सेदोका संकलन
सर्द मौसम
1
खरगोश- सी
दौड़ती पुरवाई
खुशबू भर लाई
मौसम पर
झूमती लहराई
सरदी बन आई ।
2
पाहुन बन
सरदी थी उतरी
परिणीता सी छूती
पावन धरा
फूलों को रंग कर
तितली -सी उड़ती
3
सूर्य निकला
दौड़ी गिलहरियाँ
धूप के टुकड़ों की
हरे पत्तों पे
चहके पंछी संग
अँधेरों को चीरती
4
पाखी कुहुके
फिरकी सी घूमती
चली पुरवाई थी
घोड़े सर्दी के
दौड़ाती आई थी
बर्फानी- सी पसरी
5
सर्द मौसम
रस ओंठ खुले थे
मधु पराग भरे
नव कलिका
फूल बन करके
तितलियाँ बुलाती ।
6
नीलवर्ण है
उन्मन- सी सरदी
उड़ी पंख फैलाए ,
जैसे विहग
धूप का ओढ़े शाल
हवा के संग संग
सेदोका :" मृत्यु !"
7
उडता फिरा
मृत्यु के डैनो पर
खामोश गुमसुम
जीवन पाखी
सो गया ओढ़ कर
सफ़ेद सा कफ़न
8
मृत्यु चिड़िया
जीवन गगन में
खेले आँख मिचौनी
समय यम
जीवन लहर में
भंवर ला - ले जाए
9
अँधेरा छाया
पंखहीन पाखी सा
मृत्यु फल चखने
फड़फडाता
एक गिलहरी सा
कुतरने को आया
10
घना तिमिर
जीवन चौबारे पे
उतरा उदास सा
मृत्यु रथ पे
रूह लेके जाने को
दलाल बन आया
11
मृत्यु दलाल
वसूलता है कर्ज
जीवन सपनो से
मौन हवाएं
सन्नाटे को बुनती
कफ़न चुनती हैं
उडता फिरा
मृत्यु के डैनो पर
खामोश गुमसुम
जीवन पाखी
सो गया ओढ़ कर
सफ़ेद सा कफ़न
8
मृत्यु चिड़िया
जीवन गगन में
खेले आँख मिचौनी
समय यम
जीवन लहर में
भंवर ला - ले जाए
9
अँधेरा छाया
पंखहीन पाखी सा
मृत्यु फल चखने
फड़फडाता
एक गिलहरी सा
कुतरने को आया
10
घना तिमिर
जीवन चौबारे पे
उतरा उदास सा
मृत्यु रथ पे
रूह लेके जाने को
दलाल बन आया
11
मृत्यु दलाल
वसूलता है कर्ज
जीवन सपनो से
मौन हवाएं
सन्नाटे को बुनती
कफ़न चुनती हैं
"परछाईयाँ !"
12
अँधेरे देख
अस्तित्व तलाशती
सिमटी परछाई
अंतर्ध्यान हो
जीवन संगिनी सी
साथ निभाने आई l
13
आँख- मिचौली
धूप छाया की देखी
अँधेरी सुरंगों में
टिमटिमाते
उड़ते जुगुनू की
रोशन काया देखी l
अँधेरे देख
अस्तित्व तलाशती
सिमटी परछाई
अंतर्ध्यान हो
जीवन संगिनी सी
साथ निभाने आई l
13
आँख- मिचौली
धूप छाया की देखी
अँधेरी सुरंगों में
टिमटिमाते
उड़ते जुगुनू की
रोशन काया देखी l
14
परछाई सा
मन झुरमुट में
यादों का पत्ता गिरा
मन में उड़ा
लहराता हुआ सा
अस्तित्व से जा मिला l
मन झुरमुट में
यादों का पत्ता गिरा
मन में उड़ा
लहराता हुआ सा
अस्तित्व से जा मिला l
15
झील में छाया
चाँद की देखी तो
चांदनी भी बौराई
तम पीकर
रात की लहरों को
चूड़ियाँ पहनाई l
16
सुबह -शाम
साथ साथ चलती
दोस्त सी परछाई
दुःख सुख की
डगमग नैया में
अस्तिव बन छाई l
17
चाँद के साथ
परछाई बन के
चांदनी चलती है
रात के साये
उजले होकर के
जुगुन लगते हैं l
18
दुःख सुख की
परछाइयां देखी
रहस्यमय कुछ
छिपी हुई सी
मन के अँधेरे में
तन्हाइयां भी देखीं l
झील में छाया
चाँद की देखी तो
चांदनी भी बौराई
तम पीकर
रात की लहरों को
चूड़ियाँ पहनाई l
