रविवार, 31 अगस्त 2014

पीपल पर कवितायें

"पीपल की छाँव तले!"1
भरी दोपहरी  में
प्याज़ तोड़ कर
है रोटी खाता
पीपल की छाँव तले
श्रमिक सुस्ताता
इसकी शाखाएँ
 जैसे माँ की बाहें
इसकी जड़ें लगती
 साँसों की राहें
 जन जन का तो
  खुला मंच है यह
 वनो का पावन
 रंगमंच भी यह
 इसे संभालो
तीज त्योहार पर
 झूले डालो
करो संरक्षण
 हो जाएगी तब
 धरती कंचन l
डॉ सरस्वती माथुर
2
 "पीपल वृक्ष बड़ा अनमोल !"
पीपल का घेरा
पाखियों का है डेरा
माँ  की बाहों सी
इसकी शाखाएँ
 हवाओं को दिखाती  राहें
धरती चूमती इसका माथा
 बरसों की है यह गाथा
नहीं इसक कोई मोल
 वृक्ष बड़ा  यह अनमोल
वन को है चहकाता 
हवा  को भी  महकाता
 कण कण में इसके  स्पंदन
प्रकृति माता का यह सृजन   l
डॉ सरस्वती माथुर
3
" तरु पीपल: प्रकृति  का यह सृजन !"

पीपल का पेड़
सजग प्रहरी सा खड़ा है
 इसका मोल बहुत बड़ा है
 चबूतरा जो इसके
 इर्द गिर्द जडा है
 उससे पूछो इसका राज
यह तो है  हवाओं को
जीवन देने वाली
 मधुर आवाज़
 पेड़ों की बिरादरी का
यह  है सरताज
 सौंदर्य इसका अनुपम
 इसके बिना सूना उपवन
करो इसका संरक्षण
प्रकृति  का यह सृजन  l
डॉ सरस्वती माथुर


"मैं हूँ पीपल !" 
मेरे लिए भी
 छोड़ दो इमारतों से भरे
 महानगरी शहरों में
थोड़ी सी जमीन
 खींच करएक परकोटा
 चाहे सीमित कर दो पर
मेरी सम्पदा को
 शहर में भी  पसार दो

 मैं पीपल हूँ
 मेरी कहानी को
  इतिहास भी जानता है कि
 जब गाँव की
 पगडंडियों पर
 आहटें होती थी
मेरी बाहों सी शाखाएँ
 हवा के ठंडे झारे फैंक
पथिकों को राहत देती थी

 गाँव के मनचले युवा
यहीं  योजनाओं की
शतरंज खेलते थे
 बुजुर्गों की भी   मेरी ही
छांव तले चौपाल व
 पंचायत सजती थी
पनघट से लौटती
 पनिहारिने यहीं रुक कर
 बातें पिरोती थी

 डालों- शाखाओं पर
चिड़िया के घोंसलों को
सहेज कर मैं ही
मौसम बदलता था लेकिन
फिर भी न जाने
किसने और क्यों
 मेरी छाँह को प्रकृति से
 निर्वासित कर  दिया और
 मेरी विरासत का  तब
 अर्थ बदल गया

 और  क्योंकि अब
 गांवों का अस्तित्व
 शहर में बदलता जा रहा है
तो सोचता हूँ
यहाँ मैं भी बंध जाऊँ
शहर  की गलियों में
 रम जाऊँ
पथरीले आवासों के इर्द गिर्द 
 हरियाली भर जाऊँ !
डॉ सरस्वती माथुर



"पीपल की छाँव !"
 कौन सी मिट्टी में
उगता है  रे पीपल तू  पावन,
 झूले डलते हैं
 जिस पर हर सावन

छांव देकर देता है ठाँव
परती को छाया देता है
परिक्रमा करते लोगों को भी
कैसे जाने बांध लेता है
 मोह माया का दान देता है

