दर्शनीय बाज़ार जयपुर
के
पर्यटन के क्षेत्र में राजस्थान को विश्व मानचित्र में प्रमुखता से जाना जाता
हैl यहाँ के शहरों में जयपुर का विशिष्ट स्थान है l सम्पूर्ण रूप से सुव्यवस्तिथ नियोजित शहर के रूप में विश्वविख्यात जयपुर की
खूबसूरती कवि की सुंदर परिकल्पना प्रतीत होती है ! आंकड़ों की बानगी पर गौर किया
जाये तो भारत में आने वाला हर तीसरा पर्यटक जयपुर अवश्य आता हैl जेम एंड ज्वेलरी व्
रत्नाभूषणो के प्रमुख केंद्र होने के नाते व्यापारियों की आवक भी दिन- ब- दिन बढ़ने
लगी है lयहाँ की ज्वेलरी और हस्तशिल्प दुनिया भर में पसंद किये जाते हैं l
यहाँ के दर्शनीय बाज़ार आज भी सजीव हैं और सैलानियों को आकर्षित करते
हैं.... यह कह कर की "पधारो म्हारे देश"...जो भी पर्यटक यहाँ आता है, चिरस्थायी
स्मृतियाँ लेकर ही लौटता है! इस शहर का जन्म सन १७२७ में मात्र २ लाख लोगो को बसाने
के लिए किया था और आज यही शहर फैशन की दुनिया में एक चमकीले सितारे की तरह उभर रहा
है!
यहाँ की हर गली एक क्राफ्ट लेन की तरह हैl जयपुर ज्वेलरी के अलावा अपनी
हस्तनिर्मित क्राफ्ट पद्धति के कारण भी जाना जाता है l जयपुर की जो ब्लाक और
सांगानेर प्रिंटिंग है वो विदेशों में खासतौर पर पसंद की जाती हैl यूरोप व् अमेरिका
में विशेष रूप से हाथ से बनी चीज़ें यानी" जयपुर क्राफ्ट आइटम'"की बड़ी मांग है और
इन चीज़ों की निर्यात से जयपुर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनकी पहचान बना रहा है lयहाँ
के बंधेज ,बगरू प्रिंट ,सांगानेरी प्रिंट, रंगीन सेमी प्रेसेयस स्टोंस, टोपाज
,तनजेनाईट ,विविध डिजाइन के गहने ,ब्रसेलट,झुमके ,मोती ,हीरे
,अपनी चमक और खूबसूरती से आपका मन मोह लेंगेl यहाँ के" कुंदन आभूषण "सारी दुनिया में निर्यात किये जाते हैlयह शहर विशेष रूप
से "जौहरियों का गढ़ है" हर गली व् पुरानी इमारतों में बहुत सी जौहरियों की गद्दियाँ
हैं, जहाँ बैठ कर व्यापारी अपना व्यवसाय चलाते हैं !
जौहरी बाज़ार के अलावा यहाँ चौड़ा रास्ता ,छोटी चौपड़ ,बड़ी चौपड़ ,त्रिपोलिया
बाज़ार ऍम आई रोड ,हल्दियों का बाज़ार ,सोंखियों का रास्ता नेहरु बाज़ार आदि बाज़ार
हैं, जो रत्नों के केंद्र तो हैं ही साथ हे यहाँ से लाख की चूड़ियाँ ,बंधेज ,मीनाकारी ,थेवाकला ,पगड़ी ,मोज़री, जयपुरी रजाई व् हस्तशिल्प का
भी आयात- निर्यात होता हैl यहाँ के दो कस्बे हैं... "सांगानेर"
और "बगरू" जहाँ रंगाई छपाई का काम होता है इन्हें "सांगानेरी प्रिंट" और" बगरू
प्रिंट कहते हैं इस ब्लॉग प्रिंट की चादरे ,कुशन कवर ,रजाई टोपर,घागरा चोली आदि की विश्व भर में बहुत ही मांग है ! दोनों गाँव ही पूर्ण
रूप से बाज़ार स्टाइल में अपनी पहचान बना चुकें
हैं!
