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ISSN 2292-9754 |
अक्स तुम्हारा (हाइकु)
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मोर है बोले मेघ के पट जब गगन खोले l 2 वक्त तकली देर तक कातती मन की सुई l 3 यादों के हार कौन टाँक के गया मन के द्वार l 4 अक्स तुम्हारा याद आ गया जब मन क्यों रोया ? 5 यादों से अब मेरा बंधक मन रिहाई माँगे l 6 यादों की बाती मन की चौखट को रोशनी देती l 7 साँझ होते ही आकाश से उतरी धूप चिरैया l 8 धरा अँगना चंचल बालक सी चलती धूप l 9 भोर की धूप जल दर्पण देख सजाती रूप l 10 मेघ की बूँदें धरा से मिल कर मयूरी हुईl
डॉ सरस्वती माथुर
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