शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2016

होली व रंग पर रचनाएं

होली पर हाइकु
1.
दही होलिका
मन की बुराइयाँ
संग में जली ।
2.
फाग आया तो
मन हुआ पलाशी
तन भी रँगा ।
3.
वाह री होली
फागुनी बयार में
भंग है घोली ?
4.
रंग उड़े तो
फाग चिड़िया बोली
करो ठिठोली।
5
तन ने सोखी
फागुनी पिचकारियां
दहका मन।
6
मन रंग के
फागुनी हवाओं ने
डफ़ बजाया।
7
होली के रंग
रंगरेज बन कर
मन को रंगे।
8
होली उमंग
सैंया बजाये चंग
पी कर भंग।
9
मन आँगन
फगुनौटे मौसम
रोप दिये हैं।
10
मन के राग
फागुनी हवाओं संग
गा रहे फाग ।
डाँ सरस्वती माथुर 



नवगीत : "यादों के पाहुन !"
"केसरिया मन- करो न फागुन !"
कहाँ छिपी हैं
पछुवा हवाएं
रंग- गौरैया- फुलवारी


याद आ रहीं हैं बस
फूलों की लदी क्यारी
ढफ -ढोल की फगुनाहट
कहाँ खो गयी हुरियारी
सूनी -सूनी लगती क्यूँ है-अब 
होली की हुरंगी किलकारी


जाने कब झर गयीं
आमों की मंज़रिया
नहीं गूंजते फाग गीत
खोयीं गांवों की गुजरिया
लगते फीके टेसू के रंग- न
 दिखती सतरंगी फुलकारी

***

फिर करों न फागुन तुम

मन को केसरिया- डाल
गुलाल और रंगों की झारी !

डॉ सरस्वती माथुर
"रंग !"
रंग
हाँ वो ही रंग जो
सुमनों पर उडती
तितलियाँ पी लेती हैं
बासंती फागुन की
अगुवाई में
रंग
हाँ वो ही रंग जो
ढाई आख़र  के
प्रेम में दहक कर
गुलमाेहर से दमकते हैं
अमराई में
रंग
हाँ वो ही रंग जो



गुलाल -अबीर से
उड मन अँगना को


उन्मादित कर देते हैं


पुरवाई में
रंग
हाँ वो ही रंग जो 
कोयल की किलकार सुन
टेसू से खिल जाते  हैं
मन रंगरेज सा रंग जाते हैं
तन्हाई में ।
डाँ सरस्वती माथुर 

 होली का त्यौहार आ गया

डॉ सरस्वती माथुर

  फागुनी बौछार लेकर
 भौरों का अभिसार लेकर
 मन में उल्लास जगा गया 
 रसभरा त्यौहार आ गया

 केसर चन्दन टेसू  रंगों में
 मुस्कराता मधुमास छा गया
 चंग और फाग-राग  गाता

 होली का त्यौहार आ गया
 केसरिया पिचकारी लेकर  
 कुमकुम गुलाल अबीर की
 उल्लसित फुहार बरसा कर
 मौसम पर पलाश छा गया
 होली का त्यौहार आ गया
 रसिया गाता  हवाओं संग  
 कलियों में तरुणाई जगा
 जाफरानी अमराई महका

 "होली का त्यौहार !"
हरी- हरी वसुंधरा है रंगों भरा आकाश
होली का दिन आया लाया सबको पास


भूल जाएँ मन के भेद दूर करें अभिमान
मन संग बाँध लें रामायण और कुरआन



होली के जलधार से प्रेम का हो विस्तार
अहम् भूला कर सारे मन में भर लो प्यार


रसपगे रंगों से भरा है होली का त्यौहार
तन भिगोये मन बांधे इसके जल की धार


कृष्ण राधा संग खेल रहे रंग और गुलाल
देख प्रेम रूप कृष्ण का राधा हुई निहाल l
डॉ सरस्वती माथुर
2
"बौराई होली !"
फूल फूल डाल डाल पे

पुरवाई होली

पीत अंगरिया मन रक्तिम

बौराई होली

सरस राग रंग डफ मंजीरे



फिर गाई होली

मारी पिचकारी कपोल गात पे

फगुवाई होली

भांग ठिठोली बेसुध बोली

पगलाई होली

गुजिया- ठंडाई ,केसर -चन्दन से

महकाई होली

प्रेम- प्रीत, गीत गोविन्द संग

मनाई होली

राधा रानी ने श्याम रंगरेज से

रंगवाई होली !


डॉ सरस्वती माथुर होली का त्यौहार आ गया !डॉ सरस्वती माथुर 

1

मौसम टेसू

 मन हुआ फागुन

 होली के संग

2

 महकी हवा

रसपगी होली सी

बिखरे रंग l

3

होली के रंग


उमंग नवरंग

भंग के संग l

4

  भीगते मन

 फगुनाया मौसम

  होली के रंग l

5

  भीगी सी होली  

  फागुनी बयार में

  रसपगी सी l

6   

पीत पराग

आँगन में गुलाल


 होली तो होली l

7

रंग गुलाल

अक्षत चन्दन में

 भीगे से तन l

      8

भीगा सा तन 

अबीर गुलाल से

  हरषे मन l

      9

फागुनी रंग

चंग मृदंग भंग


आगई होलीl

      10

 भंग के संग  

 फागुन का मौसम

  होली के चंग l

 डॉ सरस्वती माथुर

ए -2 , सिविल लाइंस

जयपुर-६



महुवाया फाग मनाया होगा!"

