शनिवार, 12 मार्च 2016

लघुकथाएं


लघुकथा :
 " लक्ष्मी का दीया !"आज फिर दीवाली का त्यौहार है ,बच्चे पटाखे फुलझडियाँ छुडा रहे हैंl दादी माँ भी गाँव से यहाँ इस अवसर पर आ गयीं थींlबच्चों ने दादी माँ के लिए बरामदे में कुर्सी लगा दी थी ताकि वह भी शहर की दीवाली की रंगीनियाँ देख सकेंlअस्सी साल की दादी माँ पोते पोतियों को देख रहीं थीं ,पास ही बहुएँ लैपटॉप खोले बैठी थीं ,छोटी बहू ने तुरंत ऑनलाइन एक डिस्काउंट वाला होटल खोज लिया था और अब फोन पर बुकिंग कर रहीं थीं l
पूजा हो चुकी थी, एक थाली में बाज़ार से लायी मिठाई ,नमकीन और फल चढ़ा कर मंदिर को छोटे लट्टुओं से सजा दिया था! बाहर मुंडेर पर भी छोटे छोटे रंगीन बल्बों की लडियां लटकीं थींl सब खुश थे बस दादी माँ सोच रही थीं ,कहाँ खो गए वो माटी के दिए ,खील बताशे ,लक्ष्मी माँ की पन्नियाँ , रसोई घर से उठी पूरे घर आँगन को महकाती पकवान की लार टपकाती खुशबू !सभी तैयार थे रेस्तरां जाने को lबहुओं ने लाइफ स्टाइल से सेल में खरीदीं नए जींस और टॉपर अमेरिकन ज्वेलरी के साथ पहन रखीं थीं l घर आँगन में रौनक थी पर न नाते रिश्तेदार थे न पहले सा अपनापन, बाहर पटाखों का कानफोडू शोर था, रेस्तरां में भी गजब की भीड़ थीl सभी खुश थे दादी माँ भी सर पर पल्लू लिए बैठीं थीं, भोंचक्की सी इधर उधर देख रहीं थीं l सब चटकारे ले लेकर पिज़्ज़ा ,नूडल्स ,और सिज्लर खा रहे थेl बच्चों के साथ थी दादी माँ पर न जाने क्यों मन वहां से दूर गाँव में था और वह सोच रहीं थी कि पड़ोस की नारंगी काकी ने लक्ष्मी की पूजा करके खीर पूड़ी का भोग लगा कर उनके आवाहन के लिए रात भर जलने वाला दिया अब तक जरुर जला दिया होगा!
डॉ सरस्वती माथुर
आँगन की तुलसी 
नववर्ष का पहला दिन था । सर्द भिनसार ने अभी अपनी आँखें खोली ही थी पर  ओम-रंजनी के घर में आज भी रोज की तरह बहस जारी थी। रंजनी को कौतूहल नहीं हुआ ा  यह तो अब रोज़ की कहानी थी ।पूजा घर से रंजनी की सासू माँ के स्वर  में आरती के बोल-"जय जगदीश हरे "गूँज रहे थे।
उन बोलों के साथ जगदीश बाबू  के स्वर अलग ही ताल मिला रहे थे--"बहू को नोकरी पर भेजते हो, आख़िर ज़रूरत क्या है? तुम्हारी माँ  अठावन साल की उम्र में रसोई घर में खटती हैऔर मैं यहाँ बंध कर रह जाता हूँ ।यह कब तक चलेगा? रिटायर हुए छह माह हो गये , यह सोच कर यहाँ आया था कि ताजीवन  तुम लोगों से नौकरी के चक्कर में दूर रहा ,अब यहाँ हूँ तो बहू के हाथ का गरम गरम खाना खाऊँगा , आराम करूँगा पर यहाँ तो नाटक ही दूसरा है ।"