16
सुबह -शाम
साथ साथ चलती
दोस्त सी परछाई
दुःख सुख की
डगमग नैया में
अस्तिव बन छाई l
17
चाँद के साथ
परछाई बन के
चांदनी चलती है
रात के साये
उजले होकर के
जुगुन लगते हैं l
18
दुःख सुख की
परछाइयां देखी
रहस्यमय कुछ
छिपी हुई सी
मन के अँधेरे में
तन्हाइयां भी देखीं l
19
जीवन बेला में
विभिन आकार में
बनती बिगड़ती
परछाईयां
अन्त:सलिला बन
अन्त:सलिला बन
मन को नापती है l
27
फूलों के रंग
बसंत के आँगन
तितली बन डोले
पाखी भी बोले
फागुनी हवाएं ले
आया फिर बसंत
28
बसंत गीत
रिमझिम संगीत
भंवरो की गुंजन
झींगुर झांझ
तितलियों सुनती
रंगों को हैं बुनती
29
हवा ले उडी
रसरंग बसंत
धरती हुई छंद
महके रंग
तितली फूलों पर
रसपगा बसंत
30
हरी धरा पे
सरसों लहके तो
चिहुंके चिड़ियायें
हरके उर
रंगीन मौसम पे
बसंत बरसाए
31
बसंत रंग
सुरमई मौसम
धरती पे उड़ते
फिरकनी से
महकी गंध संग
फूलों के मकरंद
सेदोका
"शरद ऋतु आयीl "
32
सर्द मौसम
कोहरा ओढ़ कर
सुबह धूप पर
हाथ सेंकता
लगता मनभावन
अलाव सुहावन l
33
धरा पे डोले
कंपकंपाती धूप
मौसम ने बदला
अपना रूप
बैठ कोहरे पर
शरद ऋतु आयीl
34
घना घना सा
सुबह का कोहरा
सर्द हवाएँ चली
धरा के द्धारे
देह कंपकंपाई
ठिठुरी अमराईl
35
आयी सर्दियाँ
कंपकंपाया तन
कोहरे भरी राते
सांझ होते ही
बुझा बुझा सा मन
अलाव को घेरता l
36
बर्फ हवाएँ
कोहरे का परदा
कंपकंपाता तन
सर्द रात में
औसारे बैठ कर
अलाव है धोंकता l
37
सर्द है रातें
कंपकंपाते दिन
बर्फीली वादियों में
जाड़े की धूप
शीत लहरों पर
ज्यूं गरम बिछौनाl
38
होली है आई
शीतल मधुमय सी
प्रेम रंग संजोये
तन रंग लो
फागुन की बेला है
मन भी रंग लो
39
गुलाल रंग
फाग चंग के संग
बौराया सा था मन
पंख खोल के
फागुनी चिड़िया से
गूंजा घर आँगन l
40
गूँजे फाग
कान्हा का रास रचे
राधा की प्रीत जले
डारत रंग
नैनों की बोली में
श्याम खेले होली में
41
उड़े गुलाल
खेल रहे हैं होली
नन्द जी के लाल
फागुनी रंग
मारत पिचकारी
राधा को गोपाल
42
20
रात मुंडेर
झिलमिल सितारे
नभ में जलते हैं
झिलमिल सितारे
नभ में जलते हैं
धरा पे आ
परछाइयों के संग
अक्स उकेरते हैं l
21
सच की कुछ
परछाइयाँ देखी
झूठ के हाशिये पे
रहस्य भरी
यथार्थ की असंख्य
गहराइयाँ देखी l
सेदोका
22
झरते पात
निर्भय होकर के
मिट्टी में जा मिलते
निज चिरत्व
हवाओं से पाकर
हरित हो - खिलते l
23
ऋतु बदली
आया पतझर तो
ठूंठ तरूओं पर
बैठी चिड़िया
नि:शब्द हो देखती
टूटा- आखिरी पत्ता l
सेदोका..
".माँ !"
24
मन से बंधा
कोमल अहसास
माँ- ईश- माँ विश्वास
न होकर भी
माँ रहती साँसों में
वो तो होती है खास l
25
माँ चन्दन
है आत्मिक बंधन
वात्सल्य रस भर
दु:ख सुख में
साथ निभाती माँ
आशा भर जाती माँ l
26
माँ तुम तो हो
कविता संग्रह सी
मन पन्नो में रची
छ्द गीत सी
रोज उगती तुम
माँ तुम सूरज सी l
"आया फिर
बसंत !"