तुम्हारे मन के
आँगन में भी
उतरा होगा फागुन



मीठी तकरार के साथ
पिया ने की होगी ठिठोली
तुमने भी खेली होगी
हुरंगो के संग होली


टेसू रंग भी चटके होंगे
चंग थाप भी थिरके होंगे
तब मुस्कान तुम्हारे
अधरों पर लहराई होगी
तब सतरंगा इन्द्रधनुष
उग आया होगा

सच बताना फगुनाया सपना
जब  पलकों पे उतर आया होगा
मौसम की सुधियों संग तब
बीती यादों के
गुलदस्ते भी महके होंगे
खुमार भी छाया होगा

तब चुपके से तुमने वोही
पुराना फाग गीत
दोहराया होगा 

भीगा होगा तुम्हारे
जीवन का  सुरमई  मौसम
उनके रंगों में डूब
महुवाया फाग
 मनाया होगा

रंग गुलाल से
भीगा होगा तुम्हारे
जीवन का मौसम
गहरे प्यार में सरोबार हो
 सरसराया होगा



तब तुम्हारे
मन के आँगन में
फागुन उतर आया होगा !
डॉ सरस्वती माथुर
"आज की होली!"
फाग बदला राग बदला
चंग भंग का हुरंग बदला



गुलाल की खुशबू बदली
डफ का मधुर ताल बदला
टेसू की महक बदली
प्रीत का आसंग बदला



राधा कृष्ण का रास बदला
पिचकारी का आकार बदला
चन्दन तो सफ़ेद लाल रहा पर
सुगंध का रस्मो रिवाज बदला
पकवान-गुझिया का स्वाद बदला



होली मिलन की रस्म भी बदली
इन्टरनेट का जाल भी बदला
मोबाईल से रस्मे  बधाई देने का 
नया रूप बदला नया हाल बदला
फैशन बदला पर्वों का मिजाज़ बदला



फाग के रसीले गीतों के फ्यूज़न में
डी जे का शोर करता सुर ताल बदला
डॉ सरस्वती माथुर
लघु कवितायें

"फागुन की बेला है!"
1
होली है आई
शीतल मधुमय सी
प्रेम रंग संजोये
तन रंग लो
फागुन की बेला है
मन  भी रंग लो
2
गुलाल रंग
फाग चंग के संग
बौराया सा था मन
पंख खोल के
फागुनी चिड़िया से
गूंजा घर आँगन l
3
कान्हा का रास रचे
राधा की प्रीत जले
डारत रंग
नैनों की बोली में
श्याम खेले होली में
4
खेल रहे हैं होली
नन्द जी के लाल
उड़े गुलाल
चंग पे मची धमाल
मारत पिचकारी
 राधा को गोपाल
डॉ सरस्वती माथुर
ए-2 सिविल लाइंस
 जयपुर-6

"होली का त्यौहार आ गया !"



  फागुनी बौछार लेकर
 भौरों का अभिसार लेकर
 मन में उल्लास जगा गया 
 रसभरा त्यौहार आ गया
 केसर चन्दन टेसू  रंगों में
 मुस्कराता मधुमास छा गया
 चंग और फाग-राग  गाता
 होली का त्यौहार आ गया
 केसरिया पिचकारी लेकर  
 कुमकुम गुलाल अबीर की
 उल्लसित फुहार बरसा कर
 मौसम पर पलाश छा गया
 होली का त्यौहार आ गया
 रसिया गाता  हवाओं संग  
 कलियों में तरुणाई जगा
 जाफरानी अमराई महका
 होली का त्यौहार आ गया !
......................................
होली आई- होली आई
 दहके फूल पलाश के
 महके रंग गुलाल के
 सरसों ने ली अंगड़ाई
 होली आई होली आई
 फागुन का देख जोश
 धरती डूबी मस्ती में
 मौसम  में मादकता  छाई
  होली आई होली आई 
  डाल डाल टेसू खिले  
     चैत की गुहार पर
  चेहरों   पर उल्लास मिले
    होली आई होली आई 
  हवा के पंख पर केसर उड़े
  लेकर फगुआ का सन्देश
   कूकी कोयलिया वन वन
     होली आई होली आई  
   मुखरित हो अब  छेड़ो राग
   ढाई आखर प्रेम के रहें
      द्वेष बचे न शेष
   होली का उल्लास गूंजे
    भीगी  बौराई पुरवाई
   होली आई होली आई l
डॉ सरस्वती माथुर
           ..................
          .....................
 आई.... . होली..... आई
.....  .हायकु
...................
 धूप पंखुरी
खिली फागुन बन
  बजे मृदंग
......................
  मौसम टेसू
 मन हुआ फागुन
  होली के संग
..........................
   महकी हवा
रसपगी होली सी
   बिखरे रंग
......................
होली के रंग
उमंग नवरंग
भंग के संग 
..................... 
फागुनी मौसम .
फागुनी मनुहार पर
गुन्जन करते भंवरे डोले
 फूलों को रिझाते बोले 
 जाड़े की केंचुल उतार
 करें धरा का रूप श्रृंगार
 नये बौर महकाएं मिलकर
 पाहुन के पैरों में  महावर रच
 प्रीत अंग अंग में भर दें
 नये कांधों पर बसंत को लादें
  अभिसारी गीतों से फागुनी
  मौसम भीना भीना कर दें !
डॉ सरस्वती माथुर 
ए--२ सिविल लाइन
 जयपुर-6 