जयपुर परकोटे में बसे बाज़ार में घूमना अपने आपमें एक अनुभव है
l
आप चाहे कुछ खरीद रहे हो या नहीं पर यहाँ की उपभोगतावादी चहल पहल में पुरातन परंपरागत रंगीन उपादानो का
आकर्षण आपको इतना मोह लेगा कि आप बिना खरीदे लौटेंगे नहीं lयहाँ क्या नहीं मिलता
?जयपुर के प्रसिद्ध" मीनाकारी" के जेवर से लेकर साबुन के बार को लेकर इस वादे के
साथ की पवित्र गंगा के पानी से बना यह साबुन आपको आनंद से भर देगा ,तरोताजा कर देगा
..सभी कुछ मिलता है l
चलिए एक बानगी देखते हैं गुलाबी नगर के कुछ बाज़ारों
कीl
इस शहर को देखने का सर्वोतम तरीका है क़ि आप एक साइकल रिक्शा लें और
शुरू करें स्थानीय बाज़ारों का स्थानीय भ्रमण : तो सफ़र सिरह ड्योढ़ी से
शुरू करते हैं ,हवा महल के स्थानीय परिवेश से गुजरते हुए देखते
हैं इस परिवेश में इधर -उधर जाती संकरी गलियाँ !.सभी तरह निगाह घुमाने पर यहाँ
गुलाबी इंटों पत्थरों से बनी दीवारों के आलावा झरोखों नुमा खिडकियों का सोंदर्य
अनूठा है!जो बाज़ारों के सोंदर्य में चार चाँद भी लगा देता है ! .
जयपुर के रौनक भरे बाजारों में दुकानें रंग बिरंगे सामानों से भरी हैं ,
जिनमें हथकरघा उत्पाद, बहुमूल्य पत्थर, हस्तकला से युक्त वनस्पति रंगों से बने
वस्त्र, मीनाकारी आभूषण, पीतल का सजावटी सामान,राजस्थानी चित्रकला के नमूने,
नागरा-मोजरी जूतियाँ, ब्लू पॉटरी, हाथीदांत के हस्तशिल्प और सफ़ेद संगमरमर की
मूर्तियां आदि शामिल हैं।
प्रसिद्ध बाजारों में जौहरी बाजार, बापू बाजार, नेहरू बाजार, चौड़ा रास्ता,
त्रिपोलिया बाजार और एम.आई. रोड़ के साथ लगे बाजार हैं भी बहुत खुबसूरत हैं। [गु
लाबी नगर के नाम से संबोधित किया जाने वाला जयपुर नगर अपनी भव्यता तथा
सुन्दरता के लिए समूचे भारत के नगरों में बेजोड़ ख्याति रखता हैl
यहाँ की सड़कें अपनी चौड़ाई तथा सीधाई के लिए प्रसिद्ध हैंl सब रास्ते
एक दूसरे को समकोण पर काटते हैं l.शहर में प्रमुख दुकानों और मकानों की बनावट एक सी है तथा रंग भी एक ही है गुलाबी !. नगर के
चारों ओर परकोटा है.... जिसमे आठ दरवाजे हैं और यहाँ पर्यटकों के लिए बहुत से
आकर्षण विद्यमान यहाँ हैं। सभी तरह की दुकाने हैं और "जवाहरात" का तो जयपुर
गढ़ है ...एक पूरे बाज़ार का नाम ही है "जौहरी बाज़ार" हैl यहाँ के मीनाकारी और कुंदन
के जेवर जगप्रसिद्ध हैं lआम भाषा में कहें तो
जयपुर तो जवाहरात की मंडी है .
सात समंदर पार से सैलानी पिंकसिटी की ऐतिहासिक धरोहरों के दीदार और खरीदारी की
हसरत लेकर यहाँ आते हैं ! जयपुर को भारत
का पेरिस
भी कहा जाता है। इस शहर की स्थापना १७२८
में आमेर के महाराजाजयसिंह
द्वितीय ने की थी। जयपुर अपनी समृद्ध भवन निर्माण-परंपरा, सरस-संस्कृति और
ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है।[यह
शहर तीन ओर से अरावली पर्वत माला से घिरा हुआ है।जयपुर शहर की पहचान यहाँ के महलों
और पुराने घरों में लगे गुलाबी धौलपुरी पत्थरों से होती है जो यहाँ के स्थापत्य की
खूबी है। १८७६
में तत्कालीन महाराज सवाई रामसिंह ने इंग्लैंड
की महारानी एलिज़ाबेथप्रिंस
ऑफ वेल्स युवराज अल्बर्ट के स्वागत में पूरे शहर को गुलाबी रंग से आच्छादित
करवा दिया था। तभी से शहर का नाम गुलाबी नगरी पड़ा है।
सात समंदर पार से सैलानी पिंकसिटी की ऐतिहासिक धरोहरों के
दीदार और खरीदारी की हसरत लेकर यहाँ आते हैं!हवा महल के आस पास जयसिंह द्वारा
स्थापित यह पुराना परकोटा परंपरागत दुकानों व् रंग बिरंगे स्टालों के साथ कुछ बदलते
परिवेश के साथ आज भी सजा है.... तो चलिए घूमिये और देखिये क़ि एक सैलानी की आँखों
से यहाँ क्या क्या आपको आकर्षित करता है ...!
