"पीपल की छाँव तले!"1
भरी दोपहरी में
प्याज़ तोड़ कर
है रोटी खाता
पीपल की छाँव तले
श्रमिक सुस्ताता
इसकी शाखाएँ
जैसे माँ की बाहें
इसकी जड़ें लगती
साँसों की राहें
जन जन का तो
खुला मंच है यह
वनो का पावन
रंगमंच भी यह
इसे संभालो
तीज त्योहार पर
झूले डालो
करो संरक्षण
हो जाएगी तब
धरती कंचन l
डॉ सरस्वती माथुर
2
"पीपल वृक्ष बड़ा अनमोल !"
पीपल का घेरा
पाखियों का है डेरा
माँ की बाहों सी
इसकी शाखाएँ
हवाओं को दिखाती राहें
धरती चूमती इसका माथा
बरसों की है यह गाथा
नहीं इसक कोई मोल
वृक्ष बड़ा यह अनमोल
वन को है चहकाता
हवा को भी महकाता
कण कण में इसके स्पंदन
प्रकृति माता का यह सृजन l
डॉ सरस्वती माथुर
3
" तरु पीपल: प्रकृति का यह सृजन !"
पीपल का पेड़
सजग प्रहरी सा खड़ा है
इसका मोल बहुत बड़ा है
चबूतरा जो इसके
इर्द गिर्द जडा है
उससे पूछो इसका राज
यह तो है हवाओं को
जीवन देने वाली
मधुर आवाज़
पेड़ों की बिरादरी का
यह है सरताज
सौंदर्य इसका अनुपम
इसके बिना सूना उपवन
करो इसका संरक्षण
प्रकृति का यह सृजन l
डॉ सरस्वती माथुर
"मैं हूँ पीपल !"
मेरे लिए भी
छोड़ दो इमारतों से भरे
महानगरी शहरों में
थोड़ी सी जमीन
खींच करएक परकोटा
चाहे सीमित कर दो पर
मेरी सम्पदा को
शहर में भी पसार दो
मैं पीपल हूँ
मेरी कहानी को
इतिहास भी जानता है कि
जब गाँव की
पगडंडियों पर
आहटें होती थी
मेरी बाहों सी शाखाएँ
हवा के ठंडे झारे फैंक
पथिकों को राहत देती थी
गाँव के मनचले युवा
यहीं योजनाओं की
शतरंज खेलते थे
बुजुर्गों की भी मेरी ही
छांव तले चौपाल व
पंचायत सजती थी
पनघट से लौटती
पनिहारिने यहीं रुक कर
बातें पिरोती थी
डालों- शाखाओं पर
चिड़िया के घोंसलों को
सहेज कर मैं ही
मौसम बदलता था लेकिन
फिर भी न जाने
किसने और क्यों
मेरी छाँह को प्रकृति से
निर्वासित कर दिया और
मेरी विरासत का तब
अर्थ बदल गया
और क्योंकि अब
गांवों का अस्तित्व
शहर में बदलता जा रहा है
तो सोचता हूँ
यहाँ मैं भी बंध जाऊँ
शहर की गलियों में
रम जाऊँ
पथरीले आवासों के इर्द गिर्द
हरियाली भर जाऊँ !
डॉ सरस्वती माथुर
भरी दोपहरी में
प्याज़ तोड़ कर
है रोटी खाता
पीपल की छाँव तले
श्रमिक सुस्ताता
इसकी शाखाएँ
जैसे माँ की बाहें
इसकी जड़ें लगती
साँसों की राहें
जन जन का तो
खुला मंच है यह
वनो का पावन
रंगमंच भी यह
इसे संभालो
तीज त्योहार पर
झूले डालो
करो संरक्षण
हो जाएगी तब
धरती कंचन l
डॉ सरस्वती माथुर
2
"पीपल वृक्ष बड़ा अनमोल !"
