"मन कैसे गाना
गाए!"
सावन सूना,
भादों सूना
मन कैसे गाना गाए?
ना रोटी है खाने को अब
ना हाथों में पैसा है
उम्मीदों पर बर्फ जमीं है
मौसम ही कुछ ऐसा है
बेमौसम में
कोई कब तक
अपने को यूं भरमाए
पतझड़ ने साजिश रच कर
तरुओं को ठूठ बनाया है
तेज धूप ने कतरा-कतरा
उनको खूब सुखाया है
आश लगाये
अब बसंत की
मन अपने को सहलाए l
डॉ सरस्वती माथुर
सावन सूना,
भादों सूना
मन कैसे गाना गाए?
ना रोटी है खाने को अब
ना हाथों में पैसा है
उम्मीदों पर बर्फ जमीं है
मौसम ही कुछ ऐसा है
बेमौसम में
कोई कब तक
अपने को यूं भरमाए
पतझड़ ने साजिश रच कर
तरुओं को ठूठ बनाया है
तेज धूप ने कतरा-कतरा
उनको खूब सुखाया है
आश लगाये
अब बसंत की
मन अपने को सहलाए l
डॉ सरस्वती माथुर
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