मंगलवार, 7 अप्रैल 2015

हिन्दी हाइकु विधा में जीव जन्तु

हमारी भारतीयसंस्कृति सम्पूर्ण जीव जंतुओं -पशु पक्षियों और वृक्षों को मानव अस्तित्व की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण
घटक मानती है l उनमें से भी कुछ पशु और पक्षी ऐसे हैं जिनके नहीं होने से मानव अस्तित्व भी संकट में आ सकता है !शेर, हाथी, मोर, कुत्ता, चूहा, सर्प, मगरमच्छ, मछली, कछुआ, कौवे से लगाकर अन्य बड़े व  छोटे- छोटे जीव जन्तुओं के प्रति हमेशा हमारा हमेशा से  सम्मान भाव रहा है . जैव-विविधता के संसार के प्रति यह भाव ही भारत का अनूठा और वैज्ञानिक दर्शन रहा है. इसका मुख्य मकसद भी यह है कि पर्यावरण और जैव-विविधता  का संरक्षण कर हमें  प्रकृति के पारिस्थितिक संतुलन को बचाना है !हम शेर सर्प ,व गाय पूजक समाज रहे हैं. इसका संदेश साफ है- यदि किसी क्षेत्र में शेर विचरण करते हैं ,गाये घूमती है और सर्प  सुरक्षित हैं तो समझिए कि समग्र पर्यावरण की दृष्टि से वहां हालात अनुकूल हैं!
भारत के सांस्कृतिक जीवन में पशु पक्षी प्राचीन काल से ही प्रासंगिक रहे हैंl रामायण व महाभारत काल में तो इन पशु पक्षियों ने हमारे अवतारों और देवताओं के साथ सामाजिक सरोकारों में भी अपनी भूमिका समय समय पर निभाई है lयही कारण है कि हमारे धार्मिक ,सामाजिक व सांस्कृतिक साहित्य में जीव -जन्तु स्वेच्छा से टहलते नज़र आते हैं ! वैदिक  साहित्य तक में जंतुओं ,पौधों ,तथा तथा प्राकृतिक घटनाओं का वर्णन है !वेद ,रामायण ,महाभारत ,उपनिषद तथा अर्थशास्त्र (350 बी॰ सी )आदि भारतीय ग्रन्थों से पता चलता है कि हमारे पूर्वजों को भी जीव विज्ञान का पर्याप्त ज्ञान था lहमारे साहित्यकारोंके साथ साथ  हाइकुकारों ने भी विशेष रूप से अपनी रचनाओं में जीव जंतुओं कीट पतंगों व पक्षियों का परिवेश और ऋतु के अनुसार विशेष रूप से उल्लेख किया है और उनके महत्व को दर्शाया है !
हाइकु विधा का सौंद्रर्य ही यह है कि वह अत्यंत संक्षिप्त ,सीधी ,सादी ,सुकुमार और शुद्ध होती है 17 पंक्तियों में 5+7+5 के शैली  क्रम में पशु पक्षियों ,जीव जंतुओं का बिम्ब विधान ,भावों और अनुभूतियों के चित्र व कथ्य के रूप में दिखाने में हाइकुकार पूर्ण सफल रहें हैं lइसलिये साहित्य में अन्य विधाओं के साथ हाइकु का विशेष स्थान है lजीव जंतुओं और पशु पक्षियों को लेकर कई हाइकुकारों ने सुंदर हाइकु लिख कर प्रकृति और परिवेश के यथार्थ परक प्रतिकात्मक चित्र उकेरे हैं
 *हाथी आधुनिक मानव के समय का पृथ्वी पर  विचरण करने वाला, सबसे विशालकाय स्तनपायी जीव है।
.मेघों के हाथी /चिंघाड़ टकराए /अंबर कांपे ---रामेश्वर कंबोज 'हिमांशु '
इन्द्र के हाथी /चिंघाड़े ,हारे ,थके /बहा पसीना ---राधेश्याम
 घोड़ा (अश्व) मनुष्य से जुड़ा हुआ संसार का सबसे प्राचीन स्तनपोषी प्राणी  है, जिसने अज्ञात काल से मनुष्य की किसी ने किसी रूप में सेवा की है।
उदाहरण  स्वरूप कतिपय हाइकुओं को देखा जा सकता है -
॰काठ के घोड़े /चलता तन कर /माटी सवार ---सुधा गुप्ता
अपने घोड़े /बेलाम हो गए /कैसी लाचारी ---डॉ सावित्री डागा
.बांध के बोरे /लाता है धो कर /हवा का घोडा ---जगदीश व्योम
सौंप तिमिर /सूर्य घोडा बेच के/ सपट सोया ---डॉ सरस्वती माथुर
शीत-प्रकोप /डरे छिपे रवि /सातों ही घोड़े ---डॉ क्रांति कुमार
जैसा युग है /गधे निकल भागे /घोड़ों से आगे ---डॉ सुधेश 

*हाइकुकारों ने जलचर ,थलचर ,व नभचर पशु पक्षियों -जीव जंतुओं का विषाद एवं प्रासंगिक वर्णन अपने हाइकुओं में किया है lकुछ उदाहरण यहाँ प्रासंगिक होंगें-
गंदला पानी /रो रही मछलियाँ /जाएँ कहाँ ---हरदीप संधू 
किसी की याद /फिर फड़फड़ाई /छाती में फाख्ता ---सुधा गुप्ता
सांझ की बेला /पंछी ऋचासुनाते /मैं हू अकेला ---रामेश्वर कंबोज "हिमांशु"
॰मन दहाड़ा /जंगल के शेर सा /गूंज के लौटा ---डॉ सरस्वती  माथुर
डर के कांपे / जंगल की आग में  /घिरा शावक ---भावना कुँवर
उछल रहेबादल खरगोशआसमान में---डॉ सतीश दुबे
वोट जाल में /मछ्ली सी जनता /सदा फंसी ---सुभाष नीरव
मगरमच्छक/क़ठोर और सख्त/ दिल नरम...मीरा ठाकुर  





ये  तमाम हाइकु परिपक्वता और अग्रगामी दृष्टि की कसौटी पर खरे उतरते हैं l
कुछ और उदाहरण देखें ---


कुतर रहे हैं /संविधान /संसदी चूहे ---डॉ भगवतशरण अग्रवाल
नीला कालीन /चर गए शशक /दूब के धोके---डॉ सुधा गुप्ता
कामुक बाग /लार ही टपकाए /बाज़ न आए ---रामेश्वर कंबोज 'हिमांशु'
गेंडे न देखे ? संसद में देख लो /मन भर के ---डॉ सावित्री डागा
अपने घोड़े /बेलगाम हो गए  /कैसी लाचारी - डॉ सावित्री डा
 दौड़ लगाए /धूप के खरगोश /हाथ न आयें ---भावना कुँवर
वर्षा जो आई/ धूप के खरगोश/ फुदक छिपे---डॉ भावना कुँवर
उन का गोला/ जागा ,भगा सहसा /अरे शशक---आदित्य प्रसाद सिंह 
उछल रहे/बादल खरगोश/आसमान में---डॉ सतीश दुबे 
सूर्यके घोड़े /घाम के विरोध में /अड के खड़े  /---उमेश महादोषी
 दौड़ता आया /धूल की गठरी ले हवा का घोडा--डॉ -प्रियंका  गुप्ता
ठिठुरी रात /कुत्ता बैठा है पास /आदमी साथ ---डॉ रमा द्धिवेदी  
जूठी पतल /कुतों को भगाता रे /बाल- कंकाल ---आदित्य प्रसाद
 गर्म राख़ में /बच्चे ले कुनमुनाई सोयी  कुतिया --- हरकीरत हीर
खटका द्धार /थरथराता पिल्ला /मांगता ताप---पुष्पा मेहरा 
काँपता पिल्ला /ढेरी में ढूंढ रहा /सूखा पुआल ---एस ॰डी॰र्तिवारी
छोटी सी बात /मरते चूहे कभी /हाथी को लात ---सुभाष लखेड़ा