यह सारी बातें जगदीश बाबू अपने बेटै ओम को सुना कर कह रहे थे । उस वक़्त ओम दफ़्तर के लिये तैयार हाे रहा था ,धीरे  से बोला -"  बाबा आज की ज़रूरत है महिलाओं की नौकरी ,हम पर ज़िम्मेदारियाँ है,आमदनी इतनी नहीं कि रोज़मर्रा की ज़रूरतें अकेले पूरा कर सकूँ , रजनी  पढ़ी लिखी है , सहयोग करती है , बाबा क्या बुरा है ?फिर आपका तो सारा काम निपटा कर दफ़्तर जाती है , आपका पूरा आदर करती है , फिर कुछ ही दिनो की बात है , अब आप शान्त हो जाओ ।"
इसी शोर शराबे के बीच आरती ख़त्म करके ओम की माँ आगई और पति को समझाने लगी -"अजी सुनते हो,रोज़ ही बिना बात खिटपिट करते हो,कल से सेंट्रल पार्क में घूमने चलेंगें जी ।"
फिर बेटे के आरती देते हुये माँ बोली-"ना बेटा , इनकी बात पर कान ना धरना , रिटायर होने के बाद से जरा अकेला महसूस करते हैं।"
" हाँ माँ ,आप ध्यान रखना, फिर भी ज़्यादा हुआ तो रजनी नोकरी ही छोड़ देगी।"
यह कह कर भारी मन से ओम नाश्ता करने लगा।
अगले दिन जब रजनी जागी तो उसे बड़ा कौतूहल  हुआ ,घर में आवाज़ें नहीं थी बल्कि सन्नाटा था ।वह चौंकी ,बाहर आयी , ओम शेव  बनाते हुवे गुनगुना रहा  था  । 
रजनी  को हैरान देख कर बोला-"माँ बाबा को घुमाने ले गयीं हैं ।"
"औह अच्छा !"...रजनी ने चैन की साँस ली
और मन ही मन जगदीश बाबू ने सोचा कि सूर्य पूजन के इस पावन पर्व पर जिस तरह  सूर्य अपनी दिशा बदलता है वैसे ही 
 कुछ दिनों से अब घर में ज़रा शांित रहने लगी थी।
समय चक्र चलता रहा ।जगदीश बाबू के सैर पर जाने से भी कुछ नये दोस्त बनने लगे । धीरे धीरे उनका मन बहलने लगा ।
 मकर संक्रान्ति का पर्व  पास आ गया  था,इसलिये  चारों आेर से पतंगों का शोर गूँजने लगा था , वो   काटा वो मारा ,ढील दो भाई ढील दो  जाने दो भाई जाने दो का कानफाडू शोर वातावरण में जोश भर जाता था ।
सर्दी ने भी पंख पसार लिये थै। एक दिन जगदीश बाबू भी इस सर्दी  की चपेट में आ गये । तेज़ बुखार और पेट केनिचले हिस्से में बार बार दर्द उठने की वजह से उन्हें अस्पताल में भरती करना पड़ा । बहुत से टेस्ट हुये  और मालूम पडा िक प्रोस्टेट  कैंसर के कुछ संकेत मिलरहें हैं ,शुरुआत है अत: तुरन्त आपरेशन करना पड़ेगा । हिसाब लगाया गया तो स्पष्ट  हुआ कि अच्छा ख़ासा ख़र्चा लगेगा । जगदीश बाबू की जमा पूँजी से सारा काम नहीं हो पा रहा  था, तभी रजनी बाेलीं-" बाबा आप चिन्ता ना करें , मैं अपने पी. एफ . से लोन ले लूँगी ,अच्छे अस्पताल में आपका इलाज करवायेंगे ,सब ठीक हो जायेगा ।कल ही अप्लिकेशन लगाती हूँ , बाबा दस दिन में लोन मंज़ूर हो जायेगा ।"
जगदीश बाबू में रजनी को देखा ,उन्हें लगा जैसे बेटी के रूप में कोई देवी सामने खड़ी है। उनकी आँखें भर आई।तभी माँ की  आवाज़ गूँजी -"देखा ओम के बाबा ,बहू बेटी से भी बढ़ कर होती है। क्या आपको अब भी बहू की नौकरी से एतराज़ है?
जगदीश बाबू ने हाथ जोड़ कर कहा -"मुझे माफ़ करना बहू छह महीनों से मैं घर में कलेश कर रहा था , बहुत ग़लत कर रहा था  , शमिंदा हूँ ।"
रजनी की आँखें भी भर आई-"एेसा ना कहें बाबा,आपका आशीर्वाद हम पर हमेशा रहे।यही हमारा सौभाग्य है !"
जीवन में पहली  बार जगदीश बाबू को लगा कि आत्मनिर्भर महिलायें घर की नींव की मज़बूत ईंट होती है ।नारी का स्वतन्त्र अस्तित्व ही उसकी पहचान होती है ,  वह सही मायने में शक्ति का वट वृक्ष   होती है...वह घर आँगन की  पावन 
तुलसी होती है ! 
अब जगदीश बाबू को अपनी सोच बदलनी होगी और नारी की भूमिका को समझना होगा तभी परिवारऔर समाज का 
विकास होगा । अब जगदीश बाबू का मन फूल सा हल्का हो गया था । 

इस बार का नया साल भी   पाहुन सा परिवार के लिये अनूठी प्रेम के गुलाबों सी महकती ख़ुशबू लेकर आया था!
डाँ सरस्वती माथुर 
...."आ री कनेरी चिड़िया!"
मीठी मात्र आठ साल की थी जब घर के अहाते के एकदम बाहर बरवाड़ा हाउस सोसाइटी ने  पीले कनेर के 10 पेड़ रोपे थे  !अभी भी याद है गायत्री देवी को जब गर्मियों में गरम हवाओं के झोंके तन को गरम कर देते थे तो कनेर की नूकीली पंखियाँ चँवर सी झूल कर मौसम को खुशनुमा बना देती थी !शुरू शुरू के वो दिन गायत्री देवी की यादों में आज भी ताजा हैं ,,,,बरवाड़ा सोसायटी का यह अहाता तब बच्चों   के क्रिकेट का मैदान था ,गर्मी की लू से बेपरवाह रहते हुए दिन भर धमाचौकड़ी होती थी! वहाँ खेल कूद करते बच्चे कनेर के इस पेड़ के नीचे बैठ कर थकान मिटाते थे ,इसके पीले पीले फूल जब डाल  से छूट कर बच्चों के उपर आ गिरते थे तो मौसम में बसंत छा जाता था l उन फूलों को एक दूसरे पर उछाल कर सभी मिल कर एक स्वर में गाते थे ----"आ री कनेरी चिड़िया ...गा री कनेरी चिड़िया ....शिवजी के मंदिर में फूलों को जाकर चढ़ा री कनेरी चिड़िया .....आ री कनेरी चिड़िया ...!" यह किसी प्रदेश का लोकगीत था जो भोलू ने अपनी दादी से सीखा था और सब की जबान पर चढ़ गया था !