दिल के आकार के इसके पात
 कभी नहीं पूछते हैं जात
हवा में भर  प्राणवायु
आक्सीजन का  पान   देता है

सुबह -साँझ अपनी
 शाखाएं फैलता
 पाखियों- जीवों का नीड़ जुटाता
चाँद चाँदनी का   छान उजाला
अपनी बाहों में भर मिलन करवाता

 अपनी चौखट पर
थके  पथिकों  -व श्रमिक को
 गहरी मधुर नींद सुलाता
गरम थपेड़ों से
 हर  जन को बचाता
अपनी छाया में  सबको सहलाता

पल भर को भी   बैठते हैं जब
 पीपल की चुन्नटदार छाँव
तब बहुत याद आता है हमको
पनघट - चौपाल   वाला
 अपना पुश्तैनी  गाँव

पीपल तरु है अनमोल  
 वनो को  हमे इसकी छाया से
 पग पग पर  भरना   होगा   
 संरक्षण भी इसका
 जी जान से करना होगा l
डॉ सरस्वती माथुर "पीपल अनमोल !"
1
पीपल गात
 नहीं पूछता कभी
जन की जात
प्राण वायु है देता 
है अमूल्य सौगात  l
2
तरु पावन
साँसों को धड़कन
पीपल देता
वनो के तीरों  पर
हरियाली फैलाता  l
4
अमृत देता
पीपल का सागर
साँसों की गागर
 जब भरता
 धरती महकती
 कोयल चहकती l

दिन ओ रात
पीपल की शाखाएँ
करती बात
नहीं पूछती कभी
जन की यह जात l
डॉ सरस्वती माथुर
हाइकु
1
पीपल तरु
धरा का सरताज
देता है छाँव l
2
दिन ओ रात
 पीपल की शाखाएँ
करती बात l
3
कोमल गात
हवाओं को करता
पीपल पाक l
4
दिल आकार
है पीपल पातों का
इसे बचा लो l
5
पीपल पात
कभी नहीं पूछते
जन की जात l
6
पीपल पात
 हवाओं से कहते
मन की बात l
7
पीपल पंखा
झलवाएँ किस् से
हवा है मौन
8
पीपल हरा
वन को अंखुयाए
 पाखी हर्षाए l

मन की मन्नतें
पीपल के तने पे
बांध उड़ाओ  l
10
पीपल सज़ा
रंग बिरंगी चुन्नी
स्वप्न उड़ाए l
11
पीपल पात
 तितली सा डोलता
हवा के संग l
12
पीपल ओढ़े
लाल   सी  चुनरिया
 मन्नत बाँचे l
डॉ सरस्वती माथुर

मंगलवार, 26 अगस्त 2014

"सृज़न के उन्माद में! "

"सृज़न के उन्माद में! "
"सकपकाई सी
एक चिड़िया आई
ताकती रह देर तक
पतझड़ के झड़े
भूरे पतों को
हवा बुहार रही थी
तब सन्नाटा
अटक गये थे चिड़िया के
सुर भी कंठ में पर
मौसम के गलियारों में
महक थी सूखे पत्तों क़ी
उम्मीद थी जल्दी ही
फिर फूल आयेंगे
तितलियों उनमे
ताजगी तलाशती मंडराएगी
कोयलें कूकती
हरियाली पी लेंगी
सृज़न के उन्माद में
फिर फूटेंगे अंकुर
फुलवारी में उगेगा
इन्द्रधनुष
रंग - बिरंगी तितलियों का
चिड़िया ने भी
अपने से संवाद किया कि
अब आ गया है वक्त
घरोंदा बनाने का
इस विश्वास के साथ
उल्लासित हो
वो उड़ गयी
बसंत के बारे में
सोचेते हुये !

शनिवार, 23 अगस्त 2014


"बीज़ हूँ मैं !"

