बुधवार, 7 जनवरी 2015

सक्रांति पर कवितायें / सेदोका

"सक्रांत का मौसम !"
सक्रांत का मौसम
भावनाओं के नभ में

उड रही- नेह की पतंग
गुड सी मीठी हवाएँ
अंजुरी में भर कर
खुशियों के तिल
आओ हम सब रहें
मन की डोर बांध कर
जीवन में हिल मिल !
डॉ सरस्वती माथुर



"सक्रांति की चिड़िया !'

धूप के चावल
द्धार पर रख

सूरज ने
रंगोली बनायी

हवायेँ लीप गयी
घर आँगन

मन तिनके
बुहार गयी

कल्पना के
अनुरूप

बंदनवार
लगा कर

सक्रांति की चिड़िया भी

अपने पंख पसार गयी

पतंगों की तितलियाँ

नभ के फूलों पर उड़ी

रंगों में हस्ताक्षरों से

मन चौखट पर आस्था का

रोशन दिया बाल गयी l

डॉ सरस्वती माथुर


 "
मकर संक्रान्ति !"
संक्रान्ति पर
रंग बिरंगी पतंगें
पाखी सी नभ में
बाँध डोर उड़ती
सर्द हवाओं के
पंखों पर बैठ
लहराती बल खाती
नभ से जा जुड़ती

सूर्य जब प्रयाण कर
उतरायण में आता
धरा पर धूप का
दस्तरख़ान बिछाता
गुड मूँगफली गजक
जन जन को है भाता
प्रेम प्रीत का यह पर्व
मकर संक्रान्ति कहलाता ।
डाँ सरस्वती माथुर

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें