शुक्रवार, 22 मई 2015

श्रम का बीज

श्रम का बीज
उस दिन सर्दी बहुत थी lधूप में भी तेजी नहीं थी धुंध का पर्दा हवा में रह रह कर काँप उठता था lअलसाई सी इस सुबह किसका मन होता है बाहर निकलने का ,पर भंवरी  को तो जाना ही होगा lभंवरी उठ खड़ी हुई ,उसने बोरी उठाई और कचरा बिनने चल दी lरोज का यही नियम था lकचरे से बटोरी हर चीज़ वह अपने बोरे में तरतीब से सहेज लेती  lबच्चों के उठने से पहले ही घर लौट आती l उसके बच्चे उससे कभी नहीं पूछते कि वह कहाँ काम करती है iउसने उन्हे बस इतना बता रखा था कि वह एक सेठानी के यहाँ  मालिश करने जाती है और उसे महीने के चार पाँच हज़ार रुपये मिल जाते हैं और  भंवरी के पति की चार  हज़ार तक पेंशन मिल जाती है ,गुजारा हो जाता है ,भंवरी के पति बीमा कंपनी के एक सरकारी दफ्तर  में चपड़ासी थे , अचानक उनकी मृत्यु हो गयी थी तो उसके बाद से मजबूरन उसे भंवरी को यह काम करना पड़ा l
भंवरी अनपढ़ थी उसे कहीं काम नहीं मिला तो उसे सेंट्रल पार्क के माली ने यह सुझाव दिया ,तब से वो इसमें जुट गयी lअब वह बूढ़ी हो गयी है और इस काम में अभ्यस्त भी lउसकी मेहनत का ही फल था कि दो  बेटे  इंजिनियरिंग में पढ़ने  चले गए ,कुछ उसकी जमा पूंजी थी ,कुछ बच्चों की तकदीर कि उन्हे वहाँ स्कॉलरर्शिप मिल गयी lबेटी बड़ी थी उसने बी एड करके एक स्कूल में नौकरी कर ली और एक सहयोगी अध्यापिका के कहने पर आई॰ ए॰ एस का इम्तिहान दे डाला और चयनित हो गयी l झुग्गी झौंपड़े से क्वार्टर और वहाँ से सरकारी बंगले में पहुँच गयी l
समय का जादूगर क्या क्या करतब दिखाता है, आज भंवरी बेटी का सम्मान समारोह था lझुग्गी झौंपड़ी में पाली बढ़ी एक लड़की ने जीवन संघर्ष  की जमीन देखने के बाद  इतना बड़ा ओहदा पाया था ,भंवरी कैसे अपनी आँखों से ना देखती l वह भी बेटी के साथ चमचमाती कार में कोटा डोरिया की नीली साड़ी पहन कर गर्व से पहुंची थी ,सम्मान से प्रथम कतार में उसे बिठाया गया था l फूल मालाओं से लदी बेटी ने माइक संभाला और जनता को संबोधित किया --"मान्यवर , बहुत बहुत आभार मुझे सम्मान देने के लिए लेकिन इस सम्मान की सही में हकदार मैं नहीं कोई और है ,आज मैं  दो शब्द उनके बारे में कहने को खड़ी हुई हूँ पहली कतार में  यह जो हाल में  बिलकुल मेरे सामने की सीट पर  नीली साड़ी में जो महिला बैठी है ,वो मेरी माँ है...भंवरी देवी !दरअसल यह उनका ही आशीर्वाद है क्योंकि  मुंह अंधेरे यह उठ कर कचरा बिनने जाती थीं, उसे कबाड़ी को बेच कर उससे जो पैसा  उससे हमारा पेट भरती थीं l   इन्होने हमे झूठ भी कहा कि यह सेठानी के घर मालिश करने जाती हैं ,लेकिन यह झूठ हमारे लिए एक चिराग की  रोशनी कि तरह था जो बार बार हमें  अहसास कराता था कि हमें जीवन संघर्ष में सच की ओर जाना है और कुछ कर दिखाना  है lमेरी माँ उस कचरे में से जो छोटी  छोटी पेंसिलें  एकत्रित करके लाती थी उनसे मैंने लिखना सीखा l
 आज मैं बताना चाहती हूँ कि बड़े बड़े महलों व घरों में रहने वाले लोग सच के बोरे में झूठ  भरते रहते हैं ,पर मेरी माँ रोज कचरे की बोरी में मेरे लिए एक नयी चुनौती भर के लाती थी lमैं चाहूंगी कि मेरी माँ भंवरी देवी को मंच पर बुलाया जाये ताकि मैं उनके चरण स्पर्श करके सबके सामने गर्व से यह कह सकूँ कि कचरा बीनने वाली मेरी माँ सही अर्थों में एक कर्मवीर  महिला है जिन्होने अपने जीवन के हसीन खवाबों को अपने बच्चों क आँखों में देखा है lमाँ आज मैं एक बेटी होने के नाते से कहना चाहूंगी कि मैं जीवन भर आपके श्रम के बीज़ को सींच कर आने वाली बेटियों के लिए एक नयी दुनिया रचूँगी ,हर शनिवार ,इतवार को झुग्गी झौंपड़ियों में जाकर नि:शुल्क बेटियों को पढाऊँगी ,उन्हे पत्थर  से तराश कर हीरा बनाऊँगी l
हाल  तालियों से गूंज रहा था ,तालियों की   गड़गड़ाहट में भंवरी देवी ने देखा कि सब खड़े हैं और वह हक्की बक्की सी मंच पर खड़ी सोच रही है पर मैंने ऐसा क्या किया ? हाँ एक हीरे सी बेटी जरूर पैदा की है lआँखें मूँदे वह देर तक हाथ जोड़े मंच पर  खड़ी रही l
डॉ सरस्वती माथुर