बीज़ हूँ वहीं उगी

जहां गिरी थी

कच्चा पौधा जब उगा

तो बहुत मुलायम था  

हरा था 

हर पौधे और

फूल का

 होता है अपना रंग

उसके बढ्ने की विधि

 मेरा भी एक रंग था

विकास की प्रक्रिया थी

 सो बढ़ती रही

पौध से पेड़ बनी

 शाखाओं सी फैली

 पातों ने

 हवाओं से सोखीं

रसभीगी नमी

मेरे तने को दी

 एक मजबूत जमीं

यहीं फैलूँगी अब

फल दूँगी और

बीज़ बन कर

बार बार उगूँगी

बस मेरी इस माटी को

उर्वर रहने देना

बस उर्वर रहने देना !

डॉ सरस्वती माथुर

शुक्रवार, 22 अगस्त 2014

लघु कहानी
"आ री कनेरी चिड़िया!"
मीठी मात्र आठ साल की थी जब घर के अहाते के एकदम बाहर बरवाड़ा हाउस सोसाइटी ने  पीले कनेर के 10 पेड़ रोपे थे  !अभी भी याद है गायत्री देवी को जब गर्मियों में गरम हवाओं के झोंके तन को गरम कर देते थे तो कनेर की नुकीली पंखियाँ चँवर सी झूल कर मौसम को खुशनुमा बना देती थी !शुरू शुरू के वो दिन गायत्री देवी की यादों में आज भी ताजा है Iबरवाड़ा सोसायटी का यह अहाता तब बच्चों   के क्रिकेट का मैदान था ,गर्मी की लू से बेपरवाह रहते हुए दिन भर  धमाचौकड़ी होती थी , खेल कूद करते बच्चे कनेर के इस पेड़ के नीचे बैठ कर थकान मिटाते थे ,इसके पीले पीले फूल जब डाल  से छूट कर बच्चों के उपर आ गिरते थे तो मौसम में बसंत छा जाता था l उन फूलों को एक दूसरे पर उछाल कर सभी मिल कर एक स्वर में गाते थे ----"आ री कनेरी चिड़िया ...गा री कनेरी चिड़िया ....शिवजी के मंदिर में फूलों को जाकर चढ़ा री कनेरी चिड़िया .....आ री कनेरी चिड़िया ...!" यह किसी प्रदेश का लोकगीत था जो भोलू ने अपनी दादी से सीखा था और सब की जबान पर चढ़ गया था !
गायत्री देवी जब तक बरवाड़ा हाउस के इस अहाते में रहीं पूजा में कनेर के फूलों को नियमित चढाती रहीं lफिर वह अपने छोटे बेटे के पास विदेश चली गईं lबड़ा बेटा अभी भी बरवाड़ा हाउस ही में रहता है ,वे आती जाती रहती हैं !इस बार का आना विशेष मायने  रखता है ,वह मीठी की शादी में पूरे परिवार के साथ शामिल होने आई हैं !मीठी जो उनकी लाड़ली पोती है ,ला की पढ़ाई खत्म करके अब प्रैक्टिस कर रहीं हैं ! चोबीस वर्ष की हो चुकी हैं मीठी !गायत्री देवी इस बार भारत लगभग पाँच वर्ष बाद आईं हैं ! इस बार विशेष रूप से यहाँ की संरचना में उन्हे बड़ा बदलाव लगा, वह हैरान भी थीं और दुखी भी कि गगनचुंबी इमारतें बनाने के चक्कर में बरवाड़ा हाउस ही नहीं पूरे शहर की काया पलट के फलस्वरूप यहाँ की सुंदरता भी तहस नहस हो गयी हैl कल की सी बात लगती है जब अहाते के आस पास का सौंदर्य अप्रतिम था ...वह कैसे भूल सकतीं हैं कि भोर होते ही यहाँ चिड़ियाएं नए नए राग छेड कर सभी को जगाती थी  और अब देखो तो जगह जगह से डालें काट दी गईं हैं ...