*चराचर रचना चतुरचतुर्भुज नें ससार में एक से एक अनोखे अनगिनत जीव रचे हैं तभी तो  पशु - पक्षी ,कीड़े मकौड़े ,भुंगे पतंगे ,जलचर ,थलचर ,नभचर आदि भांति भांति के विचित्र जीवों से संसार भरा पड़ा है ! यदि हम प्राचीन काल में झाँकें तो एक तस्वीर की तरह हमारीआँखों में निर्भीक विचरण करते वन प्राणी उतर आते हैं lजंगल में किलोलें करती चिड़ियायेँ ,गिलहरियाँ ,दौड़ लगाते शावक -खरगोश ,शशक ,बादलों को निहारते नाचते मयूर व  ,चौकड़ियाँ भरते मृग ,हिरण ,कस्तूरी मृग ,रात में उडते चमकीले जुगुनू ,पतंगे व उल्लू ,विभिन्न प्रकार के पंछी ।परिंदे ,रंग बिरंगी चिडियाएँ,तोते व मैना चहकती बुलबुल ,फाख्ता ,पीक व पपीहे व मीठे स्वर में कूकती कोयल कोकिला , बाग बगीचों में मँडराते भोंरे -तितलियाँ  व मधमाखियाँ,आस पास उड़ती  मच्छर -मख्खी आदि जीव जन्तु प्रकृति के आँचल में स्वछन्द घूमते नज़र आते हैं lइन सभी जीव जंतुओं को हाइकुकारों ने बहुत सुंदर भावों से चित्रित किया है l
*अरुणोदय के साथ ही नित उठ पखेरूओं के झुंड के झुंड सघन ऊंचे पेड़ों की फली फूली ,हरी भरी चारों ओर फैली डालियों पर निडर इधर उधर फुदकते फाँदते कलरव कलकलित सुललित राग भैरवी अलापते ,स्वरों के उतार चढ़ाव से सुमधुर सुर चारों सप्तक से साधते कोलहाल से हमें जगा देते हैंl उन पक्षियों को नए रूपों और बिंबों में पिरो कर हाइकुकारों ने नवीन दृष्टि दी है
कौन पानी पी /बोलती री चिड़िया /इतना मीठा ...डॉ सुधा गुप्ता
चंद तिनके /चिड़िया का घोंसला बना है घर ---डॉ सुधा गुप्ता





नीड़ मुखर /किलक रहे चूज़े /बहा निर्झर ---रामेश्वर कंबोज "हिमांशु"
मधुर गीत /चिड़िया ने गाकर/ धरा गुंजाई---डॉ सरस्वती माथुर 
 शाम की बेला /चिड़ियों के झुंड का /र्रेलमपेला ...डॉ दिनेश सिंह 
हो गया मन /एक पूरा गगन /चिड़िया मन ...डॉ शैल रस्तोगी
 रवि रथ ले /भोर आई तो पाखी /चहचहाये...डॉ सरस्वती माथुर    
'बड़े सवेरे /उठ जाती चिड़िया /कौन जगाता ---रमाकांत श्रीवास्तव
धूप चिड़िया /सिमट कर बैठी /ठंड जो आई ---रचना श्रीवास्तव
पेटू चिड़िया /कुतर के ले गयी/ नन्ही कलियाँ ---भावना कुँवर
खोलो विहग अब पंखों की डोर हो गयी भोर ---कमल कपूर
हंसों की पांत/उड़ रही आकाश/मौसम साफ---डॉ सतीश दुबे
उजाला हुआ /चहकती चिड़िया /बजे संगीत ---ज्योत्सना शर्मा
यह जिंदगी /पंखनुची चिड़िया /फडफड़ाती ...डॉ सावित्री डागा
हौंसला जिंदा /समंदर को लांघे /नन्हा परिंदा ---कृष्ण वर्मा
गगन पाठ/ चले पंछी डाकिये/ भेजे संदेश / कमला निर्खुपी
फुदके पक्षी /हरी हुई शाखाएँ /वर्षा जो आई ---सुदर्शन रत्नाकर
मन का पंछी /थक गया उदेते /उतार नीचे ---सुदर्शन रत्नाकर
बकुल -पाँत/तैरे गगन -सर /ढूँढे रहस्य-डॉ क्रान्तिकुमार
धूप चिड़िया /सिमट कर बैठी /ठंड जो आई ---रचना श्रीवास्तव
पेटू चिड़िया /कुतर के ले गयी/ नन्ही कलियाँ ---भावना कुँवर
बकुल -पाँत/तैरे गगन -सर /ढूँढे रहस्य---डॉ क्रान्तिकुमार
भोर की बेला /पंछी ले अंगड़ाई /कमल खिले...रचना श्रीवास्तव 
वन पाखी सी / उड उड आयें हैं /याद तुम्हारी --डॉ जेन्नी शबनम
यादों का पंछी/डाल डाल फुदके /मन बौराये ...डॉ जेन्नी शबनम
आस का पंछी /उड़े निर्बाध जब /क्जिले सृजन ---अनुपमा त्रिपाठी 
मन एकाकी /उड़ा है बनपाखी /तेरी नगरी ... सुशीला शिवराण
सुहानी भोर /खुले गगन तले /पाखी चहके /---पुष्पा मेहरा
नीलपट से /श्वेत बगुले साथी /घूमने चले ---डॉ अर्पिता अग्रवाल
साथ जो छूटा /विकट सूनापन क्रोञ्च -सा मन ---डॉ अर्पिता अग्रवाल

हंसों का जोड़ा /करे अठखेलियाँ /जले लहरें ---योगेश्वर  दयाल
चिड़िया बोली /चूँ-चूँ-चूँ जंगल है /जलता धू -धू...जया नर्गिस
सोनचिरैया  /भूखी प्यासी लुटी- सी/सोना विदेश l ज्योतिर्मयी पंत
याद पेड़ की /चुनमुन चिरैया/फुर्र हो गयी ---मंजु  मिश्रा
नन्ही चिड़िया/ अठखेलियाँ करती/ सिल्वर -ओक ...अमित अग्रवाल
झुंड कीरों के/ लजीली शैफाली को /रीझाते डोले ...डॉ सरस्वती माथुर
हंसवाहिनी /प्रीतधार भरती  /नवलय से ---डॉ सरस्वती माथुर




*विशेष रूप से चिड़िया ,पंछी -परिंदे,बुलबुल,फाख्ता ,तोता मैना व गौरैया आदि को  विभिन्न रूपों में बड़े ही रसमय तरीके से उकेर कर हाइकुकारों ने   अपनी कल्पना का तथ्यात्मक सा परिचय दिया है जो जीवों के प्रति उनकी संवेदनशीलता को दर्शाता है l ...जैसे तोते को लें -
*तोता या शुक एक पक्षी है l यह कई प्रकार के रंग में मिलता है। यह बहुत सुंदर पक्षी है और मनुष्यों की बोली की नकल बखूबी कर लेता है।तोते झुंड में रहनेवाले पक्षी हैं, जिनके नर मादा एक जैसे होते हैं। इनकी उड़ान नीची और लहरदार, लेकिन तेज होती है। इनका मुख्य भोजन फल और  तरकारी है, जिसे ये अपने पंजों से पकड़कर खाते रहते हैं। यह पक्षियों के लिये अनोखी बात है।तोते की बोली कड़ी और कर्कश होती है, लेकिन इनमें से कुछ सिखाए जाने पर मनुष्यों की बोली की हूबहू नकल कर लेते हैं।
याद तुम्हारी /मन का तोता बातें /दोहराता हो --डॉ सावित्री डागा
 उल्टा लटका /हरियल तोता भी /प्यार से देखे ---रामेश्वर कंबोज "हिमांशु
फूले बादाम /हरे तोतों के दल /भूले आराम ---डॉ कुँवर दिनेश सिंह
चिड़िया तोते /ओटे छिपी मूरत /चहकी यादें ---चन्द्रबली शर्मा
* मैना चिड़िया  देश के गिने-चुने परिचित पक्षियों में से एक है और देश के सभी भागों में पाई जाती है। मैना, कौए और गौरेया की तरह मनुष्यों से हिल-मिल कर रहती है। यह एशिया के कुछ देशों के अलावा कहीं नहीं दिखाई देती। मैना का अंग्रेजी नाम भी मैना है। मैना ज्यादातर गांव के मैदानों, खेतों, ताल-तलैयों के आसपास नजर आती है।देखें उदाहरण द्वारा कुछ बिम्ब -
पहाड़ी मैना /टेरती रुक -रुक /जगाती हूक...डॉ सुधा गुप्ता
शेफाली हंसी/ बगिया जो महकी/ सी/मैना चहकी ---डॉ सुधा गुप्ता
बंदिनी मैना/सोने की सलाखों में /रूठें हैं गीत ---रामेशवर कंबोज 'हिमांशु'
यादें बंद थीं /पिंजड़े की मैना सी व्याकुल- मन---डॉ सरस्वती माथुर 
* 'बुलबुल, शाखाशायी गण के पिकनोनॉटिडी कुल पक्षी का   है । ये कीड़े-मकोड़े और फल फूल और फलखानेवाले पक्षी होते हैं। ये पक्षी अपनी मीठी बोली के लिए नहीं, बल्कि लड़ने की आदत के कारण शौकीनों द्वारा पाले जाते रहे हैं। यह उल्लेखनीय है कि केवल नर बुलबुल ही गाता है, मादा बुलबुल नहीं गा पाती है।...
गुलाब खिला /चहकी बुलबुल/नशे ने छुआ ---डॉ सुधा गुप्ता
शब्द बुनती /पहाड़ी बुलबुल/गीतकार सी ---डॉ सरस्वती माथुर
सुनाती -गान /गा रही बुलबुल /कहे श्री प्रभु ---पुष्पा मेहरा
आँख बाज़ की /झपट है  चील की /कौन बचेगा ?...डॉ सुधेश
*पपीहा कीड़े खानेवाला एक पक्षी है जो बसंत और  में वर्षा में  प्रायःआम्र के  पेड़ों पर बैठकर बड़ी सुरीली ध्वनि में बोलता है।
 पपीहा दिन /और चकवी रातें /काटे न काटें ---डॉ सुधा  गुप्ता
पिया की रट/पपीहे ने लगाई /याद जो आई /दिलबाग विर्क
तुम  हो कहाँ / दे रहा आवाज़ है/मन पपीहा ... रमाकान्त  श्रीवास्तव
पपीहारा  गा /और और बना रे  /एकाकी मुझे ---आदित्य प्रसाद
* चिड़िया (गौरैया ) जो यूरोप और एशिया  में सामान्य रूप से हर जगह पाई जाती है। यह विश्व में सबसे अधिक पाए जाने वाले पक्षियों में से है। लोग जहाँ भी घर बनाते हैं देर सबेर चिड़िया  के जोड़े वहाँ रहने पहुँच ही जाते हैं। र्चिड़िया, पुराने विश्व (यूरोप, एशिया और अफ्रीका) और मुख्य रूप से एशिया के उष्णकटिबंधीय भागों में पाई जाती हैं। यह फुदकियां अपनी पूंछ को आमतौर पर ऊपर की ओर सतर रखती हैं। यह आमतौर पर खुले जंगलों, मैदानों और उद्यानों में पाई जाती हैं। शहरी इलाकों में गौरैया की छह तरह की  प्रजातियां पाई जाती हैं।  इनमें हाउस स्पैरो को गौरैया कहा जाता है। यह शहरों में ज्यादा पाई जाती हैं। आज यह विश्व में सबसे अधिक पाए जाने वाले पक्षियों में से है। हाइकुकारों ने इसकी उपस्तिथी  के विभिन्न रंगों को दर्शाया है
खिड़की पर /काँप रही गौरैया /पानी में तर ---डॉ सुधा गुप्ता
 आकुल आए/ आँगन में गौरैया/ आस लगाए/--- डॉ दिनेश सिंह
नभ  में ताके /प्यासी एक गौरैया /सूखी तलैया ...डॉ सतीशराज पुष्करणा
 अकेला कहाँ/जब बीसों गौरैयाँ/आ बैठी यहाँ...रामेश्वर कंबोज "हिमांशु "
भाई अंगना /बहन चुगे दाना /बन गौरैया ...रचना श्रीवास्तव

 आँगन सूना /तरसे दाना पानी /आजा गौरैया--- मीरा  भारद्वाज
*बसंत ऋतु के समय आम की अमराईयों में तथा अन्यत्र वृक्षों पर बैठी कोयल अपनी मीठी कूकसे सबका ध्यान आकर्षित कर लेती है ! वह पौ फटते ही गाने लगती है तब प्रभात बहुत सुहावना लगता है !कोयल अपनी मीठी बोली से सबको आकर्षित कर लेती है !इसमें कोयल की मीठी बोली के माध्यम से सदा मीठे वचन बोलने पर भी बल दिया गया है lवहीं कौओं को भी वैज्ञानिक    एक विस्मयकारक पक्षी मानते हैं  । इनमें इतनी विविधता पाई जाती है कि इस पर एक 'कागशास्त्र' की भी रचना की गई है। योग वशिष्ठ में काक भुसुंडी की चर्चा है, रामायण में भी सीता के पांव पर कौवे के चोंच मारने का प्रसंग आया है।कौवे अपनी चतुराई दिखाने में लाजवाब होते हैं।कोयल की मीठी तो काक की   कर्कश ध्वनि होती है वह 'काँव-काँव' करता!

 *कोयल के प्रति सहज लगाव को हाइकुकारों ने अपने शब्दों से निखारा है और मनोरम छवि शब्द उकेरे हैं उनकी कल्पना के बिम्ब यहाँ देखें
कूकी कोयल/ चीरा -सा लगा गई /टपका लहू ---डॉ सुधा गुप्ता
मौन मुकुल /आम पे बौर कहाँ /रोये कोयल ---हरदीप कौर संधु
कोकिल -पीर /चुभें यादों के तीर /बरसे नीर ---रामेश्वर कंबोज "हिमांशु



कोयल बोले  /कुहुक कुहुक के /टोना वन में --- पूर्णिमा वर्मन
कोयल गाये /महके कचनार/झूमें बयार -डॉ -भावना कुँवर
जा  रे कोकिल दूर जा के गा ,मेरा दर्द न बढ़ा ---डॉ भावना कुँवर

कोयल कूक /विरहन के उर /लगे ज्यूँ शूल ---डॉ सरस्वती माथुर
 कोयल कूके /अमराई हुलसे /आया है कंत---पुष्पा मेहरा
 सिमटे वन /बांझ अमराईयाँ/कोकिल मौन सुनीता अग्रवाल
 अहो बसंत अमराई में गूँजे कोकिला स्वर ---सुनीता अग्रवाल
 कोयल गाये/ घायल मन मेरा/ सुन न पाये ---चंद्रबली शर्मा
 कौयल बोली /यादों के देवदार/ हिले न डुले ---चंद्रबलीशर्मा  मोर नाचते /
कोयल है बाँचती /रची मेहंदी शशांक मिश्र  भारती खुशबू फैली /

 गाये मल्हार /कोयल की जो कूक/
बरसे मेघा ---अमिता कोंडल
 यौवन आया /आम्र मंजरी पर कोयल कूकी ...डॉ आरती स्मित

पीली सरसों /हरे भरे खेतों में /मूक कोयलिया ---सीमा स्मृति
कोयल कूकी /फिर से पुरवाई /जागा मदन...अमित अग्रवाल

 *पूर्वी एशिया में कौवों को किस्मत से जोड़ा जाता है तो अपने यहाँ मुंडेर पर बैठकर काँव-काँव करने वाले कौवे को संदेश-वाहक भी माना जाता है। भारत में हिन्दू धर्म में श्राद्ध पक्ष के समय कौओं का विशेष महत्त्व है और प्रत्येक श्राद्ध के दौरान पितरों को खाना खिलाने के तौर पर सबसे पहले कौओं को खाना खिलाया जाता है। कौए  के प्रति सहज लगाव को हाइकुकारों ने अपने शब्दों से निखारा है और मनोरम छवि शब्द उकेरे हैं उनकी कल्पना के बिम्ब यहाँ देखें...
टिहुक लाल / फूले पलाश पर /कौओं के झुंड.... डॉ सुधा गुप्ता 

पूर्वज रूप /मुंडेर आता कव्वा /रोटी ले जाता ---डॉ सरस्वती माथुर
मुंडेर बैठ /काक घर आँगन /संदेशा लाये ---डॉ सरस्वती माथुर
मन mun

 भीगते कागा /गर्विले बादलों से /ठानते रार ---कृष्णा वर्मा
कोयल साथी धर्म कर्म के नाम  कागा खैराती ---शशि पुरवार


बंजारे कागा /नीड़ बुनूँ प्यार के/ छोड़ो बैराग ---डॉ नूतन गैरोला
 कागा /कुहकी कोयलिया /पाहून आए ---ऋतु शेखर