बुधवार, 20 मई 2015

कहानी------------- फादर्स डे -------------डॉ सरस्वती माथुर

                                                                   " फादर्स डे!"
शांति स्वरूप जी आराम  कुर्सी से टिके गुमसुम बैठे प्रेम आश्रम में हो रही फादर्स डे की तैयारियों को देख रहे थे ! पिता दिवस  और माँ दिवस को  आश्रम वाले विशेष रूप से मना कर यहाँ रहने वाले बुजुर्गों को सम्मान  देते हैं  और उनके प्रति आदर का भाव प्रकट करते हैं  ! अब तो इस आश्रम की यह परंपरा ही हो गयी है !इस दिन  बिलकुल  उत्सव का सा वातावरण हो जाता है ! यह आश्रम भी एक परिवार की तरह  ही तो है ! चौंधियाई  आँखों से  शांति स्वरूप जी ने आश्रम के बाग में नज़र डाली !दूधिया रोशनी में बोगनबेलिया  की फूलों भरी टहनिया उन्हे बहुत अच्छी लग रही थी l
हवा के तेज झौंके खिड़की से अन्दर शांतिस्वरूप जी के कमरे तक आ रहे थे ! फादर्स डे के पहले  दिन की यह शाम कुछ सिंदूरी थी !बोगेनबेलिया के बेंगनी फूल कुछ अधिक मस्ती के साथ झूम रहे थे एवं मन को  प्रफुल्लित  कर रहे थे !वह सुकून से बैठे थे पर बीच बीच में एकदम से बैचैन हो जाते थे !क्या कभी ऐसी बैचनी की शांति स्वरूप जी ने कल्पना की थी ?
वह आँखें मूँद कर याद करने लगे -पाँच साल पहले का वह दिन, जब उनकी सेवा निवृति करीब थी और  वे इस दिन का बेताबी से इंतज़ार कर रहे थे  ,यह  सोच कर कि चलो जीवन भर की  आपाधापी  व भागदौड़  की जिंदगी खत्म हो जायेगी और चैन की शुरू !और इसी के साथ अब वह अपनी पत्नी मानवती जी के साथ बैठने का समय भी निकाल पाएंगे 1भरपूर पैसा तो मिलेगा ही साथ ही ग्रेचुटी,पी एफ और दूसरी जमा पूंजी भी होगी !वे जब मन किया पत्नी के साथ  विदेश भ्रमण करने निकाल जाएंगे  ,सुबह शाम सैर को जाएँगे l इससे मिलेगे ,उससे मिलेंगे !समय बड़े मज़े से बीतेगा l
 इसी दौरान उन्होने लोन लेकर तीन कमरों का एक छोटा सा घर भी बनवा लिया था !सेवा निवृति होने से दो वर्ष पूर्व ही उसमें शिफ्ट भी हो गए थे lसब ठीक ठाक चल रहा था ,तब वे और भी निहाल हो उठे थे जब इलाहबाद से उनका बेटा  श्रवण ट्रान्सफर लेकर उदयपुर उनके पास आ गया था  lमानवती जी कि दिनचर्या तो तभी से बदल गयी थी lश्रवण के बेटे राघव के आ जाने से तो शांतिस्वरूप जी का छोटा सा घर किलकारियों से भर उठा था lघर में किसी चीज़ की कमी नहीं थी !शांतिस्वरूप जी ने बैचेनी से आँखें खोल दी और वर्तमान में लौट आये l अतीत के दरवाजे हौले से बंद  हो गए लेकिन यादें जारी रहीं,l
सेवा निवृति के बाद दो साल तो एकदम ठीक से निकले लेकिन ज़िंदगी तब एकदम नीरस हो गई ,जब  उनकी पत्नी मानवती जी अचानक हार्ट अटैक से चल बसी !घर में खाली समय बिताना मुश्किल हो गया l पीठ दर्द और डायबिटीज़ के कारण तबीयत भी ठीक नहीं रहती थीlसुबह शाम की सैर भी छूट गयी और विदेश भ्रमण का सपना तो मानवती जी साथ ही ले गईं l
श्रवण और बहू अपने अपने काम में व्यस्त रहते थे ,महाराजिनी घर में खाना बनाने आती थी तो घर में जरा हलचल रहती थी वरणा पूरी दुपहर वो लेटे लेटे गुजार देते थे l राघव भी किंडर गार्डेन स्कूल चला जाता था !घर आता था तो थोड़ी देर शांतिस्वरूप जी का मन लग  जाता ,लेकिन घर का सूनापन जरा भी कम नहीं होता था, मानवती जी  थीं तो घर कैसा चहकता रहता था lसच   सहधर्मिणी दु:ख -सुख की अनिवार्य संगिनी होती है l
मानवती जी की आत्मीयता -अंतरंगता के अनुभव को उन्होने गत दिनों में बार बार अनुभव किया lतभी उन्हे एक दिन चक्कर आया और वह बाथरूम में गिर पड़े l श्रवण और उसकी बहू ने उनकी देखभाल में कोई कसर नहीं छोड़ी ।छुट्टियाँ लेकर जी जान से सेवा भी की lदेखते ही देखते दिन गुजरते गये और एक दिन पीठ दर्द की वजह से उन्होने बिस्तर ही पकड़ लिया lघर और भी खाली खाली   और सूना -सूना लगने  लगा l
एक दिन अखबार में उन्होने एक एड पढा"प्रेम आश्रम "का , जहां बुजुर्गों  के लिए सभी सुविधाएं थीं वहाँ चोबिस घंटे  मेडिकल  व नर्सिंग केयर   का प्रावधान  भी था और रोज सुबह शाम सत्संग होता था तो  उन्हे लगा कि श्रवण और बहू को समझा कर वह वहाँ रहने चले जायेँगे lउनके हमउम्र साथी होंगे तो उनका मन भी लग जायेगा!
श्रवण और बहू के सामने जब उन्होने मन की  बात कही तो दौनों ही राजी नहीं हुए ,पर जब उन्होने साफ कह दिया -"श्रवण मैं दिन भर अकेले रहते रहते उकता गया हूँ ,प्लीज ,कुछ समय आश्रम में रह आऊँगा यदि वहाँ मेरा मन नहीं लगा तो लौट आऊँगा l"
"ठीक है बाबूजी ,हम आपको वीक-एंड पर घर ले आया करेंगे l"बहू ने बहुत अपनेपन से ससुर साहिब की इच्छा का मान रखते हुए आश्वासन दिया l
आखिरकार शांतिस्वरूप जी "प्रेम आश्रम" में आकर रहने लगे lधीरे धीरे उनका मन भी लग गया , वह वहाँ की दिनचर्या में घुल मिलसे  गए l वहाँ उनके कुछ दोस्त भी बन गए , दिन अच्छा गुजर जाता था lआश्रम के साथियों के साथ गपशप करते ,ताश खेलते और नियमित प्रवचन सुनते थे l हर वीक- एंड पर घर चले जाते थे l राघव से खेलते थे ,बेटे बहू से इधर उधर की बातें करते ,कुछ रिश्तेदारों  के मिलने चले जाते या किसी को बुला लेते  ,जीवन में उन्हे मज़ा सा आने लगा l
दो साल का लंबा अंतराल जाने कैसे मज़े में गुजर गया  lलेकिन एक दिन शांतिस्वरूप जी को  महसूस हुआ कि आश्रम की स्टीरिओटाइप्ड निर्धारित समय सारिणी से वे आजकल  उकताने से  लगे हैं  l
 प्रेम आश्रम कि दिनचर्या के बीच समय के साथ ही किताबों को पलटते  हुए या दोस्तों से बतियाते हुए वक्त तो   बीत जाता था ,क्षण और घंटे गुजरते जाते थे l   ,लेकिन आँखें हमेशा दरवाजे की ओर रहती थी lजहां से हर वीकेंड श्रवण -बहू और राघव आते थे lपिछली बार भी आए थे तो उन्होने अपना चश्मा उन्हे डंडी बदलवाने के लिए दे दिया था lश्रवण ने कहा था -"मैं कल ही चश्में की नयी डंडी लगवा  कर भिजवा दूंगा  बाबूजी l"
लेकिन पिछले चार महीने से न तो श्रवण आया है न चश्मा पहुंचा है lफोन पर बहू से तीन- चार बार बात भी हुई थी तो बहू ने वोही घिसा पिटा जुमला दोहरा  दिया --,"हाँ हाँ  बाबूजी चश्मा तैयार है, बस एक दो दिन में आते हैं आपसे मिलने ,दरअसल इन दिनों मैं और श्रवण बहुत व्यस्त चल रहे हैं !"
व्यस्त चल रहें हैं शब्द शांतिस्वरूप जी को तीर की  तरह लगा !आहत होकर उन्होने फोन करना भी बंद कर दिया! वह अखबार तक पढ़ नहीं पा रहे थे lकिताब के अक्षर भी उन्हे बिना चश्मे नज़र नहीं आते थे lबस किताबों के पन्ने यूँ  ही पलटते रहते थे l टी॰ वी॰ भी बहुत  धुंधला दिखता था  l
 कल फादर्स ड़े था और तीन चार दिन से तो उन्हे घर बहुत ही याद आ रहा था  !साथ  ही यह भी याद आ रहा है कि इस दिन श्रवण और बहू दोनों सुबह सुबह उनके पैर छू कर फ़ादर्स डे का ग्रीटिंग कार्ड देते थे! उनका स्पेशल पाइन ऐप्ल केक बनवा कर लाते थे  और  सब मिल कर काटते थे lआज उन्हे कुछ समझ नहीं आ रहा है कि कैसे अपने मन को समझाएँ l अकेलेपन ,उदासी और सन्नाटे को तो वो सह सकते हैं पर बेटे बहू की उपेक्षा से बिंध कर भला वे कैसे जियेँ ?"
बाहर गरम  हवा में अजीब से चुभन  थी lकमरे की पारदर्शी काँच की  खिड़की से शांतिस्वरूप जी  उदास से बाहर लगी टिमटिमाती रोशनी देख रहे थे lतभी उन्हे लगा उनके कंधे पर किसी  का हाथ है l उन्होने झटके से पीछे पलट कर देखा lउनका बेटा श्रवण व बहू  खड़े थे lपोता राघव भी साथ था l तभी उन्हे रुंधी सी आवाज़ सुनाई दी --
"बाबूजी , देरी से आने के लिए हमें माफ कर दें lश्रवण का एक्सीडेंट हो गया था , आपके आशीर्वाद से वे ,बाल बाल बचें हैं ,चार महीने तक पलंग पर थे,इनकी हिप बोन फ्रेक्चर थी ,आपको बतलाते तो आप परेशान हो जाते, बाबूजी हमें आपकी भी बहुत  चिंता रहती थी, पर जी कडा करना पड़ा ,कम से कम यहाँ आपकी देखभाल तो हो रही थी , इन्हे रोज फ़िजियोंथिरेपी के लिए ले जाना पड़ता था, वहाँ पर घंटो लगते थेl  "बहू कि आंखो से आंसुओं कि अविरल धारा बह रही थीl
"चलिये बाबूजी, अब अपने घर चलिये ,अब और ज्यादा यहाँ रहने कि जरूरत नहीं है ,आपका वनवास पूरा हुआ "श्रवण ने रुँधे गले से कहा तो शांतिस्वरूप जी का दिल भी भर आया l
श्रवण अपनी पत्नी के साथ जल्दी जल्दी बाबूजी का सामान बैग में पैक करने लगा lशांतिस्वरूप जी  से कुछ भी बोला नहीं जा रहा था l
"दादा ,आपको एक बात बतलाऊँ ,रोज पापा आपको याद करके बहुत रोते थे " मासूम राघव ने जब शांतिस्वरूप जी  से कहा तो वे  अपने आँसू नहीं रोक सके l अपने जीवन का इतना  भावुक निष्कर्ष पाकर भला शांतिस्वरूप जी कैसे अपनी भावनाओं  पर काबू पा  सकते थे ! सभी ने भावुकता में बहने से अपने को संभाला !
 फिर शांतिस्वरूप जी अपने बेटे बहू के साथ आश्रम के सभी साथियों से विदा लेकर घर की तरफ बढ़ गए !चलती कार में बैठे वे सोच रहे थे कि मनुष्य जीवन भी अजीब है  ,मन में अगर उद्धिग्नता हो तो बाहर का खुशनुमा मौसम और ठंडी  हवा  कुछ भी नहीं सुहाता  है और मन खुश हो तो बाहर का उदास   मौसम भी सुहावना लगता है l
आज शांतिस्वरूप जी भी बहुत खुश हैं lघर पहुँच कर उन्हे बड़ी सुखद अनुभूति हुई lफादर्स डे का इससे बढ़िया  तोहफा उन्हे भला और क्या  मिल सकता था ! बच्चों के साथ उन्होने पहले घर के मंदिर में दिया जला कर आरती की और फिर फादर्स डे का केक काटा l शांतिस्वरूप जी सोच रहे थे कि  वे कितने  खुशनसीब हैं  कि उन्हे  इतना प्यार करने वाले बच्चे मिले  उधर  श्रवण और उनकी पत्नी सोच रहे थे कि घर का वातावरण बाबूजी के आने मात्र से ही गतिमान हो गया है !                   
डॉ सरस्वती माथुर 
ए-2, सिविल लाइंस
जयपुर -6






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सोमवार, 18 मई 2015

सेदोका..."ओ री पुरवा !"

1.
नैन प्रवाह
वत्सल फूटी धार
मेरे जीवन साथी
मन मंदिर
विश्वास की बाती का
जल रहा है दीप  l
2
कुछ मित्र भी
गिरगिट से होते हैं
रंग बदलते हैं
चतुराई से
मन में पीर भर
दिल चीर देते हैं l
3
मन खिला तो
सपनों के भँवरे
 नैनन में उतर
 नींद वन  में  
 मधुर गीत गाते
 मंडराने लगे थे l
4
भिनसारे में
चिड़ियाएँ गीत  गा
प्रेम से हैं जगाती
उषा से मिला
मन  में उमंगों की
लाली सी भर जाती l
5
ओ री पुरवा
देहरी पर आना
मन के इर्द गिर्द
यादें ले आना
मेरा संदेशा फिर
पिया को पहुंचाना l
डॉ सरस्वती माथुर
19.5.15
2

मीरा बाई के
इक़तारें की गूँज
है हमारा  प्रेम
खोयेगा नहीं
एक मंत्र के जैसा
उच्चारित रहेगा ।

ख़ामोशी बोली
अनबन रिश्तों में
मन दीवार डोली
दर्द के आंसंू
नदी से बहकर
जीवन में जा घुले।

ख़ामोशी तो है
शोर पर मन में
सागर सा उमड़
मन की बात
कह जाता है जब
क्या रह जाता तब ?

गीत गाती है
सागर किनारे पे
लहरें जब गूँज
बुलबुले सी
फेन बिखर कर
मौन रह जाती है।

तम पोटली
खोल कर निकाली
धूप डोर से बंधी
भोर उजली
जो खुलते ही फैली
धरती के अँगना  ।
30.3.16


 
 


