"निम्बोरियों के मौसम!"
जब आते थे
नीम पर
निम्बोरियों के मौसम
मन महक कर
उड़ने लगता था
चैत की लम्हों के साथ
नीम पातों की
सुकून देती
हवाओं पर
खनक चाँद और
अल्हड शोख
चंचल चुलबुली
चांदनी पसर कर
आत्मीय निगाहों से
देखती थी तो
हरी हुई
धरा के साथ
हठयोगी से बैठे
नीम की टहनियों पर
पंछी भी
झूम उठते थे !
2
"झरने लगीं निम्बौरियाँ !"
मुस्कराया नीम
चैत के आह्वान पर तो
हवा में फैल गयीं
निमिया की पुरवाई
नीड बनाते
पाखियों की
सुनाई दी शहनाई
लम्बी दोपहरी में
झरने लगीं निम्बौरियाँ
चादर बिछ गयी
नीम पातों की
दुबलाए नीम की
झुक गयी टहनियाँ
सूर्य की चमकीली
धूप सहलाने लगीं
मौसम मन के
आँचल पर खुल गए
सपनो के पंख लगा
मखमली नींद पर
उड़ने लगीं तितलियाँ
नीम के निंदाये
अलसाए फूल
झरने लगे
मन के आँगन में
सुवास भरने लगे
हवा की
कश्तियों पे बैठ
चाँद उतरा
रात की लहरों पर तो
कह उठीं रात की लहरें कि
लो चैत आगया
निंदाये नीम को
जगा गया
डॉ सरस्वती माथुर
3
कुछ दिन बाद जब
खोली पोटली
तो छिलके गली गुठलियाँ
सूख चुकी थीं
देर तक सूखी पुरानी
नीम की निम्बोरियाँ
देखती रहीं थी जो
उम्र की चौखट पर
एक कहानी कहती थी
जाने क्या सोच कर
फिर दबा दी
मन चबूतरे की माटी में और
समय पानी से सींचती रही वर्षों
एक दिन ठंडी हवा के
झोंके से जाग कर उठी
तो देखा मन चौबारे पर
एतबार का नीम
पूरी हरियाली के साथ
उग कर फिर
लहरा रहा था
पहले ही की तरह
बुढ़ाई उम्र के
जब आते थे
नीम पर
निम्बोरियों के मौसम
मन महक कर
उड़ने लगता था
चैत की लम्हों के साथ
नीम पातों की
सुकून देती
हवाओं पर
खनक चाँद और
अल्हड शोख
चंचल चुलबुली
चांदनी पसर कर
आत्मीय निगाहों से
देखती थी तो
हरी हुई
धरा के साथ
हठयोगी से बैठे
नीम की टहनियों पर
पंछी भी
झूम उठते थे !
2
"झरने लगीं निम्बौरियाँ !"
मुस्कराया नीम
चैत के आह्वान पर तो
हवा में फैल गयीं
निमिया की पुरवाई
नीड बनाते
पाखियों की
सुनाई दी शहनाई
लम्बी दोपहरी में
झरने लगीं निम्बौरियाँ
चादर बिछ गयी
नीम पातों की
दुबलाए नीम की
झुक गयी टहनियाँ
सूर्य की चमकीली
धूप सहलाने लगीं
मौसम मन के
आँचल पर खुल गए
सपनो के पंख लगा
मखमली नींद पर
उड़ने लगीं तितलियाँ
नीम के निंदाये
अलसाए फूल
झरने लगे
मन के आँगन में
सुवास भरने लगे
हवा की
कश्तियों पे बैठ
चाँद उतरा
रात की लहरों पर तो
कह उठीं रात की लहरें कि
लो चैत आगया
निंदाये नीम को
जगा गया
डॉ सरस्वती माथुर
3
"एतबार का नीम !"
