उड़ती हवाएँ हैं
चीलों के जैसी
धूप नोचती
सूखी नदिया पर
सूरज फेंकती
पत्तों संग
प्यास बुझाती
सागर की ओर
सरसर करती
मुड जाती है
फिर नमी सोंख कर
तट की रेत पर
जम कर सुंदर
घरोंदे बनाती है
इन घरोंदों में
नए ख्वाब सजाती हैं
इन ख्वाबों को
गतिमान रखने को
नदी सी बहती जाती है
कभी मौसम बन
शोर मचाती है
कभी रेशमी फूलों पर
रंग फैला कर
तितली सी उड जाती है !
डॉ सरस्वती माथुर
चीलों के जैसी
धूप नोचती
सूखी नदिया पर
सूरज फेंकती
पत्तों संग
प्यास बुझाती
सागर की ओर
सरसर करती
मुड जाती है
फिर नमी सोंख कर
तट की रेत पर
जम कर सुंदर
घरोंदे बनाती है
इन घरोंदों में
नए ख्वाब सजाती हैं
इन ख्वाबों को
गतिमान रखने को
नदी सी बहती जाती है
कभी मौसम बन
शोर मचाती है
कभी रेशमी फूलों पर
रंग फैला कर
तितली सी उड जाती है !
डॉ सरस्वती माथुर
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