यादें .....
मन गगन
यादों की चिड़िया का
लगा है मेला l
यायावर सी
मन के जंगल में
भटकी यादें l
झंडिया बन
हवा में मस्तूल सी
यादें झूमतीं l
चुभती हवा
धकेल मन द्वार
यादें ले आयी l
नीलगगन
केसरिया चाँदनी
चमकी यादें l
कॉल बैल सी
बजती रहती
यादें तुम्हारी l
याद किसी की
डरो दीवार पर
जमी काई सी l
ज्वारभाटा था
यादों में उछालता
मन सिंधु में l
मन के पन्ने
यादों के चित्र खींच
भरते गये l
कोयल बोली
मन में जागी यादें
तो आँखें खोली l
पिक न बोला
व्याकुल जंगल ने
बदला चोला l
अनुभूतियाँ ....
पीड़ा की धारा
देता रहा हरदम
घात तुम्हारा l
ब्रह्म हो गया
जब नाद ढ़ोल का
मिठास घुली l
आओ तोड़ दें
दूरी के अंतराल
मन जोड़ के l
सर्प दृष्टि से
टटोला इंसान का
राहें बदली l
नृत्य करती
जादूगरनी हवाएँ
मायावी मन l
हवा उड़ाए
सतरंगी घाघरे
खिले फूलों के l
हवा कुतरे
शाखाओं के पातों को
गिलहरी सी l
बैरागी हवा
पहाड़ों पे जाकर
मौन साधता l
आये जो पंछी
मौसम भी बदला
झील किनारे l
पायल बज़ी
झरनो के पानी पे
हवाएँ नाचीं l
सर्द हवाएँ ....
सर्द हवाएँ
शाम की पुरवाई में
थिर हो जमी l
पतझड़ .....
आशा उमंग
पतझड़ आते ही
सन्नाटा बुने l
रेत से दिन
उड़ते फिरते हैं
पतझड़ में ।
सूर्य....
धूप की मीन
'सागर में तैरती
सूर्य का जाल l
कल जो डूबा
गूंगा सा सूर्य
लो फिर आया l
अंधेरा आया
सूरज दबोच के
धरा पे छाया ।
अंधी सुरंग
सागर में जाकर
सूर्य छिपाती l
धूप .....
धूप की लटें
संवार के सूर्य ने
किया उजारा l
l
अकेलापन ....
अकेला मन
नयी उड़ान पर
चक्करघिनी l
चाँद - चाँदनी ....
चाँद डोरी से
गठजोड़ बांधती
मन चाँदनी l
झील पे रुका
चाँद चाँदनी संग
तारे भी तैरे l
छिपता चाँद
रात के आँचल में
बादल ओढ़ l
चरखा नभ
चाँद चाँदनी संग
रात कात्तता l
जुगनू ....
फैलती गयी
जुगनुओं की आभा
तंम पीकर l
सितारों जैसा
टिमटिमाते देखा
जुगनू मन l
प्रेम .....
भँवरा काला
हर समय बुने
प्रेम का जाला l
प्रेम भँवर
उत्सवी मौसम में
ढाये कहर l
मन का घड़ा
प्रेम रस से भरा
छलक गया
फूल- कलियाँ .....
भँवरे झूमें
कलियों के पाता
खुलते गये l
खिली कलियाँ
भँवरों ने मिल के
गीत सुनाये l
धूप
मौसम धूप
छाँह पर छाई तो
फूल मुस्कुराते।
अँजुरी भर
सूर्य पीकर धूप
धरा पे आई।
भँवरे झूमें
कलियों के
खुलते गये
मन गगन
यादों की चिड़िया का
लगा है मेला l
यायावर सी
मन के जंगल में
भटकी यादें l
झंडिया बन
हवा में मस्तूल सी
यादें झूमतीं l
चुभती हवा
धकेल मन द्वार
यादें ले आयी l
नीलगगन
केसरिया चाँदनी
चमकी यादें l
कॉल बैल सी
बजती रहती
यादें तुम्हारी l
याद किसी की
डरो दीवार पर
जमी काई सी l
ज्वारभाटा था
यादों में उछालता
मन सिंधु में l
मन के पन्ने
यादों के चित्र खींच
भरते गये l
कोयल बोली
मन में जागी यादें
तो आँखें खोली l
पिक न बोला
व्याकुल जंगल ने
बदला चोला l
अनुभूतियाँ ....
पीड़ा की धारा
देता रहा हरदम
घात तुम्हारा l
ब्रह्म हो गया
जब नाद ढ़ोल का
मिठास घुली l
आओ तोड़ दें
दूरी के अंतराल
मन जोड़ के l
सर्प दृष्टि से
टटोला इंसान का
राहें बदली l
नृत्य करती
जादूगरनी हवाएँ
मायावी मन l
हवा उड़ाए
सतरंगी घाघरे
खिले फूलों के l
हवा कुतरे
शाखाओं के पातों को
गिलहरी सी l
बैरागी हवा
पहाड़ों पे जाकर
मौन साधता l
आये जो पंछी
मौसम भी बदला
झील किनारे l
पायल बज़ी
झरनो के पानी पे
हवाएँ नाचीं l
सर्द हवाएँ ....
सर्द हवाएँ
शाम की पुरवाई में
थिर हो जमी l
पतझड़ .....
आशा उमंग
पतझड़ आते ही
सन्नाटा बुने l
रेत से दिन
उड़ते फिरते हैं
पतझड़ में ।
सूर्य....
धूप की मीन
'सागर में तैरती
सूर्य का जाल l
कल जो डूबा
गूंगा सा सूर्य
लो फिर आया l
अंधेरा आया
सूरज दबोच के
धरा पे छाया ।
अंधी सुरंग
सागर में जाकर
सूर्य छिपाती l
धूप .....
धूप की लटें
संवार के सूर्य ने
किया उजारा l
l
अकेलापन ....
अकेला मन
नयी उड़ान पर
चक्करघिनी l
चाँद - चाँदनी ....
चाँद डोरी से
गठजोड़ बांधती
मन चाँदनी l
झील पे रुका
चाँद चाँदनी संग
तारे भी तैरे l
छिपता चाँद
रात के आँचल में
बादल ओढ़ l
चरखा नभ
चाँद चाँदनी संग
रात कात्तता l
जुगनू ....
फैलती गयी
जुगनुओं की आभा
तंम पीकर l
सितारों जैसा
टिमटिमाते देखा
जुगनू मन l
प्रेम .....
भँवरा काला
हर समय बुने
प्रेम का जाला l
प्रेम भँवर
उत्सवी मौसम में
ढाये कहर l
मन का घड़ा
प्रेम रस से भरा
छलक गया
फूल- कलियाँ .....
भँवरे झूमें
कलियों के पाता
खुलते गये l
खिली कलियाँ
भँवरों ने मिल के
गीत सुनाये l
धूप
मौसम धूप
छाँह पर छाई तो
फूल मुस्कुराते।
अँजुरी भर
सूर्य पीकर धूप
धरा पे आई।
भँवरे झूमें
कलियों के
खुलते गये
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