 मधु लगती प्यारी/ कौवे की कांव -कांव/बोले अटारी रेखा रोहतगी
काग की काँ -काँ/ सुनके मन सुबह/ पसीज गया---रीता महाजन 
संसद नें बैठी /कौओं की संसद /चर्चा तो होगी --- प्रियम्बरा
नित उड़ावाँ/बनेरे बैठ कागा /बुलीं तेरा नाँ---सुप्रीत कौर संधु
सूनी मुंडेर/ देहरी भी उदास /रूठा जो कागा ....आभा खरे~
* प्रकृति का सफाई कर्मी कहलाने वाले तथा दूर तक दृष्टि रखने वाले गिद्ध व चील आज दूर-दूर तक भी दिखाई नहीं देते। शहरीकरण, घटते वनस्पति, कृषि क्षेत्र में जहरीले रासायनिक दवाओं के बढ़ते प्रभाव ने प्रकृति के इस सफाई दूत को विलुप्त होने के कगार पर ला दिया है। समय रहते यदि विलुप्त प्राय इस पक्षी को संरक्षित नहीं किया गया तो पर्यावरण को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।इन पर भी कुछ हाइकुकारों ने कलम चलाई है - देखें 
*चील उड़ने में बड़ी दक्ष होती है !यह एक सर्वभक्षी तथा मुर्दाखोर चिड़िया है, जिससे कोई भी खाने की वस्तु नहीं बचने पाती। ढीठ तो यह इतनी होती है कि कभी कभी बस्ती के बीच के किसी पेड़ पर ही अपना भद्दा सा घोंसला बना लेती है।
ऊंचा आकाश /तैरती है छील सी /कल्पना मेरी ...सुषमा सिंह  
*हाइकुकारों ने उल्लू और गीदड़ तक पर भी हाइकु रच दिये  -
उल्लू बोल दे /रात दे चौकीदार /जागते रहो ---कश्मीरी लाल चावला
पुरनमासी /कुकड़े ने गिंदड़ /देख शिकार --- सुप्रीत कौर संधु
*गिद्ध को पर्यावरण का अपघटक कहा जाता है। गिद्धों में दूर तक देखने की क्षमता बहुत अधिक होती है। इसके अतिरिक्त गिद्ध प्रकृति एवं धरती के बीच संतुलन कायम करने वाले प्राणी भी माने जाते हैं।
 गिद्ध के समान चील भी तेजी से विलुप्त हो रहें हैं , संकट के दौर से गुजर रहे हैं।
 छिड़ा जो युद्ध/रोयेगी मानवता/हँसेंगे गिद्ध-डा० जगदीश व्योम
*बाज़ एक शिकारी पक्षी है जो कि गरुड़ से छोटा होता है। इस प्रजाति में दुनिया भर में कई जातियाँ मौजूद हैं और अलग-अलग नामों से जानी जाती हैं।वयस्क बाज़ के पंख पतले तथा मुड़े हुए होते हैं जो उसे तेज़ गति से उड़ने और उसी गति से अपनी दिशा बदलने में सहायता करते हैं-
आँख बाज़ की /झपट चील की तो /कौन बचेगा -डॉ सुधेश
 धर दबोचा/ मासूम चिड़िया को/ क्रूर बाज़ ने...डॉ भावना कुँवर

*कबूतर पूरे विश्व में पाये जाने वाला पक्षी है। यह एक नियततापी, उड़ने वाला पक्षी है जिसका शरीर परों से ढका रहता है। यह जन्तु मनुष्य  के सम्पर्क में रहना अधिक पसन्द करता है। अनाज, मेवे और दालें इलका मुख्य भोजन हैं। भारत में यह सफेद और सलेटी  रंग के होते हैं पुराने जमाने में इसका प्रयोग पत्र और चिट्ठीयां भेजने के लिये किया जाता था।कुछ उदारण देखें -
श्वेत -कपोत /शांति से ओतप्रोत /हिंसा विहीन ---ज्योत्सना प्रदीप 
उड़ा कपोत /पंख फड़फड़ाता /डाकिया हंसा ---डॉ सरस्वती माथुर
 कबूतर भी /गिरती बर्फ देख /ऊष्मा खोजते...डॉ सरस्वती माथुर 
मन टहनी /यादों का कपोत था /  थक के -उड़ा---डॉ सरस्वती माथुर 
*मोर भारतीय संस्कृति में विशेष स्थान रखते हैं।यह एक बहुत ही सुन्दर, आकर्षक तथा शान वाला पक्षी है। बरसात के मौसम में काली घटा छाने पर जब यह पक्षी पंख फैला कर नाचता है तो ऐसा लगता मानो इसने हीरों-जड़ी शाही पोशाक पहनी हुई हो। इसीलिए इसे पक्षियों का राजा कहा जाता है। पक्षियों का राजा होने के कारण ही प्रकृति ने इसके सिर पर ताज जैसी कलंगी लगाई है। मोर के अद्भुत सौंदर्य के कारण ही-इसे राष्ट्रीय पक्षी का दर्जा दिया गया है !संस्कृत भाषा में यह मयूर के नाम से जाना जाता है। मोर भारत तथा श्रीलंका में बहुतायत में पाया जाता है। मोर मूलतः वन्य पक्षी है, लेकिन भोजन की तलाश इसे कई बार मानव-आबादी तक ले आती है।मोर प्रारंभ से ही मनुष्य के आकर्षण का केंद्र रहा है। अनेक धार्मिक कथाओं में मोर को बहुत ऊँचा दर्जा दिया गया है। हिन्दू धर्म में मोर को मार कर खाना महापाप समझा जाता है। भगवान कृष्ण के मुकुट में लगा मोर का पंख इस पक्षी के महत्व को दर्शाता है। महाकवि कालिदास ने महाकाव्य ‘मेघदूत’ में मोर को राष्ट्रीय पक्षी से भी अधिक ऊँचा स्थान दिया है। राजा-महाराजाओं को भी मोर बहुत पसंद रहा है। मेघों को देख कर मयूर के पैरों में स्वाभाविक थिरकन आ जाती है और इनके कोलाहल से दिशाएँ मुखरित हो जाती हैं ! मोर मोरनी का नृत्य आनंदित कर देता है वर्षा के पूर्व विधुतकी चमक से मयूर का हृदि आशापूर्ण कहा गया है lइसकी घुति अनेकावर्णी हैl नीलाभ से चमकता हुआ कंठ है ,स्वर तीव्र एवं मधुर तथा नर्तन शोभन है lमेघो को देख मयूर के पैरों में स्वाभाविक थिरकन आ जाती है और इनके कोलाहल से दिशाएँ मुखरित हो जाती हैं, हाइकु मोतियों में हाइकुकारों ने गूँथी है
 माला---आषाढ़ माह /उगी मन -मोर में/ नृत्य की चाह ---कुँवर बैचन
 देखें टहुके मोर /याद आ गया कौन /इतनी भोर...डॉ भगवत शरण अग्रवाल
 चारों  तरफ /फैले गुलमोहर/ मोर पंख से भावना कुँवर
छाई घटा तो /मोर बांध घुंघुरू /बागों में आया ---डॉ सरस्वती माथुर
मन विभोर /मोरनी संग झूमा/ वीवी बावरा मोर ---डॉ सरस्वती माथुर
 नाचेगा मोर ? / बचा ही न जंगल  / ये कैसी भोर ?ज्योत्सना शर्मा




 नाचे मयूर  बादलों के संतूर /सुन- सुन के ---ज्योत्सना प्रदीप
 बरसे मेघ /गूँजे दादुर -राग /नाचे मयूर---डॉ क्रान्ति कुमार



नाचे मयूर /रिमझिम के संग /नाचे मगन ---डॉ नूतन डिमरी
गैरोला देख झलक /झूमे मन मयूर हुआ बावरा  सीमा स्मृति



नीलकंठ एक भारतीय पक्षी है। इसका आकार मैना के बराबर होता है।त्रावणकोर के दक्षिण भाग को छोड़कर शेष भारत में यह पक्षी पाया जाता है। मान्यता है कि नीलकंठ को देखने मात्र से भाग्य का दरवाज़ा खुल जाता है। यह पवित्र पक्षी माना जाता है। दशहरा पर लोग इसका दर्शन करने के लिए बहुत लालायित रहते हिन्दू धर्म
ग्रंथों में भगवान शिवको 'नीलकंठ' के नाम से पुकारा जाता है।
पीकर विष/हीबनाता है कोई /नीलकंठ सा ---रूपचंद उपाध्याय
जीना जरूरी /हो जाओ नीलकंठ /जहर पियो ---डॉ गोपाल बाबू शर्म
*चातक एक पक्षी है  इसके सिर पर चोटीनुमा रचना होती है। भारतीय साहित्य में इसके बारे में ऐसा माना जाता है कि यह वर्षा की पहली बूंदों को ही पीता है। अगर यह पक्षी बहुत प्यासा है और इसे एक साफ़ पानी की झील में डाल दिया जाए तब भी यह पानी नहीं पिएगा और अपनी चोंच बंद कर लेगा ताकि झील का पानी इसके मुहं में न जा सके।
 बदरा भर /भर -भर उड़ेल/चातक पिए... डा. रमा द्विवेदी
चातक-व्यथा /सीप के दिल बसी /अमोल हुई ---अनिता ललित



