 
     
 लघु कवितायें 

  "होली के रंग !" 
1
रंग चूँदडी
फागुन का मौसम
उडता फिरे
लेकर के राग रंग
अनुरागी सा मन
2
रंग उड़े तो
बोली फाग चिड़िया
आई है होली
भरके मधु मिठास
लो करो न ठिठोली
3
सतरंग में
मौसम लाया फाग
छनती भंग
होली की तरंगों में
फागुन के संग मेंl
4
रंग बयार
फागुनी ये त्यौहार
भीगा तन भी
प्रीत पीत पराग
अँगना में गुलाल
5
फगुआ मन
पाहुन बन डोला
मिटा कटुता
मौसम से यूँ बोला
स्वागत फागुन का l
6
जमुना तीरे
सुन बाँसुरी राधा
हुई अधीर
भीगती गयी वो तो
प्रेम के रस रंग l
7
रंग गुलाल
बिखरा धरा पर
झूमी गोपियाँ
डाल के श्याम रंग
फागुन हुआ मन
8
बैरंग मन
अबीर गुलाल में
भीग गया तो
फागुनी पुरवा में
हुआ अधीर मन
9
मृदंग बाजे
ओढ़ चूंदडी लाल
राधा का मन
गया होली में रंग
श्याम सखा के संग
10
धरा ने ओढ़ी
सतरंगी चूनर
होली के रंग
चहुँ ओर मृदंग
मन में भी उमंग l
11
धरा रंगोली
तरंगमयी होली
रंग बहार
पीत पराग लाया है
बासंती त्यौहार
12
रंग बयार
फागुनी ये त्यौहार
भीगा तन भी
प्रीत पीत पराग
अँगना में गुलाल
13
रसरंग से
धरती है बसंती
छुईमुई सी
फागुनी बयार में
समेट लाई प्यार
14
द्धार द्धार पे
फागुनी बयार है
संग रंगों के
अबीर गुलाल है
रंगीला त्यौहार है l
15
टेसू के फूल
चंग मृदंग संग
फागुनी रंग
चंग भंग ठंडाई
होली की टोली आई l
16
रस रंग ले
फागुन मुस्कराया
अमराई में
नेह फुहार लाया
रसरंगा त्यौहार l
डॉ सरस्वती माथुर
ए -2 ,सिविल लाइंस ,जयपुर -6 
46FC678C-90EC-4DFC-ADC7-2F739BDBB985

