हाइकु
१
निर्मोही मेघ
बिन बरसे गया
धरा अवाक l
२
यादें टेरती
सावनी बदरिया
जब घेरती l
३
मन की धरा
झरना बन जाती
हिलोरें खाती l
४
चलो रे मन
चंचल हवाओं से
गति ले आयें l
५
शोर उड़ाती
यादों की गौरैया तो
मन उडता l
६
धूप का रथ
तप्त धरती पर
दौड़ लगाये l
७
रात थी सोयी
भोर की कोयल ने
उसे उठाया l
८
चंचल मन
हवाओं के संग
रास्ता ही भूला l
९
इचक दाना
हवाएँ हैं गातीं
किसे बुलातीं l
१०
है ता ता थैया
करती नदिया
सागर देख l
डॉ सरस्वती माथुर
१
निर्मोही मेघ
बिन बरसे गया
धरा अवाक l
२
यादें टेरती
सावनी बदरिया
जब घेरती l
३
मन की धरा
झरना बन जाती
हिलोरें खाती l
४
चलो रे मन
चंचल हवाओं से
गति ले आयें l
५
शोर उड़ाती
यादों की गौरैया तो
मन उडता l
६
धूप का रथ
तप्त धरती पर
दौड़ लगाये l
७
रात थी सोयी
भोर की कोयल ने
उसे उठाया l
८
चंचल मन
हवाओं के संग
रास्ता ही भूला l
९
इचक दाना
हवाएँ हैं गातीं
किसे बुलातीं l
१०
है ता ता थैया
करती नदिया
सागर देख l
डॉ सरस्वती माथुर
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