कहानी---- चिरसंगिनी


 ईश्वर नारायण दफ़तर पहुंचे ही थे कि फोन की घंटी टनटना उठी lउनके बेटे सिद्धात  की आवाज़ थी -
-"पापा फौरन  घर  लौट आओ  ,मम्मी अचानक से बेहोश हो गयी हैं "
ओह माई गौड़... अरे बेटा , क्या हुआ ,सुबह तो  भली चंगी थी क्या ,डॉक्टर को बुलाया  तुमने ?
"पापा प्लीज , सवाल करने का समय नहीं है आप जल्दी पहुँचो घर ! "दूसरी तरफ से फोन रख दिया गया था !
 दो मिनट तक ईश्वर नारयण सकते में बैठे रहे ,वह पेशोपश में पड गए थे ,उन्हे लगा उनके दिमाग की नस फट जाएगी ,अब क्या होगा?आज तो बहुत महत्व पूर्ण मीटिंग हैं ,बरसों पुराने सपने के साकार होने का दिन है आज ,नए प्रोजेक्ट्स पर फैसला है  !  चाइना से  विशेषज्ञ आए हुए हैं l सारे दिन उन्ही के साथ विचार विमर्श होगा ! इस  बिजनेस मीटिंग पर उनका आने वाला कल ही नहीं टिका है पर जीवन के सपने भी टिके हैं lपूरी ज़िंदगी मेहनत की है उन्होने आज का दिन देखने के  लिए, एक मैराथन दौड़ दौड़ी है और अब मंज़िल बिलकुल हाथ भर की दूरी पर है ! एक लंबी उसांस भर कर उन्होने टेबल पर रखी घंटी दबाई , अलादीन के चिराग के   जिन्न की तरह   चपड़ासी हरीराम उनके सामने हाजिर हो गया तो बाकलीवाल जी ने तुरंत उसे  आदेश दिया -" मैनेजर बाकलीवाल को जल्दी से  बुलाओ हरी राम  l"
"पर सर वो तो अभी तक आए ही नहींl"हरीराम ने जवाब दिया
" अरे ,आए ही नही हैं ? आज तो उन्हे बहुत ही जल्दी आना चाहिए था ,उन्हे फ़ौरन  फोन लगाओ
हरीराम !"ईश्वर नारायण ने जरा तेज स्वर में कहा! फोन  मिलाया तो  देर तक फोन की घंटी  बजती रही पर बाकलीवाल ने उठाया नहीं ! बार बार वॉइस मेल बोल रहा था !ईश्वर नारायण को नो आन्सर का सिंबल तीर की तरह चुभ रहा था lतभी  ईश्वर नारायण ने  कमरे के पारदर्शी काँच से बाहर देखा कि ईश्वर नारायण लगभग  भागते हुए से चले आ रहे हैं !"
सौरी  सर सौरी ,मैंने अभी आपका  मिस काल देखा ! फोन लगाया तो आपका कनैक्ट नहीं हो पा  रहा था ...सौरी सर ,मैं लेट हो गया हूँ ...क्या हुक्म है सर ?"
" भाई बाकलीवाल तुम्हें तो आज बहुत जल्दी आना था, इतनी महत्वपूर्ण मीटिंग का दायित्व तुम पर था और तुम लेट कैसे आ रहे हो ?ईश्वर नारायण ने हैरानी से कहा
जी बिलकुल जल्दी आना था हुक्म  पर इमजेंसी आ गयी , दरअसल मेरी पत्नी के सर में बहुत तेज दर्द  था ,चक्कर भी आ रहे थे ,उल्टियाँ हो रही थी तो मुझे तुरंत अस्पताल ले जाना पड़ा , कुछ टेस्ट करवाए ,डॉक्टर ने अभी भी उन्हे अस्पताल में ही  ओबसरवेशन के लिए रखा हुआ है ,मेरा फोन भी साइलेंट पर था हुक्म ! बस उन्हे दवाईयाँ देकर भागा चला आ रहा हूँ मीटिंग चूंकि महत्वपूर्ण थी इसलिए छुट्टी भी नहीं ले सकता था ।सर अब हाजिर हूँ हुक्म करें !"
" ठीक है बाकलीवाल पर अब मुझे भी तुरंत जाना होगा ,मेरी भी पत्नी की अचानक से तबीयत खराब हो गयी है ,बाकलीवाल सारी तैयारी कर लेना प्लीज ,जो ओपचारिकताएँ हैं पूरी करके मुझे खबर करना ,मैं जल्दी लॉट कर आता हूँ !
"हुक्म..." बाकलीवाल ने फाइव स्टार बैरे की तरह सर झुका कर अभिवादन किया l
ईश्वर नारायण जी घर की तरफ चल पड़े ! बार बार यही सोच रहे थे कि आखिर क्या हुआ होगा कि उनकी पत्नी  सुनन्दा बेहोश होगईं  , दोनों ने सुबह साथ ही नाश्ता किया है ,बिलकुल ठीक थी वो, कोई तनाव भी नहीं
 था lभगवान की कृपा से उनका कारोबार भी अच्छा खासा चलता है ,कोई कमी नहीं है !घर में भी सब सुविधाएँ हैं ! हाँ सुनन्दा को मधुमेह की शिकायत जरूर हो गयी है ,जरूर आज शुगर बढ़ गयी होगी !
यही सब सोचते हुए ईश्वर नारायण जी घर पहुंचे तो देखा एम्बुलेंस  बाहर खड़ी थी और अस्पताल जाने की पूरी तैयारी थी उन्हे देखते ही बेटे ने अंगुठे से इशारा किया और उन्होने भी गाड़ी अस्पताल की तरफ मोड दी ! अस्पताल पहुंचे तो बाहर परिसर में कर्मचारी भी  तत्पर थे ,स्ट्रेचर तैयार खड़ा था ,तुरंत सुनन्दा   को आई सी यू में ले जाया गया !
ईश्वर नारायण जी बाहर गलियारे में बैचनी से चहलकदमी करते रहे  ,फोन पर बीच बीच में मीटिंग की जानकारी भी ले रही थे ! आज बहुत ही महत्वपूर्ण दिन था उनके लिए ,बहुत महत्वपूर्ण बिजनेस डील होनी थी ,जिसके लिए उन्होने बरसों इंतज़ार किया था 1जो प्रोजेक्ट आज सेंकशन  होना था ,उससे उनकी जिंदगी ही पलट जाएगी और उनकी गिनती करोड़पति बिजनेसमैंन   की लिस्ट में शुमार हो जाएगी 1,ओह सुनन्दा तुम्हें आज ही बेहोश होना था सोच कर जरा भावुक हो गए ईश्वर नारायण   ,फिर उन्होने एक गहरी सांस ली यह सोच कर कि यह तो बहुत अच्छा हुआ कि उन का बेटा अभी छुट्टियों में यहाँ आया हुआ है ,वह इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष में पढ़ रहा है !,एक शादीशुदा बेटी भी है पर वह  लंदन में रहती है ,फिर उन्होने अपने को झकझोरा ,कि मैं ऐसे कैसे सोच सकता हूँ कि  सुनन्दा को आज ही बेहोश होना था !वह कैसे भूल सकते हैं कि आज वो जो कुछ भी हूँ उसका पूरा श्रेय सुनन्दा को जाता है !वरणा जब  उनकी शादी हुई थी तो ज्वैलेरी के  एक  बिजनेस मैंन के यहाँ एक छोटे से पद पर ही तो काम करते थे !धीरे धीरे वहीं रहते हुए ,काम करते हुए उन्हे बिजनेस की पकड़ आ गयी थी और आज इस मुकाम पर आ पहुंचे हैं !घर पर तो वह बहुत ही कम रह पाते थे , सामाजिक  , पारिवारिक व बच्चों के दायित्व सभी सुनन्दा संभालती थी lईश्वर नारायण से  सुनन्दा से कई बार कहा भी _"सुनो जी ,बहुत कमा लिया ,अब कुछ समय परिवार को  भी देना चाहिए आपको  l"पर  वो कहते हैं न कि खून मुंह लग जाता है तो आसानी से छूटता नहीं है !ईश्वर नारायण जी का भी  यही हाल  हुआ l
समय चक्र चलता गया वह व्यस्त होते चले गए ,कई बार तो महीनो बाहर रहना पड़ता था ,घर आते फिर आगे की योजनाएं शुरू हो जाती थीं lअपनी शादी की पच्चीसवीं वर्षगांठ तक में वह समय से नहीं पहुँच पाये थे, तो सुनन्दा से लंबे समय तक अबोला रहा !
तभी ईश्वर नारायण ने अस्पताल के डॉक्टर को अपनी ओर आते देखा तो वो वर्तमान में लौटेl इस बीच  उनके    काफी रिश्तेदार भी अस्पताल में इकट्ठे   हो गए थे lडॉक्टर तेज़ कदमो से चलते हुए ईश्वर नारायण जी के पास आए और उन्होने उन्हे सुनन्दा के स्वास्थ्य की  पूरी जानकारी दी -
"सर ,ब्रेन हैम्रेज हुआ है ,ऑपरेशन करना जरूरी है पर बहुत रिस्क है ,,उनकी याददास्त  जा सकती है वे कोमा में भी जा सकती हैं ,पैरालाइज़  भी हो सकती हैं ,आप इजाजत दें तो तुरंत ऑपरेशन कर दें l"
"डॉक्टर प्लीज ,जो करना है ,जल्दी करें ,बताएं कहाँ साइन करना होगा ?
"जीआप  वो औपचारकिताएँ पूरी कर लें  ,मैं ऑपरेशन की तैयारी करता हूँ !ईश्वर नारायण का बेटा शिव व अन्य रिश्तेदार उन्हे सांत्वना दे खानापूर्ति में लग गए l
तभी बाकलीवाल जी का फोन आ गया, उनके स्वर में खुशी थी -"सर मुबारक हो ,विशेषज्ञों को प्रोजेक्ट पसंद आ गया है,इस संदर्भ में वे आपसे  बात करना चाहेंगे ,डील आज ही फाइनल करनी होगी  ,विशेषज्ञ आज ही वापस  जाएँगे ,आगे के उनके कार्यक्रम तय हैं ,आज शाम की  उनकी फ्लाइट है! आपके हस्ताक्षर अनिवार्य हैं  उनकी ,कुछ शर्ते भी हैं  जिन पर आपके साथ बैठ कर विशेषज्ञ  बात करना चाहेंगे ,,आप आ जाइए ताकि यह काम निपट जाये l"
"यह तो बहुत अच्छी खबर सुनाई बाकलीवाल ,मेरे बीस साल की तपस्या आज पूरी होने जा रही है ,अभी पहुंचता हूँ वहाँ तब तक तुम उनकी खातिर तवजा करो lईश्वर नारायण ने घड़ी देखी, चलने को तत्पर हो गए lबेटे को बोले -शिव मैं एक घंटे में वापस आता हूँl "
"कहाँ जा रहे हो पापा ?शिव ने हैरानी से पिता को देखा l "
"आकर  बताता हूँ शिव कुछ देर जाना होगा ,जरूरी हैl" कह कर ईश्वर नारायण कार की ओर बढ़ गए l कार पार्किंग से दूर खड़ी  थी !तेज़ कदमों से चलते हुए वह वहाँ पहुंचे !ड्राईवर को कार में न पाकर वो अगले बगले देखने  लगे 1 तभी उन्होने देखा की उनकी कार के करीब ही एक व्यक्ति अपनी पत्नी को व्हील चैयर से उतार कर कार में बैठा रहा था ,उस व्यक्ति की पत्नी को उन्होने कहते सुना -"अजी अब आप जाओ फौरन ऑफिस ,ड्राईवर जी मुझे घर छोड़ देंगे आज आपकी इतनी महत्व पूर्ण मीटिंग भी है न ,तभी उन्होने पीछे मूड कर देखा तो हैरान रह गए  कि वह व्यक्ति और कोई नहीं बाकलीवाल था l
ईश्वर नारायण का मुंह खुला का खुला रह गया था वह लगभग चीखते हुए से बोले -"बाकलीवाल तुम यहाँ ? पर तुमने तो अभी फोन किया था कि  प्रोजेक्ट ...." शेष शब्द उनके गले में अटक कर रह गए 1"
"जी हुक्म मीटिंग अच्छी हो गयी ,आपके ऑफिस से निकलेने के एकदम बाद डॉक्टर साब का फोन आ गया था कि पत्नी को डिस्चार्ज का रहे हैं  तो मेरा पहुंचाना जरूरी था अस्पताल ,मैंने तब अपने हिस्से का दायित्व मेरे जूनियर रामबाबू को
 सौंप दिया और फोन से हम जुड़े रहे,आप तो जानते हैं हुक्म वो कितना काबिल बंदा है ,मेरे पास कोई ऑप्शन भी नहीं था,हुक्म मुझे मालूम है डील महत्व पूर्ण थी ,पर मेरी पत्नी से ज्यादा नहीं ,यदि मैं कठिन समय में अपनी सहधर्मिणी का साथ नहीं दे सकता था तो फिर मैं कैसा जीवन साथी ,हुक्म जीवन में रुपैया पैसा सब अपनी जगह  है पर आपकी चिरसंगिनी से बढ़ कर नहीं, वो तो सबसे अनमोल है" कह कर बाकलीवाला ने ईश्वर नारायण के आगे दोनों हाथ जोड़ दिये !
 फिर एक गहरी साँस,भर कर बाकलीवाल ईश्वर नारायण से बोले-"हुक्म आप पहुंचे ऑफिस ,मैं वाइफ को  छोड़ कर तुरंत हाजिर होता हूँ दफ्तर  l "
 भौंचंके से ईश्वर नारायण बाकलीवाल को जाते देखते रहे !फिर जाने क्या हुआ कार से उतर कर तेज़ कदमों से चल कर ऑपरेशन थियेटर के बाहर जाकर खड़े हो गएl आज पहली बार उन्हे एहसास हुआ कि जिंदगी में पैसा कारोबार ही कुछ नहीं है l उनका बेटा शिव उन्हे हैरानी से देख रहा था --"क्या हुआ पापा ,आप गए नहीं ?मैं तो यहाँ था ही l:हाँ बेटा ,तू तो यहाँ था पर जाने क्यों मैं ही नहीं जा पायाल" कह कर ईश्वर नारायण फफक फफक कर रो पड़े !
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शुक्रवार, 15 मई 2015