डॉ सरस्वती माथुर
डॉ सरस्वती माथुर

लघुकथा :
"  मान सम्मान का नया रसरंग !"
पिछले एक हफ्ते से मोना बुजुर्गों का मान सम्मान विषय पर हो रहे एक सेमीनार में अपने शहर आई हुई हैl अपने शहर यानि अपना मायका, जहाँ जीवन के २५ वर्ष उसने गुजारे थेl हमेशा इस शहर में आने के मौके वो तलाशती रहती है !इस बार माँ के गुजरने के बाद पहली बार आई है l खुशबू की तरह हर कोने में माँ की यादें बसी हैं , वैसे भी होली आने के दस दिन पहले से ही मोना के मायके में सफाई का अभियान शुरू हो जाता था l पुरानी किताबें, अखबार और खाली डिब्बों का आँगन में अम्बार लग जाता था !उसके बाद पकवान गुजियाँ का दौर शुरू होता था lकांजी डाली जाती थी ! नवीन उत्साह से घर में रंग रोगन के बाद रंगोली बनाई जाती थीl पिताजी की तस्वीर पर नयी माला चढती थी l पिताजी एक जाने माने लेखक थे ,माँ बड़ा गर्व करती थी l पिताजी की एक एक किताब को वो छाड़ कर वापस पुस्तकालय में जमा कर धूप बत्ती दिखा देती थी l मोना को याद है माँ हमेशा कहती थी, इन किताबों को मैं लायब्रेरी में भी दान नहीं दे सकती क्यूंकि मुझे लगता है तेरे पिता इनमे आज भी जिन्दा हैं, गाहे बगाहे इन किताबों से बाहर आकर ,घर भर में घूमते रहते हैं l मोना का दिल भर आया था l
आज भी घर में सफाई अभियान चल रहा था l घर का पुराना नौकर रामू तहखाने से बोरा भर कर लाया औरआँगन में उलट दिया ! मोना ने देखा माँ की संगृहीत पुस्तकें ,गीता ,रामायण और भी बहुत सी धार्मिक किताबों के साथ पिता जी की लिखी किताबों का ढेर भी वहां उलट दिया था , रद्दी वाला उन्हें तौलने को तैयार था l भाईवहां आराम कुर्सी पर बैठे थे l उनके आदेश पर रामू रद्दी ला रहा था l तभी रसोई घर में से धोती से हाथ पोंछती भाभी आँगन में आयीं और कुछ देर मौन खड़ी उन किताबों को देखती रहीं !फिर भैया से बोलीं -"आप इन्हें निकाल रहे हैं?"
"हाँ शांता ,क्या करेंगे, देखो सब पर दीमक लग गये हैं l" भैया ने एक किताब पर बने दीमक के घर को दिखाया !
भाभी ने तपाक से जवाब दिया -" जी नहीं यह रद्दी नहीं है l यह मेरी सास और ससुर की जमा पूँजी है lअपने जीते जी मैं इन्हें नहीं बेचने दूंगी !" मैं अम्मा की तरह ही हर साल इन्हें सहेजऊँगी!" वह प्रणाम की मुद्रा में झुकी और पिताजी की लिखी किताब को माथे से लगा बोलीं -"रामू सबको झाड कर वापस पुस्कालय में ज़माना है ,चल वापस बाँध !"
तभी बाहर चंग डफ के साथ फाग के गीतों से लिपटी बयार ने घर आँगन में मान सम्मान का नया रसरंग घोल दिया था ,यूं लगा माँ पिताजी होली का आशीर्वाद देने हवा की पालकी पर बैठ कर आए हैं !मोना ने कृतज्ञता से भाभी की ओर देखा!  उनकी आँखें नम थीl भैया अवाक् से उन्हें देख रहे थे ! रद्दी वाले की तराजू अभी भी हवा में लटकी थी !
डॉ सरस्वती माथुर
 संपर्क :ए -२ ,सिविल लाइन
शिक्षाविद एवम सोशल एक्टिविस्ट
साहित्य :देश की साहित्यिक पत्रिकाओं में कवितायेँ ,कहानियां ,आलेख एवम नये नारी सरोकारों पर प्रकाशन
प्रकाशन ४ कृतियाँ प्रकाशित
संपर्क :ए -२ ,सिविल लाइन
जयपुर विगत कई वर्षों से निरंतर लेखन। कविता, कहानी, पत्रकारिता, समीक्षा, फ़ीचर लेखन के साथ-साथ समाज साहित्य एवं संस्कृति पर देश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में नियमित प्रकाशन।  
विशेष:  जयपुर लिटरेरी फेस्टिवल 2013 में कवितानामा सेशन में भागीदारी के अंतर्गत कविताओं की प्रस्तुति
शिक्षा व सामाजिक सरोकारों में योगदान, साहित्यिक गोष्ठियों व सामाजिक कार्यक्रमों में सक्रिय भागीदारी, विभिन्न साहित्यिक एवं शिक्षा संस्थाओं से संबद्ध, ऑथर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया, पब्लिक रिलेशंस सोसाइटी ऑफ़ इंडिया( राजस्थान चैप्टर की सदस्य।...)
ए -2,
सिविल लाइन्स
जयपुर -6
Dr Saraswati Mathur
A-2 Civil Lines, Jaipur-6 
 "बिखरा गुलाल!"

बिखरे रंग
चंग मृदंग से गूंजा
रंगीला आकाश


होली की
खुली अर्गला
खुले कई संबोधन
बिखरा गुलाल
शब्दों में फूटा
इन्द्रधनुषी विश्वास


बौराया मौसम
घुटी जो भंग
पंख खोल उड़े
आशाओं के रंग
फागुन की चिड़िया ने
भर दिया उल्लास


द्वेष छोड़ कर
 आगये पराये भी
होली में पास
डॉ सरस्वती माथुर
"फागुनी मौसम में!"
टेसू फूलों पे
 जब रसवंती फागुन
चिड़िया सा चह्कता है       
तब मन के फीके रंग
 हवाओं के संग मिल
 सतरंगी हो जाते हैं

 जाने क्यों तब फागुन की
 हर भोर में- चिड़ियाँ के
 कंठों से निकला
 एक एक स्वर
मैं लपक लेती हूँ और
पाती हूँ कि
 सच में मेरी जिंदगी
फूल सी खिल उठी है

मैं सोचने भी लगती हूँ कि
 धरती भी तो
फागुनी रंगों सी
 अलग अलग रंग दिखाती है
 हमें जीना सिखाती है
 तभी शायद मैं हर शाम
थके लाल सूर्य के गोलों को
तपते देखती हूँ और
 हैरान होती हूँ  कि
उसके श्रम से टपकी सिन्दूरी बूंदे
 सागर में घुलते ही जाने कैसे
जीवन की लय बन जाती है
 मन में समां गुनगुनाती है

 तब गाहे बगाहे  सोचती हूँ कि
 किस तरह समय का
 मौसमी सूरज
पृथ्वी की हथेलियों पर
 मेहँदी की तरह रंग छोडता है
 जीवन के आकाशी
 पहियों पर दौड़ता है

