"बीज़ हूँ मैं
!"
बीज़ हूँ वहीं उगी
जहां गिरी थी
कच्चा पौधा जब उगा
तो बहुत मुलायम था
हरा था
हर पौधे और
फूल का
होता है अपना रंग
उसके बढ्ने की विधि
मेरा भी एक रंग था
विकास की प्रक्रिया थी
सो बढ़ती रही
पौध से पेड़ बनी
शाखाओं सी फैली
पातों ने
हवाओं से सोखीं
रसभीगी नमी
मेरे तने को दी
एक मजबूत जमीं
यहीं फैलूँगी अब
फल दूँगी और
बीज़ बन कर
बार बार उगूँगी
बस मेरी इस माटी को
उर्वर रहने देना
बस उर्वर रहने देना !
डॉ सरस्वती माथुर
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