कनेर जो हर रंग में अपनी आभा बिखेर के मन मोह लेते थे उदास खड़े हैं ,कनेर जो मंदिर का दर्शन थे ,जो हवाओं की आहटों के साथ थिरकते थे ,मौन खड़े हैं, कनेर जो मंदिर का दर्शन हैं ,विष पीते हुए मंदिरों में अमृत बरसाते हैं ,शिव जी पर चढाये जाते हैं ,वहाँ की  रचना का दर्शन हैं  ...वहाँ की अभिव्यक्तियों का जीवन मकरंद हैं ...जो हवाओं की दस्तकों के साथ घण्टियों की तरह बजते से लगते हैं, सद्भाव आस्था का भाव जगाते हैं ,आज चीख चीख कर कह रहें हैं कि हमे न काटो, हमें बचाओ ,हम तो इन आहतों की देहरी के रखवाले हैं, प्रहरी हैं ,पर्यावरण के रक्षक हैं l
गायत्री देवी उन्हे बड़े दार्शनिक मनोभाव से एकटक जब निहार रहीं थीं तो मीठी उनके पास आ खड़ी हुईं ---"प्रणाम दादी, आपका जेट लेग पूरा हुआ या नहीं ?"
-"अरी कहाँ बिटिया,  नींद ही उड गयी है मेरी तो, देख न मीठी कितनी बेदर्दी से नोचा है इन कनेर की डालियों को , बांसुरी सी लहराती थी कभी ,जगह जगह से काट दी गयी हैं अभी....चिड़ियों का बसेरा तक नहीं दिख रहा Iगायत्री देवी की आवाज़ में भी दर्द था जिसे मीठी ने भी महसूस किया!
"अरे दादी जान, सोसाइटी वालों ने तो इसे काटने के आदेश तक दे दिये थे वो तो मैंने सभी सदस्यों  के हस्ताक्षर ले कर नोटिस देकर इन्हे रोका है  स्पष्ट निर्देश निकलवाये  हैं कि इन्हे न काटा जाये बल्कि इमारत जो बन रही है उसकी बनावट में इन पेड़ों की परिधि छोडी  जाये।इन ओरनामेंटल पेड़ो की सीमा रेखा छोड़ते हुए ही नक्शा पास करवाया जाये,स्टे ले लिया है, केस चल रहा है अभी!"
गायत्री देवी ने स्नेह से मीठी की आँखों में देखा,सोचा सच कितनी समझदार होगयी है मीठी... यह बच्ची ,पर्यावरण  का संरक्षण  ही नहीं कर रही   है बल्कि  हरियाली जो प्रकृति का अनुपम शृंगार होती उसे भी बचाने के जीवट संघर्ष मेँ जुटी है ...तभी तेज हवा का झोंका आया तो साथ में हवाओं की बौछार के साथ पीले कनेर के बहुत से फूल गायत्री देवी के इर्द गिर्द बिखर कर वातावरण को मनमोहक सुगंध से भर गये, तन के साथ साथ मन को भी सुवासित कर गये! देर तक गायत्री देवी के कानो में गूँजते रहे यह मधुर स्वर....".आ री कनेरी चिड़िया ...गा री कनेरी  चिड़िया........!
डॉ सरस्वती माथुर

रविवार, 17 अगस्त 2014

"कृष्ण:गीता का सार !"
कृष्ण तुम गीत हो
राधाजी की प्रीत हो
बांसुरीमें सुर गूँजते
भावतीत संगीत हो

तुम ही हो ब्रह्मांड
जैसे चावल में माँड
सृजनशील बंसीवाले
प्रेम में मिश्री -खांड

तुम हो दिव्य अवतार
गीता का तुम होसार
समशीलसंमधर्मा तुम
जगके पालनहार
 !
डॉ सरस्वती माथुर
"कृष्ण:गीता का सार !"