एतबार के नीम से
झड़ी कुछ निम्बोरियाँ
आशाओं की
बांध उन्हें मन पोटली में
मैंने तजुर्बे लिए
एतबार के नीम से
झड़ी कुछ निम्बोरियाँ
आशाओं की
बांध उन्हें मन पोटली में
मैंने तजुर्बे लिए
कुछ दिन बाद जब
खोली पोटली
तो छिलके गली गुठलियाँ
सूख चुकी थीं
देर तक सूखी पुरानी
नीम की निम्बोरियाँ
देखती रहीं थी जो
उम्र की चौखट पर
एक कहानी कहती थी
जाने क्या सोच कर
फिर दबा दी
मन चबूतरे की माटी में और
समय पानी से सींचती रही वर्षों
एक दिन ठंडी हवा के
झोंके से जाग कर उठी
तो देखा मन चौबारे पर
एतबार का नीम
पूरी हरियाली के साथ
उग कर फिर
लहरा रहा था
पहले ही की तरह
बुढ़ाई उम्र के
आकाश पर!
डॉ सरस्वती माथुर
चक्रव्युही सी
"नीमगंध हवाएं!"
नीम पात पे
कोयलिया बोलती
रस घोलती
रसपगी सी
झरती निम्बोरियाँ
मौसम बुलातीं
कांच की
नीम पात पे
कोयलिया बोलती
रस घोलती
रसपगी सी
झरती निम्बोरियाँ
मौसम बुलातीं
कांच की
चूड़ियों सी हवा
पतियाँ बजाती
चक्करघिनी मन को
भंवर सा लहरा
सिन्धु में डूबाती
नीमगंध हवाएं
भंवरों की गुंजन सी
लोरियाँ सुनातीं
डॉ सरस्वती माथुर
पतियाँ बजाती
चक्करघिनी मन को
भंवर सा लहरा
सिन्धु में डूबाती
नीमगंध हवाएं
भंवरों की गुंजन सी
लोरियाँ सुनातीं
डॉ सरस्वती माथुर
2
"नीम की छाँव !"शैशव के दिन बीते
नीम की छाँव
याद बहुत आता है
गंधाया गाँव
नीम की छाँव
याद बहुत आता है
गंधाया गाँव
गोधुली में रचे
गायों के पाँव
चौपालों में खेलते
शतरंजी दाँव
गायों के पाँव
चौपालों में खेलते
शतरंजी दाँव
धूप की लुकाछिपी
अलमस्त बदलाव
बारिश की बूंदों से
छपछपाते दरियांव
अलमस्त बदलाव
बारिश की बूंदों से
छपछपाते दरियांव
चक्रव्युही सी
मायावी सिन्धु में
मन के भंवर डोलती
यादों भरीं नाव l
डॉ सरस्वती माथुर
यादों भरीं नाव l
डॉ सरस्वती माथुर
"नीम की छाँव !"
शैशव के दिन बीते
नीम की छाँव
याद बहुत आता है
गंधाया गाँव
गोधुली में रचे
गायों के पाँव
चौपालों में खेलते
शतरंजी दाँव
धूप की लुकाछिपी
अलमस्त बदलाव
बारिश की बूंदों से
छपछपाते दरियांव
चक्रव्युही सी
मायावी सिन्धु में
मन के भंवर डोलती
यादों भरीं नाव l
डॉ सरस्वती माथुर
शैशव के दिन बीते
नीम की छाँव
याद बहुत आता है
गंधाया गाँव
गोधुली में रचे
गायों के पाँव
चौपालों में खेलते
शतरंजी दाँव
धूप की लुकाछिपी
अलमस्त बदलाव
बारिश की बूंदों से
छपछपाते दरियांव
चक्रव्युही सी
मायावी सिन्धु में
मन के भंवर डोलती
यादों भरीं नाव l
डॉ सरस्वती माथुर
"नीम उपहार!"
प्रकृति में था
नीम उपहार
हमने बना दिया
उसे व्यापार
नीम उपहार
हमने बना दिया
उसे व्यापार
पल्लव तोड़े
तोड़ी निबोलियां
छोटी छोटी बनायी
उसकी गोलियां
किया नृशंस प्रहार
तोड़ी निबोलियां
छोटी छोटी बनायी
उसकी गोलियां
किया नृशंस प्रहार
सांस्कृतिक तरु था
धरा थी ओढ़ती
हरा लहरिया
पवन धार फैलाती
शीतलता अपार
धरा थी ओढ़ती
हरा लहरिया
पवन धार फैलाती
शीतलता अपार
छाया चितेरी
तोड़ मानव ने
तोड़ मानव ने
दोहन कर किया
भौतिक प्रचार l
डॉ सरस्वती माथुर
भौतिक प्रचार l
डॉ सरस्वती माथुर
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें