगिनत जीव रचे हैं तभी तो पशु - पक्षी ,कीड़े मकौड़े ,भुंगे पतंगे ,जलचर ,थलचर ,नभचर आदि भांति भांति के विचित्र जीवों से संसार भरा पड़ा है ! यदि हम प्राचीन काल में झाँकें तो एक तस्वीर की तरह हमारीआँखों में निर्भीक विचरण करते वन प्राणी उतर आते हैं lजंगल में किलोलें करती चिड़ियायेँ ,गिलहरियाँ ,दौड़ लगाते शावक -खरगोश ,शशक ,बादलों को निहारते नाचते मयूर व ,चौकड़ियाँ भरते मृग ,हिरण ,कस्तूरी मृग ,रात में उडते चमकीले जुगनू ,पतंगे व उल्लू ,विभिन्न प्रकार के पंछी ,परिंदे ,रंग बिरंगी चिडियाएँ,तोते व मैना चहकती बुलबुल ,फाख्ता ,पीक व पपीहे व मीठे स्वर में कूकती कोयल कोकिला , बाग बगीचों में मँडराते भोंरे -तितलियाँ व मधमाखियाँ,आस पास उड़ती मच्छर -मख्खी आदि जीव जन्तु प्रकृति के आँचल में स्वछन्द घूमते नज़र आते हैं lइन सभी जीव जंतुओं को हाइकुकारों ने बहुत सुंदर भावों से चित्रित किया है l
*अरुणोदय के साथ ही नित उठ पखेरूओं के झुंड के झुंड सघन ऊंचे पेड़ों की फली फूली ,हरी भरी चारों ओर फैली डालियों पर निडर इधर उधर फुदकते फाँदते कलरव कलकलित सुललित राग भैरवी अलापते ,स्वरों के उतार चढ़ाव से सुमधुर सुर चारों सप्तक से साधते कोलहाल से हमें जगा देते हैंl उन पक्षियों को नए रूपों और बिंबों में पिरो कर हाइकुकारों ने नवीन दृष्टि दी है---कुछ उदाहरण देखें ---
कौन पानी पी /बोलती री चिड़िया /इतना मीठा ...डॉ सुधा गुप्ता
चंद तिनके /चिड़िया का घोंसला बना है घर ---डॉ सुधा गुप्ताचुप चिड़िया/लील गई है गर्मी /दाना व पानी /--रामेश्वर कंबोज "हिमांशु"
नीड़ मुखर /किलक रहे चूज़े /बहा निर्झर ---रामेश्वर कंबोज "हिमांशु"
मधुर गीत /चिड़िया ने गाकर/ धरा गुंजाई---डॉ सरस्वती माथुरचिरैया उडी /तेज आँधी से लड़ी /बिखरे पंख ---डॉ सरस्वती माथुरशाम की बेला /चिड़ियों के झुंड का /रेलमपेल ---कुँवर दिनेश सिंहहो गया मन /एक पूरा गगन /चिड़िया मन ...डॉ शैल रस्तोगी
रवि रथ ले /भोर आई तो पाखी /चहचहाये...डॉ सरस्वती माथुर
भोर चिड़िया/ फुदकती फिरती घर आँगन ---डॉ सरस्वती माथुरबड़े सवेरे /उठ जाती चिड़िया /कौन जगाता ?---रमाकांत श्रीवास्तव
धूप चिड़िया /सिमट कर बैठी /ठंड जो आई ---रचना श्रीवास्तव
पेटू चिड़िया /कुतर के ले गयी/ नन्ही कलियाँ ---भावना कुँअर
खोलो विहग /अब पंखों की डोर /हो गयी भोर ---कमल कपूर
हंसों की पांत/उड़ रही आकाश/मौसम साफ---डॉ सतीश दुबे
उजाला हुआ /चहकती चिड़िया /बजे संगीत ---ज्योत्सना शर्मा
यह जिंदगी /पंखनुची चिड़िया /फडफड़ाती ...डॉ सावित्री डागा
हौंसला जिंदा /समंदर को लांघे /नन्हा परिंदा ---कृष्ण वर्मा
गगन पाठ/ चले पंछी डाकिये/ भेजे संदेश / ---कमला निर्खुपी
फुदके पक्षी /हरी हुई शाखाएँ /वर्षा जो आई ---सुदर्शन रत्नाकर
मन का पंछी /थक गया उदेते /उतार नीचे ---सुदर्शन रत्नाकर
बकुल -पाँत/तैरे गगन -सर /ढूँढे रहस्य-डॉ क्रान्तिकुमार
धूप चिड़िया /सिमट कर बैठी /ठंड जो आई ---रचना श्रीवास्तव
पेटू चिड़िया /कुतर के ले गयी/ नन्ही कलियाँ ---भावना कुँवर
बकुल -पाँत/तैरे गगन -सर /ढूँढे रहस्य---डॉ क्रान्तिकुमार
भोर की बेला /पंछी ले अंगड़ाई /कमल खिले...रचना श्रीवास्तव
वन पाखी सी / उड उड आयें हैं /याद तुम्हारी --डॉ जेन्नी शबनम
यादों का पंछी/डाल डाल फुदके /मन बौराये ...डॉ जेन्नी शबनम
आस का पंछी /उड़े निर्बाध जब /क्जिले सृजन ---अनुपमा त्रिपाठी
मन एकाकी /उड़ा है बनपाखी /तेरी नगरी ... सुशीला शिवराण
सुहानी भोर /खुले गगन तले /पाखी चहके /---पुष्पा मेहरा
नीलपट से /श्वेत बगुले साथी /घूमने चले ---डॉ अर्पिता अग्रवाल
साथ जो छूटा /विकट सूनापन क्रोञ्च -सा मन ---डॉ अर्पिता अग्रवाल
हंसों का जोड़ा /करे अठखेलियाँ /जले लहरें ---योगेश्वर दयाल
चिड़िया बोली /चूँ-चूँ-चूँ जंगल है /जलता धू -धू...जया नर्गिस
सोनचिरैया /भूखी प्यासी लुटी- सी/सोना विदेश l ज्योतिर्मयी पंत
याद पेड़ की /चुनमुन चिरैया/फुर्र हो गयी ---मंजु मिश्रा
नन्ही चिड़िया/ अठखेलियाँ करती/ सिल्वर -ओक ...अमित अग्रवाल
झुंड कीरों के/ लजीली शैफाली को /रीझाते डोले ...डॉ सरस्वती माथुर
हंसवाहिनी /प्रीतधार भरती /नवलय से ---डॉ सरस्वती माथुरसर्द रात में/मन में, मैदान में/श्वान भूँकते ---डॉ सुरेन्द्र वर्माक्रोंच कराह / सुनता है हृदय/ कवि कहाँ हो?---शिव चरण सिंह चौहान अंशुमालीहंसों का जोड़ा /करे अठखेलियाँ /जालें लहरें --- योगेश्वर दयालमन के हंस /चले लहरों संग /गाते रागिनी ---डॉ सरस्वती माथुर* विशेष रूप से चिड़िया ,पंछी -परिंदे,बुलबुल,फाख्ता ,तोता मैना व गौरैया आदि को विभिन्न रूपों में बड़े ही रसमय तरीके से उकेर कर हाइकुकारों ने अपनी कल्पना का तथ्यात्मक सा परिचय दिया है जो जीवों के प्रति उनकी संवेदनशीलता को दर्शाता है l ...जैसे तोते को लें -
*तोता या शुक एक पक्षी है l यह कई प्रकार के रंग में मिलता है। यह बहुत सुंदर पक्षी है और मनुष्यों की बोली की नकल बखूबी कर लेता है।तोते झुंड में रहनेवाले पक्षी हैं, जिनके नर मादा एक जैसे होते हैं। इनकी उड़ान नीची और लहरदार, लेकिन तेज होती है। इनका मुख्य भोजन फल और तरकारी है, जिसे ये अपने पंजों से पकड़कर खाते रहते हैं। यह पक्षियों के लिये अनोखी बात है।तोते की बोली कड़ी और कर्कश होती है, लेकिन इनमें से कुछ सिखाए जाने पर मनुष्यों की बोली की हूबहू नकल कर लेते हैं।
याद तुम्हारी /मन का तोता बातें /दोहराता हो --डॉ सावित्री डागा
उल्टा लटका /हरियल तोता भी /प्यार से देखे ---रामेश्वर कंबोज "हिमांशु
जादुई फूल /नवसुए सी शाखाएँ /कचनार की ---डॉ सरस्वती माथुरफूले बादाम /हरे तोतों के दल /भूले आराम ---डॉ कुँवर दिनेश सिंह
चिड़िया तोते /ओटे छिपी मूरत /चहकी यादें ---चन्द्रबली शर्मा
तोते ,ततैये /लड़कियाँ चटोरी /लाल इमली ---अमित अग्रवाल
* मैना चिड़िया देश के गिने-चुने परिचित पक्षियों में से एक है और देश के सभी भागों में पाई जाती है। मैना, कौए और गौरेया की तरह मनुष्यों से हिल-मिल कर रहती है। यह एशिया के कुछ देशों के अलावा कहीं नहीं दिखाई देती। मैना का अंग्रेजी नाम भी मैना है। मैना ज्यादातर गांव के मैदानों, खेतों, ताल-तलैयों के आसपास नजर आती है।देखें उदाहरण द्वारा कुछ बिम्ब ---
शेफाली हंसी /बगिया जो महकी /मैना चहकी ---डॉ सुधा गुप्तापहाड़ी मैना /टेरती रुक -रुक /जगाती हूक...डॉ सुधा गुप्ता
टूटा घोंसला /बेघर हुई मैना /सहमी बैठ-डॉ सुधा गुप्ता
बंदिनी मैना /सोने की सलाखों में रूहे हैं गीत ---रामेश्वर कंबोज "हिमांशु
"यादें बंद थीं /पिंजड़े की मैना सी /व्याकुल -मन ---डॉ सरस्वती माथुर
* बुलबुल, शाखाशायी गण के पिकनोनॉटिडी कुल पक्षी का है । ये कीड़े-मकोड़े और फल फूल और फलखानेवाले पक्षी होते हैं। ये पक्षी अपनी मीठी बोली के लिए नहीं, बल्कि लड़ने की आदत के कारण शौकीनों द्वारा पाले जाते रहे हैं। यह उल्लेखनीय है कि केवल नर बुलबुल ही गाता है, मादा बुलबुल नहीं गा पाती है।...