*****हाइकु संकलन*****

पुरोवाक  
साहित्यिक परिप्रेक्ष्य   के संदर्भ में जब आज हाइकु विधा की चर्चा होती है तो पाते हैं किहिन्दी काव्य  जगत में इसकी लोकप्रियता  बढ़ती जा रही है !पिछली पीढ़ी के अनेक आलोचकों ने हाइकु कवि को विशेष महत्व न देकर उसे एक अल्पजीवी विधा ही माना था किन्तु पिछले कुछ वर्षों से  हाइकु काव्य ने काव्यजगत में अपना एक विशिष्ट स्थान बना लिया है !आज हिन्दी की सर्वाधिक पत्र पत्रिकाओं और परिशिष्टों में हाइकु प्रकाशित  हो रहे हैं !
हाइकु मूलत: एक अतुकान्त जापानी मुक्तक काव्य  रूप है जिसमें 5+7+5 ध्वनि घटकों (अक्षरों )के क्रम में तीन  पंक्तियाँ होती है lकुल 17 पंक्तियाँ और इन पंक्तियों में गूढ एवं गहरे भाव छिपे होते हैं !यह छोंटी सी काव्य विधा सृष्टि सौंदर्य का अनुभव कराती है !शिल्पगत अनुशासन में रहते हुए किसी भी विषय पर लिखा जा सकता है !इस छोटी सी काव्य विधा की अर्थव्यंजना  और भावबोध कभी कभी पूरी लंबी कविता की संवेदना विस्तार को समेटे रहती है !तभी तो कहा जाता है कि हाइकु बिन्दु में सिंधु है और गागर में सागर सा है  !इसकी प्रकृति लघु में विशाल की अनुभूति का सम्प्रेषण है !इसका क्षेत्र असीम है !हाइकुकार किसी भी वस्तु या सरोकार पर हाइकु सृजित कर सकता है !धरती का विशाल आँगन हो ,प्रकृति का विस्तृत रूप ,अंबर का नीला परिधान   हो या  रवि -शशि व सितारों का चमकीला संसार ,सभी, हाइकुकार को शब्द देते हैं !बस हाइकु की भाषा  सहज ,शुद्ध व सुंदर होनी चाहिये !हाइकु कविता का संबंध क्षणिक  अनुभूति से है इसलिए इसे क्षणकाव्य भी कहते हैं !कहते भी हैं कि हाइकु में कहा बहुत कम जाता है ,समझा बहुत अधिक जाता है ! अलग अलग लोगों ने
हाइकु की अलग अलग तरीके से व्याख्या की है !
डॉ वर्मा ने इसे शब्द की साधना कहा है तो जापानी हाइकुकार एवं प्रशिक्षक विद्धान बाशों ने हाइकु के दैनिक जीवन में अनुभूत  सत्य की अभिव्यक्ति कहा है !रवीद्र नाथ टैंगोर ने लिखा है कि हाइकु सत्य  की  ओर इंगित करने वाली सांकेतिक अभिव्यक्ति है शेष अर्थ पाठक की ग्रहण शक्ति पर छोड़ दिया जाता है !दरअसल कवि के हृदय की कोमल अनुभूतियों  का साकार रूप ही हाइकु है क्यूंकी इस विधा का सीधा संबंध हृदय से होता है !इसमें भी कविता की तरह सत्यम ,सुंदरम की अलौकिक रसधार प्रवाहित होती है! जीवन यात्रा मे हम बहुत से पड़ावों पर ठहरते हैं और फिर चल पड़ते हैं और आस्- पास  के परिवेश से अनुभव के सिक्के बटोरते चलते हैं और परिपक्वता के खजाने को सायास भरते रहते हैं !इसी तरह हाइकु परिपक्व होता है और शब्दों के खजाने से सम्पूर्ण होता  जाता  है !हाइकु का प्रत्येक शब्द अपने आप में पूर्ण कविता का भाव रखता है !कुछ भी कह देना हाइकु नहीं होता इसमें कविता कि गहरी समझ ,सरसता और आनंद के साथ अभिव्यक्ति का कौशल दृष्टिगोचर होना चाहिए !हाइकु का बड़ा गुण इसका संश्लिष्ट संक्षिप्त रूप व प्रतीक शैली है इसका भविष्य बहुत उज्जवल है !इसके छोटे से कलेवर में विशाल भाव का सागर बहता  है !इसीलिए  विविध विषयों को समाहित कर मैंने भी कोशिश की है कि जीवन के सभी पहलुओं का यथार्थपरक चित्रण कर सकूँ !
मन की बात ....
मैं लिखती  चली गयी
मुझ से बहुत लोगों ने पूछा की तुम कब से हाइकु लिखती हो?
 तो इस प्रश्न का जवाब देने के लिए मुझे बहुत सोचना नहीं पड़ा?!बस जरा सा यादों का झरोखा खोलना  पड़ा, माँ को भी अच्छी अच्छी किताबें पढ़ने का बहुत शौक था! पिताजी सिविल ईंजिनियर  थे !  साहित्य प्रेमी व  शायरी के शौकिन भी थे रोज सुबह चाय के साथ हम साहत्यिक विमर्श करते थे और मेरे पिता जी  कभी गालिब ,कभी मीर -दाग की  या अंगेजी लेखको  व  प्रसिद्ध  कवियों ,शायरों के प्रसंग व छोटी छोटी कवितायें  सुनाया करते थे l वे उर्दू और फारसी भी जानते थे ! उनके पास किस्सों का खजाना था !जब भी टूर पर जाते थे तो किताबें उनके पास होती थी ! कभी कभी मेरे लिए भी  ले आया  करते थे!   !घर में भी हर तरह की साहित्यिक पत्रिका आती थी! मुझे याद है वे  एक बार दिल्ली से लौट रहे थे तो  अज्ञेय जी करुणामयी उन्होने स्टेशन   बुक स्टाल से खरीदी थी,मुझे उन्होने पढ़ने के लिए कहा lतब से मुझे छोटे छोटे छ्ंदो में कविता लिखने का शौक शुरू हुआ था 1शायद उन्ही दिनों धर्मयुग पत्रिका जो हमारे यहाँ नियमित आती थी उसमें  हाइकु पर एक विस्तृत लेख भी आया था जोअगर ढूंढ तो कहीं अभी भी कहीं पुरानी किताबों में मिल जाएगा !तभी से मैं लघु कवितायें और हाइकु लिखने लगी थी 1 फिर  मुक्त छ्ंद पर आ गयी थी ,धीरे धीरे साहित्यिक लेखन की अन्य विधाओं में व्यस्त हो गयी  ...हाइकु कहीं पीछे छूट गये ! बीच में एक लंबा अंतराल पड गया था !फिर एक दिन अचानक  पुरानी डायरी हाथ लग गयी थी l उसमें मेरे बहुत से हाइकु मिल गए !और फिर एक बार फिर सिलसिला शुरू हो गया !  राजस्थान की जानी मानी कवयित्री सावित्री डागा जी के भी हाइकु उन दिनों देखने को मिलते थे !हालांकि तब  बहुत कम लोग हाइकु पर बात करते थे ! धीरे धीरे कम्प्युटर का युग शुरू हुआ और अलग अलग समूहों से जुड़ाव के साथ  ऑनलाइन लेखन भी आरंभ हो गया ! अभिव्यक्ति -अनुभूति में भी मेरी रचनाएँ आती थीं ! उन्ही के एक समूह अभिव्यक्ति से मुझे  पूर्णिमा जी ने जोड़ दिया था उस समूह में  हर शुक्रवार को छोटे छ्ंद हम समूह में लिखते थे  !इसी क्रम में  हाइकु लिखने का सिलसिला मैंने फिर शुरू किया चूंकि एक लंबा  अंतराल आ गया था तो कुछ पकड़ ढीली पड गयी थी कुछ शब्द छूट जाते थे तो पूर्णिमा वर्मन जी से मैंने   चैट कर जानकारी लेती थी  तब उन्होने हाइकु के नियम और उसके शिल्पगत अनुशासन के बारे में एक बार  नए सिरे से  विस्तार से  समझा कर  ,प्रेरित किया तो सिलसिला फिर शुरू हो गया! एक बार अभिव्यक्ति समूह में मैंने अपने हाइकु डाल दियेऔर वहीं से भाई रामेश्वर कंबोज जी से मेरा परिचय हुआ !अभिव्यक्ति  अनुभूति के माध्यम से वह मेरे लेखन के बारे में जानते थे !   
मेरे हाइकु जब उन्होने पढे तो  उन्हे पसंद आए और हाइकु पोस्ट की टिप्पणी में  उन्होने लिखा  कि कल आपके यह हाइकु हिन्दी ब्लॉग में लगेंगे और उसके बाद उनकी प्रेरणा से और मार्गदर्शन से मैंने हाइकु लिखने का सिलसिला जारी रखा !कभी भी पीछे मूड कर नहीं देखा !
 फिर तो हाइकु लिखने में बहुत  आनंद आने लगा !  बहुत सी पत्र पत्रिकाओं में मेरे हाइकुओं को स्थान भी  मिला जैसे राजस्थान पत्रिका ,मधुमती ,समाजकल्याण ,डेली न्यूज़,अनुभूति ,कविताकोष ,सृज़नजगाथा ,हिन्दी नेस्ट हाइकु सम्राट ,उदन्ती, हाइकु दर्पण ,हाइकुकोश ,सिंपली जयपुर ,आकाशवाणी  
सरस्वती सुमन ,परास ,लेखनी ,साहित्य समीर स्पंदन और भी बहुत सी ई-पत्रिकाओं में निरंतर हाइकु छपने लगे 1हर  विषय पर मैंने  हाइकु लिखे, प्रशंसा भी मिली !बहुत से साझा संकलन जैसे यादों के पाखी ,धरती की चूनर ,आधी आबादी का आकाश आदि में  स्थान मिला ! फिर सोचा की क्यूँ न हिन्दी हाइकु पर एक किताब भी निकाली जाये ! कुछ मेरा सौभाग्य रहा कि मेरी रचनाएं देश कि सभी राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं व अखबारों में छप चुकी थी 1 आकाशवाणी व दूरदर्शन से भी निरंतर जुड़ाव रहा! एक कवियत्री और लेखिका के रूप में अब मेरी पहचान बन चुकी थी ! इसी क्रम में एशिया के सबसे बड़े फ़ेस्टिवलल   जयपुर लिटरेरी फेस्टिवल में कवितनामा में भी मुझे कविताएं सुनाने का अवसर मिला ! जो एक बड़ी उपलब्धि थी !
इससे पहले  राजस्थान साहित्य अकादेमी के संस्तुत्य में मेरे दो काव्य संग्रह भी अब तक  निकल चुके थे  व साझा संकलन में बहुत सी कवितायें ,कहानियाँ ,हाइकु ,लघुकथाएँ व साहित्यिक   ,सांस्कृतिक ,शेक्षणिक लेख भी प्रकाशित हो चुके थे !  इसी बीच राजस्थान ग्रंथ अकादेमी से जैवप्रोध्योगिकी
पर एक पुस्तक व मोनोग्राम भी प्रकाशित हो गया था  1इसी के साथ साथ विभागाध्यक्ष  ,डीन ,व प्राचार्य  पद के दायित्व  के साथ साथ बहुत सी सामाजिक सरोकारों के दायित्व भी निभा रही थी 1  बहुत अधिक व्यस्तता थी घर की,  नौकरी व  बच्चों  की  पढ़ाई की ! इन  दायित्वों के कारण  संग्रह प्रकाशन का समय ही नहीं मिल रहा था ! हाँ कविता कहानी ,विभिन्न विषयों पर साहित्यिक ,सांस्कृतिक व शेक्षणिक लेख  समय निकाल कर लिखती व भेजती रहती थी ! छप भी रही थी !इसी बीच राजस्थान विश्व विद्यालय  से शौकिया पत्रकारिता भी किया और प्रथम स्थान प्राप्त  किया !  चूंकि लिखती स्वांत सुखाय के लिए थी तो  हमेशा मनमें  संतोष रहता था  कि लिख तो पा रही हूँ कम से कम  ! बहुत महत्वाकांक्षाएं मैंने कभी पाली भी नहीं थी ! इसलिए सारे दायित्व निभाते हुए लिखना पढ्ना हमेशा  जारी रखा ! अब   कविताओं के साथ  हाइकु तांका ,माहिया हाइबन सेदोका क्षणिका ,द्वारा भी अपनी संवेदनाओं ,भावनाओं ,विचारों और भावों को अभिव्यक्ति दे रही थी और इन विधाओं में   प्रशंसा भी मिल रही थी !विशेष तौर पर हाइकु विधा में संग्रह निकालने का मन हो   रहा था क्यूंकी  अब हाइकु विधा  में मिली प्रशंसा ने मुझ में  एक नया जोश भर दिया था और एक चाह पैदा हो गयी थी कि इतने सारे हाइकु लिख लिए हैं तो क्यूँ न पुस्तक में शब्दबद्ध किया जाये 1इस उत्साह में  भाई  रामेश्वर कंबोज हिमांशु  जी ने भी बहुत मार्गदर्शन किया   1 मेरे पति व बच्चे भी चाहते थे सो मैंने भी निश्चय कर लिया अब एक संग्रह आना ही  चाहिए ! समय कम मिलता था पर इन छोटे छंदों में जो कुछ कहा वो पाठकों तक पहुंचाने की अब ठान ली थी और समय निकाल कर पाण्डुलिपि तैयार कर ली !और छपने को दे दी 1अच्छी बने इसकी कोशिश भी रही हालांकि  कुछ शिल्पगत त्रुटियाँ अवश्य रही होंगी 1मुझे विश्वास है कि 
 सहृदय पाठक इसे नज़रअंदाज़ करेंगे !अब यह किताब पाठकों के  हाथ में है! यह केवल मेरी सफलता नहीं है इसमे उन सभी आत्मीय जनो का सहयोग शामिल ह है जो मुझे निरंतर प्रेरित करते रहे 1  उन सभी के प्रति मैं हृदयसे आभार व्यक्त करना चाहूंगी 1
मैं अपने पति श्री जे। एल॰ माथुर सहिब की  आभारी हूँ  जिन्होने इस लेखन यात्रा में मेरा पूरा साथ दिया ! मेरे हर हाइकु के पहले पाठक भी वही रहे 1आभारी हूँ अपने  बच्चों की जिन्होने मुझे हमेशा लिखते रहने को प्रेरित किया 1मैं आभारी हूँ रामेश्वर कंबोज जी व हरदीप जी की जिन्होने अपने ब्लॉग में निरंतर मेरे हाइकु लगा कर मुझे एक पहचान दी व नयी दिशा प्रदान की!1आभारी हूँ माया मृग जी  जिन्होने बड़े स्नेह से इन्हे पुस्तक रूप में प्रकाशित कर पाठकों तक पहुंचाया !अब कैसे बनी है यह पुस्तक यह तो सुधि पाठक ही  तय करेंगे !
डॉ सरस्वती माथुर
अनुक्रम
1.
अखंड दीप
घर द्वारे जलता
तम को पीता ।
2
तमस हरे
दीपक की शिखाएँ
आशा जगाएँ
3
उजास भरे
कार्तिक का दीपक


