सोमवार, 24 नवंबर 2014

तांका संकलन

ताँका
डॉ सरस्वती माथुर 
1
राधा अधूरी
घनश्याम के बिना
निष्काम प्रेम
कृष्णमय है मन
चंचल चितवन l
2
मुझे न बुला
बाँसुरी तान सुन
गोपियाँ  हँसें
राधा है समझाए
कृष्ण संग मुस्काए l
3
राधा बौराए
वंशी की धुन सुन
बावरी डोले
बन में आकुल सी
कृष्णमय हो जाए l
4
पुष्प चढ़ाऊँ
आजादी पर्व पर
एकता पिरो
गूँथ मोती की माला
मेरा देश निराला ।
5
कोशिश करें
प्यार की सुगंध से
मिलजुलके
देश को महकाएँ
सद्भाव ही सिखाएँ ।
6
अँगुली थामे
पथरीली राहों पे
चलना सीखा
कैसे चुकाऊँ मोल
स्नेह पथ अनमोल
7
घर- दीवारें
जोड़ी मन तारों से
विश्वास -भरा
आकाश बना पिता
जमीं पे किया खड़ा ।
8
मन -संस्कृति
सभ्यता की नींव भी
लोक भी पिता
जीवन -द्वार पर
खड़े - मसीहा जैसे ।
9
तुम्हारी गोदी
मेरा घर -आँगन
तुम्हारा मन
मंदिर का दर्शन
शत शत नमन ।
10
पिता - चरण
बेटे -बेटी के लिए
ऐसी चौखट
जहाँ दिया जलाएँ
तो मन हो रोशन I
11
मन -आँगन
अँधेरा हटाकर
रोशनी भर
जलता दिया पिता
मसीहा सा लगता ।
12
नींदे पीकर
रात में जुगनू से   
डोलते रहे
नैनो में प्रीत लिये
रँगीले से सपने l
13
मन अकेला
यादों की कश्ती लेके
दूर निकला
कुँवारे सपने ले
नैन कोख से जन्मा l
14
सत्य- अहिंसा
प्रेम सुधा बरसा
मातृभूमि में
लहराया है झंडा
अमन हमें प्यारा l
15  
कोशिश करें -
प्यार की सुगंध से
मिलजुल के
देश को महकाए
द्भाही सिखाएँ l
16
नये साल की
सतरंगी किरणें
पड़ी धरा पे
जागी चिड़िया गाती
स्वागत नवगान l
17
परायापन
घनी पीड़ा दे गया
मन में एक
जर्द- सा दर्द देके
नश्तर चुभो गया !
18
स्वार्थघृणा का 
 देखो तो  बोलबाला  
आया समय
है कितना  निराला  
गैर से  रिश्ता आला!
19
पर्व अनूठा
मधुर रस घोले
ज्ञान ज्योति से
आस्था की ज्योति जला l
20    
मुँडेर पर
शिशिर भोर जागी
मयूरी धूप
दिन भर भागती
सागर में जा लेटी ।
21
सुर्ख भोर थी
नभ झूलना झूले
झिलमिलाती
धरा के आँगन पे
मोती बिखेरती  ।
22
उनींदी रात
चाँदनी नभ पर
निर्झर बहे
तारों के संग संग
मनवा संग दहे l
23  
हवा के संग
चाँदनी का आँचल
धरा पे फैला
रात कपाट खोल
भोर सीटी बजाए l
24
मन को छुए
चिड़िया की चहक
जाने क्या कहे
शहर की भीड़ में
छज्जे ढूँढ़ती डोले l
25
प्रेम अगाध
संतानों के साथ है
माँ की दुआएँ
है अनूठी ये बात
रहें दुःख में साथ l
26 
कठिन पथ
थाम जीवन -रथ
पार कराए
प्रगति- पथ पर
माँ ही लक्ष्य दिखाए l
 27
प्रेम छंद के
पिरो करके गीत
घर आँगन गूजा
मधुर राग
सज़ धज के आया
प्रिय, देखो न फाग l
28 
सपनो -भरी
रंगों की दुनिया है
गूंजे होली के राग
प्रेम के संग
आओ भी प्रियतम
खेलें हम भी फाग  ।
29
होली है आई
शीतल मधुमय सी
प्रेम रंग सजो
तन रंग लो
फागुन की बेला है
मन को भी रंग लो l
30
भीगा सा मन
फागुनी संबोधन
आशाओं के गुलाल
बिखरे रंग
इन्द्रधनुषी फाग
 मधुरिम से राग l
31
बेटी कोयल
घर माँ का बासंती
चहके बेटी
लगती रसवंती
भाग्य से है मिलती
32
सौन चिरैया
आई मेरी बगिया
ओ बिटिया तू
आँगन की चिड़िया
प्यारी मेरी  गुडिया  
33
