शुक्रवार, 21 नवंबर 2014

"शरद ऋतु आई !"

"शरद ऋतु आई !"

शरद ऋतु आई

 नूतन रंगत लहराई

धूप की चिड़िया

 गुनगुन करती

 आँगन में मँडराई

 मीठी सी ठिठुरन ने

 प्रकृति में ली

  मस्त सी  अंगड़ाई

फूलों पर रंगत

 रंगों की छाई

तो  तितली मुस्कराई

उगती भोर ने

ओस बूंदों की लड़ी

पत्तियों को पहनाई 

शरद ऋतु आई
 नूतन रंगत लहराई

 गाँव शहर चौपालों पर
 शिशिर ने जाजम बिछाई
  धूप ने काँगड़ी जलाई
शरद ऋतु आई
 नूतन रंगत लहराई



 कोमल कपास से उड़े

 सौनचिरैया से फाहे 

चली सर्द सी पुरवाई  

 नवसंचार  भर कर तब

 मौसम ने ठिठुरन में

 धूप अलाव जलाई !
 शरद ऋतु आई

 नूतन रंगत लहराई

डॉ सरस्वती माथुर

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