 तब मैं भी उत्साह से भर 
 धरा से रंग बटोर के 
कविता की फुलकारी
 बुनने  लगती हूँ,

 भावनाओं की कलम को
 रंगों की स्याही में डूबो      
 फागुनी मौसम में
 आशा के इन्द्रधनुषी
 गीत गुनने लगती हूँ !
डॉ सरस्वती माथुर
चोका
"होली आई तो !"
मन महका
रंगों की छटा छाई
होली आई तो
धरा भी फगुनाई
फागुन चुन्नी
पुरवा संग उडी
सभी को भाई
मृदंग चंग बजे
फाग गुंजाई
रंगों के भंवरों की
गुंजार भाई
ढोल मंजीरे बजे
फागुन ऋतु आई
डॉ सरस्वती माथुर

"मन महका!"
रंग बयार
धरा पर बरसी
मन खुमारी
अंगड़ाई ले सरसी
छोड़ नींद को
उडी तितली बन
डाल डाल पे
विविधवर्णी फूल
खिले उन्मत
बिखरे फाग रंग
जगी सुगंध
पी के रंग गुलाल
रंगीन तन
रिश्तों की मिठास में
घुले थे रंग
प्यार की ठिठोली से
महके होली रंग
डॉ सरस्वती माथुर 
 होलिया के हुरंग .. होली है आई.... ..बिखरे रंग
सुरंगी होली
1
प्रेम छंद के
पिरो करके गीत
घर आँगन गूंजा
मधुर राग
सज़ धज के आया
प्रिय देखो न फाग l
2
सपनो भरी
रंगों की दुनिया है
गूंजे होली के राग
प्रेम के संग
आओ भी प्रियतम
खेलें हम भी फाग

 3
महके टेसू
केसरिया पलाश
फागुनी प्रीत संग
गूंजें हैं हास
मधुरम रागिनी
है मधुरंग फाग
4
 होली है आई
शीतल मधुमय सी
प्रेम रंग संजोये
तन रंग लो
फागुन की बेला है
मन को भी रंग लो
5
दुतारी चंग
झांझ मंजीरा बाजे
अबीर गुलाल से
महके रंग
झरोखे अटारी पे
हवा में गूँजे मृदंग
6
सुरंगी होली
मधुमास में डोली
बिखरे रंग
डफली बाजे
फगुआ गुलाल में
होलिया के हुरंग
7
भोर ने खेली
इन्द्रधनुषी होली
सूर्य फैंके गुलाल
नभ ने रंगा
खोल के मुट्ठी डाला
करा धरा को लाल
8
पिचकारी में
फागुनी आहट ले
आई ऋतु सुहानी
मन के राग
नवरंग बजाते
गा रहे सब फाग
10
बिखरे रंग
फागुनी संबोधन
आशाओं के गुलाल
भीगा सा मन
इन्द्रधनुषी फाग
चंग भंग मृदंग !
डॉ सरस्वती माथुर

"आज की होली!"
फाग बदला
 राग बदला
चंग भंग का
 हुरंग बदला

गुलाल की
 खुशबू बदली
डफ का
 मधुर ताल बदला
टेसू की
 महक बदली
प्रीत का
आसंग बदला

राधा कृष्ण का
 रास बदला
पिचकारी का
आकार बदला
चन्दन तो
सफ़ेद लाल रहा पर
सुगंध का
 रस्मो रिवाज बदला
पकवान-गुझिया का
स्वाद बदला l
 होली मिलन की
 रस्म भी बदली
इन्टरनेट का
 जाल भी बदला
मोबाईल से
 रस्मे  बधाई देने का
नया रूप बदला
 नया हाल बदला
फैशन बदला
 पर्वों का मिजाज़ बदला
 फाग के रसीले
गीतों के फ्यूज़न में
डी जे का शोर करता
 सुर ताल बदला
डॉ सरस्वती माथुर 
 1 होलिया के हुरंग .. होली है आई.... ..बिखरे रंग
सुरंगी होली
1
प्रेम छंद के
पिरो करके गीत
घर आँगन गूंजा
मधुर राग
सज़ धज के आया
प्रिय देखो न फाग l
2
सपनो भरी
रंगों की दुनिया है
गूंजे होली के राग
प्रेम के संग
आओ भी प्रियतम
खेलें हम भी फाग

 3
महके टेसू
केसरिया पलाश
फागुनी प्रीत संग
गूंजें हैं हास
मधुरम रागिनी
है मधुरंग फाग
4
 होली है आई
शीतल मधुमय सी
प्रेम रंग संजोये
तन रंग लो
फागुन की बेला है
मन को भी रंग लो
5
दुतारी चंग
झांझ मंजीरा बाजे
अबीर गुलाल से
महके रंग
झरोखे अटारी पे
हवा में गूँजे मृदंग
6
सुरंगी होली
मधुमास में डोली
बिखरे रंग
डफली बाजे
फगुआ गुलाल में
होलिया के हुरंग
7
भोर ने खेली
इन्द्रधनुषी होली
सूर्य फैंके गुलाल
नभ ने रंगा
खोल के मुट्ठी डाला
करा धरा को लाल
8
पिचकारी में
फागुनी आहट ले
आई ऋतु सुहानी
मन के राग
नवरंग बजाते
गा रहे सब फाग
10
बिखरे रंग
फागुनी संबोधन
आशाओं के गुलाल
भीगा सा मन
इन्द्रधनुषी फाग
चंग भंग मृदंग !
डॉ सरस्वती माथुर