आस्था जगाए ।

 4

दीपों की पाँत


आलोकित हो जले


उजाला करे ।






5


भाई दूज पे


बहन ले बलैया


निरखे भैया l


6


ढेर खुशियाँ


भैया दूज है लाया


भाई जो आया l


7


भाई मिलता


बहन से दूज पे


मन खिलता l


8


बहिन के उर


छिपा भाई का प्यार


लोचन गीले l


9


भाई दूज पे


खींचे है बहन को


भाई का प्यार l


10


भाई के भाल


तिलक लगाकर


बहिना रोई l


11


दूज का टीका


बहनों की उम्मीद


प्रेम का मोल l


12






गिरते पत्ते

हवा- संग घूमते


तरु अकेला ।


13  


उदास मन


अकेलापन ओढ़े


डूबता गया ।


14  


सूने दालान


घेरता अकेलापन


डूबता मन ।


15


शाम का तारा


अकेलापन हमें


लगता प्यारा ।


16


आज का दौर


मेरा अकेलापन


मिट्टी- सा मन ।


17


प्रेम के तार


चाँद से बरसाते


रस फुहार l


18


मन पिया का l


चाँदनी के तारों से


चाँद ने बाँधा l


19


चाँद छन के


छलनी के छेदों से


प्रेम जगाता l


20


ज्ञान- ज्योति से


संस्कार जगाता है


श्रद्धेय गुरु l


21


गुरु -नेह को


पीकर के ही मिली


दिव्य रोशनी l


22


सींच प्रीत से


बोते हैं गुरुवर


बीज़ ज्ञान का


23


पिया मीरा ने


चरणामृत मान


विष का प्याला !


24


बोले मीरा जी  


जीवन न सुहाए


बिन कान्हा के l


25  


ओ राणा जी


श्याम रंग राची मैं


निर्मल प्रीत l


26


प्रेम दीवानी


मोहना रंग राची


प्रीत है साँचीl


27 


ढूँढ़े वन में


साँवरे गोपाल को


नैन सावन l


28


राधा है भीगी


प्रेम के रसरंग


कृष्ण के संग l


29


निहारे राधा


गोपियों संग कान्हा


रार मचाए l
30

सेनानी वीर


बदले इतिहास


देश ले साँस ।


31


राष्ट्रीय गान


मातृभूमि की शान


हमारा मान ।


32


तीन रंग हैं


प्रतीक आजादी के


शांति है माँगे ।




33


बहना बाँधे


भाई की कलाई पे


रिश्तों की डोर   


34


रेशमी धागा


आत्मीयता सहेज


रिश्तों में बांधा 


35


भाई का मन


झलकता आँखों से


रिश्ता पावन


36


प्रचंड धूप


घनी छाँव -सा लगे


भाई का रूप


37


रेशमी डोरे  


बहना लेके आयी


बाबुल चौरे


38


धागे का साथ


कभी न छूटे भैया


बहना का हाथ


39


नेह अपार


घर आँगन आया


राखी त्योहार


40


राखी की डोर


बहिन ने बाँधी तो


भाई विभोर l


41


दुआ देता है


भाई का स्नेही मन


रक्षाबंधन l


42


भैया के मन


स्नेह स्मृतियाँ लाईं


राखी जो आई !


43


पीताभ मन


रसभर के भीगा


चम्पई हुआ ।


44


बौछार करें  


तपती धरा पर


नभ के मेघ ।


45


नभ में सूर्य


मेघ के संग खेले


आँख मिचौनी ।


46


साँवली लगी


घटाएँ ओढ़कर


रात चाँदनी  ।


47


हरित धरा


मेघ की चुनरिया


ओढ़ के झूमी ।


48


नयी भोर में


मन के सपने भी


फूल हो गए ।


49


जल का प्याला


अमृत जीवन का


रस निराला !


