रविवार, 17 अगस्त 2014

"कृष्ण:गीता का सार !"
कृष्ण तुम गीत हो
राधाजी की प्रीत हो
बांसुरीमें सुर गूँजते
भावतीत संगीत हो

तुम ही हो ब्रह्मांड
जैसे चावल में माँड
सृजनशील बंसीवाले
प्रेम में मिश्री -खांड

तुम हो दिव्य अवतार
गीता का तुम होसार
समशीलसंमधर्मा तुम
जगके पालनहार
 !
डॉ सरस्वती माथुर

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