गुलाब खिला /चहकी बुलबुल/नशे ने छुआ ---डॉ सुधा गुप्ता
शोख बोलियाँ /हवा में ठुनकती /बुलबुल की ---डॉ सतीशश्चन्द्र पुष्करवणा
शब्द बुनती /पहाड़ी बुलबुल/गीतकार सी ---डॉ सरस्वती माथुर
सुनाती -गान /गा रही बुलबुल /कहे श्री प्रभु ---पुष्पा मेहरा
*पपीहा कीड़े खानेवाला एक पक्षी है जो बसंत और में वर्षा में प्रायःआम्र के पेड़ों पर बैठकर बड़ी सुरीली ध्वनि में बोलता है।
पपीहा दिन /और चकवी रातें /काटे न काटें ---डॉ सुधा गुप्ता बोल उठता /अचानक मस्ती में /वो पपीहारा ---डॉ सुधा गुप्तापिया की रट/पपीहे ने लगाई /याद जो आई /---दिलबाग विर्क
तुम हो कहाँ / दे रहा आवाज़ है/मन पपीहा ... रमाकान्त श्रीवास्तवजा रे पपीहा /किसकी बुझे प्यास /देश बैरागी---डॉ नूतन डिमरी गैरोला
पपीहारा गा /और और बना रे /एकाकी मुझे ---आदित्य प्रसाद
* चिड़िया (गौरैया ) जो यूरोप और एशिया में सामान्य रूप से हर जगह पाई जाती है। यह विश्व में सबसे अधिक पाए जाने वाले पक्षियों में से है। लोग जहाँ भी घर बनाते हैं देर सबेर चिड़िया के जोड़े वहाँ रहने पहुँच ही जाते हैं। र्चिड़िया,पुराने विश्व (यूरोप, एशिया और अफ्रीका) और मुख्य रूप से एशिया के उष्णकटिबंधीय भागों में पाई जाती हैं। यह फुदकियां अपनी पूंछ को आमतौर पर ऊपर की ओर सतर रखती हैं। यह आमतौर पर खुले जंगलों, मैदानों और उद्यानों में पाई जाती हैं। शहरी इलाकों में गौरैया की छह तरह की प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें हाउस स्पैरो को गौरैया कहा जाता है। यह शहरों में ज्यादा पाई जाती हैं। आज यह विश्व में सबसे अधिक पाए जाने वाले पक्षियों में से है। हाइकुकारों ने इसकी उपस्तिथी के विभिन्न रंगों को दर्शाया है--गीत बुनती /गहरे सन्नाटे में /कोई गौरैया ---डॉ सुधा गुप्ताखिड़की पर /काँप रही गौरैया /पानी में तर ---डॉ सुधा गुप्ता
आकुल आए/ आँगन में गौरैया/ आस लगाए/--- डॉ दिनेश सिंह
नभ में ताके /प्यासी एक गौरैया /सूखी तलैया ...डॉ सतीशराज पुष्करणा
अकेला कहाँ/जब बीसों गौरैयाँ/आ बैठी यहाँ...रामेश्वर कंबोज "हिमांशु "
भाई अंगना /बहन चुगे दाना /बन गौरैया ...रचना श्रीवास्तवरूठ ही गई/फुदकती गौरैया /बगिया सूनी ---डॉ जेन्नी शबनम
बिखरा नीड़ /फिर चुने तिनका /नन्ही गौरैया ---सुनीता अग्रवाल
आँगन सूना /तरसे दाना पानी /आजा गौरैया--- मीरा भारद्वाजखिड़की पर गौरैया गुमसुम टूटा घोंसला ---महेश कुशवंश*बसंत ऋतु के समय आम की अमराईयों में तथा अन्यत्र वृक्षों पर बैठी कोयल अपनी मीठी कूकसे सबका ध्यान आकर्षित कर लेती है ! वह पौ फटते ही गाने लगती है तब प्रभात बहुत सुहावना लगता है !कोयल अपनी मीठी बोली से सबको आकर्षित कर लेती है !इसमें कोयल की मीठी बोली के माध्यम से सदा मीठे वचन बोलने पर भी बल दिया गया है lवहीं कौओं को भी वैज्ञानिक एक विस्मयकारक पक्षी मानते हैं । इनमें इतनी विविधता पाई जाती है कि इस पर एक 'कागशास्त्र' की भी रचना की गई है। योग वशिष्ठ में काक भुसुंडी की चर्चा है, रामायण में भी सीता के पांव पर कौवे के चोंच मारने का प्रसंग आया है।कौवे अपनी चतुराई दिखाने में लाजवाब होते हैं।कोयल की मीठी तो काक की कर्कश ध्वनि होती है वह 'काँव-काँव' करता!
*कोयल के प्रति सहज लगाव को हाइकुकारों ने अपने शब्दों से निखारा है और मनोरम छवि शब्द उकेरे हैं उनकी कल्पना के बिम्ब यहाँ देखें
कूकी कोयल/ चीरा -सा लगा गई /टपका लहू ---डॉ सुधा गुप्ता
मौन मुकुल /आम पे बौर कहाँ /रोये कोयल ---हरदीप कौर संधु
कोकिल -पीर /चुभें यादों के तीर /बरसे नीर ---रामेश्वर कंबोज "हिमांशु
कोयल बोले /कुहुक कुहुक के /टोना वन में --- पूर्णिमा वर्मन
कोयल गाये /महके कचनार/झूमें बयार -डॉ -भावना कुँवर
जा रे कोकिल/ दूर जा के गा ,मेरा दर्द न बढ़ा ---डॉ भावना कुँअरखिलें हैं फूल /कोयल है चहकी /कौन है आया ---सुदर्शन नागरकोयल कूक /विरहन के उर /लगे ज्यूँ शूल ---डॉसरस्वतीमाथुरकोयल कूके /अमराई हुलसे /आया है कंत---पुष्पा मेहरा
आम्र पींग पे /कोयल को झुलाए /झोंका समीर ---कृष्णा वर्मा
तितली उडी /चुराए जो पराग /बिखेरे कहाँ ?---श्याम खरे
सिमटे वन /बांझ अमराईयाँ/कोकिल मौन ---सुनीता अग्रवाल
अहो बसंत /अमराई में गूँजे /कोकिला स्वर ---सुनीता अग्रवाल
फागुनी नभ/ बिचरती कोयल /बुनती गीत ---डॉ कमल किशोर गोयल
कोयल गाये/ घायल मन मेरा/ सुन न पाये ---चंद्रबली शर्मा
कौयल बोली /यादों के देवदार/ हिले न डुले ---चंद्रबली शर्मा
बोले कागा /बोले कोयलिया /पाहून आए --ऋता शेखर मधुमोर नाचते /कोयल है बाँचती /रची मेहंदी--- शशांक मिश्र भारतीगाये मल्हार /कोयल की जो कूक/ बरसे मेघा ---अमिता कोंडल
यौवन आया /आम्र मंजरी पर कोयल कूकी ...डॉ आरती स्मित
पीली सरसों /हरे भरे खेतों में /मूक कोयलिया ---सीमा स्मृति
कोयल कूकी /फिर से पुरवाई /जागा मदन...अमित अग्रवाल
घन घनेरा /कोयल ,खुशबू,छाया /जग बौराया ---अमित अग्रवालदुनिया मुग्ध / गाके ठगे ममता/छली कोयल---मंजुल शर्मा
गाती कोयल/लिखे किसने बोल /दें,मिश्री घोल ---सीमा स्मृतिआम का बौर/दीवानी कोयलिया /ऋतु का जादू ---डॉ अर्पिता अग्रवाल*पूर्वी एशिया में कौवों को किस्मत से जोड़ा जाता है तो अपने यहाँ मुंडेर पर बैठकर काँव-काँव करने वाले कौवे को संदेश-वाहक भी माना जाता है। भारत में हिन्दू धर्म में श्राद्ध पक्ष के समय कौओं का विशेष महत्त्व है और प्रत्येक श्राद्ध के दौरान पितरों को खाना खिलाने के तौर पर सबसे पहले कौओं को खाना खिलाया जाता है। कौए के प्रति सहज लगाव को हाइकुकारों ने अपने शब्दों से निखारा है और मनोरम छवि शब्द उकेरे हैं उनकी कल्पना के बिम्ब यहाँ देखें...