"आज की होली!"
फाग बदला
 राग बदला
चंग भंग का
 हुरंग बदला

गुलाल की
 खुशबू बदली
डफ का
 मधुर ताल बदला
टेसू की
 महक बदली
प्रीत का
आसंग बदला

राधा कृष्ण का
 रास बदला
पिचकारी का
आकार बदला
चन्दन तो
सफ़ेद लाल रहा पर
सुगंध का
 रस्मो रिवाज बदला
पकवान-गुझिया का
स्वाद बदला l
 होली मिलन की
 रस्म भी बदली
इन्टरनेट का
 जाल भी बदला
मोबाईल से
 रस्मे  बधाई देने का
नया रूप बदला
 नया हाल बदला
फैशन बदला
 पर्वों का मिजाज़ बदला
 फाग के रसीले
गीतों के फ्यूज़न में
डी जे का शोर करता
 सुर ताल बदला
डॉ सरस्वती माथुर 
 

1
"रंग भरी शाम!"

पुरवाई मन
महका जीवन
कहीं नहीं विराम
रंग भरी शाम

सपनों को थाम
पलाश से हुअे
फागुनी पैग़ाम
रंग भरी शाम

संदली भोर में
सतरंगी धूप पी
भरी नयी उड़ान
रंग भरी शाम

अमराई मन
उड़ता फिरा
बाँच तुम्हारा नाम
रंग भरी शाम

बासंती मौसम
बुने नये सुर
भर यादों के जाम
रंग भरी शाम।
डाँ सरस्वती माथुर
***
2
"एक गीत मैं भी लिख डालूँ !"

सप्तरंगी डोर से
सूरज को बासंती
धूप को भोर से
चांद को चकोर से
मिला एक कर डालूँ
एक गीत मैं भी लिख डालूँ

हवाओं से सुर  माँग
चौकपुरे आँगन में
मिला फागुनी भांग
देहरी पर तामवर्ण
तोरण लगा लूँ
एक गीत मैं भी लिख डालूँ

जागती यादों का
धूपछांही रशिमयों से
अनुरागी वादों का
बाँध सप्तरंग
प्रेम के रंग बुन डालूँ
एक गीत मैं भी लिख डालूँ

आम की अमोरी से
महुआ-कचनार की
गंधभरी मयूरी से
नेह रीत का
रंग भरी प्रीत का
एक गीत मैं भी लिख डालूँ !
***
"यादों की आरी!"

हवा की देहरी
मौसम के साथ
फागुनी बोरी
बासंती रंगों में
घुल मिल बतियाती
यादों की आरी चल जाती

नीम की निबोली
गंध फागुन में घुल
कोयल की बोली
तीर सी चुभती
मन भारी कर जाती
यादों की आरी चल जाती

नभ की गली
चांद चांदनी की
प्रीत जब पली
चकोरी को खल जाती
आंसूओं से अंजुरी भर जाती
यादों की आरी चल जाती ।

डाँ सरस्वती माथुर
ए-२
सिविल लाइन
जयपुर...6

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"रंग के संग !"
1.
तुमने रंग चुराये
डूबते सूरज के
तो मैं साँझ हो
आकुल सी
सागर किनारे
रात में जज़्ब हो गई ।
2.
मैं शाम के
उदास रंग हूँ
दिन भर की
बेला से बटोर कर
जिन्हें जमा किये
और सागर में
डूबो दिये।
3.
सूर्योदय में
सतरंगी चिडिया
रंगों को निहारती है
बासंती हो
फागुनी हवाएँ भी
फूलों से रंग बटोर
तितली सी मँडराती हैं
मकरंद पी कलियों को
चटकाती हैं
धूप की उजास पी
भँवरों से मिलाती हैं
प्रेम में रंग जाती हैं !
4
रंगों की
पहन पाग
घूमता है
रंगीला फाग
फूलों के रंग चुरा
मौसम संग
मन रंग जाता है
तन भी रंग जाता है।
5.
गुलाबी रंग
रोम रोम झूमता

5
फागुन संग मौसम में
उत्सव हरित धरा पर
दस्तरख़ान बिछाता है
बासंती हवाओं से
वसुंधरा सजाता है
रंग अनंग हो जाता है।
डाँ सरस्वती माथुर

"रंग संग चंग!"
रंग रंग फागुन
हुई हवाएँ सुगना
मन में उठी हिलोरें
नैनों में जागा सपना

गौरी की कलाई पर
सज गया कंगना

ठौर  ठौर फागुन
उत्सव की रचना
अनछुई सिहरन
गुलाल का झरना

रंगों भरी पुरवाई
अल्पना सजी अँगना

पौर  पौर थिरकन
 पंचरंगी कल्पना
शोर मचा चंग का
याद आ गये सजना।
डाँ सरस्वती माथुर

"रंग भरी शाम!"

