मंगलवार, 20 अक्तूबर 2015

दिवाली की रचनाएँ

"बाती तुम जलती हो !"
तिमिर मिटा  कर
 घर आँगन में
सूरज सी तुम 
स्नेहसिक्त नेह दीप में भर् 
बाती तुम जलती हो

पर्व ज्योतिर्मय
 राग द्वेष हटा 
प्रेम प्रीत सिखाता है
राग द्वेष हटा 
अन्तर्मन आलोकित कर
बाती तुम जलती हो

मावस की शाम को
आस्था की चौखट पर
मन के अँधियारों में भी
विश्वास का नव उजियार भर
बाती तुम जलती हो l
डॉ सरस्वती माथुर
2
प्रेम का दिया 
मन की देहरी पर रख
रंगोली  के रंगों से
 घर आँगन सजाया
दीप मन का जलाया

झिलमिल ज्योति से
अनगिन प्रदीपों ने
अपरिमित दीपों से
बंदनवार लगाया
दीप मन का जलाया

भक्ति -शक्ति से
तम छाँट कर जन ने
लक्ष्मी का आवाहन कर
हिलमिल कर पर्व मनाया
दीप मन का जलाया l
डॉ सरस्वती माथुर
"लक्ष्मी का आवाहन !"
घर  पावन मन भी पावन
दीप ज्योति लगती मनभावन

रोशनी की नदी
चहुं ओर बह  रही
मन मंदिर बन गया
जन जन से कह रही

 लक्ष्मी माँ का आवाहन
दीप ज्योति लगती मनभावन

पूजा थाल में
मेवे संग मिठाई है
अनार पटाखों की गूंज
चहुं ओर छाई है

 द्वार पर बंदनवार सुहावन
दीप ज्योति लगती मनभावन
डॉ सरस्वती माथुर
 

सेदोका
दीपक जले
मन हुआ रोशन
टँगी बंदनवार 
देहरी पर
 खुशनुमा नज़ारा
दीपावली त्योहार l
2
अँधेरी रात
झिलमिल करती
दीपों की फुलकारी
रंग बिरंगी
बुनकर के ज्योति
छाई छटा निराली l


   क्षणिका
"दीप संग बाती !"
लय संग स्वर
 दीप संग बाती
लक्ष्मी जी का
हाथी है साथी
ज्योति निर्झर
झिलमिल मन
रोशनी की नदियां
रंगोली के रंग
धरा से व्योम तक
उत्सव  वंदन
करता मन चन्दन
अन्तर्मन करता
मन चन्दन !
डॉ सरस्वती माथुर
2
झिलमिल दीप
झरती रोशनियाँ
लक्ष्मी आवाहन पर
 मंगलदीप जलाओ

मंगलकामनाओं से
 जन जन के मन में
पावन भावनाऑ का
नव विश्वास जगाओ

गरीब की रोटी न छीनो
बुजुर्गों का मान करो
बच्चों के जीवन  मैं
सदभाव के बीज लगाओ

बेटी को कोख में न मारो
प्रीत प्रेम से सींचो
बेटे बेटी के जीवन  में
कोई लकीर न खींचों
मानवी की  पहचान दिलाओ l
डॉ सरस्वती माथुर
3
" ज्योर्तिमय दीप !"
अभिनंदन है
दीप तुम्हारा
सर्वस्व समर्पित
तिमिर हटाते हो
अपनी ही प्रभा परिधि में
अँधियारा ले आते हो

ज्योर्तिमय है
अस्तित्व तुम्हारा
दीप्त तुम्हारी है मुस्कान
निरंतर जल कर
आंधियों में भी
मुखरित रह कर
संबल शक्ति भर जाते हो

वंदन तुमको
नयी चेतना से
 स्नेहसिक्त बाती बुनकर
जन जन के जीवन में
नवल सर्जना का
मंगलदीप जलाते हो  l
डॉ सरस्वती माथुर
मुक्तक
तमस हार गया
 प्रकाश पर्व आया
माँ की जयकार कर
घर-द्वार सजाया

घर आँगन दीप जला दूँ
मन का तमस मिटा दूँ 

इस दिवाली पर
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बाती दीप के साथ
प्रीत के पटाखे फोड़ूँ

खुशियाँ चहुं ओर फैला दूँ
मन का तमस मिटा दूँ

खील , बताशे ,पकवान से
 पूजा की थाली  सज़ा दूँ
 अर्पित कर मन के सिक्के
  आस्था की रंगोली बना लूँ

 घृणा का दानव जला कर
 मन का तमस मिटा दूँ
डॉ सरस्वती माथु

"दीप जला कर !"
चौखट  पर जो
दीप धरा है
उसमें नेह का
उजियार भरा है

 दीप जला कर
तारो को जोड़ा है
अँधियारा तो
जीवन का रोड़ा है
बांध कर संबल
बाती में विश्वास भरा है

झर झर झरती है
ज्योति की लड़ियाँ
सूनी चौखट पर
 भावो की सुधिया
 तमस भी हमसे
 देखो- आज डरा  l
डॉ सरस्वती माथुर


 













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