टिहुक लाल / फूले पलाश पर /कौओं के झुंड.... डॉ सुधा गुप्ता
पूर्वज रूप /मुंडेर आता कव्वा /रोटी ले जाता ---डॉ सरस्वती माथुर
मुंडेर बैठ /काक घर आँगन /संदेशा लाये ---डॉ सरस्वती माथुरकागा बोला तो इंतज़ार की यात्रा शुरू हो गयी ---डॉ सरस्वती माथुर jl
भीगते कागा /गर्विले बादलों से /ठानते रार ---कृष्णा वर्मा
बोला है कागा /आएगी राखी आज /सोचे सैनिक ---पुष्पा मेहरा
बैठ मुंडेर /करे जो कांव- कांव /शुभ संकेत ---डॉ रमा द्वेदी
श्राद्ध का भोग /कौआ जीमने आए /शुभ कहाये ---डॉ रमा दवेदी
कागा आजा रे /ले आ संदेशवा /पी आवन का ---अनुपमा त्रिपाठी डॉ रमा दवेदीकोयल साथी /धर्म कर्म के नाम /कागा खैराती ---शशि पुरवार
बंजारे कागा /नीड़ बुनूँ प्यार के/ छोड़ो बैराग ---डॉ नूतन डिमरी गैरोला
बोले कागा /कुहकी कोयलिया /पाहुन आए ---ऋता शेखर मधुलगती प्यारी/ कौवे की कांव -कांव/बोले अटारी--- रेखा रोहतगी
काग की काँ -काँ/ सुनके मन सुबह/ पसीज गया---रीता महाजन
संसद नें बैठी /कौओं की संसद /चर्चा तो होगी --- प्रियम्बरा
नित उड़ावाँ/बनेरे बैठ कागा /बुलीं तेरा नाँ---सुप्रीत कौर संधु
सूनी मुंडेर/ देहरी भी उदास /रूठा जो कागा ....आभा खरेबोला है कागा /आएगा कोई घर /सूखा है मुंह ---महेश कुशवंश
आम्र पींग पे /कोयल को झुलाए /झोंका समीर ---कृष्णा वर्मा
कोयल कूके /अमराई हुलसे /आया है कंत---पुष्पा मेहरातितली उडी /चुराए जो पराग /बिखेरे कहाँ ?---श्याम खरेसिमटे वन /बांझ अमराईयाँ/कोकिल मौन ---सुनीता अग्रवाल
अहो बसंत /अमराई में गूँजे /कोकिला स्वर ---सुनीता अग्रवाल
फागुनी नभ /बिचरती कोयल /बुनती गीत ---डॉ कमाल किशोर गोयनकाकोयल गाये/ घायल मन मेरा/ सुन न पाये ---चंद्रबली शर्मा
कौयल बोली /यादों के देवदार/ हिले न डुले ---चंद्रबलीशर्मा
बोले है कागा /कुहकी कोयलिया /पाहून आए ---ऋता शेखर मधुमोर नाचते /कोयल है बाँचती /रची मेहंदी--- शशांक मिश्र भारतीगाये मल्हार /कोयल की जो कूक/ बरसे मेघा ---अमिता कोंडल
यौवन आया /आम्र मंजरी पर कोयल कूकी ...डॉ आरती स्मित
पीली सरसों /हरे भरे खेतों में /मूक कोयलिया ---सीमा स्मृति
कोयल कूकी /फिर से पुरवाई /जागा मदन...अमित अग्रवाल
घन घनेरा /कोयल ,खुशबू ,छाया /जग बौराया---अमित अग्रवालदुनिया मुग्ध / गाके ठगे ममता/छली कोयल---मंजुल शर्माआम का बौर/दीवानी कोयलिया /ऋतु का जादू ---डॉ अर्पिता अग्रवाल* प्रकृति का सफाई कर्मी कहलाने वाले तथा दूर तक दृष्टि रखने वाले गिद्ध व चील आज दूर-दूर तक भी दिखाई नहीं देते। शहरीकरण, घटते वनस्पति, कृषि क्षेत्र में जहरीले रासायनिक दवाओं के बढ़ते प्रभाव ने प्रकृति के इस सफाई दूत को विलुप्त होने के कगार पर ला दिया है। समय रहते यदि विलुप्त प्राय इस पक्षी को संरक्षित नहीं किया गया तो पर्यावरण को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।इन पर भी कुछ हाइकुकारों ने कलम चलाई है - देखें कुछ हाइकु ---
*चील उड़ने में बड़ी दक्ष होती है !यह एक सर्वभक्षी तथा मुर्दाखोर चिड़िया है, जिससे कोई भी खाने की वस्तु नहीं बचने पाती। ढीठ तो यह इतनी होती है कि कभी कभी बस्ती के बीच के किसी पेड़ पर ही अपना भद्दा सा घोंसला बना लेती है।
ऊंचा आकाश /तैरती है चील सी /कल्पना मेरी ...सुषमा सिंह
*हाइकुकारों ने उल्लू और गीदड़ तक पर भी हाइकु रच दिये -
उल्लू बोल दे /रात दे चौकीदार /जागते रहो ---कश्मीरी लाल चावला
पूरनमासी /कुकड़े ने गिंदड़ /देख शिकार --- सुप्रीत कौर संधु
*गिद्ध को पर्यावरण का अपघटक कहा जाता है। गिद्धों में दूर तक देखने की क्षमता बहुत अधिक होती है। इसके अतिरिक्त गिद्ध प्रकृति एवं धरती के बीच संतुलन कायम करने वाले प्राणी भी माने जाते हैं।
गिद्ध के समान चील भी तेजी से विलुप्त हो रहें हैं , संकट के दौर से गुजर रहे हैं।
छिड़ा जो युद्ध/रोयेगी मानवता/हँसेंगे गिद्ध---डा० जगदीश व्योम
*बाज़ एक शिकारी पक्षी है जो कि गरुड़ से छोटा होता है। इस प्रजाति में दुनिया भर में कई जातियाँ मौजूद हैं और अलग-अलग नामों से जानी जाती हैं।वयस्क बाज़ के पंख पतले तथा मुड़े हुए होते हैं जो उसे तेज़ गति से उड़ने और उसी गति से अपनी दिशा बदलने में सहायता करते हैं-
आँख बाज़ की /झपट चील की तो /कौन बचेगा -डॉ सुधेश
धर दबोचा/ मासूम चिड़िया को/ क्रूर बाज़ ने...डॉ भावना कुँअर
*कबूतर पूरे विश्व में पाये जाने वाला पक्षी है। यह एक नियततापी, उड़ने वाला पक्षी है जिसका शरीर परों से ढका रहता है। यह जन्तु मनुष्य के सम्पर्क में रहना अधिक पसन्द करता है। अनाज, मेवे और दालें इलका मुख्य भोजन हैं। भारत में यह सफेद और सलेटी रंग के होते हैं पुराने जमाने में इसका प्रयोग पत्र और चिट्ठीयां भेजने के लिये किया जाता था।कुछ उदारण देखें ----श्वेत -कपोत /शांति से ओतप्रोत /हिंसा विहीन ---ज्योत्सना प्रदीप
उड़ा कपोत /पंख फड़फड़ाता /डाकिया हंसा ---डॉ सरस्वती माथुर
कबूतर भी /गिरती बर्फ देख /ऊष्मा खोजते...डॉ सरस्वती माथुर
मन टहनी /यादों का कपोत था / थक के -उड़ा---डॉ सरस्वती माथुर
आतंकी बाज़ /कर गए शिकार /कबूतर का ---नमिता राकेश
सीख आया है कबूतर की चाल चतुर चाँद ---अश्विनी कुमार विष्णु