पुरवाई मन
महका जीवन
कहीं नहीं विराम
रंग भरी शाम

सपनों को थाम
पलाश से हुअे
फागुनी पैग़ाम
रंग भरी शाम

संदली भोर में
सतरंगी धूप पी
भरी नयी उड़ान
रंग भरी शाम

अमराई मन
उड़ता फिरा
बाँच तुम्हारा नाम
रंग भरी शाम

बासंती मौसम
बुने नये सुर
भर यादों के जाम
रंग भरी शाम।
डाँ सरस्वती माथुर
***
"एक गीत मैं भी लिख डालूँ !"

सप्तरंगी डोर से
सूरज को बासंती
धूप को भोर से
चांद को चकोर से
मिला एक कर डालूँ
एक गीत मैं भी लिख डालूँ

हवाओं से सुर  माँग
चौकपुरे आँगन में
मिला फागुनी भांग
देहरी पर तामवर्ण
तोरण लगा लूँ
एक गीत मैं भी लिख डालूँ

जागती यादों का
धूपछांही रशिमयों से
अनुरागी वादों का
बाँध सप्तरंग
प्रेम के रंग बुन डालूँ
एक गीत मैं भी लिख डालूँ

आम की अमोरी से
महुआ-कचनार की
गंधभरी मयूरी से
नेह रीत का
रंग भरी प्रीत का
एक गीत मैं भी लिख डालूँ !
डाँ सरस्वती माथुर
जी कुछ और रचनाएँ लिख कर पोस्ट करती हूँ

"खो गये हैं रंग !"

 कच्चे पड गए रिश्ते

खो गए हैं रंग

महंगी जीवन किश्ते

थक गया है शायद

रंगों का रंगरेज

न साझा चूल्हा

न ढोल डफली

न आँगन में झूला

बस बाट  जोहती है

सूनी सी सेज

न पायल की रुनझुन

न संवाद में व्याकरण

न रंगों की रस धुन

न त्यौहार में आचरण

न उत्साह में तेज ।
डॉ सरस्वती माथुर
...........................
"रंग फागुन का !"

सलोनी सुबह थी
रंगों के बादल थे
 भर मुट्ठी उड़ाया

जीवन के नभ पर
चांदनी थी बर्फ
धरा की किताब में
बंद थे चंद हर्फ़
फाग गूंजा तो
मन मुस्कराया

मन तरुओं पर
ठूँठो की भाषा थी
पर नए पात आयेंगे
यह एक आशा थी
हवा की लहरों पर
इन्द्रधनुष बनाया

रंग फागुन ले आया
नया राग सुनाया
सप्तरंगी रंग छाया

डॉ सरस्वती माथुर
जी कुछ और रचनाएँ लिख कर पोस्ट करती हूँ

"खो गये हैं रंग !"

 कच्चे पड गए रिश्ते

खो गए हैं रंग

महंगी जीवन किश्ते

थक गया है शायद

रंगों का रंगरेज

न साझा चूल्हा

न ढोल डफली

न आँगन में झूला

बस बाट  जोहती है

सूनी सी सेज

न पायल की रुनझुन

न संवाद में व्याकरण

न रंगों की रस धुन

न त्यौहार में आचरण

न उत्साह में तेज ।
डॉ सरस्वती माथुर
...........................
"रंग फागुन का !"

सलोनी सुबह थी
रंगों के बादल थे
 भर मुट्ठी उड़ाया

जीवन के नभ पर
चांदनी थी बर्फ
धरा की किताब में
बंद थे चंद हर्फ़
फाग गूंजा तो
मन मुस्कराया

मन तरुओं पर
ठूँठो की भाषा थी
पर नए पात आयेंगे
यह एक आशा थी
हवा की लहरों पर
इन्द्रधनुष बनाया

रंग फागुन ले आया
नया राग सुनाया
सप्तरंगी रंग छाया
डॉ सरस्वती माथुर
जी कुछ और रचनाएँ लिख कर पोस्ट करती हूँ

"खो गये हैं रंग !"

 कच्चे पड गए रिश्ते

खो गए हैं रंग

महंगी जीवन किश्ते

थक गया है शायद

रंगों का रंगरेज

न साझा चूल्हा

न ढोल डफली

न आँगन में झूला

बस बाट  जोहती है

सूनी सी सेज

न पायल की रुनझुन

न संवाद में व्याकरण

न रंगों की रस धुन

न त्यौहार में आचरण

न उत्साह में तेज ।
डॉ सरस्वती माथुर
...........................
"रंग फागुन का !"

सलोनी सुबह थी
रंगों के बादल थे
 भर मुट्ठी उड़ाया

जीवन के नभ पर
चांदनी थी बर्फ
धरा की किताब में
बंद थे चंद हर्फ़
फाग गूंजा तो
मन मुस्कराया

मन तरुओं पर
ठूँठो की भाषा थी
पर नए पात आयेंगे
यह एक आशा थी
हवा की लहरों पर
इन्द्रधनुष बनाया

रंग फागुन ले आया
नया राग सुनाया
सप्तरंगी रंग छाया

डॉ सरस्वती माथुर
विशेषांक ....रंग !"...डॉ सरस्वती माथुर
"होली जब आती है !"