गायत्री देवी जब तक बरवाड़ा हाउस के इस अहाते में रहीं पूजा में कनेर के फूलों को नियमित चढाती रहीं lफिर वह अपने छोटे बेटे के पास विदेश चली गईं lबड़ा बेटा अभी भी बरवाड़ा हाउस ही में रहता है ,वे आती जाती रहती हैं !इस बार का आना विशेष मायने  रखता है ,वह मीठी की शादी में पूरे परिवार के साथ शामिल होने आई हैं !मीठी जो उनकी लाड़ली पोती है ,ला की पढ़ाई खत्म करके अब प्रैक्टिस कर रहीं हैं ! चोबीस वर्ष की हो चुकी हैं मीठी !गायत्री देवी इस बार भारत 
लगभग पाँच वर्ष बाद आईं हैं ! इस बार विशेष रूप से यहाँ की संरचना में उन्हे बड़ा बदलाव लगा, वह हैरान भी थीं और दुखी भी कि गगनचुंबी इमारतें बनाने के चक्कर में बरवाड़ा हाउस ही नहीं पूरे शहर की काया पलट के फलस्वरूप यहाँ 
की सुंदरता भी तहस नहस हो गयी हैl कल की सी बात लगती है जब अहाते के आस पास का सौंदर्य अप्रतिम था ...वह
कैसे भूल सकतीं हैं कि भोर होते ही यहाँ चिड़ियाएं नए नए राग छेड कर सभी को जगाती थी  और अब देखो तो जगह जगह से डालें काट दी गईं हैं ...कनेर जो हर रंग में अपनी आभा बिखेर के मन मोह लेते थे उदास खड़े हैं ,कनेर जो मंदिर का दर्शन थे ,जो हवाओं की आहटों के साथ थिरकते थे ,मौन खड़े हैं, कनेर जो मंदिर का दर्शन हैं ,विष पीते हुए मंदिरों में 
अमृत बरसाते हैं ,शिव जी पर चढाये जाते हैं ,वहाँ की  रचना का दर्शन हैं  ...वहाँ की अभिव्यक्तियों का जीवन मकरंद हैं 
...जो हवाओं की दस्तकों के साथ घण्टियों की तरह बजते से लगते हैं, सद्भाव आस्था का भाव जगाते हैं ,आज चीख चीख कर कह रहें हैं कि हमे न काटो, हमें बचाओ ,हम तो इन आहतों की देहरी के रखवाले हैं, प्रहरी हैं ,पर्यावरण के रक्षक हैं l
गायत्री देवी उन्हे बड़े दार्शनिक मनोभाव से एकटक जब निहार रहीं थीं तो मीठी उनके पास आ खड़ी हुईं ---"प्रणाम दादी, आपका जेट लेग पूरा हुआ या नहीं ?"
-"अरी कहाँ बिटिया, देख न नींद ही उड गयी है मेरी तो, देख न मीठी कितनी बेदर्दी से नोचा है इन कनेर की डालियों को , बांसुरी सी लहराती थी कभी ,जगह जगह से काट दी गयी हैं अभी....चिड़ियों का बसेरा तक नहीं दिख रहा Iगायत्री देवी की आवाज़ में भी दर्द था जिसे मीठी ने भी महसूस किया!
"अरे दादी जान सोसाइटी वालों ने तो इसे काटने के आदेश तक दे दिये थे वो तो मैंने सभी सदस्योंI के हस्ताक्षर ले कर नोटिस देकर इन्हे रोका है  स्पष्ट निर्देश निकलवाये  हैं कि इन्हे न काटा जाये बल्कि इमारत जो बन रही है उसकी बनावट में इन पेड़ों की परिधि छोडी  जाये।इन ओरर्ननामेंटल पेड़ो की सीमा रेखा छोड़ते हुए ही नक्शा पास करवाया जाये,स्टे ले लिया है, केस चल रहा है अभी॥"
गायत्री देवी ने स्नेह से मीठी की आँखों में देखा,सोचा सच कितनी समझदार होगयी है मीठी... यह बच्ची ,पर्यावरण  का संरक्षण  ही नहीं कर रही   है बल्कि  हरियाली जो प्रकृति का अनुपम शृंगार होती
उसे भी बचाने के जीवट संघर्ष मेँ जुटी है ...तभी तेज हवा का झोंका आया तो साथ में हवाओं की बौछार के साथ पीले 
कनेर के बहुत से फूल गायत्री देवी के इर्द गिर्द बिखर कर वातावरण को मनमोहक सुगंध से भर गये, तन के साथ साथ 
मन को भी सुवासित कर गये! देर तक गायत्री देवी के कानो में गूँजते रहे यह मधुर स्वर....".आ री कनेरी चिड़िया ...गा री कनेरी  चिड़िया........!