 


कृष्ण तुम गीत हो 


राधाजी की प्रीत हो  


बांसुरीमें सुर गूँजते


भावतीत संगीत हो


 


 तुम ही हो   ब्रह्मांड


 जैसे चावल में माँड


 सृजनशील  बंसीवाले   


 प्रेम  में मिश्री -खांड  


 


तुम हो  दिव्य अवतार


 गीता का तुम होसार


समशीलसंमधर्मा तुम


जग के हो पालन हार


डॉ सरस्वती माथुर  




"कान्हा की बरजोरियाँ !"


कृष्ण राधा का होता  रास


वृन्दावन में भरजाता सुवास


कण कण में सुर बिखेरती


बांसुरी की  मीठी  मिठास


 


 सर्पिणी सी रेंगती गोपियाँ


 देखें कान्हा की बरजोरियाँ


 रोज माखन मटकी फोड़ते


 कृष्ण कन्हैया की शोखियाँ 


 


 जसुमति मैया को था आभास


पर अंचल में छिपा उर के पास


 गोपियों की बात न माने मैया  


 कान्हा थे  उनके जीवन में खास


डॉ सरस्वती माथुर 


3


' माखन चोर'!


 


 प्यारा गोपाल


 नंद जी का लाल


 रूप हज़ार


वो माखन चोर


 राधा को करता


 कान्हा विभोर


 गैया चरैया


नटखट चितचोर


 कृष्ण कन्हैया


 चित चुरैया


 बाल गोपाल


यशोदा जी का लाल


डॉ सरस्वती माथुर


4


"रसपगी पिचकारी !"


 


राधा प्यारी


 प्रीत लगा के


 कान्हा से हारी


 


  तन मन रंग


 रसपगी- कृष्ण ने


  मारी  पिचकारी


 


  प्रीत प्रेम से


  राधा जी की 


  चूनरी रंग डारी


 


  सांवरी सूरत ने


  प्रेम सुधा  भर


  सुध बुध बिसारी


 


  वृन्दावन में


  राधा जी संग  


  भीगे बनवारी


डॉ सरस्वती माथुर


 5


 


 "नटखट हैं यह कन्हैया लाल!"
बांसुरी बजा

नंदकिशोर खड़े

राधिका संग

वन उपवन हैं

विमुग्ध बड़े

नटखट हैं यह

कन्हैया लाल

मोरपंख पहने

सलोना सा गोपाल

जसुमति मैया के

मन खिवैया

निरखे प्यारी
जसु मैया
दही हंडिया

फोड़ी है गोपाल ने

कहें गोपियाँ

माखनचोर लल्ला

आँचल छिपा

कान्हा को बोले मैया

गया न पनघट

मदन गोपाल

सोया है देखो मेरा

भोला कन्हैया लाल !
डॉ सरस्वती माथुर


6


 "वृन्दावन की कुञ्ज गली में !"
ब्रज की माटी
यशोदा का नंदन
जैसे चन्दन
राधा जी संग
रास रचाता
कण कण में बस्ता
कान्हा का चितवन

बाल रूप में
मैया का चंदा
गोपियों का
नटखट गोविंदा
राधा जी का
कृष्ण कन्हैया
वृन्दावन की
कुञ्ज गली में
आकुल रहता
करने को जन जन
सुंदर सांवरे मोरपंखी
कान्हा के दर्शन

गुंजायमान
आज भी रहती है
कदम्ब की
छैयां के तले
बांसुरी की जलतरंग
स्वर्ग सा मधुरिम
लगता है नंदनवन
हरी हरी डालन से
शोभित मथुरा वृन्दावन !


7


"कृष्ण ही वृंदावन!"
कृष्ण है मंदिर
कृष्ण ही मस्जिद
कृष्ण ही है चर्च
कृष्ण ही गुरुद्वारा

कृष्ण प्रेम रस
कृष्ण ही अंतस
कृष्ण है सुंदर
कृष्ण रूप सरस

कृष्ण ही आधार
कृष्ण गीता सार
कृष्ण प्रेम सुधा
कृष्ण रसधार

कृष्ण है नंदन
कृष्ण ही चंदन
कृष्ण है पावन
कृष्ण ही वृंदावन!
डॉ सरस्वती माथुर


 


 


 "वंशी तान सुनके!"
राधा बौराए
वंशी तान सुनके
बावरी डोले
मधुवन घूमती
कान्हा ओ कान्हा बोले
यमुना तीरे
गोपियाँ हंसें
राधामय हो कृष्ण
बंसी बजाएं
बन में आकुल सी
राधा कृष्ण को देंख
कृष्णमय हो जाए !
डॉ सरस्वती माथुर


 


 "खो गयी बांसुरी !"
पहले की
राधा आती थी
तो कृष्ण की
बांसुरी की धुन पर
प्रेम गीत गाती थी
अब न बांसुरी है
ना राधा और
प्रेम गीत की
परिभाषा भी अब
शोर - शराबें ,पब
,वैलंनटाइन डे, आकेस्ट्रा व
कान फोड़ शोर में
बदल गयी है और
मन पंछी
अब तक घूम रहा ह़ै
प्रेम नभ में
कृष्ण राधा को खोजता !
डॉ सरस्वती माथुर


 






 "रास रचैया के हिंडोले !"
स्नेह -झरी बाँसुरी
अधर -धरी ।
मुरली सुन
बावरी- सी राधिका
ब्रज में डोले ।
वृन्दावन में लग गए हैं
रास रचैया के हिंडोले !
डॉ सरस्वती माथुर
 "बज़ी बांसुरी!"
कृष्ण मुरारी
जसुमति के लाल
नंदगोपाल
मोर मुकुट धार
कृष्ण गोपाल
चराए ग्वाल
बज़ी बांसुरी
वृन्दावन का जन
हुआ निहाल
निहारे मोहन को
खड़ी मुग्ध सी
पकड़ के राधा
कदंब की डाल !
डॉ सरस्वती माथुर
चोका "नैनन में नंदकिशोर !"
जमना तीरे
आए नन्द किशोर
देखे राधा जी
अपलक विभोर ...
श्याम शांत से
देख उन्हे मुस्काए
युगल छवि
राधा को भरमाए
प्रीत डोर के
हिंडोले सज़ जाएँ
राधा संग में
कृष्ण दर्शन कर
जन हर्षाए
बंसी कृष्ण बजाएँ
राधा अधीर
ललित दर्शन से
कृष्णमय हो जाये !
डॉ सरस्वती माथुर






आप सभी को जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें !

I wish all Lord Krishna devotees a very Happy Janmashtami.
 
This is a festival of fun and frolic which also teaches us that we should believe in God and should always fight against the wrong.
 
 
I wish you all the blessings of the Almighty to bring joy, prosperity and happiness in your life



आप सभी को जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें !

हाइकु.....".नटखट गोविंदा !"
1 
जमुना तीर मुरली- कान्हा छेड़ें
राधा अधीर  ।
2

कदम्ब- डाल
राधा संग झूलते
मदन गोपाल !

3

बालरूप में

नटखट गोविंदा

मैया का चंदा

4

कान्हा बजाए

बाँसुरी की तान तो

राधा को भाए ।

5

सात सुरों में

स्नेह -झरी बाँसुरी

अधर -धरी ।

6

रास रचाए

कृष्ण कन्हैया लाल

राधा जी साथ  ।

7

मधुबन में

गोपियों संग कान्हा

निहारे राधा  ।

8

मुरली सुन

बावरी- सी राधिका

ब्रज में डोले ।

9

ब्रज की माटी

यशोदा का नंदन

जैसे चन्दन l

डॉ सरस्वती माथुर