हिन्दी हाइकु में प्रकाशित मेरे हाइकु (1.5.15)
साँप -सीढ़ी सा प्रेम
डॉ सरस्वती माथुर
1
प्रेम -पैमाना
तुमने कहाँ जाना
नापो तो जानों ।
2
आखेटक से
क्यों बिछाते हो जाल
नेह से फाँसो ।
3
यादें उड़ती
कपूर गंध बन
ख़ुशबू देती।
4
तुम्हारा प्रेम
साँप -सीढ़ी सा लगा
चढ़ा – उतरा।
5
दो देहरी पे
बाँटते क्यों सपने
स्रष्टा होकर?
6
ये हरा बाँस
चुभता नहीं कभी
बन के फाँस ।
7
घर –आँगन
ऋचाएँ भूल कर
शून्य हो गए।
8
तीव्र वेग है
यादों की हवाओं का
निर्बंध मन।
9
कर साज़िश
क्यों रचा चक्रव्यूह
कहा तो होता ।
10
मन भी हुआ
जंग लगी साँकल
खुल न पाया।
11
हवा दर्द की
मन को चीर कर
बहती गई।
12
ढाई आख़र
जीवन ग्रंथ बना
क्यों जला दिया?
डॉ सरस्वती माथुर
13
काँपती धरा
लावा के गर्म आँसू
बहाती रही
14
धरा उगले
आग की बारिश तो
मन भी जले
15
प्रकृति रोई
बही धरा के संग
आग की बूँदें
16
बिखरी धरा
बहाकर नदिया
गर्म आग की
17
त्रासदी देखो
नभ से जल बहे
धरा से आग
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