पीपल का घेरा
पाखियों का है डेरा
माँ की बाहों सी
इसकी शाखाएँ
हवाओं को दिखाती राहें
धरती चूमती इसका माथा
बरसों की है यह गाथा
नहीं इसक कोई मोल
वृक्ष बड़ा यह अनमोल
वन को है चहकाता
हवा को भी महकाता
कण कण में इसके स्पंदन
प्रकृति माता का यह सृजन l
डॉ सरस्वती माथुर
3
" तरु पीपल: प्रकृति का यह सृजन !"
पीपल का पेड़
सजग प्रहरी सा खड़ा है
इसका मोल बहुत बड़ा है
चबूतरा जो इसके
इर्द गिर्द जडा है
उससे पूछो इसका राज
यह तो है हवाओं को
जीवन देने वाली
मधुर आवाज़
पेड़ों की बिरादरी का
यह है सरताज
सौंदर्य इसका अनुपम
इसके बिना सूना उपवन
करो इसका संरक्षण
प्रकृति का यह सृजन l
डॉ सरस्वती माथुर
"मैं हूँ पीपल !"
मेरे लिए भी
छोड़ दो इमारतों से भरे
महानगरी शहरों में
थोड़ी सी जमीन
खींच करएक परकोटा
चाहे सीमित कर दो पर
मेरी सम्पदा को
शहर में भी पसार दो
मैं पीपल हूँ
मेरी कहानी को
इतिहास भी जानता है कि
जब गाँव की
पगडंडियों पर
आहटें होती थी
मेरी बाहों सी शाखाएँ
हवा के ठंडे झारे फैंक
पथिकों को राहत देती थी
गाँव के मनचले युवा
यहीं योजनाओं की
शतरंज खेलते थे
बुजुर्गों की भी मेरी ही
छांव तले चौपाल व
पंचायत सजती थी
पनघट से लौटती
पनिहारिने यहीं रुक कर
बातें पिरोती थी
डालों- शाखाओं पर
चिड़िया के घोंसलों को
सहेज कर मैं ही
मौसम बदलता था लेकिन
फिर भी न जाने
किसने और क्यों
मेरी छाँह को प्रकृति से
निर्वासित कर दिया और
मेरी विरासत का तब
अर्थ बदल गया
और क्योंकि अब
गांवों का अस्तित्व
शहर में बदलता जा रहा है
तो सोचता हूँ
यहाँ मैं भी बंध जाऊँ
शहर की गलियों में
रम जाऊँ
पथरीले आवासों के इर्द गिर्द
हरियाली भर जाऊँ !
डॉ सरस्वती माथुर
"पीपल की छाँव !"
कौन सी मिट्टी में
उगता है रे पीपल तू पावन,
झूले डलते हैं
जिस पर हर सावन
छांव देकर देता है ठाँव
परती को छाया देता है
परिक्रमा करते लोगों को भी
कैसे जाने बांध लेता है
मोह माया का दान देता है
दिल के आकार के इसके पात
कभी नहीं पूछते हैं जात
हवा में भर प्राणवायु
आक्सीजन का पान देता है
सुबह -साँझ अपनी
शाखाएं फैलता
पाखियों- जीवों का नीड़ जुटाता
चाँद चाँदनी का छान उजाला
अपनी बाहों में भर मिलन करवाता
अपनी चौखट पर
थके पथिकों -व श्रमिक को
गहरी मधुर नींद सुलाता
गरम थपेड़ों से
हर जन को बचाता
अपनी छाया में सबको सहलाता
पल भर को भी बैठते हैं जब
पीपल की चुन्नटदार छाँव
तब बहुत याद आता है हमको
पनघट - चौपाल वाला
अपना पुश्तैनी गाँव
पीपल तरु है अनमोल
वनो को हमे इसकी छाया से
पग पग पर भरना होगा
संरक्षण भी इसका
जी जान से करना होगा l
डॉ सरस्वती माथुर "पीपल अनमोल !"