शुरू करते हैं सिरह ड्योढ़ी की तरफ से जी हाँ.... यह रंगीन
परिधानों का बाज़ार सभी को स्तब्ध करता है, पर राजस्थानी पाग पगड़ी की दुकाने और
यहाँ का रामप्रकाश सिनेमा टाकिज जो सबसे पुराना है अपना इतिहास जुबानी सुनाता नज़र
आएगा ... जी ,अब यह एक माल में बदल गया है ...अंदर जाये और जो चाहें खरीदें ....
आगे बढ़ें ...अब आप है जौहरी बाज़ार में यह यहाँ का जवाहरातों का बाज़ार है इसलिए इस
बाज़ार का नाम ही है "जौहरी बाज़ार" .यह बाज़ार प्रसिद्ध मीनाकारी
,कुंदन के जवाहरात का गढ़ तो है ही साथ ही परंपरागत चाँदी के गहने भी यहाँ की पहचान
हैं ... यदि और बहुत महंगे गहने लेने हैं क़ि हैसियत रखते हैं तो घबराने की जरूरत
नहीं ,आप ऍम आई रोड पर बनी दुकानों में चले जाएँ यहाँ जेम पैलेस और आम्रपाली पर
विविध प्रकार के गहने मिल जायेंगे! पर बात हो रही है जौहरी बाज़ार की तो सड़के नापते
वक्त आप चौंकिएगा नहीं यदि किसी एक मोड़ पर आपको ठक ठकाठक ठक ठकाठक की आवाज़ आये
..किसी से पूछ देखेंगे तो पता लगेगा जो चाँदी का वर्क लगी
मिठाइयाँ ,पकवान ,या पान आप शौक से खाते हैं ,उस चाँदी के वर्क
को यहाँ तराशा जा रहा है और इस बाज़ार में एक छोटी सी दुकान आप को फ़ौरन नज़र आ जाएगी,
जहाँ चाँदी की फोइल को कूट कर परंपरागत तरीके से यह चाँदी के वर्क
बन रहे हैं l
अब घूमते घूमते यदि आपको भूख लग जाये तो
लक्ष्मी मिष्ठान भण्डार भी इस जौहरी बाज़ार का मुख्य रेस्तरां है
lजहाँ की लज़ीज़ कचोरी, दही बड़े खाने दूर दूर से लोग आते हैंl विशेष रूप से वो
व्यापारी जो अपने व्यापार के सिलसिले में यहाँ आते हैं ,उनके लिए तो यह रेस्तरां
मिलने जुलने का मंच भी है l इस बाज़ार के अंदरूनी हिस्से में एक संकरी गलियों के कई
मोड़ हैं... यहाँ गोपालजी का रास्ता , हल्दियों का रास्ता , घी वालों का रास्ता
यानि बहुत सारे रास्ते हैं जो टेढ़ा मेढ़ा घुमाते हुए इस बाज़ार के चक्रव्यूह में
आपको चक्करघन बना सकते हैं l बहुत सी कपड़ों की , चप्पलों की , शादी में पहनने वाले
बेस{ लहंगा कुरता }गोटा - किनारी के लुभावने
बेस (विशेष रूप से राणा की वर्क शॉप
में बने) मिल जायेंगे. बॉम्बे से फिल्म वाले गहने और कपडे यहीं से ले जाते
हैंlबच्चों के लिए केंडी शॉप ,पतंगों की दुकाने और बर्तनों का भी अच्छा खज़ाना यहाँ
मिल जायेगा .... हाँ एक बात फिर याद दिला दें इस बाज़ार से जाते समय यहाँ के
प्रसिद्ध" घेवर" ले जाना कतई न भूलें ... मधुमक्खी के छतों की तरह
गोल गोल प्लेट के आकर के यह घेवर मीठे ,पनीर वाले और फीके हर तरह के बनते हैं
lलक्ष्मी भण्डार जो क़ि इस बाज़ार की घेराबंदी में है कहा जाता है की यहाँ १८वी
शताब्दी से इस स्थान पर घेवर बन रहा है पहले छोटा सा ठिया रहा होगा बाद में
रेस्तरां में रूपांतरित हो गया l यहाँ की फीनियाँ(फैनियाँ.. मीठी- फीकी }भी विशेष रूप से लोगों को पसंद
आती !