*मोर भारतीय संस्कृति में विशेष स्थान रखते हैं।यह एक बहुत ही सुन्दर, आकर्षक तथा शान वाला पक्षी है। बरसात के मौसम में काली घटा छाने पर जब यह पक्षी पंख फैला कर नाचता है तो ऐसा लगता मानो इसने हीरों-जड़ी शाही पोशाक पहनी हुई हो। इसीलिए इसे पक्षियों का राजा कहा जाता है। पक्षियों का राजा होने के कारण ही प्रकृति ने इसके सिर पर ताज जैसी कलंगी लगाई है। मोर के अद्भुत सौंदर्य के कारण ही-इसे राष्ट्रीय पक्षी का दर्जा दिया गया है !संस्कृत भाषा में यह मयूर के नाम से जाना जाता है। मोर भारत तथा श्रीलंका में बहुतायत में पाया जाता है। मोर मूलतः वन्य पक्षी है, लेकिन भोजन की तलाश इसे कई बार मानव-आबादी तक ले आती है।मोर प्रारंभ से ही मनुष्य के आकर्षण का केंद्र रहा है। अनेक धार्मिक कथाओं में मोर को बहुत ऊँचा दर्जा दिया गया है। हिन्दू धर्म में मोर को मार कर खाना महापाप समझा जाता है। भगवान कृष्ण के मुकुट में लगा मोर का पंख इस पक्षी के महत्व को दर्शाता है। महाकवि कालिदास ने महाकाव्य ‘मेघदूत’ में मोर को राष्ट्रीय पक्षी से भी अधिक ऊँचा स्थान दिया है। राजा-महाराजाओं को भी मोर बहुत पसंद रहा है। मेघों को देख कर मयूर के पैरों में स्वाभाविक थिरकन आ जाती है और इनके कोलाहल से दिशाएँ मुखरित हो जाती हैं ! मोर मोरनी का नृत्य आनंदित कर देता है वर्षा के पूर्व विधुतकी चमक से मयूर का हृदय आशापूर्ण कहा गया है lइसकी घुति अनेकावर्णी हैl नीलाभ से चमकता हुआ कंठ है ,स्वर तीव्र एवं मधुर तथा नर्तन शोभन है lमेघो को देख मयूर के पैरों में स्वाभाविक थिरकन आ जाती है और इनके कोलाहल से दिशाएँ मुखरित हो जाती हैं, हाइकु मोतियों में हाइकुकारों ने गूँथी है माला---आषाढ़ माह /उगी मन -मोर में/ नृत्य की चाह ---कुँवर बैचन
देखें टहुके मोर /याद आ गया कौन /इतनी भोर...डॉ भगवत शरण अग्रवाल
चारों तरफ /फैले गुलमोहर/ मोर पंख से भावना कुँअरजुगनुओं से/ गुलमोहर वृक्ष है /झिलमिल ---डॉ भावना कुँअरछाई घटा तो /मोर बांध घुंघुरू /बागों में आया ---डॉ सरस्वती माथुर
मन विभोर /मोरनी संग झूमा/ वीवी बावरा मोर ---डॉ सरस्वती माथुरबादल छाए / बाँध घुंघरू /बागों में आया ---रचना श्रीवास्तव
अलस- भोर /माँ चुगती थी फूल /नाचता मोर ---कुमुद बंसल
आँवल -छाँह /नाचता था मयूर /माँ डाले दाना ---कुमुद बंसलनाचेगा मोर ? / बचा ही न जंगल / ये कैसी भोर ?---ज्योत्सना शर्मा
नाचे मयूर बादलों के संतूर /सुन- सुन के ---ज्योत्सना प्रदीप
बरसे मेघ /गूँजे दादुर -राग /नाचे मयूर---डॉ क्रान्ति कुमार
नाचे मयूर /रिमझिम के संग /नाचे मगन ---डॉ नूतन डिमरी गैरोला
देखे झलके/झूमे मन मयूर /हुआ बावरा ---सीमा स्मृतिझूमें बदरा /गरजते मृदंग /मन मयूर /ज्योतिर्मयी पंत*नीलकंठ एक भारतीय पक्षी है। इसका आकार मैना के बराबर होता है।त्रावणकोर के दक्षिण भाग को छोड़कर शेष भारत में यह पक्षी पाया जाता है। मान्यता है कि नीलकंठ को देखने मात्र से भाग्य का दरवाज़ा खुल जाता है। यह पवित्र पक्षी माना जाता है।दशहरा पर लोग इसका दर्शन करने के लिए बहुत लालायित रहते हिन्दू धर्म
ग्रंथों में भगवान शिवको 'नीलकंठ' के नाम से पुकारा जाता है।
पीकर विष/हीबनाता है कोई /नीलकंठ सा ---रूपचंद उपाध्याय
जीना जरूरी /हो जाओ नीलकंठ /जहर पियो ---डॉ गोपाल बाबू शर्मा*चातक एक पक्षी है इसके सिर पर चोटीनुमा रचना होती है। भारतीय साहित्य में इसके बारे में ऐसा माना जाता है कि यह वर्षा की पहली बूंदों को ही पीता है। अगर यह पक्षी बहुत प्यासा है और इसे एक साफ़ पानी की झील में डाल दिया जाए तब भी यह पानी नहीं पिएगा और अपनी चोंच बंद कर लेगा ताकि झील का पानी इसके मुहं में न जा सके।
कुछ चित्र देखें ---बदरा भर /भर -भर उड़ेल/चातक पिए... डा. रमा द्विवेदी
चातक-व्यथा /सीप के दिल बसी /अमोल हुई ---अनिता ललितप्रेमी चातक /टकटकी लगाए /घन-घातक---नरेंद्र प्रसाद नवीनचातक मन /तृप्ति चाहे सजन/तुम बरसो ---नूतन डिमरी गैरोलाशशि किरण/ बनी ओस की बूंद /चातक मन --- उपासना सिहाग *गिलहरी एक छोटी आकृति की जानवर हैl गिलहरी सामान्यतः पूरे भारतवर्ष में पाई जाती है। ये तीन और पाँच धारियों वाली होती है। पाँच धारियों वाली गिलहरी प्रायः सभी जगह मिल जाती है। इनकी पूँछ पर छोटे-छोटे घने बाल होते हैं। यह बहुत पारिवारिक होती है। यह बस्तियों या खेतों के आसपास रहती है। गिलहरी के कान लंबे और नुकीले होते हैं और दुम घने और मुलायम रोयों से ढकी होती है। गिलहरी बहुत चंचल होती है और बड़ी सरलता से पाली जा सकती है। गिलहरी अपने पिछले पैरों के सहारे बैठकर अगले पैरों से हाथों की तरह काम ले सकती है। पेड़ों और झाड़ियों से दूर गिलहरियाँ शायद ही कभी देखी जाती हों।आमतौर पर गिलहरी बगीचों, घरों के छज्जों तले या पेड़ों पर बिल बनाकर रहती है। यह जमीन पर भी चल सकती है और उतनी ही आसानी से पेड़ों पर भी दौड़ सकती है। गिलहरी लंबे-सीधे पेड़ व खड़ी दीवारों पर भी आसानी से चढ़ जाती है। इसके पैरों में छोटे, बारीक नाखून होते हैं, जिनके सहारे यह सतह को आसानी को पकड़ लेती है।
गिलहरी पर कुछ हाइकु यहाँ प्रस्तुत है
उमंग- भरी /शाखों पे गिलहरी /उडनपरी ---डॉ सुधा गुप्ता
छत पे आती /चपल गिलहरी /पूंछ नचाती --- डॉ सुधा गुप्ता
रही कुतर /वक्त की गिलहरी /दाईने शाम के ---डॉ शैल रस्तोगी
मेघ गिरते /गिलहरी - सी धूप /भागी -दुबकी ---डॉ शैलजा सक्सेना
गिलहरी सी /फुदकती है धूप/ पेड़ पौधों पे ---डॉ सरस्वती माथुर
नीम अंधेरा /गिलहरी सा चढ़ा /रात खा गया ---डॉ सरस्वती माथुर
तरु गगन /उड़ान है भरती/गिलहरियाँ ---डॉ सरस्वती माथुर
वन विरान /गिलहरियाँ खोजे /शाखों के झूले ---सुनीता अग्रवाल
करती श्रम /पाँव पर पड़ी खड़ी मैं /नन्ही हूँ तो क्या ---प्रियम्बरा
*मृग कस्तूरी ,मृग ,हिरण प्रकृति के सुन्दरतम जीवों में से एक हैं --- जंगलों में कुलांचते भरते हैं --- झुंड में विचरण करते हैं ,नीलगाय भी मृग की प्रजाति है lकुछ उदाहरण देखें ...