27
फूलों के रंग
बसंत के आँगन
तितली बन डोले
पाखी भी बोले
फागुनी हवाएं ले
आया फिर बसंत
28
बसंत गीत
रिमझिम संगीत
भंवरो की गुंजन
झींगुर झांझ
तितलियों सुनती
रंगों को हैं बुनती
29
हवा ले उडी
रसरंग बसंत
धरती हुई छंद
महके रंग
तितली फूलों पर
रसपगा बसंत
30
हरी धरा पे
सरसों लहके तो
चिहुंके चिड़ियायें
हरके उर
रंगीन मौसम पे
बसंत बरसाए
31
बसंत रंग
सुरमई मौसम
धरती पे उड़ते
फिरकनी से
महकी गंध संग
फूलों के मकरंद
सेदोका
"शरद ऋतु आयीl "
32
सर्द मौसम
कोहरा ओढ़ कर
सुबह धूप पर
हाथ सेंकता
लगता मनभावन
अलाव सुहावन l
33
धरा पे डोले
कंपकंपाती धूप
मौसम ने बदला
अपना रूप
बैठ कोहरे पर
शरद ऋतु आयीl
34
घना घना सा
सुबह का कोहरा
सर्द हवाएँ चली
धरा के द्धारे
देह कंपकंपाई
ठिठुरी अमराईl
35
आयी सर्दियाँ
कंपकंपाया तन
कोहरे भरी राते
सांझ होते ही
बुझा बुझा सा मन
अलाव को घेरता l
36
बर्फ हवाएँ
कोहरे का परदा
कंपकंपाता तन
सर्द रात में
औसारे बैठ कर
अलाव है धोंकता l
37
सर्द है रातें
कंपकंपाते दिन
बर्फीली वादियों में
जाड़े की धूप
शीत लहरों पर
ज्यूं गरम बिछौनाl
सेदोका
"फागुन की बेला है!" 38
होली है आई
शीतल मधुमय सी
प्रेम रंग संजोये
तन रंग लो
फागुन की बेला है
मन भी रंग लो
39
गुलाल रंग
फाग चंग के संग
बौराया सा था मन
पंख खोल के
फागुनी चिड़िया से
गूंजा घर आँगन l
40
गूँजे फाग
कान्हा का रास रचे
राधा की प्रीत जले
डारत रंग
नैनों की बोली में
श्याम खेले होली में
41
उड़े गुलाल
खेल रहे हैं होली
नन्द जी के लाल
फागुनी रंग
मारत पिचकारी
राधा को गोपाल
42
सेदोका
बसंत आया
धरा को चहकाया
खुशबू का झरना
चषक भर
पिया हवाओं ने तो
फूलों को महकाया !
43 सेदोका
"शीत लहरों पर !"
44
धरा पे डोले
कंपकंपाती धूप
मौसम ने बदला
अपना रूप
बैठ कोहरे पर
शरद ऋतु आयीl
45
सर्द है रातें
कंपकंपाते दिन
बर्फीली वादियों में
जाड़े की धूप
शीत लहरों पर
जैसे गरम बिछौनाl
46
घना घना सा
सुबह का कोहरा
सर्द हवाएँ चली
धरा के द्धारे
देह कंपकंपाई
ठिठुरी अमराईl
47
आयी सर्दियाँ
कंपकंपाया तन
कोहरे भरी राते
सांझ होते ही
बुझा बुझा सा मन
अलाव को घेरता l
48
बर्फ हवाएँ
कोहरे का परदा
कंपकंपाता तन
सर्द रात में
औसारे बैठ कर
अलाव है धोंकता l
बसंत आया
धरा को चहकाया
खुशबू का झरना
चषक भर
पिया हवाओं ने तो
फूलों को महकाया !
43 सेदोका
"शीत लहरों पर !"
44
धरा पे डोले
कंपकंपाती धूप
मौसम ने बदला
अपना रूप
बैठ कोहरे पर
शरद ऋतु आयीl
45
सर्द है रातें
कंपकंपाते दिन
बर्फीली वादियों में
जाड़े की धूप
शीत लहरों पर
जैसे गरम बिछौनाl
46
घना घना सा
सुबह का कोहरा
सर्द हवाएँ चली
धरा के द्धारे
देह कंपकंपाई
ठिठुरी अमराईl
47
आयी सर्दियाँ
कंपकंपाया तन
कोहरे भरी राते
सांझ होते ही
बुझा बुझा सा मन
अलाव को घेरता l
48
बर्फ हवाएँ
कोहरे का परदा
कंपकंपाता तन
सर्द रात में
औसारे बैठ कर
अलाव है धोंकता l
49
"रूह चिड़िया !"
50
समय सूर्य
बिना रुके ही उगे
धूप चिड़िया संग
उड़ता फिरे
सागर उतरे तो
साँझ के रंग घोले l
51
मौन समय
जीवन को बुनता
रूह का रथ
दौड़ लगाता है तो
क्षणभंगुर देह
कफन है चुनता l
52
समय यम
जीवन लहर में
भँवर ला -डुबाये
रूह चिड़िया
जीवन गगन में
फुर्र हो उड जाये l
53
तन का घोडा
भागते जीवन में
समय वल्गा थाम
रुक जाये तो
रूह निकल कर
चिड़िया बन जाये l
सैदोका
54
मोती हों जैसे
धरा पर गिरके
फूलों में जा जड्तीं
रेशमी बूँदें
कजरे बदरा से
वर्षा की यूँ झरती
55
आँखें तलैया
सपनो की कश्ती में
तैरता मन डोला
नींद भर के
मौसम से यूँ बोला
मेरे संग भिगो न
56
मन मौसम
ठंडी हवाओं में था
सावनी मौसम सा
उडा उडा सा
फूलों पे तितली सा
डोलता रस रंग पी
57
मरुवा फूले
मोगरा फूलों संग
पुरवा के पंखों पे
मनवा झूमे
कोयल सा मन भी
अमराई में डोले
58
आँखें गीली सी
यादों के झूलों पर
सपनो संग झूली
मन शहर
पाखी सी पहुंची थी
भीगे से दिन लिए
डॉ सरस्वती माथुर
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