अब यदि आप "हल्दियों के
रास्ते "{बाज़ार का नाम )से गुजरते हुए" सांगानेर गेट " की तरफ जाते हैं तो
टेक्सटाइल यानि बहुरंगी - वस्त्र भण्डार की विविधता का बेशुमार नज़ारा आपको देखने को
मिलेगा; उन दुकानों में जो बापू बाज़ार ,नेहरु बाज़ार और इंदिरा बाज़ार का त्रिकोण
बनती बिखरी पड़ी हैं वहां हर दूकान पर लहराते यह कपडे आपका मन मोह लेंगे !इन बाज़ारों
की विशेषता है...हाथ से छपाईl
यानि ब्लॉग प्रिंटिंग से बनी बगरू और सांगानेर की टाई एंड डाईसे
बनी चादरे ,साड़ियाँ,सलवार सुइट्स ,स्कार्फ ,कुशन आदि जिनकी विदेशों में
बहुत डिमांड है l यहाँ कांच की कशीदाकारी और कढ़ी हुई ऊंट के चमड़े से बनी स्लीपर
,जूतियाँ आदि भी प्रसिद्ध है l इन जूतियों क़ि नोक आगे की ओर यदि ऊँची नज़र आये...
जरा ऊपर की ओर मुड़ी हुई हो तो इस स्टाइल की राजस्थानी
जूतियों को "मोज़डी" कहते हैंl बांयीं ओर नज़र डालेंगे इन बाज़ारों
में तो मध्यकाल के शहर की परकोटे की दिवार आपको साथ साथ चलती दिखलाई देगी .अब यहाँ
से "किशनपोल बाज़ार" चलें तो देखेंगे की पीतल की नक्काशी से सजे
उपादान और परंपरागत सुगंध छोडती
इत्र
की दुकाने और दुकानों में बैठे दुकानदार मौसम के अनुसार इत्र के फोहे बनाते...खरीदारों को गर्मी
में ठंडा और सर्दी में गर्म करने के जादुई असर का पुरजोर भाषण देते नज़र आयेंगे
..वहीँ घूमते हुए आप एक झटके से पलट जाइए रंगाई वालों की गली
में... जहाँ आपको रंगरेजों की दुकानों पर टाई डाई का
काम ,पेंटिंग ,कढ़ाई और मुकेश का काम करने वाले कारीगर नज़र आयेंगे
...थक जाएँ तो सिन्धी फलूदा कुल्फी या गोल गप्पे
,छोला-भटूरा,दक्षिण भारतीय डोसा साम्भर,इडली खा कर फिर आगे बढ़ सकते हैं क्यूंकि ऐसे
खोमचों की कई दुकाने{फुटपाथी चौपाटी बाज़ार } इस गली का आकर्षण हैं, जिसे नज़रन्दाज
करने से पहले ही आपके मुंह में पानी भर जायेगा!
यहाँ एक पुरानी दर्शनीय नाटाणी जी ( जयसिंह २ के कमांडर इन
चीफ़ थे )की हवेली है जो अपने सात कोर्ट यार्ड के साथ नज़र आएगी..आजकल यहाँ एक गर्ल्स स्कूल चल रहा है ..इसके आसपास भी बहुत
दुकाने हैंजो बरबस सभी का ध्यान खींचती हैं , यह भी तिब्बतीयों के बाज़ार सा फूटपाथ
बाज़ार हैl
जयपुर के बाज़ारों में एक और प्रसिद्ध बाज़ार है नाम
भी बहुत आकर्षक है "खजाने वालों का रास्ता" यहाँ से गुजरते हुए आप"
चांदपोल बाज़ार' के रंगीन स्टालों और दुकानों की तरफ जायेंगे तो
हैरान रह जायेंगे यह देख कर की आज की इस भोतिकवादी संस्कृति से लेकर गुजरे हुए
परंपरागत समय की हर चीज़ मसालों से लेकर प्रस्तर शिल्प के उत्कृष्ट नमूनों की अलग
अलग रूपों की कलाकृतियाँ यहाँ बिखरी पड़ी हैं !यहाँ भगवान् की देवी देवताओं की बड़ी मनमोहक अलग- अलग तरह की
कलात्मक मंदिरों में स्थापित करने वालीं जीवंत मूर्तियाँ देख कर कई
देशी विदेशी सैलानी भी दांतों तले उंगली दबाते देखे गए
हैंl यह बाज़ार मूर्तियों के लिए ही मशहूर हैl विदेशों में बड़ी संख्या में यहाँ की
प्रस्तर शिल्प कला के उपादानो का व् मूर्ति का निर्यात होता है !जयपुर की पहचान का