कस्तूरी मृग /निर्भय विचरण /मनाते मोद ---डॉ सुधा गुप्ता
मृग बौराया /रास्ता भूली नदिया/ तुम घर में ...डॉ शैल रस्तोगी
नैन मृगी -से /छलके हैं जबसे /अमृत पिये ---रामेश्वर कंबोज "हिमांशु"
मृग बावरा /है नाभिमें कस्तूरी /कभी न जाने ---रामेश्वर कंबोज "हिमांशु"
भरे कुलांचे /न थके तनिक भी /मेघा हिरण ---रामेश्वर कंबोज"हिमांशु "
भटका मन /गुलमोहर वन बन /हिरण ---भावना कुँवर
ठहरी धूप /कुलांचे भरती सी / हिरण हुई ---डॉ सरस्वती माथुर
बहुरूपिया /स्वर्ण हिरणबन /करता छल...डॉ सरस्वती माथुरगए शिकारी /खोज रही हिरनी /निज हिरना ---डॉ रमाकांत श्रीवास्तव
कस्तूरी मृग /कितना अनजान /नाभि में गंध -- शशि पाधा
यादें जंगल /मैं भटकी हिरणी/निकलें कैसे?---रेखा रोहतगी
घना जंगल /भोली भाली हिरणी/सौ सौ खतरे---डॉ गोपाल शर्मा
घास हरी सी है पलंग बिछौना मनवा छौना---अशोक कुंगवानी
मचल रहा /व्योम में मृगछौना /इंद्रधनुष --नलिंनकांत
दुख का छौना छाती की गलियों में रार मचाए ---कृष्णा वर्माकस्तुरी तन /दौड़े मन हिरण /जग कानन ---कमला निर्खूपीसोने का मृग /सुंदर -सा छलावा /दुनिया जैसा --मंजुल दिनेश
नींद के खेत/चार गए फसल /दुख चीतल ...सुभाष लखेड़ापूस की रात/शर्मीली-सी -हिरणी /चूमें बदन ---राजेंद्र मोहन त्रिवेदी बंधु*जुगनू जो रात में सितारों की तरह टिमटिमाते हैं। रात के समय जुगनू लगातार नहीं चमकते, बल्कि एकनिश्चित अंतराल पर कुछ समय के लिए चमकते और बुझते रहते हैं। इसी रोशनी का इस्तेमाल ये अपनभोजन तलाशने में भी करते हैं। इनमें खास बात ये है कि मादा जुगनू के पंख नहीं होते, इसलिए वह एक जगह बैठी ही चमकती है, जबकि नर जुगनू उड़ते हुए भी चमकते हैं। यही एक कारण है, जिससे इन्हें आसानी से पहचाना जा सकता है।
हाइकु कारो ने जुगनुओं के मनोरम दृश्य चित्रित किए हैं-----
किसी को याद /बांस -वन जुगनू /टिमक गया... डॉ सुधा गुप्ता
पावस रात /पिकनिक मनाते /नाचे जुगनू ---डॉ भगवत शरण अग्रवालदीप जलाएँ /जुगनू से चमके /हर आंगन ---डॉ हरदीप कौर सिंधुनन्हा जुगनू/ पड़ा टिमटिमाए/ टूटे पंख ले---डॉ भावना कुँअरमनी दिवाली /बाग -बगीचों में भी /जुगनू संग ---डॉ भावना कुँअररिश्तों की संध्या /जुगनू -सी चमकी /रही दमक ---कुमुद बंसलमिलके जले /जलके मिटा देंगे /सारा अंधेरा ---शोभा रस्तोगी 'शोभा '
स्मृतियाँ मेरी /विरह- रजनी में /जुगनू बनी ---शोभा रस्तोगी 'शोभा '
प्रेम -जुगुनू /भावों की बाती जला /रोशन हुआ ---डॉ सरस्वती माथुर
रात में दिया /बन जुगनू जले /तम से लड़े ---डॉ सरस्वती माथुरटिमटिमाते /काले अँधेरों में भी /प्यार जुगनू ---डॉ जेन्नी शबनमहर्ष विश्वास/ले उतरे जुगनू /घर -आँगन ---रचना श्रीवास्तवजुगनू जले /अंधेरी अमावस /सपने पाले ---डॉ शशि पाधा
घुप्प अंधेरा /जुगनू ने उठाया /भोर का बीडा ---सुनीता अग्रवाल
राह दिखाओ /अरे ओ जुगनुओं /रात है काली ---डॉ सुषमा सिंह
जुगनू दीप /टिमटिम करते /स्वप्न सज़े हैं ---भावना सक्सेना
रिश्तों की संध्या /जुगनू सी चमकी /रही दमकी ---कुमुद बंसल
झाँकती यादें /मन आँगन मेरे /जैसे जुगनू ...डॉ अनीता कपूर
मिलके जले /जुगुनू मिटा देंगे /सारा अंधेरा ...डॉ मिथिलेश कुमारी मिश्र
प्रेरणा बड़ी /संघर्ष ही जीवन /छोटा जीवन ---सरिता भाटिया
सूरज भागा /दूर क्षितिज पर /जुगनू जागा ---सरिता भाटिया
*रंग बिरंगे फूलों के साथ रहने वाली तितलियाँ भी बहुत सुंदर होती है तितलियाँ कई तरह की और कई आकार की होती हैं रंगीन तितलियाँ सूर्य के आगमन से पलायन तक निरंतर फूलों पर मंडराती है ,इन्हे और रंगीन बनाती है lप्रकृति के सारे रंगों की तितलियाँ जाने कहाँ से सँजो कर लाती हैं किइंद्रधनुष भी फीका पड़ता है lअलग अलग रंग लिए कहीं पलाश के जैसे रंग की लाली ,कहीं अंबर सी नीली ,कहीं सरसों सी पीली ,फूलों को चूमती ,डाल डाल पर उड़ती,इठला कर झूमती हाइकुकारों को मोह लेती हैं lकुछ सुंदर हाइकु द्रष्टव्य हैं –
अनूठे रंग /तितलियाँ उड़ती /हवा के संग ---डॉ सुधा गुप्तारोती तितली /कंक्रीट जंगल /में /फूल कहाँ हैं ---डॉ सुधा गुप्ताफूल- पंखुरी /तितली के पंख सी /नाज़ुक दोस्ती ---डॉहरदीप कौर सिंधु
शोख तितली /खूब खेलती खो खो /फूलों के संग ---रामेश्वर कंबोज "हिमांशु"
तितली बिंधी /लम्पट गुलाब ने /खींचा आँचल ---रामेश्वर कंबोज 'हिमांशु "आहट आते /उड़ती तितलियाँ /मेरे मन में ---डॉ भगवत शरण अग्रवालबसंती मन /तितली सा डोलता /रंग घोलता ---डॉ सरस्वती माथुर
तितली लिए /रंग बिरंगा /झण्डा /फूलों पे चली ---डॉ सरस्वती माथुर
कैटरपिलर /मन भीतर रंगा /तितली हुआ --- डॉ सरस्वती माथुरपुष्प जो खिले /रंगीन तितलियाँ झूला -सा झूले ---सुदर्शन नागरथिरक रही /पुखराजी पुष्पों पे /ये तितलियाँ ---सुदेर्शन नागरसूनी है डाली /चिड़िया न तितली /आँधी ले उडी...डॉ जेन्नी शबनम
तितली-दल/कपोल चूम /दग्ध पलाश ---पुष्पा मेहरा
तितली उडी /चुराये जो पराग/बिखेरे कहाँ ---श्याम खरे
तितली दल/ खोल डाले किसने /रंगों के नल ---डॉ भावना कुँअर
नन्ही तितली /खेले आँख मिचौली/कमल संग ---डॉ भावना कुँअर
नन्ही तितली /बुरी फंसीजाल में /नोंच ली गयी ---डॉ भावना कुँअर
तितली बन /चला फूलों के गाँव /वो मनचला ---भावना कुँवर
खिले पलाश /तितली ओ भँवरे /मन उल्लास ---हरकीरत हीर
रंग -बिरंगी /तितली के पंखों -सी /चुनरी सोहे ---निर्मल कपिला
सुंदर स्वप्न /तितली बन उड़े /मधुबन में---शशि पुरवार
अब न आतीं /धूप की तितलियाँ /ब्याहीं विदेश ---शशि पाधा
तितलियों -सी /मन की कामनाएँ /खूब छकाएँ---सुभाष नीरव
लड़ते नहीं /तितली मधुमक्खी /फूल के लिए ---एस॰डी॰तिवारी
अपने संग /सहेजती मैं रंग /तितली बन ---सीमा स्मृति
छू ही आई है /हिम्मत की तितली /ऊंचेन ख्वाब को ---अरुण कुमार रूहेला