होली औपचारिकता नहीं
 हमारी परंपरा है
जब हम खेलते हैं
होली के रंग
मिठास घुलती है
आत्मीयता खिलती है

 गुलाल मलते हैं तो
 मन के आँगन में
 चंग  मृदंग बजते ही
 नेह रस बरसाती
 एक चिड़िया उड़ती है

 होली जब आती है
 मेलजोल का
 माहौल बनाती है
ढ़ोल डफ के साथ
 फागुनी बयार बहकर
दिलों को मिलाती है l
डॉ सरस्वती माथुर
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गुरुवार, 25 फ़रवरी 2016

 स्नेही  भैया 
हाइफन पत्रिका के लिये अपने इाइकु भेज रही हूँ ।
सस्नेह
डाँ सरस्वती माथुर
image.jpeg
डाँ सरस्वती माथुर
हाइकु
1.
मैं हूँ रचना
संगृहीत करके
कोश बना लो।
2.
सफर रूका
पर मन की गाड़ी
चलती रही।
3
दहक उठा
चाँद का अलाव तो
चाँदनी जली।
4.
बैरागी हवा
पहाड़ों पे जा कर
मौन साधती।
5.
अथाह प्यास
एक बूँद पाकर
सिंधु लगती।
6.
धुँध का झारा
चाँद सूरज पर
किसने मारा?
7.
कच्चे पक्के से
ख़्वाबों को बुन कर
सोई थी आँखें ।
8.
कोरा है मन
प्रेम अक्षर लिख
रंग भर लो।
9.
सूखा सा मन
प्रीत की हाला पीके
रसीला हुआ।
10
नभ का चाँद
पहाड़ों की चोटी पे
दीये सा जला।
11:
बेबाक़ शब्द
शवो जैसे होते हैं
उन्हें जला दो।
12
बर्फ़ की लगी
सर्द बंदनवार
ठिठुरी रात।
13.
लहरें उठी
बदरंग कर गई
रेत के नीड़।
14.
साधक मेघ
नभ पहाड़ी पर
जोगी सा बैठा।
15.
डूबता सूर्य
परिंदे सा दुबका
सिंधु नीड़ में ।
16.
सर्द मुट्ठी में
क़ैद था जो कोहरा
धूप में दौड़ा ।
17.
सरकंडो में
कुआंरी चाँदनी को
चाँद छेड़ता।
18.
सूखता मन
यादों के छींटों से
हरा सा हुआ।
19.
लम्हे पकड
गुज़रते वक़्त का
चित्र सजाया ।
20.
सिगडी दिन
सुलग सुलग के
बुझ ही गया।
डाँ सरस्वती माथुर
ए-2
सिविल लाइन
जयपुर - 6
परिचय :
नाम : डॉ सरस्वती माथुर
शिक्षाविद एवम सोशल एक्टिविस्ट ,कवियत्री-लेखिका - साहित्यकार व हाइकुकार
साहित्य देश की साहित्यिक पत्रिकाओं में कवितायेँ ,कहानियां ,आलेख एवम नये नारी सरोकारों पर प्रकाशन
प्रकाशन ४ कृतियाँ प्रकाशित व साझा संकलन में कवितायें , कहानियाँ, लघु कथाएँ व हाइकु संकलित
काव्य संग्रह : प्रयास
1॰एक यात्रा के बाद
2.मेरी अभिव्यक्तियाँ
3.एक पुस्तक जैव प्रोधोगिकी पर प्रकाशित । िविभिन्न
जयपुर विगत कई वर्षों से निरंतर लेखन। कविता, कहानी, पत्रकारिता, समीक्षा, फ़ीचर लेखन के साथ-साथ समाज साहित्य एवं संस्कृति पर देश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में नियमित प्रकाशन।
शिक्षा व सामाजिक सरोकारों में योगदान, साहित्यिक गोष्ठियों व सामाजिक कार्यक्रमों में सक्रिय भागीदारी, आकाशवाणी दूरदर्शन व विभिन्न साहित्यिक एवं शिक्षा संस्थाओं से संबद्ध, ऑथर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया, पब्लिक रिलेशन काउंसिल आफ इंडिया वुमन विंग की पूर्व अध्यक्षा, पब्लिक रिलेशंस सोसाइटी ऑफ़ इंडिया (राजस्थान चैप्टर की चार्टर
सदस्या ),गिल्ड आफ विमन एचिवर (राजस्थान चैप्टर )से संबद्ध।
जयपुर लिटरेरी फ़ैस्टिवल में कवितानामा में भागीदारी।
विदेश यात्रा के दौरान अमेरिका,कनाडा,ब्रिटेन के विभिन्न शहरों की संस्कृति को देखने समझने का अवसर मिला ।
संपर्क
:ए -२ ,सिविल लाइन
जयपुर -6
0141-2229621
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