"सर्द मौसम!"
१
खरगोश सी
दौडती पुरवाई
खुशबू भर लाई
मौसम पर
झूमती लहराई
सरदी बन आई
२
पाहुन बन
सरदी थी उतरी
परिणीता सी छूती
पावन धरा
फूल को रंग कर
तितली सी उड़ती
३
.सूर्य निकला
घूमी गिलहरियाँ
धूप के टुकड़ों की
हरे पत्तों पे
चह्के पंछी संग
अंधेरों को चीरती
४
पाखी कुऊँके
फिरकी सी घूमती
चली पुरवाई थी
घोड़े सर्दी के
दौडाती आई थी
बर्फाती सी पसरी
५
सर्द मौसम
रस ओंठ खुले थे
मधु पराग भरे
नवकोंपल
फूल बन करके
तितलियाँ बुलाते
६
नीलवर्ण है
उन्मुन सी सरदी
पंख फैलाए उड़े
जैसे विहग
धूप का ओढ़े शाल
हवा के संग संग
डॉ सरस्वती माथुर
१
खरगोश सी
दौडती पुरवाई
खुशबू भर लाई
मौसम पर
झूमती लहराई
सरदी बन आई
२
पाहुन बन
सरदी थी उतरी
परिणीता सी छूती
पावन धरा
फूल को रंग कर
तितली सी उड़ती
३
.सूर्य निकला
घूमी गिलहरियाँ
धूप के टुकड़ों की
हरे पत्तों पे
चह्के पंछी संग
अंधेरों को चीरती
४
पाखी कुऊँके
फिरकी सी घूमती
चली पुरवाई थी
घोड़े सर्दी के
दौडाती आई थी
बर्फाती सी पसरी
५
सर्द मौसम
रस ओंठ खुले थे
मधु पराग भरे
नवकोंपल
फूल बन करके
तितलियाँ बुलाते
६
नीलवर्ण है
उन्मुन सी सरदी
पंख फैलाए उड़े
जैसे विहग
धूप का ओढ़े शाल
हवा के संग संग
डॉ सरस्वती माथुर
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