लघु कहानी
"आ री कनेरी चिड़िया!"
"आ री कनेरी चिड़िया!"
मीठी मात्र आठ साल की थी जब घर के अहाते के एकदम बाहर
बरवाड़ा हाउस सोसाइटी ने पीले कनेर के 10 पेड़ रोपे थे !अभी भी याद है गायत्री देवी
को जब गर्मियों में गरम हवाओं के झोंके तन को गरम कर देते थे तो कनेर की नुकीली
पंखियाँ चँवर सी झूल कर मौसम को खुशनुमा बना देती थी !शुरू शुरू के वो दिन गायत्री
देवी की यादों में आज भी ताजा है Iबरवाड़ा सोसायटी का यह अहाता तब बच्चों के
क्रिकेट का मैदान था ,गर्मी की लू से बेपरवाह रहते हुए दिन भर धमाचौकड़ी होती थी ,
खेल कूद करते बच्चे कनेर के इस पेड़ के नीचे बैठ कर थकान मिटाते थे ,इसके पीले पीले
फूल जब डाल से छूट कर बच्चों के उपर आ गिरते थे तो मौसम में बसंत छा जाता था l उन
फूलों को एक दूसरे पर उछाल कर सभी मिल कर एक स्वर में गाते थे ----"आ री कनेरी
चिड़िया ...गा री कनेरी चिड़िया ....शिवजी के मंदिर में फूलों को जाकर चढ़ा री कनेरी
चिड़िया .....आ री कनेरी चिड़िया ...!" यह किसी प्रदेश का लोकगीत था जो भोलू ने अपनी
दादी से सीखा था और सब की जबान पर चढ़ गया था !
गायत्री देवी जब तक बरवाड़ा हाउस के इस अहाते में रहीं पूजा
में कनेर के फूलों को नियमित चढाती रहीं lफिर वह अपने छोटे बेटे के पास विदेश चली
गईं lबड़ा बेटा अभी भी बरवाड़ा हाउस ही में रहता है ,वे आती जाती रहती हैं !इस बार का
आना विशेष मायने रखता है ,वह मीठी की शादी में पूरे परिवार के साथ शामिल होने आई
हैं !मीठी जो उनकी लाड़ली पोती है ,ला की पढ़ाई खत्म करके अब प्रैक्टिस कर रहीं हैं !
चोबीस वर्ष की हो चुकी हैं मीठी !गायत्री देवी इस बार भारत लगभग पाँच वर्ष बाद आईं
हैं ! इस बार विशेष रूप से यहाँ की संरचना में उन्हे बड़ा बदलाव लगा, वह हैरान भी
थीं और दुखी भी कि गगनचुंबी इमारतें बनाने के चक्कर में बरवाड़ा हाउस ही नहीं पूरे
शहर की काया पलट के फलस्वरूप यहाँ की सुंदरता भी तहस नहस हो गयी हैl कल की सी बात
लगती है जब अहाते के आस पास का सौंदर्य अप्रतिम था ...वह कैसे भूल सकतीं हैं कि भोर
होते ही यहाँ चिड़ियाएं नए नए राग छेड कर सभी को जगाती थी और अब देखो तो जगह जगह से
डालें काट दी गईं हैं ...कनेर जो हर रंग में अपनी आभा बिखेर के मन मोह लेते थे उदास
खड़े हैं ,कनेर जो मंदिर का दर्शन थे ,जो हवाओं की आहटों के साथ थिरकते थे ,मौन खड़े
हैं, कनेर जो मंदिर का दर्शन हैं ,विष पीते हुए मंदिरों में अमृत बरसाते हैं ,शिव
जी पर चढाये जाते हैं ,वहाँ की रचना का दर्शन हैं ...वहाँ की अभिव्यक्तियों का
जीवन मकरंद हैं ...जो हवाओं की दस्तकों के साथ घण्टियों की तरह बजते से लगते हैं,
सद्भाव आस्था का भाव जगाते हैं ,आज चीख चीख कर कह रहें हैं कि हमे न काटो, हमें
बचाओ ,हम तो इन आहतों की देहरी के रखवाले हैं, प्रहरी हैं ,पर्यावरण के रक्षक हैं
l
गायत्री देवी उन्हे बड़े दार्शनिक मनोभाव से एकटक जब निहार
रहीं थीं तो मीठी उनके पास आ खड़ी हुईं ---"प्रणाम दादी, आपका जेट लेग पूरा हुआ या
नहीं ?"
-"अरी कहाँ बिटिया, नींद ही उड गयी है मेरी तो, देख न
मीठी कितनी बेदर्दी से नोचा है इन कनेर की डालियों को , बांसुरी सी लहराती थी कभी
,जगह जगह से काट दी गयी हैं अभी....चिड़ियों का बसेरा तक नहीं दिख रहा Iगायत्री देवी
की आवाज़ में भी दर्द था जिसे मीठी ने भी महसूस किया!
"अरे दादी जान, सोसाइटी वालों
ने तो इसे काटने के आदेश तक दे दिये थे वो तो मैंने सभी सदस्यों के हस्ताक्षर ले
कर नोटिस देकर इन्हे रोका है स्पष्ट निर्देश निकलवाये हैं कि इन्हे न काटा जाये
बल्कि इमारत जो बन रही है उसकी बनावट में इन पेड़ों की परिधि छोडी जाये।इन
ओरनामेंटल पेड़ो की सीमा रेखा छोड़ते हुए ही नक्शा पास करवाया जाये,स्टे ले लिया है,
केस चल रहा है अभी!"
गायत्री देवी ने स्नेह से मीठी की आँखों में देखा,सोचा सच
कितनी समझदार होगयी है मीठी... यह बच्ची ,पर्यावरण का संरक्षण ही नहीं कर रही
है बल्कि हरियाली जो प्रकृति का अनुपम शृंगार होती उसे
भी बचाने के जीवट संघर्ष मेँ जुटी है ...तभी तेज हवा का झोंका आया तो साथ में हवाओं
की बौछार के साथ पीले कनेर के बहुत से फूल गायत्री देवी के इर्द गिर्द बिखर कर
वातावरण को मनमोहक सुगंध से भर गये, तन के साथ साथ मन को भी सुवासित कर गये! देर तक गायत्री देवी के कानो में गूँजते रहे यह मधुर
स्वर....".आ री कनेरी चिड़िया ...गा री कनेरी चिड़िया........!
डॉ सरस्वती माथुर
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