मैं कहाँ हारी?
1-डॉ• सरस्वती माथुर
1
दाँव प्रेम का
तुम जीत गए हो
मैं कहाँ हारी?
2
इकतारे – से
बजते रहते हो,
सुर तो साधो ।
3
बाँसुरी हूँ मैं
अधर लगा कर
धुन निकालो ।
4
बाँस- खोखल
हवा के सुर पीके
बाँसुरी हुआ ।
5
सागर खारा
मीठी नदियों का है
कलश- झारा ।
6
बुझ चुकी है
समय की वर्तिका
मन जला लो ।
7
पगली हवा
बाँस- झुरमुट में
रास्ता ही भूली ।
8
मन बूँदों – सा
टपकता ही रहा
भिगोके पल।
9
हवा की चूड़ी
नदी की कल-कल
सुर बुनतीं ।
10
शब्द -रहित
संवाद के पुल थे,
अबोला रहा।
11
साथ क्यों चले
संवाद के मुहाने
बंद करके?
................................................
Posted by: डॉ. हरदीप संधु | मार्च 4, 2015
भोर- चिड़िया
1-डॉ सरस्वती माथुर
1
भोर- चिड़िया
फुदकती फिरती
धरा -आँगन ।
2
उड़ता जाए
दूर -सुदूर तक
विहंग -मन।
3
कली विभोर
भँवरों ने बुनी है
मोह की डोर ।
4
मन है चम्पा
खिल कर सुनाता
मंगल गान ।
4
फाख्ता -सा उड़ा
गुनगुनाता मन
प्रेम में डूबा ।
5
मन की धारा
सप्तसुरी गीतों में
नदी हो गई ।
6
मौन नयन
छप- छप छलके
प्रेम में पगे ।
7
हवा रागिनी
बावरी -सी डोलती
बिना पंखों के।
8
चढ़ा शाख पे
संध्या का जब साया
बिखरा मन ।
9
धूप छाँव से
साथ रहना तुम
मन -आँगन ।
-0-हमारे हाइकु (HAIKU) लेखकों से मिलें
Posted by: डॉ. हरदीप संधु | दिसम्बर 20, 2012
पाखी
डॉ सरस्वती माथुर
1
पंछी हैं हम
एक डाल पे बैठे
मिले हैं सुर ।
2
ख्वाब उगा है
आँखों के नभ पर
नींद चकोर ।
3
दूर हवाएँ,
तिरते पाखी-स्वर
मन थिरका ।
4
मन का पाखी
पी अतल उदासी
जाने क्या बोले ?
5
सूर्य डूबा तो
बिदा गीत सुनाया
संध्या -पाखी ने ।
6
उदास पाखी
मुँडेर पर आज
मिला न दाना ।
7
पंख खोल के
डोलते हुए पाखी
हवा टटोलें ।
8
हवा की सीटी
सुनके जागे -भागे
पाखी बिचारे ।
9
उड़ा कपोत
पंख फडफड़ाता
डाकिया हँसा ।
10
नभ को ताके
पिंजरे की चिड़िया
उड़ न पाए ।
11
सागर- पाखी
है लम्बी उड़ान
पंख हैं फैले ।
.............................................हमारे हाइकु (HAIKU) लेखकों से मिले
Posted by: डॉ. हरदीप संधु | अप्रैल 12, 2012
भरके कलाइयाँ
डॉ सरस्वती माथुर
1
श्वेत चूड़ियाँ
भरके कलाइयाँ
सजी शेफाली
2
सूरजमुखी
पौधे के झरोखे से
सूर्य निहारे
3
पौधे के झरोखे से
सूर्य निहारे
3
हवा में घुल
गुलाब के फूल भी
‘खुशबू बने
गुलाब के फूल भी
‘खुशबू बने
4
मोगरे दाने
चुनता हवा पाखी
चोंच मारके
5
उनींदा दिन
सफ़ेद गुलाब से
रंग ले भागा
6
हवा तितली
मोगरे का रस पी
गंध ले उडी
7
खोल सी गयी
सूरजमुखी धूप
सूर्य की आँखें
8
कच्चे घड़े से
पारिजात टूटे थे
पाखी से उड़े
9
चाँदनी आई
शेफाली को ओढ़ाई
श्वेत चूनर
शेफाली को ओढ़ाई
श्वेत चूनर
10
सफ़ेद चोला
ओढ़ हरसिंगार
ओढ़ हरसिंगार
खिला महकाl
........................
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