*गिलहरी  एक छोटी आकृति की जानवर हैl गिलहरी सामान्यतः पूरे भारतवर्ष में पाई जाती है। ये तीन और पाँच धारियों वाली होती है। पाँच धारियों वाली गिलहरी प्रायः सभी जगह मिल जाती है। इनकी पूँछ पर छोटे-छोटे घने बाल होते हैं। यह बहुत पारिवारिक होती है। यह बस्तियों या खेतों के आसपास रहती है। गिलहरी के कान लंबे और नुकीले होते हैं और दुम घने और मुलायम रोयों से ढकी होती है। गिलहरी बहुत चंचल होती है और बड़ी सरलता से पाली जा सकती है। गिलहरी अपने पिछले पैरों के सहारे बैठकर अगले पैरों से हाथों की तरह काम ले सकती है। पेड़ों और झाड़ियों से दूर गिलहरियाँ शायद ही कभी देखी जाती हों।आमतौर पर गिलहरी बगीचों, घरों के छज्जों तले या पेड़ों पर बिल बनाकर रहती है। यह जमीन पर भी चल सकती है और उतनी ही आसानी से पेड़ों पर भी दौड़ सकती है। गिलहरी लंबे-सीधे पेड़ व खड़ी दीवारों पर भी आसानी से चढ़ जाती है। इसके पैरों में छोटे, बारीक नाखून होते हैं, जिनके सहारे यह सतह को आसानी को पकड़ लेती है।






गिलहरी पर कुछ हाइकु यहाँ प्रस्तुत हैं ---








उमंग- भरी /शाखों पे गिलहरी /उडनपरी ---डॉ सुधा गुप्ता  
छत पे आती /चपल गिलहरी /पूंछ नचाती --- डॉ सुधा गुप्ता
रही कुतर /वक्त की गिलहरी /दाईने शाम के ---डॉ शैल रस्तोगी
मेघ गिरते /गिलहरी - सी धूप /भागी -दुबकी ---डॉ शैलजा सक्सेना
 
गिलहरी सी /फुदकती है धूप/ पेड़ पौधों पे ---डॉ सरस्वती माथुर

नीम अंधेरा /गिलहरी सा चढ़ा /रात खा गया ---डॉ सरस्वती माथुर
तरु गगन /उड़ान है भरती/गिलहरियाँ ---डॉ सरस्वती माथुर
 वन विरान /गिलहरियाँ खोजे /शाखों के झूले ---सुनीता अग्रवाल
 करती श्रम /पाँव पर पड़ी खड़ी मैं /नन्ही हूँ तो क्या ---प्रियम्बरा 
 *मृग कस्तूरी ,मृग ,हिरण प्रकृति के सुन्दरतम जीवों में से एक हैं --- जंगलों में कुलांचते भरते हैं --- झुंड में विचरण करते हैं ,नीलगाय  भी मृग की प्रजाति है lकुछ उदाहरण देखें ...
कस्तूरी मृग /निर्भय विचरण /मनाते मोड ---डॉ सुधा गुप्ता
मृग बौराया /रास्ता भूली नदिया/ तुम घर में ...डॉ शैल रस्तोगी     
नैन मृगी -से /छलके हैं जबसे /अमृत पिये ---रामेश्वर कंबोज "हिमांशु"
मृग बावरा /है नाभिमें कस्तूरी /कभी न जाने ---रामेश्वर कंबोज "हिमांशु"
भरे कुलांचे /न थके तनिक भी /मेघा हिरण ---रामेश्वर कंबोज"हिमांशु "
 भटका मन /गुलमोहर वन बन /हिरण ---भावना कुँवर

ठहरी धूप /कुलांचे भरती सी / हिरण हुई ---डॉ सरस्वती माथुर
बहुरूपिया /स्वर्ण हिरणबन /करता छल...डॉ सरस्वती माथुर
कस्तूरी मृग /कितना अनजान /नाभि में गंध -- शशि पाधा
यादें जंगल /मैं भटकी हिरणी/निकलें कैसे?---रेखा रोहतगी
घना जंगल /भोली भाली हिरणी/सौ सौ खतरे---डॉ गोपाल शर्मा 
घास हरी सी है पलंग बिछौना मनवा छौना---अशोक कुंगवानी 
मचल  रहा /व्योम में मृगछौना /इंद्रधनुष --नलिंनकांत
दुख का छौना छाती की गलियों में रार मचाए ---कृष्णा  वर्मा

सोने का मृग /सुंदर -सा छलावा /दुनिया जैसा --मंजुल दिनेश
नींद के खेत/चार गए फसल /दुख चीतल ...सुभाष लखेड़ा
*जुगनू जो रात में सितारों की तरह टिमटिमाते हैं। रात के समय जुगनू लगातार नहीं चमकते, बल्कि एकनिश्चित अंतराल पर कुछ समय के लिए चमकते और बुझते रहते हैं। इसी रोशनी का इस्तेमाल ये अपनभोजन तलाशने में भी करते हैं। इनमें खास बात ये है कि मादा जुगनू के पंख नहीं होते, इसलिए वह एक जगह बैठी ही चमकती है, जबकि नर जुगनू उड़ते हुए भी चमकते हैं। यही एक कारण है, जिससे इन्हें आसानी से पहचाना जा सकता है।
हाइकु कारो ने जुगनुओं के मनोरम दृश्य चित्रित किए हैं-----
किसी को याद /बांस -वन जुगनू /टिमक गया...  डॉ सुधा गुप्ता
पावस रात /पिकनिक मनाते /नाचे जुगनू ---डॉ भगवत शरण अग्रवाल
जुगनुओं से/ गुलमोहर वृक्ष /है झिलमिल
 नन्हा जुगनू/ पड़ा टिमटिमाए/  टूटे पंख ले---डॉ भावना कुँवर
मिलके जले  /जलके मिटा देंगे /सारा अंधेरा ---शोभा रस्तोगी 'शोभा '
स्मृतियाँ मेरी /विरह- रजनी में /जुगनू बनी ---शोभा रस्तोगी 'शोभा '
 प्रेम -जुगुनू /भावों की बाती जला /रोशन हुआ ---डॉ सरस्वती माथुर
 रात में दिया /बन जुगनू जले /तं से लड़े ---डॉ सरस्वती माथुर
जुगनू जले /अंधेरी अमावस /सपने पाले ---डॉ शशि पाधा
घुप्प अंधेरा /जुगनू ने उठाया /भोर का बीडा ---सुनीता अग्रवाल