डॉ सरस्वती माथुर
लघुकथा
" लक्ष्मी आई है !"
रवीन्द्र हॉल खचाखच भरा था- सबको इंतज़ार था दर्शना जी का, जो आज मातृत्व दिवस पर आमंत्रित थीं l वह सज़ग नारी संस्था की अध्यक्षा थींl उनकी ओजस्वी वाणी सबको प्रभावित करती थी... .आज वह " माँ की भूमिका' पर बोल रहीं थीं ,उनका मानना था की घर कि सर्वोत्तम सत्ता के रूप में बच्चे पहले अपनी माँ को जानते और सर्वेसर्वा मानते हैं.... .आज समय बदला है, तो माँ कि भूमिका भी बदली है क्यूंकि वह अब घर की चारदीवारी लाँघ बाहर आ गयी हैl दर्शाना जी ने मेज़ पर रखे गिलास का पानी एक साँस में पिया और एक गहरा साँस लेकर फिर कहना शुरू किया ---
"विश्व के समग्र यथेष्ट विकास के लिए नारी को विकास कि मुख्य धारा से जुडा होना परम आवशयक है, नारी की  स्थिति समाज में मजबूत ,सम्मानज़नक ,सक्रिय होगी तभी समाज मजबूत होगा l Lनारी समाज का आइना है और माँ के रूप में उसका बहुत योगदान है....... उसे चाहिए लड़के और लड़की में भेदभाव न करेंL लड़की को भी लड़कों की  तरह ही शिक्षित करें... लड़की तो लक्ष्मी स्वरूप होती हैं.... मेरे भी दो प्यारी प्यारी पोतियाँ हैं l मैं तो उन्हें ही घर का चिराग मानती हूँ !"
तालियों की गडगडाहट से हॉल गूँज उठा l तभी फोन क़ी घंटी बज उठीl छोटे बेटे ने माँ को खबर दी कि भाभी को प्रसव पीड़ा शुरू हो गयी थी तो अस्पताल ले गए हैं ,. आप जल्दी पहुँचो !. भाषण वहीँ ख़त्म करके ,दर्शना भागती हुई सी अस्पताल की तरफ तेजी से बढ़ गयीं l तभी वार्ड की  तरफ से आते पति को देखा तो ठिठक कर रुक गयीं .."क्या हुआ जी ?"
" बेटी हुई है .."पति ने खबर दी l
दर्शना ने इश्वर को धन्यवाद् देते हुए कहा की चलो सब काम अच्छे से निपट गया... और मन ही मन बुदबुदाई ..."मेरे घर लक्ष्मी आई है !"और वह तेजी से पोती को देखने चल दीं !

2

सूखा मेवा
इस वर्ष राजस्थान में सूखा पड़ा l मुख्यमंत्री से लेकर संतरी तक सभी चिंतित थे l राहत पर विचार गोष्टियाँ संपन्न की गयीं l वातानुकूलित कक्षों में चाय नाश्ते के खान- पान के आयोज़नो के साथ सूखे की विभीषिका दर्शाती चित्रों की प्रदर्शनियां लगाई गयींl
तभी दीवाली आ गयी और प्रकाश के इस त्यौहार पर अँधेरा रखा जायेगा इस समाचार को अखबार की सुर्खियाँ बनाया गया !
मंत्रियों ने भी दीपावली पर स्वागत सत्कार के प्रबंध में कटौती करने की जोर शोर से घोषणा की l  एक मंत्री महोदय जो मेहमाननवाज़ी के लिए प्रसिद्ध थे ,उन्होंने भी सूखे के कारण राज्य पर आये संकट को महसूस किया और अपने पी . ए. को विशेष आदेश दिया ,"इस बार किसी भी तरह की मिठाइयाँ और पकवान न रखे जाएँ -"
पी .ए . साहब ने अचकचा कर पूछा -"क्यों सरकार ?"
