धूप छाँह सा मन १ धूप छाँव- सा मन है घर के आँगन में कितना अपनापन है २ जीवन की बही लहर धार -धार चलती सुख -दुख से भरी डगर ३ जूही-सा नाज़ुक मन ओढ़ उदासी को बैठा सूने आँगन ४ ले आ डोली कहार दूर चले जाना घर में बचे दिन चार ५ चरखा है यादों का आँखों में काता सपना बस वादों काl डॉ सरस्वती माथुर |
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