राह दिखाओ /अरे ओ जुगनुओं /रात है काली ---डॉ सुषमा सिंह
जुगनू  दीप /टिमटिम करते /स्वप्न  सज़े हैं ---भावना सक्सेना
 रिश्तों की संध्या /जुगनू सी चमकी /रही दमकी ---कुमुद बंसल
झाँकती यादें /मन आँगन मेरे /जैसे जुगनू ...डॉ अनीता कपूर
मिलके जले /जुगुनू मिटा देंगे /सारा अंधेरा ...डॉ मिथिलेश कुमारी मिश्र
*रंग बिरंगे  फूलों के साथ रहने वाली तितलियाँ भी बहुत सुंदर होती है तितलियाँ कई तरह की और कई आकार की होती हैं रंगीन तितलियाँ सूर्य के आगमन से पलायन तक  निरंतर फूलों पर मंडराती है ,इन्हे और रंगीन बनाती है lप्रकृति के सारे रंगों की तितलियाँ जाने कहाँ से सँजो कर लाती हैं किइंद्रधनुष भी फीका पड़ता है lअलग अलग रंग लिए कहीं पलाश  के जैसे रंग की लाली ,कहीं अंबर सी नीली ,कहीं सरसों सी पीली ,फूलों को  चूमती ,डाल डाल पर उड़ती,इठला कर झूमती हाइकुकारों को मोह लेती हैं l
फूल- पंखुरी /तितली के  पंख सी /नाज़ुक दोस्ती ---हरदीप कौर सिंधु
अनूठे रंग /तितलियाँ उड़ती /हवा के संग ---डॉ सुधा गुप्ता
शोख तितली /खूब खेलती खो खो /फूलों के संग ---रामेश्वर कंबोज "हिमांशु"
तितली बिंधी /लम्पट गुलाब ने /खींचा आँचल ---रामेश्वर कंबोज 'हिमांशु "
बसंती मन /तितली सा डोलता /रंग घोलता ---डॉ सरस्वती माथुर
तितली लिए रंग बिरंगा /झण्डा /फूलों पे चली ---डॉ सरस्वती माथुर
कैटरपिलर मन भीतर रंगा /तितली हुआ --- डॉ सरस्वती माथुर
सूनी है डाली /चिड़िया न तितली /आँधी ले उडी...डॉ जेन्नी शबनम
तितली-दल/कपोल चूम /दग्ध पलाश ---पुष्पा मेहरा
तितली उडी /चुराये जो पराग/बिखेरे कहाँ ---श्याम खरे
तितली दल/ खोल डाले किसने रंगों के नल ---डॉ भावना कुँअर
नन्ही तितली /खेले आँख मिचौली /कमाल संग ---डॉ भावना कुँअर
नन्ही तितली /बुरी फंसीजाल में /नोंच  ली  गयी ---डॉ भावना कुँअर
तितली बन चला फूलों के गाँव वो मनचला ---भावना कुँवर
खिले पलाश /तितली ओ भँवरे /मन उल्लास ---हरकीरत  हीर
सुंदर स्वप्न /तितली बन उड़े /मधुबन में---शशि पुरवार
अब न आतीं /धूप की तितलियाँ /ब्याहीं विदेश ---शशि पाधा
तितलियों -सी /मन की कामनाएँ /खूब छकाएँ---सुभाष नीरव
 लड़ते नहीं /तितली मधुमक्खी /फूल के लिए एस॰डी॰तिवारी
*हमारे साहित्य में भँवरे को एक विशेष स्थान हासिल है।भँवरे  काले रंग का उड़नेवाला एक पतंगा जो फूलों पर मँडराता और उसका रस चूसता है। इसके छः पैर, दो पर और दो मूँछें होती हैं। 
  वह कलिओं का रसपान करता है और फिर उड़ जाता है। किसी एक पुष्प पर टिकना उसका स्वाभाव नहीं है। वह रंग का काला है अतः मन का भी काला मान लिया जाता है। उसकी प्रकृति चंचल है। बेचारा भँवरा। वो क्या करे बगिया में वह अकेला है और पुष्प ढेर सारे। सभी को विकसित करवाना उसका कर्तव्य है सो वह एक कली , एक पुष्प का होकर नहीं रह सकता । पर क्या करें ये कवि उस की इस मज़बूरी को नहीं समझते और उसे बेवजह खलनायक बना देते हैं।कुछ कुछ रसिया स्वभाव  में प्रीत ढूंढ लेते हैं ! मधुप फूलों के पराग से आकर्षित हो कर मँडराता और गुंजन करता है ,अपने नाम के अनुरूप मधुपायी  है उदाहरण स्वरूप कुछ हाइकु देखे जा सकते हैं -
भौंरा मुसकाए /तितली बेखबर /जान न पाये ---रामेश्वर कंबोज "हिमांशु"
पागल भोंरा/ दर दर भटके/बना मलंग ...पूर्णिमा वर्मन                                           
आया है मीत/काली का मन मोहे /भ्रमर गीत ...डॉ कुँवर दिनेश सिंह
झूमे बसंत /श्यामल भ्रमर की /चली पढ़ंत ...डॉ कुँवर दिनेश सिंह
वृक्ष लता पे /झूमे मधुकर तो /सुमन खिले ---डॉ सरस्वती माथुर
भँवरे झूमे /कलियों के पाटल /खिलते गए ---डॉ सरस्वती माथुर
गंध के डोरे /अंजान मालती/भौंरे छेड़े --- डॉ सरस्वती माथुर
रंग देख के / भँवरे रहे दूर /कागजी फूल ---डॉ श्याम सुंदर' दीप्ति 'खिले पलाश /तितली ओ भँवरे /मन उल्लास ---हरकीरत  हीर
यादों की गंध बैचेंन हो उठा है/मधुप मन...डॉ उर्मिला अग्रवाल
थिरक उठी /फूलों की सहलियां /भौंरों के संग---  कमला निर्खुपी
खिली चाँदनी भौंरे गीत सुनाएँ /झूमें पलाश ---शशि पुरवार
 भँवरे गाते /महकता उपवन  /पुष्प लुभाते ---शशि पुरवार
 खिले पुहुप/ गुनगुनाया भौंरा /राग बसंत /अनुपमा त्रिपाठी
 फूलों का रंग /भँवरों की गुंजन /सब अधूरी ---शैफाली गुप्ता

 भौंरे की धुन /सुन काली महकी /फगुआ गाती ---गुंजन अग्रवाल
 नवल पात /डाल डाल भँवरे/ आया बसंत ---कल्पना रमानी
कमल खिले भँवरे झुक झूमें/मुखड़ा चूमें ---नवीन चतुर्वेदी 
*सच कहते हैं कि हाइकु सृष्टि सौंदर्य का अनुभव कराती है lहाइकु का क्षेत्र असीम हैlहाइकुकार  किसी भी दृश्य या सरोकार पर हाइकु रच सकता है l धरती का विशाल आँगन हो ,प्रकृति का विस्तृतरूप हो ,चाँद  को एकटक निहारता चकोर हो ,वर्षा मे पातों पे  रेंगती मखमली वीरबहूटी हो,झींगुर की आवाज़ हो  या  टर्र टर्र करता दादुर - मेंढ़क - मछलियाँ या जलपाखी हों या सागर किनारे की रेत पर बिखरे सीपी शंख हों ,देखें हाइकु ...
बदरा तले मेंढक की मंडली जन्मों की बातें ...मनोशी चटर्जी
बरखा- रानी ले आई नव आस/ दादुर राग --डॉ क्रांति कुमार
दादुर तेरा /बरसी जो बदली /मन मयूरा ---डॉ ज्योत्सना शर्मा


मौसम आया / मेंढक  की चुप्पी ने /अर्थ बताया ---डॉ सरस्वती माथुर
मेंढकी सी थीं /बारिश की बूंदें /गेंद सी उछली---डॉ सरस्वती माथुर
*सीपी में मोती वस्तुत: मोलस्क जाति के एक प्राणी द्वारा क्रिस्टलीकरण की प्रक्रिया द्वारा बनता है।
हाइकुकारों ने उन्हे भी शब्दों में बांधा है ...कतिपय उदाहरण प्रासंगिक होंगे --
-उषा की माला /बिखरे मोती दूर्वा सहजे ---डॉ सुधा गुप्ता
जो भीगा पल /शब्द -सीपी में ढले /हाइकु बने ---डॉ सावित्री डागा
घृणा है घोंघा /प्रेम है मोती प लेना /खेल मौत से --- डॉ सावित्री डागा
यादों के मोती /चली पिरोती सुई /हार किसे दूँ ?---उर्मिला कौल
 मन की माला भावों के मोती -गूँथी /छोड़े न साथ...रामेश्वर कंबोज "हिमांशु "
मोती उलझे /बरौनियों  की नोंक /बह न सके...रामेश्वर कंबोज "हिमांशु'
याद के मोती /मैं पिराऊँ माला में / महक जाऊँ ---रचना श्रीवास्तव   
ओसकण के/ मुक्ताहार से करें/ धरा शृंगार ...डॉ सरस्वती माथुर
कुंवारी रेत /सीपी प्रसव से /जन्मता  मोती ---डॉ सरस्वती माथुर
मोती ही मोती /सागर से चुन लो /लगा डुबकी ---सुदर्शन रत्नाकर
किसने टांके /मखमली घास पे /ओस के मोती ...पुष्पा मेहरा
यादों के मोती /समेट न सका /सीप दिल में --- सावित्री चंद्र
चाँद उतरा/सीपियों के अंगना /सिंधु मचला ---अनिता ललित
बूंद है प्यासी /सीप में उतार के मोती होने को ---डॉ ॰नूतन डिमरी गैरोला
ख्वाब काँच -से आँखों पे रुके जब /हुए मोती से ---डॉ नूतन गैरोला
 कनी रेत की /सहे सीप में पीड़ा बनेगी मोती ---ज्योत्सना शर्मा
 रहे समीप /ज्यों मोती और सीप /खुशनसीब ---कृष्ण वर्मा
मन का सीप/पुकारे बादल को/मोती बरसे। कमला निर्खुपी
 नैनों की सीपी/चम -चम चमके/नेह के मोती--कमला निर्खुपी