कौन सी मिट्टी में
उगता है रे पीपल तू पावन,
झूले डलते हैं
जिस पर हर सावन
छांव देकर देता है ठाँव
परती को छाया देता है
परिक्रमा करते लोगों को भी
कैसे जाने बांध लेता है
मोह माया का दान देता है
दिल के आकार के इसके पात
कभी नहीं पूछते हैं जात
हवा में भर प्राणवायु
आक्सीजन का पान देता है
सुबह -साँझ अपनी
शाखाएं फैलता
पाखियों- जीवों का नीड़ जुटाता
चाँद चाँदनी का छान उजाला
अपनी बाहों में भर मिलन करवाता
अपनी चौखट पर
थके पथिकों -व श्रमिक को
गहरी मधुर नींद सुलाता
गरम थपेड़ों से
हर जन को बचाता
अपनी छाया में सबको सहलाता
पल भर को भी बैठते हैं जब
पीपल की चुन्नटदार छाँव
तब बहुत याद आता है हमको
पनघट - चौपाल वाला
अपना पुश्तैनी गाँव
पीपल तरु है अनमोल
वनो को हमे इसकी छाया से
पग पग पर भरना होगा
संरक्षण भी इसका
जी जान से करना होगा l
डॉ सरस्वती माथुर "पीपल अनमोल !"
1
पीपल गात
नहीं पूछता कभी
जन की जात
प्राण वायु है देता
है अमूल्य सौगात l
नहीं पूछता कभी
जन की जात
प्राण वायु है देता
है अमूल्य सौगात l
2
तरु पावन
साँसों को धड़कन
पीपल देता
वनो के तीरों पर
हरियाली फैलाता l
4
अमृत देता
पीपल का सागर
साँसों की गागर
जब भरता
धरती महकती
कोयल चहकती l
तरु पावन
साँसों को धड़कन
पीपल देता
वनो के तीरों पर
हरियाली फैलाता l
4
अमृत देता
पीपल का सागर
साँसों की गागर
जब भरता
धरती महकती
कोयल चहकती l
5
दिन ओ रात
पीपल की शाखाएँ
करती बात
नहीं पूछती कभी
जन की यह जात l
डॉ सरस्वती माथुर
हाइकु
1
पीपल तरु
धरा का सरताज
देता है छाँव l
2
दिन ओ रात
पीपल की शाखाएँ
करती बात l
3
कोमल गात
हवाओं को करता
पीपल पाक l
4
दिल आकार
है पीपल पातों का
इसे बचा लो l
5
पीपल पात
कभी नहीं पूछते
जन की जात l
6
पीपल पात
हवाओं से कहते
मन की बात l
7
पीपल पंखा
झलवाएँ किस् से
हवा है मौन
8
पीपल हरा
वन को अंखुयाए
पाखी हर्षाए l
9
मन की मन्नतें
पीपल के तने पे
बांध उड़ाओ l
10
पीपल सज़ा
रंग बिरंगी चुन्नी
स्वप्न उड़ाए l
11
पीपल पात
तितली सा डोलता
हवा के संग l
12
पीपल ओढ़े
लाल सी चुनरिया
मन्नत बाँचे l
डॉ सरस्वती माथुर
दिन ओ रात
पीपल की शाखाएँ
करती बात
नहीं पूछती कभी
जन की यह जात l
डॉ सरस्वती माथुर
हाइकु
1
पीपल तरु
धरा का सरताज
देता है छाँव l
2
दिन ओ रात
पीपल की शाखाएँ
करती बात l
3
कोमल गात
हवाओं को करता
पीपल पाक l
4
दिल आकार
है पीपल पातों का
इसे बचा लो l
5
पीपल पात
कभी नहीं पूछते
जन की जात l
6
पीपल पात
हवाओं से कहते
मन की बात l
7
पीपल पंखा
झलवाएँ किस् से
हवा है मौन
8
पीपल हरा
वन को अंखुयाए
पाखी हर्षाए l
9
मन की मन्नतें
पीपल के तने पे
बांध उड़ाओ l
10
पीपल सज़ा
रंग बिरंगी चुन्नी
स्वप्न उड़ाए l
11
पीपल पात
तितली सा डोलता
हवा के संग l
12
पीपल ओढ़े
लाल सी चुनरिया
मन्नत बाँचे l
डॉ सरस्वती माथुर