शनिवार, 22 नवंबर 2014

"एतबार का नीम !"


"एतबार का नीम !"

एतबार के नीम से

झड़ी कुछ निम्बोरियाँ


आशाओं की

बांध उन्हें मन पोटली में

मैंने तजुर्बे लिए

कुछ दिन बाद जब

खोली पोटली

तो छिलके गली गुठलियाँ

सूख चुकी थीं

देर तक सूखी पुरानी

नीम की निम्बोरियाँ

देखती रहीं थी जो

उम्र की चौखट पर

एक कहानी कहती थी

जाने क्या सोच कर

फिर दबा दी

मन चबूतरे की माटी में और

समय पानी से सींचती रही वर्षों

एक दिन ठंडी हवा के

झोंके से जाग कर उठी

तो देखा मन चौबारे पर

एतबार का नीम

पूरी हरियाली के साथ

उग कर फिर

लहरा रहा था

पहले ही की तरह

बुढ़ाई उम्र के आकाश पर!


डॉ सरस्वती माथुर

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