50


जल चलनी


सागर लहरों से


रेत छानती ।


51


प्यासी है रेत


भीगी लहरों संग


जल सोखती।


52


मन में छल


मटमैली सोच का


गंदला जल ।


53


पिता का सत्य


है जीवन का कथ्य


नमन पिता  ।


54


सदा प्रेम है


पिता ने बरसाया


वो तरु छाया ।


55


गहरी छाया


पिता है सरमाया


वृक्ष से तने ।


56


नभ में पिता


दिव्य तारों से दिख


चमकते -से ।


57


हाथ थाम के


पिता कराये पार


कठिन राहें ।


58


पिता दिए- से


आत्मविश्वास भरी


बाती जलाते  ।


59


धूप छाँह से


पिता ने सहेजे थे


जीवन रंग  ।


60


बेटे -बेटी का


पिता से होता नाता


तरु शाख -सा  ।


61


पिता का रूप


हमारे जीवन में


ईश स्वरूप  ।


62


पिता का मन


बच्चों के जीवन में


गुलाब गंध ।


63


पिता समता
तोल सकती नहीं
कोई तराजू  ।


64


दुआ के फूल


रूह चिड़िया को भी


हैं लौटा लाते ।


65


मन है बांटें


भावों   के गुलदस्ते


 हवा महके ।


66


खोल के देखो


दुआ के दरवाजे -


चैन मिलेगा ।


67


विश्वास बुनो 


 दुआओं का सूरज


उदित करो


68


जाल फेंकता


स्वार्थ का बहेलिया


आओ छुड़ाएँ ।


69


कड़ी धूप में


माँ की ममता लगे


खुला-सा छाता l


70 


घर – देहरी 


बच्चों के लिए होती


माँ तो प्रहरी l


71


सपने -सी माँ


याद करते हैं तो


आ जाती है माँ l


72 


प्रेम -डोरी माँ


बच्चों  की है दृष्टि  माँ


ईश सृष्टि माँ  l


73 


बच्चों की माली 


करती  है दिल से


माँ रखवाली l


74


 जागो श्रमिक


 तुम ही हो निर्माण


 शक्ति के बाण  ।


75


खाली पतीली


 बुझा ठंडा चूल्हा है


पेट में आग ।


 76


ईंटें ढोकर


 इमारतें बनाईं


 तो रोटी खाईl


77


 धूप तपन


श्रमिक का तो बस


यही जीवन  ।


78


फूल सा हूँ मैं


शूलों पर ही सोता


स्वप्न संजोता ।


79


कच्ची थी धूप


आँगन बुहार के


तरु पे चढ़ी l


80


खोल करके


सूरज  की चादर 


धूप  ने ओढ़ीl


81


नव प्रभात


धूप  भँवरों पर


हुआ मोहित l


82


धूप  के रंग


फुलकारी काढ़ते


धरा -चुन्नी पे l


83


प्रेत सी डोले


धरा – आँगन पर  


बौराई  धूप  l


84


सूखी पतियाँ


याद दिला गई हैं


अंतिम विदा l


85


आखिरी पत्ता


हवा में लहराया


मौन विदाई l


86


आहट देता


आया है पतझड़


खाली घरोंदा l


87


कच्ची कैरी से


पत्ते हैं टपकते


पतझर में ।


88


तांडव करें


पत्तों के भँवर भी


पतझड़ में l


89


तैरते पत्ते


पतझरी नदी में


जलपाखी –से ।


90


उँगली थामे


हवाओं में टहलें


सूखे ये पात ।


91


पतझड़ में


पेड़  पौधों ने रखा


दो पल मौन ।


92


सूखे पत्ते भी


तपती हवा संग


छाँह ढूँढ़ते l


93 


सपने टूटे


समय बलवान


पड़ाव छूटे ।


94


आदि न अंत


समय- गतिमान


चले अनंत ।


95


नदी- सी नारी


प्रवाह के साथ है


आगे बढ़ती l


96


खिलने देना


नारी सुमन को भी


महकेगी वो l


97


नर व नारी


एक डाल से जुड़े


महके फूल l


98


धरा- गगन


जहाँ भी देखो नारी


लगती भारी l


99


नारी है दीप


हवा झकोरों में भी


देती उजाला l


100


रुके न नारी


जल- थल- नभ में


सहज चले l


101


उड़ने भी दो


नारी को गगन में


पंख पसारे l


102


सेनानी वीर


बदले इतिहास


देश ले साँस l


103


वीर जवान


कोटि- कोटि प्रणाम


ये देश महान् l


104

बहे उजास

नववर्ष भास्कर

लगेगा खास l

105

धूप दोने में

मिठास भर- लाया

है नववर्ष l

106
सर्द हवाएँ
हिम -पहाड़ों पर
अलाव ढूँढ़े l
107
मरु ने ओढ़ी
धौलाधार चाँदनी
रात निखरी l
108

बर्फ के फाहे
पहाड़ों की घाटी में
पाखी -से उड़े l
109.
हवा के सुर
मौन पहाड़ों पर
गीत बुनते  l

110

भीगी वर्तिका
दीप का तेल सोख
तम को  पीती l
111
माटी के दीप
बाँधकर तम को
रोशनी देते l
112
समाहित हो 
वर्तिका  दीपक में
उजास देती      
113
नेह दीप से
हटाना होगा अब
मन का तम l
114
अँधेरी  रात
झिलमिल लगती
दीप ज्योत से l
115
देहरी द्धार 
चमकीले तारों सी
दीप- रंगोली 
116
लक्ष्मी आए तो 
आँगन  का दीपक 
पूर्णिमा  हो जाए  l 
117
रसपगा -सा
दीपावली पर्व है
तम  भगाए !
118
कार्तिक दीप
उजास लुटा कर
 आस्था जगाए l 
119
युग की वाणी  
गांधी के हथियार
सत्य अहिंसा l
120
हो सूत्रधार
आलौकिक उदार
शांति के दूत l 
121
युग पुरुष
अहिंसा   दीप जला  
देश जगाया l
122
चहके बेटी
 घर माँ का वासंती
 बेटी कोयल ।
123
अमराई सी
 शीतल सुरभित 
होती बेटियाँ ।
124
झरने जैसी
कलकल करतीं
गीत बेटियाँ ।
125
उन्मुक्त डोलें
प्रकृति की गोद में
पाखी बेटियाँ ।
126कुंकम रोली
विश्व में चमकती
हिन्दी की बोली ।
127
परचम है
हिन्दी का लहराता
मान बढ़ाता ।

128
सात सुरों -सी  
गौरवमयी भाषा
जन की आशा ।
129
अमृत- रस
कानों में है घोलती
मधुर  भाषा ।
 130
हिन्दी भाषा है
अमृत की गागर
ज्ञान- सागर ।
131
नभ में बिंदी
चमके चाँद- सी
हिन्दी की बोली ।
 132
पूज्य गणेश
करते हैं कल्याण
देव महान l
133
गुरु आईना
शिष्य झाँके उसमे
अक्स देखते।
134
गुरु का स्नेह
होता है अनमोल
ज्ञान बाँटता l
135
बीज ज्ञान का
बोते हैं गुरुवर
सींच  प्रीत   से l
136 
गुरु की डोर
विद्यार्थी पतंग- सा
उड़ना सीखे l
137
ज्ञान- रस को
पीकरके  मिलता
दिव्य प्रकाश l
138
गुरु की वाणी
अनुभवों की होती
खुली किताब l
139
जमुना तीर
मुरली- कान्हा छेड़ें
राधा अधीर  ।
140

कदम्ब- डाल
राधा संग झूलते
मदन गोपाल !
141
महके मन
प्यार की राखी पर
स्नेह बरसे l
143
भाई- बहिन
मधुरिम -सा रिश्ता
राखी ने जोड़ा l  
144 
मोती रेशम
बहिन की राखी में
बँधा सा मन l
145
खिला- खिला -सा
बहिन का चेहरा
आई जो राखी l
146
राखी है तार
रसपगा त्योहार
भाव पावन l
147
बहिन- उर
भाई का प्यार छिपा
लोचन गीले l
148
रिश्ता पावन
राखी मनभावन
स्नेह बंधन ।

149
राष्ट्रीय पर्व
मशाल -सा है दीप्त
तिरंगा प्यारा।
150
देश की भक्ति
मन को देती शक्ति
त्याग माँगती ।

151
पीली चूड़ियाँ
  हाथ में पहन के
सजी थी चंपा ।

152
चंपा की  कली
प्राची की लालिमा में
तरु से झरी।

153
हवा थी आई
सुरभि ले चम्पा की
पाखी -सी उडी ।
154
तारों जड़ी थी
पीतवर्णी साडी भी

चंपा  ने ओढ़ी ।
15५
प्रेम -दीपक
जला जब मन में
खिला यौवन  l
156
बूँदें खनकी
इन्द्रधनुष छाए
नभ – आँगन
157
बूँदें बनके
वर्षा के तीखे  बाण
धरा  भेदते
158
बादल हँसे
रोई बूँदे नभ में
धरा भी भीगी
159
रसभीने से
कजरारे घन थे
धरा पे आए
160
हवा  महकी
बादलों के पार से
बूँदें छानती
161
बाढ़ का शोर
सन्नाटों का कफन

नम नयन

162
अपने हुए
बाढ़ में समाधिस्थ
सन्नाटे चीखे  ।
163
बाढ़ का शोर

मातम परोस के
दहाड़ें मारे !
164
बाढ़ का पानी
बूढ़े- बच्चे- जवानी
बहा ले गया
  l
165

 एक कहानी

बाढ़ बहा ले गई

क्यूँ जिंदगानी
?
166

बाढ़ का जल
यमराज सा आया

रूहें ले गया !
167
चीखें लोगों की

पहाड़ों पे बिखरी
मातम छाया ।
168
जल तांडव
पहाड़ों पे  करता

धरा उतरा  ।
169 
सूखे कंठ की
बहती धाराओं में
बुझे न प्यास l
170
चुप्पी थी छाई
कोमल संबंधों में

दरार आई
l
171
अबोले रिश्ते

चुप्पी की दीवारों पे

आके बिखरे  ।
172
गुलमोहर
सोने की अशर्फियाँ
धरा पे वारे l
173  
लाल फूलों का
गुलमोहरी शाल 
धरा पे सोहे l
174
ज्वाला दहके
गुलमोहरी मन
झिलमिलाए l
 175
पुष्प शृंगार
गुलमोहरी हार
धरा अंगार l
176
धूप में आग
सुर्ख गुलमोहर
दहके ख्वाब l



177
ग्रीष्म निखारे
पुष्पित झूमर का
कुंदन रूप ।
178
अपलक हो
धरा को निहारता
अमलतास ।
179
अमलतास
उबटन मल के
खूब दमके ।
180
चूम धरा को
मखमली पलाश
सिन्दूरी हुए l
181
धरा के गाल
पलाश की  लाली से
सुर्ख हो खिले l
182
खिला पलाश
पुरवा ने छुआ तो
हुआ वो लाल l
183
पलाश मन
हवा के आँचल सा
उडता गया l
184 
चाँदनी आई
पलाश को ओढ़ाई
लाल ओढ़नी l
185
पलाश -पुष्प
पुरवा से लिपट
रक्तिम हुआ  !
186
माँ की ममता
एक दिए के जैसी
रौशनी देती l
187
हवा झोंके -सा
ममता का आँचल
खुशबू देता l
188
रस- पगी -सी
ममता से भरी माँ
ज्यूँ ठंडी छाँव l
189
मन सिन्धु में
ममता की हिलोरें
लहरों -सी माँ l
190
माँ का है मन
तपती सी धूप में
ठंडा बिछौना l
191
दुआएँ  माँ की
ठंडी पुरवाई- सी
सुगंधमयी l
192
लहरों -सी माँ
ममता का सागर
बच्चे किनारे l
193
तरु छांह -सी
माँ की ममता होती
प्यार लुटाती l
194
है  माँ में भरा
 ममता का आवास
 माँ है विश्वास l
195
माता का मन
बच्चों के जीवन में
फूल सुगंध l
196
माँ ही आकाश
माँ ही होती धरती
बच्चों की साँस l
197
पेड़ों के साये
लरजती धूप में
तमतमाए ।
198
मन -आकाश
पतंग -सी लुटती
नींद हमारी ।
199 
यादें रोक लें
मन में चलो अब
 कर्फ्यू लगाएँ l
200
सजी -सँवरी
देखके चाँदनी को
 बिखरा चाँद ।
201
भीगे मौसम
मन की डायरी पे
स्याही फैलाए ।
202
बिछड़े पात
तरु अकेला झेले
यह आघात
203
चाँद -तारों की
चौपाल बैठी साथ
हुई जो रात l
204
रूह अकेली
शरीर-नीड़ छोड़
 यात्रा को चली ।
205
मीठी आहट
आई नवरात्रि की
शक्ति आस्था की
206
माँ तो होती है
मन के मंदिर में
शंख ध्वनि सी 
207
बजी झांझर
उड़ते गुलाल पर
फागुन रीझा ।
208 
धरा पे झूमें
फगुनाया मौसम
बौराए रंग।
209
मन के रंग
दहके पलाश से
फागुनी हुए ।
210
बहता मन
लहरों सा उछल

छुए किनारा l
211
बौराई हवा
एक पाहुन बन
घर पे आई ।
212
चोर द्वार से
मन बाहर आया
घूमता रहा ।
213
यादें बंद थी
पिंजड़े की मैना -सी
व्याकुल – मन ।
214
नील गगन
महफ़िल तारों की
चाँद -अकेला ।
215
गाँठें खुलीं तो
रिश्ते भी धीरे- धीरे
खुलते गये ।
216
देहरी लाँघ
बाहर आई नारी

