मंगलवार, 2 दिसंबर 2014

"सुबह सी माँ !"


"सुबह सी माँ !"
माँ रोज उगती है
सुबह की तरह
धूप महरी संग
सारा नभ आँगन
बुहारती है


धरा तरु पर जाकर
गिलहरी सी भागती है


किसी कामना के
दीप सी - शाम को
सूर्य को नहला धुला
और सुला कर
विश्राम करने लौटती है

माँ ,सच में
एक मूक चिड़िया सी
फूलों पर डोलती है
तितली सी
सुगंध बटोरती है


हमारे जीवन की
सुबह को भी तो
हमारी माँ ऐसे ही
बुहारती है
 महकाती है


सच रोज
माँ भी तो
सुबह की तरह
'उगती है !
डॉ सरस्वती माथुर

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