"पता नहीं तुम्हे हमारे राज्य में सूखा पड़ा है ?"
पी .ए.साहब ने अपने कर्तव्यों के प्रति जागरूकता दिखाते हुए कहा -"ठीक है साहेब तो ऐसा करेंगे की दो चार प्लेटो में "सूखे मेवे" लगवा देंगे lचाय तो हो ही जाएगी! "
यह सुनकर मंत्री महोदय गदगद हो गए lपी. ए .साहब की तारीफ करते हुए कहने लगे -"वाह , तुम्हारी वज़ह से मुझे किसी भी बात की चिंता नहीं रहती !"
डॉ सरस्वती माथुर
 ए -२ ,सिविल लाइन
,जयपुर -६
 ०१४१-२२२९६२१

"सोने की नसरनी!"
"अरे कलमुही  बेटा   जनती तो हम भी सोने की नसरनी चढ़ते"  ( बेटा होने पर घर के बुजुर्गों को एक सीढ़ीनुमा  सोने की सीढ़ी पर अंगूठा छुआ कर आदर देने का फंक्शन कि वंश बढ़ा!)
   प्रसव के बाद लौटी बहू को ताना   देते हुए पड़दादी ने कहा तो उसकी आँखें भर आई ! पास ही खड़ी दादी ने मालिश करने आई दाई माँ को सुनाते हुए कहा --"अरी  भंवरी, सवा महीने की  पूजन के साथ एक फंक्शन और रखा है  पूरे मोहल्ले को न्योता देना है, आ लिस्ट बना लें !"
  " कैसा फंक्शन बीबीजी?" हथेली पर तम्बाकू  मसलती  भँवरी  ने  पूछा
" अरी   तीसरी पीढ़ी का प्रतित्निधित्व कर रही है मेरी पोती, क्या मोहेल्ले को लड्डू नहीं खिलाऊंगी?  बड़ी धाय को भी तो  सोने की नसरनी चढ़ा कर मान सम्मान दूँगी ना ! "बहू की आँखें फिर भर आयी, पर यह आंसूं ख़ुशी के थे, उन्होंने कृतज्ञता से सासू माँ की तरफ देखा, पड्दादी निशब्द  रह  अगले बगले झाँकने लगीं !
 डॉ सरस्वती माथुर
 ए  -२ सिविल लाइन्स जयपुर -६ 
 
        लघुकथा
"हिंदी दिवस पर थैंक यू !"
एक बार हिंदी दिवस समारोह में एक प्रतिष्ठित कवि को अध्यक्ष की हैसियत से आमंत्रित किया गया l समारोह धूमधाम से संपन्न हुआ l इस समारोह में हिंदी की महत्ता पर विशेष जोर दिया गया , बार बार दोहराया गया कि हिंदी हमारी मातृभाषा है ,हमे हिंदी का प्रयोग ही करना चाहिए l अंत में अध्यक्ष महोदय ने भी हिंदी कितनी सार्थक राष्ट्रीय भाषा है ...इस पर जोर देते हुए अपना अध्यक्षीय भाषण समाप्त किया l
समारोह में अध्यक्ष महोदय का दस वर्षीय बेटा भी मौजूद था l उस पर भी हिंदी भाषा के प्रयोग का खूब प्रभाव पड़ा ! कार में बैठते समय बड़ी विनम्रता से अयोज़कों के एक मुख्य सदस्य को उनके बेटे ने बड़ी विनम्रता से कहा --"धन्यवाद, अंकल जी , सच आज मुझे बहुत अच्छा लगा l "
अध्यक्ष महोदय ने बेटे को चिकौटी काटते हुए समझाया ,"थैंक यू बोलतें हैं बेटे ...!"
डॉ सरस्वती माथुर    

Res

Ye story aapne kahin aur bheji to nahi

shalini



On 9/24/2014 12:10 PM, J.L Mathur wrote:
लघुकथा :
"करवा चौथ का चाँद !"