उड़ान भरी l
217
दीप है नारी
हवा झकोरों में भी
ज्योत -सी जले l
218
ऊँची उड़ान
भरती अब नारी
सभी पे भारी l
219
ना रु
कूँ अब
ना ही झुकूँ कहीं भी
मन गगनl
220
प्रेम- निर्झर
मन की शिला तोड़
बहता रहा l
212
भोर- सुहानी
चिड़ियों की चहक
हवा -रागिनी l
222
चाँदनी रात
प्रीत के चाँद संग
मीत का साथ l
223
लाल गुलाब
प्रेम रस -पीकर
रसीला हुआ  ।
224 
जीवन डोले
प्रेम भँवरा जब
खुशबू घोले
225
सिन्धु -आँचल
डूबती साँझ संग
भीगा सूरज ।
226 
जीवन- झारी
रीतती जाती कब
कोई न जाने l
227 
पिंजरा बोले
रूह छोड़ के उड़ी
जीवन -धूप l
228
चहके पाखी
महके सुमनो पे
बसंत आया ।
229
फूलों पे घूमे
रंगीली तितलियाँ
मधु बटोरे  ।
230
फूलों के रंग
बसंत के संग में
धरा निहारे  ।
231
धरा पे आया
ऋतुराज बसंत l 
महका मन ।
232
प्रेम -दीपक
जला जब मन में
खिला यौवन ।
233
प्रेम -जुगनू
भावों की बाती जला
रौशन हुआ  ।
234
प्रेम से भरी
भूली बिसरी यादें
महका मन l
235
प्रेम का रंग
दहके पलाश सा
मन रंगता l
236
भीगा ये मन
मौसम ने बजाई
प्रेम मृदंग ।
237
मन बुना है
गीत -छंदों के साथ
पिरोके तुम्हें ।
238
शब्द गुनती
पहाड़ी बुलबुल
गीतकार- सी  ।
239
तारों की रात
चाँद के साथ- साथ
अम्बर छाई  ।
240
सुबह सोए
रात भर जागते
चाँद -सितारे  ।
241
खोले न खुले
रिश्तों की बँधी गाँठ
धागे उलझे ।
242
सपना मेरा
नींद के पंखों पर
उडता गया ।
243
चिट्ठी जोड़ती
बाँध करके मन
रिश्तों के तारl
244
रसपगा -सा
नववर्ष जो आया
सभी को भायाl
245
नव वर्ष भी
झरने -सा उतरा
शोर मचाता ।
246
नए साल में
रोशनी बिखेरती
सजी धरती ।
247
झुरमुट से
झाँकता नववर्ष
जैसे चन्द्रमा ।
248
नया सवेरा
नववर्ष का सूर्य
रंग बिखेरे ।
249
चीं -चीं करता
नववर्ष का पाखी
गीत सुनाए ।
250
नववर्ष भी
कलकल नदी- सा
बहता आया ।
251
नववर्ष का
उदित हुआ सूर्य
धरा पे आयाl
252
बेटी न भार l
बेटी की अस्मिता हो
क्यों शर्मसार ?
253
सूर्य- जुलाहा
धुँध की सर्द रुई
भोर में बुने ।
254
शीतल हवा
सर्द सुरमई- सी

जाड़ा जो आया  ।
255
 गुलाबी जाड़ा
सूरज अलाव में
पिघल उठा ।
256
काँपे कोहरा
जाड़ों की दुपहरी
सूर्य न आया  ।
257
ओस -कलम
ठिठुरी धरा पर
मोती उकेरे  ।
258
ठिठुरा दिन
धरा को ओढ़ाए है
धुन्ध का शाल
259
हवा उड़ाए
कोहरे की चादर
सर्दी की भोर ।
260
हेमंती दिन
शिशिर हिमकण
विहग मूक l
261
सोई घाटी में
सर्द हवाएँ बोलें
डरे पाखी -सी  l
262
सर्दी की धूप 
 मुंडेर पर बैठी
सूरज पीती ।
263
बर्फ -लिहाफ़
ओढ़ खड़े पर्वत
संत- से लगे  l
264

पंछी हैं  म
एक डाल पे बैठे
मिले हैं सुर ।
265
ख्वाब उगा है
आँखों के नभ पर
नींद चकोर ।
266 
दूर हवाएँ,
तिरते पाखी-स्वर
मन थिरका ।
267
मन का पाखी
पी अतल उदासी
जाने क्या बोले ?
268
सूर्य डूबा तो
बिदा गीत सुनाया
संध्या -पाखी ने  ।
269
उदास पाखी
मुँडेर पर आज
मिला न दाना ।
270
पंख0 खोल के
डोलते हुए पाखी
हवा टटोलें ।
२71
हवा की सीटी
सुनके जागे -भागे
पाखी बिचारे  ।
272
उड़ा कपोत
पंख फडफड़ाता
डाकिया हँसा  ।
273
नभ को ताके
पिंजरे की चिड़िया
उड़ न पाए ।
274
सागर- पाखी
है लम्बी उड़ान
पंख  हैं फैले ।
275
चाँद आया तो
चाँदनी ने पेड़ों पे
जालियां बुनीं ।
276
चाँद सकोरा
चाँदनी पीकर के
रात बिताए ।
277
चा27द की डली
किरणें बनकर
रात पिघली  ।
278
खामोश रात
चाँदनी किरणों से
रोशन हुई  ।
279
चाँद पतंग
चाँद
 नी डोर बांध
हवा में उड़ा l
280

पर्व अनूठा

सद्भाव के  सुमन
गुरु ज्ञान दें  ।
281
बाँटते गुरु
ज्ञान के हीरे- मोती
अनूठी ज्योति ।
282
ज्योति अखंड
गुरुद्वारे जगा है
आस्था -उजाला  ।
283

गुरु प्रसादी
लंगर में बँटती
घटती दूरी

284
गुरु की दुआ
कार्तिक पूर्णिमा को
चाँदनी लाई ।

285

गुरु- नमन
मधुर रस घोले
पर्व पावन ।

286
रसपगा सा
गुरुनानक पर्व
आस्था के रंगl
287

ज्ञान की ज्योति
सबद सुगंध से
प्रेम फैलाती ।
288
आओ लक्ष्मी जी
कार्तिक की रात में
बन पूर्णिमा
289
चौरे पे दीप
रोशनी बिखराए
लक्ष्मी आए ।
290
दीप बाती भी
जुगनू -सी चमके
लौ बिखेर के  ।
300
ज्योत जलाओ
घर -घर दीपों के
मोती सजाओ  ।
301
धरा पे तम
पर किया रौशन
लक्ष्मी ने मन  ।
302
दीप शिखाएँ
चमकीले तारों- सी
जगमगाएँ
303
घर में सजी
दीपों की रंगोली
मन रौशन
304
हे प्रकृति माँ !
तुम्हे सीचेंगें हम
स्वच्छ जल से
305
पेड़ों से आई
आक्सिजन ही देगी
नवजीवन ।
306
ऑक्सिजन से
साँस धरा ले सके
तरु न काटों
307
वन जलेंगे
याद रखना तब
 तन जलेंगे ।
308
साफ़ रखके
सागर -गर्भ तल
जीव बचाओ ।
309
अनंत प्यार
चाँद से छनता है
चौथ की रात ।
310
पति- पत्नी का
सम्बन्ध अनुपम
चाँद है साक्षी  ।
311
पिया को देख
सजनी की आँखों में
चाँद उतरा ।
312
नभ के भाल
चाँद बिंदिया सजा
चौथ है आई  ।
313
प्रेम के तार
चाँद से बरसाते
रस -फुहार  ।
314
चाँद देखेंगे
रेशमी छलनी से
चांदनी छान
315
चाँद के तार
खींच लाएँगे आज
पिया का प्यार
316
करवा चौथ
बंधन अनमोल
पिया हैं पास  ।
317
चाँद रस में
नहा कर आता है
करवा पर्व l
318  
सूर्य सोने का
स्वर्ण किरण ले
सागर घूमे
319
धूप- रेवड़
गड़रिया सूरज
हाँक ले गया
320
पीताम्बरी- सी
साडी पहन कर
संध्या निकली  ।
321
रात ओढ के
सर्दी का गर्म शाल
नभ में सोई  ।
322
जागी भोर तो
भरी नयन-कोर
रवि -लालिमा ।
323
धूप मछली
मछुवारे सा फेंका
सूर्य ने जाल
324
प्यासी थी रेत
भीगी लहरों संग
खार सोखती ।
325  
ख़ुशी के फूल
मन – बिरवे  पर
खिले खिले -से
326
नभ -सागर
तारों का  मीन-पुंज
तिरता जाए ।
327  
पानी- चलनी
सागर लहरों से
रेत छानती ।
328
यादें काँकर
गिरें मन -सागर
अक्स डोलते ।
329
मन -सागर
छ्प-छप तिरती
यादों की नाव ।
330
यादें जो उड़ीं
अतीत नभ तक
घटा -सी तिरीं  ।
331
यादें अंकित
मन- कैनवास पे
तस्वीरों- जैसी ।
332
शहनाई -सी
मन  की दुनिया में
गूँजती यादें  ।
333
भटकी यादें
आवारा बादल -सी
बिन बरसे  ।
334
यादों का चाँद
खोये -खोये मन -सा
गगन चढ़ा  ।
335
आँसू  के  जैसी
यादें -पलकों -सजीं
थिर हो गईं ।
336
पाखी- सा मन
यादों के पिंजरे में
फड़फड़ाए ।
337
मन- डोर पे
पतंग -सी यादें
गगन उड़ीं  ।
338
भीगा मौसम
बीज -सी दबी यादें
अँखुवा गईं ।
339
डूबता सूर्य
चूम के सागर को
लाल करता 
340
सागर पर
हरी- कच्ची लहरें
नावों सी चली
341
कुम्हार सूर्य
धूप की चाक पर
किरण गढे
342
कपूरी धूप
नीम टहनियों से
पाखी सी झाँके
343  
सूर्य ने देखा
अपना प्रतिबिम्ब
भोर शीशे 
344
रूह तितली
शरीर का रस पी
हवा -सी उड़ी ।
345
आकाश-अंक
नटखट सूरज
धूप पटके ।
346
हवा थी आई
सुरभि ले फूलों की
पाखी -सी उड़ी ।
347
सुमन-सिन्धु
तैरती तितलियाँ
हवा लहरें  ।
348
खाली पड़े हैं
भरूँ किस रंग में
पन्ने मन के ।
349
यादों का चाँद
मन टहनी पर
टिका बैठा था ।
350
कागा बोला तो
इंतज़ार की यात्रा
शुरू हो गई ।
351
हिरनी -यादें
अतीत जंगल से
भाग निकलीं
352
तारों जड़ी थी
नीलवर्णी साड़ी भी
नभ ने ओढ़ी ।
353
मन नभ में
काली घटा सी तैरें
भीगी सी यादें  l
354
श्यामल घटा
सतरंगा धनुष
मल्हारी ताने ।
355
आखिरी पत्ता
हवा में लहराया
मौन विदाई ।
356
पतझड़ में
झरी पत्तियाँ उड़ीं 
चरमराई ।
357
तैरते पत्त
पतझर - नदी  में
जलपाखी -से  ।
358
उँगली थामे
हवाओं में टहलें
सूखे ये पात  ।
359
हवाओं- संग
पतझड़ के पत्त
दिखें पाखी -से l
360
सूखे पत्ते भी
तपती हवा संग
छाँह ढूँढ़ते  ।
361
सूखी पत्तिया
सपनो की
झरती रही  ।
362
वर्षा की बूँदें
पत्तों पर टपकी
संगीत बना ।
363
वर्षा आई तो
टपकते छप्पर
ढोल बजाएँ ।
364
बरसी वर्षा
फूलों के तन चाक
बूँदें बेबाक  ।
365
बूँदें बरसी
टप- चट-चुट -सी
भादों जो आया ।
366
धवल घटा
धारासार बरसी
माँ के दूध- सी
367
बारिश आई
जंगली गुलाब- सी
खुशबू छाई  ।
368
कौंधी तडित
बादलों के पार से
चाँदी छानती
369
बारिश पीती
धरती हरी हुई
चहके पाखी
370
वर्षा बहार
बूँदे बंदनवार
घटा अनूठी
371
माटी महकी
आई वर्षा रानी की
पी जलधार  ।
372
बादल हँसे
रोई बूँदे नभ में
धरा भी भीगी  ।
373
प्यासी नदिया
बरसो बदरिया
धरा बुलाए  ।
374
रूह तितली
शरीर का रस पी
हवा सी उड़ी ।
375
आकाश-अंक
नटखट सूरज
धूप पटके ।
376
हवा थी आई
सुरभि ले फूलों की
पाखी -सी उड़ी ।
377
सुमन-सिन्धु
तैरती तितलियाँ
हवा लहरें  ।
378
खाली पड़े हैं
भरूँ किस रंग में
पन्ने मन के ।
379
यादों का चाँद
मन टहनी पर
टिका बैठा था ।
380 
कागा बोला तो
इंतज़ार की यात्रा
शुरू हो गई ।
381
हिरनी- यादें
अतीत- जंगल स
भाग निकलीं ।
390
तारों -जड़ी थी
नीलवर्णी साड़ी भी
नभ ने ओढ़ी ।
391 
मन -नभ में
काली घटा -सी तैरें
भीगी -सी यादें  ।
392
केसर रंग
शान्ति दूत सफ़ेद
 हरे के संग
393
ध्वज हमारा
विश्व भर में न्यारा
नयन- तारा l
394
कोंपल उगी
आजादी की देश मे
त्याग – बीज  से .
395
त्याग का पथ
 शहीदों ने चुना था
 उन्हें नमन ।
396 
 शीश न झुका
 शहीदों का कभी भी
 हुए कुर्बान  ।
397
  शीश झुकाऊँ
 राष्ट्रीय पर्व पर
  चढाऊँ पुष्प  ।
398
 बालरूप में
नटखट गोविंदा
मैया का चंदा
399
कान्हा बजाए
बाँसुरी की तान तो
राधा को भाए ।
400
सात सुरों में
स्नेह -झरी बाँसुरी
अधर -धरी ।
401
रास रचाए
कृष्ण कन्हैया लाल
राधा जी साथ  ।
402
मधुबन में
गोपियों संग कान्हा
निहारे राधा  ।
403
मुरली सुन
बावरी- सी राधिका
ब्रज में डोले ।
404
ब्रज की माटी
यशोदा का नंदन
जैसे चन्दन
405
बहने हैं होती
अनुभूति से भरी
मिश्री -मिठास ।
406
शुभ- मुस्कान
रिश्ते की घनी छाँव
रक्षाबंधन  ।
407
मखमल -सी
बँधी कलाई पर
चमकी राखी  ।
4 08
रिश्ते की डोर
भाई की कलाई पे
आस्था से बाँधी l
409
मधुर यादें
भाई- बहिन भीगे
राखी रस में ।
410
सावन आया
मधुर रस घुला
‘राखी पर्व’ में ।