* हमारे साहित्य में भँवरे को एक विशेष स्थान हासिल है।भँवरे काले रंग का उड़नेवाला एक पतंगा जो फूलों पर मँडराता और उसका रस चूसता है। इसके छः पैर, दो पर और दो मूँछें होती हैं। वह कलिओं का रसपान करता है और फिर उड़ जाता है। किसी एक पुष्प पर टिकना उसका स्वाभाव नहीं है। वह रंग का काला है अतः मन का भी काला मान लिया जाता है। उसकी प्रकृति चंचल है। बेचारा भँवरा। वो क्या करे बगिया में वह अकेला है और पुष्प ढेर सारे। सभी को विकसित करवाना उसका कर्तव्य है सो वह एक कली , एक पुष्प का होकर नहीं रह सकता । पर क्या करें ये कवि उस की इस मज़बूरी को नहीं समझते और उसे बेवजह खलनायक बना देते हैं।कुछ कुछ रसिया स्वभाव में प्रीत ढूंढ लेते हैं ! मधुप फूलों के पराग से आकर्षित हो कर मँडराता और गुंजन करता है ,अपने नाम के अनुरूप मधुपायी है उदाहरण स्वरूप कुछ हाइकु देखे जा सकते हैं -चुप चिड़िया/ लील गई गर्मी /दाना व पानी ---रामेश्वर कंबोज "हिमांशु"
भौंरा मुसकाए /तितली बेखबर /जान न पाये ---रामेश्वर कंबोज "हिमांशु"पागल भोंरा/ दर दर भटके/बना मलंग ---पूर्णिमा वर्मन
आया है मीत/काली का मन मोहे /भ्रमर गीत ---डॉ कुँवर दिनेश सिंह
झूमे बसंत /श्यामल भ्रमर की /चली पढ़ंत ---डॉ कुँवर दिनेश सिंह
वृक्ष लता पे /झूमे मधुकर तो /सुमन खिले ---डॉ सरस्वती माथुर
भँवरे झूमे /कलियों के पाटल /खिलते गए ---डॉ सरस्वती माथुर
गंध के डोरे /अंजान है मालती/भौंरे हैंछेड़े --- डॉ सरस्वती माथुर
नव प्रभात /धूप भँवरों पर /हुआ मोहित ---डॉ सरस्वती माथुर
आत्मिक नहीं /फूल -भौंरे का प्रेम /वो रस लोभी ---रचना श्रीवास्तवरंग देख के / भँवरे रहे दूर /कागजी फूल ---डॉ श्याम सुंदर' दीप्ति
'खिले पलाश /तितली ओ भँवरे /मन उल्लास ---हरकीरत हीर
पा रश्मि स्पर्श /गुनगुनाया भौंरा /खुली पांखुरी ---शशि पाधा
गूँजे भ्रमर /रंग हुए प्रखर /है मधुमास ---अनुपमा त्रिपाठी
रस जगाए /रंग में डूब जाई /भँवरा गूँजे ---अनुपमा त्रिपाठीयादों की गंध /बैचेंन हो उठा है/मधुप मन...डॉ उर्मिला अग्रवाल
थिरक उठी /फूलों की सहलियां /भौंरों के संग--- कमला निर्खुपी
खिली चाँदनी /भौंरे गीत सुनाएँ /झूमें पलाश ---शशि पुरवार
भँवरे गाते /महकता उपवन /पुष्प लुभाते ---शशि पुरवार
खिले पुहुप/ गुनगुनाया भौंरा /राग बसंत ---अनुपमा त्रिपाठी
फूलों का रंग /भँवरों की गुंजन /सब अधूरी ---शैफाली गुप्ता
भौंरे की धुन /सुन काली महकी /फगुआ गाती ---गुंजन अग्रवाल
नवल पात /डाल डाल भँवरे/ आया बसंत ---कल्पना रमानी
कमल खिले /भँवरे झुक झूमें/मुखड़ा चूमें ---नवीन चतुर्वेदी
मधधुमालती /आली भरें गागर /मधु -सागर ---गुंजन अग्रवाल
*सच कहते हैं कि हाइकु सृष्टि सौंदर्य का अनुभव कराती है lहाइकु का क्षेत्र असीम हैlहाइकुकार किसी भी दृश्य या सरोकार पर हाइकु रच सकता है l धरती का विशाल आँगन हो ,प्रकृति का विस्तृत रूप हो ,चाँद को एकटक निहारता चकोर हो ,वर्षा मे पातों पे रेंगती मखमली वीरबहूटी हो,झींगुर की आवाज़ हो या टर्र टर्र करता दादुर - मेंढ़क - मछलियाँ या जलपाखी हों या सागर किनारे की रेत पर बिखरे सीपी शंख हों ,देखें हाइकु ---
बदरा तले /मेंढक की मंडली /जन्मों की बातें ---मनोशी चटर्जी
बरखा- रानी / ले आई नव आस /दादुर राग ---डॉ क्रांति कुमार
दादुर तेरा /बरसी जो बदली /मन मयूरा ---डॉ ज्योत्सना शर्मा
मौसम आया / मेंढक की चुप्पी ने /अर्थ बताया ---डॉ सरस्वती माथुर
मेंढकी सी थीं /बारिश की बूंदें /गेंद सी उछली---डॉ सरस्वती माथुर
*सीपी में मोती वस्तुत: मोलस्क जाति के एक प्राणी द्वारा क्रिस्टलीकरण की प्रक्रिया द्वारा बनता है।
हाइकुकारों ने उन्हे भी शब्दों में बांधा है ...कतिपय उदाहरण प्रासंगिक होंगे --
उषा की माला /बिखरे हुए मोती /दूर्वा सहजे ---डॉ सुधा गुप्ता
जो भीगा पल /शब्द -सीपी में ढले /हाइकु बने ---डॉ सावित्री डागा
घृणा है घोंघा /प्रेम है मोती पा लेना /खेल मौत से --- डॉ सावित्री डागा
बिटियां होती /फूल पंखुरियों पे /ओस के मोती डॉ हरदीप कौर सिंध
यादों के मोती /चली पिरोती सुई /हार किसे दूँ ?---उर्मिला कौल
मन की माला /भावों के मोती -गूँथी /छोड़े न साथ...रामेश्वर कंबोज "हिमांशु "
मोती उलझे /बरौनियों की नोंक /बह न सके---रामेश्वर कंबोज "हिमांशु'
धरती पर /हीरे -मोती से बड़ा /क्या है गहना ?---रामेश्वर कंबोज "हिमांशु"
यादों के मोती /मैं पिराऊँ माला में / महक जाऊँ ---रचना श्रीवास्तव
मोती से टंके/धरा के आँचल पे / हरसिंगाार ---रचना श्रीवास्तव
सावन लाए /आँचल भर मोती ।आँगन भीगे ---रचना श्रीवास्तवओसकण के/ मुक्ताहार से करें/ धरा शृंगार ...डॉ सरस्वती माथुर
कुंवारी रेत /सीपी प्रसव से /जन्मता मोती ---डॉ सरस्वती माथुर
मोती ही मोती /सागर से चुन लो /लगा डुबकी ---सुदर्शन रत्नाकर
शंख हैं मौन /चुप हुए मृदंग /बजाए कौन ---कुमुद बंसल
ओस की बूंद /पत्तों पे मोती दिखे /हाथ में पानी ---श्याम खरेकिसने टांके /मखमली घास पे /ओस के मोती ...पुष्पा मेहरा
यादों के मोती /समेट न सका /सीप दिल में --- सावित्री चंद्र
चाँद उतरा/सीपियों के अंगना /सिंधु मचला ---अनिता ललित
बूंद है प्यासी /सीप में उतार के /मोती होने को ---डॉ ॰नूतन डिमरी गैरोला
ख्वाब काँच -से /आँखों पे रुके जब /हुए मोती से ---डॉ नूतन डिमरी गैरोला
कनी रेत की /सहे सीप में पीड़ा /बनेगी मोती ---ज्योत्सना शर्मा
रहे समीप /ज्यों मोती और सीप /खुशनसीब ---कृष्ण वर्मा
मन का सीप/पुकारे बादल को/मोती बरसे--- कमला निर्खुपी
नैनों की सीपी/चम -चम चमके/नेह के मोती--कमला निर्खुपी
कीमती मोती/हृदय की सीप में /तुम्हारी याद ---सारिका मुकेश
साँस है धागा /उम्र पिरोये मोती /जीवन -माला ---अनीता ललितममता रोती-/कोई पिरो दे मेरे/बिखरे मोती ---मुमताज व टी एच खानबूंद है प्यासी /सीप में उतार के मोती होने को ---नूतन डिमरी गैरोलाओस की बूंद /पत्तों पे मोती दिखे /हाथ में पानी ---श्याम खरे
न प्रांगण /यादों के बादल से /झरते मोती ---शशि पूरवार
प्रेम वर्ण-से/ गूँथे मोती की माला के /आज बिखरे --शैफालीगुप्ता
आखर- मोती /पिरोती चली जाऊँ/हार न मानूँ---डॉ निशा जैन
बंद सीपीयाँ/उपजे मुक्तकण/बिखरे दर्द ---डॉ निशा जैन
नभ की ओस /झरी मधुबन में /मोती बन के ---मंजु गुप्ता
शुभ संदेश /दमदम दमके/नयन मोती ---ऋता शेखर ‘मधु’
बिखरे मोती /टूटी मन की माला /साथ मिलाना ---सीमा स्मृति
दोस्ती दरिया /धोका शंख/-सीपीयाँ/रिश्ता मलिन ---विभा श्रीवास्तव
सीप मुख से /फैले रंग -बिरेंगे/ मोती धरा पे ---डॉ अर्पिता अग्रवाल
जलपाखी से /पतझड़ के पत्ते /हवा नदी में ---डॉ सरस्वती माथुर
शशि किरण/ बनी ओस की बूंद /चातक मन --- उपासना सिहाग
ग़म के मोती /पिरोये आँसुओं में /बनी है माला ---सपना माँगलिक
*भारतीय इतिहास में दर्शन और भोजन दोनों दृष्टि से शुभ और श्रेष्ठ मानी जाने वाली मछली जलीय पर्यावरण पर आश्रित है तथा जलीय पर्यावरण को संतुलित रखने में मछली की काफी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। यह कथन अपने में पर्याप्त बल रखता है जिस पानी में मछली नहीं हो तो निश्चित ही उस पानी की जल जैविक स्थिति सामान्य नहीं है। वैज्ञानिकों द्वारा मछली को बायोइंडीकेटर माना गया है। विभिन्न जलस्रोतों में चाहे तीव्र अथवा मन्द गति से प्रवाहित होने वाली नदियां हो, चाहे प्राकृतिक झीलें, तालाब अथवा मानव-निर्मित बड़े या मध्यम आकार के जलाशय, सभी के पर्यावरण का यदि सूक्ष्म अध्ययन किया जाय तो निष्कर्ष निकलता है कि पानी और मछली दोनों एक दूसरे से काफी जुड़े हुए हैं। पर्यावरण को संतुलित रखने में मछली की विशेष उपयोगिता है।कुछ हाइकु देखें -
ठंडी कविता /मारी हुई मछली/की फटी आँख ---सावित्री डागातड़प रही /जल बिन मछ्ली/बिन तेरे मैं ---डॉ हरदीप कौर संधु
गंदला पानी /रो रही मछलियाँ /वे जाएँ कहाँ ---हरदीप संधु
जाल फेंकता/सूरज का मछेरा/धूप तितली ---डॉ सरस्वती माथुर
उम्र की डोर /सौन मछरिया सी /हाथ से गिरी ---डॉ सरस्वती माथुर
धूप मछ्ली /सूर्य नें फ़ेंकाजाल/ मछुआरे सा ...डॉ सरस्वती माथुनभ सागर /तारों का मीन पुंज /तिरता जाए ---डॉ सरस्वती माथुर
सूखे -से ताल /जल बिन मछली /हाल-बेहाल ---शशि पाधा
न है मीन -सा /आकुल रहता है /लिए पिपासा ---अनुपमा त्रिपाठी
हृदय-झील /तैरती आकांक्षाएँ/मीन मानिंद ---महिमा मंजु
तडपी मीन /विचलित होकर /सूखा पोखर ...अशोक दर्दनभ में पंछी /सागर -तन मीन /कहाँ बसूँ मैं ?---डॉ ऋतु पल्लवीजग भीतर /व्याकुल व आतुर /मछ्ली मन ---घनश्याम नाथ कच्छावा
*चकोर चंद्र किरणों को पीने वाला मदमस्त पक्षी है ,इसके नेत्रों को मद से मतवाला कहा गया है समशीतोष्णकटिबांधों में वर्षा काल के बाद नए हरे हरे वनो में इस पक्षी के जोड़े मिलते हैं सूडोल शिर ,बड़ी बड़ी रतनार आँखों वाले चकोर की एक एक गति से स्फूर्ति टपकती है कुछ उदाहरण यहाँ प्रस्तुत हैं--
ख्वाब उगा है /आँखों के नभ पर /नींद चकोर ---डॉ सरस्वती माथुर
चाँद को देख /अकुलाया चकोर /प्यार गहन ---डॉ सरस्वती माथुरचकोर मन/ चाँदनी नदिया से/ प्यास बुझाये---डॉ सरस्वती माथुर
*बीरबहूटी एक खूबसूरत मखमली सा कीट है जो बारिश के बाद धोरों पर नजर आता है ! इसे सावन की डोकरी , इंद्रवधू और बूढ़ी माई भी कहते हैं ..
कुशल पूछे/ वीर बहूटी भेज/ मेघ धरा की ---डॉ दयाकृष्ण विजयवेर्गीय 'विजय'
हरी घास पे/वीरबहूटी चली/ दुल्हन लगे ---डा० सरस्वती माथुर...
*झींगुर (क्रिकेट) एक कीट है । यह रात में झीं की आवाज निकालने के लिये जाना जाता है।जबकि पतंगा शमा पर न्योछावर हो जाता है ...उदारणों में हाइकुकारों ने सुंदर बिम्ब उतारे हैं ...
मन पतंगा /भावों की रोशनी पे /पंख फैलाये ---डॉ सरस्वती माथुर
फूल तिरंगे /जुगनू तितलियाँ /उड़े पतंगे - सरिता भाटियाझींगुर छेड़े /अशोक टहनी पे/ रात के राग... डॉ सरस्वती माथुर
वर्षा की साँझ /बजाते शहनाई /छिपे झींगुर ---रमाकान्त श्रीवास्तव
अंधेरी रात /झींगुर चौकीदार सीटी बजाते ---सुभाष नीरव
आग बरसे/ जंगल में सन्नाटा/झींगुर गाए ---ललित मावर
*मच्छर मक्खी केंचुआ,दीमक ,चींटी बिच्छू,मकड़ी सभी जीवों पर हाइकुकारों ने अपनी लेखनी चलाई है ।कुछ उदाहरण प्रस्तुत हैं---
जाले बुनती /यादों की मकड़ियाँ /नहीं थकती ---डॉ सुधा गुप्ता
यादों की लोई /खूंटी पे टंगे टंगे /कीड़े -कुतरी --डॉ सुधा गुप्ता
विचार घूमें /भिन्नाती मक्खियों से /मन मिठाई ---डॉ सरस्वती माथुर
मकडजाल /पेंटर सी मकड़ी /रेशम के तार ---डॉ सरस्वती माथुर
फूले जो फूल /आई मधु मक्खियाँ/संझा को भूल ---पुष्पा मेहरा
चींटो से घिरा /छटपटाता केंचुआ /कहाँ हो प्रभु ?---आदित्य प्रताप सिंह
ये स्वर्ग पुष्प /सुने राग बहार मधुमक्खी का ---ज्योत्सना प्रदीप
लड़ते नहीं /तितली मधुमक्खी /फूल के लिए --- एस ॰डी॰तिवारीमधु डंक हैं / मधुमक्खी रखती/ चाह मधु की ---डॉ विधा सिंहबिन्दु
खूब टॉवर लगे/मधुमक्खी बेचारी /रस्ता भूली ।---उमा घिलिडियाल
दीमक मन /यादों की किताब को /चाटता गया ---डॉ सरस्वती माथुर
किताब खाने /दीमकों का घर हो /छत से हुए --- डॉ सरस्वती माथुर
शक ,दीमक /रिश्तों में दूरियाँ /मकडजाल---शशि पुरवारनशे की लत/चाटे कुल दीपक/ बन दीमक---राजीव नामदेव राणा लिधौरीमकडजाल /उलझाए सबको /है विकराल ---मीना अग्रवाल
गर्मी में साथी -मच्छर से बचना /ध्यान रखना ---नूतन डीमरी गैरोला
पतों ने बुनें /अपने ही बंधन/रेशम -कीट---डाँ अश्विनी शर्मा विष्णुमधु मक्खियाँ/ चूस रही मिठास /खिले फूलों से --सुप्रीत कौरसिंधु*हम सभी ने देखा है कि अनेक पर्व त्योहारों पर पशु पक्षियों कि पूजा करना हमारी परम्पराओं का हिस्सा है बैल (नंदी )का शिव के साथ ,लक्ष्मी का हाथी के साथ चूहे का गणेश जी के, दुर्गा का सिंह सरस्वती का मोर ,हिरण का ब्रह्म के साथव कृष्ण जी का गाय के साथ पौराणिक संबंध देखा जा सकता है l
हमारे ऋषियों ने गौ को माता माना हैl निश्चय ही गाय मानव जातिको ईश्वर की देन है / देखें कुछ हाइकु --
पगुरा रही /कारी धवारी गैया /नीम की छैया ...डॉ सुधा गुप्ता
अश्रु -गौमुख /ये सीने में छुपाये /उम्र बिताए...रामेश्वर कंबोज"हिमांशु'
गाय को मिली /रोटी अनुदान में/ कुत्ता खा गया ...डॉ सुरेन्द्र वर्मा
बाछी रंभाये / अम्माँ गई जो खेत/चारा चुगने ---डाँ जेन्नी शबनम
इसी तरह बैल और सांड आज भी प्राचीन काल की तरह ही हमारी ग्रामीण अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं --
निभाए नहीं /जूते हुए बैलन्स /रिश्ते हैं सहे ---रामेश्वर कंबोज "हिमांशु "
चिड़ियाँ चीं चीं/बैल गल तालियाँ /अमृत बेला --- प्रो॰ हरिन्द्र कौर सोही
चौराहों पर /घूमता सांड जैसा/ बेखौफ डर---रामेश्वर कंबोज "हिमांशु
बैल गाड़ी के/ पीछे पीछे है / बैल का चलन--- राम किशोर उपाध्याय
चौकड़ी भरे /मरखाने सांड -सा /अंधड़ चला ---रामेश्वर कंबोज "हिमांशु "
व्याकुल गाँव /व्याकुल होरी का हैं /घायल पाँव ---रामेश्वर कंबोज 'हिमांशु "
संगीत -भरे /बैलगाड़ी का स्वर /किसान हर्षा ---सविता अग्रवाल "सवि"
संगीत भरे /बैलगाड़ी का स्वर /किसान हर्षा ---ऋतु शेखर ‘मधु’
पक्की सड़क/काँपता तन मन /भूखा बछड़ा ...अरुण सिंह रूहेला*ज्योतिष शास्त्र कि बारह राशियाँ आज भी पशुओं के नाम पर हैं तो सूअर की पृथ्वी की रक्षा के लिए वराह अवतार के रूप में मान्यता है l कुछ जीव नुकसान पहुंचाते है जैसे चूहा ,भेड़िया टिड्डी आदि सभी हमारे ईकोसिस्टम की कड़ी हैं और फूड चैन द्वारा संतुलन कायम करती है प्रकृति में ! इसके अलावा श्राद्ध पक्ष में कौवे और चीलों को भोजन करवाना ,कुत्ते -बिल्ली को रोटी डालना ,कबूतर को दाना डालना ,बंदरों को गुड चना खिलाना ,चिड़िया के लिए परिंड़ा बनाना ,तोते पालना और चींटी को चुगगा आटा डालना ,वन सोमवार मनाना आदि परम्पराएँ हमारे पशु प्रेम को दर्शाती हैं l
मानव कम /धन पशु अधिक /बांटे जहर ---रामेश्वर कंबोज"हिमांशु "
"हिमांशु "जनता भेड /जन नेता भेड़िये /खड़े बाट में ---रामेश्वर कंबोज"हिमांशु"
पावन प्यार /भूलें हैं बहनों का /पशु पुरुष ---रामेश्वर कंबोज"हिमांशु"
कैसा वक्त है /कुत्ता खा रहा रोटी /आदमी बोटी ---डॉ सतीश पुष्करणा
निरीह राजा /वानर राज फैला /कष्ट में प्रजा --- भावना कुँवर
जिस ज्ञान का/ न जीवन में उतार /गधे का भार ...डॉ सावित्री डागा
अंध पूजक /बलि बकरे पोषे/बच्चे हैं भूखे ---ज्योतिर्मयी पंत
भेड है प्रजा /मनमानी करे तो/ मिलेगी सज़ा...मीना अग्रवाल
भूखे भेड़िये /ढूंढ रहे शिकार /गरीब -मार...अशोक दर्द
मुर्ग बंदर /मदारी बराबर /प्रजातन्त्र के ---रूपचन्द्र उपाध्याय
बंदर- बाँट /बांटता रहा देश /मंत्री की ऐश ---धर्मेंद्र कुँवर सिंह
मन दहाड़ा /जंगल के शेर सा / गूँज के लौटा।---डॉ सरस्वती माथुर
डरी सी आँखें /दहशत से काँपे/ बिल्लियाँ रोये...डॉ सरस्वती माथुरदिवाली भोज /झूठे पत्तल खाते /वो और कुत्ते ---रचना श्रीवास्तव
खेत में हवा/चौकड़ियाँ भरते/ हरे बछड़े ---आदित्य प्रसाद सिंह
दूध है खत्म /बिल्ली हताश अब /खींसे निपोरे---नमिता राकेश
बेचारा चूहा /शेर -बिल्ली की दोस्ती /जाल में फंसा ---नमिता राकेश
बांधो घंटियाँ /समय आ गया है /चूहा चिल्लाया ---नमिता राकेश
बिल्लियाँ कई /बंधेगा कौन घंटी /चूहों में फूट ---नमिता राकेश
*भारतीय पुराणो में सर्प को एक लाभप्रद जीव माना गया है जो अपना फन फैला कर जैविकसुरक्षा प्रदान करता और नागपंचमी पर पूजा जाता है lकुछ हाइकु देखें--
शीत के दिनो/सर्प -सी फुफकारे /चले हवाएँ---डॉ हरदीप कौर सिंधु
दायें न बाएँ /खड़े हैं अजगर /किधर जाएँ ---रामेश्वर कंबोज "हिमांशु "
शंका का सर्प /फुफकारे जितना /बढ़ता दर्प ---रामेश्वर कंबोज "हिमांशु"
चन्दन -वन /सा शापित जीवन/भुजंग -तन ---रामेश्वर कंबोज 'हिमांशु"नाग देवता/बैठे आसन मारे/ये फुफकारें ---रामेश्वर कंबोज हिमांशुनाग है खुश/कि ये श्वान हमारे/खौफ़ ही बाँटें ---रामेश्वर कंबोज "हिमांशु"सूरज छोड़े /धूप की केंचुलियाँ /दिन साँप सा --- डॉ सरस्वती माथुर
केंचुली छोड़ /यादों का साँप भी दूर निकला --- डॉ सरस्वती माथुर
साँप बन के/ लिपटी रही यादें /कैसे छुड़ाऊँ ...डॉ सरस्वती माथुर
अजगर से /खुलते हैं जंगल /लीलते जाते--- डॉ सरस्वती माथुर
यादों का सर्प /मन के जंगल में /फुफकारता ...डॉ सरस्वती माथुर
चन्दन -तरु /सर्प अंग लिपटे /विष न चखे ---शशि पाधा
युद्ध है सर्प/प्रदूषण है डंक /कुचलों फन ---अनिता ललित
सर्द जंगल /फुफकारती हवा /माघ नागिन ---नीलमेंदू सागर
भीड़ से लड़ी /बलखती चलती /काली नागिन --- मनोशी चटर्जी
चन्दन वन /लिपट रहे हैं सर्प /गंध स्वछन्द...रामस्वरूप मूंदडा
सांप बिलों में /उससे कहीं ज्यादा /हैं आस्तीनों में ---डॉ गोपाल शर्मा
प्रेम-चन्दन/ लूट जाए न लाज /लिपटे सर्प ---सुनीता अग्रवाल
धुंधलके में /सर्प -सी इच्छाओं का /आवागमन ---तुहिना रंजन
दर्प का सर्प /चला मन से पर/ केंचूली छोड़ ---ज्योत्सना प्रदीप
बांबी में कम / आस्तीन में अधिक /साँप आज भी --डॉ राजकुमारी शर्मा
थकते नहीं /केंचुली बदलते /मन के साँप ---डॉ अनीता कपूर
पालें न नाग /पालोगे तो लगेगी /देश में आग ---सुभाष लखेडा
साँपों से दोस्ती /करना न कभी /जन लो अभी ---सुभाष लखेड़ासाँप का दूध/ गरीब को ठोकर/ देखो दुनिया---दिलबाग विर्कधरा के सर /रेतीला अजगर/ढाता कहर ---राधेश्यामफन फैलाये /एक काली रात लगती /विषधर सी --- नरेंद्र प्रसाद नवीनसर्पीली पत्ती/ नरम मुलायम/ अदा दिखाये---ऋता शेखर मधुहमारे यहाँ तो बाकायदा मेलों में पशु मेला लगाए जाने की परंपरा भी है !ऊंट घोडा ,गधे ,बकरी आदि सभी लोकजीवन में महत्व रखते हैं l
*वैज्ञानिक रूप से भी देखें तो इन जीव जंतुओं की प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने में विशेष भूमिका है यही कारण है कि इनके संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ गयी है,देखें ये हाइकु ---कभी न छीनो /वन्य जीवों का घर/भू रही चेता---डॉ सुधा गुप्ताअसंख्य जीव /पाते हैं संरक्षण /इनको गोद---डॉ सुधा गुप्ता यह जीव जन्तु रहेंगे तो हमारी लोकसंस्कृति रहेगी और यदि संस्कृति को जीवित रखना है तो वन्य जीवों के संरक्षण को हमनें अपनी दिनचर्या का अभिन्न अंग बनाना होगा lयदि हमने जीव जंतुओं की सुरक्षा नहीं की तो हम प्रकृति की अमूल्य धरोवर से सदेव के लिए वंचित रह जाएँगे !
डॉ सरस्वती माथुर
ए -2 ,सिविल लाइंस
जयपुर -6
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