शनिवार, 22 नवंबर 2014

सेदोका : "सर्द मौसम!"

"सर्द मौसम!"

खरगोश सी
 दौडती पुरवाई
 खुशबू भर लाई
मौसम पर
 झूमती लहराई
सरदी बन आई
 २
 पाहुन बन
 सरदी थी उतरी
 परिणीता सी छूती
 पावन धरा
 फूल को रंग कर
 तितली सी उड़ती
 ३
 .सूर्य निकला
 घूमी गिलहरियाँ
 धूप के टुकड़ों की
 हरे पत्तों पे
 चह्के पंछी संग
अंधेरों को चीरती

पाखी कुऊँके
फिरकी सी घूमती
चली पुरवाई थी
 घोड़े सर्दी के
 दौडाती आई थी
 बर्फाती सी पसरी
 ५
 सर्द मौसम
 रस ओंठ खुले थे
 मधु पराग भरे
 नवकोंपल
 फूल बन करके
 तितलियाँ बुलाते
 ६
 नीलवर्ण है
 उन्मुन सी सरदी
 पंख फैलाए उड़े
 जैसे विहग
 धूप का ओढ़े शाल
 हवा के संग संग
डॉ सरस्वती माथुर

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