प्रतीक हैं यह मूर्तियाँ ! इन उपादानो को गढ़ने वाले कलाकार बड़े ही गुणी हैं l
राजपूत आर्किटेक्ट को देखने के लिए कुछ पल आप रुकेंगे इस बाज़ार के हवेलीनुमा मकानों
के बाहर तो आपका मस्तक इन बड़ी बड़ी इश्वर की निहारती मूर्तियों के आगे अपने आप झुक
जायेगा लगेगा जैसे कोई वृन्दावन की गलियाँ हो जहाँ अध्यात्म हवा में रहता है l यहाँ
भी ऐसा ही भाव उमड़ेगा आप मेंl ऐसे ही अध्यात्मिकता से भरपूर भाव मन में लिए जैसे
ही आप सीधे हाथ की तरफ मुड़ेंगे तो मनिहारों की गली में सजी रंग- बिरंगी चूड़ियों
की दुकाने आपका मन मोह लेंगीl लाख के सामान का यह विशेष बाज़ार है इसे"
मनिहारों का रास्ता "कहते है l यहाँ हर दूकान में आपको विदेशियों
के झुण्ड के झुण्ड खरीदारी करते भी नज़र आयेंगे lलाख की चूड़ियाँ या लाख के उपादान
तो आप खरीदेंगे ही साथ ही लाख की चूड़ियाँ बनाते मनिहारों के हुनर
को देखने का आप लोभ संवरण नहीं कर पाएंगे.... जब देखेंगे की लाख पिघलाते ,लाख
संवारते ,आग में मोड़ते,गोलाई में ढ़ालतेऔर एक एक उपादान को तराशते यह कुशल हाथ
कितनी श्रम- साध्य प्रक्रिया से गुजर कर मंजिल पाते हैंl
त्रिपोलिया बाज़ार की और मुड़ते कदम जाकर रुकेंगे जयपुर की
प्रसिद्ध मिटटी से बने कलात्मक उपादानो की दुकानों पर, कुम्हारों द्वारा बनाये
मिटटी के शिल्प और "ब्लू पॉटरी" की उत्कृष्ट कलाकृतियाँ इस बाज़ार
का मुख्य आकर्षण हैl इसके अलावा दो अन्य दर्शनीय हवेलियाँ भी यहाँ हैं. एक है-
"विद्याधर भट्टाचार्य" जो जयपुर के आर्किटेक्ट थे ,उनकी पुरानी हवेली आजकल इसे संग्राहलय में बदल दिया गया है और दूसरी है
"नवाब फैज़ अली खान की हवेली" जो आज भी प्राचीन जयपुर शहर की कथस सुनाने वाली
कथावाचक की तरह कड़ी है ,अपने व्यक्तित्व को संभाले !
चलते चलते आपने पार कर लिया है बाज़ारों का एक लम्बा गलियारा
और "चौड़ा रास्ता "(बाज़ार) पर रुक कर आप बढ़ रहे हैं" बड़ी
चौपड़ 'पर क्योंकि अब खरीदना है
आरटीफीसिअल ज्वेलरी ,
चाँदी के गहने ,परंपरागत "मोज़डी" स्लीपर आदि ...हाँ जयपुर में
"गलीचों" का भी अच्छा काम होता हैl गणगौर की
बंधेज सावन का लहरिया जरी के काम की दुल्हन की
पोशाकें , का गोटे काम ,कांच का काम ..यह सभी जयपुर के बाज़ारों में नए नए
रूप में दिखलाई पड़ते हैं l यहाँ के बाज़ारों में मिलने वाली" पाव रजाई "लिए बगैर
तो देशी विदेशी पर्यटक जाते ही नहीं हैं lतक़रीबन सभी बाज़ारों में विशेष रूप से
चौड़ा रास्ता , किशनपोल बाज़ार की कई दुकानों पर इन रजाइयों( जयपुरी रजाई )लेने वाले
पर्यटकों की भीड़ नज़र आती है l
जयपुर के बाज़ार तो आकर्षक हैं ही परन्तु यहाँ की हस्तकला
इतनी मोहक है की यादगार के रूप में पर्यटक इन्हें तो ले ही जाते हैं, साथ ही यहाँ
के बाज़ारों का कलात्मक दृष्टि से विश्लेषण करते हुए... साथ में यह कहते हुए जाते
हैं कि जयपुर तो सुंदर है ही लेकिन यहाँ के बाज़ार भी बहुत दर्शनीय हैं
l
डॉ सरस्वती माथुर
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