सोमवार, 24 नवंबर 2014

अनुभूति की रचनाएँ 2011 तक

4–ifr Aayaa basant
basant kI zMDI hvaa
fUlaaoM kI mahk ko saaqa
mana kao Jarnao kI trh
igaratI hO tao
]D,a lao jaatI hO
satrMgaI hvaaeM
baadlaaoM kI trh
QartI ko par
saca @yaaoM BaUla jaato hOM hma ik
saaxaI hO [ithasa
AaOr jaanata hO ik
basant tao BaItr kI yaa~a hO
jaao baahr lao AatI hO tba
samaMdr¸ naidyaaM¸ JaIla
Sahr¸ gaaMva¸ caaOpala
phaD,¸ icanaar¸ AmalataSa¸ plaaSa
saBaI mauskranao lagao hOM
gaIt gaanao lagato hOM
AaOr maaOsama sauK- hao
Daolanao lagata hO
pat pat pr
SaaK SaaK pr
mau> mana sao tba hma BaI
AlhD, pirndo sao
]D,nao lagato hOM
baasantI ]nmaadaoM maoM
DUba DUba jaato hOM
daonaaoM haqaaoM sao
]laIca kr
mahuAa¸ TosaU¸ inaimayaa
madmast hao¸ basant kI kstUrI
gaMQa baaMTto hOM
[saI maIzo rsavantI baasantI
maaOsama kI hvaa ko Aar par
fOlao saaOMdya- EaI ko AvatrNa kao
hma basant khto hOM.

—Da^ sarsvatI maaqaur
5–basant Aayaa
mana ko maaOsama pr
Aayaa basant
gaulaaba pr Aaosa baMUd saa
Cayaa basant
bauna bauna kr naoh tar
svapna SaaK pr naID, banaa
klahMsa saa itrta
gahrayaa basant
t$ pat pr
saubah kI phlaI ikrNa saa
sarsarayaa basaMt
kUktI kaoyala saa
madmast maQaup dla saa
fUla fUla pat pat pr
Barmaayaa basaMt
snaoh ]pvana maoM
maQau?tu bana
?turaja
khlaayaa basaMt
mana ko maaOsama pr
Aayaa basaMt

—Da^ sarsvatI maaqaur
6–manaBaavana basant
maaOsama ko
laala pIlao hro
pirQaanaaoM pr Aayaogaa
basant¸ tba phcaanaoMgao hma
AicanhoM poD,aoM ko hro ptaoM kao
iKlao fUlaaoM kao
maMD,rato BaMvaraoM kao
baaOrayao Aama jaba
lata¸ gaaC¸ pr JaUmaoMgao
maaM kI gaaod sao
dUba¸ Axat¸ hrI ThnaI
gaMQa¸ pvana baasantI Saama pr
tOrMgao¸ tba ibanaoMgao hma
caMdna mana¸ kMcana QaUp
TosaU vana AaOr
manaBaavana basant
jaOsao AakaSa sao
ifsalato bagaIcao haoM
AaOr ApnaI
AMjauiryaaoM maoM raoko haoM
tptI QartI pr
hiryaalaI kI baMUdaoM kao
tba AGya- doMgao hma
pUra ivaYaGaT laokr
AmaRt kI JaarI ka
kosar kI @yaarI ka
mahkI fulavaarI ka
maaOsama ka ik
basant Aayaa hO
manaBaavana saa.