कीमती मोती/हृदय की सीप में /तुम्हारी याद ---सारिका मुकेश
 साँस है धागा /उम्र पिरोये मोती /जीवन -माला ---अनीता ललित
 न प्रांगण /यादों के बादल से /झरते मोती शशि पूरवार
 प्रेम वर्ण-से/ गूँथे मोती की माला के /आज बिखरे --शैफालीगुप्ता

 आखर- मोती /पिरोती चली जाऊँ/हार न मानूँ---डॉ निशा जैन
 बंद सीपीयाँ/उपजे मुक्तकण/बिखरे दर्द ---डॉ निशा जैन
 नभ की ओस /झरी मधुबन में /मोती बन के ---मंजु गुप्ता
 शुभ संदेश /दमदम दमके/नयन मोती ...ऋता  शेखर   
 दोस्ती दरिया /धोका शंख/-सीपीयाँ/रिश्ता मलिन ---विभा श्रीवास्तव
 सीप मुख से /फैले रंग -बिरेंगे/ मोती धरा पे डॉ अर्पिता अग्रवाल  
जलपाखी  से /पतझड़ के पत्ते /हवा नदी में ---डॉ सरस्वती माथुर
 शशि किरण/ बनी ओस की बूंद चटक मन --- उपासना सिहाग
*भारतीय इतिहास में दर्शन और भोजन दोनों दृष्टि से शुभ और श्रेष्ठ मानी जाने वाली मछली जलीय पर्यावरण पर आश्रित है तथा जलीय पर्यावरण को संतुलित रखने में मछली की काफी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। यह कथन अपने में पर्याप्त बल रखता है जिस पानी में मछली नहीं हो तो निश्चित ही उस पानी की जल जैविक स्थिति सामान्य नहीं है। वैज्ञानिकों द्वारा मछली को बायोइंडीकेटर माना गया है। विभिन्न जलस्रोतों में चाहे तीव्र अथवा मन्द गति से प्रवाहित होने वाली नदियां हो, चाहे प्राकृतिक झीलें, तालाब अथवा मानव-निर्मित बड़े या मध्यम आकार के जलाशय, सभी के पर्यावरण का यदि सूक्ष्म अध्ययन किया जाय तो निष्कर्ष निकलता है कि पानी और मछली दोनों एक दूसरे से काफी जुड़े हुए हैं। पर्यावरण को संतुलित रखने में मछली की विशेष उपयोगिता है।कुछ हाइकु देखें -
ठंडी कविता /मारी हुई मछली/की फटी आँख ---सावित्री डागा
गंदला पानी /रो रही मछलियाँ /वे जाएँ कहाँ ---हरदीप संधु
जाल फेंकता/सूरज का मछेरा/धूप तितली ---डॉ सरस्वती माथुर 
उम्र की डोर /सौन मछरिया सी /हाथ से गिरी ---डॉ सरस्वती माथुर
धूप मछ्ली /सूर्य नें फ़ेंकाजाल/ मछुआरे सा ...डॉ सरस्वती माथुर
सूखे -से ताल /जल बिन मछ्ली/हाल-बेहाल ---शशि पाधा
न मीन -सा /आकुल रहता है /लिए पिपासा -अनुपमा त्रिपाठी
हृदय-झील /तैरती आकांक्षाएँ/मीन मानिंद ---महिमा मंजु
तडपी मीन /विचलित होकर /सूखा पोखर ...अशोक दर्द

*चकोर  चंद्र किरणों को पीने वाला मदमस्त  पक्षी है ,इसके  नेत्रों को मद से मतवाला कहा गया है समशीतोष्णकटिबांधों में वर्षा काल के बाद नए हरे हरे वनो में इस पक्षी के जोड़े मिलते हैं lसूडोल शिर ,बड़ी बड़ी रतनार आँखों वाले चकोर की एक एक गति से स्फूर्ति टपकती है कुछ उदाहरण  यहाँ प्रस्तुत हैं--
ख्वाब उगा है /आँखों के नभ पर /नींद चकोर ---डॉ सरस्वती माथुर
चाँद को देख /अकुलाया चकोर /प्यार गहन ---डॉ सरस्वती माथुर
*बीरबहूटी एक खूबसूरत मखमली सा कीट है जो बारिश के बाद धोरों पर नजर आता है ! इसे सावन की डोकरी , इंद्रवधू और बूढ़ी माई भी कहते हैं ..


कुशल पूछे/ वीर बहूटी भेज/ मेघ धरा की --डॉ दयाकृष्ण   विजयवेर्गीय 'विजय'
हरी घास पे/वीरबहूटी चली/ दुल्हन लगे -डा० सरस्वती माथुर...


 *झींगुर (क्रिकेट) एक कीट है । यह रात में झीं की आवाज निकालने के लिये जाना जाता है।जबकि पतंगा शमा पर न्योछावर हो जाता है ...उदारणों में हाइकुकारों ने सुंदर बिम्ब उतारे हैं ...
मन पतंगा /भावों की रोशनी पे /पंख फैलाये ---डॉ सरस्वती माथुर
झींगुर छेड़े /अशोक टहनी पे/ रात के राग... डॉ सरस्वती माथुर 
वर्षा की साँझ /बजाते शहनाई /छिपे झींगुर ---रमाकान्त श्रीवास्तव
अंधेरी  रात /झींगुर चौकीदार सीटी बजाते ---सुभाष नीरव
 आग बरसे/ जंगल में सन्नाटा/झींगुर गाए ---ललित मावर 
वर्षा के पूर्व विधुतकी चमक से मयूर का हृदय आशापूर्ण कहा गया है lइसकी घुति अनेकावर्णी हैl नीलाभ से चमकता हुआ कंठ है ,स्वर तीव्र एवं मधुर तथा नर्तन शोभन है lमेघो को देख मयूर के पैरों में स्वाभाविक थिरकन आ जाती है और इनके कोलाहल से दिशाएँ मुखरित हो जाती हैंl
 *मच्छर मक्खी केंचुआ,दीमक ,चींटी बिच्छू,मकड़ी सभी जीवों पर हाइकुकारों ने अपनी लेखनी चलाई है कुछउदाहरण प्रस्तुत हैं
जाले बुनती /यादों की मकड़ियाँ /नहीं थकती ---डॉ सुधा गुप्ता
यादों की लोई /खूंटी पे टंगे टंगे /कीड़े -कुतरी --डॉ  सुधा गुप्ता
विचार घूमें /भिन्नाती मक्खियों से /मन मिठाई ---डॉ सरस्वती माथुर
मकडजाल /पेंटर सी मकड़ी /रेशम के तार ---डॉ सरस्वती माथुर
 फूले जो फूल /आई मधु मक्खियाँ/संझा को भूल ---पुष्पा मेहरा 
चींटो से घिरा /छटपटाता केंचुआ /कहाँ हो प्रभु ?---आदित्य प्रताप सिंह
ये स्वर्ग पुष्प /सुने राग बहार मधुमक्खी  का ---ज्योत्सना प्रदीप
लड़ते नहीं /तितली मधुमक्खी फूल के लिए  --- एस ॰डी॰तिवारी
टॉवर लगे/मधुमक्खी बेचारी /रस्ता भूली ।उमा घिलिडियाल
दीमक मन /यादों की किताब को /चाटता गया ---डॉ सरस्वती माथुर
किताब खाने /दीमकों का घर हो /छत से हुए --- डॉ सरस्वती माथुर

