बुधवार, 14 अक्तूबर 2015

दोहे समीक्षा के लिये

1
मन आँगन में गूँजती ,कहीं ढ़ोल की थाप
धरती पर छाने लगा ,गरबा मधुरालाप l
2
गरबा खेले आंगना ,सजना  है अनमोल
रंग रंगीली सजनिया ,चंगसंग बाजे ढ़ोल l
3
गरबा गरबा मन हुआ ,प्रीत प्रेम के रंग
रसभीनी होने लगी ,मन में आस उमंग  l 
4
पर्व नवरात्र आ गया ,रंग हैं चहुं ओर
झूम झूम लहरा रहे,  ढ़ोल चंग  का शोर l
डॉ सरस्वती माथुर
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