—Da sarsvatI maaqaur
4–iKlanao dao KuSabaU phcaanaao

maOM nahIM hUM
saagar saI KarI
maOM tao nadI kI maIzI
Qaar hUM
Bavasaagar ka jvaar hUM
ABaI AjanmaI baccaI hUM
r> sao saraobaar hUM
mauJao iKlanao dao KuSabaU phcaanaao maorI
ifr doKao maorI xamataeM
tumharI ApoxaaAaoM pr
KrI ]t$MgaI
[sailae khtI hUM
mauJao Aanao dao
naID, sao inaklaI
navajaat icaiD,yaa hUM
pr fD,fD,anao dao
prmpraAaoM kI kOMcaI sao
maoro pMK na kaTao
baOrMga ica{I saa
mauJao na CaMTao
maOM tao JarNaaoM kI klakla krtI
saumaQaur Aavaaja hUM
dUr tk saunaa[- donao vaalaa
ivaSvaasa Bara saaja hUUM
mauJao tuma Aa%maivaSvaasa ko
svar dao nahIM iksaI pr
banaUM baaoJa eosaa var dao
basa svaPna tumharo saakar k$M
saaqa-k jaIvana ka saar banaUM
Gar¸ pirvaar¸ samaaja AaOr
doSa ka naama k$M
Aaja mauJao
[sa vaMdnaIya BaUima pr basa
[tnaa saa AaQaar dao
jaInao ka AiQakar dao
AiQakar dao¸ AiQakar dao.

—Da^ sarsvatI maaqaur
26–gaunagaunaI QaUPa
gaunagaunaI QaUPa
tuma BaI sacaiktnaI AkolaI haomaOnao A@sar doKa hO tumho
PahaD,aMo
poD,aoM pr
]dasa saI PasarI rhtI haosaubah ko p`a^MgaNa maoM
ek igalahrI saI
tuma kutr kutr kr
KatI
hao samaya ko fla kao
AaOr
fudk fudk krcaZ, jaatI hao
Saama
ko poD, Par
gaunagaunaI QaUPa, Aaja tumho batlaanaa haogaaik AakaSa ka haiSayaa CaoD, krtuma Acaanak ]D, jaatI hao iksa parÆ
Da^ sarsvatI maaqaur
–svaagat sadI- ka
gaunagaunaI QaUp maoM
QauAaM QauAaM saI GaUma rhI hO
mau#airt saI purvaa[-
navavaYa- ko Waro do#aao
manaBaavana saI sardI Aa[-
Alaava kI lahraoM pr
ipGalatI kaohro kI prCa[-
ittlaI ittlaI maaOsama pr gaIt saunaatI
Xard ?tu kI Xahnaa[-
navavaYa- ko Waro do#aao
manaBaavana saI sardI Aa[-
Aasamaana hO jamaa jamaa saa
puiYpt vaRxaaoM pr saaoyaa saa
saubah ka kaohra Ganaa Ganaa saa
]naIdoM saUya- sao igartI
Aaosa kI
baUMdao sao ilapTa
saurma[- saa ]jaalaa
qamaa qamaa saa
jaaga ]za
mau@t Baava sao
jaba maaOsama nao ksamasaa kr
Amara[- maoM laI AMgaDa[-
navavaYa- ko Waro do#aao
manaBaavana saI sardI Aa[-

Da^ sarsvatI maaqaur
...........................
नव वर्ष का चाँद


गिलहरी सा फुदकता
ख़त्म हो रहा था
दिसम्बर का आखिरी दिन
शाखों पर चढ़ते हुए
शाम के आँगन से
ऊपर नभ में चमक रहा था
नववर्ष का चाँद और
पछुआ हवा के साथ
उतर रही थी- अल्हड चाँदनी
मुस्कराते हुए- धीरे- धीरे
नए लक्ष्य नए हौंसले,
नए काफिले के साथ
नए वर्ष का अभिनन्दन करने !

-डॉ सरस्वती माथुर
लक्ष्मी को हैं पूजते
   


 

लक्ष्मी को हैं पूजते, हंसवाहिनी संग
दीपों के त्यौहार का, है आलोकित रंग l

दीपों के उजियार ने, किया तिमिर है दूर
दीपमालिका ने भरा, मन- जीवन में नूरl

दीप वर्तिका जब जले, कर दे दिव्य प्रकाश
रहे सितारों से सदा, ज्यूँ रोशन आकाश l

कमला पूजन हम करें, काम करें सब नेक
जन जन को सहयोग दें, पर रख बुद्धि विवेक l

कमला का वैभव लिये, पर्व अनूठा ख़ास
आओ हिलमिल बाँट लें, मन में हो उल्लास l

उत्सव के माहौल में, माँ की जयजयकार
वन्दनवारेँ प्रेम की, जोड़ें मन के तार l

लक्ष्मी रूप प्रकाश का, सरस्वती है साथ
मानव मन इक साथ हों, सभी बढाओ हाथ l

माँ कमला की अर्चना, दीपों का उपकार
इस प्रकाश के पर्व पर, तमस भी गया हार !

-डॉ सरस्वती माथुर

२८ अक्तूबर २०१३
                                                                                         विजयदशमी की कविताओं का संकलन
 
 
रावण का था मान (दोहे)

स्वर्ण जडित लंका बसी रावण का था मान
पवन पुत्र ने फूँक दी जला दिया अभिमान l

रावण का पुतला जला, विजयादशमी-पर्व
परम सत्य विजयी हुआ, हुआ राम पर गर्व l

राम नाम की नाव में, होगा बेडा पार
खो जाओ प्रभु धाम में, यह जीवन का सार l

राम हृदय ने जान ली, वानर दल की भक्ति
मातु सिया की खोज मेँ, सभी लगा दी शक्ति l

विजयी होके राम ने, किया दशानन अंत
देने को आशीष थे, संग में सारे संत ।

मने सदा सद्भाव से, मनभावन त्यौहार
पूज राम को फिर करो, उनकी जयजयकार l

मिटे पाप संताप अब, आया पावन पर्व
रावण बध से मिट गया, उसका सारा गर्व ।

डॉ सरस्वती माथुर


 
© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है


यशोदा का नंदन
(क्षणिकाएँ)
     











 

१.
ब्रज की माटी
यशोदा का नंदन
जैसे चन्दन
राधा जी संग
रास रचाता
कण कण में बसता
कान्हा का चितवन

२.
बाँसुरी बजा
नंदकिशोर खड़े
राधिका संग
वन उपवन हैं
विमुग्ध बड़े

३.
आज भी रहती है
कदम्ब की
छैयाँ के तले
बाँसुरी की जलतरंग
स्वर्ग सा मधुरिम नंदनवन लगता है
हरी हरी डालों से
शोभित मथुरा वृन्दावन !

-सरस्वती माथुर
२६ अगस्त २०१३
हाइकु
रात की स्याही
दूधिया जुगनू से
चंपा के फूल

चम्पई फूल
ऋतु के द्वार पर
रुका सावन

चंपा की गंध
रातरानी के संग
मीठी सी नींद

-डॉ सरस्वती माथुर
फिर लगा गंगातट पर मेला
 

 
फिर लगा गंगा तट पर मेला
सभी कुछ था यहाँ

दूधिया रौशनी में नहाते
राम के गुण गाते
बेशुमार भक्त
मेले में था पर्यटकों का भी रेला
दूध, जलेबी, छोले
पकौड़ी के ठेले

सजे बच्चों के
रंग बिरंगे गुब्बारे खिलौने
मदारी बंदरों का
तमाशा देखते लोग
कहीं तोते से भविष्य पूछते
चहल पहल का
चहुँ ओर था रेला

पर वो जल जो चमकता था
गमगीन था
संवेदना से क्षीण था
वहाँ आधुनिकता का
शोर था
नहाती गाती बालाओं के
चित्र उकेरता मीडिया था

अगर कुछ नहीं था
उन लहरों में तो
पछाड़ खाता उछाह नहीं था
चारों तरफ
देश विदेश से आये लोग थे
संस्कृति का लेखा जोखा
लेने वाले महारथी भी थे

लेकिन कुछ नहीं था तो
गंगा नहाने के पीछे की
भावना नहीं थी
न ही उस भावना को
समेटने वाला रचनाकार
शिल्पकार था

यह मेला तो बस
सरकार पर भार था
दिखावे का आचार व्यवहार था
ऐसे में गंगा कहाँ नहाओगे ?

डॉ सरस्वती माथुर
१७ जून २०१३
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मातृभाषा के प्रति

मैं हिंदी हूँ!
मैं हिंदी हूँ
बहुरंगी भाषा हूँ
पारदर्शी और भोली हूँ
रंगीन भाषाओँ के
पक्षियों की मैं
मिली जुली चहचहाहट हूँ
अलग अलग प्रान्तों का
मुखौटा नहीं ओढती
सभी बोलियाँ
मोतियों सी
अपनी माला में
पिरोती हूँ
पंख लगा पाखी सी
हिन्दुस्तान पे उडती हूँ
भावों के गीत सुना
बस भाषाओँ से
छंद निचोड़ती हूँ और
दिलों को जोडती हूँ
मैं हिंदी हूँ !

डॉ सरस्वती माथुर

१० सितंबर २०१२
 
 

मातृभाषा के प्रति

मैं हिंदी हूँ!
मैं हिंदी हूँ
बहुरंगी भाषा हूँ
पारदर्शी और भोली हूँ
रंगीन भाषाओँ के
पक्षियों की मैं
मिली जुली चहचहाहट हूँ
अलग अलग प्रान्तों का
मुखौटा नहीं ओढती
सभी बोलियाँ
मोतियों सी
अपनी माला में
पिरोती हूँ
पंख लगा पाखी सी
हिन्दुस्तान पे उडती हूँ
भावों के गीत सुना
बस भाषाओँ से
छंद निचोड़ती हूँ और
दिलों को जोडती हूँ
मैं हिंदी हूँ !

डॉ सरस्वती माथुर

१० सितंबर २०१२
 

वर्षा मंगल
 
घटाटोप से
नभ पे छितराए
बूँदों के तार

तरु शाखों पे
कोयल कूके-कुहू
डोले बयार

ताल पे झूमे
मोर-मोरनी संग
लगे त्यौहार

पाखी सा उड़े
भीगा- भीगा सा मन
नभ के पार

धरा ने ओढ़ी
हरी हरी चूनड़ी
पी- जलधार
-डॉ. सरस्वती माथुर





मेरा भारत
 विश्वजाल पर देश-भक्ति की कविताओं का संकलन
 
देश के साथ यात्रा
आओ मेरे देश
एक दीप की तरह
ज्योतित होकर
साथ चलो मेरे क्योंकि
कोई इंतज़ार नहीं करता
तारीखों के ठहर जाने का
हम साथ होंगे तो
देश के लिए
इतिहास बनायेंगे
जहर का प्याला पीकर
देश के लिए
अमृत जुटाएँगे
फिर मूक हो जाएँगे
ताकि देश गा सके
विश्वास के गीत
आस्था और
सदभाव के गीत
हम चलते चले जायेंगे
दूर की यात्राओं में
साफ़ सुथरी
सुबह की तरह
गुजर जायेंगे
अंधी सुरंग से
रोशनी की हवा लेकर
जरुरत हुई तो
अंधे हो जायेंगे ताकि
देश को नेत्र मिलें
प्रतीक्षा करेंगे
मौत की
देश को जिलाने में
आओ मेरे देश
साथ चलें
एक दीप की तरह
ज्योतित होकर !

डॉ सरस्वती माथुर
१३ अगस्त २०१२

 
 ईश का द्वार
प्रकृति उपहार
गंगा की धार

ममता भरी
मन्दाकिनी की धार
हमें सींचती

-सरस्वती माथुर
नए वर्ष की अगवानी में
 

देखो देखो
शीत का ओढ़ दुशाला
सस्मित विस्मित सा
पथिक सा
... चला आ रहा है
शहर गाँव- बस्ती
नदी- खेत- पोखर पर
चिड़िया सा
चहचहा रहा है
यह मंजुल प्रकाश भर
पंखुड़ियों को धरा पर
बिखरा रहा है
जाफरानी हवाओं सा
डाल- डाल पात- पात पर
तितली सा मंडरा रहा है
वसुधा में कर परिवर्तन
कोमल वत्सल सा
शीत अविरल सा
नदी, बादल
समुन्द्र, पहाड़ पर
ओस कण की
बन्दनवार सजाकर
आत्ममुग्ध सा
स्वच्छ शुची उद्गम ले
नववर्ष मनभावन सा
आशाओं की किरणों का
हाथ थाम मुस्कराता
चला आ रहा है !

- सरस्वती माथुर
 
© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है
 
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