हाइकु
1
एक पीपल
मन खण्डहर में
याद का उगाl
2
सर्द हवाएँ
शाम की पुरवाई में
थिर हो जमी l
3
चुप्पी तोड़ते
खण्डहर घर में
चूहों के बिल l
4
मौन तोड़ती
अंधेरे में चिड़ियाँ
देख शिकारी l
5
हवा सा मन
आकाश नाप कर
ख्वाब बुनता l
6
नि:शब्द नैन
मन की पीड़ा बुन
नींद चुराते
7
कौन आयेगा
ख्वाबों में बस कर
नीड बनाने ?
8
नभ से भागी
चाँद संग चाँदनी
हुई प्रवासी l
9
चाँद- जुलाहा
चाँदनी बुन कर
प्रेम पिरोता l
10
यौवन आया
निंदियारी अँखियाँ
घिरी स्वप्न सेl
11
पुरवा पाँव
ठुमक कर चली
बीजना बाजे l
12 खोल के मेघ
घुंघराले केशों को
धूप दिखाये l
13
मौन मिटटी का
दिया जलाया कर
भोर जगाई l
14
मेघ की बांह
दामिनी को जकड
खिली धूप सी l
पुरवा पाँव
ठुमक कर चली
बीजना बाजे l
12 खोल के मेघ
घुंघराले केशों को
धूप दिखाये l
13
मौन मिटटी का
दिया जलाया कर
भोर जगाई l
14
मेघ की बांह
दामिनी को जकड
खिली धूप सी l
15
खोल खड़ा है
चट्टानी जबड़ों को
दैत्य सा मेरु l
16
डूबा सूर्य तो
गोताखोर सुबह
खींच ले आई l
खोल खड़ा है
चट्टानी जबड़ों को
दैत्य सा मेरु l
16
डूबा सूर्य तो
गोताखोर सुबह
खींच ले आई l
17
झरने चले
प्रकृति के अंगने
नुपुर बोले
प्रकृति के अंगने
नुपुर बोले
18
सूर्य डूबा तो
फूलों के रंग उड़
नभ पे छाए
19
डूबता सूर्य
संध्या के रंग पीके
विदा हुआ था
फूलों के रंग उड़
नभ पे छाए
19
डूबता सूर्य
संध्या के रंग पीके
विदा हुआ था
20
बच्चे सॊते हैं
सितारों को सौंप के
मन के ख्वाब
21
वायलिन सी
देर तक बारिश
बजाती रही
22
गर्मी बीती तो
सावन की बारिश
शुरू हो गयी
23
हवा थी चुप
चिड़िया का संगीत
गूंजता रहा l
सितारों को सौंप के
मन के ख्वाब
21
वायलिन सी
देर तक बारिश
बजाती रही
22
गर्मी बीती तो
सावन की बारिश
शुरू हो गयी
23
हवा थी चुप
चिड़िया का संगीत
गूंजता रहा l
24
डूबता सूर्य
आधे रास्ते जाकर
पेड़ों में छिपा l
आधे रास्ते जाकर
पेड़ों में छिपा l
25
जल ले बहा
भरा हुआ बादल
आकाश खाली
भरा हुआ बादल
आकाश खाली
26
पर्वत चीर
धरा की ओर जाऊं
नदिया हूँ मैं
धरा की ओर जाऊं
नदिया हूँ मैं
27
उड़ते रहे
स्वप्न पंछी रात में
ठहरी नींद
28
चुग्गा समेट
उड़ा पाखी - पहुंचा
बच्चों के पास
29
स्वप्न पंछी रात में
ठहरी नींद
28
चुग्गा समेट
उड़ा पाखी - पहुंचा
बच्चों के पास
29
उगी सुबह
आँखों में लाली भरे
धरा उतरी
30
चलते रहें
अनगढ़ पथ पे
पगडण्डी से
31
शाम हुई तो
चहचहाते पंछी
नीड़ में लौटे
आँखों में लाली भरे
धरा उतरी
30
चलते रहें
अनगढ़ पथ पे
पगडण्डी से
31
शाम हुई तो
चहचहाते पंछी
नीड़ में लौटे
डॉ सरस्वती माथुर
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