मंगलवार, 10 फ़रवरी 2015

तीन कवितायें


1
"फिर मिलेंगे !"
मन की किरचियाँ
 बिखरी पड़ी थी
जगह जगह
 कुछ हवाओं में
उड रही थी
 पाखी की तरह
 कुछ फूलों सी
 झर गयी थी
 कुछ सूख गयी थी
 सूखे पतों सी पर 
फिर भी लम्हा- लम्हा
जीवन की लहरों का
 यादों की पतवार खेता
 चल रहा था
 इस उम्मीद पर कि
हम फिर मिलेंगे l

2
"यादों की लौ !"

कौन तापे
अब अलाव
सर्द हवाओं को
 चलने दो

याद कि लौ को
बस जलने दो

 गुजरे लम्हों  से
रात भर बुनी
जो चाँदनी को
झीलों पर
मचलने दो

 यादों की  लौ को
 बस जलने दो

पुराने खतों  को
पुर्जे पुर्जे कर दो 
रिश्तों को पलने दो
यादों की लौ को
जलने दो l
3
"मेरा वक्त
 अच्छा गुजर जाता है !"

सुनसान शाम में
जब भी तुम आकर
दस्तक देते हो
 वक्त मेरा
अच्छे से गुजर जाता है
एक जलते दिये सी
 तुम्हारी याद
 सुबह तक
ओढ़े रहती हूँ
देर तक मेरी नींद
मेरे बुने ख्वाबों को
 संभाले रहती है
 चाँदनी संग चाँद भी
 बार बार आकर
मुझे छूता  है और मैं
लहरों सी तुम्हारे
अथाह अस्तित्व में
घूल जाती जून
जब भी तुम
 दस्तक देते हो
मेरा वक्त
 अच्छा गुजर जाता है
डॉ सरस्वती माथुर

 

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