करवा चौथ का दिन था! चारों तरफ चहल पहल थी , आकाश बादलों से घिरा था ,चाँद निकलने के कोई आसार नहीं दिख रहे थे ,आज सुबह से ही बूँदा बाँदी हो रही थी! कृष्ण निकुंज का दालान हर  साल की तरह इस वर्ष भी इस पर्व का आयोजन कर रहा था! इस निकुंज में दस फ्लैट थे,जिनमे सभी भारतीय परिवार के लोग थे !  बड़ा उल्लसित करने वाला नजारा रहता थाl सजी धजी महिलाओं के समवेत स्वर और खिलखिलाहट से दालान गुंजायमान हो उठता था ! करवे   और थाल से सजी थालियाँ लिए महिलाए बार बार आकाश को निहारतीं और उनके पति भी बैचैनी से इधर उधर डोलते रह रह कर घडी देखते अखबार के अनुसार इस ८.१० पर चाँद निकलने की संभावना थी ! डीजे   पे  चल रहा था..." आज है करवा चोथ सखी री... "ठुमके पे
थिरक रही महिलाओं में गज़ब का उत्साह था!
श्रीकान्त स्वामी जी भी इस निकुंज  के दूसरे  फ्लोर पे रहते थे उनकी बहू का पहला करवा चौथ था इसलिए उनकी दादी माँ कल्याणी देवी   विशेष रूप से गाँव से आयीं थीं , वह भी इस बदलते स्वरुप को एक कुर्सी पर  बैठी देख रहीं थीं !हैरान भी थी कि किसी भी घर से पकवान मठरी की खुशबू नहीं आ रही थी, सभी के पैकेट कैटरर ने बना दिए थे, कोई प्यासी नहीं थीं, सब कॉफ़ी कोक की चुस्कियां ले रहीं थीं ,अब पति कैसे पानी पिला के व्रत खोलेगे, कल्याणी देवी कुछ कुछ समझ नहीं पा  रहीं थीं ,लेकिन वे मुस्करा रहीं थीं ,उन्हें अपना गाँव भी याद आ रहा था ,जहाँ के हर घर से मठरी पूवे   की खुशबू आ रही होगी और वह हैरान सी सोच रहीं थीं  कि इस अवसर पर तो बादल इतने नहीं होते थे! प्रकृति ने भी रूप बदला है! तभी दूरदर्शन पर न्यूज़ रीडर ने  घोषणा की कि चाँद निकल आया है लेकिन बादलों के कारण बहुत से प्रदेशों में नज़र नहीं आएगा, आप चाहें तो हमारे मॉनिटर पर चाँद देख कर व्रत खोल सकतें  हैं ! फिर क्या था सभी ने टी॰वी॰ के चाँद को अर्क देकर सभी औपचारिकताए पूरी कर लीं थी , जिनके पति बाहर थे उन्होने लैपटाप पर फ़ेस टाइम कर लिया था और व्रत खोल लिया था .... इस बीच डीजे  के स्वर तेज हो गए थे  .. हंसी मज़ाक के साथ .खाने पीने का दौर चल रहा था ,सभी केटरर  के खाने का लुत्फ उठा रहे थे, श्री कान्त स्वामीजी  की दादी माँ कल्याणी देवी   का चाँद पर अभी नहीं निकला था, उनके पति  झाईं गाँव में सरपंच थे, किसी विशेष कार्य के कारण आ नहीं पाये थे  ,कल्याणी देवी को उनकी बहुत याद आ रही थी ,वो अपने पति की तस्वीर के सामने बैठी पूरी रात खिड़की के पास खड़ी अपने गाँव वहाँ की परम्पराएँ पुए- पूड़ी कि खुशबू के बारे में सोचती रहीं थीं और आकाश पर दिखने वाले चौथ के चाँद का इंतज़ार करती रहीं थीं ! 
डॉ सरस्वती माथुर







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