बिटिया बोली-
माँ ! मधुमय तेरा
घर -आँगन
खेलूँगी छमछम
कर तेरा दर्शन
34
माँ का अँगना
छमछम डोलूँ मैं
बाबुल मेरे !
बताओ क्या बोलूँ मैं
जाना दूर, रो लूँ मैं ?
35
आज की नारी 
जलती है- अखंड-
दीप ज्योति -सी
स्नेह सदभाव की
रोशनी उड़ेलती I
36 
सृक नारी
लुटाती है मुस्कानें
दर्द पीकर
 खुशियाँ बरसाती
भर कर उमंगें  
 37
बंदनवार
हमारे घर द्धार
सजी है नारी
जीवन- उत्सव में
प्रेम गीत बुनती I
38
एक झरना
है नारी की मुस्कान
इन्द्रधनुषी
उसकी पहचान,
चाहे- मान- सम्मान
39
चुप रह के
बोलती है नारी तो
पिंरे में भी
उन्मुक्त डोलती है
मिठास घोलती है
41
समय -रथ
अनथक भागता
पाहुना बन
जीवन बसंत में
रगों को भरता है l
42
अब कहाँ है
जीवन निहारता ?
रोशन चाँद
अँधेरी सी रातों में
चाँदनी बरसाता l
डॉ सरस्वती माथुर
43
उड़ा मन भी
पाखी- सा आकाश में
स्वप्न- से तारे
टिमटिमाते देख
लौटा नहीं नीड में  
44
संध्या नीड में
लौटे थके परिंदे
तेज हवाएं
जाने कहाँ ले गईं
कोई न जान सका  
45
रात सितार
बजाता रहा चाँद
चाँदनी बैठी
उनींदी सुनती सी
ख्वाब बुनती रही  
46
खिले सुमन
तितली के स्पर्श से
रंगीन होके
पंखुड़ियाँ फैलाते
समर्पित हो जाते  
रोशनी को टटोले l
47
उड़ा मन भी
पाखी- सा आकाश में
स्वप्न- से तारे
टिमटिमाते देख
लौटा नहीं नीड में  
48
संध्या नीड में
लौटे थके परिंदे
तेज हवाएं
जाने कहाँ ले गईं
कोई न जान सका  
49
रात सितार
बजाता रहा चाँद
चाँदनी बैठी
उनींदी सुनती सी
ख्वाब बुनती रही  
50
खिले सुमन
तितली के स्पर्श से
रंगीन होके
पंखुड़ियाँ फैलाते
समर्पित हो जाते  l
51
राधा अधूरी
घनश्याम के बिना
निष्काम प्रेम
कृष्णमय है मन
चंचल चितवन  
52
राधा बौराए
वंशी तान सुनके
बावरी डोले
मधुवन घूमती
कान्हा ओ कान्हा!’ बोलेl
53
मुझे न बुला
बाँसुरी तान सुन
गोपियाँ हँसें
राधा है समझाए
कृष्ण संग मुस्काए ।
54
राधा बौराए
वंशी की धुन सुन
बावरी डोले
बन में आकुल -सी
कृष्णमय हो जाए  ।
55
यमुना -तीरे
राधामय हो कृष्ण
बंसी बजाएँ
राधा कृष्ण को देंखें
रास- रचैया खेलें ।
 56
मन को जोड़ा
घोल के मधुरस  
राखी आई
आशीष देता भैया
बहिन ले बलैया
57
दिल जुड़ेगा
राखी के स्नेह तार
निरखे भैया
बाँधती बहिन तो
रसपगे तारों से
58
भाव पावन
रसपगा सावन
बँधेगा मन
स्नेह बरसा कर
राखी के पर्व पर l
59
अनुभूति से
आस्था के पर्व पर
भाई- बहिन
रसधार में भीगे
राखी त्योहार परl
60
भाई के नैन
सात सागर पार
राखी पर्व पे
भर- नीर बहाए
बहना याद आये l
61
नारी की आभा
 सृष्टि के  सूर्य- सी है
 उजास लाती
 चिड़िया-सी उड़ती 
  पंख फैला नभ में 
 62
 सुधि- सपने
नींद नदी में बहे
 बिना रुके ह़ी
अविराम बहते      
सागर जा ठहरे l
63
सुबह सूर्य
धूप भरी नदी में
तैरता रहा
साँझ जब वोरुका
सागर लाल हुआ ।
64
ऋतु थी प्यासी
तितली- सी उड़ती

रस पीकर
कलियों से खेलती
रसपगी हो जाती ।
65
घुँघरू बजा 
फागुनी हवाएँ भी
सुर मिलाके
चिड़िया संग डोली
हरी -भरी धरा पे ।
 
 
 

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