सोमवार, 18 मई 2015

सेदोका..."ओ री पुरवा !"

1.
नैन प्रवाह
वत्सल फूटी धार
मेरे जीवन साथी
मन मंदिर
विश्वास की बाती का
जल रहा है दीप  l
2
कुछ मित्र भी
गिरगिट से होते हैं
रंग बदलते हैं
चतुराई से
मन में पीर भर
दिल चीर देते हैं l
3
मन खिला तो
सपनों के भँवरे
 नैनन में उतर
 नींद वन  में  
 मधुर गीत गाते
 मंडराने लगे थे l
4
भिनसारे में
चिड़ियाएँ गीत  गा
प्रेम से हैं जगाती
उषा से मिला
मन  में उमंगों की
लाली सी भर जाती l
5
ओ री पुरवा
देहरी पर आना
मन के इर्द गिर्द
यादें ले आना
मेरा संदेशा फिर
पिया को पहुंचाना l
डॉ सरस्वती माथुर
19.5.15
2

मीरा बाई के
इक़तारें की गूँज
है हमारा  प्रेम
खोयेगा नहीं
एक मंत्र के जैसा
उच्चारित रहेगा ।

ख़ामोशी बोली
अनबन रिश्तों में
मन दीवार डोली
दर्द के आंसंू
नदी से बहकर
जीवन में जा घुले।

ख़ामोशी तो है
शोर पर मन में
सागर सा उमड़
मन की बात
कह जाता है जब
क्या रह जाता तब ?

गीत गाती है
सागर किनारे पे
लहरें जब गूँज
बुलबुले सी
फेन बिखर कर
मौन रह जाती है।

तम पोटली
खोल कर निकाली
धूप डोर से बंधी
भोर उजली
जो खुलते ही फैली
धरती के अँगना  ।
30.3.16


 
 


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