बहिन हँसें
मनभावन प्यार
राखी पे बाँध


8


भाई का मन


झलकता आँखों से


रिश्ता पावन ।


9


भाई -बहिन


रक्षा पर्व की वर्षा


भीगते दोनों  ।


10


दूर देश से


डोरी लायी बहना


रिश्तों को बाँधा।


1


ऋतु सावन
तीज मनभावन
झूलों पे गौरी  ।


2


तीजो ले आई


बागों- झूले-हिंडोले


रुत मेलों की  ।


3


तीज तितली


फूलों के झूलों पर


पींगे  बढ़ाती  ।


4


ऊँची पींगे ले


संग सहेलियों के


झूले लरजे  ।


5


बागों में झूले


हरियाली तीज के


गीत सुरीले ।


 6


झूला झूलती


बालाएँ गीत गाएँ


सावन भाए ।


7


तीजों के पाखी
सावन के नभ में


झूलों के पंख  ।


1रेत की नदी
डूबते सूरज में
चमकती -सी  ।
2
काली थी रात
रोता रहा उदास
प्यासा चकोर ।






1-पलाश


  1


 पलाश फूल


हवा चुनती डोली


लाल हो गई ।


2


धरा निहाल


बटोर कर लाल


पलाश – फूल ।


3


पलाश -मन


हवा के आँचल- सा


उडता गया ।


 4


पलाश -फूल


लाल मोती से गिरे


धरा पे जड़े ।


5


मेहँदी लगा


खिले- पलाश फूल


 रंग ले आए  ।


 -0-


2-अमलतास





6


खुली मुँडेर


हँसता  बतियाता


अमलतास ।


 -0-


3-गुलमोहर


7


धूप- लहरें


माणिक बरसाता


गुलमोहर  ।


8


गुलमोहर


गरमी की भट्टी में


अंगारा हुआ ।


9


ज्वाला दहकी


हवा से सहमा- सा


गुलमोहर ।


 -0-


4-सूरजमुखी


 10


सूरजमुखी


पौधे के कंगूरों से


तके सूर्य को  ।


11


 अपलक  हो


मोहित सूरजमुखी


सूर्य को देखे ।


 -0-


 5-चंपा – चमेली


12


चाँद उतरा


कटहली चंपा -सा


खिड़की पर


 13


चंपा की गंध


काँच की चूड़ियों सा


दूधिया मन


14


रात की स्याही


दूधिया जुगनू से


चमेली फूल


1


प्रेम पिता का


रात में चमकते


तारे के जैसा  ।


2


झिलमिलाता


झील गहराई सा


पिता का रूप ।


3


गहरी धूप


छायादार पिता हैं


देते राहत ।


4


वृक्ष से तने


पिता हैं सरमाया


गहरी छाया  ।


5


आँगन खड़े


बरगद छाया से


विशाल पिता ।


6


उँगली थामे


जैसे बहते धारे


पिता हमारे ।


7


पिता -मसीहा,


घर के औसारे में


जलता दिया ।


8


ईश से लगें


द्वार के  सतिये -से


सजे हैं पिता  ।


9


नाविक जैसे


बचपन की नाव,


खेतें हैं पिता ।


1


गोधूलि बेला


झीलों के दर्पण में


जल पाखी -सी  ।


2


गीले मन को


डाल अलगनी पे


धूप दिखाई  ।


3


सूखे गुलाब


मन- किताब में भी


देते खुशबू  ।


4


मन -चौबारे


पावस ऋतु -द्वारे


मेघ सलोने ।


5


ओस की  बूँदें


ओक भर धूप पी


उडी पाखी- सी  ।


6


याद – लहरें


ले डूबी लिखा नाम


मन-रेत पे ।


श्वेत चूड़ियाँ


भरके कलाइयाँ


सजी शेफाली


2


सूरजमुखी
पौधे के झरोखे से
सूर्य निहारे
3


हवा में घुल
गुलाब के फूल भी
‘खुशबू बने


4


 मोगरे दाने


 चुनता हवा पाखी


 चोंच मारके


5


उनींदा दिन


सफ़ेद गुलाब से


रंग ले भागा


 6                                       


 हवा तितली


 मोगरे का रस पी


 गंध ले उडी 


7                                                                       


  खोल सी गयी


 सूरजमुखी धूप


 सूर्य की आँखें  


8


  कच्चे घड़े से


 पारिजात टूटे  थे


  पाखी से उड़े


 9


चाँदनी आई
शेफाली को ओढ़ाई
श्वेत चूनर  10


सफ़ेद चोला
ओढ़ हरसिंगार


खिला महका


1


मौसम टेसू


 मन हुआ फागुन


 होली के संग


2


 महकी हवा


रसपगी होली सी


बिखरे रंग


3


होली के रंग


उमंग नवरंग


भंग के संग


4


  भीगते मन


 फगुनाया मौसम


  होली के रंग


5


  भीगी सी होली  


  फागुनी बयार में


  रसपगी सी


6   


पीत पराग


आँगन में गुलाल


 होली तो होली


7


रंग गुलाल


अक्षत चन्दन में


 भीगे से तन


      8


भीगा सा तन 


अबीर गुलाल से


  हरषे मन


      9


फागुनी रंग


चंग मृदंग भंग


आगई होली


      10


 भंग के संग  


 फागुन का मौसम


  होली के चंग 


चिरैया उड़ी


तेज आँधी से लड़ी


बिखरे पंख।



2


नींद नदी -सी


लहरों-सा सपना


बहता रहा l


3


दूर है नाव


लहराता-सा पाल


हवा उदास ।


4


भीगे हैं तट


पदचाप बनाती


बिखरी रेत l


5


नदी -सा मन


बहता लहरों-सा


सागर हुआ ।



6


डूबती साँझ


जीवन -सी उतरी


विदा के रंग


7


धूप- पंखुरी


खिली फागुन बन


बजे मृदंग












































सूर्य मदारी


धूप की पुतलियाँ


रोज नचाये





सूर्य डाकिया


धूप के ख़त लाया


भोर- थैले में





पूनी- सी धूप


सुबह के चरखे पे


किरणे काते





रात की स्याही


भोर के कागज पे


धूप कलम





भोर पहने


सूर्य की कलाई पे


धूप की चूड़ी





पाजेब डाल


हवा की घास पर


सुबह घूमी





सूरज छोड़े 


धूप की केचुलियाँ


दिन सांप- सा





सूर्य चेहरा


धूप के कर्णफूल


चमकते से





धूप के मोती


तरु गले लटके


माला के जैसे


१०


सागर तीरे


उदित सूर्य पाखी


चाँद- सा लगे


११


उदित रवि 1
तिलक लगा
बहिन मुस्कराए
पल प्रीति के ।
2
दूज की रात
भाई -बहिन साथ
चाँद हर्षाए ।
3
मंगल- स्पर्श
भैया दूज पे मन
आनंदमय  ।
4
रिश्ते मन के
दूज पे निखरते
रसपगे से  ।
5
चाँद से आए
स्नेहिल चाँदनी
दूज जो आए ।
6
दूज का पर्व
सभी के मन भाया
उल्लास लाया  ।
7
भैया आया है
घर आँगन मने
दूज उत्सव
8
मन-दीप को
भाई ने था जलाया
नेह बरसा ।



किरणों के पंखों से


नभ पे उड़ा


१२


धूप- पत्थर


सूरज ने फेंके


दरके पत्ते


१३


सूर्य की पाँखें


सूरजमुखी धूप


खोल के उडी


१४


धूप बही है


सूर्य के निर्झर से


धरा नदी में