शक ,दीमक /रिश्तों में दूरियाँ /मकडजाल---शशि पुरवार 
मकडजाल /उलझाए सबको /है विकराल ---मीना अग्रवाल
गर्मी में साथी -मच्छर से बचना /ध्यान रखना
*हम सभी ने देखा है कि अनेक पर्व त्योहारों पर पशु पक्षियों कि पूजा करना हमारी परम्पराओं का हिस्सा है बैल (नंदी )का शिव के साथ ,लक्ष्मी का  हाथी के साथ चूहे का गणेश जी के, दुर्गा का सिंह  सरस्वती का मोर ,हिरण का ब्रह्म के साथव कृष्ण जी का गाय  के साथ  पौराणिक संबंध देखा जा सकता है l
हमारे ऋषियों ने गौ को माता माना  हैl निश्चय ही गाय मानव जातिको ईश्वर की देन  है / देखें कुछ हाइकु --
पगुरा रही /कारी धवारी गैया /नीम की छैया ...डॉ सुधा गुप्ता
अश्रु -गौमुख /ये सीने में छुपाये /उम्र बिताए...रामेश्वर कंबोज"हिमांशु'
गाय को मिली /रोटी अनुदान में/ कुत्ता खा गया ...डॉ सुरेन्द्र वर्मा
इसी तरह बैल और सांड आज भी प्राचीन काल की तरह ही हमारी ग्रामीण अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं --
निभाए नहीं /जूते हुए बैलन्स /रिश्ते हैं सहे ---रामेश्वर कंबोज "हिमांशु "
चिड़ियाँ चीं चीं/बैल गल तालियाँ /अमृत बेला --- प्रो॰ हरिन्द्र कौर सोही
चौराहों पर /घूमता सांड जैसा/ बेखौफ डर---रामेश्वर कंबोज "हिमांशु 
बैल गाड़ी के/ पीछे पीछे है / बैल का चलन--- राम किशोर उपाध्याय
चौकड़ी भरे /मरखाने सांड -सा /अंधड़ चला ---रामेश्वर कंबोज "हिमांशु "
व्याकुल गाँव /व्याकुल होरी का हैं /घायल पाँव ---रामेश्वर कंबोज 'हिमांशु "
संगीत -भरे /बैलगाड़ी का स्वर /किसान हर्षा ---सविता अग्रवाल "सवि"
संगीत भरे /बैलगाड़ी का स्वर /किसान हर्षा ---ऋतु शेखर ‘मधु’
 पक्की सड़क/काँपता तन मन /भूखा बछड़ा ...अरुण सिंह रूहेला


*ज्योतिष शास्त्र कि बारह राशियाँ आज भी पशुओं के नाम पर हैं तो सूअर की पृथ्वी की रक्षा के लिए वराह अवतार के रूप में मान्यता है lइसके अलावा श्राद्ध पक्ष में कौवेऔर चीलों को भोजन करवाना ,कुत्ते को रोटी डालना ,कबूतर को दाना डालना ,बंदरों को गुड चना खिलाना ,चिड़िया के लिए परिंड़ा बनाना ,तोते पालना और चींटी को चुगगा आटा डालना ,वन सोमवार मनाना आदि परम्पराएँ हमारे पशु प्रेम को दर्शाती हैं l
मानव कम /धन पशु अधिक /बांटे जहर ---रामेश्वर कंबोज
जनता भेड /जन नेता भेड़िये /खड़े बाट में ---रामेश्वर कंबोज
निरीह राजा /वानर राज फैला /कष्ट में प्रजा --- भावना कुँवर
जिस ज्ञान का/ न जीवन में उतार /गधे का भार ...डॉ सावित्री डागा
अंध पूजक /बलि बकरे पोषे/बच्चे हैं भूखे ---ज्योतिर्मयी पंत 
भेड है प्रजा /मनमानी करे तो/ मिलेगी सज़ा...मीना अग्रवाल
भूखे भेड़िये ढूंढ रहे शिकार गरीब -मार...अशोक दर्द
मुर्ग बंदर /मदारी बराबर /प्रजातन्त्र के ---रूपचन्द्र उपाध्याय
बंदर- बाँट /बांटता रहा देश ।मंत्री की ऐश ---धर्मेंद्र कुँवर सिंह
मन दहाड़ा /जंगल के शेर सा / गूँज के लौटा।---डॉ सरस्वती माथुर
डरी  सी आँखें /दहशत से काँपे/ बिल्लियाँ रोये...डॉ सरस्वती माथुर


*भारतीय पुराणो में सर्प को एक लाभप्रद जीव माना गया है
 जो अपना फन  फैला कर जैविकसुरक्षा प्रदान करता और नागपंचमी पर पूजा जाता है lकुछ हाइकु देखें--
 शीत के दिनो/सर्प -सी फुफकारे /चले हवाएँ---डॉ हरदीप कौर सिंधु
दायें न बाएँ /खड़े हैं अजगर /किधर जाएँ ---रामेश्वर कंबोज "हिमांशु "
शंका का सर्प /फुफकारे जितना /बढ़ता दर्प ---रामेश्वर कंबोज "हिमांशु"
चन्दन -वन /सा शापित जीवन/भुजंग -तन ---रामेश्वर कंबोज 'हिमांशु"
सूरज छोड़े /धूप  की केंचुलियाँ /दिन साँप सा --- डॉ सरस्वती माथुर
केंचुली छोड़ /यादों का साँप भी दूर निकला --- डॉ सरस्वती माथुर
साँप बन के लिपटी रही यादें /कैसे छुड़ाऊँ ...डॉ सरस्वती माथुर
अजगर से /खुलते हैं जंगल /लीलते जाते--- डॉ सरस्वती माथुर
यादों का सर्प /मन के ज्यंगले में /फुफकारता ...डॉ सरस्वती माथुर
चन्दन -तरु /सर्प अंग लिपटे /विष न चखे ---शशि पाधा
युद्ध है सर्प/प्रदूषण है डंक /कुचलों फन ---अनिता ललित
सर्द जंगल /फुफकारती हवा /माघ नागिन ---नीलमेंदूसागर
भीड़ से लड़ी /बलखती चलती /काली नागिन --- मनोशी चटर्जी
चन्दन वन /लिपट रहे हैं सर्प /गंध स्वछन्द...रामस्वरूप मूंदडा
सांप बिलों में /उससे कहीं  ज्यादा /हैं आस्तीनों में ---डॉ गोपाल शर्मा
 प्रेम-चन्दन लूट जाए न लाज लिपटे सर्प ---सुनीता अग्रवाल
धुंधलके में /सर्प -सी इच्छाओं  का /आवागमन ---तुहिना रंजन
दर्प का सर्प /चला मन से  पर/ केंचूली छोड़ ---ज्योत्सना प्रदीप
बांबी में कम /आसतीन में अधिक /साँप आज भी --डॉ राजकुमारी शर्मा
थकते नहीं /केंचुली बदलते /मन के साँप ---डॉ अनीता कपूर
पालें न नाग /पालोगे तो लगेगी /देश में आग ---सुभाष लखेडा
साँपों से दोस्ती /करना न कभी /जन लो अभी ---सुभाष लखेड़ा
हमारे यहाँ तो बाकायदा मेलों में  पशु मेला लगाए जाने की परंपरा भी है !ऊंट घोडा ,गधे ,बकरी आदि सभी लोकजीवन में महत्व रखते हैं l
*वैज्ञानिक रूप से भी देखें तो इन जीव  जंतुओं की प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने में विशेष भूमिका है यही कारण है  कि इनके संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ गयी है lयह जीव जन्तु रहेंगे तो हमारी लोकसंस्कृति  रहेगी और यदि संस्कृति को जीवित रखना है तो वन्य जीवों के संरक्षण को हमनें  अपनी दिनचर्या का अभिन्न अंग बनाना  होगा lयदि हमने जीव जंतुओं की सुरक्षा नहीं की तो हम प्रकृति की अमूल्य धरोवर से सदेव के लिए वंचित रह जाएँगे !
डॉ सरस्वती माथुर
ए -2 ,सिविल  लाइंस
जयपुर -6










 













मंजु गुप्ता
फूला पलाश
अलि- पिक की गूँजे 






धरती झूमी ।


सुनीता अग्रवाल
सिमटे वन
बाँझ अमराइयाँ
कोकिल मौन ।
4
अहो वसंत  !
अमराई में गूंजे
कोकिला स्वर
5

अमुआ डार

कोयलिया पुकारे

साँझ सकारे ।

बावरी  भई

कूकत कोयलिया

रागिनी नई  ।

5

पेंजी खिली है ,

ज्यों तितली उड़ता

 मन आँगन

.........

खो गए पंछी / कोहरे के पथ में / ढूँढ़ते नीड़ । शशि पाधा

संवेदना की पराकाष्ठा यहाँ देखिए  –

      

 याद चिड़िया / मन की अटारी पर / तिनके जोड़े ।   (डॉ सुधा गुप्ता) 

 डॉ. नूतन डिमरी गैरोला

पीत पुष्प पे

श्याम भ्रमर डोले   

तितली हँसी। 

 

टेसू हैं लाल   

श्याम कुक्कू वाचाल

कुहुक गाएँ ।      

 





















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